जयराम महतो को स्थानीय मुद्दा को उठाकर भीड़ जुटा लेना और स्थापित नेताओं को चुनौती देना भाड़ी पड़ा।
झारखंड डेस्क
जयराम महतो को स्थानीय मुद्दा को उठाकर भीड़ जुटा लेना और स्थापित नेताओं को चुनौती देना भाड़ी पड़ा।
उसने थोड़ा जल्दीबाजी भी कर दी । सिर्फ मंच से झारखंड सरकार, और जेएमएम भाजपा, कोंग्रेस के विरुद्ध युवाओं को एकजूट कर सियासी समर में उतर कर लोकसभा में भी ताल ठोंक दिया। और गिरिडीह सीट के अलावे रांची, दुमका,धनबाद में सत्तरूढ़ दल के वोट बैंक पर चोट कर NDA की राह आसान कर दी।
जिसका कीमत तो जयराम महतो को चुकाना पड़ेगा।और यही हो रहा है।उसे नामांकन के बाद आज अंदरग्राऊंड होना पड़ा,पुलिस उसके पीछे पड़ी है।उसके दूसरे कैंडिडेट देवेंद्र महतो को नामकन के दौरान गिरफ्तार कर लिया गया।
जयराम महतो को गिरफ्तार करने पहुंची पुलिस को चकामा देना और पुलिस बल के सामने से लापता हो जाना और महंगा पड़ गया।अब निर्वाचन पदाधिकारी ने नोटिस चस्पा कर उसके नामांकन पर्चा में उसके और उसके प्रस्तावक के हस्ताक्षर को हीं संदिग्ध बताकर 7 को निर्वाचन पदाधिकारी के समक्ष उपस्थित होने का फरमान जारी कर दिया।
निसंदेह उस दिन वहां पुलिस मौज़ूद होगी,और अपने हस्ताक्षर को सत्यापित करने आये जयराम महतो पकड़े जायेंगे ,उसे जेल जाना होगा।नही तो उसका नामांकन रद्द हो जायेगा और वे चुनावी समर से बाहर हो जाएंगे।
सत्तारूढ़ दल यही चाहती है।सवाल उन चार सीटों की है जिसपर जयराम महतो की पार्टी ने इंडिया एलायंस का गणित विगाड़ दिया है।अगर जयराम महतो की पार्टी वहां खड़ी रहती है तो जीत हार की बात अलग है लेकिन जेएमएम की वोट बैंक का खेल इतना विगाड़ देगा की NDA की जीत की राह आसन हो जाएगी।
रही गिरिडीह सीट की बात।इस बार वहां तीन कुर्मी मैदान में हैँ।माथुरा महतो,चंद्रप्रकाश चौधरी इन सब के बीच आ गया जयराम महतो।जिसने पुरा खेल विगाड़ दिया।
पिछले 10 वर्षों से चंद्रप्रकाश चौधरी यहाँ से सांसद हैँ। जिसके लिए क्षेत्र में जनता के बीच एक नैरेटिव सेट हो गया है कि यहाँ चंद्रप्रकाश चौधरी को 10 साल दिया लेकिन जो अपेक्षा थी वह पुरा नही हुआ।भाजपा कि परम्परिक वोट को छोड़ दें तो स्थानीय कुर्मी मतदाता माथुरा महतो के साथ आ सकते और आदिवासी और मुस्लिम मतदाता भी माथुरा के साथ था।लेकिन जयराम ने वहां खेल विगाड़ दिया है।जिसके लिए अभी चुनावी मैदान से उसे हटाना सत्तारूढ़ पार्टी के लिए मज़बूरी हो गया है।जयराम मैदान में रहा तो माथुरा हार सकते और चंद्रप्रकाश की जीत सुनिश्चित हो सकती है।
चुनाव के लिए धन,बल और छल तीनो जरूरी है।राजनीति का मौजूदा स्वरूप भी यही है।लेकिन इन सभी गुणों में निपुण होने से पूर्व जयराम को चुनावी मैदान में कूद जाना नादानी था।
राजनीति में उसे बड़ी पार्टी की ओर से ऑफर भी हुयी थी यह भी उसके लिए अवसर था।लेकिन वह सेंटिमेंट में बह गया।राजनीति सेंटिमेंट नही,छल- प्रपंच का खेल है।यह गाडी के छत पर खड़ा होकर भाषण देने वाला और हज़ारों का भीड़ जुटा लेने वाला युवा समझ हीं नही पाया।जब की उसे अभी और दाव पेंच सीखने की जरूरत थी या किसी बड़ी पार्टी का हिस्सा बनकर अपना सफर शुरु करना चाहिए था। इसीलिए उस भूल का कीमत तो उसे चुकाना पड़ेगा।
अब देखिये होता क्या है..?जयराम महतो की संसद में जाने की महत्वकांक्षाएँ बरकरार् रहती है।या राजनीति के इस खेल में हार कर किसी बड़ी पार्टी में जाकर अपनी नई सफर की शुरुआत करते हैँ.?
May 07 2024, 09:48