कर्नाटक में जाति जनगणना की रिपोर्ट लीक होते ही सियासत गरमाई, जानें पूरा मामला
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कर्नाटक में जाति जनगणना को लेकर बवाल मचा हुआ है। जनगणना के आंकड़े लीक होने के बाद कई समुदाय नाराज हैं। खासकर, ताकतवर माने जाने वाले समुदायों में गुस्सा है। इस जनगणना के संभावित आंकड़ों के लीक होने के बाद प्रदेश के दो प्रभावशाली समुदायों वोक्कालिगा और लिंगायतों में खलबली मची हुई है। इस वजह से कांग्रेस में भी फूट पड़ गई है। कई नेता इस जनगणना को 'अवैज्ञानिक' बता रहे हैं। वे सरकार से इसे रद्द करने की मांग कर रहे हैं।
कर्नाटक में जातिगत सर्वे की लीक रिपोर्ट में पिछड़ी जातियों (ओबीसी) का आरक्षण 32% से बढ़ाकर 51% करने और मुस्लिम समुदाय के लिए आरक्षण 4% से बढ़ाकर 8% करने की सिफारिश की गई है। लीक हुई जातिगत सर्वे रिपोर्ट के आंकड़ों अनुसार, मुसलमानों को राज्य की सबसे बड़ी आबादी वाला समूह बताया गया है। इसमें मुसलमानों की आबादी 75.2 लाख है। यानी, राज्य की आबादी में मुसलमानों की हिस्सेदारी लगभग 12.6% है। यह आंकड़ा 2015 में हुए सर्वे का है। इसके बाद अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) का नंबर आता है। इसमें SC के लिए 15% और ST के लिए 7.5% आरक्षण शामिल है। वोक्कालिगा और लिंगायत जैसी पारंपरिक रूप से प्रभावशाली मानी जाने वाली जातियां जनसंख्या के लिहाज से अब पीछे दिखाई गई हैं। कैटेगरी III(A) में वोक्कालिगा और दो अन्य समुदाय शामिल हैं, जिनकी आबादी 73 लाख बताई गई है और उन्हें 7% आरक्षण दिया गया है। वहीं, कैटेगरी III(B) में लिंगायत समुदाय और पांच दूसरे समुदायों को जगह दी गई है, जिनकी जनसंख्या 81.3 लाख है और उन्हें 8% आरक्षण दिया गया है। यह वही जातियां हैं, जिनके समर्थन पर दशकों से कर्नाटक की राजनीति का संतुलन टिका रहा है। ऐसे में इन आंकड़ों ने सत्ताधारी कांग्रेस के भीतर दरार की आशंकाएं बढ़ा दी हैं।
कांग्रेस में नया कलह
लिंगायत का नेतृत्व कर रहे उद्योग और वाणिज्य मंत्री एमबी पाटिल ने लीक हुए आंकड़ों पर सवाल उठाया है। उन्होंने दावा करते हुए कि उनकी जनसंख्या अभी भी बहुत अधिक है। पाटिल ने तर्क दिया कि लिंगायतों के कई उप-जातियों ने आरक्षण के लाभ के लिए अपनी मूल जाति का उल्लेख किया है, न कि जनगणना में लिंगायत धर्म का। हालांकि वे लिंगायत धर्म का पालन करते हैं। वोक्कालिगा भी इसी तरह के दावे करते हैं उन्होंने आकड़ों को अवैज्ञानिक बताते हुए खारिज कर दिया।
डीके शिवकुमार के लिए ये रिपोर्ट क्यों सिरदर्द?
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और राहुल गांधी जैसे नेता इस रिपोर्ट को सामाजिक न्याय की दिशा में बड़ा कदम मान सकते हैं। लेकिन डिप्टी सीएम और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार, जो स्वयं वोक्कालिगा समुदाय से आते हैं, उनके लिए यह रिपोर्ट एक सियासी सिरदर्द बन गई है। शिवकुमार जैसे नेताओं की राजनीतिक शक्ति काफी हद तक उनकी जातिगत जनसंख्या के आधार पर तय होती रही है। अगर अब यह आधार ही कमजोर पड़ता दिखे, तो उनका राजनीतिक कद भी खतरे में पड़ सकता है।
Apr 15 2025, 11:21