नगरा बना नगर, मगर धरातली नसीब नहीं बदला नगरा नगर पंचायत में विकास अधूरा, नालियां जाम और सड़कें बेहाल” नाली सफाई के नाम पर अतिक्रमण पर वार
ओमप्रकाश वर्मा नगरा(बलिया)। नगरा, जिसे नगर पंचायत का दर्जा मिलते ही उम्मीदों की नयी उड़ान मिली थी, आज उन्हीं उम्मीदों के मलबे में दबता जा रहा है। नागरिकों को लगा था कि अब गाँव से कस्बा बने नगरा की तस्वीर बदलेगी। गलियों में रोशनी फैलेगी, सड़कें चौड़ी और साफ होंगी, नालियां बहेंगी और नगर को गंदगी से मुक्ति मिलेगी। लेकिन हुआ इसका ठीक उल्टा। पहली बार इंदू देवी को चेयरमैन के रूप में चुनकर लोगों ने नगर की बागडोर एक महिला को सौंपते हुए बड़ी आशाएं जताईं। पर बीतते वक्त के साथ इन उम्मीदों पर पानी फिर गया। विकास की गाड़ी पटरी पर नहीं चढ़ी, बल्कि वो शुरू ही नहीं हो पाई। नगर में नालियों का हाल ऐसा है कि ज्यादातर मोहल्लों में जल निकासी की कोई व्यवस्था ही नहीं है। जहां नालियां बनी हैं, वहां वे कूड़े-कचरे से जाम पड़ी हैं। कुछ स्थानों पर निर्माण कार्य अधूरा छोड़ दिया गया है, जैसे यूनियन बैंक के पास का नाला, जो केवल दिखाने के लिए खोदा गया था। यह नाला न तो पूरी तरह बना और न ही चालू हुआ। आगामी बारिश अब सिर पर है, लेकिन कहीं कोई हरकत नहीं। नगर पंचायत की ओर से सफाई अभियान का नामोनिशान नहीं है। जाम नालियों में भरा गंदा पानी सड़कों पर फैल जाएगा और नगरा की गलियों को दलदल में तब्दील कर देगा। बीते सालों में भी यही हुआ था, और इस साल भी वही दोहराव तय है। सड़कें पहले ही टूट-फूट कर खंडहर बन चुकी हैं। पैदल चलना मुश्किल, साइकिल चलाना जोखिम, और दोपहिया वाहन तो मानो मौत को दावत देने जैसा हो गया है। हर गली में गड्ढे हैं, और बरसात आते ही ये गड्ढे पानी से भरकर दुर्घटनाओं को न्योता देंगे। लोगों का कहना है कि नगर पंचायत बनने के बाद व्यवस्थाएं सुधरनी चाहिए थीं, लेकिन हालात और बदतर हो गए। सफाईकर्मियों की नियमित तैनाती नहीं होती, नालियों की सफाई साल भर में एक बार भी ढंग से नहीं की जाती, और निर्माण कार्य का बजट जाने कहां बह गया यह किसी को नहीं पता। चेयरमैन से लेकर अधिकारियों तक को कई बार आवेदन, शिकायतें और गुहार लगाई गई, लेकिन नतीजा सिफर रहा। जनप्रतिनिधियों ने नगर पंचायत को सिर्फ दिखावे का मंच बना रखा है। असल तस्वीर जमीनी हकीकत में बदसूरत हो चुकी है। अब सवाल यह है कि क्या नगरा नगर पंचायत का दर्जा पाकर सिर्फ नाम में बड़ा बना है? क्या विकास केवल भाषणों और बैनरों तक सीमित रह गया है? क्योंकि ज़मीन पर जो कुछ दिख रहा है, वह सिर्फ गंदगी, बदहाली और उपेक्षा है। नागरिकों की आंखों में जो सपना था कि विकसित नगरा का वह अब टूटता सा दिख रहा है। अगर समय रहते अधूरी नालियों का निर्माण पूरा नहीं हुआ और सफाई पर ध्यान नहीं दिया गया, तो आने वाला मानसून नगरा के लिए आफत बन जाएगा। अब ज़रूरत है जागने की। सिर्फ कागज़ी योजनाएं नहीं, बल्कि ज़मीनी क्रियान्वयन की। क्योंकि अगर यही हाल रहा, तो "नगर पंचायत नगरा" सिर्फ एक नाम बनकर रह जाएगा, विकास का प्रतीक नहीं।
Jun 19 2025, 18:33