ग्रामीण प्रतिभाओं को सलाम: परमेश्वरी धाम में महोत्सव के मंच पर बिखरा हुनर, टॉप-20 में छाए नन्हें सितारे
ओमप्रकाश वर्मा
नगरा (बलिया)। शहरों की चकाचौंध से दूर, गांव की मिट्टी में पले-बढ़े नन्हें प्रतिभाओं ने शुक्रवार को कुछ ऐसा कर दिखाया कि पूरा परमेश्वरी धाम तालियों की गूंज से गूंज उठा। मौका था निछुवाडीह स्थित परमेश्वरी धाम पर बिरहा सम्राट स्व. सुरेश यादव की पुण्य स्मृति में आयोजित "संत गंगाधारी महोत्सव" का। इस आयोजन ने न केवल लोकसंस्कृति का सम्मान किया, बल्कि ग्रामीण प्रतिभाओं को मंच देकर उनकी चमक को नई ऊंचाइयां भी दीं। कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्ज्वलन से हुई, जिसमें मुख्य अतिथि डॉ. एम.आर. भारती, अवध बिहारी मितवा और रामसोच यादव ने संयुक्त रूप से शिरकत की। इसके बाद "तीर्थों की कहानी कवियों की जुबानी..." नामक पुस्तक का लोकार्पण किया गया, जिसने दर्शकों को आध्यात्म और साहित्य के अद्भुत संगम से रूबरू कराया। मंच पर जब ब्रजमोहन अनाड़ी, बलिराम यादव, अंबिका यादव, राजविजय, आनंद यादव और रामनाथ यादव जैसे लोकगायक उतरे तो श्रोताओं की भावनाएं गीतों में बहने लगीं। इन कवियों ने सामाजिक कुरीतियों पर अपनी रचनाओं से ऐसा प्रहार किया कि श्रोताओं को सोचने पर मजबूर कर दिया। भीड़ के बीच आकर्षण का केंद्र बना सातवीं कक्षा का छात्र ओमजी बबुआ, जिसने "पढ़ लिख बबुआ, कलामिए में जान बा..." गीत गाकर सबका दिल जीत लिया। उसके आत्मविश्वास और आवाज ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया और खूब तालियां बटोरीं। महोत्सव में आयोजित टॉप-20 ग्रामीण प्रतिभा खोज परीक्षा का परिणाम भी मंच से घोषित हुआ। मंच पर जब चयनित प्रतिभागियों को सम्मानित किया गया, तो उनके चेहरे की चमक किसी ताज से कम नहीं थी। प्रतिभागियों को मेडल, प्रशस्ति पत्र और पुरस्कार देकर हौसला बढ़ाया गया। प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त करने वाली सुप्रिया यादव को साइकिल भेंट की गई, जो गांव की गलियों से होते हुए अब अपने सपनों की ओर तेजी से बढ़ेगी। दूसरे स्थान पर रहे विवेक सैनी को स्मार्ट वॉच मिली, जो समय के साथ चलना अब अच्छे से जान गया है। वहीं तीसरे स्थान पर आईं अर्चना पटेल को टेबल फैन देकर सम्मानित किया गया, जो गर्मियों में भी अब अपने हौसलों को ठंडा नहीं पड़ने देंगी। महोत्सव केवल प्रतियोगिता और सम्मान तक सीमित नहीं रहा। कार्यक्रम स्थल पर पौधरोपण भी किया गया, जिससे यह संदेश दिया गया कि धरती को बचाना, संस्कृति को सहेजना और प्रतिभा को पहचान देना – यही असली विकास है। इस आयोजन ने यह साबित कर दिया कि गांवों में भी प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं होती, बस जरूरत होती है उन्हें पहचानने और निखारने की। संत गंगाधारी महोत्सव ने इन प्रतिभाओं को एक ऐसा मंच दिया, जो शायद उनकी ज़िंदगी की दिशा तय कर दे। कार्यक्रम के आयोजकों ने बताया कि अगली बार यह आयोजन और भी बड़े स्तर पर होगा, जिसमें और अधिक गांवों से प्रतिभाएं जोड़ी जाएंगी। निश्चय ही, यह महोत्सव न केवल एक सांस्कृतिक उत्सव था, बल्कि ग्रामीण भारत की उम्मीदों और सपनों का उत्सव भी बन गया।
Jun 24 2025, 23:40