सीरिया में विद्रोहियों के कब्जे के बाद भारत: 'एकता, संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को बनाए रखने की दिशा में काम करने की जरूरत
भारत की सीरिया के प्रति नीति मुख्य रूप से इसके सिद्धांतों पर आधारित है, जो गैर-हस्तक्षेप, संप्रभुता का सम्मान और आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष पर केंद्रित हैं। जबकि भारत ने सीरिया संघर्ष के सैन्य पहलुओं में सीधे भाग नहीं लिया, इसकी मानवीय सहायता, संघर्ष को समाप्त करने के लिए राजनीतिक समाधान का समर्थन और विद्रोही समूहों के प्रति सतर्क रुख इसके व्यापक कूटनीतिक हितों के अनुरूप रहा है। जैसे-जैसे सीरिया पुनर्निर्माण की दिशा में बढ़ेगा, भारत को इस क्षेत्र में अपनी संलिप्तता बढ़ाने का अवसर मिल सकता है, जबकि उसे प्रमुख वैश्विक और क्षेत्रीय भागीदारों के साथ अपने रिश्तों को संतुलित रखना होगा।
सीरिया में इस्लामी विद्रोहियों के सत्ता पर काबिज होने के एक दिन बाद, भारत ने सोमवार को उस देश में स्थिरता लाने के लिए शांतिपूर्ण और समावेशी सीरियाई नेतृत्व वाली राजनीतिक प्रक्रिया का आह्वान किया। एक बयान में, विदेश मंत्रालय (MEA) ने कहा कि वह सीरिया में हो रहे घटनाक्रमों पर नज़र रख रहा है। विदेश मंत्रालय ने कहा, "हम चल रहे घटनाक्रमों के मद्देनजर सीरिया में स्थिति पर नज़र रख रहे हैं।" बयान में कहा गया, "हम सभी पक्षों द्वारा सीरिया की एकता, संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को बनाए रखने की दिशा में काम करने की आवश्यकता पर ज़ोर देते हैं।"
मंत्रालय ने एक बयान में कहा, "हम सीरियाई समाज के सभी वर्गों के हितों और आकांक्षाओं का सम्मान करते हुए शांतिपूर्ण और समावेशी सीरियाई नेतृत्व वाली राजनीतिक प्रक्रिया की वकालत करते हैं।" विदेश मंत्रालय ने आगे कहा कि दमिश्क में भारतीय दूतावास भारतीय समुदाय की सुरक्षा और संरक्षा के लिए उनके संपर्क में है। भारत की सीरिया के प्रति स्थिति, विशेष रूप से विद्रोहियों के नियंत्रण के संदर्भ में और समग्र संघर्ष में, इसकी कूटनीतिक नीति पर आधारित रही है, जो राष्ट्रीय संप्रभुता के सम्मान और गैर-हस्तक्षेप पर केंद्रित है, साथ ही मध्य पूर्व के देशों के साथ इसके ऐतिहासिक रिश्तों से भी प्रभावित है।
1. सीरिया की संप्रभुता का समर्थन:
भारत ने सीरिया के क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का हमेशा समर्थन किया है, जो 2011 में शुरू हुए सीरियाई गृहयुद्ध के दौरान स्पष्ट था। जबकि कई पश्चिमी देश और क्षेत्रीय शक्तियाँ, जैसे तुर्की और सऊदी अरब, विपक्षी बलों और विद्रोही समूहों का समर्थन कर रहे थे, भारत ने एक अधिक सतर्क और तटस्थ रुख अपनाया, जिसमें मानवीय सहायता और कूटनीतिक समाधान पर ध्यान केंद्रित किया। भारत ने संघर्ष में विदेशी हस्तक्षेप की आलोचना की है, जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका, तुर्की और अन्य देशों द्वारा सैन्य भागीदारी शामिल है।
2. सीरिया में रणनीतिक हित:
भारत के लिए सीरिया का महत्व इसके व्यापक मध्य पूर्व रणनीति से जुड़ा हुआ है। सीरिया अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण रणनीतिक महत्व रखता है, जो भारत के इरान, रूस और इज़राइल जैसे देशों के साथ रिश्तों को प्रभावित करता है। भारत की स्थिति पर 1970 और 1980 के दशक में भारत और सीरिया के बीच सहयोगात्मक कूटनीतिक और सैन्य संबंधों का भी असर पड़ा है। भारत सीरिया को क्षेत्र में आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में एक प्रमुख साझेदार के रूप में देखता है। भारत ने आईएसआईएस और अल-कायदा जैसे उग्रवादी समूहों के प्रसार को लेकर चिंता जताई है और ऐसे समूहों के प्रभाव को सीमित करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय भागीदारों के साथ काम किया है। भारत खुद भी एक बढ़ते आतंकवादी खतरे का सामना कर रहा था, और सीरिया की स्थिति को अक्सर वैश्विक आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई का हिस्सा माना जाता है।
3. मानवीय सहायता:
भारत ने संघर्ष के चरम पर, विशेष रूप से सीरिया को मानवीय सहायता प्रदान की है, लेकिन इसने न तो सीधे तौर पर सैन्य ऑपरेशनों में भाग लिया और न ही सीरियाई सरकार या विद्रोही गुटों को कोई सामग्री समर्थन दिया। भारतीय सहायता मुख्य रूप से खाद्य, चिकित्सा आपूर्ति, और युद्ध से प्रभावित क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे के पुनर्निर्माण के रूप में रही है।
विद्रोही गुटों के साथ व्यवहार:
विद्रोही समूहों के संदर्भ में, भारत का रुख बहुत सतर्क रहा है। भारत ने संघर्ष में किसी भी विपक्षी गुट का खुलकर समर्थन करने से परहेज किया है, जबकि कुछ पश्चिमी देशों ने विद्रोहियों का समर्थन किया था, या अन्य क्षेत्रीय ताकतों, जैसे तुर्की और सऊदी अरब, ने विशिष्ट गुटों को समर्थन दिया था। भारत का मुख्य ध्यान संघर्ष की समाप्ति और संवाद के माध्यम से राजनीतिक समाधान खोजने पर था। भारत ने सीरियाई लोकतांत्रिक बलों (SDF) जैसे समूहों और अधिक उग्रवादी इस्लामी समूहों के प्रति सतर्क रुख अपनाया है। भारत ने कभी भी उन गुटों का समर्थन नहीं किया है जो उग्रवादी विचारधाराओं से जुड़े हुए थे, क्योंकि इन समूहों का प्रभाव न केवल सीरिया बल्कि वैश्विक सुरक्षा के लिए भी खतरा बन सकता था, जिसमें भारत भी शामिल है।
5. हाल की घटनाएँ और भारत की बदलती स्थिति:
2024 में सीरिया के नवीनतम घटनाक्रमों के अनुसार, सीरिया अधिकांशत: बशर अल-असद की सरकार के नियंत्रण में है, जिसे रूस और इरान का समर्थन प्राप्त है। हालांकि, उत्तर-पश्चिमी सीरिया में विद्रोही और उग्रवादी समूहों द्वारा कब्जा किए गए कुछ क्षेत्र अभी भी विद्रोहियों के हाथ में हैं। भारत ने संघर्ष के शांतिपूर्ण समाधान का समर्थन जारी रखा है और सीरियाई सरकार और विपक्षी गुटों के बीच संवाद के लिए संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के प्रयासों का समर्थन किया है। भारत की बदलती भूमिका सीरिया में भी इसके रूस के साथ बढ़ते रिश्तों से प्रभावित है, जो सीरिया का एक प्रमुख सहयोगी है। रूस के साथ भारत का संबंध मजबूत बना हुआ है, खासकर यूक्रेन युद्ध के संदर्भ में वैश्विक तनावों के बावजूद। भारत ने रूस के साथ अपनी रणनीतिक साझेदारी को बनाए रखा है, जिसमें रक्षा सहयोग और ऊर्जा संबंध शामिल हैं, और भारत ने सीरिया पर रूस के दृष्टिकोण का समर्थन किया है।
6. बढ़ती संलिप्तता की संभावना:
सीरिया की भौगोलिक स्थिति और यह मध्य पूर्व संघर्ष में अपनी भूमिका को देखते हुए, भारत को भविष्य में कूटनीतिक और आर्थिक दृष्टिकोण से बढ़ती संलिप्तता के अवसर मिल सकते हैं, खासकर जब देश पुनर्निर्माण के चरण में प्रवेश करता है। भारत सीरिया के युद्ध-पीड़ित क्षेत्रों के पुनर्निर्माण में व्यापार और विकास सहायता के माध्यम से भाग ले सकता है, जैसा कि उसने अन्य युद्ध-ग्रस्त क्षेत्रों में किया है। हालांकि, इसे इरान, इज़राइल और सऊदी अरब जैसे प्रमुख क्षेत्रीय खिलाड़ियों के साथ अपने रिश्तों का ध्यान रखते हुए संतुलन बनाना होगा।
Dec 10 2024, 10:55