*मकर संक्रांति पर गंगा में लगी आस्था की डूबकी
नितेश श्रीवास्तव
भदोही। मंगलवार को मकर संक्रांति पर्व के अवसर पर मां गंगा के तट पर आस्था का सैलाब उमड़ पड़ा। अल सुबह से ही हर-हर गंगे, नमामि गंगे, नमामि माते के जयघोष से माहौल भक्तिमय हो गया। श्रद्धालुओं ने गंगा में डुबकी लगाकर मंदिरों में पूजा-अर्चना के बाद अन्न, वस्त्र, द्रव्य का दान कर पुण्य का लाभ कमाया।
जनपद के विभिन्न गंगा घाटों पर स्नानार्थियों की काफी भीड़ देखी गई। जनपद के गंगा घाटों पर पुलिस प्रशासन काफी मुस्तैद दिखे।इसके पुण्य काल पर स्नान व दान दोनों का महत्व होता है। संक्रांति के दिन गंगा में स्नान से रोगों का नाश होता है। वहीं दान पुण्य से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। शास्त्र में यह भी उल्लेख मिलता है कि संक्रांति के पुण्य काल में रोग नाश एवं लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए पंचगव्य से भगवान सूर्य, विपत्ति-शत्रु नाश के लिए तिल गुण से भगवान शिव, यश-प्रतिष्ठा विद्या प्राप्ति के लिए वस्त्र से देव गुरु बृहस्पति का पूजन करना चाहिए। तीर्थादि में स्नान एवं पूजनोपरांत दान का भी अपूर्व महत्व है। दान लेने वाले पुरोहित जन को भी समाज के दूसरे जन (निर्धन, वृद्ध, दिव्यांग) को दान देने का विधान है।
तिल तेल व दीपदान मानव जीवन को सुखी एवं प्रकाशमान बनाता है। इस दिन दही-चूड़ा व खिचड़ी खाने की लोकप्रथा प्राचीन है। शास्त्रों में उल्लेख प्राप्त होता है कि मकर संक्रांति पर खिचड़ी में प्रयुक्त होने वाला चावल का संबंध चंद्रमा से, उड़द दाल का शनिदेव से, हल्दी का भी बृहस्पति से, हरी सब्जियों का बुधदेव से, घी का सूर्य देव से है। फलत: इन वस्तुओं का दान एवं सेवन संबंधित देवों को प्रसन्न करने के लिए पुण्यदायक व आरोग्य वर्धक है। अध्यात्म प्रधान भारत में सनातन पर्व इसीलिए जीवित है कि निर्धनों, दिव्यांगों, दीन-दुखियों का पेट भरते हुए आस्तिकों के मुक्ति द्वार को प्रशस्त करता है।
अतः संपूर्ण पुण्य प्राप्ति के लिए शास्त्र विहित विधि-विधान के अनुसार तत्कालीन प्रकृति से प्राप्त सामग्रियों का अवश्य दान करना चाहिए। कोई भी दानविहीन धार्मिक कृत्य निष्फल एवं मृत माना जाता है। धार्मिक कृत्य एवं दान दोनों का अन्योन्याश्रित संबंध है। इस प्रकार यह मकर संक्रांति दान के माध्यम से मानव सेवा का शाश्वत संदेश देती है।
Jan 15 2025, 20:25