कैसा सरकारी शिक्षक हूं…ना मां की दवाई ला सकता, न बच्चों की फीस भर सकता,शिक्षकों का छलका दर्द
बिहार के शारीरिक शिक्षकों का दर्द छलक उठा है. इन शिक्षकों कहना है कि सरकार सुनती नहीं और पुलिस लाठियां भांजती है. ऐसे में वह क्या करें? ना तो वह अपनी मां की दवाई ला सकते हैं और ना ही बच्चों की फीस भर सकते हैं. घर का खर्च चलाने के लिए भी घर वालों से मांगना पड़ता है. इन शिक्षकों कहना है कि वह हैं तो सरकारी शारीरिक शिक्षक, लेकिन वेतन चपरासी से भी कम है. ऐसे में उन्हें तो घर जाने में भी शर्म आती है. हमेशा यह डर बना रहता है कि कहीं मां दवाई लाने को ना कह दे या फिर बच्चे फीस या पढ़ाई के अन्य खर्चों के लिए पैसे ना मांग लें.
हालात ऐसे बन गए हैं कि पता ही नहीं चलता कि वह कैसे सरकारी शिक्षक हैं? इसी तरह की प्रतिक्रिया बिहार के सभी नव नियुक्त शारीरिक शिक्षक एवं स्वास्थ्य अनुदेशकों की है. बिहार सरकार ने इन्हें सरकारी नौकरी तो दे दी, लेकिन बीते ढाई साल से इन्हें महज 8 हजार रुपये की तनख्वाह में ही गुजर बसर करना पड़ रहा है. चूंकि ज्यादातर शिक्षक अपने घर से दूर के स्कूलों में तैनात हैं. ऐसे में उन्हें किराए पर रहकर नौकरी करनी पड़ रही है. ऐसे में तनख्वाह का बड़ा हिस्सा कमरे के किराए में ही निकल जाता है.
2022 में हुई जॉइनिंग
शिक्षक रमेश कुमार के मुताबिक वेतन की विसंगतियों को दूर करने के लिए लगातार आवाज उठाई जा रही है. इसके लिए कई बार राजधानी पटना भी पहुंचे, लेकिन पुलिस ने लाठियां भांज कर उन्हें खदेड़ दिया. कहा कि उन्होंने लाखों रुपये खर्च कर पढ़ाई की. पहले मैट्रिक फिर इंटर और ग्रेजुएशन के बाद B.ped किया. साल 2019 में STET पास करने के बाद 3 साल इंतजार भी किया. अब साल 2022 में जॉइनिंग तो हो गई, लेकिन हालात और भी खराब हो गए हैं. कहा कि जब नौकरी लगी तो खुशियां मनाई गई थीं. पूरे गांव में मिठाई भी बंटी, लेकिन इस नौकरी से दो जून की रोटी जुटाना भी मुश्किल हो गया है.
आवाज बुलंद करने पर खानी पड़ती है लाठियां
शिक्षक नीलम कुमारी के मुताबिक 8 हज़ार वेतन में कैसे घर चला सकते हैं. इस तनख्वाह में बच्चों के कपड़े तक नहीं खरीद सकते. भागलपुर संघ के अध्यक्ष अभय मिश्रा ने बताया कि आगामी 25 नवंबर से बिहार विधानसभा का सत्र शुरू होने वाला है. उनका संगठन एक बार फिर से एकजुट होकर पटना में धरना प्रदर्शन करेगा. उन्होंने बताया कि शिक्षक प्रतिनिधिनयों ने पहले भी कई बार सरकार और विभिन्न राजनीतिक दलों के बड़े नेताओं के सामने रखी जा चुकी है, लेकिन अब तक उन्हें अनसुना किया गया है. बल्कि 26 जुलाई व 25 अक्टूबर 2024 को पटना सचिवालय और जदयू कार्यालय का घेराव करने पर उनके ऊपर लाठियां बरसाई गई थी
Nov 18 2024, 19:06