*महाकुंभ में 144 साल बाद दुर्लभ ग्रह संयोग, जानिए कैसे ‘देवताओं की भूल’ ने रचा महापर्व?*
रिपोर्ट -नितेश श्रीवास्तव
भदोही. महाकुंभ मेला हिंदू धर्म में आस्था और परंपरा का सबसे बड़ा प्रतीक है। यह मेला चार पवित्र स्थलों - प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन - में से किसी एक पर आयोजित होता है। लेकिन इस बार का महाकुंभ खास है क्योंकि 144 साल बाद एक दुर्लभ खगोलीय स्थिति बन रही है। यह संयोग उस कहानी से जुड़ा है जिसे हिंदू धर्म में देवता की एक गलती के रुप में देखा जाता है।
महाकुंभ का पौराणिक महत्व समुद्र मंथन की घटना से जुड़ा है। जब देवताओं और राक्षसों ने अमृत के लिए संघर्ष किया था। कथा के अनुसार,जब अमृत कलश को लेकर देवता भाग रहे थे,तब इंद्र के पुत्र जयंत ने इसे बचाने के लिए चारों स्थानों - प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन पर इसकी बूंदें गिरा दी। यह देवताओं की रणनीतिक गलती मानी जाती है क्योंकि इससे अमृत का महत्व इन स्थानों पर केंद्रित हो गया। इन स्थानों को पवित्र मानते हुए कुंभ मेले की परंपरा की शुरुआत हुई। 144 साल बाद 2025 में यह मेला इसलिए भी खास है क्योंकि सूर्य, चंद्रमा,शनि और बृहस्पति ग्रहों की स्थिति उस खगोलीय संयोग को दोहराने जा रही है जो अमृत मंथन के समय बना था।
आचार्यों का मानना है कि यह स्थिति बेहद शुभ मानी जाती है और इस दौरान पवित्र नदियों में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। यही कारण है कि करोड़ों श्रद्धालु महाकुंभ में स्नान करने के लिए जहां जुटते हैं।इस बार महाकुंभ में बाबा बड़े शिव धाम के प्रसिद्ध आचार्य शरद पांडेय भी महायज्ञ में आहूति देंगे एवं साधना करेंगे। शाही स्नान करके विश्वास के कल्याण के लिए कामना करेंगे।
इतिहास में भी कुंभ मेले का गहरा महत्व देखने को मिलता है। 7 वीं शताब्दी के चीनी यात्री ह्नेनसांग ने अपने यात्रा वृत्तांतों में प्रयागराज में त्रिवेणी संगम पर आयोजित एक विशाल धार्मिक आयोजन का जिक्र किया था,जो कुंभ मेले से मेल खाता है तब लाखों श्रद्धालु इस आयोजन में शामिल होकर पवित्र जल में स्थान करते थे। कुंभ मेला न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि इसका वैज्ञानिक महत्व भी है। खगोलीय संयोग के दौरान पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र में बढ़ोतरी होती है जो मानव शरीर पर सकारात्मक प्रभाव डालता है। यही कारण है कि कुंभ मेले को आध्यात्मिक ही नहीं, बल्कि भौतिक दृष्टि से भी लाभकारी माना जाता है।
आधुनिक समय में भी यह आयोजन उस गलती को श्रद्धा के रुप में मनाने का प्रतीक है, जो देवताओं द्वारा अनजाने में हुई थी और जिसने इन चार स्थानों को अनंतकाल के लिए पवित्र बन दिया। इस महाकुंभ में देवता की गलती का महत्व सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि यह आस्था,परंपरा खगोल विज्ञान और इतिहास का ऐसा संगम है, जो भारत की सांस्कृतिक धरोहर को नई ऊंचाइयों पर ले जाता है।
Jan 14 2025, 17:03