कौन हैं रिटायर्ड जज निर्मल यादव? जिनके घर मिले थे 15 लाख, 17 साल बाद सीबीआई कोर्ट ने किया बरी
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चंडीगढ़ की एक विशेष सीबीआई अदालत ने शनिवार को पूर्व जस्टिस निर्मल यादव को 17 साल पुराने भ्रष्टाचार के मामले में बरी कर दिया। पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट की पूर्व जस्टिस के अलावा सीबीआई अदालत ने मामले में 3 अन्य आरोपियों रविंदर सिंह भसीन, राजीव गुप्ता और निर्मल सिंह को भी बरी करने के आदेश दिए। सीबीआई की विशेष अदालत ने 17 साल बाद इस मामले में अपना फैसला दिया है। कोर्ट के फैसले के मुताबिक इस मामले के आरोपियों का इससे कुछ भी लेनादेना नहीं है।
मामला अगस्त 2008 में सामने आया था। जस्टिस निर्मलजीत कौर उस समय पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट की जज थीं। उनपर 15 लाख रुपये की रिश्वत लेने का आरोप लगा था। उनके घर में 15 लाख रुपये भेजे गए थे। यह बैग उनके कर्मचारी ने चंडीगढ़ पुलिस के हवाले किया था। बाद में मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गई थी। अभियोजन पक्ष के अनुसार यह राशि हरियाणा के पूर्व अतिरिक्त महाधिवक्ता संजीव बंसल के क्लर्क द्वारा निर्मल यादव के लिए भेजी गई थी। दोनों जजों के नामों में समानता के कारण कैश गलती से जस्टिस निर्मलजीत कौर के घर पहुंच गया था।
जस्टिस निर्मलजीत कौर ने तुरंत पुलिस को सूचना दी, जिसके बाद मामले की परतें खुलने लगीं। जस्टिस निर्मलजीत कौर के चपड़ासी ने चंडीगढ़ पुलिस में एफआईआर दर्ज कराते हुए इस 15 लाख रुपए की गुत्थी सुलझाने की गुहार लगाई। फिर पंजाब के तत्कालीन राज्यपाल जनरल (रि.) एस एफ रॉड्रिग्स के आदेश पर मामले को सीबीआई को जांच के लिए सौंपा गया। जांच में पता चला कि ये रकम असल में न्यायमूर्ति निर्मल यादव को दी जानी थी। आरोप है कि ये रिश्वत एक प्रॉपर्टी डील से जुड़े फैसले को प्रभावित करने के लिए दी गई थी।
इस मामले में अभियोजन पक्ष के मुताबिक, ये रकम राज्य सरकार के तब के अतिरिक्त महाधिवक्ता संजीव बंसल के मुंशी लेकर गए थे। पूछताछ में पता चला कि ये रकम उस वक्त पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट में जज जस्टिस निर्मल यादव तक पहुंचाई जानी थी। दोनों जजों के नाम निर्मल होने के चलते ये गलतफहमी हुई और भ्रष्टाचार का इतना बड़ा मामला सामने आया
इस केस में हरियाणा के तत्कालीन एडिशनल एडवोकेट जनरल संजीव बंसल, प्रॉपर्टी डीलर राजीव गुप्ता और दिल्ली के होटल कारोबारी रवींदर सिंह भसीन का भी नाम आया। इस आरोप के बाद 2010 में जस्टिस निर्मल यादव के तबादला उत्तराखंड हाईकोर्ट में कर दिया गया। वहां से वो 2011 में रिटायर भी हो गए।
उनके रिटायरमेंट के ही साल 2011 में उनके खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर दी गई, फिर तीन साल बाद 2014 में स्पेशल कोर्ट ने जस्टिस निर्मल यादव के खिलाफ आरोप भी तय कर दिए गए। इस मामले की जांच शुरू में चंडीगढ़ पुलिस ने की, लेकिन 15 दिन के भीतर ही इसे सीबीआई को सौंप दिया गया। साल 2009 में सीबीआई ने क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी थी, लेकिन सीबीआई कोर्ट ने इसे अस्वीकार कर दोबारा जांच के आदेश दिए।
सीबीआई ने 2011 में चार्जशीट दायर की, जिसमें न्यायमूर्ति निर्मल यादव सहित कई अन्य लोगों को आरोपी बनाया गया। हालांकि, इस दौरान कई बार कानूनी दिक्कतों के चलते मामला अटका रहा। साल 2010 में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ने न्यायमूर्ति निर्मल यादव के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति दी।
2011 में राष्ट्रपति से मंजूरी मिलने के बाद 3 मार्च 2011 को चार्जशीट दाखिल हुई। 2013 में सीबीआई कोर्ट ने आरोप तय किए और मुकदमे की सुनवाई शुरू की। हालांकि 2020 में कोविड महामारी के चलते सुनवाई प्रभावित हुई। 2024 में 76 गवाहों की गवाही पूरी हुई, 10 गवाह मुकदमे के दौरान पलट गए। मुकदमे की 300 से अधिक सुनवाई हुई।
इस दौरान जज के घर रुपए भेजने के आरोपी संजीव बंसल की दिसंबर 2016 में मौत हो गई। इसके बाद 2017 में उनके खिलाफ कार्यवाही बंद कर दी गई।
Mar 30 2025, 12:08