3 जुलाई को इस वर्ष गुरु पूर्णिमा, जानिए गुरु पूर्णिमा तिथि एवं शुभ मुहूर्त
इस वर्ष गुरु पूर्णिमा 3 जुलाई 2023, दिन सोमवार को मनाई जाएगी। यह दिन गुरुओं के पूजन तथा सम्मान का दिन माना जाता है। गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर:। गुरुर्साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नम:।।- अर्थात गुरु ब्रह्मा, विष्णु और महेश है। गुरु तो परम ब्रह्म के समान होता है, ऐसे गुरु को मेरा प्रणाम।
हिन्दू धर्म में गुरु की बहुत महत्ता बताई गई। समाज में गुरु का स्थान सर्वोपरि है। धर्मशास्त्रों के अनुसार गुरु उस चमकते हुए चंद्र के समान होता है, जो अंधेरे में रोशनी देकर पथ-प्रदर्शन करता है।
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गुरु पूर्णिमा तिथि एवं शुभ मुहूर्त-
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आषाढ़ पूर्णिमा तिथि का प्रारंभ- रविवार, 2जुलाई को रात्रि 08:22 मिनट से शुरू।
आषाढ़ पूर्णिमा तिथि का समापन- सोमवार ,3जुलाई को संध्या 05:09 मिनट पर होगा।
उदयातिथि के अनुसार 3 जुलाई को ही गुरु पूर्णिमा मनाई जाएगी।
गुरु पूर्णिमा के उपाय
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- गुरु पूर्णिमा के दिन पर पीपल के पेड़ की जड़ों में मीठा जल चढ़ाने मात्र से माता लक्ष्मी की कृपा बरसती है।
- किसी भी कार्य में सफलता का संदेह हो तो इस दिन भगवान श्री कृष्ण के सामने गाय के शुद्ध घी का दीया जलाकर सच्चे मन से अपनी बात कह देने से बिगड़े हुए काम बन जाते हैं।
- छात्रों को अगर शिक्षा प्राप्त करने में कठिनाई महसूस हो रही हो तो गुरु पूर्णिमा के दिन गीता का पाठ या गीता अध्याय के किसी भी पाठ को अवश्य पढ़ना चाहिए।
- ज्योतिष शास्त्र के अनुसार करियर में तरक्की के लिए गुरु पूर्णिमा के दिन जरूरतमंद व्यक्ति को पीली चीजें- जैसे चना दाल, बेसन, पीले वस्त्र और पीली मिठाई, गुड़ या पुखराज रत्न आदि चीजों का दान करना चाहिए।
- गुरु पूर्णिमा के भगवान कृष्ण का विधि-विधान से पूजन करके गौ माता की सेवा करना चाहिए, इससे भी विद्यार्थियों की परेशानियां दूर हो जाती हैं।
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- कुंडली में गुरु दोष है तो बृहस्पति मंत्र ‘ॐ बृं बृहस्पतये नमः’ का जप अपनी श्रद्धा के अनुसार 11, 21, 51 या 108 बार गुरु पूर्णिमा के दिन अवश्य करना चाहिए।
योगी गुरु जी-8789159320
गुरु पूर्णिमा की कथा
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गुरु पूर्णिमा आषाढ़ की पूर्णिमा को मनाई जाती है। गुरु पूर्णिमा मनाने के पीछे यह कारण है कि इस दिन महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था।
गुरु पूर्णिमा के संबंधित पौराणिक कथा के अनुसार, महर्षि वेदव्यास भगवान विष्णु के अंश स्वरूप कलावतार हैं। उनके पिता का नाम ऋषि पराशर तथा माता का नाम सत्यवती था। उन्हें बाल्यकाल से ही अध्यात्म में अधिक रुचि थी। अत: उन्होंने अपने माता-पिता से प्रभु दर्शन की इच्छा प्रकट की और वन में जाकर तपस्या करने की आज्ञा मांगी, लेकिन माता सत्यवती ने वेदव्यास की इच्छा को ठुकरा दिया।
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तब वेदव्यास के हठ पर माता ने वन जाने की आज्ञा दे दी और कहा कि जब घर का स्मरण आए तो लौट आना। इसके बाद वेदव्यास तपस्या हेतु वन चले गए और वन में जाकर उन्होंने कठिन तपस्या की। इस तपस्या के पुण्य-प्रताप से वेदव्यास को संस्कृत भाषा में प्रवीणता हासिल हुई। तत्पश्चात उन्होंने चारों वेदों का विस्तार किया और महाभारत, अठारह महापुराणों सहित ब्रह्मसूत्र की रचना की।
महर्षि वेदव्यास को अमरता का वरदान प्राप्त है। अतः आज भी महर्षि वेदव्यास किसी न किसी रूप में हमारे बीच उपस्थित हैं। वेदव्यास को हम कृष्णद्वैपायन के नाम से भी जानते है। अत: हिन्दू धर्म में वेदव्यास को भगवान के रूप में पूजा जाता है। इस दिन वेदव्यास का जन्म होने के कारण इसे व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।
योगी गुरु जी
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गया जी धाम बिहार
Jul 02 2023, 16:05