अयोध्या विवाद आजादी के बादः केंद्र से लेकर राज्यों तक की राजनीति दशा और दिशा कैसी बदल
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गुलाम भारत में शुरू हुआ अयोध्या विवाद आजादी के बाद भी जस का तस बना रहा।या यूं कह लें समय के साथ और गंभीर होता गया। हालांकि अब देश आजाद हो चुका था, सरकार अपनी थी कानून अपना था, तो लोगों ने उम्मीद जताई कि अब तो बस समाधान होने ही वाला है। हालांकि, अयोध्या में असली विवाद शुरू हुआ 23 दिसंबर 1949 को, जब भगवान राम की मूर्तियां मस्जिद में पाई गईं।
भगवान राम की मूर्ति मस्जिद में मिलने के बाद हिंदुओं का कहना था कि भगवान राम प्रकट हुए हैं, जबकि मुसलमानों ने आरोप लगाया कि किसी ने रात में चुपचाप मूर्तियां वहां रख दीं। उस वक्त के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री जी. बी. पंत से मामले में फौरन कार्रवाई करने को कहा। यूपी सरकार ने मूर्तियां हटाने का आदेश दिया, लेकिन जिला मैजिस्ट्रेट के. के. नायर ने दंगों और हिंदुओं की भावनाओं के भड़कने के डर से इस आदेश को पूरा करने में असमर्थता जताई।जिसके बाद उसे विवादित ढांचा मानकर ताला लगवा दिया गया।
ताला उस ढांचे पर लगा था, जिसे विवाददित माना गया, लेकिन लोगों की भावनाओं पर नहीं। लोगों में मन में अपने अराध्य की पूजा करने की इच्छा बढ़ती ही जा रही थी। इसके बाद 16 जनवरी 1950 को गोपाल सिंह विशारद नामक शख्स ने फैजाबाद के सिविल जज के सामने अर्जी दाखिल कर यहां पूजा की इजाजत मांगी। उस वक्त के सिविल जज एन. एन. चंदा ने इजाजत दे दी। मुसलमानों ने इस फैसले के खिलाफ अर्जी दायर की। विवादित ढांचे की जगह मंदिर बनाने के लिए 1984 में विश्व हिंदू परिषद ने एक कमिटी गठित की। यू. सी. पांडे की याचिका पर फैजाबाद के जिला जज के. एम. पांडे ने 1 फरवरी 1986 को हिंदुओं को पूजा करने की इजाजत देते हुए ढांचे पर से ताला हटाने का आदेश दिया। इसके विरोध में बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति का गठन किया गया।
मैदान में विश्व हिंदू परिषद के आ जाने से ये जनता की भावनाओं से जुड़ा ये मामला सियासी रंग लेने लगा। विश्व हिंदू परिषद के नेतृत्व में 1984 में हिंदुओं ने भगवान राम के जन्मस्थल को मुक्त करने और वहां राम मंदिर बनाने के लिए एक समिति का गठन किया। ठीक उसी समय गोरखनाथ धाम के महंथ अवैद्यनाथ ने राम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति बनाई. अवैद्यनाथ ने अपने शिष्यों और लोगों से कहा था कि उसी पार्टी को वोट देना जो हिंदुओं के पवित्र स्थानों को मुक्त कराए।
ये वो समय था बीजेपी अब अयोध्या मसले पर खुलकर सामने आ चुकी थी...और लोगों को समर्थन भी इस पार्टी को मिलने लगा था। अयोध्या मामले की कमान संभाली बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी ने। 25 सितंबर 1990 को बीजेपी की रथयात्रा निकली। बिहार में लोगों के समर्थन से लालू प्रसाद यादव की सरकार घबरा गई, और आडवाणी की रथ को बिहार में रोक दिया गया। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया, जिसके बाद गुजरात, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश में दंगे भड़क गए।
अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन के लिए पहली बार कारसेवा हुई थी और गोलिकांड भी। 30 अक्टूबर 1990 का वो दिन जब कारसेवकों ने मस्जिद पर चढ़कर झंडा फहराया था। उस वक्त यूपी में मुलायम सिंह की सरकार थी, मुलायम सिंह ने मस्जिद पर झंडा फहराए जाने के बाद गोली चलाने का आदेश दिया। उस वक्त पुलिस की गोलीबारी में पांच कारसेवकों की मौत हो गई थी। 1990 में हुए इस गोलीकाड़ के बाद 1991 में सपा के हाथ से यूपी की सत्ता फिसल गई और बीजेपी ने पहली बार सरकार बनाई।
अयोध्या के आंदोलन के इतिहास का सबसे काला दिन 6 दिसंबर 1992 जब बाबरी मस्जिद ढा दी गई थी। जिसके बाद पूरा देश दंगे की आग में दहकने लगा। ये विवाद में ऐतिहासिक दिन के तौर पर याद रखा जाता है, इस रोज हजारों की संख्या में कारसेवकों ने अयोध्या पहुंचकर बाबरी मस्जिद ढहा दिया। पूरी अयोध्या नगरी धूल धूल हो गई थी। मानो कोई आंधी आई हो। मौजूद कार सेवकों के साथ लोगों की बड़ी संख्या विवादित स्थल के अंदर घुस गई और ढांचे को ढा दिया। इसके बाद ही पूरे देश में चारों ओर सांप्रदायिक दंगे होने लगे. इसमें करीब 2000 लोगों के मारे गए।
6 दिसंबर की घटना के बाद देश की राजनीति दशा और दिशा बदल दी। देश में सामाजिक और राजनीतिक फिजा में कई बड़े बदलाव हुए। इस दौरान केंद्र से लेकर राज्यों तक कई सरकारें बदलीं, नेतृत्व बदला और राजनीतिक परिदृश्य भी बदले।
Jan 19 2024, 16:06