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सिद्धारमैया के मंत्री जमीर अहमद खान का विवादित बयान, पूर्व सीएम कुमारस्वामी पर की अमर्यादित टिप्पणी

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कर्नाटक में सियासी बवाल खड़ा हो गया है। विवाद शुरू हुआ है सिद्धारमैया के एक मंत्री के बयान से। सिद्धारमैया सरकार में मंत्री बी जेड जमीर अहमद खान ने पूर्व मुख्यमंत्री एचडी कुमास्वामी को लेकर नस्लीय बयान दिया। जिके बाद विवाद शुरू हो गया है। जेडीएस ने कर्नाटक सरकार से जमीर अहमद के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए उन्हें पद से बर्खास्त करने की मांग की। केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने भी जमीर अहमद के बयान की निंदा की और इसे लेकर कांग्रेस सरकार को घेरा।

कर्नाटक की कांग्रेस सरकार में मंत्री जमीर अहमद खान ने मोदी सरकार में मंत्री और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री एच डी कुमारस्वामी पर हमला बोलते हुए मर्यादा की सीमा तोड़ दी। खान ने कुमारस्वामी की फोटो दिखाते हुए कहा कि केंद्रीय मंत्री को 'कालिया कुमारस्वामी' कहकर संबोधित किया।

रविवार को रामनगर में एक जनसभा को संबोधित करते हुए जमीर अहमद ने कहा कि चन्नपटना सीट से कांग्रेस उम्मीदवार सीपी योगेश्वर के पास भाजपा में शामिल होने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। उन्होंने कहा कि 'हमारी पार्टी में कुछ मतभेदों के चलते योगेश्वर ने बतौर निर्दलीय चुनाव लड़ा। ऐसे में उनके पास भाजपा में शामिल होने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। वह जेडीएस में शामिल होने के लिए तैयार नहीं थे क्योंकि कालिया कुमारस्वामी भाजपा से भी ज्यादा खतरनाक थे। अब वे (योगेश्वर) वापस घर (कांग्रेस) आ गए हैं।'

कुमारस्वामी को कालिया कहने के बाद राज्य का सियासी पारा हाई हो गया है। जेडीएस ने कांग्रेस सरकार से इस नस्ली टिप्पणी के लिए जमीर को मंत्रिमंडल से बर्खास्त करने की मांग की है।पार्टी ने कहा, छोटी मानसिकता वाले शख्स को मंत्रिमंडल से तुरंत बर्खास्त किया जाए।

संसदीय मामलों के केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने भी जमीर खान के बयान की आलोचना की। रिजिजू ने सोशल मीडिया पर साझा पोस्ट में लिखा कि मैं कांग्रेस के मंत्री जमीर अहमद द्वारा केंद्रीय मंत्री और कर्नाटक के पूर्व सीएम कुमारस्वामी के खिलाफ विवादित टिप्पणी की कड़ी निंदा करता हूं। यह एक नस्लवादी टिप्पणी है, ठीक वैसे ही जैसे राहुल गांधी के सलाहकार ने दक्षिण भारतीयों को अफ्रीकी, पूर्वोत्तर के लोगों को चीनी और उत्तर भारतीयों को अरब बताया था।

पटाखों को लेकर दिल्ली पुलिस पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, पूछा-शादियों और चुनाव में भी पटाखे जलाए जा रहे, क्या कार्रवाई हुई?

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सुप्रीम कोर्ट ने पटाखों पर प्रतिबंध के उसके आदेश को गंभीरता से न लेने के लिए दिल्ली पुलिस को कड़ी फटकार लगाई। कोर्ट ने माना कि पटाखों पर प्रतिबंध लगाने के निर्देश को दिल्ली पुलिस ने गंभीरता से नहीं लिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पटाखों पर प्रतिबंध पूरी तरह से लागू नहीं किया गया और महज दिखावा किया गया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पटाखों के निर्माण, बिक्री और उपयोग पर प्रतिबंध था।⁠ क्या पुलिस ने बिक्री पर प्रतिबंध लगाया, आपने जो कुछ जब्त किया है, वह पटाखों का कच्चा माल हो सकता है?

इस दिवाली भी राजधानी दिल्‍ली और एनसीआर सहित पूरे उत्‍तर भारत में दिवाली के शुभ अवसर पर जमकर पटाखे चलाए गए। पटाखों पर बैन के बावजूद धड़ल्‍ले से इनका इस्‍तेमाल हुआ, जिसके चलते प्रदूषण का स्‍तर पर नई रिकॉर्ड पर पहुंच गया। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सुनवाई के दौरान कहा कि कोई भी धर्म ऐसी किसी गतिविधि को बढ़ावा नहीं देता जो प्रदूषण को बढ़ावा दे या लोगों के स्वास्थ्य के साथ समझौता करे। जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की सदस्यता वाली पीठ ने कहा कि अगर पटाखे इसी तरह से फोड़े जाते रहे तो इससे नागरिकों का सेहत का मौलिक अधिकार प्रभावित होगा।

विशेष सेल बनाने का निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) के सभी राज्यों को निर्देश दिया कि वे प्रदूषण को कम रखने के लिए अपने द्वारा उठाए गए कदमों के बारे में उसे सूचित करें। कोर्ट ने दिल्ली पुलिस से उसके आदेश के पूर्ण पालन के लिए स्पेशल सेल बनाने का निर्देश दिया। साथ ही यह सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया कि बिना लाइसेंस के कोई भी पटाखों का उत्पादन और उनकी बिक्री न कर सके।

पटाखों की ऑनलाइन सेल भी बंद करें

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली पुलिस कमिश्नर को आदेश जारी करके पटाखा बैन पर स्पेशल टास्क फोर्स का गठन करने के निर्देश दिए कोर्ट ने कहा कि कमिश्नर तुरंत एक्शन लें और पटाखों की ऑनलाइन सेल भी बंद करें। कोर्ट ने 14 अक्टूबर के उस आदेश पर जिक्र किया, जिसमें 1 जनवरी, 2025 तक पटाखों पर पूर्ण बैन लगाया गया था। कोर्ट ने कहा कि जहां तक इसकी अनुपालना का सवाल है दिल्ली सरकार ने इसमें असहायता व्यक्त की क्योंकि इसे दिल्ली पुलिस द्वारा लागू किया जाना है। पुलिस की ओर से पेश एएसजी भाटी ने कहा कि प्रतिबंध जारी करने वाला आदेश 14 अक्टूबर को पारित किया गया था। हालांकि, हम पाते हैं कि दिल्ली पुलिस ने उक्त आदेश के कार्यान्वयन को गंभीरता से नहीं लिया।

कोई भी लाइसेंस धारक पटाखे न बेचे या न बनाए

कोर्ट ने कहा कि हम दिल्ली के पुलिस आयुक्त को निर्देश देते हैं कि वे तुरंत सभी संबंधितों को उक्त प्रतिबंध के बारे में सूचित करने की कार्रवाई करें और यह सुनिश्चित करें कि कोई भी लाइसेंस धारक पटाखे न बेचे या न बनाए। हम आयुक्त को पटाखों पर प्रतिबंध के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए एक विशेष प्रकोष्ठ बनाने का निर्देश देते हैं। हमें आश्चर्य है कि दिल्ली सरकार ने 14 अक्टूबर तक प्रतिबंध (पटाखों पर) लगाने में देरी क्यों की। यह संभव है कि उपयोगकर्ताओं के पास उससे पहले ही पटाखों का स्टॉक रहा होगा।

बता दें कि दिल्ली सरकार ने दिवाली से पहले पटाखों पर प्रतिबंध का निर्देश जारी किया था। हालांकि इसके बावजूद दिवाली पर खूब पटाखे छूटे और पटाखों पर प्रतिबंध का या तो बहुत कम या कई जगहों पर बिल्कुल प्रभाव नहीं पड़ा। इस पर दिल्ली पुलिस के आयुक्त ने हलफनामा दाखिल कर सुप्रीम कोर्ट को बताया कि पटाखों के उत्पादन और निर्माण को लेकर क्या-क्या कदम उठाए गए। हालांकि सुप्रीम कोर्ट तर्कों से संतुष्ट नहीं हुआ। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली पुलिस से नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि आपने सिर्फ कच्चा माल जब्त करके महज दिखावा किया। पटाखों पर प्रतिबंध को गंभीरता के साथ लागू नहीं किया गया।

फिर सुलगने लगा बांग्लादेश, अब शेख हसीना के समर्थक सड़कों पर, ट्रंप के जीतते ही आवामी लीग में उत्साह!

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बांग्लादेश की अपदस्थ प्रधानमंत्री और देश की सबसे बड़ी पार्टी अवामी लीग की नेता शेख हसीना एक बार फिर से सुर्खियों में हैं। दरअसल, बांग्लादेश में एक बार फिर से विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया है। इस बार शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग के कार्यकर्ता सड़क पर उतर गए हैं।शेख हसीना की पार्टी के समर्थकों और भूमिगत हुए नेता रविवार को ढाका के गुलिस्तान, जीरो पॉइंट, नूर हुसैन स्क्वायर इलाकों में सड़कों पर उतरे।अपने नेताओं को गलत तरीके से फंसाने, छात्र विंग पर प्रतिबंध लगाने और एएल कार्यकर्ताओं को सताने के लिए अवामी लीग द्वारा यह विरोध प्रदर्शन किया गया।

5 अगस्त को शेख हसीना के तख्तापलट के बाद तीन महीनों में जो नहीं हुआ ढाका में वो देखना को मिला। तख्तापलट के बाद शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग के कार्यकर्ता हमलों का शिकार हुए। वो अब अचानक खुलकर यूनुस सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतर आए हैं। हालांकि अंतरिम सरकार ने उन्हें चेतावनी दी लेकिन वो नहीं माने। कुछ समय पहले अंतरिम सरकार ने अवामी लीग के स्टूडेंट विंग ‘स्टूडेंट लीग’ को बैन कर दिया था। संगठन के खिलाफ 2009 के आतंकवाद विरोधी कानून के तहत ये कार्रवाई की गई। स्टूडेंट लीग को सार्वजनिक सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करने वाली गतिविधियों में शामिल पाया गया। इसी के खिलाफ अवामी लीग ने मोर्चा खोल दिया। वो नेता भी बाहर आ गए जो कल तक अंडरग्राउंड थे।

हसीना की पार्टी अवामी लीग के फेसबुक पेज पर सफल विरोध मार्च के लिए आह्वान करते हुए पोस्ट जारी हैं, जिसमें कार्यकर्ताओं के लिए विभिन्न निर्देश दिए गए हैं। इस पोस्ट में, पार्टी ने 10 नवंबर को शहीद नूर हुसैन दिवस के उपलक्ष्य में ढाका के जीरो प्वाइंट शहीद नूर हुसैन स्क्वायर पर विरोध मार्च की घोषणा की। उन्होंने तीन बजे भी मार्च निकालने की घोषणा की।पोस्ट के जरिए कार्यकर्ताओं और सहयोगियों के साथ-साथ आम लोगों को भी इसमें भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया है जो मुक्ति संग्राम के मूल्यों और लोकतांत्रिक सिद्धांतों में विश्वास करते हैं।

इधर आवामी लीग के कार्यकर्ताओं को रोकने के लिए बांग्लादेश की सेना-पुलिस तैनात कर दी गई। ढाका पुलिस ने उन्हें विरोध रैली आयोजित करने की अनुमति नहीं दी है। देशभर में सेना की 191 टुकड़ियां तैनात की गई है। वहीं इस बीच सरकार के विभिन्न हलकों ने चेतावनी भी दी है कि आवामी लीग को विरोध मार्च आयोजित करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। अवामी लीग को फासीवादी करार देते हुए बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने कहा कि वह अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना की पार्टी को नियोजित रैली आयोजित करने की अनुमति नहीं देगी।

अब सवाल है कि अचानक ऐसा क्या हुआ कि अवामी लीग इतनी आक्रामक हो गई? इसे अमेरिका में डोनल्ड ट्रंप की वापसी से जोड़कर देखा जा रहा है। दरअसल, शेख हसीना ने अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में जीत पर डोनाल्ड ट्रंप को बधाई संदेश दिया है। इसमें शेख हसीना ने खुद को बांग्लादेश का प्रधानमंत्री बनाता।

बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री और अवामी लीग की अध्यक्ष शेख हसीना ने ट्रंप को बधाई संदेश अपनी पार्टी बांग्लादेश अवामी लीग के लेटर हेड पर लिखा। लेटर हेड पर सामने ही मोटे अक्षरों में पार्टी का नाम है। इसके नीचे पता 23 बंगबंधु एवेन्यू, ढाका का पता लिखा था। आखिर में बांग्लादेश अवामी लीग के ऑफिस सेक्रेटरी बिप्लब बरुआ के हस्ताक्षर।

इसके अलावा शेख हसीना ने ट्रंप और उनकी पत्नी मेलानिया के साथ एक तस्वीर भी पोस्ट की है। इसमें शेख हसीना के साथ उनकी बेटी साइमा वाजिद भी खड़ी हैं।

पार्टी के सुप्रीम नेता के एक्टिव मोड में आने से शायद बांग्लादेश में ठंडे पड़ चुके कार्यकर्ताओं को भी ग्रीन सिग्नल मिला। जिसके बाद बांग्लादेश में अवामी लीग माहौल बनाने में जुट गई है।

अमेरिका के डेमोक्रेट्स ने यूनुस का खुले तौर पर समर्थन किया

बता दें कि शेख हसीना ने कथित तौर पर खुद को बांग्लादेश से हटाए जाने के पीछे वर्तमान जो बाइडन प्रशासन के होने का आरोप लगाया था। शेख हसीना ने प्रधानमंत्री रहते हुए भी अमेरिका पर उनके खिलाफ तख्तापलट का आरोप लगाया था।

शेख हसीने के तख्तापलट के पीछे अमेरिका का हाथ होने का कोई ठोस सबूत भले ही ना हो, लेकिन अमेरिका के डेमोक्रेट्स ने यूनुस का खुले तौर पर समर्थन किया था। इसकी झलक मोहम्मद यूनुस की संयुक्त राष्ट्र महासभा के लिए हाल में ही अमेरिका यात्रा के दौरान दिखाई दिया। इस दौरान मोहम्मद यूनुस बहुत प्रेम से राष्ट्रपति जो बाइडन से मिलते नजर आए थे। दोनों नेताओं के बॉडी लैंग्वेज को लेकर काफी सवाल उठे थे। इतना ही नहीं, सवाल यह भी उठे थे कि खुद को दुनिया का सबसे मजबूत लोकतंत्र कहने वाले देश का राष्ट्रपति एक अलोकतांत्रित तरीके से नियुक्त कार्यवाहक से कैसे मिल रहा है।

यूनुस डोनाल्ड ट्रंप के धुर विरोधी

वहीं, अगर मोहम्मद यूनुस की बात की जाए तो वे घोषित तौर पर डोनाल्ड ट्रंप के धुर विरोधी डेमोक्रेटिक पार्टी के समर्थक हैं। 2016 में, ट्रंप के पहली बार राष्ट्रपति चुनाव जीतने के ठीक बाद, पेरिस में एक व्याख्यान देते हुए, यूनुस ने कहा था, "ट्रंप की जीत ने हमें इतना प्रभावित किया है कि आज सुबह मैं मुश्किल से बोल पा रहा था। मेरी सारी ताकत खत्म हो गई। क्या मुझे यहां आना चाहिए? बेशक, मुझे आना चाहिए, हमें इस गिरावट को अवसाद में नहीं जाने देना चाहिए, हम इन काले बादलों को दूर कर देंगे।" ट्रंप पर यूनुस के पिछले विचार और बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हमलों की ट्रंप द्वारा सार्वजनिक रूप से निंदा किए जाने के कारण इस नोबेल पुरस्कार विजेता के लिए अमेरिका से निपटना मुश्किल हो सकता है।

शेख हसीना की वापसी के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे मोहम्मद यूनुस, इंटरपोल से मदद लेगी बांग्लादेशी सरकार

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बांग्लादेश की अंतरिम सरकार पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना की वापसी के लिए हर मुमकिन कोशिश में लगी हुई है। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार का कहना है कि वह देश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को भारत से वापस लाने के लिए इंटरपोल की मदद लेगा। हसीना और उनकी पार्टी के नेताओं पर सरकार विरोधी छात्र आंदोलन को क्रूर तरीके से दबाने का आदेश देने का आरोप है। जुलाई से अगस्त महीने में हुए विरोध प्रदर्शनों के दौरान कई लोगों की मौत हुई थी। जिसके खिलाफ अक्टूबर के मध्य तक हसीना और उनकी पार्टी के नेताओं के खिलाफ मानवता के विरुद्ध अपराध और नरसंहार की शिकायतें दर्ज कराई गईं थी। अब पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के खिलाफ छात्र आंदोलन में हुई मौतों का मुकदमा चलाने के लिए उनको बांग्लादेश लाया जाएगा। इसके लिए अंतरिम सरकार इंटरपोल की मदद मांगेगी।

बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने रविवार को कहा कि वह अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना और अन्य 'भगोड़ों' को भारत से वापस लाने के लिए इंटरपोल से मदद मांगेगी ताकि उन सभी पर मानवता के खिलाफ कथित अपराधों के लिए मुकदमा चलाया जा सके। न्यूज एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक कानूनी मामलों के सलाहकार आसिफ नजरूल ने कहा, 'बहुत जल्द इंटरपोल के लिए एक रेड नोटिस जारी किया जाएगा। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता के ये भगोड़े फासीवादी दुनिया में कहां छिपे हैं। उन्हें वापस लाया जाएगा और अदालत न्याय करेगी।'

बांग्लादेश सरकार के अधिकारियों के मुताबिक रेड नोटिस कोई इंटरनेशनल गिरफ्तारी वारंट नहीं है, बल्कि प्रत्यर्पण, आत्मसमर्पण या किसी अपराधी की गिरफ्तारी करने का एक वैश्विक अनुरोध है। वे प्रत्यर्पण, आत्मसमर्पण या ऐसी कानूनी कार्रवाई से भाग रहे व्यक्ति का पता लगाएं और उसे अस्थायी रूप से गिरफ्तार करें।

वहीं, आसिफ नजरुल ने कहा कि हसीना और उनके कई कैबिनेट सहयोगियों और अवामी लीग के नेताओं पर विशेष न्यायाधिकरण में मुकदमा चलाया जाएगा। 17 अक्तूबर को न्यायाधिकरण ने हसीना और 45 अन्य के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किए थे। इसमें उनके बेटे सजीब वाजेद जॉय और उनके कई पूर्व कैबिनेट सदस्य शामिल हैं।

77 साल की अवामी लीग प्रमुख हसीना और उनकी पार्टी के नेताओं पर छात्र विरोधी आंदोलन के क्रूर दमन का आरोप लगा है। इसके परिणामस्वरूप जुलाई-अगस्त के विरोध प्रदर्शन के दौरान सैकड़ों लोग हताहत हुए थे। बाद में आंदोलन बड़े पैमाने पर विद्रोह में बदल गया, जिस कारण उन्हें भाग कर भारत में शरण लेने के लिए मजबूर होना पड़ा।बांग्लादेश में मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार का कहना है कि विरोध प्रदर्शन के दौरान कम से कम 753 लोग मारे गए और हजारों घायल हुए। सरकार ने कहा है कि हसीना और उनके अवामी लीग नेताओं के खिलाफ अक्टूबर के मध्य तक अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण और अभियोजन टीम के पास 60 से ज्यादा शिकायतें की गई हैं। यह मानवता के खिलाफ अपराध और नरसंहार से जुड़ी हैं।

बता दें कि बांग्लादेश में आजादी के बाद से ही बांग्लादेश में आरक्षण व्यवस्था लागू है। इसके तहत स्वतंत्रता सेनानियों के बच्चों को 30 प्रतिशत, देश के पिछड़े जिलों के युवाओं को 10 प्रतिशत, महिलाओं को 10 प्रतिशत, अल्पसंख्यकों के लिए 5 प्रतिशत और दिव्यांगों के लिए एक प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान था। इस तरह बांग्लादेश में सरकारी नौकरियों में 56 प्रतिशत आरक्षण था। साल 2018 में बांग्लादेश के युवाओं ने इस आरक्षण के खिलाफ प्रदर्शन किया। कई महीने तक चले प्रदर्शन के बाद बांग्लादेश सरकार ने आरक्षण खत्म करने का एलान किया।

बीते 5 जून को बांग्लादेश की सुप्रीम कोर्ट ने देश में फिर से आरक्षण की पुरानी व्यवस्था लागू करने का आदेश दिया। शेख हसीना सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील भी की, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने आदेश को बरकरार रखा। इससे छात्र नाराज हो गए और उन्होंने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया। बांग्लादेश के विश्वविद्यालयों से शुरू हुआ ये विरोध प्रदर्शन बाद में बढ़ते-बढ़ते हिंसा में तब्दील हो गया था।

इजरायल ने हिजबुल्लाह पर किया था पेजर अटैक, नेतन्याहू ने पहली बार सच कबूला

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लेबनान में हुए घातक पेजर अटैक को लेकर इजरायल की ओर से बड़ा खुलासा किया गया है। ये हमला इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के आदेश पर हुआ था। इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने पहली बार स्वीकार किया है कि सितम्बर में लेबनान के अंदर हिजबुल्लाह लड़ाकों के पेजर विस्फोट के पीछे इजरायल का हाथ था। बता दे कि सितम्बर में लेबनान में हिजबुल्लाह लड़ाकों के हजारों पेजर में कुछ ही समय के भीतर ब्लॉस्ट हुए थे। इसके अगले ही दिन वॉकी-टॉकी में भी विस्फोट हुआ था। इस हमले में करीब 40 लोग मारे गए थे, जबकि 3000 से ज्यादा घायल हुए थे। हिजबुल्लाह ने पहले ही उन विस्फोटों के लिए अपने कट्टर-दुश्मन इजराइल को दोषी ठहराया था।

नेतन्याहू ने रविवार को कहा कि उन्होंने सितंबर में लेबनानी आतंकवादी समूह हिजबुल्लाह पर पेजर हमले को मंजूरी दी थी। इजरायली प्रधानमंत्री के प्रवक्ता उमर दोस्तरी ने एएफपी को बताया, ‘नेतन्याहू ने रविवार को पुष्टि की कि उन्होंने लेबनान में पेजर ऑपरेशन को हरी झंडी दे दी।’ नेतन्याहू ने लेबनान पर इजरायली हमलों को लेकर पहली बार सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया है। इजरायल ने अब तक इसमें शामिल होने की पुष्टि या खंडन नहीं किया था।

17 सितंबर को, हिज़बुल्लाह के गढ़ों में दो दिन तक लगातार हजारों पेजर फटे थे, जिसके लिए ईरान और हिज़बुल्लाह ने इज़रायल को इसका दोषी ठहराया था। पेजर हिज़बुल्लाह के सदस्यों द्वारा एक लो-टेक कम्युनिकेशन के रूप में इस्तेमाल किए जाते थे, ताकि इज़रायल उनकी जगहों को ट्रैक ना कर सके। इस पेजर अटैक ने पूरी दुनिया को सकते में ला दिया था। यहां तक कि अमेरिका तक को समझ नहीं आया कि यह हुआ कैसे?

हिजबुल्लाह ने इन हमलों के पीछे इजरायल को जिम्मेदार बताया था। विभिन्न रिपोर्टों में भी ऐसी ही जानकारी सामने आई थी। हालांकि, इजरायल ने कभी आधिकारिक तौर इस ऑपरेशन की जिम्मेदारी नहीं ली थी।

भारत के 51वें मुख्य न्यायाधीश बने न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, डीवाई चंद्रचूड़ का लेंगे स्थान

न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, जो सुप्रीम कोर्ट के कई ऐतिहासिक फैसलों का हिस्सा रहे हैं, ने सोमवार को भारत के 51वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली। उन्हें राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शपथ दिलाई। वे न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ का स्थान लेंगे, जिनका सीजेआई के रूप में कार्यकाल शुक्रवार को समाप्त हो गया।

केंद्र ने 16 अक्टूबर को मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ की सिफारिश के बाद 24 अक्टूबर को न्यायमूर्ति खन्ना की नियुक्ति को आधिकारिक रूप से अधिसूचित किया। शुक्रवार को न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ का सीजेआई के रूप में अंतिम कार्य दिवस था और उन्हें शीर्ष अदालत और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों, वकीलों और कर्मचारियों द्वारा शानदार विदाई दी गई। 64 साल की उम्र में, न्यायमूर्ति खन्ना भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में छह महीने का कार्यकाल पूरा करेंगे और 13 मई, 2025 को सेवानिवृत्त होने की उम्मीद है।

ऐतिहासिक निर्णयों की विरासत

न्यायमूर्ति संजीव खन्ना कई ऐतिहासिक सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों का हिस्सा रहे हैं, जिसमें चुनावी बॉन्ड योजना को खत्म करना और अनुच्छेद 370 को निरस्त करना शामिल है। उनके उल्लेखनीय निर्णयों में चुनावों में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों के उपयोग को बरकरार रखना भी शामिल है। यह न्यायमूर्ति खन्ना की अगुवाई वाली पीठ थी, जिसने पहली बार आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल, तत्कालीन दिल्ली के मुख्यमंत्री को आबकारी नीति घोटाला मामलों में लोकसभा चुनाव में प्रचार करने के लिए अंतरिम जमानत दी थी।

न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की यात्रा

न्यायमूर्ति खन्ना दिल्ली के एक प्रतिष्ठित परिवार से आते हैं। उनके पिता, न्यायमूर्ति देव राज खन्ना, दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश थे, और उनके चाचा, न्यायमूर्ति एचआर खन्ना, सर्वोच्च न्यायालय के एक प्रमुख पूर्व न्यायाधीश थे। जस्टिस एचआर खन्ना ने आपातकाल के दौरान कुख्यात एडीएम जबलपुर मामले में असहमतिपूर्ण फैसला लिखने के बाद 1976 में इस्तीफा देकर सुर्खियाँ बटोरीं।

जस्टिस खन्ना ने 1983 में दिल्ली बार काउंसिल में एक वकील के रूप में नामांकन कराया। उन्होंने शुरुआत में तीस हजारी कॉम्प्लेक्स में जिला अदालतों में प्रैक्टिस की, बाद में दिल्ली उच्च न्यायालय और न्यायाधिकरणों में चले गए। उन्होंने आयकर विभाग के वरिष्ठ स्थायी वकील के रूप में लंबे समय तक काम किया। 2004 में, उन्हें राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के लिए स्थायी वकील (सिविल) नियुक्त किया गया। उन्हें 2005 में दिल्ली उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया और 2006 में स्थायी न्यायाधीश बने। जस्टिस खन्ना को 18 जनवरी, 2019 को सर्वोच्च न्यायालय में पदोन्नत किया गया। अब 2024 में उन्हें भारत के सर्वोच्च न्यायालय के चीफ जस्टिस के तौर पर नियुक्त किया गया है, जो उनके जीवन की एक बड़ी उपलब्धि है।

ट्रेन पलटने की साजिश नाकाम : बिहार-यूपी बॉर्डर पर काटा ट्रैक, ऐसे टला हादसा

ट्रेन पलटने की एक बार फिर साजिश की गई है. उत्तर प्रदेश के बाद एक बार फिर बिहार और यूपी बॉर्डर पर ट्रेन डिरेल करने की साजिश की गई है. बॉर्डर पर रेलवे ट्रैक कटा हुआ मिला. जानकारी के मुताबिक कोलकाता-गाजीपुर सिटी शब्दभेदी एक्सप्रेस ट्रेन को डिरेल करने की कोशिश की थी. हालांकि ट्रेन के लोको पायलट की सूझबूझ से हादसा टल गया है. रेलवे अधिकारी घटनास्थल पर पहुंच गए हैं. वहीं इस मार्ग पर ट्रेनों का परिचालन बाधित हो गया है. ज्यादा जानकारी का इंतजार किया जा रहा है

जानकारी के मुताबिक रेलवे ट्रैक कटा होने की सूचना पर जीआरपी और पुलिस प्रशासन के आला अधिकारी आनन-फानन में मौके पर पहुंच गए. यह ट्रेन कोलकाता के हावड़ा रेलवे स्टेशन (HWH) से शाम 10:45 बजे चलती है और गाज़ीपुर सिटी के रेलवे स्टेशन (GCT) पर दोपहर 12:25 बजे पहुंचती है.

उत्तराखंड में ट्रेन डिरेल करने की कोशिश

हाल ही में उत्तराखंड में ट्रेन डिरेल करने की कोशिश को नाकाम किया गया था. राज्य के बलवंत एनक्लेव कॉलोनी के पीछे से गुजर रही बिलासपुर रोड रुद्रपुर सिटी स्टेशन के 43/10-11 रेलवे लाइन पर टेलीकॉम का पुराना लोहे का 7 मीटर लंबा खंबा रेलवे ट्रैक पर रखा हुआ था. हालांकि उस वक्त वहां से गुजर रही दून एक्सप्रेस के लोको पायलट ने ट्रेन के इमरजेंसी ब्रेक लगाकर एक बड़े हादसे को होने से बचा लिया. इसके पहले उत्तर प्रदेश के गाजीपुर में भी इस तरह की घटना की जानकारी मिली थी.

इमरजेंसी ब्रेक लगाकर टला हादसा

गाजीपुर घाट स्टेशन से गाजीपुर सिटी स्टेशन के बीच आलम पट्टी इलाके के पास ट्रेन को डिरेल करने के लिए रेल पटरी के बीच लकड़ी का एक बड़ा टुकड़ा रखा गया था. हालांकि ड्राइवर की सूझबूझ ने इमरजेंसी ब्रेक लगाई जिससे बड़ा हादसा टल गया. इमरजेंसी ब्रेक लगाने के बाद भी ट्रेन उस लकड़ी के साथ घसीटते हुए करीब 400 मीटर आगे जाकर रुकी. इसके बाद तत्काल पूरा रेलवे महकमा

अमेरिकी चुनाव के बाद कई देश चिंतित, लेकिन भारत नहीं” किया है एस. जयशंकर के कॉन्फिडेंस की वजह

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अमेरिका में राष्ट्रपति के बाद डोनाल्ड ट्रंप की वापसी हुई है। ट्रंप की जीत के साथ ही कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। खासकर ट्रंप की विदेश नीति को लेकर चर्चा तेज हो गई है। कई देश अमेरिका में सत्ता परिवर्तन के बाद आशंकित हैं। डोनाल्ड ट्रंप की संभावित कड़क नीतियों की वजह से चीन से लेकर कनाडा तक दुनिया के कई देश परेशान हैं। डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका फर्स्ट की नीति अपनाई है। यानी वह हर एक चीज में अमेरिकी हित को सर्वोपरि रखते हैं। पहले कार्यकाल में भी ट्रंप का आक्रमक रूख देखा गया था। इस बीच भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बड़ा बयान दिया है। जयशंकर ने कहा कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की जीत के बाद कई देशों में अमेरिकी नीति को लेकर चिंता है, लेकिन भारत ऐसा देश नहीं है।

विदेश मंत्री एस जयशंकर रविवार को मुंबई में आदित्य बिड़ला ग्रुप स्कॉलरशिप प्रोग्राम के सिल्वर जुबली समारोह में शामिल हुए।कार्यक्रम में उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की जीत के बाद वैश्विक चिंताओं के बावजूद वाशिंगटन के साथ भारत के संबंधों पर विश्वास जताया।जयशंकर ने अपने संबोधन में पीएम मोदी के कई अमेरिकी राष्ट्रपतियों के साथ तालमेल की प्रशंसा की। साथ ही उन्होंने कहा कि मोदी ने बराक ओबामा, डोनाल्ड ट्रंप और जो बाइडन के साथ अपने कार्यकाल में अच्छे संबंध बनाए है।

जयशंकर से जब यह पूछा गया कि डोनाल्ड ट्रंप की जीत से कई देश आशंकित हैं तो उन्होंने कहा कि भारत अमेरिका के साथ अपने रिश्तों को लेकर पूरी आश्वस्त है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बीते 11 सालों में तीन-तीन अमेरिकी राष्ट्रपतियों के साथ काम कर चुके हैं। बतौर पीएम जब पहली बार मोदी अमेरिका गए थे तो उस वक्त वहां बराक ओबामा की सरकार थी। उसके 2016 में डोनाल्ड ट्रंप वहां के राष्ट्रपति बने। उनके साथ भी पीएम मोदी ने मिलकर काम किया है। फिर 2020 में जो बाइडन राष्ट्रपति बने। बाइडन के साथ भी पीएम मोदी का संबंध बहुत अच्छा था। ऐसे में भले ही दुनिया के तमाम देश डोनाल्ड ट्रंप की जीत से परेशान हैं लेकिन भारत खासकर पीएम मोदी पूरी तरह आश्वस्त हैं।

जयशंकर ने इस बात पर भी जोर दिया कि पीएम मोदी की यह क्षमता, वैश्विक नेताओं के साथ अच्छे संबंध स्थापित करना, भारत के लिए फायदेमंद रहा है। उन्होंने इस बात का भी जिक्र किया कि ट्रंप ने अपनी जीत के बाद पहली तीन कॉल्स में से एक पीएम मोदी को की, जो भारत-अमेरिका के रिश्तों के महत्व को दर्शाता है।

जयशंकर ने इतना ही नहीं भारत के आर्थिक विकास पर भी जोर दिया और बताया कि भारत अब दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, और इस दशक के आखिरी तक तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगी। साथ ही उन्होंने बताया कि पिछले दशक में भारत के निर्यात और विदेशी निवेश में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है। जयशंकर ने कहा कि विदेश नीति में आर्थिक कूटनीति पर जोर दिया जा रहा है, जिससे राष्ट्रीय विकास और सुरक्षा को बढ़ावा मिलता है।

मॉस्को पर यूक्रेन का अब तक का सबसे बड़ा हमला, 34 ड्रोन दागे, ट्रंप की अपील का दोनों देशों पर नहीं दिख रहा असर

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डोनाल्ड ट्रंप ने पहले यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की और फिर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से फोन पर बातचीत की। इस दौरान ट्रंप ने दोनों नेताओं से युद्धविराम की अपील की। हालांकि ट्रंप के कॉल का असर होता नहीं दिख रहा है। रूस और यूक्रेन ने एक दूसरे पर सबसे बड़ा ड्रोन हमला किया। दो साल से ज्यादा समय से जारी युद्ध के बीच यूक्रेन ने रूस पर अब तक का सबसे बड़ा हमला किया है। यूक्रेन ने रविवार को मास्को पर कम से कम 34 ड्रोन से हमला किया, जो 2022 में युद्ध की शुरुआत के बाद से रूसी राजधानी पर सबसे बड़ा ड्रोन हमला है। इस हमले के कारण शहर के तीन प्रमुख एयरपोर्ट पर उड़ानों को डायवर्ट करना पड़ा और कम से कम पांच लोग घायल हो गए।

रूसी रक्षा मंत्रालय के अनुसार कि हमले के कारण मॉस्को क्षेत्र के स्टैनोवॉय गांव में दो घरों में आग लग गई, जिसमें एक 52 वर्षीय महिला को जलने के कारण अस्पताल में भर्ती कराया गया। इस हमले के बाद मॉस्को के हवाई अड्डों-डोमोडेडोवो, शेरेमेतियोवो और ज़ुकोवस्की-ने कम से कम 36 उड़ानों को डायवर्ट किया, लेकिन कुछ ही समय बाद परिचालन फिर से शुरू हो गया।वायु रक्षा कई अन्य रूसी क्षेत्रों, जिनमें ब्रांस्क, ओरलोव, कलुगा, तुला और कुर्स्क शामिल हैं, पर अतिरिक्त ड्रोन को मार गिराने में सक्षम थी. यहां ऑपरेशन को सफलतापूर्वक विफल कर दिया गया।

वहीं, यूक्रेन ने कहा कि रूस ने भी जवाबी हमले में रातों-रात 145 ड्रोन लॉन्च किए। कीव का कहना है कि उसकी एयर डिफेंस ने 62 ड्रोन को मार गिराया। कुछ अधिकारियों का कहना है कि युद्ध के शुरुआती दिनों के बाद से रूसी सेना सबसे तेज गति से आगे बढ़ रही है।

इसके अलावा यूक्रेन ने शुक्रवार से शनिवार की रात पश्चिमी शहर तुला में एक रूसी केमिकल प्लांट पर ड्रोन हमला किया। रूसी अधिकारियों ने हमले की बात नहीं स्वीकार की है। सिक्योरिटी सर्विस ऑफ यूक्रेन (SBU) की रिपोर्ट के मुताबिक अलेक्सिंस्की केमिकल प्लांट पर कम से कम 13 यूक्रेनी ड्रोन ने हमला किया था। इसके परिणामस्वरूप हमले के बाद विस्फोट हुआ और धुएं के बादल छा गए। स्टाफ को बाहर निकाला गया।

रूस-यूक्रेन के बीच जंग और तेज होती जा रही है। ऐसा तब हो रहा है जब अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में मिली जीत के बाद डोनाल्ड ट्रंप ने रूस-यूक्रेन के बीच युद्धविराम की कोशिश शुरू भी कर दी है। इसी के तहत ट्रंप ने पहले यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की और फिर रूसी राष्ट्रपति पुतिन को फोन कर संघर्ष न बढ़ाने की अपील की। हालांकि ताजा हमले से साफ है कि अभी बात नहीं बन पाई है और आशंका है कि जब तक जनवरी में ट्रंप का शपथ ग्रहण नहीं हो जाता, तब तक शायद ही कुछ ठोस हो सके।

चुनाव जीतते ही एक्शन में आए ट्रंप, पुतिन को लगाया फोन, क्या खत्म होगा रूस-यूक्रेन युद्ध?

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अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप शपत ग्रहण से पहले ही एक्शन में दिख रहे हैं। पदभार संभालने से पहले ही वो काम पर लग गए हैं। इसी क्रम में ट्रंप ने रविवार को रूस-युक्रेन युद्ध के बीच उन्‍होंने रूसी राष्ट्रपति व्‍लादिमीर पुतिन को फोन घुमाया। वॉशिंगटन पोस्ट ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि दोनों नेताओं के बीच गुरुवार को बात हुई जिसमें ट्रंप ने पुतिन से यूक्रेन में युद्ध को न बढ़ाने को कहा है। बता दें कि पीएम मोदी भी रूस-यूक्रेन संकट को हल करने की कोशिश में लगे हुए हैं। पिछले कुछ महीनों में वो रूस और यूक्रेन दोनों ही देशों का दौरा कर चुके हैं। यही नहीं अपने दो विश्वासपात्रों विदेश मंत्री एस जयशंकर और राष्‍ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल को पीएम मोदी ने युद्ध रुकवाने की कोशिशें करने की विशेष जिम्‍मेदारी दी है।

वॉशिंगटन पोस्ट के मुताबिक कॉल के दौरान डोनाल्ड ट्रंप ने कथित तौर पर पुतिन को यूरोप में मजबूत अमेरिकी सैन्य उपस्थिति की याद दिलाई। इसके साथ ही यूक्रेन युद्ध का हल तलाशने के लिए आगे भी चर्चा में रुचि जाहिर की। वॉशिंगटन पोस्ट ने मामले की जानकारी रखने वाले अज्ञात स्रोतों के हवाले से बताया कि डोनाल्ड ट्रंप ने संघर्ष को समाप्त करने की आवश्यकता पर जोर दिया और इस मुद्दे पर मॉस्को के साथ भविष्य की बातचीत में शामिल होने की इच्छा का संकेत दिया।

पुतिन से पहले जेलेंस्की से भी की बात

ट्रंप और पुतिन की बातचीत ऐसे वक्त हुई है, जब एक दिन पहले ही अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ने यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की से बात की थी। इस बातचीत के दौरान एलन मस्क भी ट्रंप के साथ मौजूद थे। अमेरिका के एक्सियोस पोर्टल की न्यूज रिपोर्ट की मानें तो यूक्रेन के मुद्दे पर दो बड़ी घटनाएं हुईं, पहली यह कि एलन मस्क ने जेलेंस्की से बातचीत की है और दूसरी यह कि इस बातचीत के बाद जेलेंस्की संघर्ष को लेकर कुछ बातों पर समझाने के बाद राजी हुए। इसी रिपोर्ट में कहा गया कि ट्रंप, मस्क और जेलेंस्की के बीच फोन पर करीब आधे घंटे तक बातचीत हुई। जेलेंस्की की तरफ से बधाई मिलने के बाद ट्रंप ने उन्हें कहा कि वह यूक्रेन का समर्थन करना जारी रखेंगे।

पुतिन ने ट्रंप के साथ बातचीत की इच्छा जाहिर की

बता दें कि पिछले हफ्ते रूस के सोची में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में पुतिन ने कहा था, यह मत सोचिए कि ट्रम्प के साथ बातचीत करना गलत है। अगर दुनिया के कुछ नेता संपर्क बहाल करना चाहते हैं, मैं इसके खिलाफ नहीं हूं। हम ट्रंप से बात करने के लिए तैयार हैं।उन्होंने जोर देकर कहा कि रूस के साथ संबंधों को बहाल करने की इच्छा के बारे में, यूक्रेनी संकट को खत्म करने में मदद करने के लिए, मेरी राय में, कम से कम ध्यान देने योग्य है। उन्होंने ट्रम्प को एक बहादुर आदमी भी बताया और कहा कि वह इस बात से प्रभावित हैं कि जुलाई में हत्या के प्रयास के बाद ट्रम्प ने खुद को कैसे संभाला।