'राज्यों के पास फ्रीबीज के लिए पैसा है, सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के लिए नहीं', सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी
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देश में रेवड़ी कल्चर फल-फूल रहा है। चुनाव जीतने के नाम पर राजनीतिक दल एक से बढ़कर एक लोकलुभावन वादे करते हैं। इस बीच फ्रीबीज मामले पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी टिप्पणी की। देश की सर्वोच्च अदालत ने कहा कि राज्यों के पास ऐसे लोगों को मुफ्त सुविधाएं देने के लिए पर्याप्त धन है, जो कोई काम नहीं करते हैं। मगर, जब जिला न्यायपालिका के न्यायाधीशों को वेतन और पेंशन देने की बात आती है तो वे वित्तीय संकट का हवाला देते हैं। सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को फ्रीबीज मामले पर सुनवाई हुई। इसी दौरान जस्टिस बीआर गवई और एजी मसीह की पीठ ने यह कड़ी टिप्पणी की।
जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने यह मौखिक टिप्पणी उस समय की, जब अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि ने दलील दी कि सरकार को न्यायिक अधिकारियों के वेतन और सेवानिवृत्ति लाभों पर निर्णय लेते समय वित्तीय बाधाओं पर विचार करना होगा। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार की लाडली-बहना योजना और राजधानी दिल्ली में विधानसभा चुनावों से पहले राजनीतिक दलों द्वारा किए गए वादों का हवाला दिया।
पीठ ने टिप्पणी की, राज्यों के पास उन लोगों के लिए सारा पैसा है, जो कोई काम नहीं करते हैं। चुनाव आते हैं, आप लाड़ली बहना और अन्य नई योजनाओं की घोषणा करते हैं, जिसमें आप निश्चित राशि का भुगतान करते हैं। दिल्ली में हमारे पास अब किसी न किसी पार्टी की ओर से घोषणाएं हैं कि वे सत्ता में आने पर 2500 रुपये का भुगतान करेंगे।
शीर्ष अदालत सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को पेंशन के संबंध में अखिल भारतीय न्यायाधीश संघ द्वारा 2015 में दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान ये बातें कहीं। सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी कहा था कि यह दयनीय है कि कुछ सेवानिवृत्त उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को 10,000 रुपये से 15,000 रुपये के बीच पेंशन मिल रही है।
Jan 08 2025, 10:45