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MP के लिए तय हो गए मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के नाम, CM शिवराज के साथ पार्टी के प्रदेश कार्यालय पहुंचे पर्यवेक्षक

 मध्य प्रदेश में विधायक दल की बैठक के लिए तीनों ही केन्द्रीय पर्यवेक्षक मनोहर लाल खट्टर, के. लक्ष्मण, आशा लाकड़ा भोपाल पहुंच गए हैं। इस बीच पर्यवेक्षक के. लक्ष्मण ने बड़ा बयान देते हुए कहा कि मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री का फैसला आला कमान करेगा। हम केवल विधायकों से वन टू वन चर्चा करेंगे। लक्ष्मण के बयान से स्पष्ट हो गया है कि भारतीय जनता पार्टी हाईकमान ने मध्यप्रदेश के लिए सीएम और डिप्टी सीएम के नाम पहले से तय कर दिए हैं।

वही प्रदेश भाजपा कार्यालय जाने के पूर्व पर्यवेक्षक मुख्यमंत्री हाउस जाकर शिवराज सिंह से मिलने पहुंचे। प्रह्लाद पटेल के बंगले की सुरक्षा बढ़ाई गई। कैलाश विजयवर्गीय बोले, कोई भी नहीं है किसी रेस में। पार्टी जिसे जिम्मेदारी देगी, सभी उसके पीछे हो जायेंगे। पर्यवेक्षक मुख्यमंत्री आवास पहुंचे, वहां शिवराज सिंह चौहान ने उनका स्वागत किया। इससे पहले पर्यवेक्षकों का भोपाल हवाईअड्डे पर स्वागत किया गया। 

सूत्रों का कहना है कि पर्यवेक्षक पहले विधायकों से वन-टू-वन चर्चा करेंगे। फिर 4 बजे बैठक शुरू होगी। के लक्ष्मण ने भोपाल के लिए रवाना होने से पहले कहा कि हम विधायकों से चर्चा कर रिपोर्ट तैयार करेंगे। उसे केंद्रीय नेतृत्व को सौंपा जाएगा। फैसला आलाकमान लेगा। आपको बता दें कि अब तक बीजेपी के प्रदेश कार्यालय में नरेंद्र सिंह तोमर, प्रहलाद पटेल सहित लगभग 40 विधायक पहुंच चुके हैं, रजिस्ट्रेशन शुरू हो चुका है। भोजन के पश्चात् सभी विधायकों का समूह फोटो होगा, जिसके लिए सभी 163 विधायकों को उपस्थित रहने के निर्देश हैं। थोड़ी देर में पर्यवेक्षक भी बीजेपी के प्रदेश कार्यालय पहुंच जाएंगे।

भारत में विलय के बाद जम्मू कश्मीर संप्रभु राज्य नहीं रहा”, आर्टिकल 370 पर फैसला सुनाते हुए सीजेआई ने कही कई अहम बातें

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सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने की प्रक्रिया को सही करार दिया है। सोमवार को फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान था। कोर्ट ने कहा है कि राष्ट्रपति और संसद के पास 370 पर फैसला लेने का अधिकार है। इस तरह 5 अगस्त 2019 का भारत सरकार का फैसला बना रहेगा। जानते हैं सुप्रीम कोर्ट के फैसले की बड़ी बातेः

विलय के बाद जम्मू कश्मीर संप्रभु राज्य नहीं रहा

सुप्रीम कोर्ट ने साफ तौर पर कहा कि भारत में विलय के बाद जम्मू कश्मीर संप्रभु राज्य नहीं रहा। कोर्ट ने माना है कि इसकी आंतरिक संप्रभुता नहीं है।चीफ जस्टिस ने कहा कि संविधान में कहीं इसका उल्लेख नहीं है कि जम्मू कश्मीर की कोई आंतरिक संप्रभुता है। युवराज कर्ण सिंह की साल 1949 में की गई उद्घोषणा और संविधान से इसकी पुष्टि होती है। संविधान के अनुच्छेद 1 के तहत ही जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा बन गया था। भारत में विलय के बाद जम्मू कश्मीर की कोई आंतरिक संप्रभुता नहीं बची थी। 

अस्थायी प्रावधान था संविधान का अनुच्छेद 370

सीजेआई ने कहा कि हमारा मानना है कि अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान था। हस्तांतरण के उद्देश्य से इसे लागू किया गया था। सीजेआई ने कहा कि राज्य में युद्ध के हालात के चलते विशेष परिस्थितियों में इसे लागू किया गया था। इसके लिए संविधान में प्रावधान किए गए हैं। राष्ट्रपति के आदेश की संवैधानिकता पर सीजेआई ने कहा कि फैसले के वक्त राज्य की विधानसभा भंग थी, ऐसे में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का नोटिफिकेश जारी करना राष्ट्रपति की शक्तियों के तहत आता है।

राष्ट्रपति की शक्तियों को चुनौती देना संवैधानिक स्थिति नहीं

मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि370 का स्थायी होना या न होना, उसे हटाने की प्रक्रिया का सही होना या गलत होना, राज्य को 2 हिस्सों में बांटना सही या गलत- यह मुख्य सवाल है। हमने उस दौरान राज्य में लगे राष्ट्रपति शासन पर फैसला नहीं लिया है। स्थिति के अनुसार राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है। पीठ ने कहा, अनुच्छेद 356 में राष्ट्रपति को शक्तियां हासिल हैं। उसे चुनौती नहीं दी जा सकती संवैधानिक स्थिति यही है कि उनका उचित इस्तेमाल होना चाहिए।

30 सितंबर 2024 तक विधानसभा चुनाव कराने का निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में ये भी कहा कि केंद्र ने जम्मू कश्मीर को राज्य का दर्जा देने को लेकर प्रस्तुतीकरण दिया है, उसके मुताबिक निर्देश दिया जाता है कि जल्द से जल्द जम्मू कश्मीर को राज्य का दर्जा दिया जाए। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया है कि 30 सितंबर 2024 तक राज्य में विधानसभा चुनाव कराए जाएं।

सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के फ़ैसले को बरकरार रखा, कहा-केंद्र सरकार का निर्णय सही

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सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने आज अनुच्छेद 370 पर सुनवाई करते हुए ऐतिहासिक फैसला सुनाया।सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पाँच जजों की बेंच ने सर्वसम्मति से फ़ैसला देते हुए जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को ख़त्म करने का फ़ैसला बरकरार रखा है।सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि अगले साल सितंबर तक जम्मू-कश्मीर में चुनाव कराने के लिए क़दम उठाने चाहिए। शीर्ष अदालत ने कहा कि जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा जितनी जल्दी बहाल किया जा सकता है, कर देना चाहिए।

फ़ैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, 'राष्ट्रपति शासन के दौरान राज्य की ओर से लिए गए केंद्र के फ़ैसले को चुनौती नहीं दी जा सकती है। अनुच्छेद 370 युद्ध जैसी स्थिति में एक अंतरिम प्रावधान था। इसके टेक्स्ट को देखें तो भी पता चलता है कि यह अस्थायी प्रावधान था।अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करने के ख़िलाफ़ याचिकाकर्ताओं ने एक दलील ये भी दी थी कि राष्ट्रपति शासन के दौरान केंद्र सरकार राज्य की तरफ से इतना अहम फ़ैसला नहीं ले सकती है।

सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि आर्टिकल-370 को बेअसर कर नई व्यवस्था से जम्मू-कश्मीर को बाकी भारत के साथ जोड़ने की प्रक्रिया मजबूत हुई है। आर्टिकल 370 हटाना संवैधानिक रूप से वैध है। सीजीआई ने सुनवाई के दौरान कहा, हमें सॉलिसीटर जनरल ने बताया कि जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा वापस दिया जाएगा। लद्दाख केंद्र शासित क्षेत्र रहेगा। हम निर्देश देते हैं कि चुनाव आयोग नए परिसीमन के आधार पर 30 सितंबर 2024 तक जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव करवाए। राज्य का दर्जा भी जितना जल्द संभव हो, बहाल किया जाए।

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले 16 दिनों की बहस के बाद 5 सितंबर को इस पर फैसला सुरक्षित रख लिया था। भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, बीआर गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने यह फैसला सुनाया है।

भूल जाओ 370 ! सुप्रीम कोर्ट ने कहा- जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न अंग, देशहित में था केंद्र सरकार का फैसला, इसमें कुछ भी अवैध नहीं

आज यानी सोमवार (11 दिसंबर) को सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के फैसले पर मुहर लगाते हुए मोदी सरकार को बड़ी राहत दी है। भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने फैसले में कहा है कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और इसकी कोई आंतरिक संप्रभुता नहीं है। बता दें कि, पूर्व कांग्रेस नेता और वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने केंद्र सरकार के फैसले को असंवैधानिक बताया था और जम्मू कश्मीर में 370 फिर से लागू करवाने की मांग की थी। यहाँ तक कि, इसके लिए सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट से जम्मू कश्मीर में जनमत संग्रह करवाने तक की मांग कर डाली थी, हालाँकि, कोर्ट में उनकी दलीलें नहीं चलीं और मोदी सरकार के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने मुहर लगा दी।  

दरअसल, मोदी सरकार ने 5 अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर पर अनुच्छेद 370 के प्रभाव को खत्म कर दिया था और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों - जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में विभाजित कर दिया था। इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 23 याचिकाएं दाखिल की गईं थीं। सुनवाई के बाद कोर्ट ने सितंबर में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। अनुच्छेद 370 हटने के 4 साल, 4 महीने और 6 दिन बाद आज सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की बेंच, जिसमें जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत शामिल हैं, ने यह ऐतिहासिक फैसला सुनाया है।

CJI चंद्रचूड़ ने इस बात पर प्रकाश डाला कि जम्मू-कश्मीर के संविधान में संप्रभुता का कोई उल्लेख नहीं है, जबकि भारत के संविधान की प्रस्तावना में इसका उल्लेख है। उन्होंने कहा कि जब भारतीय संविधान अस्तित्व में आया, तो अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर पर लागू हो गया।CJI चंद्रचूड़ ने इस बात पर जोर दिया कि अनुच्छेद 370 को रद्द करने की अधिसूचना जारी करने की राष्ट्रपति की शक्ति जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा के भंग होने के बाद भी लागू रहती है। अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को ख़त्म करने के निर्णय का उद्देश्य जम्मू-कश्मीर का एकीकरण है और इसे हटाने का राष्ट्रपति का आदेश संवैधानिक रूप से वैध है। फैसला सुनाते हुए CJI चंद्रचूड़ ने कहा कि अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान था, यह पुष्टि करते हुए कि जम्मू और कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, जिसकी कोई आंतरिक संप्रभुता नहीं है।

CJI ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की घोषणा की वैधता के सवाल को अब प्रासंगिक नहीं माना। उन्होंने दिसंबर 2018 में जम्मू-कश्मीर में लगाए गए राष्ट्रपति शासन की वैधता पर शासन करने से इनकार कर दिया, क्योंकि इसे याचिकाकर्ताओं द्वारा विशेष रूप से चुनौती नहीं दी गई थी। CJI चंद्रचूड़ ने बताया कि जब राष्ट्रपति शासन लगाया जाता है, तो राज्यों में संघ की शक्तियों पर सीमाएं लग जाती हैं. इसकी उद्घोषणा के तहत, राज्य की ओर से केंद्र द्वारा लिए गए निर्णयों को संभावित अराजकता को रोकने के लिए कानूनी चुनौती नहीं दी जा सकती। CJI ने कहा कि, प्रदेश को 370 हटने से फायदा हुआ है और केंद्र सरकार का ये फैसला देशहित में है। साथ ही CJI ने ये भी कहा कि, 370 अस्थायी व्यवस्था थी, जिसे हटाया जा सकता था और इसे हटाने की प्रक्रिया में केंद्र सरकार ने संविधान का कोई उल्लंघन नहीं किया है। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि, भारत का संविधान ही जम्मू कश्मीर में भी लागू होगा। 

फैसले पर सभी पांच जजों ने सहमति जताई। सीजेआई चंद्रचूड़ ने उल्लेख किया कि इस मामले में तीन अलग-अलग फैसले लिखे गए थे, जिसमें न्यायमूर्ति गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत उनके साथ अपना फैसला सुनाने में शामिल हुए थे। वहीं, कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर कहा है कि, वे इसे देखेंगे फिर बात करेंगे। बता दें कि, कांग्रेस शुरू से 370 हटाने का विरोध करती रही है, जो 370 जम्मू कश्मीर को अलग संविधान, अलग झंडा देता था, उसे वापस लागू करवाने के लिए विपक्षी दलों में आम सहमति देखी जाती है। 

दलितों के साथ सबसे बड़ा छलावा था 370

बता दें कि, जो कांग्रेस और सपा एक तरफ अपने आप को दलित हितैषी भी बताती है और 370 वापस लागू करने की बात भी करती है। वो ये अच्छी तरह जानती है कि, 370 दलितों के लिए कितना बड़ा छलावा था। अनुच्छेद 370 और 35 A के तहत राज्य में सालों से रह रहे दलितों, वंचितों को वहां की नागरिकता तक नहीं मिली थी, जिसके कारण ये लोग न तो घाटी में संपत्ति खरीद सकते थे, न विधानसभा चुनाव में वोट डाल सकते थे और सबसे गंभीर बात तो ये है कि, जम्मू कश्मीर में यह नियम था कि, दलितों की संतानें कितनी भी पढ़ लें, मगर फिर भी उन्हें मैला ही उठाना होगा, उन्हें नौकरी मिलेगी तो केवल सफाईकर्मी की, इसके अलावा नहीं। ये अपने आप में हैरान करने वाली बात है कि, 370 को वापस लागू करवाने की मांग करने वाली तथाकथित राजनितिक पार्टियां अपने आप को दलित हितैषी बताती हैं। गौर करने वाली बात है कि, जहाँ कश्मीर में दलितों के साथ ये भेदभाव था, वहीं कोई भी पाकिस्तानी, कश्मीरी महिला से शादी करके वहां का नागरिक बन सकता था और तमाम लाभ ले सकता था। इसी कारण घाटी में आतंकवाद भी जमकर पनप रहा था। इन धाराओं से जम्मू कश्मीर को अलग संविधान मिल गया था, जिसमें मनमाफिक संशोधन करके इस्तेमाल होते थे।

आज खुलेंगे 'ज्ञानवापी' के राज़ ! कोर्ट में सर्वे रिपोर्ट दाखिल करेगा भारतीय पुरातत्व विभाग

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा विवादित ज्ञानवापी परिसर के वैज्ञानिक सर्वेक्षण की रिपोर्ट सोमवार को वाराणसी कोर्ट में पेश किए जाने की संभावना है। पिछली तारीख पर, अदालत ने 30 नवंबर को ASI को 10 दिन का समय दिया था और "प्रदान किए गए समय" के भीतर रिपोर्ट दाखिल करने का आदेश दिया था। कोर्ट ने पहले 17 नवंबर तक अपनी सर्वेक्षण रिपोर्ट जमा करने को कहा था। बाद में, ASI को अपनी रिपोर्ट दाखिल करने के लिए 28 नवंबर तक का समय दिया गया था।

बता दें कि, सर्वेक्षण 100 दिनों के लिए आयोजित किया गया है, इस दौरान ASI ने कोर्ट से कई बार विस्तार मांगा है। सर्वेक्षण लगभग एक महीने पहले समाप्त हो गया था और ASI ने अपनी रिपोर्ट दाखिल करने के लिए अतिरिक्त समय मांगा था। अंतिम विस्तार 18 नवंबर को हुआ था, जब ASI ने 15 दिन और मांगे थे। कोर्ट ने इसके लिए 10 दिन की इजाजत दी थी। ASI 4 अगस्त से विवादित ज्ञानवापी परिसर में सर्वेक्षण कर रहा था। इसमें वुजुखाना क्षेत्र को छोड़ दिया गया है, जिसे सुप्रीम कोर्ट के आदेश से सील कर दिया गया है। 

2 नवंबर को, ASI ने अदालत को बताया कि उसने सर्वेक्षण "पूरा" कर लिया है, लेकिन सर्वेक्षण में इस्तेमाल किए गए उपकरणों के विवरण के साथ रिपोर्ट संकलित करने के लिए कुछ और समय की आवश्यकता होगी। कोर्ट ने दस्तावेज जमा करने के लिए 17 नवंबर तक का अतिरिक्त समय दिया था। वाराणसी की एक अदालत ने 21 जुलाई को चार महिलाओं की याचिका के बाद सर्वेक्षण का आदेश दिया था, जिन्होंने मंदिर की पश्चिमी दीवार के पीछे स्थित श्रृंगार गौरी तीर्थ में प्रार्थना करने की अनुमति मांगी थी। इससे पहले, इस साल अगस्त में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को वाराणसी में विवादित ज्ञानवापी परिसर का सर्वेक्षण करने की अनुमति दी थी।

विष्णु देव साय को ही बीजेपी ने क्यों चुना सीएम, क्या कांग्रेस का किला ढाहने का मिला इनाम ?

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छत्तीसगढ़ में भाजपा ने मुख्यमंत्री पद के लिए आदिवासी नेता विष्णुदेव साय का नाम तय किया है। रविवार को विधायक दल की बैठक के बाद उनके नाम की औपचारिक घोषणा की गई।छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में प्रचंड जीत दर्ज करने के बाद भाजपा ने राज्य के मुख्यमंत्री के रुप में प्रदेश के आदिवासी नेता विष्णुदेव साय पर दांव लगाया है।हालांकि उनके अलावा अन्य पिछड़ा वर्ग से आने वाले बीजेपी के वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव, केंद्रीय राज्य मंत्री रेणुका सिंह, आईएएस से विधायक बने ओपी चौधरी और राज्य के पूर्व गृह मंत्री रामविचार नेताम के नाम की भी चर्चा थी। लेकिन अंततः पार्टी ने विष्णुदेव साय के नाम पर मुहर लगाई।

59 साल के साय को यह पद बस्तर और सरगुजा के आदिवासी क्षेत्र में कांग्रेस का किला ढहा कर उसके सत्ता बरकरार रखने के सपने पर ग्रहण लगाने लिए इनाम के रूप में मिला है। बीते चुनाव में कांग्रेस ने आदिवासी बहुल बस्तर और सरगुजा संभाग को 26 में से 25 सीटें जीत कर प्रचंड बहुमत से सरकार बनाई थी। इस बार इन दोनों संभागों में रणनीति की कमान साय के हाथ में थी। भाजपा को इस बार इन दोनों संभागों में 21 सीटें मिलीं। पार्टी ने सरगुजा संभाग की सभी सीटों पर कब्जा किया। दरअसल, विष्णुदेव साय ने अपने इलाके में जो किया है। वो कमाल ही कहा जाएगा। उन्होंने क्षेत्र की सभी सीटें कांग्रेस से छीन कर बीजेपी को सौंप दी है। 

32 फ़ीसद आदिवासी जनसंख्या वाले छत्तीसगढ़ की विधानसभा में आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित 29 सीटों में से 17 पर भाजपा के कब्ज़े के बाद माना जा रहा था कि किसी आदिवासी विधायक को भाजपा मुख्यमंत्री या उप मुख्यमंत्री बना सकती है। जिस सरगुजा संभाग से विष्णुदेव साय जीत कर विधानसभा पहुंचे हैं, उस संभाग की सभी 14 सीटों पर भाजपा के उम्मीदवार जीत कर आए हैं। उसके बाद से ही विष्णुदेव साय को मुख्यमंत्री बनाए जाने की चर्चा शुरू हो गई थी।

विष्णु देव साय की राज्य के सीएम बनने की एक बड़ी वजह गृहमंत्री अमित शाह का भी बयान है। चुनाव के दौरान अमित शाह ने बस इतना ही कहा था, 'इनके बारे में मैंने कुछ बड़ा सोचा है।' प्रदेश के राजनीतिक जानकारों का कहना है कि विधानसभा चुनाव में तो कुछ बड़ा सोचा है इसका मतलब मुख्यमंत्री बनाना ही होता है और शाह ने अपना वादा आखिर पूरा किया।

यही नहीं, छत्तीसगढ़ राज्य में आदिवासी समुदाय की आबादी सबसे अधिक है और विष्णु देव साय इसी समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं। विष्णु देव साय को रमन सिंह का करीबी माना जाता है। इसके अलावा उन्हें संघ के करीबी नेताओं में भी माना जाता है। विष्णु देव राय का नाम सीएम के आने के बाद भले ही नया चेहरा लग रहा है, लेकिन उनका राजनीतिक कद काफी बड़ा है। विष्णु देव साय ने काफी लंबी सियासी सफर तय किया है और वह एक जमीनी नेता रहे हैं। उन्होंने 1989 में जशपुर जिले के बगिया गांव से पंच पद पर निर्वाचित होकर राजनीतिक सफर की शुरुआत की थी. इसके बाद वह लगातार ऊंची सीढ़ियां चढ़ते चले गए।

विष्णुदेव साय 1990 में निर्विरोध सरपंच निर्वाचित हुए थे। इसके बाद तपकरा से विधायक चुनकर 1990 से 1998 तक वे मध्यप्रदेश विधानसभा के सदस्य रहे। 1999 में वे 13 वीं लोकसभा के लिए रायगढ़ लोकसभा क्षेत्र से सांसद निर्वाचित हुए। भाजपा ने उन्हें 2006 में पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया, जबकि 2009 में 15 वीं लोकसभा के लिए हुए चुनाव में वे रायगढ़ लोकसभा क्षेत्र से फिर से सांसद बने। साल 2014 में 16वीं लोकसभा चुनाव में वह एक बार फिर रायगढ़ से सांसद नियुक्त हुए। इस बार केंद्र में मोदी की सरकार ने उन्हें केंद्रीय राज्यमंत्री, इस्पात खान, श्रम, रोजगार मंत्रालय बनाया। 2020 में साय छ्त्तीसगढ़ के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे।

अनुच्छेद 370 पर सुप्रीम कोर्ट के पहले क्या है कश्मीर के नेताओं की प्रतिक्रिया? जानें किसने क्या कहा

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जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को साल 2019 में भारत सरकार ने निरस्त कर दिया था। चार साल बाद सोमवार को केंद्र सरकार के इस फ़ैसले की संवैधानिक वैधता पर सुप्रीम कोर्ट अपना फैसला सुनाएगा। सुप्रीम कोर्ट में चीफ़ जस्टिस डी.वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच के फ़ैसला सुनाने से पहले घाटी में सुरक्षा व्यवस्था बढ़ा दी गयी है।

उमर अब्दुल्ला ने कहा- इंसाफ़ की उम्मीद

फैसला आने से पहले नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने कहा है कि उन्हें इस दिन का बेसब्री से इंतज़ार था और उन्हें इंसाफ़ की उम्मीद है। उन्होंने कहा-जब हम 2019 में सुप्रीम कोर्ट में गए थे तब न्याय की उम्मीद लेकर गए थे, आज भी हमारे जज्बात वही हैं। हमें इस दिन का बेसब्री से इंतजार था। सोमवार (11 दिसंबर) को जज अपना फैसला सुनाएंगे, हमें इंसाफ की उम्मीद है।वहीं, घाटी में सिक्योरिटी बढ़ाए जाने के सवाल पर उन्होंने कहा- जनता पर यकीन होना चाहिए, यहां लोगों ने कब बीते चार सालों में कानून को अपने हाथों में लिया। 2019 में नहीं लिया, 2020 में नहीं लिया।फ़ैसला आने के बाद भी लोग माहौल नहीं बिगाड़ेंगे। पुलिस को लोगों को पकड़ने की ज़रूरत नहीं है, लोगों पर भरोसा करना चाहिए।

देश के हितों के खिलाफ हो सकता है फैसला- महबूबी मुफ्ती

वहीं, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने कहा है कि यह निर्णय 'लोगों और देश के हितों के पक्ष में' होने की संभावना नहीं है। अनंतानाग में महबूबा मुफ्ती ने कहा कि 'शुक्रवार रात से हम देख रहे हैं कि विभिन्न दलों, विशेषकर पीडीपी के कार्यकर्ताओं के नामों वाली सूचियां पुलिस स्टेशनों के माध्यम से ली जा रही हैं और ऐसा लगता है कि कोई ऐसा निर्णय आने वाला है, जो इस देश और जम्मू के पक्ष में नहीं है। केवल भाजपा के एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए कुछ एहतियाती कदम उठाए जा रहे हैं, जो दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने जोर देकर कहा कि यह सुनिश्चित करना शीर्ष अदालत की जिम्मेदारी है कि वह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के एजेंडे को आगे न बढ़ाए, बल्कि देश और उसके संविधान की अखंडता को बरकरार रखें।

आज़ाद को उम्मीद लोगों के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट फैसला सुनाएगा

जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद ने रविवार को उम्मीद जताई कि सुप्रीम कोर्ट संविधान के अनुच्छेद-370 के प्रावधानों को 2019 में निरस्त किए जाने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर लोगों के पक्ष में फैसला सुनाएगा। आजाद ने कहा, ‘मैंने पहले भी यह कहा है। केवल दो (संस्थाएं) हैं जो जम्मू-कश्मीर के लोगों को अनुच्छेद 370 और 35ए वापस कर सकती हैं और वे संस्थाएं संसद और सुप्रीम कोर्ट हैं। सुप्रीम कोर्ट की बेंच निष्पक्ष है और उम्मीद है कि वह जम्मू-कश्मीर के लोगों के पक्ष में फैसला देगी।’ उन्होंने कहा कि उन्हें नहीं लगता कि संसद 2019 को लिए गए निर्णयों को पलटेगी क्योंकि इसके लिए लोकसभा में दो-तिहाई बहुमत की जरूरत होगी।

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 हटाने को लेकर फैसला आज, कश्मीर में हाई अलर्ट

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आज जम्मू कश्मीर, लद्दाख समेत पूरे देश की निगाहें सुप्रीम कोर्ट की तरफ है।जम्मू-कश्मीर से धारा 370 को निरस्त करने और दो केन्द्र शासित प्रदेश में बांटने के खिलाफ याचिका पर आज सुप्रीम कोर्ट फैसला सुनाएगा। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, बीआर गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ आज यह फैसला सुनाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने 16 दिनों की बहस के बाद 5 सितंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था।

सुप्रीम कोर्ट की तरफ से आने वाले इस बड़े फैसले को देखते हुए आज कश्मीर घाटी में सुरक्षा व्यवस्था पूरी तरह हाई अलर्ट पर है।इस दौरान किसी भी तरह के वीआईपी मूवमेंट तक की मनाही है।सीआरपीसी 144 के तहत सोशल मीडिया को लेकर साइबर पुलिस ने एक गाइडलाइन जारी की है और इस पर कड़ी निगाह रखी जा रही हैं ताकि किसी भी तरह के भड़काऊ पोस्ट पर समय रहते कार्रवाई की जा सके।सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने वालों को को सलाह दी गई है कि वे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का जिम्मेदारी से उपयोग करें और अफवाहें, फर्जी खबरें, नफरत फैलाने वाले भाषण शेयर न करें। साथ ही ऐसी कोई भी मैसेज मिलने पर दूसरों के साथ साझा करने के बजाय तुरंत साइबर पुलिस कश्मीर को सूचित करें।

श्रीनगर जिले के सभी इलाको में जो भी डेप्यूटी मजिस्ट्रेट तैनात हैं, उनको सरकार की तरफ से खासी हिदायत दी गई है। हिदायत में यह है कि हर इलाके में एक अधिकारी को तैनात किया गया है जिससे कानून व्यवस्था को बनाया रखा जा सके।

जम्मू-कश्मीर से संविधान के अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त करने के केंद्र सरकार के 2019 के फैसले के खिलाफ याचिकाएं दायर की गई थी। सितंबर माह में लगातार 16 दिनों तक सभी पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। 16 दिन में सुनवाई के दौरान अदालत ने केंद्र और हस्तक्षेपकर्ताओं की ओर से अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, वरिष्ठ अधिवक्ताओं- हरीश साल्वे, राकेश द्विवेदी, वी गिरि और अन्य को अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का बचाव करते हुए सुना था। वकीलों ने इस प्रावधान को निरस्त करने के केंद्र के 5 अगस्त 2019 के फैसले की संवैधानिक वैधता, पूर्ववर्ती राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित करने वाले जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम की वैधता, 20 जून 2018 को जम्मू कश्मीर में राज्यपाल शासन लगाए जाने, 19 दिसंबर 2018 को राष्ट्रपति शासन लगाए जाने और 3 जुलाई 2019 को इसे विस्तारित किए जाने सहित विभिन्न मुद्दों पर अपने विचार रखे थे।

इस अनुच्छेद के जरिए जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा मिला हुआ था। कोर्ट यह तय करेगी कि जम्मू और कश्मीर की स्वायत्तता छीनने वाले केंद्र सरकार के पांच अगस्त, 2019 को संसद में पारित कराए इस फैसले की संवैधानिक वैधता क्या है, इसको स्पष्ट किया जाएगा।

आदिवासी नेता विष्णु देव साय को भाजपा ने बनाया छत्तीसगढ़ का मुख्यमंत्री, प्रेरक रहा है राजनीतिक सफर

भाजपा ने रणनीतिक रूप से विष्णुदेव साय को छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री के रूप में चुना है। राज्य का नेतृत्व करने के लिए एक आदिवासी नेता को नियुक्त करके एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। इस फैसले से छत्तीसगढ़ में नेतृत्व को लेकर कई तरह की अटकलों पर विराम लग गया है. विष्णुदेव साय छत्तीसगढ़ के कुनकुरी विधानसभा से आते हैं, जहां आदिवासियों की अच्छी खासी आबादी है और वह आदिवासी समुदाय से आते हैं।

मुख्यमंत्री के रूप में एक आदिवासी नेता को चुनने के कदम को भाजपा द्वारा एक साहसिक फैसले के रूप में देखा जाता है, खासकर तब जब राज्य को अजीत जोगी के बाद एक आदिवासी मुख्यमंत्री मिला है। 2020 में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में कार्य कर चुके विष्णुदेव साय इस भूमिका में भरपूर राजनीतिक अनुभव लेकर आए हैं। उन्होंने पहले संसद सदस्य और केंद्रीय मंत्री के रूप में कार्य किया है और खुद को एक अनुभवी नेता के रूप में स्थापित किया है।

आदिवासी समुदायों में साईं की जड़ें और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के साथ उनका घनिष्ठ संबंध उन्हें एक उल्लेखनीय व्यक्ति बनाता है। इसके अलावा, रमन सिंह जैसे नेताओं से उनकी निकटता उनकी राजनीतिक प्रतिष्ठा को बढ़ाती है। विष्णुदेव साय ने 1999 से 2014 तक लोकसभा में रायगढ़ का प्रतिनिधित्व किया और केंद्र में मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में मंत्री के रूप में कार्य किया। विशेष रूप से, उन्होंने पार्टी के सिद्धांतों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दर्शाते हुए अपने संगठनात्मक पद से इस्तीफा दे दिया।

यह कदम छत्तीसगढ़ में आदिवासी आबादी से जुड़ने और एक ऐसे नेता के माध्यम से उनकी चिंताओं को दूर करने के भाजपा के इरादे को दर्शाता है जो उनके मुद्दों को पहले से समझता है। नवनियुक्त मुख्यमंत्री के रूप में, राज्य की राजनीतिक गतिशीलता और चुनौतियों को देखते हुए, विष्णुदेव साय के नेतृत्व पर कड़ी नजर रखी जाएगी।

हिमाचल के परवाणू कस्बे में नशामुक्ति केंद्र में हो रहा था बड़ा 'खेल', खिड़कियों के शीशे तोड़ 13 लड़कियां हो गईं फरार

चंडीगढ़ से सटे हिमाचल के परवाणू कस्बे के एक नशामुक्ति केंद्र में उपचाराधीन 13 लड़कियां रात को खिड़कियों के शीशे तोड़ कर भाग गईं। दरअसल, नशा छुड़ाने के नाम पर बने केंद्र में बड़ा खेल हो रहा था। लड़कियों को ही नशा दिया जा रहा था। लड़कियों ने जब वहां से भागकर आस-पास के घरों में शरण ली तो लोगों को इसके बारे में पता चला। जिसके बाद पुलिस को सूचना दी गई। पुलिस ने लड़कियों के परिजनों को मौके पर बुलाया और उन्हें उनको सौंप दिया। पुलिस को युवतियों ने आपबीती सुनाई और नशा मुक्ति केंद्र से भागने का कारण बताया।

उन्होंने बताया कि नशा मुक्ति केंद्र के संचालकों और कर्मचारियों पर उन्हें नशा देने और मारपीट का आरोप लगाया है। पंजाब और हरियाणा की ये लड़कियां नशा मुक्ति केंद्र में इलाज के लिए आई थीं। केंद्र में कुल 17 लड़कियां इलाज के लिए दाखिल थीं। अभी केंद्र में केवल 3 ही लड़कियां बची हैं।

17 लड़कियां उपचाराधीन थीं, 13 भागीं

परवाणू स्थित नशा मुक्ति केंद्र में पड़ोसी राज्य पंजाब और हरियाणा की 17 लड़कियां उपचाराधीन थी। 13 युवतियों ने शनिवार देर रात नशा मुक्ति केंद्र की खिड़कियों के शीशे तोड़े और फ़रार हो गई। इसके बाद सभी 13 लड़कियां भाग निकली। जैसे ही लोगों ने लड़कियों की आवाज सुनी तो उन्होंने पुलिस को बताया। पुलिस मौके पर पहुंची और कारण पूछा। पुलिस को युवतियों ने आपबीती सुनाई और नशा मुक्ति केंद्र से भागने का कारण बताया। उन्होंने बताया कि केंद्र में उनके साथ मारपीट की जाती थी और केंद्र के कर्मचारी ही उनको जबरदस्ती नशा देते थे। 

आरोपों की होगी जांच

डीएसपी परवाणू प्रणव चौहान ने बताया कि जैसे ही पुलिस को जानकारी मिली वैसे ही टीम मौके पर पहुंची। कुछ युवतियों के परिजन आने के बाद वह उनके साथ चली गई। युवतियों ने केंद्र संचालकों पर जो आरोप लगाए हैं, उस बारे में पुलिस छानबीन कर रही है। 

दो माह पहले परवाणू के ही एक नशा मुक्ति केंद्र को किया था बंद

दो माह पहले परवाणू के ही एक अन्य नशा निवारण केंद्र का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था, जिसमें केंद्र के कर्मचारियों पर वहां भर्ती युवाओं को सिल्वर फॉइल में नशा उपलब्ध कराते बताया गया था। इसके बाद पुलिस ने केंद्र के संचालक के खिलाफ एफआईआर कर दी थी और केंद्र को बंद करने के आदेश दिए गए थे। उसके बाद उपचाराधीन युवकों के परिजनों ने उन्हें केंद्र से बाहर निकाल लिया था। अब परवाणू के ही एक और नशा मुक्ति केंद्र के कर्मचारियों पर गंभीर आरोप लगाकर लड़कियां फरार हुई हैं।