कलम के जादूगर और हिंदी साहित्य के महान कथाकार मुंशी प्रेमचंद की आज पुण्य तिथि, आइये जानते हैं उनके रचनाओं से संग्रहित उनके महान विचार ...!
दिल्ली: 8 अक्टूबर आज हिंदी साहित्य के प्रमुख कहानीकार और कलम के जादूगर कहे जाने वाले मुंशी प्रेमचंद की पुण्यतिथि है। आज ही के दिन वनारस में उनका निधन हुआ था।
वे हिंदी और उर्दू के महानतम लेखकों में शुमार थे। मुंशी प्रेमचंद को शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने उपन्यास सम्राट कहकर संबोधित किया था। प्रेमचंद ने हिंदी कहानी और उपन्यास की एक ऐसी परंपरा का विकास किया, जिसने पूरी सदी के साहित्य का मार्गदर्शन किया है।
साहित्य की यथार्थवादी परंपरा की नींव रखने वाले प्रेमचंद का लेखन हिंदी साहित्य की एक ऐसी विरासत है, जो हिंदी की विकास यात्रा को संपूर्णता प्रदान करती है।
मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित गबन, गोदान, निर्मला, मानसरोवर, कफन आदि कई किताबें बहुत प्रसिद्ध है। जिसमे उन्होंने समाज के उस तस्बीर को सामने रखा है जिसको पढ़कर हर आदमी को महसूस होता है कि वह उसकी अपनी कहानी है। अपने उपन्यास में वे ग्रामीण परिवेश, सामाजिक ताना बाना, महाजन की शोषण, कृषकों की पीड़ा और पारिवरिक जटिल रिश्तों के उस यथार्थ तस्बीर को प्रस्तुत किया है जिसको पढ़ने के बाद हर पाठक एक ऐसे दुनिया में खो जाता है जहां वह हर पात्रों को अपने आंखों जे सामने महसूस करता है।
मुंशी प्रेमचंद ने कहानी, नाटक, उपन्यास के साथ हिंदी साहित्य के अन्य विधाओं में भी लिखा, वे बहुमुखी प्रतिभा के भी धनी थे। जीवन भर लिखते रहे, इस दौरान वे कई विकट परिस्थितियों से गुजड़े लेकिन साहित्य उनके जीवन के एक साधना था।
मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को हुआ था। उनकी मृत्यु 08 अक्टूबर 1936 को हुई। आज मुंशी प्रेमचंद जी की पुण्यतिथि पर जानते हैं उनके अनमोल विचार। उनके ये विचार आज भी लोगों के लिए प्रेरणास्त्रोत है।
1. आशा उत्साह की जननी है। आशा में तेज है, बल है, जीवन है। आशा ही संसार की संचालक शक्ति है।
2. आदमी का सबसे बड़ा शत्रु उसका अहंकार है।
3. आत्मसम्मान की रक्षा हमारा सबसे पहला धर्म ओर अधिकार है।
4. निराशा संभव को अससंभव बना देती है।
5. सोने और खाने का नाम जिंदगी नहीं है, आगे बढ़ते रहने की लगन का नाम ही जिंदगी हैं।
6. कुल की प्रतिष्ठा भी सदव्यवहार और विनम्रता से होती है, हेकड़ी और रौब दिखाने से नहीं।
7. आकाश में उड़ने वाले पंछी को भी अपना घर याद आता है।
8. अन्याय होने पर चुप रहना, अन्याय करने के ही समान है।
9. दौलतमंद आदमी को जो सम्मान मिलता है, वह उसका नहीं, उसकी दौलत का सम्मान है।
10. जीवन का सुख दूसरों को सुखी करने में है, उनको लूटने में नहीं।
11. न्याय और नीति सब लक्ष्मी के ही खिलौने हैं। इन्हें वह जैसे चाहती है, नचाती है।
12. संतान वह सबसे कठिन परीक्षा है जो ईश्वर ने मनुष्य को परखने के लिए गढ़ी है।
13. आलोचना और दूसरों की बुराइयां करने में बहुत फर्क है। आलोचना करीब लाती है और बुराई दूर करती है।
14. क्रोध मौन सहन नहीं कर सकता हैं। मौन के आगे क्रोध की शक्ति असफल हो जाती है।
15. प्रेम एक बीज है, जो एक बार जमकर फिर बड़ी मुश्किल से उखड़ता है।
16. स्वार्थ में मनुष्य बावला हो जाता है।
17. कार्यकुशल व्यक्ति की सभी जगह जरूरत पड़ती है।
18. कुल की प्रतिष्ठा भी विनम्रता और सद्व्यवहार से होती है, हेकड़ी और रुआब दिखाने से नहीं।
19. विलासियों द्वारा देश का उद्धार नहीं हो सकता। उसके लिए सच्चा त्यागी होना पड़ेगा।
20. घर सेवा की सीढ़ी का पहला डंडा है। इसे छोड़कर तुम ऊपर नहीं जा सकते।
21. जीवन का वास्तविक सुख, दूसरों को सुख देने में है; उनका सुख छीनने में नहीं।
22. उपहास और विरोध तो किसी भी सुधारक के लिए पुरस्कार जैसे हैं।
23. अधिकार में स्वयं एक आनंद है, जो उपयोगिता की परवाह नहीं करता।
24. धन खोकर अगर हम अपनी आत्मा को पा सकें तो यह कोई महंगा सौदा नहीं।
25. गलती करना उतना गलत नहीं, जितना उसे दोहराना है।
Oct 08 2023, 16:19