संसद पर हमले के 22 साल पूरे, वो खौफनाक दिन जब गोलियों की तड़तड़ाहट से गूंज उठा लोकतंत्र का मंदिर
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13 दिसंबर 2001 का वो दिन, जब गोलियों की तड़तड़ाहट से गूंज उठा था लोकतंत्र का मंदिर। देश की सबसे सुरक्षित जगहों में से एक माने जाने वाले संसद पर आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के आतंकियों ने हमला बोला था। जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा के दहशतगर्द संसद परिसर में तो घुसने में कामयाब हो गए पर देश के जांबाज जवानों ने उनके मंसूबे को नाकाम कर दिया। तब संसद का शीतकालीन सत्र चल रहा था। उस समय लोकसभा और राज्यसभा स्थगित थी लेकिन 100 से ज्यादा VIPs संसद भवन के भीतर मौजूद थे। होम मिनिस्ट्री का फर्जी स्टीकर लगाए एक सफेद एम्बेसडर कार संसद भवन में दाखिल होती है। भीतर पांच लोग बैठे हुए हैं। ये गेट पर मौजूद सुरक्षाकर्मियों को चकमा देने में कामयाब हो जाते हैं। अंदर के रास्ते पर इनकी गाड़ी गलती से उपराष्ट्रपति कृष्णकांत की खड़ी कार से टकरा जाती है। यही वो पल था जब सबको अहसास हुआ कि भारतीय लोकतंत्र के मंदिर में दरिंदे घुस आए हैं।
पांच आतंकी समेत 14 लोगों की हुई थी मौत
जिस समय यह हमला हुआ, संसद भवन में 200 सांसद मौजूद थे, लेकिन बहादुर सैनिकों की रक्षा पंक्ति की बदौलत उन्हें खरोंच तक नहीं आई। संसद भवन पर हुए इस हमले में सुरक्षाबलों ने सभी आतंकियों को मार गिराया था। दिल्ली पुलिस के अनुसार, मारे गए आतंकियों में हैदर उर्फ तुफैल, मोहम्मर राना, रणविजय, हमला शामिल थे। इसके अलावा सबसे पहले कांस्टेबल कमलेश कुमारी यादव शहीद हुईं। इसके बाद संसद का एक माली, दो सुरक्षाकर्मी और दिल्ली पुलिस के छह जवान भी शहीद हो गए।
देश के सबसे महफूज माने जाने वाले संसद में मच गया था कोहराम
13 दिसंबर...यह वही तारीख है, जब साल 2001 में राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली के सबसे महफूज माने जाने वाले इलाके में शान से खड़े संसद भवन में घुसने के लिए आतंकवादियों ने सफेद रंग की एंबैस्डर कार का इस्तेमाल किया था। वे इस दौरान सुरक्षाकर्मियों की आंखों में धूल झोंकने में कामयाब रहे थे।पांच आतंकियों ने तब लगभग 45 मिनट तक संसद भवन परिसर में कोहराम मचाया था।अटल बिहारी वाजपेयी तब पीएम थे, सोनिया गांधी विपक्ष की नेता थीं।
11 बजकर 30 मिनट....संसद भवन के अंदर और परिसर में सब काम बाकी दिनों की तरह ही सामान्य रूप से चल रहा था। शीतकालीन सत्र की सरगर्मियां तेज थी। राजनीतिक दलों की गतिरोध की वजह से लोकसभा और राज्यसभा दोनों की ही कार्यवाही कुछ देर के लिए स्थगित थी। इस वजह से कई बड़े नेता संसद से जा चुके थे। लेकिन फिर भी कुछ मंत्री और करीब 200 सांसद अब भी संसद भवन में ही मौजूद थे। इनके अलावा संसद में काम करने वाले लोग, आंगतुक गण और सुरक्षा कर्मी भी संसद परिसर में ही थे। सब कुछ सामान्य चल रहा था। तभी अचानक सफेद रंग की एंबेसेडर कार संसद भवन में घुसी। गाड़ी पर गृह मंत्रालय का स्टीकर पास भी लगा हुआ था।गाड़ी सीधे संसद भवन परिसर में आकर रूकी। कोई कुछ समझ पाता उससे पहले ही लोगों पर अंधाधुंध गोलियां बरसनी शुरू हो गई। एंबेसेडर से आए 5 आतंकवादियों ने एके 47 राइफलों से गोलियों की बौछार कर दी। आतंकी विस्फोटकों और हथगोलों का भी इस्तेमाल कर रहे थे। 45 मिनट तक संसद भवन में गोलियों की आवाज गूंजती रही। इस दौरान आतंकीयों ने सबसे पहले उन चार सुरक्षाकर्मियों को निशाना बनाया जिन्होंने एंबेसेडर कार को रोकने की कोशिश की। इसके बाद संसद भवन के अंदर चारों तरफ अफरा-तफरी और दहशत का माहौल बन गया।
भारत के खिलाफ अब तक की सबसे खतरनाक और गहरी साजिश
एंबेस्डर कार में 30 किलो आरडीएक्स था और कार में उसकी पूरी वायरिंग कर रखी की गई थी। जानकारों के हवाले से ऐसा कहा जाता है कि अगर वह कार ब्लास्ट कर दी जाती, तब आधी संसद तब उड़ (ध्वस्त) सकती थी। चूंकि, एंट्री के जो सफेद एंबैस्डर की टक्कर हुई थी उससे तारों की वायरिंग टूट गई थी, जिससे धमाका नहीं हो सका था। कार पर होम मिनिस्ट्री के स्टीकर भी लगे थे। यह भारत के खिलाफ अब तक की सबसे खतरनाक और गहरी साजिश मानी जाती है।
2013 को अफजल गुरु को फांसी
इस हमले में संसद की सुरक्षा में लगे कई जवान शहीद हुए थे, लेकिन सुरक्षाकर्मियों ने अपनी जान पर खेल कर पांचों आतंकवादियों को मार गिराया। इस हमले के बाद सुरक्षा एजेंसियों ने इस घटना के मुख्य साजिश कर्ता अफजल गुरु को गिरफ्तार किया, जिसे बाद में फांसी की सजा दी गई। इस आतंकी हमले के पीछे मोहम्मद अफजल गुरु, एसए आर गिलानी और शौकत हुसैन समेत पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई शामिल थे। 12 साल बाद नौ फरवरी 2013 को अफजल गुरु को फांसी दे दी गई थी।
Dec 13 2023, 13:40