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*महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव: बारामती सीट पर शरद पवार ने पोते पर खेला दांव, भतीजे अजीत के लिए कितनी बड़ी चुनौती?
#maharashtra_assembly_election_2024_baramati_family_battle
* महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में बारामती में चाचा और भतीजे की चुनावी लड़ाई देखने को मिलेगी। इस सीट पर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरदचंद्र पवार) के उम्मीदवार युगेंद्र पवार का अपने चाचा और एनसीपी के प्रमुख अजित पवार से भिरंत होगी। भतीजे अजित के बगावत के बाद चाचा शरद पवार ने अपने दूसरे भतीजे के बेटे यानी पोते युगेंद्र पर दांव खेल दिया। युगेंद्र एनसीपी नेता अजित पवार के भाई श्री निवास पवार के बेटे हैं। नामांकन के दौरान शरद पवार ने वरदहस्त पोते के सिर पर रखा बल्कि राजनीति की पहली सीढ़ी पर संकेतों की राजनीति के गुर भी सिखा दिए। *शरद पवार का वोटरों को सीधा संदेश* महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नामांकन के दौरान सीनियर पवार यानी शरद पवार ने बारामती के समर्थकों को सीधा संदेश दिया। भतीजे अजित पवार के खिलाफ एनसीपी (एसपी) के उम्मीदवार युगेंद्र के नामांकन के दौरान शरद पवार न सिर्फ तहसील कार्यालय में मौजूद रहे बल्कि अपने पोते को पैतृक गांव अमराई भी ले गए। 1967 में शरद पवार ने भी पहली बार नामांकन करने से पहले अमराई की यात्रा की थी। इसके अलावा वह खुद कुनबे के साथ तहसील कार्यालय पहुंचे, जहां युगेंद्र ने नामांकन की प्रक्रिया पूरी की। युगेंद्र के साथ दादा शरद पवार के अलावा उनके पिता श्रीनिवास पवार, मां शर्मिला पवार और बुआ सुप्रिया सुले भी मौजूद रहीं। इस तरह शरद पवार ने बारामती के वोटरों को सीधा संदेश दिया कि इस चुनाव में पवार फैमिली के कैंडिडेट अजित नहीं, युगेंद्र पवार हैं। *शरद पवार का आशीर्वाद मेरे साथ है- युगेंद्र* वहीं चाचा के साथ चुनावी जंग पर युगेंद्र पवार ने कहा, जब मेरे चाचा (अजित पवार) ने बारामती से चुनाव लड़ा और काम किया, तो पवार साहब का आशीर्वाद उनके साथ था...लेकिन अब आशीर्वाद मेरे साथ है। पवार साहब के पास अधिक अनुभव है, जो मेरे लिए एक प्रोत्साहन और समर्थन है। उन्होंने कहा, मेरे माता-पिता सामाजिक कार्य करते हैं, मैं शैक्षणिक संस्थानों और कुश्ती संघ से जुड़ा हुआ हूं। मेरी फैक्ट्री यहां है और मैं जैविक खेती कर रहा हूं। उन्होंने कहा, यह (शरद) पवार साहब की 99 प्रतिशत सद्भावना है, जबकि मेरा प्रयास केवल एक प्रतिशत है। *छह महीने पवार परिवार के बीच दूसरी लड़ाई* पिछले छह महीनों में पुणे जिले के बारामती में राजनीतिक रूप से प्रभावशाली पवार परिवार के दो सदस्यों के बीच यह दूसरा चुनावी मुकाबला है। मई में शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले ने अपनी भाभी और उपमुख्यमंत्री अजीत पवार की पत्नी सुनेत्रा पवार के खिलाफ लोकसभा चुनाव लड़ा था। इस दौरान सुप्रिया सुले ने अपनी भाभी को 1.58 लाख से अधिक मतों के अंतर से हराकर बारामती सीट पर जीत हासिल की थी। 1999 में शरद पवार की तरफ से स्थापित राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) जुलाई 2023 में दो हिस्सों में बंट गई, जब उनके भतीजे अजीत पवार ने एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र सरकार से हाथ मिला लिया। बता दें कि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की स्थापना शरद पवार ने 1999 में की थी। जुलाई 2023 में उनके भतीजे अजित पवार के बगावत करने और एकनाथ शिंदे नीत महाराष्ट्र सरकार में शामिल होने के बाद एनसीपी दो भागों में बंट गई थी।
भारत के बड़े बाजार में पकड़ बनाने की आस में जर्मनी, क्या चांसलर ओलाफ के दौरे से बनी बात?*
#purpose_of_german_chancellor_olaf_scholz_visit_to_new_delhi
मौजूदा विश्व में जिस तेजी से अलग-अलग देशों और खेमों में पुराने समीकरण नई शक्ल ले रहे हैं, संबंधों के आयाम बदल रहे हैं। कुछ युद्धों और अन्य कारणों से दुनिया के ज्यादातर देश अपनी सुविधा के ध्रुवों में बंट रहे हैं, उसमें भारत अलग-अलग देशों के साथ अपने संबंधों को व्यावहारिकता और जरूरत की कसौटी पर तय कर रहा है। इसी बीच पिछले हफ्ते जर्मनी के चांसलर ओलाफ शॉल्त्स एक बड़े प्रतिनिधिमंडल के साथ भारत पहुंचे थे। यह दौरा ऐसे समय पर हुआ जब जर्मनी की निर्यात-आधारित अर्थव्यवस्था लगातार दूसरे साल मंदी का सामना कर रही है। साथ ही, यूरोपीय संघ और चीन के बीच व्यापार विवाद को लेकर चिंताएं हैं, जो जर्मन कंपनियों को नुकसान पहुंचा सकता है। जर्मनी के चांसलर ओलाफ शोल्ज के साथ भारतीय प्रधानमंत्री के मुलाकात के बाद और जर्मनी और भारत के सातवें अंतर-सरकारी परामर्श यानी आइजीसी के आयोजन के दौरान दोनों देशों के बीच संबंधों का जो नया अध्याय खुला है, उससे काफी उम्मीदें लगाई जा रही हैं। दोनों देशों के बीच कई मोर्चों पर सहयोग की घोषणा की गई। इसमें कई संधियों पर हस्ताक्षर किए जाने के साथ-साथ द्विपक्षीय रिश्तों को और मजबूत करने की प्रतिबद्धता पर भी जोर दिया गया। भारत में बेरोजगारी की समस्या आम है तो जर्मनी में कुशल कामगारों की कमी है। इस लिहाज से देखें तो द्विपक्षीय बातचीत में जर्मनी में भारत के कुशल कामगारों की बढ़ती मांग और यहां के प्रशिक्षित श्रमिकों के लिए वार्षिक वीजा की संख्या बीस हजार से बढ़ा कर नब्बे हजार करने पर बनी सहमति काफी मायने रखती है। यह दौरा जर्मनी के लिए एक नाजुक समय पर हो रहा है। जर्मनी की अर्थव्यवस्था निर्यात पर बहुत अधिक निर्भर है। वह लगातार दूसरे साल गिरावट का सामना कर रही है। यूरोपीय संघ (ईयू) और चीन के बीच व्यापार विवाद जर्मन कंपनियों के लिए एक और चिंता का विषय है। 2022 में यूक्रेन युद्ध से पहले सस्ती रूसी गैस पर अपनी निर्भरता के कारण जर्मनी को काफी नुकसान उठाना पड़ा था। इसके बाद से जर्मनी चीन पर अपनी निर्भरता कम करने की रणनीति पर काम कर रहा है। भारत एशिया-प्रशांत क्षेत्र में जर्मनी के लिए विकास का इंजन बना हुआ है। जर्मनी की कंपनियां भारत की मजबूत आर्थिक बुनियाद को देखते हुए उसकी विकास गाथा में हिस्सेदार बनना चाहती हैं। जर्मन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स अब्रॉड (एएचके) के नेटवर्क की ओर से किए गए सर्वे में कहा गया है कि भारत में कारोबार कर रहीं जर्मनी की 51 फीसदी कंपनियां आने वाले 12 महीनों में अपना निवेश बढ़ाना चाहती हैं। वहीं, चीन में कारोबार करने वाली जर्मनी की 28 फीसदी कंपनियां ग्रेटर चीन में अपने निवेश में कटौती करना चाहती हैं। ग्रेटर चीन में चीन, ताइवान और हांगकांग शामिल हैं। यह सर्वे एशिया-प्रशांत और ग्रेटर चीन क्षेत्र में करीब 820 सदस्य कंपनियों के बीच किया गया है। जर्मनी की कंपनियां भारत में उज्ज्वल भविष्य देख रही हैं। 82 फीसदी कंपनियों को उम्मीद है कि अगले पांच सालों में उनके रेवेन्यू में वृद्धि होगी। 59 फीसदी कंपनियां अपनी निवेश योजनाओं का विस्तार कर रही हैं, जबकि 2021 में यह आंकड़ा सिर्फ 36 प्रतिशत था। उदाहरण के लिए, जर्मन लॉजिस्टिक्स कंपनी डीएचएल 2026 तक भारत में 50 करोड़ यूरो का निवेश करेगी। यह निवेश तेजी से बढ़ते ई-कॉमर्स बाजार का फायदा उठाने के लिए किया जा रहा है।डीएचएल डिवीजन के प्रमुख ऑस्कर दे बोक ने कहा, "हम एशिया-प्रशांत क्षेत्र में जबरदस्त विकास की संभावना देख रहे हैं, जिसमें भारत का एक बड़ा हिस्सा है।" चीन में बिक्री में गिरावट और घरेलू उत्पादन लागत बढ़ने के कारण संकट से जूझ रही जर्मन कार कंपनी फोक्सवागन भारत में नए साझेदारी की संभावनाओं पर विचार कर रही है। कंपनी के पास पहले से भारत में दो कारखाने हैं और इसने फरवरी में स्थानीय साझेदार महिंद्रा के साथ एक सप्लाई समझौता किया है। फोक्सवागन के वित्त प्रमुख अर्नो एंटलिट्ज ने मई में कहा था, "मुझे लगता है कि हमें भारत की संभावनाओं को कम नहीं आंकना चाहिए, न केवल बाजार के लिहाज से, बल्कि अमेरिका और चीन के बीच की अनिश्चितता के लिहाज से भी।" इसी तरह, कोलोन स्थित इंजन निर्माता डॉयट्ज ने इस साल भारत की मोटर कंपनी टेफ (टीएएफई) के साथ एक समझौता किया है, जो दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी ट्रैक्टर निर्माता कंपनी है। इस समझौते के तहत टेफ मोटर्स डॉयट्ज के 30,000 इंजन लाइसेंस के तहत बनाएगी।
भारत के बड़े बाजार में पकड़ बनाने की आस में जर्मनी, क्या चांसलर ओलाफ के दौरे से बनी बात?*
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मौजूदा विश्व में जिस तेजी से अलग-अलग देशों और खेमों में पुराने समीकरण नई शक्ल ले रहे हैं, संबंधों के आयाम बदल रहे हैं। कुछ युद्धों और अन्य कारणों से दुनिया के ज्यादातर देश अपनी सुविधा के ध्रुवों में बंट रहे हैं, उसमें भारत अलग-अलग देशों के साथ अपने संबंधों को व्यावहारिकता और जरूरत की कसौटी पर तय कर रहा है। इसी बीच पिछले हफ्ते जर्मनी के चांसलर ओलाफ शॉल्त्स एक बड़े प्रतिनिधिमंडल के साथ भारत पहुंचे थे। यह दौरा ऐसे समय पर हुआ जब जर्मनी की निर्यात-आधारित अर्थव्यवस्था लगातार दूसरे साल मंदी का सामना कर रही है। साथ ही, यूरोपीय संघ और चीन के बीच व्यापार विवाद को लेकर चिंताएं हैं, जो जर्मन कंपनियों को नुकसान पहुंचा सकता है। जर्मनी के चांसलर ओलाफ शोल्ज के साथ भारतीय प्रधानमंत्री के मुलाकात के बाद और जर्मनी और भारत के सातवें अंतर-सरकारी परामर्श यानी आइजीसी के आयोजन के दौरान दोनों देशों के बीच संबंधों का जो नया अध्याय खुला है, उससे काफी उम्मीदें लगाई जा रही हैं। दोनों देशों के बीच कई मोर्चों पर सहयोग की घोषणा की गई। इसमें कई संधियों पर हस्ताक्षर किए जाने के साथ-साथ द्विपक्षीय रिश्तों को और मजबूत करने की प्रतिबद्धता पर भी जोर दिया गया। भारत में बेरोजगारी की समस्या आम है तो जर्मनी में कुशल कामगारों की कमी है। इस लिहाज से देखें तो द्विपक्षीय बातचीत में जर्मनी में भारत के कुशल कामगारों की बढ़ती मांग और यहां के प्रशिक्षित श्रमिकों के लिए वार्षिक वीजा की संख्या बीस हजार से बढ़ा कर नब्बे हजार करने पर बनी सहमति काफी मायने रखती है। यह दौरा जर्मनी के लिए एक नाजुक समय पर हो रहा है। जर्मनी की अर्थव्यवस्था निर्यात पर बहुत अधिक निर्भर है। वह लगातार दूसरे साल गिरावट का सामना कर रही है। यूरोपीय संघ (ईयू) और चीन के बीच व्यापार विवाद जर्मन कंपनियों के लिए एक और चिंता का विषय है। 2022 में यूक्रेन युद्ध से पहले सस्ती रूसी गैस पर अपनी निर्भरता के कारण जर्मनी को काफी नुकसान उठाना पड़ा था। इसके बाद से जर्मनी चीन पर अपनी निर्भरता कम करने की रणनीति पर काम कर रहा है। भारत एशिया-प्रशांत क्षेत्र में जर्मनी के लिए विकास का इंजन बना हुआ है। जर्मनी की कंपनियां भारत की मजबूत आर्थिक बुनियाद को देखते हुए उसकी विकास गाथा में हिस्सेदार बनना चाहती हैं। जर्मन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स अब्रॉड (एएचके) के नेटवर्क की ओर से किए गए सर्वे में कहा गया है कि भारत में कारोबार कर रहीं जर्मनी की 51 फीसदी कंपनियां आने वाले 12 महीनों में अपना निवेश बढ़ाना चाहती हैं। वहीं, चीन में कारोबार करने वाली जर्मनी की 28 फीसदी कंपनियां ग्रेटर चीन में अपने निवेश में कटौती करना चाहती हैं। ग्रेटर चीन में चीन, ताइवान और हांगकांग शामिल हैं। यह सर्वे एशिया-प्रशांत और ग्रेटर चीन क्षेत्र में करीब 820 सदस्य कंपनियों के बीच किया गया है। जर्मनी की कंपनियां भारत में उज्ज्वल भविष्य देख रही हैं। 82 फीसदी कंपनियों को उम्मीद है कि अगले पांच सालों में उनके रेवेन्यू में वृद्धि होगी। 59 फीसदी कंपनियां अपनी निवेश योजनाओं का विस्तार कर रही हैं, जबकि 2021 में यह आंकड़ा सिर्फ 36 प्रतिशत था। उदाहरण के लिए, जर्मन लॉजिस्टिक्स कंपनी डीएचएल 2026 तक भारत में 50 करोड़ यूरो का निवेश करेगी। यह निवेश तेजी से बढ़ते ई-कॉमर्स बाजार का फायदा उठाने के लिए किया जा रहा है।डीएचएल डिवीजन के प्रमुख ऑस्कर दे बोक ने कहा, "हम एशिया-प्रशांत क्षेत्र में जबरदस्त विकास की संभावना देख रहे हैं, जिसमें भारत का एक बड़ा हिस्सा है।" चीन में बिक्री में गिरावट और घरेलू उत्पादन लागत बढ़ने के कारण संकट से जूझ रही जर्मन कार कंपनी फोक्सवागन भारत में नए साझेदारी की संभावनाओं पर विचार कर रही है। कंपनी के पास पहले से भारत में दो कारखाने हैं और इसने फरवरी में स्थानीय साझेदार महिंद्रा के साथ एक सप्लाई समझौता किया है। फोक्सवागन के वित्त प्रमुख अर्नो एंटलिट्ज ने मई में कहा था, "मुझे लगता है कि हमें भारत की संभावनाओं को कम नहीं आंकना चाहिए, न केवल बाजार के लिहाज से, बल्कि अमेरिका और चीन के बीच की अनिश्चितता के लिहाज से भी।" इसी तरह, कोलोन स्थित इंजन निर्माता डॉयट्ज ने इस साल भारत की मोटर कंपनी टेफ (टीएएफई) के साथ एक समझौता किया है, जो दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी ट्रैक्टर निर्माता कंपनी है। इस समझौते के तहत टेफ मोटर्स डॉयट्ज के 30,000 इंजन लाइसेंस के तहत बनाएगी।
धनतेरस पर धन्वंतरि की पूजा का है विशेष महत्व, जानिए, कौन हैं धन्वंतरि और धनतेरस पर क्यों होती है इनकी पूजा

दिवाली से पहले धनतेरस का पर्व मनाया जाता है. इस दिन मां लक्ष्मी और कुबेर के साथ ही धन्वंतरि की भी पूजा की जाती है. यहां जानिए, कौन हैं धन्वंतरि और धनतेरस पर क्यों होती है पूजा. दीपावली पांच दिवसीय पर्व है, जिसकी शुरुआत धनतेरस के दिन से ही होती है. धनतेरस को धनत्रयोदशी भी कहा जाता है. धनतेरस के दिन मां लक्ष्मी और कुबेर देव की पूजा की जाती है. साथ ही इस दिन धन्वंतरि की भी पूजा का महत्व है. पंचांग के अनुसार कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है. इस दिन लोग अपने सामार्थ्यनुसार किसी न किसी वस्तु की खरीदारी जरूर करते हैं. इस साल धनतेरस का पर्व 29 अक्टूबर को मनाया जाएगा और दिवाली 31 अक्टूबर को होगी. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार धन्वंतरि की उत्पत्ति समुद्र मंथन के दौरान हुई थी. पौराणिक कथा के अनुसार जिस अमृत कलश के लिए समुद्र मंथन किया गया था, उसे धन्वंतरि ही लेकर बाहर निकले थे. इन्हें आयुर्वेद का प्रणेता और चिकित्सा क्षेत्र में देवताओं के वैद्य के रूप में जाना जाता है. इसलिए धन्वंतरि आरोग्यता प्रदान करने वाले देवता माने जाते हैं. मान्यता है कि इनकी पूजा से रोगों से मुक्ति मिलती है और आयोग्यता की प्राप्ति होती है. अब प्रश्न यह उठता है कि धन्वंतरि जब आयोग्य प्रदान करने वाले देवता हैं तो धनतेरस के दिन इनकी पूजा क्यों होती है. पौराणिक कथा के अनुसार अमृत कलश के लिए देवताओं और दानवों के बीच में समुद्र मंथन किया गया था. समुद्र मंथन से एक-एक कर पूरे 14 रत्न बाहर निकले थे, जिसमें सबसे आखिर में अमृत कलश निकला था, जिसे धन्वंतरि लेकर प्रकट हुए थे. जिस दिन धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे वह कार्तिक शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी का दिन था. इसलिए धनतेरस के दिन इनकी पूजा की जाती है. इस तिथि में प्रकट होने के कारण धनतेरस के दिन को धन्वंतरि त्रयोदशी या धन्वंतरि जयंती के रूप में भी मनाया जाता है.
बीजेपी के दबाव का भी अजीत पवार पर नहीं हुआ असर, नवाब मलिक मानखुद खुर्द शिवाजी नगर उतारा*
#ajit_pawar_led_ncp_give_ticket_to_nawab_malik
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए नामांकन के आखरी दिन राजनातिक दलों ने चौंकाने वाले दांव चले हैं। पहले एकनाथ शिंदे की पार्टी बीजेपी नेता शाइना एनसी को मुंबा देवी से अपना प्रत्‍याशी बनाया है। अब एनसीपी ने मानखुद शिवाजी नगर सीट से नवाब मलिक को मैदान से उतार कर सबको चौंका दिया है।नवाब मलिक ने अंतिम घंटों में चौंकाते हुए मानखुद शिवाजी नगर ने नामांकन भी दाखिल कर दिया। बता दें कि बीजेपी ने नवाब मलिक को टिकट देने का विरोध किया था।महाराष्ट्र में बीजेपी और एनसीपी (अजित पवार) महायुति गठबंधन का हिस्सा हैं। ऐसे में अजीत पवार ने बीजेपी के विरोध को अनदेखी करते हुए नवाब मलिक पर दांव लगाया है। वहीं अपना नामांकन दाखिल करने के बाद नवाब मलिक ने कहा कि, आज मैंने एनसीपी उम्मीदवार के तौर पर मानखुर्द शिवाजी नगर विधानसभा क्षेत्र से नामांकन दाखिल किया। मैंने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर भी नामांकन दाखिल किया था। लेकिन पार्टी ने एबी फॉर्म भेजा और हमने इसे दोपहर 2.55 बजे जमा कर दिया और अब मैं एनसीपी का आधिकारिक उम्मीदवार हूं। उन्होंने आगे कहा कि मैं अजित पवार, प्रफुल्ल पटेल, सुनील तटकरे का बहुत आभारी हूं। उन्हें मुझ पर भरोसा है, बड़ी संख्या में मतदाता निश्चित रूप से मेरा समर्थन करेंगे, मुझे पूरा विश्वास है कि इस बार हम मानखुर्द शिवाजी नगर निर्वाचन क्षेत्र जीतेंगे। अजित पवार की अगुवाई वाली एनसीपी ने नवाब मलिक के चुनाव लड़ने को लेकर आखिर तक सस्पेंस बनाए रखा। पहले जब अजित पवार की अगुवाई वाली एनसीपी ने अणुशक्ति नगर सीट से सना मलिक शेख को उम्मीदवारी घोषित की थी तब यह चर्चा सामने आई थी कि बीजेपी के दबाव के चलते एनसीपी ने नवाब मलिक से दूरी बनाई है, लेकिन नामांकन के कुछ घटों पर पहले जब एनसीपी की तरफ नवाब मलिक को एबी फार्म देने की जानकारी दी गई तो साफ हो गया कि एनसीपी ने एक रणनीति के खेला किया है। पहले यह कहा गया था नवाब मलिक के अंडरवर्ल्ड के साथ कथित आरोपों के चलते उनका उम्मीदवारी रद्द हो सकती है। इसलिए पार्टी ने उनकी बेटी सना मलिक को मुंबई की अणुशक्तिनगर सीट से टिकट दिया है। इस सीट पर सना का मुकाबला एनसीपी शरद पवार गुट की फहाद अहमद से होगा। फहाद अहम बॉलीवुड एक्टर स्वरा भास्कर के पति हैं।
*नसरल्लाह के खात्मे के बाद हिज्बुल्लाह को मिला नया चीफ, जानें कौन है नईम कासिम?*
#hezbollah_names_naim_qassem_as_new_chief
इजरायल लगातार हिजबुल्लाह के ठिकानों को निशाना बना रहा है। इस दौरान इजरिली सेना ने हिजबुल्लाह के चीफ हसन नसरल्लाह की हत्या कर दी थी। इसके बाद हाशेम सफीद्दीन को हिजबुल्लाह का चीफ बनाना था, लेकिन एक एयर स्ट्राइक में इजरायल ने हिजहाशेम सफीद्दीन को भी मार गिराया था। अब हिजबुल्लाह चीफ को लेकर बड़ी खबर सामने आई है। हिजबुल्लाह ने एक बयान जारी कर बताया है कि नईम कासिम को हिजबुल्लाह का नया चीफ बनाया गया है। हिजबुल्लाह की निर्णय लेने वाली शूरा परिषद ने लंबे मंथन के बाद नईम कासिम को अपना नया नेता चुन लिया है। हिजबुल्लाह ने एक बयान जारी कर बताया कि उसकी शूरा काउंसिल ने महासचिव चुनने के अपने स्थापित तंत्र के तहत नईम कासिम को नया प्रमुख चुना है। हिजबुल्लाह के बयान में साफ किया गया कि वे जीत हासिल होने तक नसरल्लाह की नीतियों पर काम करते रहेंगे और अल-अक्सा और फिलिस्तीनियों को अकेला नहीं छोड़ेंगे। कासिम लंबे समय से नसरल्ला के सहायक के तौर पर काम कर रहा था और मौत के बाद से वह हिजबुल्लाह के कार्यवाहक नेता के रूप में काम कर रहा था। *नईम कासिम को क्यों चुना गया?* हिजबुल्लाह ने एक बयान में कहा कि कासिम को संगठन के सिद्धांतों और उद्देश्यों का पालन करने के उनके उत्साह के लिए चुना गया है। नईम को आम तौर पर हिजबुल्लाह में नंबर दो नेता के रूप में जाना जाता है। वह 1980 के दशक की शुरुआत में हिजबुल्लाह की स्थापना करने वालों में भी शामिल थे। *कौन हैं हिजबुल्लाह का नया चीफ?* नईम कासिम का जन्म दक्षिणी लेबनान के कफर फ़िला शहर में हुआ था। उसने लेबनानी विश्वविद्यालय से रसायन विज्ञान की पढ़ाई की और उसके बाद कई वर्षों तक रसायन विज्ञान के शिक्षक के रूप में काम किया। इस दौरान उसने धार्मिक अध्ययन भी जारी रखा। उसने लेबनानी यूनियन फॉर मुस्लिम स्टूडेंट्स की स्थापना में भाग लिया, यह संगठन छात्रों के बीच धार्मिक पालन को बढ़ावा देने का काम करता है। *हिजबुल्लाह में कैसे हुआ शामिल* 1970 के दशक में नईम कासिम मूवमेंट ऑफ द डिसपोस्सेस्ड में शामिल हो गया। यह एक राजनीतिक संगठन था, जिसकी स्थापना इमाम मूसा सदर ने की थी। इसका मकसद लेबनान के ऐतिहासिक रूप से उपेक्षित और गरीब शिया समुदाय के लिए अधिक से अधिक प्रतिनिधित्व पर जोर देना था। यह संगठन बाद में अमल आंदोलन में बदल गया, जो लेबनान के गृहयुद्ध के दौरान मुख्य सशस्त्र समूहों में से एक था और अब एक शक्तिशाली राजनीतिक दल है। इसके बाद कासिम ईरान के समर्थन से बनाए गए नए हिजबुल्लाह में शामिल हो गया। 1991 से उसने हिजबुल्लाह के उप महासचिव के रूप में कार्य किया। *तीन दशक बाद बदला नेता* बता दें कि हसन नसरल्लाह की मौत पिछले महीने एक इजराइली हवाई हमले में हुई थी। हसन नसरल्लाह ने लगभग तीन दशकों तक समूह का नेतृत्व किया था। नसरल्लाह के नेतृत्व के दौरान हिजबुल्लाह ने लेबनान में अपनी जड़ें मजबूत की।
*नसरल्लाह के खात्मे के बाद हिज्बुल्लाह को मिला नया चीफ, जानें कौन है नईम कासिम?*
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इजरायल लगातार हिजबुल्लाह के ठिकानों को निशाना बना रहा है। इस दौरान इजरिली सेना ने हिजबुल्लाह के चीफ हसन नसरल्लाह की हत्या कर दी थी। इसके बाद हाशेम सफीद्दीन को हिजबुल्लाह का चीफ बनाना था, लेकिन एक एयर स्ट्राइक में इजरायल ने हिजहाशेम सफीद्दीन को भी मार गिराया था। अब हिजबुल्लाह चीफ को लेकर बड़ी खबर सामने आई है। हिजबुल्लाह ने एक बयान जारी कर बताया है कि नईम कासिम को हिजबुल्लाह का नया चीफ बनाया गया है। हिजबुल्लाह की निर्णय लेने वाली शूरा परिषद ने लंबे मंथन के बाद नईम कासिम को अपना नया नेता चुन लिया है। हिजबुल्लाह ने एक बयान जारी कर बताया कि उसकी शूरा काउंसिल ने महासचिव चुनने के अपने स्थापित तंत्र के तहत नईम कासिम को नया प्रमुख चुना है। हिजबुल्लाह के बयान में साफ किया गया कि वे जीत हासिल होने तक नसरल्लाह की नीतियों पर काम करते रहेंगे और अल-अक्सा और फिलिस्तीनियों को अकेला नहीं छोड़ेंगे। कासिम लंबे समय से नसरल्ला के सहायक के तौर पर काम कर रहा था और मौत के बाद से वह हिजबुल्लाह के कार्यवाहक नेता के रूप में काम कर रहा था। *नईम कासिम को क्यों चुना गया?* हिजबुल्लाह ने एक बयान में कहा कि कासिम को संगठन के सिद्धांतों और उद्देश्यों का पालन करने के उनके उत्साह के लिए चुना गया है। नईम को आम तौर पर हिजबुल्लाह में नंबर दो नेता के रूप में जाना जाता है। वह 1980 के दशक की शुरुआत में हिजबुल्लाह की स्थापना करने वालों में भी शामिल थे। *कौन हैं हिजबुल्लाह का नया चीफ?* नईम कासिम का जन्म दक्षिणी लेबनान के कफर फ़िला शहर में हुआ था। उसने लेबनानी विश्वविद्यालय से रसायन विज्ञान की पढ़ाई की और उसके बाद कई वर्षों तक रसायन विज्ञान के शिक्षक के रूप में काम किया। इस दौरान उसने धार्मिक अध्ययन भी जारी रखा। उसने लेबनानी यूनियन फॉर मुस्लिम स्टूडेंट्स की स्थापना में भाग लिया, यह संगठन छात्रों के बीच धार्मिक पालन को बढ़ावा देने का काम करता है। *हिजबुल्लाह में कैसे हुआ शामिल* 1970 के दशक में नईम कासिम मूवमेंट ऑफ द डिसपोस्सेस्ड में शामिल हो गया। यह एक राजनीतिक संगठन था, जिसकी स्थापना इमाम मूसा सदर ने की थी। इसका मकसद लेबनान के ऐतिहासिक रूप से उपेक्षित और गरीब शिया समुदाय के लिए अधिक से अधिक प्रतिनिधित्व पर जोर देना था। यह संगठन बाद में अमल आंदोलन में बदल गया, जो लेबनान के गृहयुद्ध के दौरान मुख्य सशस्त्र समूहों में से एक था और अब एक शक्तिशाली राजनीतिक दल है। इसके बाद कासिम ईरान के समर्थन से बनाए गए नए हिजबुल्लाह में शामिल हो गया। 1991 से उसने हिजबुल्लाह के उप महासचिव के रूप में कार्य किया। *तीन दशक बाद बदला नेता* बता दें कि हसन नसरल्लाह की मौत पिछले महीने एक इजराइली हवाई हमले में हुई थी। हसन नसरल्लाह ने लगभग तीन दशकों तक समूह का नेतृत्व किया था। नसरल्लाह के नेतृत्व के दौरान हिजबुल्लाह ने लेबनान में अपनी जड़ें मजबूत की।
इस बार खास होने वाली है जनगणना, जानें क्या हो सकता है अलग*
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देश में अगले साल से जनगणना की शुरुआत होने वाली है। इसके आंकड़े साल 2026 में जारी किए जा सकते हैं। इस बार की जनगणना काफी मायनों में अलग होने वाली है। इसकी एक खास वजह यह है कि यह ऐसे टाइम में हो रही है जब भारत दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन गया है। भारत ने चीन को आबादी के मामले में पीछे छोड़ दिया है। साथ ही, इस बार की जनगणना में संप्रदाय को लेकर भी सवाल किए जाने के आसार हैं। यही नहीं, अब देश में हर 10 साल में होने वाली अगली जनगणना 2035 में होगी। कोविड की वजह से इसका चक्र गड़बड़ हो गया था। पहले हर दशक पर जनगणना होती आई है। इससे पहले 1991, 2001, 2011 में हुई थी और इस तरह से इसे साल 2021 में होने वाली थी। *अब आपसे संप्रदाय भी पूछ सकती है सरकार* अब तक की जनगणना का जो पैटर्न था उसके केवल धर्म और वर्ग ही पूछा जाता रहा है। साथ ही एससी, एसटी और जनरल कैटेगरी की गणना होती है। हालांकि, इस बार यह भी सवाल किया जा सकता है कि वह किस संप्रदाय के अनुयायी हैं। अब इसको एक उदाहरण के जरिये समझने की कोशिश करते हैं। जैसे इस्लाम में शिया और सुन्नी शामिल हैं, जबकि जातियों में ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य जैसे समूह शामिल हैं। दरअसल, जनगणना ऐसे समय होगी जब देश के कई राजनीतिक दल जाति आधारित गणना की मांग कर रहे हैं। बिहार, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक जैसे राज्यों ने जाति सर्वेक्षण पूरे भी कर लिए हैं और तेलंगाना जैसे अन्य राज्य इसके लिए तैयार हैं। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने सरकार से इसपर सर्वदलीय बैठक की मांग की। उन्होंने कहा कि क्या इस नई जनगणना में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के अलावा देश की सभी जातियों की विस्तृत गणना शामिल होगी जो हर जनगणना में की जाती रही है। संविधान के अनुसार, ऐसी जाति जनगणना केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है। *पहली बार होगी डिजिटल जनगणना* यह पहली डिजिटल जनगणना होगी, जिसके जरिए नागरिकों को स्वयं गणना करने का अवसर मिलेगा। इसके लिए जनगणना प्राधिकरण ने एक स्व-गणना पोर्टल तैयार किया है, जिसे अभी लॉन्च नहीं किया गया है। स्व-गणना के दौरान आधार या मोबाइल नंबर अनिवार्य रूप से एकत्र किया जाएगा। *पूछे जाएंगे 31 सवाल* लोगों से सर्वे में 31 सवाल पूछे जाएंगे, जिसमें परिवार के व्यक्तियों की कुल संख्या, परिवार की मुखिया महिला है या नहीं, परिवार के पास कितने कमरे हैं, परिवार में रहने वाले विवाहित जोड़ों की संख्या से जुड़े सवाल भी शामिल हैं। प्रश्नों में यह भी शामिल है कि क्या परिवार के पास टेलीफोन, इंटरनेट कनेक्शन, मोबाइल या स्मार्टफोन, साइकिल, स्कूटर या मोटरसाइकिल है और क्या उनके पास कार, जीप या अन्य वाहन है। इसके अलावा परिवार के रोजमर्रा के जीवन से जुड़े अन्य सवाल भी पूछे जाएंगे।
'साहेब ने परिवार में बंटवारा करवाया...', बारामती में शरद पवार पर बरसे अजित, रैली के दौरान हुए भावुक

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए बारामती सीट से नामांकन दाखिल करने के बाद उप मुख्यमंत्री और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) नेता अजित पवार एक रैली के दौरान भावुक हो गए। इस दौरान राकांपा के संस्थापक शरद पवार का नाम लिए बिना आरोप लगाया कि 'साहेब' ने परिवार में विभाजन पैदा किया और उनके खिलाफ एक उम्मीदवार खड़ा किया। अजित पवार ने कहा, 'मैंने पहले अपनी गलतियों को माना था। लेकिन अब लगता है कि दूसरे भी गलतियां कर रहे हैं। मेरे परिवार और मैंने तय किया था कि हम पहले बारामती से नामाकंन दाखिल करेंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। मेरी मां ने मेरा बहुत समर्थन किया था और उन्हें (शरद पवार) सलाह दी थी कि किसी का भी मेरे खिलाफ नामांकन नहीं होना चाहिए। लेकिन मुझे बताया गया है कि साहेब (शरद पवार) ने किसी को मेरे खिलाफ नामांकन दाखिल करने का निर्देश दिया। साहेब ने परिवार में विभाजन पैदा किया है। मैं बस इतना कहना चाहता हूं कि राजनीति को इस स्तर पर नहीं लाया जाना चाहिए, क्योंकि परिवार को एकजुट होने में पीढ़ियां लगती हैं और टूटने में एक पल भी नहीं लगता।' बारामती में विकास हुआ, लोगों के पास सवाल उठाने का अधिकार भी मिला है। उन्होंने कहा कि बारामती में काफी विकास हुआ है। इस पर लोगों को सवाल उठाने का अधिकार हैं। लेकिन कुछ लोग बारामती में किए गए विकास कार्यों पर सवाल उठाते हैं। यह कहना कि सड़कों और स्कूलों के निर्माण से विकास नहीं होता, गलत है। मुझे समझना है कि असली विकास क्या है, जो होना चाहिए, जिसे देखकर हम कहें कि यह विकास है। मैं समझता हूं कि आपके पास बोलने का अधिकार है।
सीवर का पानी तुम्हारे घर फेंकने आउंगी..', सीएम आतिशी पर भड़कीं स्वाति मालीवाल, वीडियो जारी कर लगाए ये आरोप


आम आदमी पार्टी (AAP) की राज्यसभा सांसद स्वाति मालीवाल ने दिल्ली के किराड़ी क्षेत्र की शीश महल कॉलोनी का दौरा किया और वहां की अत्यंत खराब स्थिति के लिए आम आदमी पार्टी की सरकार पर तीखा हमला बोला। उन्होंने दिल्ली की मुख्यमंत्री आतिशी को चेतावनी दी कि अगर क्षेत्र की स्थिति में सुधार नहीं हुआ, तो वह टैंकर भरकर सीवर का पानी उनके घर के बाहर फेंकने का काम करेंगी। स्वाति मालीवाल ने इस दौरे का एक वीडियो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर साझा किया। जिसमें उन्होंने अरविंद केजरीवाल के मुख्यमंत्री आवास की तुलना शीश महल कॉलोनी से की। उन्होंने वीडियो में कहा, "दिल्ली के दो 'शीश महल' हैं। शायद नर्क भी इससे बेहतर होगा।" मालीवाल ने कॉलोनी की स्थिति का वर्णन करते हुए बताया कि एक ओर केजरीवाल का आलीशान आवास है, जबकि दूसरी ओर शीश महल कॉलोनी में टैक्स देने वाले नागरिकों को सड़क, पानी और साफ-सफाई की मूलभूत सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं हैं। उन्होंने कहा कि कॉलोनी में जगह-जगह खुले नाले हैं, और विधायक के फोन का जवाब भी नहीं मिला। वीडियो में देखा जा सकता है कि कॉलोनी में गंदगी फैली हुई है, सड़कों पर पानी जमा है, और स्थानीय लोग अपनी समस्याएं मालीवाल के सामने रख रहे हैं। लोग यह भी बता रहे हैं कि यहां के विधायक किसी मदद के लिए आगे नहीं आते। स्वाति मालीवाल ने वहां के विधायक को भी जमकर सुनाते हुए उन्हें स्थानीय लोगों की परेशानियों के प्रति लापरवाह बताया। स्वाति मालीवाल की यह टिप्पणी और वीडियो राज्य सरकार के प्रति गहरी निराशा और स्थानीय समस्याओं की अनदेखी को उजागर करता है, जो दिल्ली की आम जनता के लिए गंभीर चिंता का विषय है।