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ट्रंप से बहस के बाद खतरे में जेलेंस्की की कुर्सी! यूक्रेन के विपक्षी नेताओं के संपर्क में अमेरिका

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व्हाइट हाउस के ओवल ऑफिस में यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की का डोनाल्ड ट्रंप को आंखे दिखाना महंगा पड़ने वाला है। जेलेंस्की का कभी भी तख्तापलट हो सकता है। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है कि ओवल ऑफिस में हुई बहस के करीब एक हफ्ते के बाद डोनाल्ड ट्रंप की टीम के कम से कम चार अधिकारियों ने यूक्रेन के विपक्षी नेताओं के साथ बात की है।

जेलेंस्की रूस के साथ जंग के बीच पिछले दिनों मदद मांगने के लिए अमेरिका पहुंचे थे। हालांकि, हालात हाथों से निकल गए। ओवल ऑफिस में ट्रंप और जेलेंस्की के बीच हुई तीखी नोंकझोक हुई। जिसे पूरी दुनिया ने देखा। इस झड़प के बाद बाद जेलेंस्की को ना सिर्फ खाली हाथ लौटना पड़ा, बल्कि अमेरिका से रिश्ते भी बिगड़ गए। जिसके बाद से अमेरिका-यूक्रेन संबंधों पर अटकलों का बाजार गर्म है। अब अमेरिकी अखबार द पॉलिटिको की रिपोर्ट की मानें तो ट्रंप यूक्रेन में राष्ट्रपति जेलेंस्की के तख्तापलट की कोशिश में जुट गए हैं।

द पॉलिटिको की रिपोर्ट बुधवार को ट्रंप के 4 अधिकारी यूक्रेन पहुंचे, जहां वे जेलेंस्की के विरोधी नेताओं से मुलाकात की। मुलाकात का मकसद यूक्रेन में जल्द ही राष्ट्रपति के चुनाव कराना था। रिपोर्ट के मुताबिक बुधवार को ट्रंप के 4 वरिष्ठ सहयोगियों ने यूक्रेनी विपक्षी नेता यूलिया तिमोशेंको और पेट्रो पोरोशेंको की पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के साथ बातचीत की। ट्रंप के अधिकारियों ने यूक्रेनी नेताओं से पूछा कि यहां चुनाव कब तक होने चाहिए और उसके लिए क्या करने की जरूरत है। पॉलटिका के मुताबिक ट्रंप के अधिकारियों ने जेलेंस्की से ऐसे वक्त में मुलाकात की, जब अमेरिका और रूस की कोशिश यूक्रेन में राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव कराने की है।

आपको बता दें कि फिलहाल यूक्रेन में मार्शल लॉ लगा हुआ है और मौजूदा हालातों में चुनाव नहीं हो सकते हैं। डोनाल्ड ट्रंप इलेक्शन करवाने में हो रही देरी की बार बार आलोचना कर चुके हैं। पिछले साल राष्ट्रपति जेलेंस्की का शासनकाल खत्म हो गया था और उसके बाद से ही रूस लगातार उन्हें यूक्रेन का 'अवैध नेता' कहता आया है।

विपक्षी नेताओं से बात दर्शाता है कि डोनाल्ड ट्रंप यूक्रेन की अंदरूनी राजनीति में दखलअंदाजी कर रहे हैं। टिमोशेंको से बात करने वाले डोनाल्ड ट्रंप के सहयोगियों ने कहा कि उन्हें विश्वास है कि चल रहे युद्ध और सरकार के भीतर व्यापक भ्रष्टाचार की वजह से जेलेंस्की वोट खो देंगे। हालांकि जेलेंस्की ने वाकई अपनी लोकप्रियता खो दी थी लेकिन पिछले हफ्ते ट्रंप से बहस के बाद उनकी लोकप्रियता में जबरस्त उछाल देखने को मिला है। दूसरी तरफ इस हफ्ते अमेरिका की वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लुटनिक ने उन दावों को खारिज कर दिया कि डोनाल्ड ट्रंप, यूक्रेनी राजनीति को प्रभावित कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि ट्रंप की एकमात्र दिलचस्पी यूक्रेन युद्ध में शांति खोजना है।

ट्रंप की टैरिफ वाली धमकी, भारत पर क्या होगा असर?

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राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने साफ कर दिया है कि अमेरिका 2 अप्रैल से दुनियाभर के देशों पर रेसिप्रोकल टैरिफ लगाने जा रहा है। रेसिप्रोकल टैरिफ का मतलब है जो अमेरिका पर जितना टैरिफ लगाता है, अमेरिका भी उस देश पर उतना ही टैरिफ लगाएगा। इसका मतलब है कि कई देशों को अमेरिका में एक्सपोर्ट होने वाले सामान पर ज्यादा टैरिफ देना होगा। रेसिप्रोकल टैरिफ भारत के लिए भी काफी नुकसानदेह साबित हो सकता है। भारत के कई उद्योगों पर इसका सीधा असर देखने को मिलेगा।

अमेरिकी संसद को संबोधित करते हुए भी डोनाल्ड ट्रंप ने भारत का नाम लिया है और पारस्परिक टैरिफ लगाने की बात कही है। ट्रंप ने कहा, "अन्य देशों ने दशकों से हमारे खिलाफ टैरिफ का इस्तेमाल किया है। अब उन अन्य देशों के खिलाफ उनके हथियार का ही इस्तेमाल करने की हमारी बारी है। औसतन यूरोपीय संघ, चीन, ब्राजील, भारत और अनगिनत अन्य देश हमसे बहुत अधिक टैरिफ वसूलते हैं। उनकी तुलना में हम उनसे कम टैरिफ लेते हैं। यह बिल्कुल अनुचित है। अगले महीने से भारत के ऊपर अमेरिका का पारस्परिक टैरिफ सिस्टम शुरू हो जाएगा, यानि अमेरिकी सामानों पर भारत जितना टैरिफ लगाएगा, अमेरिका भी भारतीय सामानों पर उतना ही टैरिफ लगाएगा।

चीन से लेकर कनाडा तक डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ फैसलों पर अपनी कड़ी प्रतिक्रिया दे रहे हैं लेकिन भारत शांति का द्वीप बना हुआ है। ट्रंप के टैरिफ से दुनिया में उथल-पुथल है, जबकि डोनाल्ड ट्रंप पहले ही स्टील और एल्युमीनियम आयातों पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाकर भारत को बड़ा झटका दे चुके हैं फिर भी भारत शांत है।

इकोनॉमिक टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में ज्यादा समय तक शांति देखने को नहीं मिलेगी। भारत लंबे समय तक प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकते हैं। भारत को अप्रैल महीने में टैरिफ युद्ध में फंसा लिया जाएगा जब पारस्परिक टैरिफ फैसला लागू हो जाएगा।

ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट में मामले से परिचित लोगों का हवाला देते हुए कहा गया है कि "भारतीय अधिकारी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की धमकी भरे पारस्परिक शुल्क से बचने के लिए कारों और रसायनों सहित कई तरह के आयातों पर शुल्क कम करने के तरीके तलाश रहे हैं। नई दिल्ली में अधिकारी ऑटोमोबाइल, कुछ कृषि उत्पादों, रसायनों, महत्वपूर्ण फार्मास्यूटिकल्स, साथ ही कुछ चिकित्सा उपकरणों और इलेक्ट्रॉनिक्स के लिए शुल्क कम करने पर चर्चा कर रहे हैं।"

भारत को नुकसान का अनुमान

एक रिपोर्ट के मुताबिक ट्रंप द्वारा प्रस्तावित 100% टैरिफ भारत पर महत्वपूर्ण असर डाल सकती है, जिससे भारतीय निर्यातकों को लगभग 7 बिलियन डॉलर प्रति वर्ष का नुकसान होने का अनुमान लगाया गया है। अमेरिका के पारस्परिक टैरिफ को लेकर ऑटो इंडस्ट्री और कृषि इंडस्ट्री के कारोबारी टेंशन में हैं। यह टैरिफ खासतौर से ऑटोमोबाइल, कृषि, रसायन, धातु उत्पाद, आभूषण, फार्मास्यूटिकल्स और खाद्य उत्पादों जैसे क्षेत्रों को प्रभावित करेगा।

पीयूष गोयल अमेरिका दौरे पर

दूसरी तरफ, भारत के वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल इन मुद्दों पर चर्चा करने और संभावित व्यापार समझौतों पर बातचीत के लिए अमेरिका की यात्रा की है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत ने पहले ही कुछ वस्तुओं पर टैरिफ कम किए हैं और ऊर्जा आयात बढ़ाने के साथ-साथ रक्षा उपकरणों की खरीद भी बढ़ाई है ताकि दोनों देशों के बीच व्यापार तनाव को कम हो सके। बता दें कि इससे पहले पिछले महीने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान दोनों देशों ने 2025 की आखिर तक व्यापार समझौते के पहले खंड पर काम करने पर सहमति जताई है, जिसका लक्ष्य 2030 तक 500 बिलियन डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार करना है।

चीन, कनाडा और मेक्सिको ने डोनाल्ड ट्रम्प के टैरिफ सुधार प्रस्ताव को नकारते हुए किया पलटवार

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AP

मेक्सिको, कनाडा और चीन से आयात पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा घोषित टैरिफ मंगलवार को लागू हो गए, जिससे इस मुद्दे पर कई दिनों से चल रही अटकलें खत्म हो गईं। टैरिफ, जो मूल रूप से पिछले महीने लागू होने वाले थे, पर 30 दिनों का विराम लगा, क्योंकि ट्रम्प ने देशों से अमेरिका में फेंटेनाइल दवा के प्रवाह को रोकने या ‘गंभीर रूप से सीमित’ करने के लिए कहा था। सोमवार को, रिपब्लिकन ने कहा कि टैरिफ के संबंध में कनाडा और मेक्सिको के साथ किसी समझौते के लिए ‘कोई जगह नहीं’ है, उन्होंने कहा कि योजना मंगलवार को निर्धारित समय पर लागू होगी।

प्रस्तावित योजना कनाडा और मेक्सिको से आयात पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने की थी। चीन पर भी पहले से लागू 10 प्रतिशत के अतिरिक्त 10 प्रतिशत टैरिफ लगाया गया। मंगलवार आधी रात को टैरिफ लागू हुए, जिसके जवाब में तीनों देशों ने अपने-अपने जवाबी उपाय किए। मेक्सिको, कनाडा और चीन ने कैसे जवाबी कार्रवाई की ? 

कनाडा

निवर्तमान कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने मंगलवार से 30 बिलियन कनाडाई डॉलर मूल्य के अमेरिकी सामानों पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने की घोषणा की। यही नहीं, 125 बिलियन कनाडाई डॉलर मूल्य के अमेरिकी सामानों पर शेष जवाबी टैरिफ 21 दिनों के भीतर लगाए जाएंगे। रॉयटर्स ने ट्रूडो के हवाले से कहा, "जब तक अमेरिकी व्यापार कार्रवाई वापस नहीं ली जाती, तब तक हमारे टैरिफ लागू रहेंगे और अगर अमेरिकी टैरिफ बंद नहीं होते हैं, तो हम कई गैर-टैरिफ उपायों को आगे बढ़ाने के लिए प्रांतों और क्षेत्रों के साथ सक्रिय और चल रही चर्चाओं में हैं।"

मेक्सिको

अमेरिका के दक्षिणी पड़ोसी ने सोमवार को घोषणा की कि अगर ट्रम्प अपनी टैरिफ योजनाओं के साथ आगे बढ़ते हैं, तो उसके पास बैकअप योजनाएँ हैं। बहुत अधिक विवरण दिए बिना, मेक्सिको की राष्ट्रपति क्लाउडिया शिनबाम ने कहा कि अगर मंगलवार को अमेरिका ने उस पर टैरिफ लगाया तो देश तैयार है।

चीन

चीन ने भी नए अमेरिकी टैरिफ के जवाब में कई कृषि उत्पादों पर टैरिफ लगाने की घोषणा की। चीन के वित्त मंत्रालय ने मंगलवार को कहा कि वह सोयाबीन और मकई से लेकर डेयरी और बीफ़ तक के कृषि उत्पादों पर 10 प्रतिशत से 15 प्रतिशत के बीच अतिरिक्त टैरिफ लगाएगा। समाचार एजेंसी रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, चीन में 10% प्रतिशोधी टैरिफ का सामना करने वाले अमेरिकी उत्पादों में सोयाबीन, ज्वार, सूअर का मांस, बीफ़, जलीय उत्पाद, फल, सब्जियाँ और डेयरी उत्पाद शामिल हैं।

चीनी वित्त मंत्रालय ने कहा कि चिकन, गेहूं, मक्का और कपास पर 15 प्रतिशत टैरिफ लगाया जाएगा। टैरिफ के साथ-साथ, चीन ने 25 अमेरिकी फर्मों पर निर्यात और निवेश प्रतिबंध भी लगाए हैं।

ट्रंप-जेलेंस्की विवाद पर खुश हो गया रूस, बोला- जेलेंस्की को मारा नहीं...संयम दिखाना एक चमत्कार है

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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और यूक्रेनी राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की के बीच बैठक में विवाद के बाद रूस गदगद है।यूक्रेन के प्रेसीडेंट वोलोडिमीर जेलेंस्की की अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उपराष्ट्रपति जेडी वेंस के साथ हुई तीखी बहस पर रूस ने प्रतिक्रिया दी है। रूस का कहना है कि जेलेंस्की का बर्ताव बिल्कुल ठीक नहीं था और उनके खराब रवैये के बावजूद ट्रंप ने संयम दिखाया है वो चमत्कार से कम नहीं है।

रूस ने ‘संयम’ दिखाने के लिए ट्रंप की प्रशंसा की

रूस के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया ज़खारोवा ने भी यूक्रेनी नेता के साथ ‘संयम’ दिखाने के लिए ट्रंप की प्रशंसा की साथ ही उन्होंने जेलेंस्की को “बदमाश” कहा। मारिया ज़खारोवा ने टेलीग्राम पर लिखा, 'मुझे लगता है कि जेलेंस्की का सबसे बड़ा झूठ यह था कि 2022 में यूक्रेन अकेला था, उसको किसी का समर्थन नहीं था। जेलेंस्की ने एक के बाद एक झूठ बोला और बदमाशी की। मुझे हैरत है कि ट्रंप और वेंस ने उनको मारा कैसे नहीं, इतना संयम दिखाना एक चमत्कार है।'

रूस ने कहा-“उचित तमाचा”

वहीं, रूस के पूर्व राष्ट्रपति और वर्तमान शीर्ष अधिकारी दिमित्री मेदवेदेव ने ओवल ऑफिस में ट्रंप द्वारा ज़ेलेंस्की झाड़ लगाने को “उचित तमाचा” बताया। रूस की सिक्योरिटी काउंसिल के उपाध्यक्ष मेदवेदेव ने टेलीग्राम पर पोस्ट किया, "ओवल ऑफिस में क्रूर तरीके से पिटाई की गई।" मेदवेदेव ने कहा, "पहली बार, ट्रंप ने कोकिन जोकर को उसके मुंह पर सच बताया। कीव शासन तीसरे विश्व युद्ध के साथ खेल रहा है। एहसान फरामोश सुअर को सुअर पालने के मालिकों से जोरदार तमाचा मिला है। यह जरूरी है, लेकिन यह पर्याप्त नहीं। हमें नाजी मशीन को सैन्य सहायता बंद करनी चाहिए।"

कैसे हुई शुरुआत?

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की के बीच शुक्रवार को ओवल ऑफिस में अहम बैठक हुई। ट्रंप, उपराष्ट्रपति जेडी वेंस और जेलेंस्की के बीच लगभग 45 मिनट बातचीत हुई, जिसमें अंतिम 10 मिनट तीनों के बीच काफी तीखी बहस हुई। जेलेंस्की ने अपना पक्ष रखते हुए कूटनीति के प्रति रूस की प्रतिबद्धता पर संदेह व्यक्त किया। तनातनी की शुरुआत वेंस की ओर से जेलेंस्की से यह कहे जाने के साथ हुई कि मुझे लगता है कि आपका ओवल ऑफिस में आकर अमेरिकी मीडिया के सामने इस मामले पर मुकदमा करने की कोशिश करना अपमानजनक है। राष्ट्रपति जी पूरे सम्मान के साथ मैं यह बात कर रहा हूं। जेलेंस्की ने आपत्ति जताने की कोशिश की, जिस पर ट्रंप ने तेज आवाज में कहा, 'आप लाखों लोगों के जीवन के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं।' ट्रंप ने कहा, 'आप तीसरे विश्वयुद्ध को न्योता दे रहे हैं और आप जो कर रहे हैं वह देश के प्रति बहुत अपमानजनक है, यह वह देश है जिसने आपका बहुत अधिक समर्थन किया है।'

व्हाइट हाउस में ट्रंप-जेलेंस्की के बीच तेज बहस, नोकझोंक के बाद ट्रंप बोले- तीसरे विश्व युद्ध का जुआ खेल रहे हैं आप

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यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की ने व्हाइट हाउस में शुक्रवार को राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मुलाकात की। व्हाइट हाउस में डोनाल्ड ट्रंप और यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर की मुलाकात एक तू-तू मैं-मैं वाली बहस में बदल गई। जेलेंस्की के लिए यह बैठक बेहद शर्मिंदा करने वाली रही। जहां अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप और उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने उन्हें ओवल ऑफिस में जमकर सुनाया। जेलेंस्की ने कहा कि वह युद्ध विराम मानने के लिए तैयार नहीं हैं। इस पर ट्रंप ने कहा कि यूक्रेनी नेता तीसरे विश्व युद्ध का जुआ खेल रहे हैं। बहस के दौरान ट्रंप ने तीखे तेवर में यूक्रेन से खनिज सौदे के लिए दबाव बनाया और कहा कि या तो आप डील करिए वरना हम (शांति प्रक्रिया) से बाहर हो जाएंगे। इसके कुछ देर बाद ही जेलेंस्की वॉइट हाउस की मीटिंग से बाहर चले गए।

ट्रंप ने कैमरों के सामने जेलेंस्की को डांटा

ओवल ऑफिस में हुई मुलाकात के दौरान जब रूस-यूक्रेन युद्ध विराम का मुद्दा उठा तो दोनों नेताओं में बहस हो गई। जेलेंस्की ने कहा कि वह युद्ध विराम मानने के लिए तैयार नहीं हैं। जेलेंस्की ने ट्रंप से कहा कि व्लादिमीर पुतिन के शांति के वादों पर भरोसा नहीं किया जा सकता। उन्होंने रूसी नेता के वादे तोड़ने के इतिहास को भी याद दिलाया। इस पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सीधे तौर पर टीवी कैमरों के सामने जेलेंस्की को डांटा और कहा कि वह युद्ध हार रहे हैं।

ट्रंप ने जेलेंस्की को फटकार लगाई

ट्रंप ने कहा, आपके हाथ में कोई कार्ड नहीं है। उन्होंने कहा कि आप हमारा अनादर कर रहे हैं। हम तीसरे विश्व युद्ध की ओर बढ़ रहे हैं, आपको इसके साथ खेलने का कोई अधिकार नहीं है। आपको आभारी होना चाहिए. इस तरह से काम करना बहुत मुश्किल होगा। ओवल ऑफिस में बैठे हुए ट्रंप ने जेलेंस्की को फटकार लगाई और उन्हें ज्यादा “आभारी” होने के लिए कहा और कहा, “आप यह तय करने की स्थिति में नहीं हैं कि हम क्या महसूस करने जा रहे हैं?”

जेडी वेंस ने प्रोपेगैंडा यात्रा करने का आरोप लगाया

बहस में अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस भी कूद पड़े और जेलेंस्की पर प्रोपेगैंडा यात्रा करने का आरोप लगाया। वेंस ने कहा, मुझे लगता है कि आपके लिए ओवल ऑफिस में आना और अमेरिकी मीडिया के सामने इस मामले पर मुकदमा चलाने की कोशिश करना अपमानजनक है।

मुलाकात के बाद राष्ट्रपति ट्रंप ने जारी किया बयान

मुलाकात के बाद राष्ट्रपति ट्रंप ने बयान जारी किया जिसमें जेलेंस्की के व्यवहार को अमेरिका के लिए अपमानजनक कहा। बयान में कहा गया कि 'आज व्हाइट हाउस में हमारी बहुत सार्थक बैठक हुई। बहुत कुछ ऐसा सीखा गया जो इस तरह की तपिश और दबाव की बातचीत के बगैर कभी नहीं समझा जा सकता था।

बयान में आगे कहा गया कि 'यह आश्चर्यजनक है कि भावनाओं के माध्यम से क्या सामने आता है, और मैंने यह निर्धारित किया है कि राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की शांति के लिए तैयार नहीं हैं यदि अमेरिका इसमें शामिल है, क्योंकि उन्हें लगता है कि हमारी भागीदारी उन्हें वार्ता में बड़ा लाभ देती है। मुझे लाभ नहीं चाहिए, मुझे शांति चाहिए। उन्होंने प्रिय ओवल ऑफिस में संयुक्त राज्य अमेरिका का अपमान किया। जब वह शांति के लिए तैयार होंगे तो वह वापस आ सकते हैं।'

ट्रंप के वफादार काश पटेल एफबीआई निदेशक बने, सीनेट की मंजूरी मिलते ही दहाड़ा

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अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारतीय मूल के काश पटेल को फेडरल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन यानी एफबीआई का निदेशक नियुक्त किया है। डोनाल्ड ट्रंप के कट्टर समर्थक काश पटेल की एफबीआई चीफ के रूप में नियुक्ति को सीनेट ने हरी झंडी दिखा दी। सीनेट में हुए मतदान में उन्हें 51-49 के मामूली अंतर से बहुमत हासिल हुआ। डेमोक्रेट सांसदों ने काश पटेल की नियुक्ति का विरोध किया। उनकी योग्यता पर सवाल उठाए। उनका कहना था कि काश पटेल ट्रंप के इशारे पर काम करेंगे और रिपब्लिकन नेता के विरोधियों को निशाना बनाएंगे।

ट्रंप का जताया आभार

एफबीआई के निदेशक के रूप में पुष्टि किए जाने के बाद, राष्ट्रपति ट्रंप का आभार व्यक्त किया और एजेंसी को 'पारदर्शी, जवाबदेह और न्याय के लिए प्रतिबद्ध' बनाने की कसम खाई। सोशल मीडिया मंच एक्स पर एक पोस्ट साझा करते हुए, काश पटेल ने कहा, मैं संघीय जांच ब्यूरो के नौवें निदेशक के रूप में पुष्टि किए जाने पर सम्मानित महसूस हो रहा है। राष्ट्रपति ट्रंप और अटॉर्नी जनरल पाम बॉन्डी को आपके अटूट विश्वास और समर्थन के लिए धन्यवाद।

अमेरिका के खिलाफ काम करने वालों को चेतावनी

काश पटेल ने लिखा कि डायरेक्टर के रूप में मेरा मिशन साफ है, हम एक ऐसी एफबीआई का पुनर्निर्माण करेंगे जिस पर अमेरिकी लोगों को गर्व हो। और जो लोग अमेरिकियों को नुकसान पहुंचाना चाहते हैं, वे इसे अपनी चेतावनी मानें। हम इस दुनिया के हर कोने में आपका पता लगा लेंगे।

काश पटेल की नियुक्ति के बाद तय है कि एफबीआई में बड़े बदलाव संभव हैं। काश पटेल पहले ही कह चुके हैं कि वह एफबीआई में बड़े बदलाव करेंगे। इनमें वाशिंगटन स्थित मुख्यालय में कर्मचारियों की संख्या में कमी और खुफिया जानकारी जुटाने और राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे कामों के बजाय अपराध से निपटने जैसे एफबीआई के पारंपरिक कामों पर नए सिरे से जोर देना शामिल है। पिछले दो दशकों में एफबीआई की भूमिका को खुफिया जानकारी जुटाने और राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे कामों से परिभाषित किया जाता रहा है।

नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा: मोदी-ट्रंप मुलाकात और व्यापार सौदे पर वैश्विक प्रतिक्रियाएँ

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PTI

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने गुरुवार को व्हाइट हाउस में अपनी बैठक के दौरान व्यापार, टैरिफ और रक्षा संबंधों पर ध्यान केंद्रित किया। हालांकि डोनाल्ड ट्रंप ने पहले टैरिफ लगाने की धमकी दी थी, लेकिन दोनों नेताओं ने बातचीत करने की इच्छा जताई, जिससे दोनों पक्षों की ओर से संभावित रियायतों की उम्मीदें बढ़ गई हैं। अपने सौदेबाजी वाले व्यक्तित्व के लिए मशहूर डोनाल्ड ट्रंप ने स्वीकार किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनसे "बहुत बेहतर वार्ताकार" हैं। एक हल्के-फुल्के पल में मोदी ने ट्रंप के प्रतिष्ठित "MAGA" नारे का इस्तेमाल करते हुए कहा कि वह "भारत को फिर से महान बनाने" के लिए प्रतिबद्ध हैं। दोनों विश्व नेताओं के बीच हुई बैठक ने वैश्विक मीडिया का भी काफी ध्यान खींचा है, जिसमें विभिन्न आउटलेट्स ने उनकी चर्चाओं के प्रमुख पहलुओं का विश्लेषण किया है।

विश्व मीडिया ने पीएम मोदी-डोनाल्ड ट्रम्प की बैठक को इस तरह से कवर किया:

व्यापार और आर्थिक संबंध

समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने बताया कि नरेंद्र मोदी और डोनाल्ड ट्रम्प ने 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को दोगुना करके 500 बिलियन डॉलर करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है। उनकी चर्चा में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, सेमीकंडक्टर और रणनीतिक खनिज जैसे प्रमुख क्षेत्र शामिल थे, जिसमें दोनों नेताओं ने पारस्परिक रूप से लाभकारी व्यापार समझौते की आवश्यकता पर जोर दिया। हालांकि, एक अन्य समाचार एजेंसी एसोसिएटेड प्रेस ने भारत के उच्च आयात शुल्कों की ट्रम्प की आलोचना को उजागर किया, उन्हें "बहुत अनुचित" कहा, और पारस्परिक शुल्क लागू करने पर अपने रुख को दोहराया।

रक्षा और रणनीतिक साझेदारी

फाइनेंशियल टाइम्स ने बताया कि अमेरिका भारत के साथ सैन्य संबंधों को मजबूत करना चाहता है, जिसमें 10 वर्षीय रक्षा सहयोग योजना के तहत एफ-35 लड़ाकू विमानों की संभावित बिक्री शामिल है। यह कदम इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन के प्रभाव का मुकाबला करने की वाशिंगटन की व्यापक रणनीति के अनुरूप है।

आव्रजन और मानवाधिकार

अवैध आव्रजन का मुद्दा भी प्रमुखता से छाया रहा। रॉयटर्स के अनुसार, मोदी ने आश्वासन दिया कि भारत अमेरिका में अवैध रूप से रह रहे अपने नागरिकों को वापस लेने के लिए तैयार है और मानव तस्करी नेटवर्क को खत्म करने के लिए संयुक्त प्रयासों का आह्वान किया। उल्लेखनीय रूप से, दोनों नेताओं ने अल्पसंख्यक अधिकारों जैसे संवेदनशील मुद्दों पर चर्चा करने से परहेज किया, जिससे वकालत समूहों की कुछ आलोचना हुई।

भारत अमेरिका से तेल आयात को बढ़ावा देगा

समाचार एजेंसी ब्लूमबर्ग ने बताया कि भारत दोनों देशों के बीच व्यापार असंतुलन को कम करने के प्रयास में अमेरिका से तेल और गैस आयात को बढ़ावा देना चाहता है और संभावित प्रतिशोधात्मक शुल्कों से बचें। "मुझे लगता है कि हमने लगभग 15 बिलियन अमेरिकी डॉलर का ऊर्जा उत्पादन खरीदा है," ब्लूमबर्ग ने विदेश सचिव विक्रम मिसरी के हवाले से गुरुवार को वाशिंगटन में एक मीडिया ब्रीफिंग में कहा। "इस बात की अच्छी संभावना है कि यह आंकड़ा 25 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ जाएगा," उन्होंने कहा। मिसरी ने कहा कि "यह पूरी तरह से संभव है कि बढ़ी हुई ऊर्जा खरीद भारत और अमेरिका के बीच घाटे को प्रभावित करने में योगदान देगी।"

बैठक पर वैश्विक दृष्टिकोण

बीबीसी ने बताया कि बैठक काफी हद तक प्रतीकात्मक थी, जिसमें व्यापार विवादों पर बहुत कम प्रगति हुई। हालांकि, इसने स्वीकार किया कि दोनों नेताओं ने रणनीतिक संबंधों और साझा भू-राजनीतिक हितों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को मजबूत करने के लिए इस अवसर का उपयोग किया।

अल जजीरा ने मानवाधिकारों की चिंताओं पर ध्यान केंद्रित किया, लोकतांत्रिक मूल्यों और प्रेस की स्वतंत्रता पर चर्चा को दरकिनार करने के लिए दोनों नेताओं की आलोचना की।

समाचार एजेंसी एएफपी ने व्यापक भू-राजनीतिक संदर्भ पर जोर दिया, यह देखते हुए कि बैठक क्षेत्र में चीन के प्रभाव का मुकाबला करने के लिए एक बड़ी अमेरिकी रणनीति का हिस्सा थी। एजेंसी ने यह भी बताया कि कड़े बयानों के बावजूद, व्यापार घर्षण को हल करने में तत्काल बहुत कम प्रगति हुई है। 

एबीसी न्यूज ने दोनों देशों में घरेलू प्रतिक्रियाओं पर रिपोर्ट दी, जिसमें बताया गया कि बैठक को कूटनीतिक सफलता के रूप में देखा गया, भारत और अमेरिका में विपक्षी नेताओं ने ठोस समझौतों की कमी की आलोचना की। नेटवर्क ने यह भी नोट किया कि अमेरिका में भारतीय प्रवासियों तक मोदी की पहुंच इस यात्रा का एक महत्वपूर्ण पहलू था। 

सीएनएन ने बताया कि ट्रम्प के टैरिफ विकासशील देशों, खासकर भारत, ब्राजील, वियतनाम और अन्य दक्षिण पूर्व एशियाई और अफ्रीकी देशों को बहुत प्रभावित कर सकते हैं, क्योंकि उनके देशों में लाए जाने वाले अमेरिकी सामानों पर लगाए जाने वाले टैरिफ दरों में अमेरिका द्वारा लगाए जाने वाले टैरिफ दरों की तुलना में सबसे बड़ा अंतर है। उदाहरण के लिए, 2022 में, भारत से आयात पर अमेरिका की औसत टैरिफ दर 3% थी, जबकि अमेरिका से आयात पर भारत की औसत टैरिफ दर 9.5% थी, "इसने विश्व बैंक के आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया।

भारत को मिलने वाला है दुनिया का सबसे खतरनाक हथियार, क्या एफ-35 पर डील हो गई पक्की?


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भारत को दुनिया का सबसे खतरनाक हथियार मिलने वाला है। दरअसल, अमेरिका ने भारत को दुनिया के सबसे खतरनाक स्टेल्थ फाइटर जेट F-35 बेचने की पेशकश कर दी है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने गुरुवार को कहा कि अमेरिका भारत को एफ-35 स्टेल्थ फाइटर जेट बेचेगा। ट्रंप ने वॉशिंगटन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, इस साल से हम भारत को कई अरब डॉलर के हथियार बेचने जा रहे हैं। हम भारत को एफ-35 स्टेल्थ फाइटर जेट देने का रास्ता भी साफ कर रहे हैं।

ट्रंप की इस पेशकश के बाद भारत ने कहा है कि अमेरिका से F-35 लड़ाकू विमान खरीदने की प्रक्रिया अभी शुरू नहीं हुई है। यह अभी सिर्फ एक प्रस्ताव के स्तर पर है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मुलाकात के बाद विदेश सचिव विक्रम मिश्री ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया, यह अभी प्रस्ताव के चरण में है। मुझे नहीं लगता कि इस बारे में औपचारिक प्रक्रिया अभी तक शुरू हुई है।

क्यों है F-35 लड़ाकू विमान की डील मुश्किल?

वहीं, अमेरिका से F-35 लड़ाकू विमान के सौदे में कई अड़चनें आ सकती हैं। भारत के रूस के साथ अच्छे रक्षा संबंध हैं और अमेरिका उन देशों को एफ-35 बेचने में सावधानी बरतता है जहां से इसकी तकनीक लीक होने का खतरा हो सकता है। इसी वजह से अमेरिका ने तुर्की को एफ-35 देने से मना कर दिया था, क्योंकि उसे डर था कि रूस इसकी तकनीक चुरा सकता है। यह सौदा भारत को रूस से दूर करने की अमेरिका की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है. क्योंकि भारत ने 2018 में रूस से S-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम खरीदा था।

F-35 की खासियत

F-35 लाइटनिंग-II एक अत्याधुनिक पांचवीं पीढ़ी का स्टेल्थ फाइटर विमान है। अमेरीका की लॉकहीड मार्टिन ने इसे विकसित किया है। यह फाइटर अलग अलग तरह के कांबेट मिशनों को अंजाम देने के लिए डिज़ाइन किया गया है। इसमें एयर टू एयर, एयर टू ग्राउंड और इंटेलिजेंस जानकारी इकट्ठा करने और स्ट्रेजिक मिशन को अंजाम दिया जा सकता है। इसके 3 वेरियंट है। एयर फोर्स के लिए F-35A, F-35B वर्टिकल टेक ऑफ लैंडिंग क्षमता वाला और F-35C नौसेना के एयरक्राफ्ट कैरियर से इस्तेमाल किए जाने वाला है। यह एक सिंगल इंजन एयरक्राफ्ट है। इसकी रफ्तार 1.6 मैक प्रतिघंट है. अधिकत्म 50000 फिट की ऊंचाई तक आसानी से उड़ान भर सकता है। एक बार टेकऑफ लेने के बाद यह 2200 किलोमीटर तक उड़ सकता है। इसमें स्टील्थ तकनीक के चलते यह दुश्मन की रड़ार की पकड़ में नहीं आता। F-35 KS इंटर्नल कंपार्टमेंट में AMRAAM, AIM-120, और एंटी-शिप मिसाइल जैसी लंबी दूरी की मिसाइलें आसानी से ले जा सकता है। इस एयरक्राफ्ट में एक 25 MM की गन भी लगी है। इसका कॉकपिट पूरी तरह से डिजिटल है।

अब इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट के खिलाफ ट्रंप का बड़ा फैसला, जानिए क्यों लगाया बैन?

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अमेरिका के राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप एक बार फिर अमेरिका के राष्ट्रपति चुने गए हैं। अपने शपथ ग्रहण समारोह के बाद से ही लगातार वो अपने एक्‍शन मोड में हैं। ट्रंप एक के बाद एक फैसलों से दुनिया का ध्‍यान अपनी तरफ आकर्षित कर रहे हैं। अब डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका और उसके करीबी इजरायल को निशाना बनाने वाले अंतरराष्‍ट्रीय अपराध न्यायालय पर प्रतिबंध लगा दिया है। दरअसल, आईसीसी ने प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया था। इसी के आधार पर अमेरिका ने ये कार्रवाई की है।

डोनाल्ड ट्रंप ने आईसीसी पर बैन लगाने की वजह बताते हुए कहा, अमेरिका और हमारे करीबी सहयोगी इजराइल को निशाना बनाने वाली नाजायज और निराधार कार्रवाइयों में शामिल होने और नेतन्याहू और उनके पूर्व रक्षा मंत्री, योव गैलेंट के खिलाफ “आधारहीन गिरफ्तारी वारंट” जारी करके अपनी शक्ति का दुरुपयोग करने की वजह से बैन लगाया गया है। साथ ही आदेश में कहा गया है कि अमेरिका और इजराइल पर आईसीसी का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है। इसी के साथ आदेश में कोर्ट को लेकर कहा गया है कि अदालत ने दोनों देशों के खिलाफ अपने एक्शन से एक “खतरनाक मिसाल” सामने रखी है।

आदेश में कहा गया है कि अमेरिका आईसीसी के “उल्लंघनों” के लिए जिम्मेदार लोगों पर ठोस एक्शन लेगा। उल्लंघन करने पर एक्शन में लोगों की प्रोपर्टी को ब्लॉक किया जा सकता है। इसी के साथ आईसीसी अधिकारियों, कर्मचारियों और उनके रिश्तेदारों को अमेरिका में एंट्री भी नहीं दी जाएगी।

नेतन्याहू के वाशिंगटन दौरे के बाद कार्रवाई

ट्रंप की यह कार्रवाई कोर्ट पर तब हुई है जब इजराइल के पीएम नेतन्याहू वाशिंगटन के दौरे पर पहुंचे थे। उन्होंने और ट्रंप ने मंगलवार को व्हाइट हाउस में बातचीत की और नेतन्याहू ने गुरुवार का कुछ समय कैपिटल हिल में सांसदों के साथ बैठक में बिताया। इसी के बाद अब ट्रंप ने उस कोर्ट पर बैन लगा दिया है जिसने नेतन्याहू के खिलाफ अरेस्ट वारंट जारी किया था।

आईसीसी को मान्यता नहीं देते अमेरिका-इजराइल

बता दे कि अमेरिका और न ही इजराइल इस अदालत के सदस्य है और वो इसको मान्यता भी नहीं देते हैं। इजराइल की ही तरह अमेरिका भी कोर्ट के सदस्य देशों में शामिल नहीं है। कोर्ट के सदस्यों में 124 देश शामिल है। इससे पहले भी कोर्ट पर ट्रंप का चाबुक चला है। साल 2020 में, अफगानिस्तान पर अमेरिका सहित कई जगह से हुए युद्ध के चलते जांच शुरू की गई थी, लेकिन इस जांच के चलते ट्रंप ने वकील फतौ बेनसौदा पर बैन लगा दिया था. हालांकि, राष्ट्रपति जो बाइडेन ने उन प्रतिबंधों को हटा दिया था।

दुनिया भर में आर्थिक मदद पहुँचाने वाली अमेरिकी एजेंसी यूएसएड बंद, जानें भारत के लिए क्यों अहम

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अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिकी सरकार की प्रमुख विदेशी सहायता एजेंसी यूएस एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (USAID) को बंद करके उसे विदेश मंत्रालय में शामिल करने एलान किया है। ट्रंप प्रशासन ने पहले विश्व भर में यूएसएड एजेंसी के प्रत्यक्ष कर्मचारियों को छुट्टी पर भेज दिया उसके बाद उसपर “ताला जड़” दिया।

मंगलवार कोऑआनलाइन पोस्ट किए गए एक नोटिस में कर्मचारियों को घर लौटने के लिए 30 दिन का समय दिया गया है। वाशिंगटन में भी यूएसएड के सैकड़ों कर्मचारियों को छुट्टी पर भेज दिया गया और उनसे कहा गया है कि शहर में एजेंसी के कार्यालय सप्ताह के शेष दिनों के लिए बंद रहेंगे।

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 20 जनवरी को पदभार संभालने के बाद अरबपति एलन मस्क को तकरीबन सभी अमेरिकी विदेशी सहायता की समीक्षा करने का निर्देश दिया था। ट्रंप की ओर से विदेशी सहायता पर रोक लगाए जाने के बाद हजारों यूएसएड कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया गया और दुनियाभर में इसके कार्यक्रम बंद कर दिए गए।

ट्रंप ने कहा- एजेंसी को 'कट्टर वामपंथी सनकी' चला रहे

राष्ट्रपति ट्रंप और उनके सबसे शीर्ष के सलाहकार, अरबपति एलन मस्क यूएसएड के कड़े आलोचक रहे हैं। बीते सोमवार को व्हाइट हाउस में पत्रकारों से बात करते हुए ट्रंप ने आरोप लगाया कि इस एजेंसी को 'कट्टर वामपंथी सनकी' चला रहे हैं। वे बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार कर रहे हैं और नाम और अन्य जानकारियां साझा नहीं कर रहे हैं। ट्रंप प्रशासन में सरकारी खर्च कटौती के लिए बने विभाग के अनौपचारिक प्रमुख एलन मस्क ने भी यूएसएड को बंद करने की बात कही थी। बीते एक सप्ताह में यूएसएड के दो शीर्ष अधिकारियों को छुट्टी पर भेज दिया गया और एजेंसी की वेबसाइट डाउन हो गई। यूएसएड पर भ्रष्टाचार और आर्थिक अनियमितता के आरोपों के अलावा मस्क ने कई गंभीर आरोप लगाए हैं।

मस्क ने बताया आपराधिक संगठन

अपने मालिकाना हक वाले सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म एक्स पर मस्क ने यूएसएड को 'बुराई', 'एक आपराधिक संगठन' और 'कट्टर वामपंथी राजनीतिक मनोवैज्ञानिक अभियान' (आम तौर पर षड्यंत्रकारी या बुरे कारनामों को ढंकने के लिए इस्तेमाल होने वाला शब्द) कहा। सोमवार को एक्स पर एक लाइव स्ट्रीम के दौरान उन्होंने कहा, इस पूरे मामले से निजात पाने की जरूरत है। यह लाइलाज है... हम इसे बंद करने जा रहे हैं।

भारत-विरोधी गतिविधियों में शामिल संगठनों को भी मिली मदद

बता दें कि यूएस एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (USAID) अमेरिकी सरकार की एक वैधानिक निकाय है। यूएसएड पूरी दुनिया में गैर सरकारी संगठनों, सहायता ग्रुपों और ग़ैर लाभकारी संस्थाओं को अरबों डॉलर की मदद देती है। हालांकि, ये बात कम ही लोगों को पता है कि इस एजेंसी से मिलने वाला पैसा भारत-विरोधी गतिविधियों में शामिल संगठनों को जाता था। फलाह-ए-इंसानियत फाउंडेशन (FIF), जो कि हाफिज सईद के लश्कर-ए-तैयबा (LET) का मुखौटा संगठन है। इस समूह को यूएसएड के माध्यम से फंडिंग मिलती थी। यह फाउंडेशन पाकिस्तान से संचालित होता है और आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्त पाया गया है।

भारत को कितनी मदद मिलती है?

यूएसएड के जरिए भारत को भी मदद मिलती है। भारत को स्वास्थ्य, शिक्षा, पर्यावरण, स्वच्छ ऊर्जा, पानी और स्वच्छता जैसे क्षेत्रों में सहायता मिली है। खुद यूएसएड की वेबसाइट पर भारत को दी गई मदद के बारे में जो जानकारी दी गई है उसके अनुसार, इसने पोषण, टीकाकरण, स्वच्छता, पर्यावरण, क्लीन एनर्जी, स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्र में अहम भूमिका निभाई।

यूएसएड की मदद से भारत में 8 कृषि विश्वविद्यालय, 14 इंजीनियरिंग कॉलेज स्थापित किए गए हैं। इसके अलावा, देश का पहला भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान यानी आईआईटी खड़गपुर भी यूएसएड की मदद से स्थापित किया गया था।

पिछले चार सालों में भारत को 65 करोड़ डॉलर की मदद मिली

लेकिन साल 2004 में सूनामी के दौरान भारत की तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने सशर्त विदेशी मदद लेने की नीति में बदलाव किया, जिसके बाद यूएसएड से भारत को मिलने वाली मदद में अपेक्षाकृत कमी आई। हालांकि कोविड महामारी के बाद से भारत को मिलने वाली यूएसएड मदद में बढ़ोतरी देखी गई। अमेरिकी सरकार के फॉरेन असिस्टेंस पोर्टल के मुताबिक़, पिछले चार सालों में भारत को 65 करोड़ डॉलर की मदद मिली। जबकि 2001 से लेकर अबतक भारत को 2.86 अरब डॉलर की मदद मिल चुकी है। पोर्टल के अनुसार, यूएसएड की ओर से भारत को 2022 में सबसे अधिक 22.82 करोड़ डॉलर की मदद मिली, 2023 में 17.57 करोड़ डॉलर और 2024 में 15.19 करोड़ डॉलर की मदद मिली। यूएसएड से मदद पाने के मामले में भारत तीसरे स्थान पर रहा है।

ट्रंप से बहस के बाद खतरे में जेलेंस्की की कुर्सी! यूक्रेन के विपक्षी नेताओं के संपर्क में अमेरिका

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व्हाइट हाउस के ओवल ऑफिस में यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की का डोनाल्ड ट्रंप को आंखे दिखाना महंगा पड़ने वाला है। जेलेंस्की का कभी भी तख्तापलट हो सकता है। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है कि ओवल ऑफिस में हुई बहस के करीब एक हफ्ते के बाद डोनाल्ड ट्रंप की टीम के कम से कम चार अधिकारियों ने यूक्रेन के विपक्षी नेताओं के साथ बात की है।

जेलेंस्की रूस के साथ जंग के बीच पिछले दिनों मदद मांगने के लिए अमेरिका पहुंचे थे। हालांकि, हालात हाथों से निकल गए। ओवल ऑफिस में ट्रंप और जेलेंस्की के बीच हुई तीखी नोंकझोक हुई। जिसे पूरी दुनिया ने देखा। इस झड़प के बाद बाद जेलेंस्की को ना सिर्फ खाली हाथ लौटना पड़ा, बल्कि अमेरिका से रिश्ते भी बिगड़ गए। जिसके बाद से अमेरिका-यूक्रेन संबंधों पर अटकलों का बाजार गर्म है। अब अमेरिकी अखबार द पॉलिटिको की रिपोर्ट की मानें तो ट्रंप यूक्रेन में राष्ट्रपति जेलेंस्की के तख्तापलट की कोशिश में जुट गए हैं।

द पॉलिटिको की रिपोर्ट बुधवार को ट्रंप के 4 अधिकारी यूक्रेन पहुंचे, जहां वे जेलेंस्की के विरोधी नेताओं से मुलाकात की। मुलाकात का मकसद यूक्रेन में जल्द ही राष्ट्रपति के चुनाव कराना था। रिपोर्ट के मुताबिक बुधवार को ट्रंप के 4 वरिष्ठ सहयोगियों ने यूक्रेनी विपक्षी नेता यूलिया तिमोशेंको और पेट्रो पोरोशेंको की पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के साथ बातचीत की। ट्रंप के अधिकारियों ने यूक्रेनी नेताओं से पूछा कि यहां चुनाव कब तक होने चाहिए और उसके लिए क्या करने की जरूरत है। पॉलटिका के मुताबिक ट्रंप के अधिकारियों ने जेलेंस्की से ऐसे वक्त में मुलाकात की, जब अमेरिका और रूस की कोशिश यूक्रेन में राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव कराने की है।

आपको बता दें कि फिलहाल यूक्रेन में मार्शल लॉ लगा हुआ है और मौजूदा हालातों में चुनाव नहीं हो सकते हैं। डोनाल्ड ट्रंप इलेक्शन करवाने में हो रही देरी की बार बार आलोचना कर चुके हैं। पिछले साल राष्ट्रपति जेलेंस्की का शासनकाल खत्म हो गया था और उसके बाद से ही रूस लगातार उन्हें यूक्रेन का 'अवैध नेता' कहता आया है।

विपक्षी नेताओं से बात दर्शाता है कि डोनाल्ड ट्रंप यूक्रेन की अंदरूनी राजनीति में दखलअंदाजी कर रहे हैं। टिमोशेंको से बात करने वाले डोनाल्ड ट्रंप के सहयोगियों ने कहा कि उन्हें विश्वास है कि चल रहे युद्ध और सरकार के भीतर व्यापक भ्रष्टाचार की वजह से जेलेंस्की वोट खो देंगे। हालांकि जेलेंस्की ने वाकई अपनी लोकप्रियता खो दी थी लेकिन पिछले हफ्ते ट्रंप से बहस के बाद उनकी लोकप्रियता में जबरस्त उछाल देखने को मिला है। दूसरी तरफ इस हफ्ते अमेरिका की वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लुटनिक ने उन दावों को खारिज कर दिया कि डोनाल्ड ट्रंप, यूक्रेनी राजनीति को प्रभावित कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि ट्रंप की एकमात्र दिलचस्पी यूक्रेन युद्ध में शांति खोजना है।

ट्रंप की टैरिफ वाली धमकी, भारत पर क्या होगा असर?

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राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने साफ कर दिया है कि अमेरिका 2 अप्रैल से दुनियाभर के देशों पर रेसिप्रोकल टैरिफ लगाने जा रहा है। रेसिप्रोकल टैरिफ का मतलब है जो अमेरिका पर जितना टैरिफ लगाता है, अमेरिका भी उस देश पर उतना ही टैरिफ लगाएगा। इसका मतलब है कि कई देशों को अमेरिका में एक्सपोर्ट होने वाले सामान पर ज्यादा टैरिफ देना होगा। रेसिप्रोकल टैरिफ भारत के लिए भी काफी नुकसानदेह साबित हो सकता है। भारत के कई उद्योगों पर इसका सीधा असर देखने को मिलेगा।

अमेरिकी संसद को संबोधित करते हुए भी डोनाल्ड ट्रंप ने भारत का नाम लिया है और पारस्परिक टैरिफ लगाने की बात कही है। ट्रंप ने कहा, "अन्य देशों ने दशकों से हमारे खिलाफ टैरिफ का इस्तेमाल किया है। अब उन अन्य देशों के खिलाफ उनके हथियार का ही इस्तेमाल करने की हमारी बारी है। औसतन यूरोपीय संघ, चीन, ब्राजील, भारत और अनगिनत अन्य देश हमसे बहुत अधिक टैरिफ वसूलते हैं। उनकी तुलना में हम उनसे कम टैरिफ लेते हैं। यह बिल्कुल अनुचित है। अगले महीने से भारत के ऊपर अमेरिका का पारस्परिक टैरिफ सिस्टम शुरू हो जाएगा, यानि अमेरिकी सामानों पर भारत जितना टैरिफ लगाएगा, अमेरिका भी भारतीय सामानों पर उतना ही टैरिफ लगाएगा।

चीन से लेकर कनाडा तक डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ फैसलों पर अपनी कड़ी प्रतिक्रिया दे रहे हैं लेकिन भारत शांति का द्वीप बना हुआ है। ट्रंप के टैरिफ से दुनिया में उथल-पुथल है, जबकि डोनाल्ड ट्रंप पहले ही स्टील और एल्युमीनियम आयातों पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाकर भारत को बड़ा झटका दे चुके हैं फिर भी भारत शांत है।

इकोनॉमिक टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में ज्यादा समय तक शांति देखने को नहीं मिलेगी। भारत लंबे समय तक प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकते हैं। भारत को अप्रैल महीने में टैरिफ युद्ध में फंसा लिया जाएगा जब पारस्परिक टैरिफ फैसला लागू हो जाएगा।

ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट में मामले से परिचित लोगों का हवाला देते हुए कहा गया है कि "भारतीय अधिकारी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की धमकी भरे पारस्परिक शुल्क से बचने के लिए कारों और रसायनों सहित कई तरह के आयातों पर शुल्क कम करने के तरीके तलाश रहे हैं। नई दिल्ली में अधिकारी ऑटोमोबाइल, कुछ कृषि उत्पादों, रसायनों, महत्वपूर्ण फार्मास्यूटिकल्स, साथ ही कुछ चिकित्सा उपकरणों और इलेक्ट्रॉनिक्स के लिए शुल्क कम करने पर चर्चा कर रहे हैं।"

भारत को नुकसान का अनुमान

एक रिपोर्ट के मुताबिक ट्रंप द्वारा प्रस्तावित 100% टैरिफ भारत पर महत्वपूर्ण असर डाल सकती है, जिससे भारतीय निर्यातकों को लगभग 7 बिलियन डॉलर प्रति वर्ष का नुकसान होने का अनुमान लगाया गया है। अमेरिका के पारस्परिक टैरिफ को लेकर ऑटो इंडस्ट्री और कृषि इंडस्ट्री के कारोबारी टेंशन में हैं। यह टैरिफ खासतौर से ऑटोमोबाइल, कृषि, रसायन, धातु उत्पाद, आभूषण, फार्मास्यूटिकल्स और खाद्य उत्पादों जैसे क्षेत्रों को प्रभावित करेगा।

पीयूष गोयल अमेरिका दौरे पर

दूसरी तरफ, भारत के वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल इन मुद्दों पर चर्चा करने और संभावित व्यापार समझौतों पर बातचीत के लिए अमेरिका की यात्रा की है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत ने पहले ही कुछ वस्तुओं पर टैरिफ कम किए हैं और ऊर्जा आयात बढ़ाने के साथ-साथ रक्षा उपकरणों की खरीद भी बढ़ाई है ताकि दोनों देशों के बीच व्यापार तनाव को कम हो सके। बता दें कि इससे पहले पिछले महीने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान दोनों देशों ने 2025 की आखिर तक व्यापार समझौते के पहले खंड पर काम करने पर सहमति जताई है, जिसका लक्ष्य 2030 तक 500 बिलियन डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार करना है।

चीन, कनाडा और मेक्सिको ने डोनाल्ड ट्रम्प के टैरिफ सुधार प्रस्ताव को नकारते हुए किया पलटवार

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AP

मेक्सिको, कनाडा और चीन से आयात पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा घोषित टैरिफ मंगलवार को लागू हो गए, जिससे इस मुद्दे पर कई दिनों से चल रही अटकलें खत्म हो गईं। टैरिफ, जो मूल रूप से पिछले महीने लागू होने वाले थे, पर 30 दिनों का विराम लगा, क्योंकि ट्रम्प ने देशों से अमेरिका में फेंटेनाइल दवा के प्रवाह को रोकने या ‘गंभीर रूप से सीमित’ करने के लिए कहा था। सोमवार को, रिपब्लिकन ने कहा कि टैरिफ के संबंध में कनाडा और मेक्सिको के साथ किसी समझौते के लिए ‘कोई जगह नहीं’ है, उन्होंने कहा कि योजना मंगलवार को निर्धारित समय पर लागू होगी।

प्रस्तावित योजना कनाडा और मेक्सिको से आयात पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने की थी। चीन पर भी पहले से लागू 10 प्रतिशत के अतिरिक्त 10 प्रतिशत टैरिफ लगाया गया। मंगलवार आधी रात को टैरिफ लागू हुए, जिसके जवाब में तीनों देशों ने अपने-अपने जवाबी उपाय किए। मेक्सिको, कनाडा और चीन ने कैसे जवाबी कार्रवाई की ? 

कनाडा

निवर्तमान कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने मंगलवार से 30 बिलियन कनाडाई डॉलर मूल्य के अमेरिकी सामानों पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने की घोषणा की। यही नहीं, 125 बिलियन कनाडाई डॉलर मूल्य के अमेरिकी सामानों पर शेष जवाबी टैरिफ 21 दिनों के भीतर लगाए जाएंगे। रॉयटर्स ने ट्रूडो के हवाले से कहा, "जब तक अमेरिकी व्यापार कार्रवाई वापस नहीं ली जाती, तब तक हमारे टैरिफ लागू रहेंगे और अगर अमेरिकी टैरिफ बंद नहीं होते हैं, तो हम कई गैर-टैरिफ उपायों को आगे बढ़ाने के लिए प्रांतों और क्षेत्रों के साथ सक्रिय और चल रही चर्चाओं में हैं।"

मेक्सिको

अमेरिका के दक्षिणी पड़ोसी ने सोमवार को घोषणा की कि अगर ट्रम्प अपनी टैरिफ योजनाओं के साथ आगे बढ़ते हैं, तो उसके पास बैकअप योजनाएँ हैं। बहुत अधिक विवरण दिए बिना, मेक्सिको की राष्ट्रपति क्लाउडिया शिनबाम ने कहा कि अगर मंगलवार को अमेरिका ने उस पर टैरिफ लगाया तो देश तैयार है।

चीन

चीन ने भी नए अमेरिकी टैरिफ के जवाब में कई कृषि उत्पादों पर टैरिफ लगाने की घोषणा की। चीन के वित्त मंत्रालय ने मंगलवार को कहा कि वह सोयाबीन और मकई से लेकर डेयरी और बीफ़ तक के कृषि उत्पादों पर 10 प्रतिशत से 15 प्रतिशत के बीच अतिरिक्त टैरिफ लगाएगा। समाचार एजेंसी रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, चीन में 10% प्रतिशोधी टैरिफ का सामना करने वाले अमेरिकी उत्पादों में सोयाबीन, ज्वार, सूअर का मांस, बीफ़, जलीय उत्पाद, फल, सब्जियाँ और डेयरी उत्पाद शामिल हैं।

चीनी वित्त मंत्रालय ने कहा कि चिकन, गेहूं, मक्का और कपास पर 15 प्रतिशत टैरिफ लगाया जाएगा। टैरिफ के साथ-साथ, चीन ने 25 अमेरिकी फर्मों पर निर्यात और निवेश प्रतिबंध भी लगाए हैं।

ट्रंप-जेलेंस्की विवाद पर खुश हो गया रूस, बोला- जेलेंस्की को मारा नहीं...संयम दिखाना एक चमत्कार है

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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और यूक्रेनी राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की के बीच बैठक में विवाद के बाद रूस गदगद है।यूक्रेन के प्रेसीडेंट वोलोडिमीर जेलेंस्की की अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उपराष्ट्रपति जेडी वेंस के साथ हुई तीखी बहस पर रूस ने प्रतिक्रिया दी है। रूस का कहना है कि जेलेंस्की का बर्ताव बिल्कुल ठीक नहीं था और उनके खराब रवैये के बावजूद ट्रंप ने संयम दिखाया है वो चमत्कार से कम नहीं है।

रूस ने ‘संयम’ दिखाने के लिए ट्रंप की प्रशंसा की

रूस के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया ज़खारोवा ने भी यूक्रेनी नेता के साथ ‘संयम’ दिखाने के लिए ट्रंप की प्रशंसा की साथ ही उन्होंने जेलेंस्की को “बदमाश” कहा। मारिया ज़खारोवा ने टेलीग्राम पर लिखा, 'मुझे लगता है कि जेलेंस्की का सबसे बड़ा झूठ यह था कि 2022 में यूक्रेन अकेला था, उसको किसी का समर्थन नहीं था। जेलेंस्की ने एक के बाद एक झूठ बोला और बदमाशी की। मुझे हैरत है कि ट्रंप और वेंस ने उनको मारा कैसे नहीं, इतना संयम दिखाना एक चमत्कार है।'

रूस ने कहा-“उचित तमाचा”

वहीं, रूस के पूर्व राष्ट्रपति और वर्तमान शीर्ष अधिकारी दिमित्री मेदवेदेव ने ओवल ऑफिस में ट्रंप द्वारा ज़ेलेंस्की झाड़ लगाने को “उचित तमाचा” बताया। रूस की सिक्योरिटी काउंसिल के उपाध्यक्ष मेदवेदेव ने टेलीग्राम पर पोस्ट किया, "ओवल ऑफिस में क्रूर तरीके से पिटाई की गई।" मेदवेदेव ने कहा, "पहली बार, ट्रंप ने कोकिन जोकर को उसके मुंह पर सच बताया। कीव शासन तीसरे विश्व युद्ध के साथ खेल रहा है। एहसान फरामोश सुअर को सुअर पालने के मालिकों से जोरदार तमाचा मिला है। यह जरूरी है, लेकिन यह पर्याप्त नहीं। हमें नाजी मशीन को सैन्य सहायता बंद करनी चाहिए।"

कैसे हुई शुरुआत?

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की के बीच शुक्रवार को ओवल ऑफिस में अहम बैठक हुई। ट्रंप, उपराष्ट्रपति जेडी वेंस और जेलेंस्की के बीच लगभग 45 मिनट बातचीत हुई, जिसमें अंतिम 10 मिनट तीनों के बीच काफी तीखी बहस हुई। जेलेंस्की ने अपना पक्ष रखते हुए कूटनीति के प्रति रूस की प्रतिबद्धता पर संदेह व्यक्त किया। तनातनी की शुरुआत वेंस की ओर से जेलेंस्की से यह कहे जाने के साथ हुई कि मुझे लगता है कि आपका ओवल ऑफिस में आकर अमेरिकी मीडिया के सामने इस मामले पर मुकदमा करने की कोशिश करना अपमानजनक है। राष्ट्रपति जी पूरे सम्मान के साथ मैं यह बात कर रहा हूं। जेलेंस्की ने आपत्ति जताने की कोशिश की, जिस पर ट्रंप ने तेज आवाज में कहा, 'आप लाखों लोगों के जीवन के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं।' ट्रंप ने कहा, 'आप तीसरे विश्वयुद्ध को न्योता दे रहे हैं और आप जो कर रहे हैं वह देश के प्रति बहुत अपमानजनक है, यह वह देश है जिसने आपका बहुत अधिक समर्थन किया है।'

व्हाइट हाउस में ट्रंप-जेलेंस्की के बीच तेज बहस, नोकझोंक के बाद ट्रंप बोले- तीसरे विश्व युद्ध का जुआ खेल रहे हैं आप

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यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की ने व्हाइट हाउस में शुक्रवार को राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मुलाकात की। व्हाइट हाउस में डोनाल्ड ट्रंप और यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर की मुलाकात एक तू-तू मैं-मैं वाली बहस में बदल गई। जेलेंस्की के लिए यह बैठक बेहद शर्मिंदा करने वाली रही। जहां अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप और उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने उन्हें ओवल ऑफिस में जमकर सुनाया। जेलेंस्की ने कहा कि वह युद्ध विराम मानने के लिए तैयार नहीं हैं। इस पर ट्रंप ने कहा कि यूक्रेनी नेता तीसरे विश्व युद्ध का जुआ खेल रहे हैं। बहस के दौरान ट्रंप ने तीखे तेवर में यूक्रेन से खनिज सौदे के लिए दबाव बनाया और कहा कि या तो आप डील करिए वरना हम (शांति प्रक्रिया) से बाहर हो जाएंगे। इसके कुछ देर बाद ही जेलेंस्की वॉइट हाउस की मीटिंग से बाहर चले गए।

ट्रंप ने कैमरों के सामने जेलेंस्की को डांटा

ओवल ऑफिस में हुई मुलाकात के दौरान जब रूस-यूक्रेन युद्ध विराम का मुद्दा उठा तो दोनों नेताओं में बहस हो गई। जेलेंस्की ने कहा कि वह युद्ध विराम मानने के लिए तैयार नहीं हैं। जेलेंस्की ने ट्रंप से कहा कि व्लादिमीर पुतिन के शांति के वादों पर भरोसा नहीं किया जा सकता। उन्होंने रूसी नेता के वादे तोड़ने के इतिहास को भी याद दिलाया। इस पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सीधे तौर पर टीवी कैमरों के सामने जेलेंस्की को डांटा और कहा कि वह युद्ध हार रहे हैं।

ट्रंप ने जेलेंस्की को फटकार लगाई

ट्रंप ने कहा, आपके हाथ में कोई कार्ड नहीं है। उन्होंने कहा कि आप हमारा अनादर कर रहे हैं। हम तीसरे विश्व युद्ध की ओर बढ़ रहे हैं, आपको इसके साथ खेलने का कोई अधिकार नहीं है। आपको आभारी होना चाहिए. इस तरह से काम करना बहुत मुश्किल होगा। ओवल ऑफिस में बैठे हुए ट्रंप ने जेलेंस्की को फटकार लगाई और उन्हें ज्यादा “आभारी” होने के लिए कहा और कहा, “आप यह तय करने की स्थिति में नहीं हैं कि हम क्या महसूस करने जा रहे हैं?”

जेडी वेंस ने प्रोपेगैंडा यात्रा करने का आरोप लगाया

बहस में अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस भी कूद पड़े और जेलेंस्की पर प्रोपेगैंडा यात्रा करने का आरोप लगाया। वेंस ने कहा, मुझे लगता है कि आपके लिए ओवल ऑफिस में आना और अमेरिकी मीडिया के सामने इस मामले पर मुकदमा चलाने की कोशिश करना अपमानजनक है।

मुलाकात के बाद राष्ट्रपति ट्रंप ने जारी किया बयान

मुलाकात के बाद राष्ट्रपति ट्रंप ने बयान जारी किया जिसमें जेलेंस्की के व्यवहार को अमेरिका के लिए अपमानजनक कहा। बयान में कहा गया कि 'आज व्हाइट हाउस में हमारी बहुत सार्थक बैठक हुई। बहुत कुछ ऐसा सीखा गया जो इस तरह की तपिश और दबाव की बातचीत के बगैर कभी नहीं समझा जा सकता था।

बयान में आगे कहा गया कि 'यह आश्चर्यजनक है कि भावनाओं के माध्यम से क्या सामने आता है, और मैंने यह निर्धारित किया है कि राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की शांति के लिए तैयार नहीं हैं यदि अमेरिका इसमें शामिल है, क्योंकि उन्हें लगता है कि हमारी भागीदारी उन्हें वार्ता में बड़ा लाभ देती है। मुझे लाभ नहीं चाहिए, मुझे शांति चाहिए। उन्होंने प्रिय ओवल ऑफिस में संयुक्त राज्य अमेरिका का अपमान किया। जब वह शांति के लिए तैयार होंगे तो वह वापस आ सकते हैं।'

ट्रंप के वफादार काश पटेल एफबीआई निदेशक बने, सीनेट की मंजूरी मिलते ही दहाड़ा

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अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारतीय मूल के काश पटेल को फेडरल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन यानी एफबीआई का निदेशक नियुक्त किया है। डोनाल्ड ट्रंप के कट्टर समर्थक काश पटेल की एफबीआई चीफ के रूप में नियुक्ति को सीनेट ने हरी झंडी दिखा दी। सीनेट में हुए मतदान में उन्हें 51-49 के मामूली अंतर से बहुमत हासिल हुआ। डेमोक्रेट सांसदों ने काश पटेल की नियुक्ति का विरोध किया। उनकी योग्यता पर सवाल उठाए। उनका कहना था कि काश पटेल ट्रंप के इशारे पर काम करेंगे और रिपब्लिकन नेता के विरोधियों को निशाना बनाएंगे।

ट्रंप का जताया आभार

एफबीआई के निदेशक के रूप में पुष्टि किए जाने के बाद, राष्ट्रपति ट्रंप का आभार व्यक्त किया और एजेंसी को 'पारदर्शी, जवाबदेह और न्याय के लिए प्रतिबद्ध' बनाने की कसम खाई। सोशल मीडिया मंच एक्स पर एक पोस्ट साझा करते हुए, काश पटेल ने कहा, मैं संघीय जांच ब्यूरो के नौवें निदेशक के रूप में पुष्टि किए जाने पर सम्मानित महसूस हो रहा है। राष्ट्रपति ट्रंप और अटॉर्नी जनरल पाम बॉन्डी को आपके अटूट विश्वास और समर्थन के लिए धन्यवाद।

अमेरिका के खिलाफ काम करने वालों को चेतावनी

काश पटेल ने लिखा कि डायरेक्टर के रूप में मेरा मिशन साफ है, हम एक ऐसी एफबीआई का पुनर्निर्माण करेंगे जिस पर अमेरिकी लोगों को गर्व हो। और जो लोग अमेरिकियों को नुकसान पहुंचाना चाहते हैं, वे इसे अपनी चेतावनी मानें। हम इस दुनिया के हर कोने में आपका पता लगा लेंगे।

काश पटेल की नियुक्ति के बाद तय है कि एफबीआई में बड़े बदलाव संभव हैं। काश पटेल पहले ही कह चुके हैं कि वह एफबीआई में बड़े बदलाव करेंगे। इनमें वाशिंगटन स्थित मुख्यालय में कर्मचारियों की संख्या में कमी और खुफिया जानकारी जुटाने और राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे कामों के बजाय अपराध से निपटने जैसे एफबीआई के पारंपरिक कामों पर नए सिरे से जोर देना शामिल है। पिछले दो दशकों में एफबीआई की भूमिका को खुफिया जानकारी जुटाने और राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे कामों से परिभाषित किया जाता रहा है।

नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा: मोदी-ट्रंप मुलाकात और व्यापार सौदे पर वैश्विक प्रतिक्रियाएँ

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PTI

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने गुरुवार को व्हाइट हाउस में अपनी बैठक के दौरान व्यापार, टैरिफ और रक्षा संबंधों पर ध्यान केंद्रित किया। हालांकि डोनाल्ड ट्रंप ने पहले टैरिफ लगाने की धमकी दी थी, लेकिन दोनों नेताओं ने बातचीत करने की इच्छा जताई, जिससे दोनों पक्षों की ओर से संभावित रियायतों की उम्मीदें बढ़ गई हैं। अपने सौदेबाजी वाले व्यक्तित्व के लिए मशहूर डोनाल्ड ट्रंप ने स्वीकार किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनसे "बहुत बेहतर वार्ताकार" हैं। एक हल्के-फुल्के पल में मोदी ने ट्रंप के प्रतिष्ठित "MAGA" नारे का इस्तेमाल करते हुए कहा कि वह "भारत को फिर से महान बनाने" के लिए प्रतिबद्ध हैं। दोनों विश्व नेताओं के बीच हुई बैठक ने वैश्विक मीडिया का भी काफी ध्यान खींचा है, जिसमें विभिन्न आउटलेट्स ने उनकी चर्चाओं के प्रमुख पहलुओं का विश्लेषण किया है।

विश्व मीडिया ने पीएम मोदी-डोनाल्ड ट्रम्प की बैठक को इस तरह से कवर किया:

व्यापार और आर्थिक संबंध

समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने बताया कि नरेंद्र मोदी और डोनाल्ड ट्रम्प ने 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को दोगुना करके 500 बिलियन डॉलर करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है। उनकी चर्चा में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, सेमीकंडक्टर और रणनीतिक खनिज जैसे प्रमुख क्षेत्र शामिल थे, जिसमें दोनों नेताओं ने पारस्परिक रूप से लाभकारी व्यापार समझौते की आवश्यकता पर जोर दिया। हालांकि, एक अन्य समाचार एजेंसी एसोसिएटेड प्रेस ने भारत के उच्च आयात शुल्कों की ट्रम्प की आलोचना को उजागर किया, उन्हें "बहुत अनुचित" कहा, और पारस्परिक शुल्क लागू करने पर अपने रुख को दोहराया।

रक्षा और रणनीतिक साझेदारी

फाइनेंशियल टाइम्स ने बताया कि अमेरिका भारत के साथ सैन्य संबंधों को मजबूत करना चाहता है, जिसमें 10 वर्षीय रक्षा सहयोग योजना के तहत एफ-35 लड़ाकू विमानों की संभावित बिक्री शामिल है। यह कदम इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन के प्रभाव का मुकाबला करने की वाशिंगटन की व्यापक रणनीति के अनुरूप है।

आव्रजन और मानवाधिकार

अवैध आव्रजन का मुद्दा भी प्रमुखता से छाया रहा। रॉयटर्स के अनुसार, मोदी ने आश्वासन दिया कि भारत अमेरिका में अवैध रूप से रह रहे अपने नागरिकों को वापस लेने के लिए तैयार है और मानव तस्करी नेटवर्क को खत्म करने के लिए संयुक्त प्रयासों का आह्वान किया। उल्लेखनीय रूप से, दोनों नेताओं ने अल्पसंख्यक अधिकारों जैसे संवेदनशील मुद्दों पर चर्चा करने से परहेज किया, जिससे वकालत समूहों की कुछ आलोचना हुई।

भारत अमेरिका से तेल आयात को बढ़ावा देगा

समाचार एजेंसी ब्लूमबर्ग ने बताया कि भारत दोनों देशों के बीच व्यापार असंतुलन को कम करने के प्रयास में अमेरिका से तेल और गैस आयात को बढ़ावा देना चाहता है और संभावित प्रतिशोधात्मक शुल्कों से बचें। "मुझे लगता है कि हमने लगभग 15 बिलियन अमेरिकी डॉलर का ऊर्जा उत्पादन खरीदा है," ब्लूमबर्ग ने विदेश सचिव विक्रम मिसरी के हवाले से गुरुवार को वाशिंगटन में एक मीडिया ब्रीफिंग में कहा। "इस बात की अच्छी संभावना है कि यह आंकड़ा 25 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ जाएगा," उन्होंने कहा। मिसरी ने कहा कि "यह पूरी तरह से संभव है कि बढ़ी हुई ऊर्जा खरीद भारत और अमेरिका के बीच घाटे को प्रभावित करने में योगदान देगी।"

बैठक पर वैश्विक दृष्टिकोण

बीबीसी ने बताया कि बैठक काफी हद तक प्रतीकात्मक थी, जिसमें व्यापार विवादों पर बहुत कम प्रगति हुई। हालांकि, इसने स्वीकार किया कि दोनों नेताओं ने रणनीतिक संबंधों और साझा भू-राजनीतिक हितों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को मजबूत करने के लिए इस अवसर का उपयोग किया।

अल जजीरा ने मानवाधिकारों की चिंताओं पर ध्यान केंद्रित किया, लोकतांत्रिक मूल्यों और प्रेस की स्वतंत्रता पर चर्चा को दरकिनार करने के लिए दोनों नेताओं की आलोचना की।

समाचार एजेंसी एएफपी ने व्यापक भू-राजनीतिक संदर्भ पर जोर दिया, यह देखते हुए कि बैठक क्षेत्र में चीन के प्रभाव का मुकाबला करने के लिए एक बड़ी अमेरिकी रणनीति का हिस्सा थी। एजेंसी ने यह भी बताया कि कड़े बयानों के बावजूद, व्यापार घर्षण को हल करने में तत्काल बहुत कम प्रगति हुई है। 

एबीसी न्यूज ने दोनों देशों में घरेलू प्रतिक्रियाओं पर रिपोर्ट दी, जिसमें बताया गया कि बैठक को कूटनीतिक सफलता के रूप में देखा गया, भारत और अमेरिका में विपक्षी नेताओं ने ठोस समझौतों की कमी की आलोचना की। नेटवर्क ने यह भी नोट किया कि अमेरिका में भारतीय प्रवासियों तक मोदी की पहुंच इस यात्रा का एक महत्वपूर्ण पहलू था। 

सीएनएन ने बताया कि ट्रम्प के टैरिफ विकासशील देशों, खासकर भारत, ब्राजील, वियतनाम और अन्य दक्षिण पूर्व एशियाई और अफ्रीकी देशों को बहुत प्रभावित कर सकते हैं, क्योंकि उनके देशों में लाए जाने वाले अमेरिकी सामानों पर लगाए जाने वाले टैरिफ दरों में अमेरिका द्वारा लगाए जाने वाले टैरिफ दरों की तुलना में सबसे बड़ा अंतर है। उदाहरण के लिए, 2022 में, भारत से आयात पर अमेरिका की औसत टैरिफ दर 3% थी, जबकि अमेरिका से आयात पर भारत की औसत टैरिफ दर 9.5% थी, "इसने विश्व बैंक के आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया।

भारत को मिलने वाला है दुनिया का सबसे खतरनाक हथियार, क्या एफ-35 पर डील हो गई पक्की?


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भारत को दुनिया का सबसे खतरनाक हथियार मिलने वाला है। दरअसल, अमेरिका ने भारत को दुनिया के सबसे खतरनाक स्टेल्थ फाइटर जेट F-35 बेचने की पेशकश कर दी है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने गुरुवार को कहा कि अमेरिका भारत को एफ-35 स्टेल्थ फाइटर जेट बेचेगा। ट्रंप ने वॉशिंगटन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, इस साल से हम भारत को कई अरब डॉलर के हथियार बेचने जा रहे हैं। हम भारत को एफ-35 स्टेल्थ फाइटर जेट देने का रास्ता भी साफ कर रहे हैं।

ट्रंप की इस पेशकश के बाद भारत ने कहा है कि अमेरिका से F-35 लड़ाकू विमान खरीदने की प्रक्रिया अभी शुरू नहीं हुई है। यह अभी सिर्फ एक प्रस्ताव के स्तर पर है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मुलाकात के बाद विदेश सचिव विक्रम मिश्री ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया, यह अभी प्रस्ताव के चरण में है। मुझे नहीं लगता कि इस बारे में औपचारिक प्रक्रिया अभी तक शुरू हुई है।

क्यों है F-35 लड़ाकू विमान की डील मुश्किल?

वहीं, अमेरिका से F-35 लड़ाकू विमान के सौदे में कई अड़चनें आ सकती हैं। भारत के रूस के साथ अच्छे रक्षा संबंध हैं और अमेरिका उन देशों को एफ-35 बेचने में सावधानी बरतता है जहां से इसकी तकनीक लीक होने का खतरा हो सकता है। इसी वजह से अमेरिका ने तुर्की को एफ-35 देने से मना कर दिया था, क्योंकि उसे डर था कि रूस इसकी तकनीक चुरा सकता है। यह सौदा भारत को रूस से दूर करने की अमेरिका की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है. क्योंकि भारत ने 2018 में रूस से S-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम खरीदा था।

F-35 की खासियत

F-35 लाइटनिंग-II एक अत्याधुनिक पांचवीं पीढ़ी का स्टेल्थ फाइटर विमान है। अमेरीका की लॉकहीड मार्टिन ने इसे विकसित किया है। यह फाइटर अलग अलग तरह के कांबेट मिशनों को अंजाम देने के लिए डिज़ाइन किया गया है। इसमें एयर टू एयर, एयर टू ग्राउंड और इंटेलिजेंस जानकारी इकट्ठा करने और स्ट्रेजिक मिशन को अंजाम दिया जा सकता है। इसके 3 वेरियंट है। एयर फोर्स के लिए F-35A, F-35B वर्टिकल टेक ऑफ लैंडिंग क्षमता वाला और F-35C नौसेना के एयरक्राफ्ट कैरियर से इस्तेमाल किए जाने वाला है। यह एक सिंगल इंजन एयरक्राफ्ट है। इसकी रफ्तार 1.6 मैक प्रतिघंट है. अधिकत्म 50000 फिट की ऊंचाई तक आसानी से उड़ान भर सकता है। एक बार टेकऑफ लेने के बाद यह 2200 किलोमीटर तक उड़ सकता है। इसमें स्टील्थ तकनीक के चलते यह दुश्मन की रड़ार की पकड़ में नहीं आता। F-35 KS इंटर्नल कंपार्टमेंट में AMRAAM, AIM-120, और एंटी-शिप मिसाइल जैसी लंबी दूरी की मिसाइलें आसानी से ले जा सकता है। इस एयरक्राफ्ट में एक 25 MM की गन भी लगी है। इसका कॉकपिट पूरी तरह से डिजिटल है।

अब इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट के खिलाफ ट्रंप का बड़ा फैसला, जानिए क्यों लगाया बैन?

#donaldtrumpimposessanctionsoninternationalcriminal_court

अमेरिका के राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप एक बार फिर अमेरिका के राष्ट्रपति चुने गए हैं। अपने शपथ ग्रहण समारोह के बाद से ही लगातार वो अपने एक्‍शन मोड में हैं। ट्रंप एक के बाद एक फैसलों से दुनिया का ध्‍यान अपनी तरफ आकर्षित कर रहे हैं। अब डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका और उसके करीबी इजरायल को निशाना बनाने वाले अंतरराष्‍ट्रीय अपराध न्यायालय पर प्रतिबंध लगा दिया है। दरअसल, आईसीसी ने प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया था। इसी के आधार पर अमेरिका ने ये कार्रवाई की है।

डोनाल्ड ट्रंप ने आईसीसी पर बैन लगाने की वजह बताते हुए कहा, अमेरिका और हमारे करीबी सहयोगी इजराइल को निशाना बनाने वाली नाजायज और निराधार कार्रवाइयों में शामिल होने और नेतन्याहू और उनके पूर्व रक्षा मंत्री, योव गैलेंट के खिलाफ “आधारहीन गिरफ्तारी वारंट” जारी करके अपनी शक्ति का दुरुपयोग करने की वजह से बैन लगाया गया है। साथ ही आदेश में कहा गया है कि अमेरिका और इजराइल पर आईसीसी का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है। इसी के साथ आदेश में कोर्ट को लेकर कहा गया है कि अदालत ने दोनों देशों के खिलाफ अपने एक्शन से एक “खतरनाक मिसाल” सामने रखी है।

आदेश में कहा गया है कि अमेरिका आईसीसी के “उल्लंघनों” के लिए जिम्मेदार लोगों पर ठोस एक्शन लेगा। उल्लंघन करने पर एक्शन में लोगों की प्रोपर्टी को ब्लॉक किया जा सकता है। इसी के साथ आईसीसी अधिकारियों, कर्मचारियों और उनके रिश्तेदारों को अमेरिका में एंट्री भी नहीं दी जाएगी।

नेतन्याहू के वाशिंगटन दौरे के बाद कार्रवाई

ट्रंप की यह कार्रवाई कोर्ट पर तब हुई है जब इजराइल के पीएम नेतन्याहू वाशिंगटन के दौरे पर पहुंचे थे। उन्होंने और ट्रंप ने मंगलवार को व्हाइट हाउस में बातचीत की और नेतन्याहू ने गुरुवार का कुछ समय कैपिटल हिल में सांसदों के साथ बैठक में बिताया। इसी के बाद अब ट्रंप ने उस कोर्ट पर बैन लगा दिया है जिसने नेतन्याहू के खिलाफ अरेस्ट वारंट जारी किया था।

आईसीसी को मान्यता नहीं देते अमेरिका-इजराइल

बता दे कि अमेरिका और न ही इजराइल इस अदालत के सदस्य है और वो इसको मान्यता भी नहीं देते हैं। इजराइल की ही तरह अमेरिका भी कोर्ट के सदस्य देशों में शामिल नहीं है। कोर्ट के सदस्यों में 124 देश शामिल है। इससे पहले भी कोर्ट पर ट्रंप का चाबुक चला है। साल 2020 में, अफगानिस्तान पर अमेरिका सहित कई जगह से हुए युद्ध के चलते जांच शुरू की गई थी, लेकिन इस जांच के चलते ट्रंप ने वकील फतौ बेनसौदा पर बैन लगा दिया था. हालांकि, राष्ट्रपति जो बाइडेन ने उन प्रतिबंधों को हटा दिया था।

दुनिया भर में आर्थिक मदद पहुँचाने वाली अमेरिकी एजेंसी यूएसएड बंद, जानें भारत के लिए क्यों अहम

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अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिकी सरकार की प्रमुख विदेशी सहायता एजेंसी यूएस एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (USAID) को बंद करके उसे विदेश मंत्रालय में शामिल करने एलान किया है। ट्रंप प्रशासन ने पहले विश्व भर में यूएसएड एजेंसी के प्रत्यक्ष कर्मचारियों को छुट्टी पर भेज दिया उसके बाद उसपर “ताला जड़” दिया।

मंगलवार कोऑआनलाइन पोस्ट किए गए एक नोटिस में कर्मचारियों को घर लौटने के लिए 30 दिन का समय दिया गया है। वाशिंगटन में भी यूएसएड के सैकड़ों कर्मचारियों को छुट्टी पर भेज दिया गया और उनसे कहा गया है कि शहर में एजेंसी के कार्यालय सप्ताह के शेष दिनों के लिए बंद रहेंगे।

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 20 जनवरी को पदभार संभालने के बाद अरबपति एलन मस्क को तकरीबन सभी अमेरिकी विदेशी सहायता की समीक्षा करने का निर्देश दिया था। ट्रंप की ओर से विदेशी सहायता पर रोक लगाए जाने के बाद हजारों यूएसएड कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया गया और दुनियाभर में इसके कार्यक्रम बंद कर दिए गए।

ट्रंप ने कहा- एजेंसी को 'कट्टर वामपंथी सनकी' चला रहे

राष्ट्रपति ट्रंप और उनके सबसे शीर्ष के सलाहकार, अरबपति एलन मस्क यूएसएड के कड़े आलोचक रहे हैं। बीते सोमवार को व्हाइट हाउस में पत्रकारों से बात करते हुए ट्रंप ने आरोप लगाया कि इस एजेंसी को 'कट्टर वामपंथी सनकी' चला रहे हैं। वे बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार कर रहे हैं और नाम और अन्य जानकारियां साझा नहीं कर रहे हैं। ट्रंप प्रशासन में सरकारी खर्च कटौती के लिए बने विभाग के अनौपचारिक प्रमुख एलन मस्क ने भी यूएसएड को बंद करने की बात कही थी। बीते एक सप्ताह में यूएसएड के दो शीर्ष अधिकारियों को छुट्टी पर भेज दिया गया और एजेंसी की वेबसाइट डाउन हो गई। यूएसएड पर भ्रष्टाचार और आर्थिक अनियमितता के आरोपों के अलावा मस्क ने कई गंभीर आरोप लगाए हैं।

मस्क ने बताया आपराधिक संगठन

अपने मालिकाना हक वाले सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म एक्स पर मस्क ने यूएसएड को 'बुराई', 'एक आपराधिक संगठन' और 'कट्टर वामपंथी राजनीतिक मनोवैज्ञानिक अभियान' (आम तौर पर षड्यंत्रकारी या बुरे कारनामों को ढंकने के लिए इस्तेमाल होने वाला शब्द) कहा। सोमवार को एक्स पर एक लाइव स्ट्रीम के दौरान उन्होंने कहा, इस पूरे मामले से निजात पाने की जरूरत है। यह लाइलाज है... हम इसे बंद करने जा रहे हैं।

भारत-विरोधी गतिविधियों में शामिल संगठनों को भी मिली मदद

बता दें कि यूएस एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (USAID) अमेरिकी सरकार की एक वैधानिक निकाय है। यूएसएड पूरी दुनिया में गैर सरकारी संगठनों, सहायता ग्रुपों और ग़ैर लाभकारी संस्थाओं को अरबों डॉलर की मदद देती है। हालांकि, ये बात कम ही लोगों को पता है कि इस एजेंसी से मिलने वाला पैसा भारत-विरोधी गतिविधियों में शामिल संगठनों को जाता था। फलाह-ए-इंसानियत फाउंडेशन (FIF), जो कि हाफिज सईद के लश्कर-ए-तैयबा (LET) का मुखौटा संगठन है। इस समूह को यूएसएड के माध्यम से फंडिंग मिलती थी। यह फाउंडेशन पाकिस्तान से संचालित होता है और आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्त पाया गया है।

भारत को कितनी मदद मिलती है?

यूएसएड के जरिए भारत को भी मदद मिलती है। भारत को स्वास्थ्य, शिक्षा, पर्यावरण, स्वच्छ ऊर्जा, पानी और स्वच्छता जैसे क्षेत्रों में सहायता मिली है। खुद यूएसएड की वेबसाइट पर भारत को दी गई मदद के बारे में जो जानकारी दी गई है उसके अनुसार, इसने पोषण, टीकाकरण, स्वच्छता, पर्यावरण, क्लीन एनर्जी, स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्र में अहम भूमिका निभाई।

यूएसएड की मदद से भारत में 8 कृषि विश्वविद्यालय, 14 इंजीनियरिंग कॉलेज स्थापित किए गए हैं। इसके अलावा, देश का पहला भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान यानी आईआईटी खड़गपुर भी यूएसएड की मदद से स्थापित किया गया था।

पिछले चार सालों में भारत को 65 करोड़ डॉलर की मदद मिली

लेकिन साल 2004 में सूनामी के दौरान भारत की तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने सशर्त विदेशी मदद लेने की नीति में बदलाव किया, जिसके बाद यूएसएड से भारत को मिलने वाली मदद में अपेक्षाकृत कमी आई। हालांकि कोविड महामारी के बाद से भारत को मिलने वाली यूएसएड मदद में बढ़ोतरी देखी गई। अमेरिकी सरकार के फॉरेन असिस्टेंस पोर्टल के मुताबिक़, पिछले चार सालों में भारत को 65 करोड़ डॉलर की मदद मिली। जबकि 2001 से लेकर अबतक भारत को 2.86 अरब डॉलर की मदद मिल चुकी है। पोर्टल के अनुसार, यूएसएड की ओर से भारत को 2022 में सबसे अधिक 22.82 करोड़ डॉलर की मदद मिली, 2023 में 17.57 करोड़ डॉलर और 2024 में 15.19 करोड़ डॉलर की मदद मिली। यूएसएड से मदद पाने के मामले में भारत तीसरे स्थान पर रहा है।