सिदो-कान्हू की जयंती पर आज, सीएम हेमंत सोरेन और विधायक कल्पना सोरेन पहुंचे भोगनाडीह,उनके स्मारक पर माल्यार्पण कर दी श्रद्धांजलि
साहिबगंज जिले के बरहरवा के भोगनाडीह में सिदो मुर्मू की जयंती 11 अप्रैल को मनायी जाती है.इस ऐतिहासिक क्षण में सूबे के सीएम हेमंत सोरेन और उनकी पत्नी कल्पना सोरेन भी शहीद स्थल पर पहुँच कर उन्हें श्रद्धांजलि दी.इस दौरान कई कार्यक्रम आयोजित किये गए हैं.
जानकारी के अनुसार सिदो-कान्हू मुर्मू जयंती के अवसर पर सिदो-कान्हू मुर्मू पार्क भोगनाडीह साहिबगंज में अमर वीर शहीद सिदो-कान्हू, चांद-भैरव एवं वीरांगना फूलो-झानो की प्रतिमा पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन एवं विधायक श्रीमती कल्पना मुर्मू सोरेन पहुंचे और उन्होंने माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि अर्पित किया।
यहां गुरुवार की रात से ही पूजा-अर्चना शुरू हो गयी थी सिदो-कान्हू के जयंती समारोह में शामिल होने के लिए भारत के अलग-अलग राज्यों के लोग भी आये हैं, इसमें नेपाल से भी संताल समाज के लोग आते हैं.
हूल क्रांति के नायक सिदो-कान्हू का 11 अप्रैल 1815 को भोगनाडीह में स जन्म हुआ था. सिदो-कान्हू जयंती समारोह छठीहार महा के रूप में मनाया जाता है. यह दिन 1855 के उस संघर्ष की याद दिलाता है, जब अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति का बिगुल फूंकने वाले सिदो का जन्म हुआ था. हर साल 11 अप्रैल को यह धरती उनकी जयंती के उत्सव में सराबोर हो जाती है. सिदो-कान्हू जयंती कोई साधारण समारोह नहीं, बल्कि उस सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है, जो पीढ़ियों से संताल समाज की पहचान रही है. यह उत्सव बताता है कि इतिहास की डोर कभी टूटती नहीं, बस उसे नये रंगों से सजाया जाता है.
विशेष रूप से सजाया गया शहीद स्थल को
सिद्धू- कानू की जयंती छठीहार महा के रूप में मनाया जाता है. इस आयोजन में असम, बिहार, झारखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल के अलावा नेपाल से भी लोग पहुंचते हैं.
सिदो मुर्मू को 1856 में जिस बरगद के पेड़ पर फांसी दी गयी थी उस पेड़ के नीचे प्रथम पूजा होती है.
इस छठीहार महा में शामिल होने के लिए नेपाल, असम, पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड और ओडिशा से संताल समाज के लोग क्रांति स्थल पंचकठिया पहुंचे हैं. वहां परिक्रमा करने के बाद अरगोडी मैदान स्थित मांझी थान एवं जाहेर थान में पूजा-अर्चना शुरू की गयी. गुरु बाबा मुगलू मरांडी और अब्राहम मरांडी के नेतृत्व में गुरुवार की देर रात पूजा-अर्चना शुरू हुई.
पारम्परिक वेश-भूषा में बरगद पेड़ की परिक्रमा करते हैं संताल
स्थानीय लोगों के अनुसार छठीहार महा यानी शहीद की जयंती समारोह में पहुंचने वाले लोग सबसे पहले उस स्थान की परिक्रमा करते हैं, जहां सिदो-कान्हू को फांसी दी गयी थी. लोग पारंपरिक वेश-भूषा में तीर-धनुष लेकर बरगद के पेड़ के चारों ओर परिक्रमा करते हैं. फिर पूजा-पाठ कर नमन करते हैं. यह हमारी वर्षों पुरानी परंपरा है. इसके बाद सभी लोग पास ही स्थित अरगोडी मैदान पहुंचेंगे, जहां संताल समाज के देवी-देवताओं की पूजा की जाती है. पूजा का कार्यक्रम रात भर चलता है.
11 अप्रैल को सिदो-कान्हू की जन्मस्थली भोगनाडीह पहुंचते हैं लोग
यहां संताली सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है. 11 अप्रैल को लोग वीर शहीद सिदो-कान्हू की जन्मस्थली भोगनाडीह पहुंचते हैं. वहां उनके आवास में स्थित प्रतिमा पर माल्यार्पण कर पूजा-अर्चना कर उनके वंशजों से भेंट करते हैं. इसके बाद सभी अपने-अपने गंतव्य की ओर लौट जाते हैं.
मांझी थान से जाहेर थान तक दिखती है आदिवासी परंपरा की झलक.
यह उत्सव सिर्फ श्रद्धा नहीं, बल्कि संताल संस्कृति का जीवंत संग्रहालय है. मांझी थान और जाहेर थान जैसे पवित्र स्थलों पर पांच देवी-देवताओं की पूजा होती है. मांझी थान (संताल समाज का पूजा स्थल) में मारांग बुरू, ताला कुल्ही मांझी हाडाम, ताला कुल्ही मांझी बुढही, देवी-देवता एवं जाहेर थान संताल (समाज का पूजा स्थल), जिसमें जाहेर एरा, गोसाई एरा, मोडे कु तुरूई कु, पिलचुहाड़ाम- पिलचुबुढही एवं मरांग बुरू, ये पांच देवी-देवता आस्था का केंद्र स्थल हैं. रातभर चलने वाले अनुष्ठानों के बीच ढोल की थाप पर नृत्य होता है और पारंपरिक गीत गूंजते हैं.
आज बरहेट मुख्यमंत्री, के पहुँचने सें पूर्व प्रशासन ने पूरी की तैयारी कर ली थी.सिदो-कान्हू जयंती समारोह में शामिल होने के लिए झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन आज शुक्रवार बरहेट पहुंचें. कार्यक्रम को लेकर बरहेट, भोगनाडीह, बरहेट बाजार, क्रांति स्थल पंचकठिया सहित समूचे चौक-चौराहों पर मजिस्ट्रेट और पुलिस बल की तैनाती की गयी है. भोगनाडीह मैदान में कार्यक्रम स्थल पर भव्य पंडाल का निर्माण किया गया है, जिसमें संताल परगना के कई सांसद और विधायक भी उपस्थित थे.
Apr 12 2025, 17:00