गौरवपूर्ण अयोध्या का विवादित इतिहास, जिसने देश की राजनीति को सबसे ज्यादा प्रभावित किया
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अयोध्या का आरंभ जितना गौरवपूर्ण है, बाद का इतिहास उतना ही विवादित, शायद दुनिया का सबसे लंबा चलने वाला विवाद रहाष हालांकि पिछली पांच शताब्दी से चला आ रहा तनाव अब खत्म हो गया है। अब वहां रामलला विराजमान होने वाले हैं।
अयोध्या के अध्याय में विवाद की बुनियाद उस वक्त पड़ी, जब बाबर ने मंदिर तुड़वाकर मस्जिद का निर्माण कराया। आजादी के पहले से लेकर आजादी के बाद तक ये वो विवाद रहा, जिसने देश की राजनीति को सबसे ज्यादा प्रभावित किया है। जिसने हिंदू-मुस्लिम के बीच एक कभी ना पाटी जा सकने वाली खाई खोद दी। इसकी वजह से हिंसा और खून खराबा हुआ, लोग मारे गए, सालों तक देश की सबसे बड़ी अदालत में इस समस्या को सुलझाने के लिए सुनवाइयां हुई, दलीले पेश की गई। तक जाकर ये विवाद खत्म हुआ।
अयोध्या में उस स्थल पर मस्जिद बनवाया गया था, जिसे हिंदू अपने आराध्य भगवान राम का जन्म स्थान मानते हैं। कहा जाता है कि मुगल राजा बाबर के सेनापति मीर बाकी ने यहां मस्जिद बनवाई। जिसे बाबरी मस्जिद का नाम दिया गया। इसके साथ ही विवाद की बीज बो दी गई थी। जो साल दर साल बढ़ते बढ़ते एक विशाल वृक्ष बना गया। जिसकी शाखांए अयोध्या से निकलकर पूरे देश में छा गई। यानी ये मसला देशव्यापी बन चुका था।
कहा जाता है कि अयोध्या में इस मुद्दे को लेकर पहली सामप्रदायिक हिंसा की 1853 में हुई थी। जब निर्मोही अखाड़ा ने ढांचे पर दावा कर दिया। निर्मोही अखाड़ा ने कहा कि जिस स्थल पर मस्जिद खड़ा है, वहां एक मंदिर हुआ करता था, जिसे बाबर के शासनकाल में नष्ट किया गया। अगले 2 सालों तक इस मुद्दे को लेकर अवध में हिंसा भड़कती रही। इस दौरान 1855 तक, हिंदू और मुसलमान दोनों एक ही इमारत में पूजा या इबादत करते रहे। ये वो समय था जब देश स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ रहा था। उस वक्त 1857 के पहले आंदोलन के कारण अयोध्या का मामला थोड़ा ठंडा पड़ गया। इसी दौरान 1859 में ब्रिटिश शासकों ने मस्जिद के सामने एक दीवार बना दी गई। परिसर के भीतरी हिस्से में मुसलमानों को और बाहरी हिस्से में हिंदुओं को प्रार्थना करने की अनुमति दी गई।
इस बीच दोनों समुदायों के बीच तनाव बढता ही जा रहा था। मंदिर-मस्जिद विवाद कुछ सालों में इतना भयावह हो गया कि मामला पहली बार कोर्ट में पहुंचा। हिंदू साधु महंत रघुबर दास ने फैजाबाद कोर्ट में बाबरी मस्जिद परिसर में राम मंदिर बनवाने की इजाजत मांगी, हालांकि कोर्ट ने ये अपील ठुकरा दी। जज पंडित हरिकृष्ण ने यह कहकर इसे खारिज कर दिया कि यह चबूतरा पहले से मौजूद मस्जिद के इतना करीब है कि इस पर मंदिर बनाने की इजाजत नहीं दी जा सकती।
ऐसा नहीं है कि कोर्ट के इस आदेश के बाद सबकुछ शांत हो गया। यूं कह सकते हैं कि इसके बाद से मामला और गहराता गया। जिसके बाद सिलसिलेवार चला तारीखों का सिलसिला।
Jan 18 2024, 15:29