*कारसेवकों के नायक जैसे थे रायबरेली में जन्मे तत्कालीन डीजीपी श्रीश चंद्र दीक्षित, वो चेहरा जिनका जिक्र किए बगैर राम मंदिर आंदोलन है अधूरा*
दुर्गेश मिश्र
रायबरेली।आगामी 22 जनवरी को राम मंदिर में राम लला की प्राण प्रतिष्ठा होगी। इस के पीछे राम मंदिर के लिए कई दशकों तक चले आंदोलन में कई प्रमुख चेहरे रहे हैं। जिन्हें दुनिया जानती और पहचानती हैं,लेकिन, कई ऐसे भी गुमनाम चेहरे हैं, जिनके संघर्ष की बदौलत राम मंदिर निर्माण का सफर मंजिल तक पहुंचा है। जिनमे एक नाम रायबरेली में जन्मे तत्कालीन डीजीपी श्रीश चंद्र दीक्षित का भी है।
कारसेवकों के लिए श्रीश चंद्र दीक्षित नायक की तरह थे।अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के सपना सैकड़ों साल के बाद अब अब राम लला उसमे विराजमान हैं। आगामी 22 जनवरी को मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है पूरे देश की नजरे अयोध्या पर हैं।वह सपना जो लगभग सभी हिन्दुओं ने देखा था वह साकार होने जा रहा है। राम मंदिर के लिए कई दशकों तक चले आंदोलन में कई प्रमुख चेहरे रहे हैं, जिन्हें दुनिया जानती और पहचानती है, लेकिन, कई ऐसे भी गुमनाम चेहरे हैं, जिनके संघर्ष की बदौलत राम मंदिर निर्माण का सफर मंजिल तक पहुंचा।श्रीश चंद्र दीक्षित के जिक्र के बिना अयोध्या का आंदोलन अधूरा है।
यूपी के तत्कालीन डीजीपी रहे श्रीश चंद्र दीक्षित ने राम मंदिर आंदोलन में कारसेवकों के लिए नायक की भूमिका अदा की थी।रायबरेली के सरेनी विकास खंड के सतवा खेड़ा गांव में 3 जनवरी 1926 को जन्मे श्रीश चंद्र दीक्षित 1982 से लेकर 1984 तक उत्तर प्रदेश के डीजीपी रहे। रिटायर होने के बाद वह विश्व हिंदू परिषद से जुड़ गए और केंद्रीय उपाध्यक्ष बन गए। उनके बारे में कहा जाता है कि पुलिस प्रशासन से नजरें बचाकर कारसेवकों को अयोध्या पहुंचाना हो या फिर कानून को धता बताकर कारसेवा करवाना।इन कामों में श्रीश चंद्र दीक्षित आगे थे उनका तेज दिमाग सब झंझावातों को पर कर रास्ता बना ही लेता था।
1990 में कारसेवा के लिए साधु-संत अयोध्या कूच कर रहे थे।प्रशासन ने अयोध्या में कर्फ्यू लगा रखा था।पुलिस ने विवादित स्थल के 1.5 किलोमीटर के दायरे में बैरिकेडिंग कर रखी थी।30 अक्टबूर, 1990 को कारसेवकों की भीड़ बेकाबू हो गई। इसके बाद पुलिस ने कारसेवकों पर गोली चला दी तो कारसेवकों के ढाल बनकर श्रीश चंद्र दीक्षित सामने आए थे। पूर्व डीजीपी को सामने देख पुलिस वालों ने गोली चलाना बंद कर दिया।इस तरह से उन्होंने कारसेवकों की जान बचाने में अहम भूमिका अदा की थी।इसी के एक साल बाद 1991 के लोकसभा चुनाव में श्रीश चंद्र दीक्षित काशी से सांसद बने थे।
अंतिम सांस तक रहा मंदिर निर्माण का इंतजार
श्रीश दीक्षित ने 90 वर्ष की उम्र में 2014 में अंतिम सांस ली। लोग बताते हैं कि अंतिम समय तक वह यही इच्छा करते रहे कि श्री राममंदिर का निर्माण पूरा हो।
1992 की कारसेवा में भी वह पूरी तरह सक्रिय रहे। आंदोलन का नेतृत्व कर रहे अग्रणी लोगों में शामिल रहे। विवादित ढांचा गिराने की बात कहते हुए हमेशा उनकी आंखों में चमक और चेहरे पर खास उत्साह झलकता था।
Jan 22 2024, 20:25