*मृतक भोज का बहिष्कार करें:रामकिशोर पटेल*
विश्वनाथ प्रताप सिंह
प्रयागराज। आज विज्ञान के नए-नए आविष्कार हो रहे हैं एवं बड़े व्यापक परिवर्तन हो रहे हैं प्रकृति गुण राशियों को खोज कर नई-नई शक्तियां प्राप्त की जा रही हैं। नई दुनिया का निर्माण हो रहा है। ऐसे विवेकशीलता के युग में रूढ़ीवादी मृतक भोज जैसी परम्परा में लोग चिपके रहना बुद्धि हीनता का ही परिचायक है।
निहित स्वार्थी लोगों ने अपने तथा अपने परिवार के प्राण के लिए अनेकों झूठ अपनाकर अनेक मनगढ़ंत व्यवस्थाओं की रचना कर स्वर्ग नर्क और पुनर्जन्म का प्रचार प्रसार शुरू किया।
आप याद करें यदि पुनर्जन्म एव मृत्यु भोज एक सच्चाई है। तो यह सभी धर्म के मानने पर समान रूप से प्रभावित होना चाहिए परंतु केवल हिंदू धर्मावलंबियों पर ही क्यों यदि स्वर्ग नरक पुनर्जन्म की व्यवस्था सही हो तो धर्म के ठेकेदार स्वर्ग अपने लिए आरक्षित कर लेते। तथा यही लोग जब मृत्यु से पहले उठने बैठने बोलने में विनीमिता करते हैं तो फिर स्वर्ग में पहुंचने के बाद वहां भी वह आपसे विषमता ही बरतेंगे।
दुनिया भर के लोग अपने विश्वास और धर्म के सिद्धांतों के अनुसार मृतकों की अंतिम कृपा करते हैं पर सब लोग अपनी समर्थ और परिस्थिति का ध्यान रखते हैं ऐसे अवसर पर वह मृतक भोज जैसे कोई कार्यक्रम नहीं करने शायद उन्हें आश्चर्य ही होता होगा कि भारत में किसी जाति वाले अपने घर में किसी के मर जाने पर हर्षोत्सव मानते हैं और परिचितों को मिठाई व पकवान खिलाते हैं यूरोप और अमेरिका के व्यक्ति मरणोपरांत अपनी स्मृति के लिए लाखों करोड़ों का दान कर जाते हैं ।जिससे लाखों लोगों का कल्याण होता है उनमें कोई भी अपने मरने के बाद लाखों रुपए लगाकर ₹2सौ ,चार सौ व्यक्तियों को खिलाने की बात नहीं सोचता।
मृतक भोज का परंपरा ना तो मनुष्य की बुद्धिमत्ता का परिचायक है और ना ही किसी प्रकार का लाभ पहुंचती है इस समस्या पर सामाजिक हित की दृष्टि से गंभीरता पूर्वक विचार किया जाए तो अधिक सही तरीका जान पड़ता है। कि लोग ऐसे अवसर पर सहानभूति प्रकट करते हुए मृतक परिवार जनों को धैर्य बढ़ाएं और उनकी सहायता करने को तत्पर हो।
अब समय आ गया है कि हमअपने धन को बिना सोचे समझे व्यर्थ के दिखावे मूर्खता पूर्वक रिवाजों मे खर्च करने के बजाय ऐसे तरीके से खर्च करें जैसे देश और समाज का अधिक से अधिक हित हो और अभावग्रस्त लोगों को अपनी स्थिति सुधारने में सहायता प्राप्त हो सके। जब हमारे परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु होती है तो हम हजार से लेकर 1500 व्यक्तियों को पकवान खिलाते हैं भोज के अतिरिक्त 15 पुजारी या ब्राह्मण को कई हजारों की सामग्री दान में दे देते हैं। जो कि अधिकांश उसके काम भी नहीं आती और आधे पौने दाम में बेचकर गुलछरे उड़ाते हैं।
कुछ लोग अधिक बुद्धिमानी का परिचय देते हुए इस और इस प्रकार की रकम को किसी मंदिर के रूप में परिवर्तित कर देते हैं और उनके नाम कोई अस्थाई संपत्ति कर देते हैं जिससे नियमित आमदनी होती रहे पर धन भी मंदिरों की पूजा भोग उत्सव नाच ,गाना आदि में खर्च किया जाता है इससे किसी व्यक्ति व समाज का उपहार नहीं होता बल्कि कुछ लोगों का जीवन निकम्मा हो जाता है।
पाखंडियों ने हमारी बुद्धि विवेक पर अज्ञानता और अंधविश्वास का चश्मा लगा दिया है जिसके कारण हम सच्चाई को समझने में असमर्थ हैं और अपने इस सांसारिक जीवन को दुखी बनाकर मृत व्यक्ति के पुनर्जन्म पर उसकी सुख समृद्धि की कामना कर उसके मृत्यु भोज पर अपनी संपूर्ण संचित राशि व उधार लेकर वा बैक से लोन ले करके अपना तथा अपने परिजनों का जीवन नारकीय बना देते हैं।
जबकि मृतक के जीवन काल में उसकी बीमारी अवस्था में उसके उधर एवं सुविधा का ध्यान नहीं करते वर्णन उसका तिरस्कार ही करते हैं कभी-कभी तो उसे अच्छा पौष्टिक भोजन भी उपलब्ध नहीं करते और मरने के बाद उसे स्वादिष्ट भोजन करने हेतु मृतक भोज आयोजित करते हैं इस प्रकार अपने को तथा अपने परिजनों को आर्थिक रूप से विपन कर अशिक्षा कठिनाइयों को अपने परिवार के लिए आमंत्रित करते हैं जो एक बार पुनः मृत्यु भोज की ओर अग्रसर करती है।
हम निवेदन करते हैं कि आप अपनी सामर्थ और स्थिति के अनुसार मृत व्यक्ति के प्रति अपनी श्रद्धा अवश्य प्रकट करें । और पुरानी परंपरा को त्याग कर उचित समय पर शोक सभा करें और हित संबंधी के बीच मृत व्यक्ति की क्रिया कलापों पर परिचर्चा हो सेवा सहायता जीवित को चाहिए मृतक का नहीं लिए जीवित का तिरस्कार और मृतक भोज उत्तसव बंद कर समाज में एक नई जागरूकता का परिचय दें ।
Feb 08 2024, 10:11