वरुण गांधी के रुख पर टिकीं सबकी निगाहें, पीलीभीत सीट के लिए आज नामांकन का आखिरी दिन
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पीलीभीत से बीजेपी ने वरुण गांधी का पत्ता काट कर जितिन प्रसाद को उम्मीदवार बनाया गया। इसके बाद अब सबकी नजरें वरुण गांधी के अगले कदम पर है।पीलीभीत में 19 अप्रैल को वोटिंग होगी। उत्तर प्रदेश की इस सीट पर नामांकन का आज यानी बुधवार को आखिरी दिन है। अब देखना होगा कि वरुण क्या निर्दलीय पर्चा भरते हैं या पीलीभीत से उनके परिवार का 35 साल का रिश्ता खत्म होने वाला है।हालांकि, नामांकन प्रक्रिया शुरू होने के साथ ही वरुण गांधी ने नामांकन पत्र के चार सेट खरीद लिए थे। ऐसे में वरूण गांधी के अगले कदम पर सबकी निगाहें हैं।
आज नामांकन के अंतिम दिन तस्वीर साफ होगी कि वरुण मैदान छोड़ेंगे या कोई और कदम उठाएंगे। सांसद वरुण गांधी की ओर से अपने समर्थकों को किसी तरह का कोई संदेश अभी तक नहीं दिया गया है। भारतीय जनता पार्टी ने 24 मार्च को देररात जारी सूची में सांसद वरुण गांधी का टिकट काटकर उनके स्थान पर लोक निर्माण विभाग मंत्री जितिन प्रसाद को उम्मीदवार घोषित किया है। टिकट कटने के बाद सांसद वरुण गांधी के समर्थकों में सन्नाटा सा पसर गया।
अवध क्षेत्र से मैदान में उतारने की चर्चा
अपनी ही सरकार को कई बार कठघरे में खड़ा करने वाले वरुण का टिकट काटने के बाद भी भाजपा उनसे रिश्ता कायम रख सकती है। चर्चा है कि पार्टी उन्हें अवध क्षेत्र की किसी वीआईपी सीट से चुनाव मैदान में उतार सकती है। हालांकि इस बारे में ठोस कोई कुछ नहीं बोल रहा। सिर्फ वरुण व भाजपा की एक-दूसरे के बारे में कोई टिप्पणी न आने से इसकी संभावना भी कुछ लोग जता रहे हैं। ऐसे में भाजपा और वरुण दोनों के लिए बुधवार का दिन खास है।
पीलीभीत से 35 साल पुराना रिश्ता
वरुण गांधी के परिवार का पीलीभीत लोकसभा सीट से रिश्ता साढ़े तीन दशक पुराना है। मेनका गांधी ने अपनी सियासी पारी का आगाज संजय गांधी के निधन के बाद 1984 में अमेठी से किया था। राजीव गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ी थीं, लेकिन जीत नहीं सकीं। इसके बाद ही उन्होंने पीलीभीत सीट को चुना। साल 1989 में जनता दल के टिकट पर पीलीभीत सीट से चुनावी मैदान में उतरीं तो तराई के लोगों ने मेनका को सिर-आंखों पर बैठाया। वो जीतकर संसद पहुंचीं, लेकिन 1991 में हुए लोकसभा चुनाव में हार गईं। मेनका गांधी ने 1996 में जनता दल से चुनाव लड़कर हिसाब बराबर किया। इसके बाद मेनका ने 1998 और 1999 में पीलीभीत सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जीतीं। अटल बिहार वाजपेयी सरकार में मंत्री रहीं और 2004 में मेनका ने बीजेपी उम्मीदवार के तौर पर जीत दर्ज किया।
वरुण गांधी ने सियासत में आने का फैसला किया तो उन्होंने पीलीभीत सीट बेटे के लिए छोड़ दी। 2009 में वरुण गांधी पीलीभीत से सांसद बने तो मेनका गांधी आंवला सीट से सांसद चुनी गईं। 2014 में बीजेपी ने वरुण को सुल्तानपुर से तो मेनका गांधी को पीलीभीत से चुनावी मैदान में उतारा। मां-बेटे दोनों ही जीतने में सफल रहे, लेकिन 2019 में फिर से दोनों की सीट बदल दी गई। 2019 में बीजेपी ने वरुण गांधी के पीलीभीत से तो मेनका गांधी को सुल्तानपुर से प्रत्याशी बनाया। इस बार भी दोनों जीतने में सफल रहे, लेकिन बीजेपी ने 2024 में वरुण गांधी को पीलीभीत से टिकट नहीं दिया जबकि उनकी मां मेनका गांधी को सुल्तानपुर से प्रत्याशी बनाया है।
Mar 27 2024, 10:54