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रेप मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट की टिप्पणी को सुप्रीम कोर्ट ने कहा असंवेदनशील, जानें क्या था हाईकोर्ट का जजमेंट

#allahabadhighcourtjudgementcontroversysupremecourt

नाबालिग लड़की के साथ रेप की कोशिश से जुड़े एक मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के 17 मार्च को दिए विवादित फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया था, जिस पर फैसला आ गया है। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले में की गई टिप्पणियों पर रोक लगाई। कोर्ट ने कहा कि टिप्पणी पूरी तरह असंवेदनशीलता और अमानवीय दृष्टिकोण को दर्शाती है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश में की गई विवादास्पद टिप्पणियों पर शुरू की गई स्वत: संज्ञान कार्यवाही में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र, यूपी सरकार और अन्य को नोटिस जारी किया। बता दें कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा था कि छाती पकड़ना, पायजामा का नाड़ा खींचना दुष्कर्म के प्रयास का अपराध नहीं है।

इस मामले की जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ सुनवाई कर रही थी। इलाहाबाद हाई कोर्ट के विवादित फैसले के मसले पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमें यह कहते हुए दुख हो रहा है कि निर्णय लेखक की ओर से संवेदनशीलता की कमी दर्शाती है। यह निर्णय तत्काल नहीं लिया गया था और इसे सुरक्षित रखने के 4 महीने बाद सुनाया गया। इस प्रकार इसमें विवेक का प्रयोग किया गया। हम आमतौर पर इस चरण में स्थगन देने में हिचकिचाते हैं, लेकिन चूंकि पैरा 21, 24 और 26 में की गई टिप्पणियां कानून के सिद्धांतों से अनभिज्ञ हैं और अमानवीय दृष्टिकोण को दर्शाती हैं। हम उक्त पैरा में की गई टिप्पणियों पर रोक लगाते हैं।

हाईकोर्ट ने दिआ था विवादित फैसला

इससे पहले हाईकोर्ट ने दो आरोपियों पवन व आकाश के मामले में यह विवादित फैसला दिया था। शुरुआत में, दोनों पर दुष्कर्म और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम की धाराओं के तहत आरोप लगाए गए थे। लेकिन, हाईकोर्ट ने फैसले में कहा था, उनका कृत्य दुष्कर्म या दुष्कर्म का प्रयास माने जाने के योग्य नहीं था।किसी लड़की के निजी अंग पकड़ लेना, उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ देना और जबरन उसे पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश से रेप या 'अटेम्प्ट टु रेप' का मामला नहीं बनता।

सोमवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा ने ये फैसला सुनाते हुए 2 आरोपियों पर लगी धाराएं बदल दीं। वहीं 3 आरोपियों के खिलाफ दायर क्रिमिनल रिवीजन पिटीशन स्वीकार कर ली थी।

क्या है पूरा मामला?

यूपी के कासगंज की एक महिला ने 12 जनवरी, 2022 को कोर्ट में एक शिकायत दर्ज कराई थी। उसने आरोप था लगाया कि 10 नवंबर, 2021 को वह अपनी 14 साल की बेटी के साथ कासगंज के पटियाली में देवरानी के घर गई थीं। उसी दिन शाम को अपने घर लौट रही थीं। रास्ते में गांव के रहने वाले पवन, आकाश और अशोक मिल गए।

पवन ने बेटी को अपनी बाइक पर बैठाकर घर छोड़ने की बात कही। मां ने उस पर भरोसा करते हुए बाइक पर बैठा दिया, लेकिन रास्ते में पवन और आकाश ने लड़की के प्राइवेट पार्ट को पकड़ लिया। आकाश ने उसे पुलिया के नीचे खींचने का प्रयास करते हुए उसके पायजामे की डोरी तोड़ दी।

लड़की की चीख-पुकार सुनकर ट्रैक्टर से गुजर रहे सतीश और भूरे मौके पर पहुंचे। इस पर आरोपियों ने देसी तमंचा दिखाकर दोनों को धमकाया और फरार हो गए।

हाईकोर्ट ने कहा था कि आरोपियों पर ‘अटेम्प्ट टु रेप’ का चार्ज हटाया जाए। उन पर यौन उत्पीड़न की अन्य धाराओं के तहत केस चलाने का आदेश दिया था। जब पीड़ित बच्ची की मां आरोपी पवन के घर शिकायत करने पहुंची, तो पवन के पिता अशोक ने उसके साथ गालीगलौज की और जान से मारने की धमकी दी। महिला अगले दिन थाने में एफआईआर दर्ज कराने गई। जब पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की, तो उसने अदालत का रुख किया।

*देवरिया न्यायालय में लॉ बुक्स की बाइंडिंग के लिए कोटेशन आमंत्रित*

देवरिया- केंद्रीय नाजिर, नजारत अनुभाग जजी ने बताया है कि जनपद न्यायाधीश के निर्देशानुसार पुस्तकालय एवं लेखन सामग्री अनुभाग जजी देवरिया के मासिक और वार्षिक लॉ बुक्स जनरल की बाइंडिंग से संबंधित कार्य कराया जाना है। इसके लिए बाइंडिंग फर्मों से बाइंडिंग कार्य का कोटेशन आमंत्रित किया गया है।

इच्छुक फर्में मानक और गुणवत्ता के अनुसार प्रति पुस्तक बाइंडिंग कार्य के लिए अपनी कोटेशन दर, सूचना निर्गत होने की तिथि से दो सप्ताह के अंदर, किसी भी कार्य दिवस में, ईमेल आईडी पर अथवा पंजीकृत डाक या व्यक्तिगत रूप से कार्यालय नजारत अनुभाग जजी, देवरिया में प्रस्तुत कर सकते हैं।

मुसलमानों पर दिए अपने बयान पर कायम हैं जस्टिस यादव, बोले-मैंने किसी न्यायिक सीमा का उल्लंघन नहीं किया

#justice_shekhar_yadav_respond_allahabad_high_court_his_remarks_muslims

इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस शेखर कुमार यादव लगातार सुर्खियों में बने हुए हैं। पिछले दिनों प्रयागराज में विश्व हिंदू परिषद के कार्यक्रम में उन्होंने हिंदू और मुस्लिम धार्मिक कानूनों या मान्यताओं को लेकर बयान दिया था। इसके बाद वह विवादों के घेरे में आ गएय़ उनको सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम के सामने पेश भी होना पड़ा था। हालांकि, अपने बयान पर कायम हैं। सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की ओर से तलब किए जाने के एक महीने बाद, जस्टिस यादव ने मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर कहा है कि वह अपनी टिप्पणी पर कायम हैं, और उनके अनुसार यह न्यायिक आचरण के किसी भी सिद्धांत का उल्लंघन नहीं करती है।

सीजेआई ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस अरुण भांसाली से लेटेस्ट अपडेट मांगी थी। इसके बाद जस्टिस भांसाली ने जस्टिस कुमार से कॉलेजियम के बाद उनके जवाब मांगी थी, जिसके बाद उन्होंने लेटर लिख कर जवाब दिया। जस्टिस शेखर कुमार यादव ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को पत्र लिखकर बताया कि वह अपनी टिप्पणी पर कायम हैं, जो उनके अनुसार न्यायिक आचरण के किसी भी सिद्धांत का उल्लंघन नहीं करती है।

हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस अरुण भंसाली ने भी 17 दिसंबर को भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अगुवाई वाले कॉलेजियम के साथ जस्टिस यादव की बैठक के बाद उनसे जवाब तलब किया था। इस महीने की शुरुआत में, अंग्रेजी अखबार द इंडियन एक्सप्रेस की ओर से बताया गया कि सीजेआई ने मुख्य न्यायाधीश जस्टिस भंसाली को पत्र लिखकर इस मसले पर नई रिपोर्ट मांगी थी।

रिपोर्ट के मुताबिक जवाब मांगने वाले उक्त पत्र में लॉ के एक छात्र और एक आईपीएस अधिकारी की ओर से उनके भाषण के खिलाफ दायर की गई शिकायत का जिक्र किया गया था, जिसे सरकार ने अनिवार्य रूप से रिटायर कर दिया था।

रिपोर्ट के अनुसार के अनुसार, जस्टिस यादव ने अपने जवाब में दावा किया कि उनके भाषण को निहित स्वार्थ वाले लोगों की ओर से तोड़-मरोड़ कर पेश किया जा रहा है, और न्यायपालिका से जुड़े लोग जो सार्वजनिक रूप से खुद का बचाव करने में असमर्थ हैं, उन्हें न्यायिक बिरादरी के सीनियर लोगों द्वारा सुरक्षा दिए जाने की जरुरत है।

क्या बोले थे यादव

जस्टिस यादव ने कहा, आपको यह गलतफहमी है कि अगर कोई कानून (यूसीसी) लाया जाता है, तो यह आपके शरीयत, आपके इस्लाम और आपके कुरान के खिलाफ होगा, लेकिन मैं एक और बात कहना चाहता हूं। चाहे वह आपका पर्सनल लॉ हो, हमारा हिंदू कानून हो, आपका कुरान हो या फिर हमारी गीता हो, जैसा कि मैंने कहा कि हमने अपनी प्रथाओं में बुराइयों (बुराइयों) को संबोधित किया है, कमियां थीं, दुरुस्त कर लिए हैं, छुआछूत, सती, जौहर, कन्या भ्रूण हत्या, हमने उन सभी मुद्दों को संबोधित किया है, फिर आप इस कानून को खत्म क्यों नहीं कर रहे हैं, कि जब आपकी पहली पत्नी मौजूद है, तो आप तीन पत्नियां रख सकते हैं, उसकी सहमति के बिना, यह स्वीकार्य नहीं है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट भर्ती 2024: 3306 पदों पर आवेदन कल से शुरू, कक्षा 6 से लेकर 12वीं पास तक करें अप्लाई

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश के जिला न्यायालयों में यूपी सिविल कोर्ट स्टाफ सेंट्रलाइज्ड भर्ती 2024-25 के तहत ग्रुप सी और डी के विभिन्न पदों पर भर्तियों का नोटिफिकेशन जारी कर दिया है. इसके लिए एप्लीकेशन प्रोसेस 4 अक्टूबर से शुरू होगा. अभ्यर्थी हाईकोर्ट की आधिकारिक वेबसाइट allahabadhighcourt.in के जरिए 24 अक्टूबर तक आवेदन कर सकते हैं. आवेदन ऑनलाइन मोड में ही करना होगा.

इस भर्ती प्रक्रिया के जरिए कुल 3306 पदों को भरा जाना है. इन पदों में स्टेनोग्राफर ग्रेड 3 के 583 पद, जूनियर असिस्टेंट के 1054, ड्राइवर के 30 और ट्यूबवेल ऑपरेटर कम इलेक्ट्रीशियन/ स्वीपर के कुल 1639 पद शामिल हैं.

ये होनी चाहिए आवेदन की योग्यता

स्टेनोग्राफर पदों के लिए आवेदन करने वाले कैंडिडेट का ग्रेजुएशन पास होने के साथ स्टेनोग्राफर में डिप्लोमा होना चाहिए. वहीं जूनियर असिस्टेंट के लिए 12वीं पास के साथ CCC सर्टिफिकेट होना चाहिए. ड्राइवर और ट्यूबवेल ऑपरेटर कम इलेक्ट्रीशियन पदों के लिए 10वीं पास होना चाहिए. स्वीपर पदों के लिए कैंडिडेट का क्लास 6 पास होना अनिवार्य है. सभी पदों के लिए अभ्यर्थी की उम्र 18 वर्ष से 40 वर्ष क बीच होनी चाहिए. उम्र की गणना 1 जुलाई 2024

एप्लीकेशन फीस

स्टेनोग्राफर पदों के लिए सामान्य और ओबीसी कैटेगरी के लिए अभ्यर्थी को 950 रुपए एप्लीकेशन फीस और बैंक शुल्क जमा करना होगा. वहीं एससी/एसटी वर्ग को 750 रुपए आवेदन शुल्क के साथ बैंक शुल्क देना होगा. सभी पदों के लिए आवेदन शुल्क अलग-अलग हैं. अधिक जानकारी के लिए अभ्यर्थी जारी भर्ती विज्ञापन को चेक कर सकते हैं.

ऐसे करें अप्लाई

हाईकोर्ट की आधिकारिक वेबसाइट allahabadhighcourt.in पर जाएं.

होम पेज पर नीचे दिए गए Recruitment टैब पर क्लिक करें.

अब नोटिफिकेशन को पढ़े और नियमानुसार आवेदन करें.

कैसे होगा चयन?

इन सभी पदों पर चयन लिखित परीक्षा के जरिए किया जाएगा. एग्जाम ओएमआर शीट पर होगा. इसके बाद हिंदी/अंग्रेजी कंप्यूटर टाइप टेस्ट, हिंदी/अंग्रेजी स्टेनोग्राफी टेस्ट और तकनीकी ड्राइविंग टेस्ट होगा.

राहुल गांधी की नागरिकता पर फिर छिड़ी बहस, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भारत सरकार से मांगा जवाब

#allahabad_high_court_seeks_answer_from_central_govt_on_rahul_gandhi_citizenship

राहुल गांधी की नागरिकता को लेकर एक बार फिर से बहस छिड़ गई है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुलगांधी की नागरिकता के विवाद पर केंद्र सरकार से ब्योरा मांगा है। कोर्ट ने नागरिकता अधिनियम-1955 के तहत की गई शिकायत पर केंद्र सरकार से कार्रवाई का ब्योरा मांगा है। मामले की अगली सुनवाई 30 सितंबर को होगी।

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेच में कांग्रेस नेता और लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी की ब्रिटिश नागरिकता को लेकर एक जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। ये याचिका कर्नाटक के बीजेपी कार्यकर्ता एस विग्नेश शिशिर ने दाखिल की है। याचिका में कहा गया है कि राहुल गांधी की नागरिकता को लेकर सीबीआई जांच कराई जाए। इसी याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस राजन रॉय और जस्टिस ओम प्रकाश शुक्ला की बेंच ने एएसजी सूर्यभान पांडेय को निर्देश देते हुए कहा कि वो इस मामले में केंद्रीय गृह मंत्रालय से जानकारी हासिल करें।

जून में रायबरेली लोकसभा से इलेक्शन को चुनौती देते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ में 3 महीने पहले ये जनहित याचिका दायर की गई थी। इसमें कहा गया है कि राहुल गांधी भारत के नहीं बल्कि ब्रिटेन के नागरिक हैं। इसके आधार पर राहुल गांधी का चुनाव पर्चा रद्द करने की मांग की गई थी।

जुलाई में इस याचिका को कोर्ट ने खारिज कर दिया था। इस पर कोर्ट ने कहा था कि याची पहले तो सिटीजनशिप एक्ट कतहत सक्षम प्राधिकारी के पास शिकायत कर सकता है। हालांकि याचिकाकर्ता का कहना है कि उसके पास पर्याप्त सबूत हैं कि राहुल गांधी ब्रिटेन नागरिक हैं। याची ने दलील दी कि उसके पास तमाम दस्तावेज और ब्रिटिश सरकार के कुछ ई-मेल हैं जिनसे ये साबित होता है कि राहुल गांधी एक ब्रिटिश नागरिक हैं। ऐसे में वो भारत में चुनाव लड़ने के अयोग्य है। वो लोकसभा के सदस्य पद पर नहीं रह सकते हैं।

याचिकाकर्ता ने गांधी की ब्रिटिश नागरिकता के आरोपों की सीबीआई जांच की मांग की है। उन्होंने राहुल गांधी की दोहरी नागरिकता को भारतीय न्याय संहिता व पासपोर्ट एक्ट के तहत अपराध बताया और केस दर्ज करने की मांग की। याची ने कहा कि वो इस संबंध में सक्षम अधिकारी से दो-दो बार शिकायत कर चुके हैं लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई, जिसके बाद उन्होंने कोर्ट में याचिका दाखिल है।

*वंचित तथा कमजोर वर्ग की प्रतिरक्षा हेतु लीगल एड डिफेंस काउंसलिंग की होगी स्थापना*

गोण्डा - गोण्डा में आपराधिक मामलों में वंचितों एवं कमजोर वर्ग की प्रतिरक्षा के लिए लीगल एड डिफेंस काउंसलिंग की स्थापना की जाएगी। जिस पर कई पदों पर आवेदन पत्र आमंत्रित किए गए हैं इसमें के लीगल एड डिफेंस काउंसिल का एक पद, डिप्टी के लीगल एड डिफेंस काउंसिल का एक पद व असिस्टेंट लीगल एट डिफेंस काउंसिल के दो पदों पर भर्ती की जाएगी।

सभी पदों के लिए योग्यता अलग-अलग निर्धारित की गई है। सभी पदों पर चयन समिति द्वारा आवेदक को मेरिट के आधार पर चयनित किया जाएगा। मेरिट आवेदकों की योग्यता के आधार पर बनेगी। इसमें आवेदक के विधिक ज्ञान, कौशल, वकालत प्रैक्टिस और अनुभव का ध्यान में रखा जाएगा। सभी पदों पर चयन 2 वर्षों के लिए संविदा पर किया जाएगा। कार्य संतोषजनक पाए जाने पर उनकी वार्षिक सेवा का विस्तार किया जाए सकेगा।

अपर जिला जज सचिव जिला विधिक सेवा प्राधिकरण गोण्डा नितिन श्रीवास्तव ने बताया कि सभी पदों हेतु आवेदन की अंतिम तिथि 15 फरवरी शाम 5 बजे तक निर्धारित की गई है। इच्छुक आवेदक आवेदन पूर्ण रूप से भरकर जिला विधिक सेवा प्राधिकरण गोंडा के कार्यालय में व्यक्तिगत रूप से अथवा स्पीड पोस्ट के माध्यम से जमा कर सकते हैं। आवेदन पत्र जनपद न्यायालय की वेबसाइट gonda.dcourts.gov.in उत्तर प्रदेश राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण की वेबसाइट upslsa.up.nic.in एवं माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद की वेबसाइट allahabadhighcourt.in से डाउनलोड किया जा सकता है। अधिक जानकारी के लिए जिला विधिक सेवा प्राधिकरण गोंडा के कार्यालय में संपर्क किया जा सकता है।

Allahabad High Court UP HJSOnline Form 2024

Important Dates :

  • Application : 15/01/2024
  • Last Date : 29/02/2024
  • Last Date Pay Exam Fee :  29/02/2024

Total Vacancy : 83

Age Limit (as on 01/01/2024) :

  • Min Age : 35 Yrs.
  • Max Age : 45 Yrs.

Application Fee :

  • General / OBC / EWS : ₹1400/-
  • SC / ST : ₹1200/-
  • PH Divyang Gen / OBC / EWS : ₹750/-
  • PH Divyang SC / ST : ₹500/-

For More Details, Please Read Official Notification Carefully OR Visit Official Website.

Important Links :

Apply Online : Link Activate on 15/01/2024

Download Notification : Click Here

Official Website : Official Website

सुप्रीम कोर्ट से मुस्लिम पक्ष को झटका, मथुरा ईदगाह मस्जिद में सर्वे पर रोक लगाने से किया इनकार

#supreme_court_refuses_to_stay_allahabad_high_court_order_on_survey_of_shahi_idgah 

मथुरा श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मामले में मुस्लिम पक्ष को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है, जिसमें परिसर में सर्वे को मंजूरी दी गई थी।सुप्रीम कोर्ट ने अधिवक्ता सर्वे को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा है और मुस्लिम पक्ष को राहत देने से इंकार कर दिया है।

सुप्रीम कोर्ट ने मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद में सर्वे कराए जाने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने से इनकार करते हुए कहा कि हम हाईकोर्ट के आदेश पर रोक नहीं लगाएंगे। यहां सिर्फ हाईकोर्ट द्वारा सारे मामले अपने पास ट्रांसफर का मामला लंबित है। कानून के मुताबिक नए आदेश के लिए नई याचिका दाखिल करनी होगी। सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले की 9 जनवरी को सुनवाई करेगा।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि हमारे यहां सिर्फ ट्रांसफर का मामला है। ऐसे में हाईकोर्ट द्वारा अगर कोई आदेश दिया जाता है तो उसे पक्षकार द्वारा नए सिरे से यहां चुनौती दी जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट अब 9 जनवरी को सुनवाई करेगा। लेकिन अगर कोई पक्ष चाहे तो पक्षकार मेंशन कर सकते हैं।

बता दें कि मुस्लिम पक्ष ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। श्रीकृष्‍ण जन्‍मभूमि और शाही ईदगाह विवाद मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने गुरुवार को विवादित परिसर का सर्वे करने का आदेश दे दिया था। इसके लिए 3 कमिश्‍नर भी नियुक्‍त कर दिए गए हैं। मथुरा में श्रीकृष्‍ण जन्‍मभूमि और शाही ईदगाह का मामला वर्षों से कानूनी दांव-पेच में फंसा हुआ है। श्रीकृष्‍ण जन्‍मभूमि का सर्वे कराने को लेकर हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। अब इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इसको लेकर महत्‍वपूर्ण आदेश दिया है।

महिला जज की 'इच्छामृत्यु' की मांग पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, सीजेआई ने इलाहाबाद हाइकोर्ट से से मांगी स्टेटस रिपोर्ट

#cji_chandrachud_summoned_allahabad_hc_for_status_report_over_female_judge_viral_letter 

उत्तर प्रदेश के बांदा जिले की महिला सिविल जज ने भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ से अपना जीवन समाप्त करने की अनुमति मांगी है। इस संबंध में महिला जज ने एक पत्र भेजा है, जिसमें उसने जिला जज द्वारा यौन उत्‍पीड़न करने का गंभीर आरोप भी लगाया है। महिला जज की वायरल चिट्ठी का सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लिया है। बांदा की महिला जज की चिट्ठी पर सुप्रीम कोर्ट ने दखल दिया है और चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट से इस मामले में स्टेटस रिपोर्ट मांगी है।

सूत्रों के मुताबिक, गुरुवार की देर रात चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने सुप्रीम कोर्ट के सेकेट्री जनरल अतुल एम कुरहेकर को इलाहाबाद हाईकोरट् प्रशासन से स्टेटस रिपोर्ट मांगने को कहा। एसजी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को पत्र लिखकर महिला जज द्वारा दी गई सारी शिकायतों की जानकारी मांगी है। साथ ही शिकायत से निपटने वाली आंतरिक शिकायत समिति के समक्ष कार्यवाही की स्थिति के बारे में पूछा है।

वायरल हो रही चिट्ठी के मुताबिक यूपी की एक महिला जज ने यौन प्रताड़ना का आरोप लगाते हुए इच्छामृत्यु की मांग की है। बांदा ज़िले में तैनात एक महिला जज की वायरल हो रही एक चिट्ठी में दावा किया कि एक पोस्टिंग के दौरान ज़िला जज और उनके करीबियों ने उनके साथ मानसिक और शरीरिक शोषण किया। दावा ये भी है कि जिला जज ने उसे रात में मिलने का दबाव बनाया।

बांदा में तैनात महिला जज ने अपनी चिट्ठी में कहा कि उसने इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश समेत अन्य सम्बंधित अधिकारियों से इस मामले की शिकायत की लेकिन किसी ने भी उससे एक बार ये नहीं पूछा कि आख़िर हुआ क्या है। महिला जज ने अपनी शिकायत के बाद भी कोई कार्रवाई न होने से निराशा ज़ाहिर करते हुए चिट्ठी लिखकर इच्‍छामृत्‍यु की मांग की।

ज्ञानवापी के बाद मथुरा के शाही ईदगाह का भी होगा सर्वे, इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा फैसला

#allahabadhighcourtallowedconductsurveyofshahiidgahmosquemathura

श्रीकृष्‍ण जन्‍मभूमि और शाही ईदगाह विवाद मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बड़ा फैसला दिया है। कोर्ट ने श्रीकृष्‍ण जन्‍मभूमि विवाद में विवादित परिसर का सर्वे करने का आदेश दे दिया है। विवादित परिसर का सर्वेक्षण एडवोकेट कमिश्नर से कराए जाने की मांग इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंजूर कर ली है। एडवोकेट कमिश्नर वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी के जरिए सर्वेक्षण कर सकेंगे। एडवोकेट कमिश्नर कौन होगा और कब से सर्वेक्षण शुरू होगा, इस पर हाईकोर्ट 18 दिसंबर को सुनवाई करेगा।

सर्वे ज्ञानव्यापी से थोड़ा अलग होगा

एएसआई सर्वे की मांग की याचिका इलाहाबाद हाईकोर्ट में दायर हुई थी। मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि से सटी हुई जो मस्जिद है, उसमें किसी एडवोकेट से सर्वे कराने की मांग की गई थी। इसमें अलग-अलग 18 याचिका डाली गई थीं। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने गुरुवार को इस मामले में एक साथ सुनवाई की। ज्ञानवापी की तर्ज पर मथुरा के विवादित परिसर का भी सर्वे होगा। हालांकि, यह सर्वे ज्ञानव्यापी से थोड़ा अलग होगा। क्योंकि वहां पर कोर्ट ने साइंटिफिक सर्वे कराया था, जो कि शाही ईदगाह मस्जिद पर यह सर्वे अभी नहीं होगा।

किसने दायर की थी याचिका?

यह याचिका भगवान श्रीकृष्ण विराजमान और सात अन्य लोगों द्वारा अधिवक्ता हरिशंकर जैन, विष्णु शंकर जैन, प्रभाष पांडेय और देवकी नंदन के जरिए दायर की गई थी। इस याचिका में दावा किया गया था कि भगवान कृष्ण की जन्मस्थली उस मस्जिद के नीचे मौजूद है और ऐसे कई संकेत हैं जो यह साबित करते हैं कि वह मस्जिद एक हिंदू मंदिर है।

कितना पुराना है श्रीकृष्ण जन्मभूमि-ईदगाह विवाद

शाही ईदगाह मस्जिद मथुरा शहर में श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर परिसर से सटी हुई है। 12 अक्तूबर 1968 को श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान ने शाही मस्जिद ईदगाह ट्रस्ट के साथ एक समझौता किया। समझौते में 13.37 एकड़ जमीन पर मंदिर और मस्जिद दोनों के बने रहने की बात है। पूरा विवाद इसी 13.37 एकड़ जमीन को लेकर है। इस जमीन में से 10.9 एकड़ जमीन श्रीकृष्ण जन्मस्थान और 2.5 एकड़ जमीन शाही ईदगाह मस्जिद के पास है। इस समझौते में मुस्लिम पक्ष ने मंदिर के लिए अपने कब्जे की कुछ जगह छोड़ी और मुस्लिम पक्ष को बदले में पास में ही कुछ जगह दी गई थी। अब हिन्दू पक्ष पूरी 13.37 एकड़ जमीन पर कब्जे की मांग कर रहा है। 

श्रीकृष्ण जन्मभूमि-ईदगाह का इतिहास

ऐसा कहा जाता है कि औरंगजेब ने श्रीकृष्ण जन्म स्थली पर बने प्राचीन केशवनाथ मंदिर को नष्ट करके उसी जगह 1669-70 में शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण कराया था। 1770 में गोवर्धन में मुगलों और मराठाओं में जंग हुई। इसमें मराठा जीते। जीत के बाद मराठाओं ने फिर से मंदिर का निर्माण कराया। 1935 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 13.37 एकड़ की भूमि बनारस के राजा कृष्ण दास को आवंटित कर दी। 1951 में श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट ने ये भूमि अधिग्रहीत कर ली।

रेप मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट की टिप्पणी को सुप्रीम कोर्ट ने कहा असंवेदनशील, जानें क्या था हाईकोर्ट का जजमेंट

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नाबालिग लड़की के साथ रेप की कोशिश से जुड़े एक मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के 17 मार्च को दिए विवादित फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया था, जिस पर फैसला आ गया है। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले में की गई टिप्पणियों पर रोक लगाई। कोर्ट ने कहा कि टिप्पणी पूरी तरह असंवेदनशीलता और अमानवीय दृष्टिकोण को दर्शाती है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश में की गई विवादास्पद टिप्पणियों पर शुरू की गई स्वत: संज्ञान कार्यवाही में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र, यूपी सरकार और अन्य को नोटिस जारी किया। बता दें कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा था कि छाती पकड़ना, पायजामा का नाड़ा खींचना दुष्कर्म के प्रयास का अपराध नहीं है।

इस मामले की जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ सुनवाई कर रही थी। इलाहाबाद हाई कोर्ट के विवादित फैसले के मसले पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमें यह कहते हुए दुख हो रहा है कि निर्णय लेखक की ओर से संवेदनशीलता की कमी दर्शाती है। यह निर्णय तत्काल नहीं लिया गया था और इसे सुरक्षित रखने के 4 महीने बाद सुनाया गया। इस प्रकार इसमें विवेक का प्रयोग किया गया। हम आमतौर पर इस चरण में स्थगन देने में हिचकिचाते हैं, लेकिन चूंकि पैरा 21, 24 और 26 में की गई टिप्पणियां कानून के सिद्धांतों से अनभिज्ञ हैं और अमानवीय दृष्टिकोण को दर्शाती हैं। हम उक्त पैरा में की गई टिप्पणियों पर रोक लगाते हैं।

हाईकोर्ट ने दिआ था विवादित फैसला

इससे पहले हाईकोर्ट ने दो आरोपियों पवन व आकाश के मामले में यह विवादित फैसला दिया था। शुरुआत में, दोनों पर दुष्कर्म और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम की धाराओं के तहत आरोप लगाए गए थे। लेकिन, हाईकोर्ट ने फैसले में कहा था, उनका कृत्य दुष्कर्म या दुष्कर्म का प्रयास माने जाने के योग्य नहीं था।किसी लड़की के निजी अंग पकड़ लेना, उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ देना और जबरन उसे पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश से रेप या 'अटेम्प्ट टु रेप' का मामला नहीं बनता।

सोमवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा ने ये फैसला सुनाते हुए 2 आरोपियों पर लगी धाराएं बदल दीं। वहीं 3 आरोपियों के खिलाफ दायर क्रिमिनल रिवीजन पिटीशन स्वीकार कर ली थी।

क्या है पूरा मामला?

यूपी के कासगंज की एक महिला ने 12 जनवरी, 2022 को कोर्ट में एक शिकायत दर्ज कराई थी। उसने आरोप था लगाया कि 10 नवंबर, 2021 को वह अपनी 14 साल की बेटी के साथ कासगंज के पटियाली में देवरानी के घर गई थीं। उसी दिन शाम को अपने घर लौट रही थीं। रास्ते में गांव के रहने वाले पवन, आकाश और अशोक मिल गए।

पवन ने बेटी को अपनी बाइक पर बैठाकर घर छोड़ने की बात कही। मां ने उस पर भरोसा करते हुए बाइक पर बैठा दिया, लेकिन रास्ते में पवन और आकाश ने लड़की के प्राइवेट पार्ट को पकड़ लिया। आकाश ने उसे पुलिया के नीचे खींचने का प्रयास करते हुए उसके पायजामे की डोरी तोड़ दी।

लड़की की चीख-पुकार सुनकर ट्रैक्टर से गुजर रहे सतीश और भूरे मौके पर पहुंचे। इस पर आरोपियों ने देसी तमंचा दिखाकर दोनों को धमकाया और फरार हो गए।

हाईकोर्ट ने कहा था कि आरोपियों पर ‘अटेम्प्ट टु रेप’ का चार्ज हटाया जाए। उन पर यौन उत्पीड़न की अन्य धाराओं के तहत केस चलाने का आदेश दिया था। जब पीड़ित बच्ची की मां आरोपी पवन के घर शिकायत करने पहुंची, तो पवन के पिता अशोक ने उसके साथ गालीगलौज की और जान से मारने की धमकी दी। महिला अगले दिन थाने में एफआईआर दर्ज कराने गई। जब पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की, तो उसने अदालत का रुख किया।

*देवरिया न्यायालय में लॉ बुक्स की बाइंडिंग के लिए कोटेशन आमंत्रित*

देवरिया- केंद्रीय नाजिर, नजारत अनुभाग जजी ने बताया है कि जनपद न्यायाधीश के निर्देशानुसार पुस्तकालय एवं लेखन सामग्री अनुभाग जजी देवरिया के मासिक और वार्षिक लॉ बुक्स जनरल की बाइंडिंग से संबंधित कार्य कराया जाना है। इसके लिए बाइंडिंग फर्मों से बाइंडिंग कार्य का कोटेशन आमंत्रित किया गया है।

इच्छुक फर्में मानक और गुणवत्ता के अनुसार प्रति पुस्तक बाइंडिंग कार्य के लिए अपनी कोटेशन दर, सूचना निर्गत होने की तिथि से दो सप्ताह के अंदर, किसी भी कार्य दिवस में, ईमेल आईडी पर अथवा पंजीकृत डाक या व्यक्तिगत रूप से कार्यालय नजारत अनुभाग जजी, देवरिया में प्रस्तुत कर सकते हैं।

मुसलमानों पर दिए अपने बयान पर कायम हैं जस्टिस यादव, बोले-मैंने किसी न्यायिक सीमा का उल्लंघन नहीं किया

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इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस शेखर कुमार यादव लगातार सुर्खियों में बने हुए हैं। पिछले दिनों प्रयागराज में विश्व हिंदू परिषद के कार्यक्रम में उन्होंने हिंदू और मुस्लिम धार्मिक कानूनों या मान्यताओं को लेकर बयान दिया था। इसके बाद वह विवादों के घेरे में आ गएय़ उनको सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम के सामने पेश भी होना पड़ा था। हालांकि, अपने बयान पर कायम हैं। सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की ओर से तलब किए जाने के एक महीने बाद, जस्टिस यादव ने मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर कहा है कि वह अपनी टिप्पणी पर कायम हैं, और उनके अनुसार यह न्यायिक आचरण के किसी भी सिद्धांत का उल्लंघन नहीं करती है।

सीजेआई ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस अरुण भांसाली से लेटेस्ट अपडेट मांगी थी। इसके बाद जस्टिस भांसाली ने जस्टिस कुमार से कॉलेजियम के बाद उनके जवाब मांगी थी, जिसके बाद उन्होंने लेटर लिख कर जवाब दिया। जस्टिस शेखर कुमार यादव ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को पत्र लिखकर बताया कि वह अपनी टिप्पणी पर कायम हैं, जो उनके अनुसार न्यायिक आचरण के किसी भी सिद्धांत का उल्लंघन नहीं करती है।

हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस अरुण भंसाली ने भी 17 दिसंबर को भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अगुवाई वाले कॉलेजियम के साथ जस्टिस यादव की बैठक के बाद उनसे जवाब तलब किया था। इस महीने की शुरुआत में, अंग्रेजी अखबार द इंडियन एक्सप्रेस की ओर से बताया गया कि सीजेआई ने मुख्य न्यायाधीश जस्टिस भंसाली को पत्र लिखकर इस मसले पर नई रिपोर्ट मांगी थी।

रिपोर्ट के मुताबिक जवाब मांगने वाले उक्त पत्र में लॉ के एक छात्र और एक आईपीएस अधिकारी की ओर से उनके भाषण के खिलाफ दायर की गई शिकायत का जिक्र किया गया था, जिसे सरकार ने अनिवार्य रूप से रिटायर कर दिया था।

रिपोर्ट के अनुसार के अनुसार, जस्टिस यादव ने अपने जवाब में दावा किया कि उनके भाषण को निहित स्वार्थ वाले लोगों की ओर से तोड़-मरोड़ कर पेश किया जा रहा है, और न्यायपालिका से जुड़े लोग जो सार्वजनिक रूप से खुद का बचाव करने में असमर्थ हैं, उन्हें न्यायिक बिरादरी के सीनियर लोगों द्वारा सुरक्षा दिए जाने की जरुरत है।

क्या बोले थे यादव

जस्टिस यादव ने कहा, आपको यह गलतफहमी है कि अगर कोई कानून (यूसीसी) लाया जाता है, तो यह आपके शरीयत, आपके इस्लाम और आपके कुरान के खिलाफ होगा, लेकिन मैं एक और बात कहना चाहता हूं। चाहे वह आपका पर्सनल लॉ हो, हमारा हिंदू कानून हो, आपका कुरान हो या फिर हमारी गीता हो, जैसा कि मैंने कहा कि हमने अपनी प्रथाओं में बुराइयों (बुराइयों) को संबोधित किया है, कमियां थीं, दुरुस्त कर लिए हैं, छुआछूत, सती, जौहर, कन्या भ्रूण हत्या, हमने उन सभी मुद्दों को संबोधित किया है, फिर आप इस कानून को खत्म क्यों नहीं कर रहे हैं, कि जब आपकी पहली पत्नी मौजूद है, तो आप तीन पत्नियां रख सकते हैं, उसकी सहमति के बिना, यह स्वीकार्य नहीं है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट भर्ती 2024: 3306 पदों पर आवेदन कल से शुरू, कक्षा 6 से लेकर 12वीं पास तक करें अप्लाई

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश के जिला न्यायालयों में यूपी सिविल कोर्ट स्टाफ सेंट्रलाइज्ड भर्ती 2024-25 के तहत ग्रुप सी और डी के विभिन्न पदों पर भर्तियों का नोटिफिकेशन जारी कर दिया है. इसके लिए एप्लीकेशन प्रोसेस 4 अक्टूबर से शुरू होगा. अभ्यर्थी हाईकोर्ट की आधिकारिक वेबसाइट allahabadhighcourt.in के जरिए 24 अक्टूबर तक आवेदन कर सकते हैं. आवेदन ऑनलाइन मोड में ही करना होगा.

इस भर्ती प्रक्रिया के जरिए कुल 3306 पदों को भरा जाना है. इन पदों में स्टेनोग्राफर ग्रेड 3 के 583 पद, जूनियर असिस्टेंट के 1054, ड्राइवर के 30 और ट्यूबवेल ऑपरेटर कम इलेक्ट्रीशियन/ स्वीपर के कुल 1639 पद शामिल हैं.

ये होनी चाहिए आवेदन की योग्यता

स्टेनोग्राफर पदों के लिए आवेदन करने वाले कैंडिडेट का ग्रेजुएशन पास होने के साथ स्टेनोग्राफर में डिप्लोमा होना चाहिए. वहीं जूनियर असिस्टेंट के लिए 12वीं पास के साथ CCC सर्टिफिकेट होना चाहिए. ड्राइवर और ट्यूबवेल ऑपरेटर कम इलेक्ट्रीशियन पदों के लिए 10वीं पास होना चाहिए. स्वीपर पदों के लिए कैंडिडेट का क्लास 6 पास होना अनिवार्य है. सभी पदों के लिए अभ्यर्थी की उम्र 18 वर्ष से 40 वर्ष क बीच होनी चाहिए. उम्र की गणना 1 जुलाई 2024

एप्लीकेशन फीस

स्टेनोग्राफर पदों के लिए सामान्य और ओबीसी कैटेगरी के लिए अभ्यर्थी को 950 रुपए एप्लीकेशन फीस और बैंक शुल्क जमा करना होगा. वहीं एससी/एसटी वर्ग को 750 रुपए आवेदन शुल्क के साथ बैंक शुल्क देना होगा. सभी पदों के लिए आवेदन शुल्क अलग-अलग हैं. अधिक जानकारी के लिए अभ्यर्थी जारी भर्ती विज्ञापन को चेक कर सकते हैं.

ऐसे करें अप्लाई

हाईकोर्ट की आधिकारिक वेबसाइट allahabadhighcourt.in पर जाएं.

होम पेज पर नीचे दिए गए Recruitment टैब पर क्लिक करें.

अब नोटिफिकेशन को पढ़े और नियमानुसार आवेदन करें.

कैसे होगा चयन?

इन सभी पदों पर चयन लिखित परीक्षा के जरिए किया जाएगा. एग्जाम ओएमआर शीट पर होगा. इसके बाद हिंदी/अंग्रेजी कंप्यूटर टाइप टेस्ट, हिंदी/अंग्रेजी स्टेनोग्राफी टेस्ट और तकनीकी ड्राइविंग टेस्ट होगा.

राहुल गांधी की नागरिकता पर फिर छिड़ी बहस, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भारत सरकार से मांगा जवाब

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राहुल गांधी की नागरिकता को लेकर एक बार फिर से बहस छिड़ गई है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुलगांधी की नागरिकता के विवाद पर केंद्र सरकार से ब्योरा मांगा है। कोर्ट ने नागरिकता अधिनियम-1955 के तहत की गई शिकायत पर केंद्र सरकार से कार्रवाई का ब्योरा मांगा है। मामले की अगली सुनवाई 30 सितंबर को होगी।

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेच में कांग्रेस नेता और लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी की ब्रिटिश नागरिकता को लेकर एक जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। ये याचिका कर्नाटक के बीजेपी कार्यकर्ता एस विग्नेश शिशिर ने दाखिल की है। याचिका में कहा गया है कि राहुल गांधी की नागरिकता को लेकर सीबीआई जांच कराई जाए। इसी याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस राजन रॉय और जस्टिस ओम प्रकाश शुक्ला की बेंच ने एएसजी सूर्यभान पांडेय को निर्देश देते हुए कहा कि वो इस मामले में केंद्रीय गृह मंत्रालय से जानकारी हासिल करें।

जून में रायबरेली लोकसभा से इलेक्शन को चुनौती देते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ में 3 महीने पहले ये जनहित याचिका दायर की गई थी। इसमें कहा गया है कि राहुल गांधी भारत के नहीं बल्कि ब्रिटेन के नागरिक हैं। इसके आधार पर राहुल गांधी का चुनाव पर्चा रद्द करने की मांग की गई थी।

जुलाई में इस याचिका को कोर्ट ने खारिज कर दिया था। इस पर कोर्ट ने कहा था कि याची पहले तो सिटीजनशिप एक्ट कतहत सक्षम प्राधिकारी के पास शिकायत कर सकता है। हालांकि याचिकाकर्ता का कहना है कि उसके पास पर्याप्त सबूत हैं कि राहुल गांधी ब्रिटेन नागरिक हैं। याची ने दलील दी कि उसके पास तमाम दस्तावेज और ब्रिटिश सरकार के कुछ ई-मेल हैं जिनसे ये साबित होता है कि राहुल गांधी एक ब्रिटिश नागरिक हैं। ऐसे में वो भारत में चुनाव लड़ने के अयोग्य है। वो लोकसभा के सदस्य पद पर नहीं रह सकते हैं।

याचिकाकर्ता ने गांधी की ब्रिटिश नागरिकता के आरोपों की सीबीआई जांच की मांग की है। उन्होंने राहुल गांधी की दोहरी नागरिकता को भारतीय न्याय संहिता व पासपोर्ट एक्ट के तहत अपराध बताया और केस दर्ज करने की मांग की। याची ने कहा कि वो इस संबंध में सक्षम अधिकारी से दो-दो बार शिकायत कर चुके हैं लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई, जिसके बाद उन्होंने कोर्ट में याचिका दाखिल है।

*वंचित तथा कमजोर वर्ग की प्रतिरक्षा हेतु लीगल एड डिफेंस काउंसलिंग की होगी स्थापना*

गोण्डा - गोण्डा में आपराधिक मामलों में वंचितों एवं कमजोर वर्ग की प्रतिरक्षा के लिए लीगल एड डिफेंस काउंसलिंग की स्थापना की जाएगी। जिस पर कई पदों पर आवेदन पत्र आमंत्रित किए गए हैं इसमें के लीगल एड डिफेंस काउंसिल का एक पद, डिप्टी के लीगल एड डिफेंस काउंसिल का एक पद व असिस्टेंट लीगल एट डिफेंस काउंसिल के दो पदों पर भर्ती की जाएगी।

सभी पदों के लिए योग्यता अलग-अलग निर्धारित की गई है। सभी पदों पर चयन समिति द्वारा आवेदक को मेरिट के आधार पर चयनित किया जाएगा। मेरिट आवेदकों की योग्यता के आधार पर बनेगी। इसमें आवेदक के विधिक ज्ञान, कौशल, वकालत प्रैक्टिस और अनुभव का ध्यान में रखा जाएगा। सभी पदों पर चयन 2 वर्षों के लिए संविदा पर किया जाएगा। कार्य संतोषजनक पाए जाने पर उनकी वार्षिक सेवा का विस्तार किया जाए सकेगा।

अपर जिला जज सचिव जिला विधिक सेवा प्राधिकरण गोण्डा नितिन श्रीवास्तव ने बताया कि सभी पदों हेतु आवेदन की अंतिम तिथि 15 फरवरी शाम 5 बजे तक निर्धारित की गई है। इच्छुक आवेदक आवेदन पूर्ण रूप से भरकर जिला विधिक सेवा प्राधिकरण गोंडा के कार्यालय में व्यक्तिगत रूप से अथवा स्पीड पोस्ट के माध्यम से जमा कर सकते हैं। आवेदन पत्र जनपद न्यायालय की वेबसाइट gonda.dcourts.gov.in उत्तर प्रदेश राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण की वेबसाइट upslsa.up.nic.in एवं माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद की वेबसाइट allahabadhighcourt.in से डाउनलोड किया जा सकता है। अधिक जानकारी के लिए जिला विधिक सेवा प्राधिकरण गोंडा के कार्यालय में संपर्क किया जा सकता है।

Allahabad High Court UP HJSOnline Form 2024

Important Dates :

  • Application : 15/01/2024
  • Last Date : 29/02/2024
  • Last Date Pay Exam Fee :  29/02/2024

Total Vacancy : 83

Age Limit (as on 01/01/2024) :

  • Min Age : 35 Yrs.
  • Max Age : 45 Yrs.

Application Fee :

  • General / OBC / EWS : ₹1400/-
  • SC / ST : ₹1200/-
  • PH Divyang Gen / OBC / EWS : ₹750/-
  • PH Divyang SC / ST : ₹500/-

For More Details, Please Read Official Notification Carefully OR Visit Official Website.

Important Links :

Apply Online : Link Activate on 15/01/2024

Download Notification : Click Here

Official Website : Official Website

सुप्रीम कोर्ट से मुस्लिम पक्ष को झटका, मथुरा ईदगाह मस्जिद में सर्वे पर रोक लगाने से किया इनकार

#supreme_court_refuses_to_stay_allahabad_high_court_order_on_survey_of_shahi_idgah 

मथुरा श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मामले में मुस्लिम पक्ष को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है, जिसमें परिसर में सर्वे को मंजूरी दी गई थी।सुप्रीम कोर्ट ने अधिवक्ता सर्वे को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा है और मुस्लिम पक्ष को राहत देने से इंकार कर दिया है।

सुप्रीम कोर्ट ने मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद में सर्वे कराए जाने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने से इनकार करते हुए कहा कि हम हाईकोर्ट के आदेश पर रोक नहीं लगाएंगे। यहां सिर्फ हाईकोर्ट द्वारा सारे मामले अपने पास ट्रांसफर का मामला लंबित है। कानून के मुताबिक नए आदेश के लिए नई याचिका दाखिल करनी होगी। सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले की 9 जनवरी को सुनवाई करेगा।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि हमारे यहां सिर्फ ट्रांसफर का मामला है। ऐसे में हाईकोर्ट द्वारा अगर कोई आदेश दिया जाता है तो उसे पक्षकार द्वारा नए सिरे से यहां चुनौती दी जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट अब 9 जनवरी को सुनवाई करेगा। लेकिन अगर कोई पक्ष चाहे तो पक्षकार मेंशन कर सकते हैं।

बता दें कि मुस्लिम पक्ष ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। श्रीकृष्‍ण जन्‍मभूमि और शाही ईदगाह विवाद मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने गुरुवार को विवादित परिसर का सर्वे करने का आदेश दे दिया था। इसके लिए 3 कमिश्‍नर भी नियुक्‍त कर दिए गए हैं। मथुरा में श्रीकृष्‍ण जन्‍मभूमि और शाही ईदगाह का मामला वर्षों से कानूनी दांव-पेच में फंसा हुआ है। श्रीकृष्‍ण जन्‍मभूमि का सर्वे कराने को लेकर हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। अब इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इसको लेकर महत्‍वपूर्ण आदेश दिया है।

महिला जज की 'इच्छामृत्यु' की मांग पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, सीजेआई ने इलाहाबाद हाइकोर्ट से से मांगी स्टेटस रिपोर्ट

#cji_chandrachud_summoned_allahabad_hc_for_status_report_over_female_judge_viral_letter 

उत्तर प्रदेश के बांदा जिले की महिला सिविल जज ने भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ से अपना जीवन समाप्त करने की अनुमति मांगी है। इस संबंध में महिला जज ने एक पत्र भेजा है, जिसमें उसने जिला जज द्वारा यौन उत्‍पीड़न करने का गंभीर आरोप भी लगाया है। महिला जज की वायरल चिट्ठी का सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लिया है। बांदा की महिला जज की चिट्ठी पर सुप्रीम कोर्ट ने दखल दिया है और चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट से इस मामले में स्टेटस रिपोर्ट मांगी है।

सूत्रों के मुताबिक, गुरुवार की देर रात चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने सुप्रीम कोर्ट के सेकेट्री जनरल अतुल एम कुरहेकर को इलाहाबाद हाईकोरट् प्रशासन से स्टेटस रिपोर्ट मांगने को कहा। एसजी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को पत्र लिखकर महिला जज द्वारा दी गई सारी शिकायतों की जानकारी मांगी है। साथ ही शिकायत से निपटने वाली आंतरिक शिकायत समिति के समक्ष कार्यवाही की स्थिति के बारे में पूछा है।

वायरल हो रही चिट्ठी के मुताबिक यूपी की एक महिला जज ने यौन प्रताड़ना का आरोप लगाते हुए इच्छामृत्यु की मांग की है। बांदा ज़िले में तैनात एक महिला जज की वायरल हो रही एक चिट्ठी में दावा किया कि एक पोस्टिंग के दौरान ज़िला जज और उनके करीबियों ने उनके साथ मानसिक और शरीरिक शोषण किया। दावा ये भी है कि जिला जज ने उसे रात में मिलने का दबाव बनाया।

बांदा में तैनात महिला जज ने अपनी चिट्ठी में कहा कि उसने इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश समेत अन्य सम्बंधित अधिकारियों से इस मामले की शिकायत की लेकिन किसी ने भी उससे एक बार ये नहीं पूछा कि आख़िर हुआ क्या है। महिला जज ने अपनी शिकायत के बाद भी कोई कार्रवाई न होने से निराशा ज़ाहिर करते हुए चिट्ठी लिखकर इच्‍छामृत्‍यु की मांग की।

ज्ञानवापी के बाद मथुरा के शाही ईदगाह का भी होगा सर्वे, इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा फैसला

#allahabadhighcourtallowedconductsurveyofshahiidgahmosquemathura

श्रीकृष्‍ण जन्‍मभूमि और शाही ईदगाह विवाद मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बड़ा फैसला दिया है। कोर्ट ने श्रीकृष्‍ण जन्‍मभूमि विवाद में विवादित परिसर का सर्वे करने का आदेश दे दिया है। विवादित परिसर का सर्वेक्षण एडवोकेट कमिश्नर से कराए जाने की मांग इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंजूर कर ली है। एडवोकेट कमिश्नर वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी के जरिए सर्वेक्षण कर सकेंगे। एडवोकेट कमिश्नर कौन होगा और कब से सर्वेक्षण शुरू होगा, इस पर हाईकोर्ट 18 दिसंबर को सुनवाई करेगा।

सर्वे ज्ञानव्यापी से थोड़ा अलग होगा

एएसआई सर्वे की मांग की याचिका इलाहाबाद हाईकोर्ट में दायर हुई थी। मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि से सटी हुई जो मस्जिद है, उसमें किसी एडवोकेट से सर्वे कराने की मांग की गई थी। इसमें अलग-अलग 18 याचिका डाली गई थीं। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने गुरुवार को इस मामले में एक साथ सुनवाई की। ज्ञानवापी की तर्ज पर मथुरा के विवादित परिसर का भी सर्वे होगा। हालांकि, यह सर्वे ज्ञानव्यापी से थोड़ा अलग होगा। क्योंकि वहां पर कोर्ट ने साइंटिफिक सर्वे कराया था, जो कि शाही ईदगाह मस्जिद पर यह सर्वे अभी नहीं होगा।

किसने दायर की थी याचिका?

यह याचिका भगवान श्रीकृष्ण विराजमान और सात अन्य लोगों द्वारा अधिवक्ता हरिशंकर जैन, विष्णु शंकर जैन, प्रभाष पांडेय और देवकी नंदन के जरिए दायर की गई थी। इस याचिका में दावा किया गया था कि भगवान कृष्ण की जन्मस्थली उस मस्जिद के नीचे मौजूद है और ऐसे कई संकेत हैं जो यह साबित करते हैं कि वह मस्जिद एक हिंदू मंदिर है।

कितना पुराना है श्रीकृष्ण जन्मभूमि-ईदगाह विवाद

शाही ईदगाह मस्जिद मथुरा शहर में श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर परिसर से सटी हुई है। 12 अक्तूबर 1968 को श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान ने शाही मस्जिद ईदगाह ट्रस्ट के साथ एक समझौता किया। समझौते में 13.37 एकड़ जमीन पर मंदिर और मस्जिद दोनों के बने रहने की बात है। पूरा विवाद इसी 13.37 एकड़ जमीन को लेकर है। इस जमीन में से 10.9 एकड़ जमीन श्रीकृष्ण जन्मस्थान और 2.5 एकड़ जमीन शाही ईदगाह मस्जिद के पास है। इस समझौते में मुस्लिम पक्ष ने मंदिर के लिए अपने कब्जे की कुछ जगह छोड़ी और मुस्लिम पक्ष को बदले में पास में ही कुछ जगह दी गई थी। अब हिन्दू पक्ष पूरी 13.37 एकड़ जमीन पर कब्जे की मांग कर रहा है। 

श्रीकृष्ण जन्मभूमि-ईदगाह का इतिहास

ऐसा कहा जाता है कि औरंगजेब ने श्रीकृष्ण जन्म स्थली पर बने प्राचीन केशवनाथ मंदिर को नष्ट करके उसी जगह 1669-70 में शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण कराया था। 1770 में गोवर्धन में मुगलों और मराठाओं में जंग हुई। इसमें मराठा जीते। जीत के बाद मराठाओं ने फिर से मंदिर का निर्माण कराया। 1935 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 13.37 एकड़ की भूमि बनारस के राजा कृष्ण दास को आवंटित कर दी। 1951 में श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट ने ये भूमि अधिग्रहीत कर ली।