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ममता बनर्जी के परिवार में कलह, सियासी 'आग' में भाई-बहन के रिश्तों में बढ़ी तपन

#mamata_banerjee_brother_babun_banerjee_family_row 

पूरे देश में मौसम का मिजाज बदल रहा है। सर्दियों की विदाई शुरू हो गई है और तापमान धीरे-धीरे बढ़ने लगा है। वहीं, दूसरी तरफ लोकसभा चुनाव की आमद को लेकर सियासी पारा बी चढ़ने लगा है। राजनीतिक दलों रस्साकशी शुरू हो गई है। पार्टियां टूट रही हैं और रिश्तों में दरार आ रही है। इस सियासी “आग” की चपेट में ममता बनर्जी का परिवार भी आ गया है। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपने छोटे भाई बाबुन बनर्जी से सभी रिश्ते तोड़ने का सार्वजनिक ऐलान कर दिया है।

पश्चिम बंगाल में टीएमसी ने लोकसभा चुनाव के लिए 42 कैंडिडेट घोषित किए। इस घोषणा के बाद सीएम ममता बनर्जी के परिवार में कलह शुरू हो गया। उनके छोटे भाई स्वपन बनर्जी उर्फ बाबुन बनर्जी ने हावड़ा से निर्दलीय चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी। बाबुन हावड़ा से तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार प्रसून बनर्जी को टिकट देने से खुश नहीं थे। एक निजी चैनल से बात करते हुए उन्होंने कहा था, मुझे प्रसून बनर्जी से एलर्जी है। प्रसून हावड़ा के लिए सही विकल्प नहीं हैं। कई सक्षम उम्मीदवार थे, जिन्हें नजरअंदाज कर दिया गया। पार्टी ने ठीक नहीं किया। मैं उनके ख़िलाफ़ निर्दलीय चुनाव लड़ सकता हूँ। 

भाई के इस बयान से नाराज ममता ने बाबुन बनर्जी को लालची बताते हुए रिश्ता तोड़ने का ऐलान कर दिया। ममता बनर्जी ने कहा कि कभी-कभी उम्र बढ़ने पर लोग लालची हो जाते हैं और चुनाव में प्रॉब्लम करते हैं। मुझे ऐसे लोग पसंद नहीं हैं। ममता बनर्जी ने अपने भाई को लेकर कहा, आज से मैं ख़ुद को उनसे पूरी तरह अलग करती हूँ। अब से कृपया मेरा नाम उनके साथ न जोड़ें। भूल जाइए कि मेरा उनके साथ कोई रिश्ता था। मैं ही नहीं आज से मेरे परिवार के हर सदस्य ने उनके साथ अपना रिश्ता ख़त्म कर लिया है।

दीदी ममता बनर्जी द्वारा रिश्ता तोड़ने की बात के बाद ही भाई बाबुन के तेवर ढीले पड़ गए। बाबुन ने अपने बयान से यू टर्न लेते हुए कहा, ममता बनर्जी ने एक अभिभावक के रूप में जो कहा वह सही है। मैं दीदी की बात को आशीर्वाद के रूप में लेता हूं। मैं अकेला नहीं खड़ा होऊंगा, मैं दीदी के लिए सब कुछ करूंगा। इस तरह बाबुन हावड़ा में निर्दलीय चुनाव लड़ने के फैसले से भी पीछे हट गए

हालांकि, यह पहली बार नहीं है कि दोनों भाई-बहन सार्वजनिक रूप से खुलकर एक दूसरे से लड़े हों। ममता बनर्जी पहले भी अपने भाई को सुरक्षा नियमों का उल्लंघन करने के लिए कोविड-19 महामारी के दौरान फटकार लगा चुकी हैं।

भाई बहन के बीच कलह की एक वजह भतीजे अभिषेक बनर्जी को बी माना जा रहा है। दरअसल, पिछले एक दशक में उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी ने पार्टी में नंबर टू का दर्जा हासिल कर लिया है। पार्टी के फैसलों में उनकी छाप दिखने लगी है। उन्हें मीडिया में दीदी का उत्तराधिकारी माना जाने लगा है। शायद यही कारण है कि अभिषेक बनर्जी के बढ़ते कद के कारण भी अब बनर्जी परिवार में कलह बढ़ता जा रहा है।

क्या 2029 से साथ होंगे सभी चुनाव? पहले लोकसभा-विधानसभा, फिर निगम-पंचायत... कैसे काम करेगा सिस्टम, कोविंद कमेटी ने राष्ट्रपति को सौंपी रिपोर्ट, आ

एक देश-एक चुनाव एक ऐसी प्रणाली है जिसमें देश में सभी चुनाव एक साथ आयोजित किए जाएंगे। यह प्रणाली चुनावों की लागत और व्यय को कम करने, राजनीतिक स्थिरता स्थापित करने और शासन में सुधार लाने के लिए प्रस्तावित की गई है। 'एक देश, एक चुनाव' पर रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली कमेटी ने गुरुवार को अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंप दी है। 

रामनाथ कोविंद कमेटी ने इस रिपोर्ट में कई बड़ी और अहम सिफारिशें की हैं। कमेटी ने वन नेशन वन इलेक्शन के लिए संविधान संशोधन की सिफारिश की है। कमेटी ने सिफारिश की है कि सरकार कानून सम्मत ऐसा तंत्र तैयार करे, जिससे एक साथ चुनाव संभव हो। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अगुवाई वाली पैनल ने 18 हजार पन्नों की रिपोर्ट सौंपी है। रिपोर्ट दो सितंबर 2023 को समिति गठन के बाद से तैयार की जा रही थी। 

समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि देश को आजादी मिलने के दो दशक तक एक साथ चुनाव होते थे, लेकिन बाद में चुनाव हर साल होने लगे। इससे देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान हुआ। इसलिए हम यह सुझाव देते हैं कि देश में एक साथ चुनाव की व्यवस्था कायम हो। कमेटी ने सुझाव दिया कि पहले चरण में विधानसभा और लोकसभा के चुनाव कराए जा सकते हैं। वहीं. इसके 100 दिन बाद नगर पालिका और पंचायत के चुनाव कराए जा सकते हैं। लोक सभा और राज्य विधान सभाओं के चुनावों को एक साथ कराने के उद्देश्य से समिति ने सिफारिश की है कि राष्ट्रपति, आम चुनाव के बाद लोक सभा की पहली बैठक की तारीख को जारी अधिसूचना द्वारा, इस अनुच्छेद के प्रावधान को लागू कर सकते हैं और अधिसूचना की उस तारीख को नियुक्त तिथि कहा जाएगा।

सभी राज्य विधान सभाओं का कार्यकाल, नियत तिथि के बाद और लोक सभा के पूर्ण कार्यकाल की समाप्ति से पहले राज्य विधान सभाओं के चुनावों द्वारा गठित, केवल लोक सभा के बाद के आम चुनावों तक समाप्त होने वाली अवधि के लिए होगा। इसके बाद, लोक सभा और सभी राज्य विधान सभाओं के सभी आम चुनाव एक साथ आयोजित किए जाएंगे।

रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि एक देश-एक चुनाव पर 47 राजनीतिक दलों ने कमेटी को अपनी राय दी। जिनमें से 32 ने पक्ष में और 15 विपक्ष में मत रखा है। कोविंद पैनल ने एक साथ चुनाव कराने के लिए उपकरणों, जनशक्ति और सुरक्षा बलों की एडवांस प्लानिंग की सिफारिश की है। कोविंद की अगुआई में 8 मेंबर की कमेटी पिछले साल 2 सितंबर को बनी थी। 23 सितंबर 2023 को पहली बैठक दिल्ली के जोधपुर ऑफिसर्स हॉस्टल में वन नेशन वन इलेक्शन कमेटी की पहली बैठक हुई थी। इसमें पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, गृह मंत्री अमित शाह और पूर्व सांसद गुलाम नबी आजाद समेत 8 मेंबर हैं। केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल कमेटी के स्पेशल मेंबर बनाए गए हैं।

यह प्रणाली कैसे काम करेगी

पहले चरण में: लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ आयोजित किए जाएंगे।

दूसरे चरण में: निगम और पंचायत चुनाव एक साथ आयोजित किए जाएंगे।

 लाभ

चुनावों की लागत और व्यय में कमी: एक साथ चुनाव आयोजित करने से चुनाव आयोग को पैसे और समय की बचत होगी। 

राजनीतिक स्थिरता: एक साथ चुनाव आयोजित करने से राजनीतिक दलों को लगातार चुनावों में भाग लेने की आवश्यकता नहीं होगी, जिससे राजनीतिक स्थिरता स्थापित होगी।

शासन में सुधार: एक साथ चुनाव आयोजित करने से सरकार को नीतियां बनाने और उन्हें लागू करने पर अधिक ध्यान केंद्रित करने का अवसर मिलेगा।

इस प्रणाली के नुकसान

चुनावी तारीखों का टकराव: यदि लोकसभा या विधानसभा का कार्यकाल पूरा नहीं होता है, तो चुनाव आयोग को चुनावी तारीखों का टकराव टालने के लिए उपाय करने होंगे।

चुनावी थकान

 एक साथ चुनाव आयोजित करने से मतदाताओं में चुनावी थकान हो सकती है।

क्षेत्रीय मुद्दों का दब जाना

 राष्ट्रीय मुद्दों के कारण क्षेत्रीय मुद्दे दब सकते हैं।

केरल के ज्ञानेश कुमार, पंजाब के सुखबीर संधू होंगे नए चुनाव आयुक्त, अधीर रंजन का दावा-सरकार ने पहले से तय कर रखे थे नाम

#gyanesh_kumar_and_sukhbir_sandhu_new_election_commissioner

ज्ञानेश कुमार और सुखबीर संधू देश के दो नए चुनाव आयुक्त होंगे। आज पीएम नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई बैठक में इन दोनों नामों पर सहमति बन गई है। लोकसभा में विपक्ष के नेता अधीर रंजन चौधरी ने भी इन नामों की जानकारी दी है। लोकसभा में विपक्ष के नेता और कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी भी चयन समिति के सदस्य हैं।अधीर रंजन चौधरी ने चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की प्रक्रिया पर सवाल उठाए और आरोप लगाया कि सरकार ने पहले से ही चुनाव आयुक्तों के नाम तय कर रखे थे। अधीर रंजन चौधरी ने बताया कि सरकार ने उनसे पहले से सूची साझा नहीं की थी। बता दें कि पूर्व चुनाव आयुक्त अनूप चंद्र पांडेय के रिटायरमेंट और अरुण गोयल के बीते दिनों इस्तीफे की वजह से चुनाव आयोग में दो चुनाव आयुक्तों के पद खाली हैं। इन्हीं पदों पर नियुक्ति के लिए आज प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में बैठक हुई।

चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए आज नई दिल्ली में 7, लोककल्याण मार्ग स्थित प्रधानमंत्री के आधिकारिक निवास में बैठक हुई। बैठक में प्रधानमंत्री के अलावा केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल और लोकसभा में विपक्ष के नेता और कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी भी शामिल हुए।बैठक के बाद अधीर रंजन ने दावा किया है कि केरल के ज्ञानेश कुमार और पंजाब के सुखबीर संधू नए चुनाव आयुक्त होंगे।जल्द ही आधिकारिक रूप से नए चुनाव आयुक्तों के नामों का एलान हो सकता है

बैठक के बाद मीडिया से बात करते हुए कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि 'सरकार जिसे चाहेगी, वो ही चुनाव आयुक्त बनेंगे।' अधीर रंजन चौधरी ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि 'समिति में सरकार के पास बहुमत है और इस वजह से सरकार अपने पसंद के नाम तय कर सकती है। भारत जैसे लोकतंत्र में इतने बड़े पद पर नियुक्ति इस तरीके से नहीं होनी चाहिए।

अधीर रंजन ने कहा कि मैं अपना क्षेत्र छोड़कर बैठक में शामिल होने के लिए आया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कमिटी में चीफ जस्टिस को भी रहना चाहिए था। उन्हें नहीं रखा गया। बदले में गृह मंत्री अमित शाह को बैठक में शामिल किया गया था। कांग्रेस सांसद ने कहा, मैंने बैठक के पहले ही शार्टलिस्ट उम्मीदवारों की लिस्ट मांगी थी। जिससे उनके बारे में बारीकी से पता करता। पहले, उन्होंने मुझे 212 नाम दिए थे, लेकिन नियुक्ति से 10 मिनट पहले उन्होंने मुझे सिर्फ छह नाम दिए। मुझे पता है कि मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) वहां नहीं है, सरकार ने ऐसा कानून बना दिया है कि सीजेआई दखल नहीं दे सकता और केंद्र सरकार अपनी पसंद का नाम चुन सकती है। मैं यह नहीं कह रहा कि यह मनमाना है, लेकिन जो प्रक्रिया अपनाई जा रही है उसमें कुछ खामियां हैं।

वन नेशन, वन इलेक्शन’ कोविंद कमेटी ने राष्ट्रपति को सौंपी रिपोर्ट, जानें क्या हैं सिफारिशें

#onenationoneelectionkovindpaneltosubmititsreportto_president 

पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय समिति ने लोकसभा, राज्यों की विधानसभा और स्थानीय निकायों के चुनाव एक साथ कराने को लेकर अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंप दी है।रिपोर्ट 18,626 पन्नों की है। भारत के पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द की अध्यक्षता में एक साथ चुनाव कराने को लेकर गठित उच्च स्तरीय समिति ने राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मुलाकात की और अपनी रिपोर्ट सौंपी। इस दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी मौजूद रहे। इसमें पिछले 191 दिनों के हितधारकों, विशेषज्ञों और अनुसंधान कार्य के साथ व्यापक परामर्श का नतीजा शामिल है। 

पिछले सितंबर में गठित समिति को मौजूदा संवैधानिक ढांचे को ध्यान में रखते हुए लोकसभा, राज्य विधानसभाओं, नगर पालिकाओं और पंचायतों के लिए एक साथ चुनाव कराने के लिए संभावनाएं तलाशने और सिफारिशें करने का काम सौंपा गया था। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली इस समिति में गृह मंत्री अमित शाह, राज्यसभा में विपक्ष के पूर्व नेता गुलाम नबी आजाद, वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एन.के. सिंह, पूर्व लोकसभा महासचिव सुभाष कश्यप और वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे भी शामिल हैं।

सिफारिश की खास बातें –

- कमेटी ने कहा है कि प्रारंभ में हर दस साल में दो चुनाव होते थे। अब हर साल कई चुनाव होने लगे हैं। इससे सरकार, व्यवसायों, श्रमिकों, न्यायालयों, राजनीतिक दलों, चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों और बड़े पैमाने पर नागरिक समाज पर भारी बोझ पड़ता है। इसलिए समिति सिफारिश करती है कि सरकार को एक साथ चुनावों के चक्र को बहाल करने के लिए कानूनी रूप से व्यवहार्य तंत्र विकसित करना चाहिए। समिति की सिफारिश है कि लोकसभा, विधानसभा चुनावों के साथ-साथ पंचायतों और नगर पालिकाओं के चुनाव कराए जा सकते हैं। हालांकि, समिति इनको दो चरणों में लागू करने की सिफारिश करती है। जहां पहले चरण में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव और फिर 100 दिन के अंदर दूसरे चरण में स्थानीय निकायों के चुनाव कराए जाने की बात की गई है।

– संविधान में कुछ संशोधन की भी वकालत की गई है। इसके तहत कुछ शब्दावली में हल्का बदलाव या यूं कहें कि उनको नए सिरे से परिभाषित करने की बात है। ‘एक साथ चुनाव’ को ‘जेनरल इलेक्शन’ कहने का सुझाव है।

– इस तरह लोकसभा और विधानसभा चुनाव के बीच अगर एक तालमेल बैठ जाता है और एक देश – एक चुनाव होने अगर लगता है तो यह हर पांच साल पर हुआ करेगा। हां, अगर कोई सदन पांच वर्ष की अवधि से पहले भंग हो गई तो फिर मध्यावधि चुनाव अगले पांच साल के लिए नहीं बल्कि केवल बचे हुए कार्यकाल के लिए होगा ताकि अवधि पूरा होने तक राज्य और लोकसभा चुनाव एक साथ कराए जा सकें।

– लोकसभा का पांच साल कार्यकाल पूरा होने से पहले यदि किसी राज्य विधानसभा में सरकार गिरती है, त्रिशंकु या अविश्वास प्रस्ताव जैसी स्थिति में लोकसभा के बचे हुए कार्यकाल की अवधि के आधार पर विधानसभा में चुनाव कराएं जाएं। जैसे लोकसभा पांच में एक साल का कार्यकाल पूरा कर चुकी और कहीं राज्य में सरकार गिर गई तो विधानसभा चुनाव चार साल का कराया जाए।

– एकल मतदाता सूची तैयार करने का भी सुझाव है और इसके लिए संविधान के कई अनुच्छेदों में संविधान संशोधन की सिफारिश की गई है।

‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ कोविंद कमेटी ने राष्ट्रपति को सौंपी रिपोर्ट, जानें क्या हैं सिफारिशें

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पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय समिति ने लोकसभा, राज्यों की विधानसभा और स्थानीय निकायों के चुनाव एक साथ कराने को लेकर अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंप दी है।रिपोर्ट 18,626 पन्नों की है। भारत के पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द की अध्यक्षता में एक साथ चुनाव कराने को लेकर गठित उच्च स्तरीय समिति ने राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मुलाकात की और अपनी रिपोर्ट सौंपी। इस दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी मौजूद रहे। इसमें पिछले 191 दिनों के हितधारकों, विशेषज्ञों और अनुसंधान कार्य के साथ व्यापक परामर्श का नतीजा शामिल है। 

पिछले सितंबर में गठित समिति को मौजूदा संवैधानिक ढांचे को ध्यान में रखते हुए लोकसभा, राज्य विधानसभाओं, नगर पालिकाओं और पंचायतों के लिए एक साथ चुनाव कराने के लिए संभावनाएं तलाशने और सिफारिशें करने का काम सौंपा गया था। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली इस समिति में गृह मंत्री अमित शाह, राज्यसभा में विपक्ष के पूर्व नेता गुलाम नबी आजाद, वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एन.के. सिंह, पूर्व लोकसभा महासचिव सुभाष कश्यप और वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे भी शामिल हैं।

सिफारिश की खास बातें –

- कमेटी ने कहा है कि प्रारंभ में हर दस साल में दो चुनाव होते थे। अब हर साल कई चुनाव होने लगे हैं। इससे सरकार, व्यवसायों, श्रमिकों, न्यायालयों, राजनीतिक दलों, चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों और बड़े पैमाने पर नागरिक समाज पर भारी बोझ पड़ता है। इसलिए समिति सिफारिश करती है कि सरकार को एक साथ चुनावों के चक्र को बहाल करने के लिए कानूनी रूप से व्यवहार्य तंत्र विकसित करना चाहिए। समिति की सिफारिश है कि लोकसभा, विधानसभा चुनावों के साथ-साथ पंचायतों और नगर पालिकाओं के चुनाव कराए जा सकते हैं। हालांकि, समिति इनको दो चरणों में लागू करने की सिफारिश करती है। जहां पहले चरण में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव और फिर 100 दिन के अंदर दूसरे चरण में स्थानीय निकायों के चुनाव कराए जाने की बात की गई है।

– संविधान में कुछ संशोधन की भी वकालत की गई है। इसके तहत कुछ शब्दावली में हल्का बदलाव या यूं कहें कि उनको नए सिरे से परिभाषित करने की बात है। ‘एक साथ चुनाव’ को ‘जेनरल इलेक्शन’ कहने का सुझाव है।

– इस तरह लोकसभा और विधानसभा चुनाव के बीच अगर एक तालमेल बैठ जाता है और एक देश – एक चुनाव होने अगर लगता है तो यह हर पांच साल पर हुआ करेगा। हां, अगर कोई सदन पांच वर्ष की अवधि से पहले भंग हो गई तो फिर मध्यावधि चुनाव अगले पांच साल के लिए नहीं बल्कि केवल बचे हुए कार्यकाल के लिए होगा ताकि अवधि पूरा होने तक राज्य और लोकसभा चुनाव एक साथ कराए जा सकें।

– लोकसभा का पांच साल कार्यकाल पूरा होने से पहले यदि किसी राज्य विधानसभा में सरकार गिरती है, त्रिशंकु या अविश्वास प्रस्ताव जैसी स्थिति में लोकसभा के बचे हुए कार्यकाल की अवधि के आधार पर विधानसभा में चुनाव कराएं जाएं। जैसे लोकसभा पांच में एक साल का कार्यकाल पूरा कर चुकी और कहीं राज्य में सरकार गिर गई तो विधानसभा चुनाव चार साल का कराया जाए।

– एकल मतदाता सूची तैयार करने का भी सुझाव है और इसके लिए संविधान के कई अनुच्छेदों में संविधान संशोधन की सिफारिश की गई है।

सुप्रीम कोर्ट के कैंटीन में रसोइया की बेटी ने किया कमाल, कठिन मेहनत और लगन को देखते हुए अमेरिका के विवि ने दी छात्रवृत्ति, सीजेआई ने किया सम्मान

देश की सुप्रीम कोर्ट में रसोईया का काम करने वाले की बेटी ने बड़ी कामयाबी हासिल की है उसकी इस कामयाबी से पूरा सुप्रीम कोर्ट परिवार उत्साहित है. मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ समेत अन्य न्यायाधीशों ने इस बेटी को सम्मानित किया है.

पूरे मामले की बात करें तो सुप्रीम कोर्ट में रसोईया का काम करने वाले एक शख्स की बेटी प्रज्ञा ने कानून की पढ़ाई की है और उसकी काबिलियत को देखते हुए अमेरिका की दो नामी विश्वविद्यालय ने छात्रवृत्ति का ऑफर दिया है इसके बाद प्रज्ञा अमेरिका पढ़ाई के लिए जा रही है.

प्रज्ञा ने यह कामयाबी अपनी प्रतिभा,कठिन मेहनत और संघर्ष के बदौलत पूरा किया है.यही वजह है कि पूरा सुप्रीम कोर्ट परिवार प्रज्ञा के इस कामयाबी से उत्साहित है. खुद सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने सहयोगियों के साथ प्रज्ञा को सम्मानित किया है मुख्य न्यायाधीश ने प्रज्ञा को तीन किताबें भी भेंट की है और उनके उज्जवल भविष्य की कामना की है. प्रज्ञा की कामयाबी की वजह से न्यायाधीशों ने उनके रसोईया पिता और गृहणी का काम करने वाली मां को भी सम्मानित किया है और उनके परवरिश की तारीफ की है.

वहीं सुप्रीम कोर्ट परिवार से मिले इस सम्मान से प्रज्ञा काफी उत्साहित है और उन्होंने सभी का आभार जताया है. सम्मानित होने के बाद प्रज्ञा ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की कार्यशैली से काफी प्रभावित हैं. वह लाइव स्ट्रीमिंग के जरिए लगातार डी वाई चंद्रचूड़ के कोर्ट की कार्यवाही को देखते रहती है और जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट परिवार ने उस पर विश्वास जताते हुए सम्मानित किया है उससे वह काफी अभिभूत है और आने वाले दिनों में वह न्यायिक क्षेत्र में कुछ बेहतर करने का प्रयास करेगी.

चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति पर आज लग सकती है मुहर, पीएम मोदी की अध्यक्षता में चयन समिति की बैठक

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कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल की अध्यक्षता वाली सर्च कमेटी ने चुनाव आयोग में आयुक्तों की दो रिक्तियां भरने के लिए पांच उम्मीदवारों की एक सूची तैयार कर ली है। इनमें से दो चुनाव आयुक्तों के नाम तय करने के लिए पीएम मोदी की अध्यक्षता में चयन समिति की बैठक आज यानी गुरुवार को होगी। पीएम मोदी ने इस बैठक के लिए कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल को भी नामित किया है। लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता के तौर पर अधीर रंजन बैठक में शामिल होंगे।

चयन समिति की सिफारिश के आधार पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु चुनाव आयोग के दो सदस्यों की नियुक्ति करेंगी। नियुक्तियों की अधिसूचना जारी होने के बाद नए कानून के तहत की जाने वाली ये पहली नियुक्तियां होंगी। कानून तीन सदस्यीय चयन समिति को ऐसे व्यक्ति को नियुक्त करने का अधिकार भी देता है जिसे सर्च कमेटी ने 'शार्टलिस्ट' नहीं किया हो।

14 फरवरी को अनूप चंद्र पांडे चुनाव आयुक्त के पद से सेवानिवृत्त हुए थे। इसके बाद अरुण गोयल ने भी चुनाव आयुक्त के पद से इस्तीफा दे दिया था। उनके इस्तीफे की अधिसूचना नौ मार्च को जारी की गई थी। तबसे आयोग में ये दो पद खाली हैं। दो चुनाव आयुक्तों के पद खाली होने के बाद मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) राजीव कुमार चुनाव आयोग के एकमात्र सदस्य रह गए हैं। मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति पर नया कानून लागू होने से पहले चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की सिफारिश राष्ट्रपति द्वारा की जाती थी। परंपरा के मुताबिक, सबसे वरिष्ठ को मुख्य चुनाव आयुक्त नियुक्त किया जाता था।

अचानक SUV कार से उतरकर खेत में पहुंचीं एमपी के पूर्व सीएम कमलनाथ की बहू, करने लगी ये काम, देखकर दंग रह गए लोग

मध्यप्रदेश के पूर्व सीएम कमलनाथ की बहू एवं छिंदवाड़ा सांसद नकुलनाथ की पत्नी प्रियानाथ गेहूं की फसल काटते दिखाई दी। कांग्रेस सांसद की पत्नी ने खेत में किसानों के साथ फोटो भी क्लिक कराए। दरअसल, प्रियानाथ बुधवार को पांढुर्ना जिले के हिरावाड़ी गांव पहुंची। इस के चलते प्रिया ने एक किसान के खेत मे गेहूं काट रही महिलाओं का हाल चाल पूछा।

वही इसी के चलते प्रिया नाथ ने हाथ में हंसिया लेकर फसल भी काटी। लग्जरी गाड़ी से उतरकर धूप में खेत पहुंची प्रिया नाथ को इस प्रकार फसल काटते देख हर कोई दंग रह गया। सांसद नकुलनाथ पांढुर्ना में आमसभा के लिए पहुंचे थे। साथ उनकी पत्नी भी आई थीं। सभा के पश्चात् प्रियानाथ एक खेत जा पहुंचीं तथा किसानों के साथ धूप में गेंहू काटने लगीं। उनके साथ जिला कांग्रेस अध्यक्ष एवं पांढुर्ना MLA नीलेश उइके उपस्थित थे।  

बता दें कि कमलनाथ ने अपने सांसद बेटे नकुलनाथ के साथ छिंदवाड़ा संसदीय इलाके में तूफानी दौरे आरम्भ कर दिए हैं। पिता पुत्र 11 से 15 मार्च तक जनसभाओं एवं कार्यकर्ता सम्मेलनों में सम्मिलित होंगे। लोकसभा चुनाव नजदीक है। भाजपा में कांग्रेस के नेताओं का सम्मिलित होना कहीं न कहीं कार्यकर्ताओ में हताशा है। वहीं, कमलनाथ एवं नकुलनाथ के भाजपा में जाने की अटकलों पर भी विराम लग चुका हो मगर कार्यकर्ता हताश हैं। उनमें जोश भरने अब कमलनाथ एवं नकुलनाथ 11 मार्च से 15 मार्च तक जिले का तूफानी दौरा कर रहे हैं।

चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति पर आज लग सकती है मुहर, पीएम मोदी की अध्यक्षता में चयन समिति की बैठक

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कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल की अध्यक्षता वाली सर्च कमेटी ने चुनाव आयोग में आयुक्तों की दो रिक्तियां भरने के लिए पांच उम्मीदवारों की एक सूची तैयार कर ली है। इनमें से दो चुनाव आयुक्तों के नाम तय करने के लिए पीएम मोदी की अध्यक्षता में चयन समिति की बैठक आज यानी गुरुवार को होगी। पीएम मोदी ने इस बैठक के लिए कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल को भी नामित किया है। लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता के तौर पर अधीर रंजन बैठक में शामिल होंगे।

चयन समिति की सिफारिश के आधार पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु चुनाव आयोग के दो सदस्यों की नियुक्ति करेंगी। नियुक्तियों की अधिसूचना जारी होने के बाद नए कानून के तहत की जाने वाली ये पहली नियुक्तियां होंगी। कानून तीन सदस्यीय चयन समिति को ऐसे व्यक्ति को नियुक्त करने का अधिकार भी देता है जिसे सर्च कमेटी ने 'शार्टलिस्ट' नहीं किया हो।

14 फरवरी को अनूप चंद्र पांडे चुनाव आयुक्त के पद से सेवानिवृत्त हुए थे। इसके बाद अरुण गोयल ने भी चुनाव आयुक्त के पद से इस्तीफा दे दिया था। उनके इस्तीफे की अधिसूचना नौ मार्च को जारी की गई थी। तबसे आयोग में ये दो पद खाली हैं। दो चुनाव आयुक्तों के पद खाली होने के बाद मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) राजीव कुमार चुनाव आयोग के एकमात्र सदस्य रह गए हैं। मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति पर नया कानून लागू होने से पहले चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की सिफारिश राष्ट्रपति द्वारा की जाती थी। परंपरा के मुताबिक, सबसे वरिष्ठ को मुख्य चुनाव आयुक्त नियुक्त किया जाता था।

कोरोना महामारी ने इतने साल कम कर दी जिंदगी, अब पहले से कम जी रहा इंसान, ताजा रिसर्च में हुआ बड़ा खुलासा, चौंक गए वैज्ञानिक!

द लैंसेट जर्नल में प्रकाशित एक ताजा रिसर्च के मुताबिक, कोविड महामारी ने दुनिया भर में लोगों की औसत उम्र 1.6 साल कम कर दी है। रिसर्च में बताया गया है कि 2020 और 2021 में दुनिया भर में 13.1 करोड़ लोगों की मौत हुई, जिनमें से 1.6 करोड़ लोगों की मौत कोरोना महामारी के कारण हुई।

नए रिसर्च ने कोरोना के गंभीर स्वास्थय जोखिम को उजागर कर दिया है। कई दूसरे अध्ययनों में भी यह बात सामने आ चुकी है कि कैसे कोविड ने वैश्विक स्तर पर स्वास्थ्य को प्रभावित किया है। संक्रमण ने कई लाखों जिंदगियों की जान ले ली तो जो इससे बच गए उनका पीछा भी कोरोना ने नहीं छोड़ा। कई दूसरी बीमारियों से लोग घिरते चले गए कि आज भी इससे उबर नहीं पाए हैं। 

कोरोना महामारी ने वैश्विक स्तर पर स्वास्थ्य को कई प्रकार से प्रभावित किया है। संक्रमण के दौरान जहां लोगों में गंभीर रोगों का खतरा अधिक देखा गया वहीं ठीक हो चुके लोगों में लंबे समय तक बनी लॉन्ग कोविड की दिक्कतें स्वास्थ्य विशेषज्ञों के लिए चिंता बढ़ा रही हैं। अध्ययनों में पाया गया है कि कोविड से ठीक हो चुके लोगों में एक साल से अधिक समय तक भी वायरस के अंश मौजूद हो सकते हैं, इसके अलावा लॉन्ग कोविड में रोगियों में हार्ट, फेफड़ों और ब्रेन से संबंधित दिक्कतें देखी जा रही हैं। कोविड के दुष्प्रभावों को जानने के लिए हाल ही में किए एक अध्ययन में इसके एक और गंभीर स्वास्थ्य जोखिम को लेकर सावधान किया गया है।

रिसर्च के मुताबिक महामारी आने तक वैश्विक जीवन प्रत्याशा यानी लाइफ एक्सपेक्टेंसी बढ़ रही थी। लाइफ एक्सपेक्टेंसी से मतलब है एक व्यक्ति अपने जन्म के समय से कितने वर्षों तक जीने की उम्मीद कर सकता है। 1950 में लोगों की औसत आयु 49 साल से बढ़कर 2019 में 73 साल से अधिक हो गई है। लेकिन 2019 और 2021 के बीच इसमें 1.6 गिरावट आई। एक्सपर्टस का कहना है कि ये कोविड के सबसे गंभीर दुष्प्रभावों में से एक है। साल 2020-2021 के दौरान ये अध्ययन किया गया। 

अमेरिका स्थित इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवेल्यूएशन (आईएचएमई) के डेटा की जांच करने वाले शोधकर्ताओं ने बताया, वैश्विक जीवन प्रत्याशा में पिछले कुछ दशकों में काफी सुधार देखा जा रहा था, हालांकि महामारी ने इस वृद्धि में नाटकीय रूप से बड़ा परिवर्तन कर दिया है।

मृत्यु दर में वृद्धि 

रिसर्च में बताया गया है कि कोरोना महामारी के कारण मृत्यु दर में काफी वृद्धि हुई है। 2020 और 2021 में दुनिया भर में मृत्यु दर 16% बढ़ी है।

रिसर्च का महत्व

यह रिसर्च कोरोना महामारी के गंभीर परिणामों को उजागर करती है। रिसर्च से पता चलता है कि कोरोना महामारी ने न सिर्फ लोगों की जान ली, बल्कि उनकी जिंदगी भी कम कर दी।

अन्य महत्वपूर्ण बात

रिसर्च में बताया गया है कि कोरोना महामारी के कारण महिलाओं की जीवन प्रत्याशा पुरुषों की तुलना में अधिक कम हुई है। रिसर्च में यह भी बताया गया है कि कोरोना महामारी के कारण गरीब और निम्न-मध्यम आय वाले देशों में लोगों की जीवन प्रत्याशा अधिक कम हुई है।