संगीत मय श्रीमद्भागवत कथा से आलोकानंद महाराज ने भक्तिरस की धारा प्रवाहित की
रुदौली अयोध्या। भगवान श्री कृष्ण जी ने उद्धव जी को वृंदावन वासियों एवं गोपियों को समझाने के लिए वृंदावन भेजा तो उद्धव जी भी गोपियों एवं वृंदावन वासियों के प्रेम को देखकर वृंदावन में रम गए लौटकर श्री वृंदावन बिहारी लाल जी से कहते हैं कि हे प्रभु मेरा पुनर्जन्म हो तो वृंदावन में हो और मैं चाहे बंदर बनू यदि भिक्षुक बानो तो वृंदावन की गलियों में मांग मांग कर रोटी का टुकड़ा खाऊं वृंदावन में जन्म लूं तो तोता बन जाऊं राधे- कृष्णा,राधे कृष्णा रटा करू वृंदावन में जन्म लूं यही कामना है । क्षण भंगुर जीवन की कलिका कल खिली न खिली ।घन श्याम यादव द्वारा आयोजित श्रीमद् भागवत कथा में आलोकानंद महाराज ने डाक बंगले रुदौली में अपने अमृत माई वाणी से भक्ति रस का रसा स्वादन कराते हुए श्रोताओं को मंत्र मुग्ध कर दिया। संगीत में कथा में कथा व्यास जी महाराज ने कहा कि प्रेम नगर की गहरी नदिया लाखों लोग डूबाना । प्रेम नगर की सुंदर परियां।
वृंदावन से वापस लौटकर जब भगवान श्री कृष्ण जी ने उद्धव से पूछा कि आपने लोगों को शांत कर आए उन्होंने कहा कि महाराज लोग आपके प्रेम में इतना आशक्त है कि मैं भी वृंदावन की कण कण में रम गया हूं। कथा व्यास महाराज जी ने जरासंध वध की कथा सुनाते हुए कहा कि 23 असौणिनी सेना लेकर 17 बार श्री कृष्ण जी से युद्ध किया बार-बार श्री कृष्ण जी जरासंध की सेना का संघार कर जरासंध का वध नहीं कर रहे थे इस पर बलराम जी ने श्री कृष्ण जी से पूछा की बार-बार आप सेना का संघार कर रहे हैं जरासंध को क्यों नहीं मार रहे हैं श्री कृष्ण जी ने कहा कि इस प्रकार से उसकी सारी ताकत छिन्न भिन्न हो गई हो जाएगी तब 18वीं बार जरा संघ का वध किया है। जरासंध इतना बलवान था की उसके भय से श्री कृष्ण जी ने 48 कोस की द्वारिका नगरी वसा कर मथुरा वासियों को वहां पहुंचाया जरासंध का बध किया। महाराज जी ने काल यवन का वध राजा मुचकुंद के ऊपर पीतांबरी छोड़कर कराया । राजा मुचकुंद का नेत्र खोलते ही काल यमन भस्म हो गया ।
इसी प्रकार से काजीपुरा में ओवर ब्रिज के नीचे कथा के चतुर्थ दिवस में कथा ब्यास रोहित जी महाराज ने कहा कि 14 लोगों से बचकर रहना चाहिए जिसमे कामी ससुर , लोभी राजा, विरोधी भाई ,कपूत पुत्र,लड़ाकू पड़ोसी, नीच प्रसंग, स्वतंत्र लुगाई, कपटी मित्र, सठ मूर्ख,दिन से मदद ना लेनी चाहिए जमाई को चोर ना होना चाहिए इन सबसे बस के रहना चाहिए । महाराज जी ने शुक्राचार्य जयंती पाणिग्रहण संस्कार देवयानी और राजा ययाति के विवाह की कथा सुनाते हुए कहा कि पति बिना मांग सूनी पुत्र बिना घर सूना उन्होंने जीव की गति के बारे में बताते हुए कहा कि माता के रज और पिता के अंश से जीव की उत्पत्ति होती है 9 माह बाद जीव जन्म लेने के बाद मोह माया में भटकता रहता है उन्होंने सनातन धर्म की महिमा को बताते हुए कहा कि सनातन धर्म को समाप्त नहीं किया जा सकता है सनातन धर्म की विशेषता है कि धर्म एक है पंथ अनेक है लेकिन इसकी महिमा घटी नहीं है धर्म न दूसर सत्य समाना। आगम निगम पुराण बखाना ।उन्होंने कहा कि जीव अकेला आया है और अकेला जाएगा शरीर रूपी पिंजरे में जीव कैद है और मुक्ति पाने के लिए सत्कर्म करना चाहिए।
Nov 20 2024, 19:50