महाराष्ट्र के नासिक जिले के त्रयंबक गांव में स्थित त्र्यम्बकेश्वर ज्योर्तिलिंग मन्दिर को लेकर आइये जानते हैं पौराणिक दंतकथा
प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं अखण्डं अजं भानुकोटि प्रकाशम्।
त्रयं शूल निर्मूलन शूलपाणिं भजेऽहं भवानीपतिम भावगम्यम्।
त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र प्रान्त में नासिक से लगभग 28 से 30 कि०मी० पश्चिम में अवस्थित है।
त्र्यम्बकेश्वर ज्योर्तिलिंग मन्दिर महाराष्ट्र-प्रांत के नासिक जिले में त्रयंबक गांव में हैं।इस भव्य मंदिर के निर्माण को लेकर कहा जाता है कि इसका निर्माण तीसरे पेशवा बालाजी बाजीराव ने लगभग (1740-1760) के आसपास एक पुराने मंदिर के स्थान पर कराया था।
इस मंदिर को लेकर कहा जाता है कि इस मंदिर को बनाने में कई साल लग गए थे। यहां के निकटवर्ती ब्रह्म गिरि नामक पर्वत से गोदावरी नदी का उद्गम है। इन्हीं पुण्यतोया गोदावरी के उद्गम-स्थान के समीप स्थित त्रयम्बकेश्वर- भगवान की भी बड़ी महिमा हैं गौतम ऋषि तथा गोदावरी के प्रार्थनानुसार भगवान शिव इस स्थान में वास करने की कृपा की और त्र्यम्बकेश्वर नाम से विख्यात हुए।
मंदिर के अंदर एक छोटे से गढ्ढे में तीन छोटे-छोटे लिंग है, ब्रह्मा, विष्णु और शिव- इन तीनों देवों के प्रतीक माने जाते हैं। शिवपुराण के अनुसार ब्रह्मगिरि पर्वत के ऊपर जाने के लिये चौड़ी-चौड़ी सात सौ सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। इन सीढ़ियों पर चढ़ने के बाद 'रामकुण्ड' और 'लक्ष्मणकुण्ड' मिलते हैं और शिखर के ऊपर पहुँचने पर गोमुख से निकलती हुई भगवती गोदावरी के दर्शन होते हैं।
माना जाता हैं की इस नदी में औषधीय गुण है। और ऐसी मान्यता हैं की गोदावरी नदी में नहाने से पाप नष्ट हो जाते हैं। माना जाता हैं की मंदिर के अंदर आध्यात्मिक शक्ति है। इसके दर्शन से मोक्ष प्राप्ति हो जाती हैं।
त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा- एक बार महर्षि गौतम के तपोवन में रहने वाले ब्राह्मणों की पत्नियाँ किसी बात पर उनकी पत्नी अहल्या से नाराज हो गयीं। उन्होंने अपने पतियों को ऋषि गौतम का अपकार करने के लिये प्रेरित किया। उन ब्राह्मणों ने इसके निमित्त भगवान् श्री गणेश जी की आराधना की। उनकी आराधना से प्रसन्न हो गणेश जी ने प्रकट होकर उनसे वर माँगने को कहा।
उन ब्राह्मणों ने कहा, “प्रभो! यदि आप हम पर प्रसन्न हैं तो किसी प्रकार ऋषि गौतम को इस आश्रम से बाहर निकाल दें।उनकी यह बात सुनकर गणेश जी ने उन्हें ऐसा वर न माँगने के लिये समझाया। किन्तु वे अपने आग्रह पर अटल रहे। अन्ततः गणेश जी को विवश होकर उनकी बात माननी पड़ी।
"महर्षि गौतम पर गौहत्या का आरोप"- अपने भक्तों का मन रखने के लिये वे एक दुर्बल गाय का रूप धारण करके ऋषि गौतम के खेत में जाकर चरने लगे। गाय को फसल चरते देखकर ऋषि बड़ी नरमी के साथ हाथ में तृण लेकर उसे हाँकने के लिये लपके।
उन तृणों का स्पर्श होते ही वह गाय वहीं मरकर गिर पड़ी। अब तो बड़ा हाहाकार मचा। सारे ब्राह्मण एकत्र हो गोहत्यारा कहकर ऋषि गौतम की भूरि-भूरि भर्त्सना करने लगे। ऋषि गौतम इस घटना से बहुत आश्चर्य चकित और दुःखी थे। अब उन सारे ब्राह्मणों ने उनसे कहा कि तुम्हें यह आश्रम छोड़कर अन्यत्र कहीं दूर चले जाना चाहिये। गोहत्यारे के निकट रहने से हमें भी पाप लगेगा ।
विवश होकर ऋषि गौतम अपनी पत्नी अहल्या के साथ वहाँ से एक कोस दूर जाकर रहने लगे। किन्तु उन ब्राह्मणों ने वहाँ भी उनका रहना दूभर कर दिया। वे कहने लगे, “गोहत्या के कारण तुम्हें अब वेद-पाठ और यज्ञादि के कार्य करने का कोई अधिकार नहीं रह गया है।” अत्यन्त कातर भाव से ऋषि गौतम ने उन ब्राह्मणों से प्रार्थना की कि आप लोग मेरे प्रायश्चित्त और उद्धार का कोई उपाय बतावें। तब उन्होंने कहा, “गौतम! तुम अपने पाप को सर्वत्र सबको बताते हुए तीन बार पूरी पृथ्वी की परिक्रमा करो।
फिर लौटकर यहाँ एक महीने तक व्रत करो। इसके बाद ‘ब्रह्मगिरि’ की 101 परिक्रमा करने के बाद तुम्हारी शुद्धि होगी अथवा यहाँ गंगा जी को लाकर उनके जल से स्नान करके एक करोड़ पार्थिव शिवलिंगों से शिव जी की आराधना करो। इसके बाद पुनः गङ्गा जी में स्नान करके इस ब्रह्मगिरि की 11 बार परिक्रमा करो। फिर सौ घड़ों के पवित्र जल से पार्थिव शिवलिंग को स्नान कराने से तुम्हारा उद्धार होगा।”
"गौतम ऋषि की तपस्या"-
ब्राह्मणों के कथनानुसार महर्षि गौतम वे सारे कृत्य पूरे करके पत्नी के साथ पूर्णतः तल्लीन होकर भगवान् शिव की आराधना करने लगे। इससे प्रसन्न हो भगवान् शिव प्रकट होकर उनसे वर माँगने को कहा। महर्षि गौतम ने उनसे कहा- भगवन्! मैं यही चाहता हूँ कि आप मुझे गोहत्या के पाप से मुक्त कर दें।
भगवान् शिव ने कहा, “गौतम! तुम सदैव, सर्वथा निष्पाप हो। गोहत्या तुम्हें छलपूर्वक लगायी गयी थी। छलपूर्वक ऐसा करवाने वाले तुम्हारे आश्रम के ब्राह्मणों को मैं दण्ड देना चाहता हूँ।
महर्षि गौतम ने कहा, “प्रभो! उन्हीं के निमित्त से तो मुझे आपका दर्शन प्राप्त हुआ है। अब उन्हें मेरा परमहित समझकर उनपर आप क्रोध न करें।” बहुत-से ऋषियों, मुनियों और देवगणों ने वहां एकत्र हो गौतम की बात का अनुमोदन करते हुए भगवान् शिव से सदा वहाँ निवास करने की प्रार्थना की।
वे उनकी बात मानकर भगवान भोलेनाथ वहीं गौतमी-तट पर त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रतिष्ठित हो गए।गौतम जी द्वारा लायी गयी गंगा जी भी वहीं पास में गोदावरी नाम से प्रवाहित होने लगीं।
त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग की सबसे अद्भुत और मुख्य बात यह हैं कि इसके तीन मुख (सिर) हैं, जिन्हें एक भगवान ब्रह्मा, एक भगवान विष्णु और एक भगवान रूद्र का रूप माना जाता है। इस लिंग के चारों ओर एक रत्न जड़ित मुकुट रखा गया है, जिसे त्रिदेव के मुखोटे के रुप में माना गया है। इस मुकुट में हीरा, पन्ना और कई बेशकीमती रत्न लगे हुए हैं। त्र्यंबकेश्वर मंदिर में इसको सिर्फ सोमवार के दिन शाम 4 से 5 बजे तक दर्शनार्थियों को दिखाया जाता है। गोदावरी नदी के किनारे बने त्र्यंबकेश्वर मंदिर का निर्माण काले पत्थरों से किया गया है। इस मंदिर की वास्तुकला बहुत ही अद्भुत और अनोखी है।
भव्य त्र्यंबकेश्वर मंदिर इमारत सिंधु आर्यशैली का अद्भुत नमूना है। इस मंदिर के भीतर एक गर्भगृह है, जिसमें प्रवेश करने के पश्चात् शिवलिंग आंख के समान दिखाई देता हैं, जिसमें जल भरा रहता हैं। यदि ध्यान से देखा जाए तो इसके भीतर एक इंच के तीन लिंग दिखाई देते हैं। इन तीनो लिंगो को त्रिदेव यानि ब्रह्मा, विष्णु, महेश का अवतार माना जाता है। इस मंदिर में कालसर्प दोष की शांति वैदिक पंडितों के द्वारा करवाई जाती हैं।
त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन से पूरी होती हैं सभी मनोकामनाएं
महाराष्ट्र का त्र्यम्बकेश्वर मंदिर भगवान शिव का ऐसा ही एक ज्योतिर्लिंग है, जिसकी महिमा अपार है।इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन जो भी करता है भगवान शिव उसके सभी कष्टों दूर करते हैं।यह महापातकों का नाशक और मुक्ति- प्रदायक है। जब सिंह राशि पर बृहस्पति आते हैं, तब इस गौतमी तट पर सकल तीर्थ, देवगण और नदियों में श्रेष्ठ गंगाजी पधारती हैं तथा महाकुंभ पर्व होता हैं। यह सभी का परम सौभाग्य है ।
Feb 28 2024, 03:02