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नवरात्र के चौथे दिन मां कुष्मांडा की पूजा, भक्तों के कष्टों और संकटों से मुक्ति दिलाती हैं मां

नवरात्रि 9 दिनों तक मनाया जाने वाला त्योहार है। नवरात्रि में हर दिन मां दुर्गा के अलग अलग अवतारों की पूजा की जाती है। नवरात्रि के चौथे दिन कुष्मांडा देवी की पूजा का विधान है।

कष्टों और संकटों से मुक्ति दिलाती हैं मां कुष्मांडा

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मां कुष्मांडा की पूजा करने से आयु, यश, बल और स्वास्थ्य में वृद्धि होती है। मां कुष्मांडा की विधि विधान से पूजा करने से मनोवांछित फल प्राप्त होते हैं। मान्यता है कि मां कुष्मांडा संसार को अनेक कष्टों और संकटों से मुक्ति दिलाती हैं। इस दिन लाल रंग के फूलों से पूजा करने की परंपरा है,क्योंकि मां कुष्मांडा को लाल रंग के फूल अधिक प्रिय बताए गए हैं। मां कुष्मांडा की पूजा विधि पूर्वक करने के बाद दुर्गा चालीसा और मां दुर्गा की आरती जरूर करनी चाहिए।

कुष्मांडा देवी को अष्टभुजा भी कहा जाता है। इनकी आठ भुजाएं हैं। मां ने अपने हाथों में धनुष-बाण, चक्र, गदा, अमृत कलश, कमल और कमंडल धारण किया है। वहीं मां के हाथों में सिद्धियों और निधियों से युक्त जप की माला भी है। इनकी सवारी सिंह है।

मां कुष्मांडा की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार मां कुष्मांडा का अर्थ होता है कुम्हड़ा। मां दुर्गा ने असुरों के अत्याचार से संसार को मुक्त करने के लिए कुष्मांडा का अवतार लिया था। मान्यता है कि देवी कुष्मांडा ने पूरे ब्रह्माण्ड की रचना की थी। पूजा के दौरान कुम्हड़े की बलि देने की भी परंपरा है। इसके पीछे मान्यता है ऐसा करने से मां प्रसन्न होती हैं और पूजा सफल होती है।

मां कुष्मांडा की पूजा विधि

नवरात्रि के चौथे दिन सुबह स्नान करने के बाद मां कुष्मांडा स्वरूप की विधिवत पूजा करने से विशेष फल मिलता है। पूजा में मां को लाल रंग के फूल, गुड़हल या गुलाब का फूल भी प्रयोग में ला सकते हैं, इसके बाद सिंदूर, धूप, गंध, अक्षत् आदि अर्पित करें. सफेद कुम्हड़े की बलि माता को अर्पित करें। कुम्हड़ा भेंट करने के बाद मां को दही और हलवा का भोग लगाएं और प्रसाद में वितरित करें।

मां कूष्मांडा की पूजा का महत्व

शांत-संयत होकर, भक्‍ति‍-भाव से माता की पूजा करनी चाहिए। इनकी उपासना से भक्तों को सभी सिद्धियां व निधियां मिलती हैं। लोग नीरोग होते हैं और आयु-यश में बढ़ोतरी होती है। उनके आशीर्वाद से सभी कष्ट और दुख मिट जाते हैं।

आज का रशिफल,17 अक्टूबर 23:आज ग्रह नक्षत्र के प्रभाव से क्या कहता है आप का भाग्यफल, जानने के लिए पढिये आज का रशिफल...?

मेष- ऐश्वर्य के साधनों पर खर्च होगा। नौकरी में कार्य की प्रशंसा होगी। मातहतों का सहयोग प्राप्त होगा। स्थायी संपत्ति के कार्य बड़ा लाभ दे सकते हैं। भाग्योन्नति के प्रयास सफल रहेंगे। शारीरिक कष्ट संभव है। भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। विवेक से कार्य करें।

वृष- यात्रा लाभदायक रहेगी। राजकीय सहयोग मिलेगा। सरकारी कामों में सहूलियत होगी। जीवनसाथी से सहयोग मिलेगा। घर में सुख-शांति रहेंगे। कारोबारी अनुबंध हो सकते हैं। लाभ के अवसर हाथ आएंगे। पार्टनरों से सहयोग मिलेगा। झंझटों में न पड़ें।

मिथुन- यात्रा लाभदायक रहेगी। संतान पक्ष से बुरी खबर मिल सकती है। डूबी हुई रकम प्राप्त होगी। व्यापार-व्यवसाय से मनोनुकूल लाभ होगा। नौकरी में प्रशंसा मिलेगी। जल्दबाजी से काम बिगड़ सकते हैं। नए उपक्रम प्रारंभ करने संबंधी योजना बनेगी।

कर्क- चोट व दुर्घटना से बड़ी हानि हो सकती है। पुराना रोग उभर सकता है। वाणी में हल्के शब्दों के प्रयोग से बचें। किसी व्यक्ति विशेष से कहासुनी हो सकती है। स्वाभिमान को ठेस पहुंच सकती है। दौड़धूप रहेगी। नकारात्मकता हावी रहेगी। कीमती वस्तुएं संभालकर रखें।

सिंह- दुष्टजनों से सावधानी आवश्यक है। फालतू खर्च पर नियंत्रण नहीं रहेगा। हल्की मजाक करने से बचें। अपेक्षित काम में विलंब होगा। बेकार की बातों पर ध्यान न दें। अपने काम से काम रखें। लाभ के अवसर मिलेंगे। विवेक का प्रयोग करें। आय में वृद्धि होगी।

कन्या-मान-सम्मान मिलेगा। मेहनत का फल मिलेगा। कारोबार में वृद्धि के योग हैं। जोखिम उठाने का साहस कर पाएंगे। निवेश शुभ रहेगा। नौकरी में अधिकारी प्रसन्न रहेंगे। शत्रु तथा ईर्ष्यालु व्यक्तियों से सावधानी आवश्यक है। समय की अनुकूलता है। सामाजिक कार्य करने का मन लगेगा।

तुला-सामाजिक कार्य करने में मन लगेगा। योजना फलीभूत होगी। कार्यस्थल पर परिवर्तन हो सकता है। कारोबार मनोनुकूल लाभ देगा। नौकरी में अधिकार बढ़ सकते हैं। शेयर मार्केट, म्युचुअल फंड से लाभ होगा। आय में वृद्धि होगी। मान-सम्मान मिलेगा। स्वास्थ्‍य का ध्यान रखें।

वृश्चिक- चोट व रोग से कष्ट हो सकता है। बेचैनी रहेगी। प्रेम-प्रसंग में अनुकूलता रहेगी। पूजा-पाठ में मन लगेगा। सत्संग का लाभ मिलेगा। राजकीय बाधा दूर होकर लाभ की स्थिति बनेगी। व्यापार-व्यवसाय लाभदायक रहेगा। परिवार तथा मित्रों का सहयोग मिलेगा। प्रसन्नता बनी रहेगी।

धनु- भागदौड़ अधिक रहेगी। वाणी में हल्के शब्दों के प्रयोग से बचें। मेहनत अधिक होगी। लाभ में कमी रह सकती है। कीमती वस्तुएं संभालकर रखें। व्यवसाय-व्यापार मनोनुकूल चलेगा। आय बनी रहेगी। स्वास्थ्य का पाया कमजोर रहेगा, सावधानी रखें। बुरी खबर मिल सकती है।

मकर- पुरानी संगी-साथियों से मुलाकात होगी। उत्साहवर्धक सूचना प्राप्त होगी। फालतू खर्च होगा। स्वास्थ्य कमजोर रह सकता है। आत्मसम्मान बना रहेगा। जोखिम उठाने का साहस कर पाएंगे। भाइयों का सहयोग मिलेगा। कारोबार से लाभ होगा। नौकरी में कार्यभार रहेगा। जल्दबाजी न करें।

कुंभ- बेरोजगारी दूर करने के प्रयास सफल रहेंगे। भेंट व उपहार की प्राप्ति संभव है। व्यावसायिक यात्रा सफल रहेगी। शेयर मार्केट व म्युचुअल फंड से मनोनुकूल लाभ होगा। नौकरी में प्रभाव वृद्धि होगी। कोई बड़ा काम होने से प्रसन्नता रहेगी। जल्दबाजी न करें। उत्साह रहेगा।

मीन- पार्टी व पिकनिक का कार्यक्रम बनेगा। आनंद के साथ समय व्यतीत होगा। मनपसंद व्यंजनों का लाभ मिलेगा। रचनात्मक कार्य सफल रहेंगे। व्यापार मनोनुकूल लाभ देगा। नौकरी में प्रभाव वृद्धि होगी। किसी व्यक्ति से बहस हो सकती है। आशंका-कुशंका से बाधा होगी।

आज का पंचांग :-17 अक्टूबर 23, आज आश्विन का तृतीया, शुक्ल पक्ष,जानिए ग्रह नक्षत्र का योग और मुहूर्त

तृतीया, शुक्ल पक्ष, आश्विन """""(समाप्ति काल)

तिथि-------------- तृतीया 25: 25:57 तक 

पक्ष---------------------------- शुक्ल

नक्षत्र----------------- विशाखा 20:30:13

योग--------------------- प्रीति 09:20:25

करण-------------------- तैतुल 13:22:46

करण----------------------- गर 25:25:57

वार--------------------------- मंगलवार

माह-------------------------- आश्विन

चन्द्र राशि---------------- तुला 14:18:43

चन्द्र राशि---------------------- वृश्चिक 

सूर्य राशि---------------- कन्या 25:29:17

सूर्य राशि----------------------  तुला 

रितु--------------------------- शरद

आयन------------------------- दक्षिणायण

संवत्सर----------------------- शोभकृत

संवत्सर (उत्तर) ------------- पिंगल

विक्रम संवत------------------- 2080 

गुजराती संवत---------------- 2079 

शक संवत--------------------- 1945

कलि संवत-------------------- 5124

वृन्दावन

सूर्योदय----------------------- 06:21:12 

सूर्यास्त------------------------ 17:47:35

दिन काल--------------------- 11:26:22 

रात्री काल--------------------- 12:34:12

चंद्रोदय------------------------ 08:34:22 

चंद्रास्त------------------------ 19:22:23

लग्न------------ कन्या 29°13', 179°13'

सूर्य नक्षत्र--------------------- चित्रा 

चन्द्र नक्षत्र--------------------- विशाखा

नक्षत्र पाया--------------------- रजत 

पद, चरण

तू--------------------- विशाखा 08:05:32

ते----------------------विशाखा14:18:43

तो-------------------- विशाखा 20:30:13

ना-------------------- अनुराधा 26:40:03

ग्रह गोचर 

 ग्रह =राशी  , अंश ,नक्षत्र, पद

सूर्य= कन्या 9:30,    चित्रा     2 पो  

चन्द्र=तुला 25:30 , विशाखा     2  तू 

बुध =कन्या 26 °:53'   चित्रा,   2  पो 

शुक्र=सिंह 12°05,    मघा  '   4   मे 

मंगल=तुला 08°30 '  स्वाति'   1  रू 

गुरु=मेष 18°30 ' भरणी ,      2  लू 

शनि=कुम्भ 06°50 '   शतभिषा  ,1  गो    

राहू=(व) मेष 00°47  अश्विनी ,  1 चू 

केतु=(व) तुला 00°47 चित्रा,  3  रा 

शुभ मुहूर्त

राहू काल 14:56 - 16:22 अशुभ

यम घंटा 09:13 - 10:39 अशुभ

गुली काल 12:04 - 13:30अशुभ

अभिजित 11:42 - 12:27 शुभ

दूर मुहूर्त 08:38 - 09:24 अशुभ

दूर मुहूर्त 22:49 - 23:35 अशुभ

वर्ज्यम 24:37 - 26:15 अशुभ

चोघडिया, दिन

रोग 06:21 - 07:47 अशुभ

उद्वेग 07:47 - 09:13 अशुभ

चर 09:13 - 10:39 शुभ

लाभ 10:39 - 12:04 शुभ

अमृत 12:04 - 13:30 शुभ

काल 13:30 - 14:56 अशुभ

शुभ 14:56 - 16:22 शुभ

रोग 16:22 - 17:48 अशुभ

चोघडिया, रात

काल 17:48 - 19:22 अशुभ

लाभ 19:22 - 20:56 शुभ

उद्वेग 20:56 - 22:30 अशुभ

शुभ 22:30 - 24:05 शुभ

अमृत 24:05 - 25:39 शुभ

चर 25:39 - 27:13 शुभ

रोग 27:13 - 28:48 अशुभ

काल 28:48 - 30:22 अशुभ

होरा, दिन

मंगल 06:21 - 07:18

सूर्य 07:18 - 08:16

शुक्र 08:16 - 09:13

बुध 09:13 - 10:10

चन्द्र 10:10 - 11:07

शनि 11:07 - 12:04

बृहस्पति 12:04 - 13:02

मंगल 13:02 - 13:59

सूर्य 13:59 - 14:56

शुक्र 14:56 - 15:53

बुध 15:53 - 16:50

चन्द्र 16:50 - 17:48

होरा, रात

शनि 17:48 - 18:50

बृहस्पति 18:50 - 19:53

मंगल 19:53 - 20:56

सूर्य 20:56 - 21:59

शुक्र 21:59 - 23:02

बुध 23:02 - 24:05

चन्द्र 24:05 - 25:08

शनि 25:08 - 26:10

बृहस्पति 26:10 - 27:13

मंगल 27:13 - 28:16

सूर्य 28:16 - 29:19

शुक्र 29:19* - 30:22

उदयलग्न प्रवेशकाल  

कन्या > 03:16  से 05:28 तक

तुला > 05:28 से 07:42  तक

वृश्चिक > 07:42 से 09:56 तक

धनु > 09:56  से 11:40 तक

मकर > 11:40 से 13:50 तक

कुम्भ > 13:50 से 15:32  तक

मीन > 15:32 से 16:44  तक

मेष > 16:44 से 18: 32 तक

वृषभ > 18:32 से 20:30  तक

मिथुन > 20:30 से 22:38  तक

कर्क > 22:38 से 01:00  तक

सिंह > 01:00 से 03:00  तक

विभिन्न शहरों का रेखांतर (समय)संस्कार

  ;(लगभग-वास्तविक समय के समीप) 

दिल्ली +10मिनट--------- जोधपुर -6 मिनट

जयपुर +5 मिनट------ अहमदाबाद-8 मिनट

कोटा +5 मिनट------------ मुंबई-7 मिनट

लखनऊ +25 मिनट--------बीकानेर-5 मिनट

कोलकाता +54-----जैसलमेर -15 मिनट

नोट- दिन और रात्रि के चौघड़िया का आरंभ क्रमशः सूर्योदय और सूर्यास्त से होता है। 

प्रत्येक चौघड़िए की अवधि डेढ़ घंटा होती है। 

चर में चक्र चलाइये, उद्वेगे थलगार।

शुभ में स्त्री श्रृंगार करे, लाभ में करो व्यापार॥

रोग में रोगी स्नान करे, काल करो भण्डार।

अमृत में काम सभी करो, सहाय करो कर्तार॥

अर्थात- चर में वाहन, मशीन आदि कार्य करें।

उद्वेग में भूमि सम्बंधित एवं स्थायी कार्य करें।

शुभ में स्त्री श्रृंगार, सगाई व चूड़ा पहनना आदि कार्य करें।

लाभ में व्यापार करें।

रोग में जब रोगी रोग मुक्त हो जाय तो स्नान करें।

काल में धन संग्रह करने पर धन वृद्धि होती है।

अमृत में सभी शुभ कार्य करें।

दिशा शूल

ज्ञान----------------उत्तर

परिहार-: आवश्यकतानुसार यदि यात्रा करनी हो तो घी अथवा गुड़ खाके यात्रा कर सकते हैl

इस मंत्र का उच्चारण करें-:

शीघ्र गौतम गच्छत्वं ग्रामेषु नगरेषु चl

भोजनं वसनं यानं मार्गं मे परिकल्पय:ll

अग्नि वास ज्ञान -:

यात्रा विवाह व्रत गोचरेषु,

चोलोपनिताद्यखिलव्रतेषु।

दुर्गाविधानेषु सुत प्रसूतौ,

नैवाग्नि चक्रं परिचिन्तनियं।।

महारुद्र व्रतेSमायां ग्रसतेन्द्वर्कास्त राहुणाम्

नित्यनैमित्यके कार्ये अग्निचक्रं न दर्शायेत्।।

  3 + 3 + 1 = 7 ÷ 4 = 3 शेष

 स्वर्ग लोक पर अग्नि वास हवन के लिए शुभ कारक हैl

 ग्रह मुख आहुति ज्ञान

सूर्य नक्षत्र से अगले 3 नक्षत्र गणना के आधार पर क्रमानुसार सूर्य , बुध , शुक्र , शनि , चन्द्र , मंगल , गुरु , राहु केतु आहुति जानें । शुभ ग्रह की आहुति हवनादि कृत्य शुभपद होता है

 सूर्य ग्रह मुखहुति

  शिव वास एवं फल -:

 3 + 3 + 5 = 11 ÷ 7 = 4 शेष

सभायां = संताप कारक

भद्रा वास एवं फल -:

स्वर्गे भद्रा धनं धान्यं, पाताले च धनागम:।

मृत्युलोके यदा भद्रा सर्वकार्य विनाशिनी।।

 विशेष जानकारी  

नवरात्रि तृतीय दिवस चंद्रघंटा पूजन

तुला में सूर्य 25:30 रात्रि 

शुभ विचार  

एकेन शुष्कवृक्षेण दह्यमानेन वन्हिना।

दह्यते तद्वनं सर्व कुपुत्रेण कुलं यथा ।। चा o नी o।।

 जिस प्रकार केवल एक सुखा हुआ जलता वृक्ष सम्पूर्ण वन को जला देता है उसी प्रकार एक ही कुपुत्र सरे कुल के मान, मर्यादा और प्रतिष्ठा को नष्ट कर देता है.

सुभाषितानि 

गीता -: अर्जुनविषाद योग अo-01

तत्रापश्यत्स्थितान्‌ पार्थः पितृनथ पितामहान्‌। आचार्यान्मातुलान्भ्रातृन्पुत्रान्पौत्रान्सखींस्तथा॥

श्वशुरान्‌ सुहृदश्चैव सेनयोरुभयोरपि।,

 इसके बाद पृथापुत्र अर्जुन ने उन दोनों ही सेनाओं में स्थित ताऊ-चाचों को, दादों-परदादों को, गुरुओं को, मामाओं को, भाइयों को, पुत्रों को, पौत्रों को तथा मित्रों को, ससुरों को और सुहृदों को भी देखा॥,26-27॥,

नवरात्रि के तीसरे दिन ,आज मां दुर्गा के चंद्रघंटा स्वरूप की पूजा की जाती है, जानिए मां के इस स्वरूप की महामात्य और इस पूजा के फल

 नवरात्रि का तीसरा दिन मां चंद्रघंटा को समर्पित है। इस दिन भक्त देवी के इस स्वरूप की विधिवत पूजा-अर्चना करते हैं। शास्त्रों में मां चंद्रघंटा को कल्याण और शांति प्रदान करने वाला माना गया है। देवी दुर्गा के इस स्वरूप में माता के मस्तक पर घंटे के आकार का आधा चंद्रमा है। इसी वजह से मां को चंद्रघंटा कहा जाता है। मां चंद्रघंटा की पूजा करने से ना केवल रोगों से मुक्ति मिल सकती है, बल्कि मां प्रसन्न होकर सभी कष्टों को हर लेती हैं। शारदीय नवरात्रि का तीसरा दिन 17 अक्टूबर, मंगलवार को है। ऐसे में इसी मां चंद्रघंटा की पूजा-अर्चना होगी। आइए जानते हैं चंद्रघंटा की कथा।

मां चंद्रघंटा की कथा


पौराणिक कथा के मुताबिक, माता दुर्गा ने मां चंद्रघंटा का अवतार तब लिया था जब दैत्यों का आतंक बढ़ने लगा था। उस समय महिषासुर का भयंकर युद्ध देवताओं से चल रहा था। दरअसल महिषासुर देवराज इंद्र के सिंहासन को प्राप्त करना चाहता था। वह स्वर्गलोक पर राज करने की इच्छा पूरी करने के लिए यह युद्ध कर रहा था। जब देवताओं को उसकी इस इच्छा का पता चला तो वे परेशान हो गए और भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश के सामने पहुंचे। ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने देवताओं की बात सुनकर क्रोध प्रकट किया और क्रोध आने पर उन तीनों के मुख से ऊर्जा निकली। उस ऊर्जा से एक देवी अवतरित हुईं। उस देवी को भगवान शंकर ने अपना त्रिशूल, भगवान विष्णु ने अपना चक्र, इंद्र ने अपना घंटा, सूर्य ने अपना तेज और तलवार और सिंह प्रदान किया। इसके बाद मां चंद्रघंटा ने महिषासुर का वध कर देवताओं की रक्षा की। शास्त्रों में मां चंद्रघंटा को लेकर यह कथा प्रचिलत है।

 नवरात्रि के तीसरे दिन करें मां चंद्रघंटा की पूजा, जानें मंत्र और आरती


मां चंद्रघंटा स्तुति मंत्र

या देवी सर्वभूतेषु मां चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमो नमः।

पिंडजप्रवरारूढा, चंडकोपास्त्रकैर्युता।

प्रसादं तनुते मह्यं, चंद्रघंटेति विश्रुता।।

नवरात्र के दूसरा दिन आज होती है माँ दूर्गा के दुसरे स्वरुप माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा,जानिए पूजा विधि

नवरात्र के दूसरे दिन माँ दूर्गा के दुसरे स्वरुप माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना की जाती है। साधक इस दिन अपने मन को माँ के चरणों में लगाते हैं।

 ब्रह्म का अर्थ है,, तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली। इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएँ हाथ में कमण्डल रहता है।

पूजन विधि.....


नवरात्र के दूसरे दिन सुबह शुद्ध जल से स्नान कर भक्त , मां दुर्गा के दूसरे स्वरूप मां ब्रह्मचारिणी की पूजा के लिए उनका चित्र या मूर्ति पूजा के स्थान पर चौकी पर स्थापित करें। उस पर फूल चढ़ाएं दीपक जलाएं और नैवेद्य अर्पण करें। इसके बाद मां दुर्गा की कहानी पढ़ें और नीचे लिखे इस मंत्र का 108 बार जप करें।

ब्रह्मचारिणी की मंत्र....


या देवी सर्वभू‍तेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

दधाना कर पद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू।

देवी प्रसीदतु मई ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।

मां ब्रह्मचारिणी को पसंद है ये भोग...

देवी मां ब्रह्मचारिणी को गुड़हल और कमल का फूल बेहद पसंद है और इसलिए इनकी पूजा के दौरान इन्हीं फूलों को देवी मां के चरणों में अर्पित करें।

देवी ब्रह्मचारिणी कथा...


माता ब्रह्मचारिणी हिमालय और मैना की पुत्री हैं। इन्होंने देवर्षि नारद जी के कहने पर ,भगवान शंकर की ऐसी कठोर तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने इन्हें मनोवांछित वरदान दिया। जिसके फलस्वरूप यह देवी भगवान भोले नाथ की वामिनी अर्थात पत्नी बनी। जो व्यक्ति अध्यात्म और आत्मिक आनंद की कामना रखते हैं । उन्हें इस देवी की पूजा से सहज यह सब प्राप्त होता है।

देवी का दूसरा स्वरूप योग साधक को साधना के केन्द्र के उस सूक्ष्मतम अंश से साक्षात्कार करा देता है । जिसके पश्चात व्यक्ति की ऐन्द्रियां अपने नियंत्रण में रहती और साधक मोक्ष का भागी बनता है। इस देवी की प्रतिमा की पंचोपचार सहित पूजा करके जो साधक स्वाधिष्ठान चक्र में मन को स्थापित करता है । उसकी साधना सफल हो जाती है और व्यक्ति की कुण्डलनी शक्ति जागृत हो जाती है। जो व्यक्ति भक्ति भाव एवं श्रद्धा से , नवरात्र के दूसरे दिन मॉ ब्रह्मचारिणी की पूजा करते हैं। उन्हें सुख, आरोग्य की प्राप्ति होती है और प्रसन्न रहता है। उसे किसी प्रकार का भय नहीं सताता है।

जय माँ ब्रह्मचारिणी...जय माता दी

आज का पंचांग- 16 अक्टूबर 2023,जानिए पंचांग के अनुसार आज का मुहूर्त और तिथि

विक्रम संवत- 2080, अनला

शक सम्वत- 1945, शोभकृत

पूर्णिमांत- आश्विन

अमांत- भाद्रपद

तिथि

कृष्ण पक्ष द्वितीया - 01:13 ए एम, अक्टूबर 17 तक

नक्षत्र

स्वाती - 07:35 पी एम तक

योग

विष्कम्भ - 10:04 ए एम तक

सूर्य और चंद्रमा का समय

सूर्योदय- 6:21 ए एम

सूर्यास्त- 5:51 पी एम

चन्द्रास्त- 7:39 ए एम

चन्द्रोदय- 6:45 पी एम

अशुभ काल

राहू- 07:48 ए एम से 09:14 ए एम

यम गण्ड- 10:40 ए एम से 12:07 पी एम

गुलिक- 10:40 ए एम से 12:07 पी एम

दुर्मुहूर्त- 12:29 पी एम से 01:15 पी एम, 02:47 पी एम से 03:33 पी एम

शुभ काल

अभिजीत मुहूर्त- 11:44 ए एम से 12:30 पी एम

ब्रह्म मुहूर्त- 04:41 ए एम से 05:31 ए एम

गोधूलि मुहूर्त- 5:51 पी एम से 06:16 पी एम

आज का राशिफल,16 अक्टूबर2023, जानिए राशि के अनुसार कैसा रहेगा आप का दिन...?

मेष राशि- पठन-पाठन में रुचि रहेगी। शैक्षिक एवं शोधादि कार्यों में सफलता मिलेगी, परन्तु भागदौड़ भी अधिक रहेगी। शासन-सत्ता का सहयोग मिलेगा। सेहत का ध्यान रखें। मानसिक शान्ति के लिए प्रयास करें। खर्चों की अधिकता रहेगी। परिवार का साथ मिलेगा। नौकरी में स्थान परिवर्तन की सम्भावना बन रही है। माता को स्वास्थ्‍य विकार हो सकते हैं। रहन-सहन कष्टमय रहेगा। कार्यक्षेत्र में परिश्रम की अधिकता रहेगी।

वृष राशि- मानसिक शान्ति रहेगी। कारोबार में सुधार होगा, परन्तु भागदौड़ भी अधिक रहेगी। स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहें। परिवार का साथ मिलेगा। खर्च अधिक रहेंगे। वाणी में मधुरता रहेगी। आलस्य अधिक हो सकता है। जीवनसाथी के स्वास्थ्य का ध्यान रखें। घर में धार्मिक कार्य होंगे। निराशा एवं असन्तोष के भाव रहेंगे। क्रोध एवं आवेश की अधिकता भी हो सकती है। किसी धार्मिक स्थान की यात्रा पर जा सकते हैं। सम्मान की प्राप्ति‍ होगी।

मिथुन राशि- मानसिक शान्ति रहेगी, परन्तु संयत रहें। क्रोध से बचें। शैक्षिक कार्यों पर ध्यान दें। व्यवधान आ सकते है। विदेश यात्रा पर भी जा सकते हैं। नौकरी में परिवर्तन के योग बन रहे हैं। तरक्की के अवसर मिलेंगे। परिवार की समस्याएं परेशान कर सकती हैं। कार्यक्षेत्र में कठिनाइयां आ सकती हैं। अफसरों का सहयोग मिलेगा। लंबे समय से रुके हुए काम बनेंगे। सुस्वादु खानपान में रुचि बढ़ेगी। भाइयों का सहयोग मिलेगा।

कर्क राशि- आत्मविश्वास में कमी आएगी। धर्म के प्रति श्रद्धाभाव बढ़ेगा। सन्तान के स्वास्थ्य का ध्यान रखें। चिकित्सीय खर्च बढ़ सकता है। परिवार का साथ मिलेगा। मन प्रसन्न रहेगा। नौकरी में तरक्की के योग बन रहे हैं। किसी दूसरे स्थान पर जाना पड़ सकता है। कार्यक्षेत्र में सुख-शान्ति रहेगी। सन्तान को स्वास्थ्‍य विकार हो सकते हैं। नौकरी में कार्यक्षेत्र में परिवर्तन के योग बन रहे हैं। माता का सानिध्य मिलेगा। लाभ के नए अवसर मिलेंगे।

सिंह राशि- संयत रहें। क्रोध एवं आवेश के अतिरेक से बचें। नौकरी में कार्यक्षेत्र में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। परिश्रम अधिक रहेगा। परिवार का साथ रहेगा। मन अशान्त हो सकता है। शैक्षिक कार्यों के प्रति सचेत रहें। आय में वृद्धि होगी। किसी धार्मिक स्थान की यात्रा पर जा सकते हैं। पैतृक सम्पत्ति को लेकर विवाद की स्थिति बन सकती है। व्यर्थ की भागदौड़ रहेगी। रहन-सहन कष्टमय रहेगा। धैर्यशीलता में कमी रहेगी।

कन्या राशि- परिवार के स्वास्थ्य का ध्यान रखें। रहन-सहन अव्यवस्थित रहेगा। लेखनादि-बौद्धिक कार्यों में व्यस्तता रहेगी। आय में वृद्धि हो सकती है। मन में शान्ति एवं प्रसन्नता रहेगी। परिवार के साथ यात्रा पर जाना हो सकता है। यात्रा सुखदायक रहेगी। खर्च अधिक रहेंगे। स्वभाव में चिड़चिड़ापन रहेगा। जीवनसाथी से आपसी मतभेद हो सकते हैं। पिता का सहयोग मिलेगा। स्वास्थ्‍य के प्रति सतर्क रहें। माता से धन की प्राप्ति होगी।

तुला राशि- आत्मविश्वास भरपूर रहेगा। वाणी में मधुरता रहेगी। नौकरी में कार्यक्षेत्र में बदलाव हो सकता है। परिश्रम अधिक रहेगा। रहन-सहन अव्यवस्थित रहेगा। कारोबार की स्थिति में सुधार होगा। पारिवारिक जीवन सुखमय रहेगा। किसी मित्र के सहयोग से रोजगार के अवसर मिल सकते हैं। बातचीत में संयत रहें। संचित धन में कमी आ सकती है। किसी राजनेता से भेंट हो सकती है। लंबी यात्रा पर जाने के योग बन रहे हैं।

वृश्चिक राशि- मन प्रसन्न तो रहेगा, परन्तु आत्मविश्वास में कमी रहेगी। बातचीत में संयत रहें। नौकरी में अफसरों का सहयोग मिलेगा, परन्तु कार्यक्षेत्र में वृद्धि हो सकती है। धैर्यशीलता बनाए रखने के प्रयास करें। नौकरी में कोई अतिरिक्त जिम्मेदारी मिल सकती है। परिश्रम की अधिकता रहेगी। वाणी में सौम्यता आएगी। नौकरी में परिवर्तन की सम्भावना बन रही है। सेहत का ध्यान रखें। आय में कठिनाइयां आ सकती हैं।

धनु राशि- किसी पैतृक सम्पत्ति की प्राप्ति हो सकती है। नौकरी में विदेश यात्रा के अवसर मिल सकते हैं। बातचीत में सन्तुलित रहें। किसी पुराने मित्र से पुनःसम्पर्क हो सकते हैं। दाम्पत्य सुख में वृद्धि हो सकती है। आशा-निराशा के मिश्रित भाव मन में रहेंगे। कार्यक्षेत्र का विस्तार हो सकता है। आय में वृद्धि भी हो सकती है। पारिवारिक समस्याएं बढ़ सकती हैं। भाई-बहनों का साथ मिलेगा। कारोबार में कठिनाइयां आ सकती हैं। सचेत रहें।

मकर राशि- धैर्यशीलता बनाये रखने के प्रयास करें। स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहें। कुटुम्ब-परिवार में धार्मिक कार्य हो सकते हैं। धन आगमन के नए स्रोत बनेंगे। मानसिक शान्ति के लिए किसी धार्मिक स्थान की यात्रा पर जा सकते हैं। कारोबार की स्थिति में सुधार होगा। सेहत का ध्यान रखें। कुछ पुराने मित्रों से भेंट हो सकती है। किसी मित्र के सहयोग से नौकरी के अवसर मिल सकते हैं। सुस्वादु खानपान में रुचि रहेगी।

कुंभ राशि- आत्मविश्वास में कमी रहेगी। आत्मसंयत रहें। क्रोध से बचें। नौकरी में कार्यक्षेत्र में परिवर्तन की सम्भावना बन रही है। परिश्रम अधिक रहेगा। पिता का सानिध्य मिलेगा। मन प्रसन्न रहेगा। बातचीत में सन्तुलित रहें। शैक्षिक कार्यों के लिए विदेश प्रवास हो सकता है। क्रोध के अतिरेक से बचें। परिवार में आपसी मतभेद बढ़ सकते हैं। रहन-सहन में असहज रहेंगे। मित्रों का सहयोग मिलेगा। सन्तान को स्वास्थ्‍य विकार हो सकते हैं।

मीन राशि- नौकरी में अफसरों से सद्भाव बनाकर रखें। कोई अतिरिक्त जिम्मेदारी मिल सकती है। परिश्रम अधिक हो सकता है। वाणी का प्रभाव बढ़ेगा। अपनी भावनाओं को वश में रखें। शैक्षिक एवं शोधादि कार्यों के सुखद परिणाम मिलेंगे। सेहत का ध्यान रखें। कार्यों के प्रति जोश एवं उत्साह से रहेगा। स्वभाव में चिड़चिड़ापन भी हो सकता है। कुटुम्ब-परिवार में धार्मिक संगीत के कार्यक्रम हो सकते हैं। धैर्यशीलता बनाये रखने के प्रयास करें।

शारदीय नवरात्रःपहले दिन हो रही शैलपुत्री स्वरूप की पूजा, जानें क्या है कथा

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नवरात्रि, देवी दुर्गा को समर्पित नौ दिनों तक चलने वाला त्योहार है। इन दिनों के दौरान मां दुर्गा के नौ अलग-अलग रूपों की पूजा होती है। प्राचीन ग्रंथों के अनुसार दुर्गा के नौ रूपों की पूजा होती आ रही है। इसमें महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती, योगमाया, रक्तदंतिका, शाकुंभरी देवी, दुर्गा, भ्रामरी देवी व चंडिका प्रमुख हैं। इन नौ रूपों को शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री नामों से जाना जाता है। 

शारदीय नवरात्रि पर्व आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से प्रारंभ होता है और नवमी तिथि तक चलता है। नवरात्र के पहले दिन घटस्थापना का विधान है। इस दिन मां दुर्गा के पहले स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। 

ऐसा है मां शैलपुत्री का स्वरूप

शैलपुत्री का संस्कृत में अर्थ होता है ‘पर्वत की बेटी’। मां शैलपुत्री के स्वरूप की बात करें तो मां के माथे पर अर्ध चंद्र स्थापित है। मां के दाहिने हाथ में त्रिशूल है और बाएं हाथ में कमल का फूल है। वे नंदी बैल की सवारी करती हैं।

मां शैलपुत्री से जुड़ी पौराणिक कथा

मां दुर्गा अपने पहले स्वरुप में 'शैलपुत्री' के नाम से पूजी जाती हैं। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। अपने पूर्व जन्म में ये प्रजापति दक्ष की कन्या के रूप में उत्पन्न हुई थीं तब इनका नाम सती था। इनका विवाह भगवान शंकर जी से हुआ था। एक बार प्रजापति दक्ष ने बहुत बड़ा यज्ञ किया जिसमें उन्होंने सारे देवताओं को अपना-अपना यज्ञ भाग प्राप्त करने के लिए निमंत्रित किया किन्तु शंकर जी को उन्होंने इस यज्ञ में आमंत्रित नहीं किया। 

देवी सती ने जब सुना कि हमारे पिता एक अत्यंत विशाल यज्ञ का अनुष्ठान कर रहे हैं,तब वहां जाने के लिए उनका मन विकल हो उठा। अपनी यह इच्छा उन्होंने भगवान शिव को बताई। भगवान शिव ने कहा-''प्रजापति दक्ष किसी कारणवश हमसे रुष्ट हैं,अपने यज्ञ में उन्होंने सारे देवताओं को निमंत्रित किया है किन्तु हमें जान-बूझकर नहीं बुलाया है। ऐसी स्थिति में तुम्हारा वहां जाना किसी प्रकार भी श्रेयस्कर नहीं होगा।'' शंकर जी के इस उपदेश से देवी सती का मन बहुत दुखी हुआ। पिता का यज्ञ देखने वहां जाकर माता और बहनों से मिलने की उनकी व्यग्रता किसी प्रकार भी कम न हो सकी। उनका प्रबल आग्रह देखकर शिवजी ने उन्हें वहां जाने की अनुमति दे दी। 

सती ने खुद को योगाग्नि में खुद को भस्म कर दिया

सती ने पिता के घर पहुंचकर देखा कि कोई भी उनसे आदर और प्रेम से बातचीत नहीं कर रहा है। केवल उनकी माता ने ही स्नेह से उन्हें गले लगाया। परिजनों के इस व्यवहार से देवी सती को बहुत क्लेश पहुंचा। उन्होंने यह भी देखा कि वहां भगवान शिव के प्रति तिरस्कार का भाव भरा हुआ है,दक्ष ने उनके प्रति कुछ अपमानजनक वचन भी कहे। यह सब देखकर सती का ह्रदय ग्लानि और क्रोध से संतप्त हो उठा। उन्होंने सोचा कि भगवान शंकर जी की बात न मानकर यहाँ आकर मैंने बहुत बड़ी गलती की है।वह अपने पति भगवान शिव के इस अपमान को सहन न कर सकीं, उन्होंने अपने उस रूप को तत्काल वहीं योगाग्नि द्वारा जलाकर भस्म कर दिया।

शैलपुत्री के रूप में फिर शिवजी की अर्द्धांगिनी बनीं

इस दारुणं-दुखद घटना को सुनकर शंकर जी ने क्रुद्ध हो अपने गणों को भेजकर दक्ष के उस यज्ञ का पूर्णतः विध्वंस करा दिया। सती ने योगाग्नि द्वारा अपने शरीर को भस्म कर अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया। इस बार वह शैलपुत्री नाम से विख्यात हुईं। पार्वती,हेमवती भी उन्हीं के नाम हैं। इस जन्म में भी शैलपुत्री देवी का विवाह भी शंकर जी से ही हुआ।

शारदीय नवरात्र का पहला दिन आज, इस बार हाथी पर सवार होकर आएंगी मां

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हिन्दुओं का सबसे बड़ा पर्व शारदीय नवरात्रि आज यानि 15 अक्टूबर से शुरू हो गया है। नवरात्रि के 9 दिनों में मां दुर्गा के 9 स्वरूपों की पूजा की जाएगी। आज शुभ मुहूर्त में कलश स्थापना कर दुर्गा मां का आवाहन किया जाएगा और फिर बेहद श्रद्धा भाव से पूरे 9 दिनों तक उनके 9 अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाएगी।

देवी भागवत पुराण में बताया गया है कि महालया के दिन जब पितृगण धरती से लौटते हैं तब मां दुर्गा अपने परिवार और गणों के साथ पृथ्वी पर आती हैं। जिस दिन नवरात्र का आरंभ होता है उस दिन के हिसाब से माता हर बार अलग-अलग वाहनों से आती हैं। माता का अलग-अलग वाहनों से आना भविष्य के लिए संकेत भी होता है जिससे पता चलता है कि आने वाला साल कैसा रहेगा।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, इस बार मां दुर्गा हाथी पर सवार होकर अपने भक्तों के बीच आएंगी। मां दुर्गा का हाथी पर सवार होकर आना बहुत शुभ माना जा रहा है। हाथी पर माता का आगमन इस बात की ओर संकेत कर रहा है कि इस साल खूब अच्छी वर्षा होगी और खेती अच्छी होगी। देश में अन्न धन का भंडार बढ़ेगा। मान्यताओं के अनुसार जब मां दुर्गा हाथी पर सवार होकर आती है तो गरीबी को दूर कर देती हैं।

मां का वाहन हाथी ज्ञान व समृद्धि का प्रतीक है। इससे देश में आर्थिक समृद्धि आयेगी। साथ ही ज्ञान की वृद्धि होगी। ऐसे में आने वाला यह साल बहुत ही शुभ कार्य होगा।

आज से नवरात्रि प्रारम्भ,आज है कलश और घट स्थापना,बहुत कम समय के लिए है मुहूर्त,जानिए पूजा विधि

 आज से नवरात्रि शुरु हो गया है। मां दुर्गा आज हर घर हाथी पर सवार होकर पधारेंगी। इस बार माता की सवारी अपने साथ सुख-समृद्धि साथ ला रही है। 

इन नौ दिनों के त्योहार में मैया के 9 स्वरूपों की पूजा करने का विशेष महत्व है। नवरात्रि में कलश और घट स्थापना करना महत्वपूर्ण और पुण्यदायक माना जाता है। इसलिए आइए जानते हैं नवरात्रि कलश स्थापना का 

 कलश स्थापना की मुहूर्त और पूजा की विधि-

नवरात्रि शुभ मुहूर्त

कलश स्थापना का मुहूर्त- 15 अक्टूबर, 11:48 मिनट से दोपहर 12:36 तक 

घटस्थापना तिथि - रविवार 15 अक्टूबर 2023

घटस्थापना मुहूर्त- प्रातः 06:30 मिनट से प्रातः 08: 47 मिनट तक

अभिजीत मुहूर्त- सुबह 11:48 मिनट से दोपहर 12:36 मिनट तक रहेगा

घटस्थापना का महत्व

नवरात्रि में घट स्थापना का बड़ा महत्व है। कलश में हल्दी की गांठ, सुपारी, दूर्वा, पांच प्रकार के पत्तों से कलश को सजाया जाता है। कलश के नीचे बालू की वेदी बनाकर जौ बोए जाते हैं। इसके साथ ही दुर्गा सप्तशती व दुर्गा चालीसा का पाठ किया जाता है।

कलश स्थापना की सही विधि

सबसे पहले पूजा स्थान की गंगाजल से शुद्धि करें। अब हल्दी से अष्टदल बना लें। कलश स्थापना के लिए मिट्टी के पात्र में मिट्टी डालकर उसमें जौ के बीज बोएं। अब एक मिट्टी या तांबे के लोटे पर रोली से स्वास्तिक बनाएं। लोटे के ऊपरी हिस्से में मौली बांधें। अब इस लोटे में साफ पानी भरकर उसमें कुछ बूंदें गंगाजल की मिलाएं। अब इस कलश के पानी में सिक्का, हल्दी, सुपारी, अक्षत, पान, फूल और इलायची डालें। फिर पांच प्रकार के पत्ते रखें और कलश को ढक दें। इसके बाद लाल चुनरी में नारियल लपेट कलश के ऊपर रख दें।

पूजा-विधि

1- सुबह उठकर स्नान करें और मंदिर साफ करें 

2- दुर्गा माता का गंगाजल से अभिषेक करें।

3- मैया को अक्षत, लाल चंदन, चुनरी और लाल पुष्प अर्पित करें।

4- सभी देवी-देवताओं का जलाभिषेक कर फल, फूल और तिलक लगाएं। 

5- घट और कलश स्थापित करें। 

6- प्रसाद के रूप में फल और मिठाई चढ़ाएं।

7- घर के मंदिर में धूपबत्ती और घी का दीपक जलाएं 

8- दुर्गा सप्तशती और दुर्गा चालीसा का पाठ करें 

9- पान के पत्ते पर कपूर और लौंग रख माता की आरती करें।

10- अंत में क्षमा प्रार्थना करें।