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उत्तर प्रदेश के मुख्‍यमंत्री योगी आद‍ित्‍यनाथ ने सीमा हैदर मामले में दी प्रत‍िक्रि‍या, बोले, दो देशों का मामला, सुरक्षा एजेसियों की रिपोर्ट के ब

उत्तर प्रदेश के मुख्‍यमंत्री योगी आद‍ित्‍यनाथ ने सीमा हैदर मामले में प्रत‍िक्रि‍या दी है। समाचार एजेंसी एएनआई को दिए एक इंटरव्यू में सीएम योगी से पूछा गया, क्‍या सीमा हैदर का मामला र‍िवर्स लव ज‍िहाद है? इस सवाल के जवाब में उन्‍होंने कहा, ‘दो देशों से जुड़ा हुआ मामला है। सुरक्षा एजेंसियां इस मामले को देख रही हैं। उनके द्वारा जो भी रिपोर्ट दी जाएगी, उसके आधार पर विचार किया जाएगा।’

सच‍िन के प्‍यार में भारत आई सीमा

पाकिस्तान के कराची की रहने वाली सीमा हैदर पब्जी गेम खेलने के दौरान नोएडा के सचिन के संपर्क में आ गई थी। दोनों में प्यार हो गया था। अपने प्यार को पाने के लिए सीमा हैदर अवैध तरीके से नेपाल के रास्ते भारत की सीमा में प्रवेश करके रबूपुरा आकर रहने लगी।

पुल‍िस ने की थी पूछताछ

पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार कर जेल भेज द‍िया था। हालांक‍ि, दो दिन बाद ही कोर्ट ने दोनों को जमानत पर रिहा कर दिया। यूपी एटीएस ने भी सीमा और सचिन के साथ उसके पिता नेत्रपाल से पूछताछ की थी।

सीमा ने कहा- सच‍िन के साथ ही रहूंगी

सीमा का कहना है क‍ि वह स‍िर्फ सच‍िन से प्‍यार की खाति‍र भारत आई है और अब वह यहीं रहेगी। नेपाल के रास्ते भारत आई सीमा को अभी भारतीय नागरिकता मिलने पर फैसला होना बाकी है। इससे पहले ही सीमा ने अपने आप को भारतीय मानना शुरू कर दिया है। सीमा ने ‘मेरा भारत महान’ का बैज लगाकर खुद का वीडियो इंस्टग्राम पर वायरल किया है, जिसके बैकग्राउंड में देश भक्ति गीत बज रहा है।

इंदिरा गांधी के आरएसएस के कई नेताओं के साथ थे अच्छे संबंध, आपातकाल में भी मिला था साथ, नई किताब में दावा

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पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के कई नेताओं से अच्छे संबंध थे लेकिन उन्होंने सतर्कतापूर्ण संगठन से व्यक्तिगत दूरी रखी। आपातकाल के दौरान संघ ने न सिर्फ इंदिरा का साथ दिया, बल्कि 1980 में उन्हें सत्ता में लौटने में मदद भी की। पत्रकार नीरजा चौधरी की नई किताब 'हाउ प्राइम मिनिस्टर्स डिसाइड' में यह दावे किए गए हैं।

पत्रकार नीरजा चौधरी ने अपनी किताब में पूर्व प्रधानमंत्रियों के काम करने के तरीके का विश्लेषण उनके ऐतिहासिक महत्व के छह फैसलों के आधार पर किया है। इन छह निर्णयों में इंदिरा गांधी की आपातकाल के बाद 1980 में सत्ता में वापसी की रणनीति, शाह बानो मामला, मंडल आयोग, बाबरी मस्जिद की घटना, अटल बिहारी वाजपेयी की परमाणु परीक्षण की अनुमति और मनमोहन सिंह के कार्यकाल में भारत-अमेरिका परमाणु समझौता शामिल है।

आरएसएस ने पूरे आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी के साथ मित्रवत संबंध रखा

किताब में दावा किया गया है कि आपातकाल के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने इंदिरा गांधी को प्रस्ताव दिया था।किताब में दावा किया गया है कि आरएसएस ने पूरे आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी के साथ मित्रवत संबंध रखा। चौधरी लिखती हैं, ‘आरएसएस प्रमुख बालासाहेब देवरस ने कई बार उन्हें पत्र लिखा। कुछ आरएसएस नेताओं ने कपिल मोहन के जरिये संजय गांधी से संपर्क किया। अब 1977 में उन्हें यह देखना है कि कैसे प्रतिक्रिया करनी है लेकिन उन्हें बहुत सतर्क होकर काम करना होगा।

इंदिरा मुसलमानों की नाराजगी से बचने के लिए राजनीति का हिंदूकरण करना चाहती

आपातकाल के दौर में आरएसएस तीसरे प्रमुख बालासाहेब देवरस ने उन्हें कई बार लिखा। कई संघ लीडर कपिल मोहन के जरिए संजय गांधी से संपर्क करते थे। नीरजा के अनुसार इंदिरा को यह अंदेशा था कि मुसलमान कांग्रेस से नाराज हो सकते हैं, इसी वजह से वे अपनी राजनीति का हिंदूकरण करना चाहती थीं। इस काम में आरएसएस से थोड़ा सा समर्थन बल्कि उसका तटस्थ रुख भी उनके लिए बड़ा मददगार साबित होता। साल 1980 में जब अटल बिहारी वाजपेयी अपनी सेकुलर छवि बनाने में जुटे थे, इंदिरा गांधी कांग्रेस का हिंदूकरण कर रहीं थीं। पुस्तक में बाली का कथन है कि इंदिरा गांधी मंदिरों में बहुत जाने लगी थीं, जिसने संघ के लीडरों को प्रभावित किया। बालासाहेब देवरस ने तो एक बार टिप्पणी भी की कि 'इंदिरा बहुत बड़ी हिंदू हैं।' बाली के अनुसार देवरस और बाकी संघ लीडर इंदिरा में हिंदुओं का नेता देखते थे।

आरएसएस ने 1980 में 353 सीटों के साथ सत्ता में लौटने में मदद की

पुस्तक में इंदिरा के करीबी रहे अनिल बाली के हवाले से दावा किया गया कि संघ ने उन्हें 1980 में 353 सीटों की विशाल जीत के साथ सत्ता में लौटने में मदद की, वे खुद इतनी सीटें नहीं जीत सकती थीं। वह जानती थी कि आरएसएस ने उसका समर्थन किया है, लेकिन उसने कभी भी इसे सार्वजनिक रूप से स्वीकार नहीं किया। वह निजी तौर पर स्वीकार करती थी कि अगर आरएसएस ने उसे समर्थन नहीं दिया होता, तो वह 353 सीटें नहीं जीत पाती, जो कि उसके सुनहरे दिनों में जीती गई सीटों से एक अधिक है।

लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा की तैयारियां तेज, बसपा सुप्रीमो मायावती से गठबंधन और सीटों के तालमेल का फार्मूला भी तय

अगले लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा की तैयारियां तेज हो चुकी हैं। यूपी में भाजपा ने क्लीन स्वीप की रणनीति बनाई है। पिछले कई दिनों से भाजपा और जयंत चौधरी की आरएलडी के बीच गठबंधन की चर्चा चल रही थी। अब दोनों तरफ से इसे लेकर साफ इनकार कर दिया गया है। भाजपा को आरएलडी की तुलना में मायावती की बसपा ज्यादा मुफीद लग रही है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार बसपा से गठबंधन और सीटों के तालमेल का फार्मूला भी तय कर लिया गया है। भाजपा नेताओं का मानना है कि आरएलडी से उतना फायदा नहीं होगा जितना बसपा से गठबंधन होने पर मिल सकता है। बसपा प्रमुख मायावती फिलहाल विपक्षी दलों के गठबंधन इंडिया और भाजपा के गठबंधन एनडीए दोनों से दूरी बनाकर चल रही हैं।

पूर्वी यूपी में भाजपा ने सुभासपा प्रमुख ओपी राजभर और दारा सिंह चौहान को अपने साथ लाकर पहले ही अपनी स्थिति मजूबत कर ली है। अब उसके निशाने पर पश्चिमी यूपी है। भाजपा नेताओं का मानना है कि आरएलडी के जाट वोट पहले से ही बीजेपी के साथ हैं। विधानसभा से लेकर निकाय चुनाव में जाट वोट भाजपा को मिलते रहे हैं।

एक तीर से दो निशाने की तैयारी में बीजेपी

बसपा से गठबंधन कर भाजपा एक तीर से दो निशाने मारने की कोशिश में है। पिछले चुनाव में बसपा ने पश्चिमी यूपी की कई सीटों पर जोरदार उपस्थिति दर्ज की थी। इसका लाभ बसपा और भाजपा दोनों को मिलेगा। बसपा से गठबंधन हुआ तो सपा के साथ आरएलडी का भी खेल बिगड़ जाएगा। बसपा के साथ सीटों का तालमेल भी भाजपा में तय कर लिया गया है। पिछले लोकसभा चुनाव में बसपा को उसकी जीती हुई सीटें देने पर पार्टी नेता सहमत हैं। बसपा ने पिछले लोकसभा चुनाव में दस सीटें जीती थीं।

भाजपा को क्यों दिख रही उम्मीदें

अभी मायावती या बसपा की तरफ से इस बारे में हालांकि कोई बयान तो नहीं आया है लेकिन भाजपा को उम्मीद है कि गठबंधन हो जाएगा। भाजपा नेताओं का मानना है कि बसपा के अकेले लड़ने पर विधानसभा चुनाव जैसे उसकी स्थिति हो सकती है। बसपा 2007 के विधानसभा चुनाव के बाद से ही लगातार हार का सामना कर रही है।

2012 में सपा ने बसपा को हराकर यूपी की सत्ता हथिया ली थी। 2014 के लोकसभी चुनाव में भाजपा की सुनामी चली और सपा ने पांच सीटें जीतीं लेकिन बसपा बुरी तरह हार गई। उसे 2017 में वापसी की उम्मीद थी लेकिन लगातार तीसरी हार के बाद उसने 2019 में सपा से गठबंधन किया। उसे दस लोकसभा सीटों पर जीत भी मिली।

अकेले लड़ने से विधानसभा चुनाव में बसपा का सफाया

2022 में अकेले उतरने का फैसला लिया था। इससे विधानसभा से उसका एक तरह से सफाया हो गया था। बसपा को केवल एक सीट पर जीत मिली थी। बलिया के रसड़ा से बसपा के उमाशंकर सिंह जीते थे। हालांकि यह जीत बसपा की कम और उमाशंकर की ज्यादा मानी जाती है। दस साल पहले तक सत्ता संभाल रही बसपा को विधानसभा में केवल एक सीट मिलने के साथ ही उसका वोट बैंक भी लगातार खिसकता रहा है। 

अकेले लड़ने पर लोकसभा से भी सफाया की आशंका

बसपा इस समय अकेले नजर आ रही है। बसपा का बेस वोटबैंक यूपी में ही है। मायावती को पता है कि पिछले लोकसभा चुनाव में मिली दस सीटों पर जीत 2024 में तभी बरकरार रह सकती है जब किसी से गठबंधन किया जाए। बसपा के अकेले उतरने पर विधानसभा और निकाय चुनाव जैसे हालत हो सकती है। बसपा की इसी मुश्किलों को देखते हुए भाजपा की तरफ से गठबंधन का पासा फेंका गया है।

मुस्लिमों का साथ नहीं मिलने से मायावती मायूस

मायावती लगातार मुस्लिमों को साधने के लिए तरह तरह के प्रयोग करती रही हैं। इसके बाद भी उन्हें मुस्लिमों का साथ उस तरह नहीं मिल रहा जैसे सपा को मिलता रहा है। वहीं इस बारे में सपा सांसद एसटी हसन का कहना है कि मायावती उनके साथ जा रही हैं तो उन्हें पता है कि मुस्लिम वोट बसपा को नहीं मिल रहा है। वह पहले भी अपने वोट शिफ्ट करती रही हैं। पिछले कई चुनावों से लगातार बीएसपी को हार का सामना करना पड़ रहा है। विधानसभा में तो सफाया हो ही गया है। लोकसभा में दस सीटें सपा से गठबंधन के कारण मिली थीं। इस बार लोकसभा में भी सफाया तय है।

इंदिरा गांधी के आरएसएस के कई नेताओं के साथ थे अच्छे संबंध, आपातकाल में भी मिला था साथ, नई किताब में दावा

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पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के कई नेताओं से अच्छे संबंध थे लेकिन उन्होंने सतर्कतापूर्ण संगठन से व्यक्तिगत दूरी रखी। आपातकाल के दौरान संघ ने न सिर्फ इंदिरा का साथ दिया, बल्कि 1980 में उन्हें सत्ता में लौटने में मदद भी की। पत्रकार नीरजा चौधरी की नई किताब 'हाउ प्राइम मिनिस्टर्स डिसाइड' में यह दावे किए गए हैं।

पत्रकार नीरजा चौधरी ने अपनी किताब में पूर्व प्रधानमंत्रियों के काम करने के तरीके का विश्लेषण उनके ऐतिहासिक महत्व के छह फैसलों के आधार पर किया है। इन छह निर्णयों में इंदिरा गांधी की आपातकाल के बाद 1980 में सत्ता में वापसी की रणनीति, शाह बानो मामला, मंडल आयोग, बाबरी मस्जिद की घटना, अटल बिहारी वाजपेयी की परमाणु परीक्षण की अनुमति और मनमोहन सिंह के कार्यकाल में भारत-अमेरिका परमाणु समझौता शामिल है।

आरएसएस ने पूरे आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी के साथ मित्रवत संबंध रखा

किताब में दावा किया गया है कि आपातकाल के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने इंदिरा गांधी को प्रस्ताव दिया था।किताब में दावा किया गया है कि आरएसएस ने पूरे आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी के साथ मित्रवत संबंध रखा। चौधरी लिखती हैं, ‘आरएसएस प्रमुख बालासाहेब देवरस ने कई बार उन्हें पत्र लिखा। कुछ आरएसएस नेताओं ने कपिल मोहन के जरिये संजय गांधी से संपर्क किया। अब 1977 में उन्हें यह देखना है कि कैसे प्रतिक्रिया करनी है लेकिन उन्हें बहुत सतर्क होकर काम करना होगा।

इंदिरा मुसलमानों की नाराजगी से बचने के लिए राजनीति का हिंदूकरण करना चाहती

आपातकाल के दौर में आरएसएस तीसरे प्रमुख बालासाहेब देवरस ने उन्हें कई बार लिखा। कई संघ लीडर कपिल मोहन के जरिए संजय गांधी से संपर्क करते थे। नीरजा के अनुसार इंदिरा को यह अंदेशा था कि मुसलमान कांग्रेस से नाराज हो सकते हैं, इसी वजह से वे अपनी राजनीति का हिंदूकरण करना चाहती थीं। इस काम में आरएसएस से थोड़ा सा समर्थन बल्कि उसका तटस्थ रुख भी उनके लिए बड़ा मददगार साबित होता। साल 1980 में जब अटल बिहारी वाजपेयी अपनी सेकुलर छवि बनाने में जुटे थे, इंदिरा गांधी कांग्रेस का हिंदूकरण कर रहीं थीं। पुस्तक में बाली का कथन है कि इंदिरा गांधी मंदिरों में बहुत जाने लगी थीं, जिसने संघ के लीडरों को प्रभावित किया। बालासाहेब देवरस ने तो एक बार टिप्पणी भी की कि 'इंदिरा बहुत बड़ी हिंदू हैं।' बाली के अनुसार देवरस और बाकी संघ लीडर इंदिरा में हिंदुओं का नेता देखते थे।

आरएसएस ने 1980 में 353 सीटों के साथ सत्ता में लौटने में मदद की

पुस्तक में इंदिरा के करीबी रहे अनिल बाली के हवाले से दावा किया गया कि संघ ने उन्हें 1980 में 353 सीटों की विशाल जीत के साथ सत्ता में लौटने में मदद की, वे खुद इतनी सीटें नहीं जीत सकती थीं। वह जानती थी कि आरएसएस ने उसका समर्थन किया है, लेकिन उसने कभी भी इसे सार्वजनिक रूप से स्वीकार नहीं किया। वह निजी तौर पर स्वीकार करती थी कि अगर आरएसएस ने उसे समर्थन नहीं दिया होता, तो वह 353 सीटें नहीं जीत पाती, जो कि उसके सुनहरे दिनों में जीती गई सीटों से एक अधिक है।

हरियाणा के मेवात-नूंह में शुरू हुई हिंसा गुरुग्राम तक पहुंची, प्रदेश के कई जिलों में बंद हुआ इंटरनेट, 29 पर FIR, 116 गिरफ्तार, अब हालात नियंत्रण

हरियाणा के मेवात-नूंह में सोमवार को आरम्भ हुई हिंसा गुरुग्राम तक पहुंच गई। मंगलवार देर रात भीड़ ने यहां मस्जिद पर हमला करके मौलवी का क़त्ल कर दिया। दुकानों को भी आग के हवाले किया गया। हिंसा में अब तक दो होमगार्ड सहित 5 व्यक्तियों की मौत हो गई। नूंह में कर्फ्यू लगा दिया गया। हिंसा पर नियंत्रण पाने के लिए अर्धसैनिक बलों की 20 टुकड़ियों को तैनात किया गया है। नूंह, पलवल, मानेसर, सोहाना एवं पटौदी में इंटरनेट बंद कर दिया गया। अब हालात नियंत्रण में बताए जा रहे है। RAF ने कई स्थानों पर फ्लैग मार्च निकाला। हिंसा के विरोध में विश्व हिंदू परिषद ने आज देशव्यापी प्रदर्शन बुलाया है। उधर, हरियाणा में हिंसा को देखते हुए उत्तर प्रदेश के 11 जिलों मे अलर्ट है। राजस्थान मे भरतपुर के पश्चात् अब अलवर में धारा 144 लागू कर दी गई है।  

दरअसल, नूंह में हिंदू संगठनों ने प्रत्येक वर्ष की भांति इस बार भी बृजमंडल यात्रा निकालने की घोषणा की थी। प्रशासन से इसकी इजाजत भी ली गई थी। सोमवार को बृजमंडल यात्रा के चलते इस पर पथराव हो गया था। देखते ही देखते यह हिंसा में बदल गया। सैकड़ों कारों को आग लगा दी गई। साइबर थाने पर भी हमला किया गया। फायरिंग भी हुई। इसके अतिरिक्त एक मंदिर में सैकड़ों व्यक्तियों को बंधक बनाया गया। पुलिस की दखल के पश्चात् लोगों को वहां से निकाला गया। पुलिस पर भी हमला हुआ। नूंह के पश्चात् सोहना में भी पथराव और फायरिंग हुई। वाहनों को आग के हवाले कर दिया गया। 

नूंह के अतिरिक्त गुरुग्राम और पलवल में भी हिंसा की सूचना मिली। पलवल में भीड़ ने परशुराम कॉलोनी में 25 से ज्यादा झोपड़ियों में आग लगा दी। हालांकि, किसी को कोई चोट नहीं आई। उधर, राजस्थान के भिवाड़ी में हाइवे पर भीड़ ने दो तीन दुकानों में तोड़फोड़ की। नूंह में सोमवार को 50 से ज्यादा चोटिल व्यक्तियों में से दो और व्यक्तियों की चिकित्सालय में मौत हो गई। हिंसा में अब तक 2 होमगार्ड सहित 5 लोग मारे गए। चोटिल व्यक्तियों में 10 पुलिसकर्मी हैं, जिनमें से तीन वेंटिलेटर सपोर्ट पर हैं। हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर ने नूंह हमले को एक बड़े षड्यंत्र का हिस्सा बताया, जबकि VHP ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी से हिंसा की जांच की मांग की। इससे पहले नूंह जिले में कर्फ्यू लगा दिया गया। सुरक्षा बलों ने आसपास के जिलों में भी फ्लैग मार्च किया तथा कई शांति समिति की बैठकें की गईं।

हरियाणा के गृहमंत्री अनिल विज ने नूंह में भड़की हिंसा को बताया प्री-प्लांड, एनसीपीसीआर ने की पत्थरबाजी के लिए बच्चों के इस्तेमाल की जांच कराने क

#haryana_nuh_violence 

हरियाणा के नूंह में सोमवार को भड़की हिंसा अब तक छह लोगों की मौत हो चुकी है। नूंह समेत हिंसा के अलग-अलग मामलों में 40 एफआईआर दर्ज हुई है। वहीं अब तक 116 लोगों को गिरफ्तार किया गया है।वहीं सिर्फ नूंह में ही 26 एफआईआर दर्ज की जा चुकी हैं। हिंसा का केंद्र रहे नूंह, पलवल, पटौदी और सोहना में इंटरनेट बंद है। वहीं फरीदाबाद, गुरुग्राम समेत हरियाणा के सात जिलों में धारा 144 लगाई गई है।नूंह में हुई हिंसा का असर मंगलवार को फरीदाबाद और गुड़गांव में भी रहा। उधर, नूंह में आज भी कर्फ्यू रहेगा।

नूंह में आगामी आदेशों तक शिक्षण संस्थान बंद

नूंह में भड़की हिंसा की आग गुरुग्राम जिले में तेजी से फैल चुकी है। पहले सोहना फिर सेक्टर 57 की निर्माणाधीन मस्जिद और इसके बाद बादशाहपुर के नजदीक हाईवे पर उपद्रवियों ने बवाल काटा। इस बीच उपद्रवियों की बदलती जगहों पर पुलिस दौड़ती रही।दो समुदायों की लड़ाई में पुलिस और प्रशासन के अनुसार संवेदनशील इलाके से इतर 24 घंटे में कई अलग इलाकों पर घटना हुई। नूंह में आगामी आदेशों तक शिक्षण संस्थान बंद रहेंगे। शांति व कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए जिला प्रशासन ने 10 ड्यूटी मजिस्ट्रेट और 6 स्पेशल ड्यूटी मजिस्ट्रेट क्षेत्र भर में लगाए हैं।

हरियाणा के सीएम ने साजिश करार दिया

नूंह में भड़की सांप्रदायिक हिंसा को हरियाणा के मुख्यमंत्री ने साजिश करार दिया है। उन्होंने दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की चेतावनी दी। सीएम खट्टर ने कहा कि इस हिंसा में जो लोग भी शामिल हैं, उन्हें किसी भी कीमत पर बख्शा नहीं जाएगा।

इसकी पहले से प्लानिंग की गई थी-अनिल विज

इधर, नूंह में हुई हिंसा को लेकर प्रदेश के गृह मंत्री अनिल विज ने कहा कि इलाके में भारी पुलिस बल को तैनात किया गया है। सभी जगह अलर्ट जारी किया गया है. उन्होंने घटना को लेकर गृह सचिव अजय भल्ला से भी बात की है। विज ने कहा कि नूंह हिंसा के दौरान जिस तरह से हथियार लहराए गए गोलियां चलाई गई। उसे देखकर यहीं लगता है कि ये सब अचानक नहीं हुआ बल्कि इसकी पहले से प्लानिंग की गई थी। इस पूरी घटना के पीछे किसी ना किसी ने इंजीनियरिंग की है, कोई ना कोई मास्टरमाइंड जरूर है जो देश और प्रदेश की शांति भंग करने में लगे हैं।

पत्थरबाजी में बच्चों के इस्तेमाल पर जांच की मांग

वहीं, नूंह में हिंसा के दौरान पत्थरबाजी के लिए बच्चों को कथित रूप से इस्तेमाल किए जाने की भी रिपोर्ट सामने आई हैं। पीटीआई के मुताबिक, इसे लेकर राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने जांच की मांग की है। हरियाणा प्रशासन को लिखे एक पत्र में एनसीपीसीआर ने सोमवार को हुई हिंसा में बच्चों के कथित शोषण के संबंध में प्रशासन को तुरंत ध्यान देने और कार्रवाई करने की मांग की है। आयोग ने पत्र में कहा,''आयोग आपके कार्यालय से मामले पर गौर करने और घटना की जांच कराने का अनुरोध करता है। इसके अलावा इस गैरकानूनी प्रदर्शन में जिन बच्चों का प्रयोग किया गया उनकी पहचान की जानी चाहिए और अगर उनकी सुरक्षा को सुनिश्चित करने की जरूरत है तो उन्हें बाल सुधार समिति के समक्ष पेश किया जाना चाहिए।'

सोशल मीडिया पर भड़काऊ पोस्ट डालने पर एफआईआर

वहीं, इस मामले में सोशल मीडिया पर भड़काऊ पोस्ट डालने के मामले में भी गुड़गांव पुलिस ने एफआईआर दर्ज की है। सेक्टर-53 थाने में यह एफआईआर मंगलवार दोपहर बाद दिनेश भारती नामक व्यक्ति के खिलाफ दर्ज की गई है। सेक्टर-53 थाने के ही एक एएसआई के बयान पर यह एफआईआर दर्ज हुई है। एएसआई का कहना है कि धारा 144 लगने के बाद वह टीम के साथ वजीराबाद मंडी चौक के पास मौजूद रहे। आसपास के कुछ लोगों ने टीम को बताया कि दिनेश भारती नामक व्यक्ति सेक्टर-52 आरडी सिटी के पास गोशाला चलाता है। उसने वट्सऐप पर एक विडियो बनाकर वायरल कर दिया। जिसमें सांप्रदायिक दंगे भड़काने की बातें कही गई हैं।

अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में आज से सुनवाई, सोमवार और शुक्रवार छोड़ रोज बैठेगी पीठ

#supreme_court_to_hear_petitions_filed_against_article_370 

जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट आज से सुनवाई करेगी।सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय बेंच धारा 370 के खिलाफ दायर याचिकाओं पर बुधवार से रोजाना सुनवाई करेगी। सुप्रीम कोर्ट में राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों - जम्मू और कश्मीर और लद्दाख में विभाजित करने के केंद्र सरकार के फैसले को चुनौती दी गई थी। शीर्ष अदालत अब इन्हीं 23 रिट याचिकाओं पर सुनवाई करेगी। केंद्र ने पांच मई 2019 को पूर्ववर्ती राज्य जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा निरस्त कर दिया था। साथ ही इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू कश्मीर तथा लद्दाख के रूप में विभाजित कर दिया था।

भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ पांच सदस्यीय बेंच की अध्यक्षता करेंगे। बेंच में मुख्य न्यायाधीश के अलावा न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बीआई गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत शामिल होंगे।सोमवार और शुक्रवार छोड़कर रोजाना मामले की सुनवाई की जाएगी।

केंद्र ने दाखिल किया था हलफनामा

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त किये जाने का बचाव किया था। केंद्र ने सोमवार को शीर्ष अदालत से से कहा था कि यह कदम उठाये जाने के बाद जम्मू कश्मीर के पूरे क्षेत्र में ‘अभूतपूर्व’ शांति, प्रगति और समृद्धि देखने को मिली है। केंद्र ने कहा था कि कि आतंकवादियों की तरफ से सड़कों पर की जाने वाली हिंसा और अलगाववादी नेटवर्क अब ‘अतीत की बात’ हो चुकी है। हलफनामें में क्षेत्र की विशिष्ट सुरक्षा स्थिति का संदर्भ देते हुए केंद्र ने कहा था कि आतंकवादी-अलगाववादी एजेंडा से जुड़ी सुनियोजित पथराव की घटनाएं वर्ष 2018 में 1,767 थीं, जो घटकर 2023 में आज की तारीख में शून्य हो गई हैं। इसके साथ ही सुरक्षाकर्मियों के हताहत होने के मामलों में 2018 की तुलना में 2022 में 65.9 प्रतिशत की कमी का भी जिक्र किया गया था।

केन्द्र के हलफनामे का कोर्ट में दलील के तौर पर इस्तेमाल नहीं होगा

हालांकि, केंद्र की ओर से दाखिल हलफनामे का कोर्ट में दलील के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जाएगा।पीठ ने कहा था कि पांच अगस्त 2019 की अधिसूचना के बाद पूर्ववर्ती राज्य जम्मू-कश्मीर की स्थिति के संबंध में केंद्र की ओर से सोमवार को दाखिल हलफनामे का पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ द्वारा संवैधानिक मुद्दे पर की जा रही सुनवाई पर कोई असर नहीं पड़ेगा।

5 अगस्त, 2019 को केंद्र सरकार ने तत्कालीन जम्मू-कश्मीर राज्य का विशेष दर्जा खत्म कर दिया था और दो केंद्र शासित प्रदेशों 1. जम्मू और कश्मीर, 2. लद्दाख में विभाजित कर दिया था। केंद्र के इस फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गई थीं, जिसे 2019 में संविधान पीठ के पास भेज दिया गया था।

दिल्ली सेवा विधेयक पर सरकार को मिला बीजद का साथ, विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव का करेगी विरोध

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दिल्ली सेवा बिल को मंगलवार को लोकसभा में पेश किया गया।बीजू जनता दल (बीजद) दिल्ली सेवा अध्यादेश संबंधी विधेयक का समर्थन करेगा और सरकार के खिलाफ विपक्ष द्वारा पेश किए गए अविश्वास प्रस्ताव का विरोध करेगा।बीजद) के राज्यसभा सदस्य सस्मित पात्रा ने मंगलवार को कहा कि उनकी पार्टी दिल्ली सेवा अध्यादेश संबंधी विधेयक का समर्थन करेगी और सरकार के खिलाफ विपक्ष द्वारा पेश किए गए अविश्वास प्रस्ताव का विरोध करेगी। बीजू जनता दल (बीजेडी) ने लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों में अपने सांसदों को तीन-लाइन व्हिप जारी किया है।

वाईएसआर कांग्रेस के बाद बीजद ऐसी दूसरी पार्टी है जिसने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) विधेयक, 2023 पर केंद्र को समर्थन देने की घोषणा की है।ओडिशा के सत्ताधारी दल के फैसले से नरेन्द्र मोदी सरकार को राज्यसभा में बहुमत प्राप्त करने की दिशा में मदद मिलेगी। राज्यभा में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नीत गठबंधन को बहुमत प्राप्त नहीं है।

लोकसभा में बीजेपी के पास बहुमत है, जहां उसके 301 सांसद हैं। अगर बीजेपी के सहयोगी दलों के गठबंधन एनडीए की बात करें, तो सांसदों की संख्या और भी ज्यादा बढ़ जाती है। एनडीए के सांसदों की संख्या 333 है, जो बहुमत के आंकड़े से बहुत ज्यादा है। दूसरी ओर विपक्ष के पास सिर्फ 142 सांसद हैं, जिसमें से अकेले 50 सांसद तो कांग्रेस से ही हैं। इस तरह लोकसभा में बीजेपी के पास बहुमत है।

अब बात करते हैं, राज्यसभा की। राज्यसभा में बीजेपी के सांसदों की संख्या 93 है, जबकि सहयोगी दलों के सांसदों की संख्या को जोड़ लिया जाए, तो ये आंकड़ा 105 पर पहुंच जाता है। सिर्फ इतना ही नहीं, बल्कि बीजेपी को पांच मनोनीत और दो निर्दलीय सांसदों का साथ भी मिलना तय माना जा रहा है। इस तरह राज्यसभा में बीजेपी के पास कुल सांसदों की संख्या 112 तक पहुंच जाएगी।हालांकि, भले ही ये संख्या ज्यादा लगती है, मगर अभी भी बहुमत के आंकड़े से बीजेपी 8 सांसद दूर है।बीजेपी को दिल्ली सेवा बिल राज्यसभा से पास करवाने के लिए बीएसपी, जेडीएस और टीडीपी के एक-एक सांसदों की भी जरूरत होगी। सिर्फ इतना ही नहीं, बीजेपी राज्यसभा में बीजेडी और वाईएसआर कांग्रेस के भरोसे है।

2,000 रुपए के 88% नोट बैंकों में लौटे, अब चलन में 42 हजार करोड़ मूल्य के नोट

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देश में 88 प्रतिशत 2000 के नोट बैकों में वापस आ चुके हैं।आरबीआई ने ये जानकारी दी है।भारतीय रिजर्व बैंक ने मंगलवार को यह जानकारी देते हुए कहा कि 31 जुलाई 2023 तक 3.14 लाख करोड़ रुपये के 2000 रुपये के नोट बैंकों में वापस आ गए हैं। अब महज 42 हजार करोड़ रुपये मूल्य के नोट ही बाजार में चलन में है।

आरबीआई के मुताबिक 19 मई 2023 तक कुल 3.56 लाख करोड़ रुपये के 2,000 रुपये के नोट्स सर्कुलेशन में थे। 31 जुलाई 2023 तक 3.14 लाख करोड़ रुपये के 2000 रुपये के नोट बैंकों में वापस आ चुका है। अब 42000 करोड़ रुपये के नोट केवल सर्कुलेशन में बचा हुआ है। बता दें कि 30 सितंबर 2023 2,000 के नोट जमा करने या एक्सचेंज करने की आखिरी तारीख है।

आरबीआई ने जब इन नोटों को चलन से हटाने की घोषणा की थी, तब 3.56 लाख करोड़ रुपये मूल्य के नोट चलन में मौजूद थे। गत 31 मार्च को इन नोटों का मूल्य 3.62 लाख करोड़ रुपये था। आरबीआई ने कहा कि बैंकिंग प्रणाली में लौटकर आने वाले 2,000 रुपये के नोट में से करीब 87 फीसदी नोट बैंकों में जमा के रूप में आए हैं जबकि 13 फीसदी नोट अन्य मूल्यों के नोट से बदले गए हैं।

बता दें, आरबीआई ने 19 मई को 2,000 रुपये मूल्य के नोट को चलन से बाहर करने की घोषणा की थी। इसके लिए उपभोक्ताओं को 30 सितंबर तक ये नोट बैंकों में जमा करने या वहां पर बदलने की सुविधा दी गई है।केंद्रीय बैंक ने लोगों से अनुरोध किया है कि वे किसी भी तरह की असुविधा से बचने के लिए अपने पास मौजूद 2,000 रुपये मूल्य के नोट सितंबर तक बैंकों में जाकर जमा कर दें या उन्हें दूसरे नोट से बदल लें।

मणिपुर मामले पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, कहा-प्राथमिकी दर्ज करने में काफी देरी हुई, राज्य पुलिस ने कानून-व्यवस्था से नियंत्रण खो दिया

#supreme_court_hearing_on_manipur_violence

मणिपुर में जारी हिंसा को लेकर सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को फिर सुनवाई हुई। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने इस दौरान स्थानीय पुलिस पर सवाल खड़े किए और कहा कि एफआईआर को दर्ज करने में काफी देरी हुई है।हालात राज्य की पुलिस के नियंत्रण के बाहर हैं।कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई सोमवार (7 अगस्त) के लिए तय की और मणिपुर के डीजीपी को व्यक्तिगत रूप से पेश होकर सवालों के जवाब देने को कहा है।

मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि ऐसा लगता है संवैधानिक मशीनरी का पूरी तरह ‘ब्रेकडाउन’ हो चुका है। वहां कोई कानून व्यवस्था नहीं बची है। सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य में 2 महिलाओं को निर्वस्त्र घुमाए जाने संबंधी वीडियो को ‘बेहद परेशान’ करने वाला बताते हुए कहा कि घटना के संबंध में प्राथमिकी दर्ज करने में काफी देरी हुई।

सुनवाई शुरू होने पर मणिपुर सरकार ने पीठ को बताया कि उसने मई में जातीय हिंसा भड़कने के बाद 6,523 प्राथमिकियां दर्ज कीं। इनमें 11 एफआईआर महिलाओं और बच्चों के खिलाफ हिंसा-यौन उत्पीड़न को लेकर हैं। हिंसा के दौरान जो भी शव बरामद हुए हैं, उन सभी का पोस्टमॉर्टम हुआ है। केंद्र और मणिपुर सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ को बताया कि दो महिलाओं के यौन उत्पीड़न के मामले में राज्य पुलिस ने ‘जीरो’ प्राथमिकी दर्ज की थी। मेहता ने शीर्ष न्यायालय को बताया कि मणिपुर पुलिस ने वीडियो मामले में एक नाबालिग समेत सात लोगों को गिरफ्तार किया है।

इस पर सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर पुलिस से नाराजगी जताते हुए कहा कि घटना की जांच बहुत सुस्त है और राज्य में कानून एवं व्यवस्था और संवैधानिक तंत्र पूरी तरह चरमरा गया है। यह साफ है कि पुलिस ने राज्य में कानून एवं व्यवस्था की स्थिति पर से नियंत्रण खो दिया है और अगर कानून एवं व्यवस्था तंत्र लोगों की रक्षा नहीं कर सकता तो नागरिकों का क्या होगा? इसने कहा कि राज्य पुलिस जांच करने में अक्षम है, उसने स्थिति से नियंत्रण खो दिया है।