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गांधीजी ने क्यों छोड़ा नमक का सेवन? जानें इसके पीछे की कहानी


महात्मा गांधी ने नमक खाना छोड़ने का फैसला 1939 में किया था, और इसका एक विशेष कारण था। दरअसल, उन्होंने यह कदम एक व्यक्तिगत प्रतिज्ञा के रूप में उठाया था, जिसे उन्होंने अपनी पत्नी कस्तूरबा गांधी की बीमारी के दौरान लिया था।

1939 में, कस्तूरबा गांधी बहुत बीमार थीं और उनकी हालत गंभीर थी। उनकी बीमारी के दौरान, महात्मा गांधी ने प्रार्थना की और प्रतिज्ञा की कि अगर कस्तूरबा स्वस्थ हो जाएंगी, तो वे जीवन भर नमक का त्याग कर देंगे। यह प्रतिज्ञा गांधीजी के आत्मसंयम और व्यक्तिगत अनुशासन को दर्शाती है। कस्तूरबा की स्थिति में सुधार हुआ, और गांधीजी ने अपनी प्रतिज्ञा का पालन करते हुए नमक का सेवन पूरी तरह से बंद कर दिया।

इस प्रतिज्ञा के पीछे एक और कारण भी था। गांधीजी नमक को जीवन की बुनियादी आवश्यकताओं में से एक मानते थे और उन्होंने नमक सत्याग्रह के जरिए ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ संघर्ष किया था। नमक पर कर लगाए जाने के खिलाफ 1930 में नमक सत्याग्रह शुरू करने के पीछे गांधीजी का उद्देश्य यही था कि यह कर गरीबों पर अतिरिक्त बोझ डालता है और यह एक अन्यायपूर्ण कर है। जब उन्होंने नमक का त्याग किया, तो यह त्याग उनके लिए केवल व्यक्तिगत स्तर पर ही नहीं, बल्कि उनके अनुयायियों और पूरे देश के लिए एक प्रतीकात्मक संदेश भी था।

इस प्रकार, महात्मा गांधी का नमक छोड़ने का फैसला न केवल व्यक्तिगत प्रतिज्ञा थी, बल्कि यह उनके आत्मानुशासन और संकल्प का भी उदाहरण है।

ब्रह्म कमल: उत्तराखंड का अनमोल और पवित्र राज्य पुष्प


ब्रह्म कमल (Saussurea obvallata) उत्तराखंड राज्य का राजकीय पुष्प है। इसे हिमालय के ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों में पाया जाता है और यह अपनी अद्वितीय सुंदरता और धार्मिक महत्व के कारण विशेष पहचान रखता है।

खिलने का समय और स्थान:

यह पुष्प जुलाई से सितंबर के बीच, मानसून के दौरान, 3,000 से 4,500 मीटर की ऊँचाई पर खिलता है। उत्तराखंड के अलावा, हिमाचल प्रदेश और सिक्किम के ठंडे पहाड़ी क्षेत्रों में भी यह फूल देखा जा सकता है।

धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व:

ब्रह्म कमल को हिंदू धर्म में पवित्र माना गया है। इसे भगवान शिव और विष्णु से जोड़ा जाता है, और इसका उपयोग मंदिरों और धार्मिक अनुष्ठानों में होता है। यह फूल आध्यात्मिक और सांस्कृतिक रूप से बहुत महत्व रखता है।

पारिस्थितिक महत्व:

यह फूल राज्य की समृद्ध जैव-विविधता और प्राकृतिक सुंदरता का प्रतीक है। इसका संरक्षण बेहद जरूरी है, क्योंकि यह एक दुर्लभ और विलुप्तप्राय पौधों की श्रेणी में आता है।

उत्तराखंड की पहचान:

ब्रह्म कमल न केवल उत्तराखंड की पारिस्थितिकी को दर्शाता है, बल्कि यह राज्य की सांस्कृतिक धरोहर और प्रकृति प्रेम का भी प्रतीक है।

दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट और भी ऊंची होती जा रही है, जानें क्यों


माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई में हर साल थोड़ा-थोड़ा बदलाव होता है, तिब्बती में ‘चोमोलुंगमा’ और नेपाली में ‘सागरमाथा’ के नाम से मशहूर माउंट एवरेस्ट करीब 5 करोड़ साल पहले तब बनना शुरू हुआ था, जब भारतीय उपमहाद्वीप यूरेशियन टेक्टोनिक प्लेट से टकराया था. विशेषज्ञों का कहना है कि अब इस चोटी की ऊंचाई और बढ़ती जा रही है.

कितनी बढ़ गई एवरेस्ट की ऊंचाई

माउंट एवरेस्ट 8,849 मीटर (29,032 फीट) ऊंचा है. 30 सितंबर को नेचर जियोसाइंस पत्रिका में प्रकाशित एक स्टडी के मुताबिक पिछले 89,000 वर्षों में माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई 15 से 50 मीटर तक बढ़ी है. 

स्टडी में कहा गया है कि माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई बढ़ने की प्रक्रिया अभी भी जारी है. हर साल एवरेस्ट की ऊंचाई लगभग 2 मिलीमीटर बढ़ रही है. इस स्टडी को को-ऑथर और यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन (यूसीएल) में अर्थ साइंसेज के पीएचडी छात्र एडम स्मिथ कहते हैं, “माउंट एवरेस्ट एक किंवदंती है, जो हर साल और ऊंचा होता जा रहा है..’

बीजिंग में चाइना यूनिवर्सिटी ऑफ जियोसाइंसेज (China University of Geosciences) के भू-वैज्ञानिक और स्टडी के लेखक जिन-जेन दाई कहते हैं कि माउंट एवरेस्ट, हिमालय की अन्य सबसे ऊंची चोटियों के मुकाबले लगभग 250 मीटर ऊपर फैला हुआ है. हमें लगता है कि पहाड़ जस के तस हैं, लेकिन वास्तव में उनकी ऊंचाई बढ़ती रहती है. माउंट एवरेस्ट इसका उदाहरण है.

क्यों बढ़ रही एवरेस्ट की ऊंचाई?

नेपाल और चीन के बॉर्डर पर स्थित माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई बढ़ने की सबसे बड़ी वजह नदियों के प्रवाह में बदलाव (River Capture) है. लगभग 89,000 साल पहले, हिमालय में कोसी नदी ने अपनी सहायक नदी अरुण नदी के एक हिस्से पर कब्ज़ा कर लिया, जो आज एवरेस्ट के उत्तर में स्थित है. स्टडी के मुताबिक रिवर कैप्चर एक दुर्लभ घटना है. ऐसा तब होता है जब एक नदी अपना मार्ग बदलती है और दूसरी नदी से जा मिलती है या उसके रास्ते में आ जाती है.

कैसे नदी इसके लिए जिम्मेदार

शोधकर्ताओं का कहना है कि जब दोनों नदियां आपस में मिल गईं, तो एवरेस्ट के पास नदी का कटाव बढ़ गया, जिससे भारी मात्रा में चट्टानें और मिट्टी बह गई. इससे अरुण नदी घाटी का निर्माण हुआ. अध्ययन के लेखकों में से एक दाई कहते हैं, “एवरेस्ट क्षेत्र में नदियों की एक दिलचस्प प्रणाली है. ऊपर की ओर बहने वाली अरुण नदी समतल घाटी के साथ पूर्व की ओर बहती है. फिर यह अचानक दक्षिण की ओर मुड़कर कोसी नदी में मिल जाती है, जिससे इसकी ऊंचाई कम हो जाती है. नदियों की प्रणाली में यह बदलाव एवरेस्ट की अत्यधिक ऊंचाई के लिए जिम्मेदार है.

आसान उदाहरण से समझिये

जैसे ही अरुण नदी, कोसी नदी प्रणाली का हिस्सा बनी, दोनों और अधिक कटाव होने लगा. पिछली कई सदी में अरुण नदी ने अपने किनारों से अरबों टन मिट्टी को बहा दिया, जिससे एक बड़ी घाटी बन गई. मिट्टी के कटाव से आसपास की जमीन ऊपर उठ गई, जिसे आइसोस्टेटिक रिबाउंड कहते हैं. भू-वैज्ञानिक दाई कहते हैं कि “जब कोई भारी चीज जैसे कि बर्फ का बड़ा टुकड़ा या घिसी हुई चट्टान, पृथ्वी की पपड़ी से हटाई जाती है, तो उसके नीचे की जमीन धीरे-धीरे प्रतिक्रिया में ऊपर उठती है, ठीक वैसे ही जैसे माल उतारने पर नाव पानी में ऊपर उठती है. एवरेस्ट के साथ ही यही हुआ.

पर्वतारोहियों को क्या नुकसान

माउंट एवरेस्ट के आपसापस हो रहे ‘आइसोस्टेटिक रिबाउंड’ ने हिमालयी की दूसरी चोटियों को भी प्रभावित किया है. जैसे लोत्से और मकालू, जो क्रमशः दुनिया की चौथी और पांचवीं सबसे ऊंची चोटियां हैं. शोधकर्ताओं का मानना है कि माउंट मकालू, जो अरुण नदी के सबसे करीब है, उसके चलते यह चोटी और ऊंची हो सकती है. द गार्जियन के अनुसार, दाई ने कहा, “चोटियों की ऊंचाई अनिश्चित काल तक नहीं बढ़ती रहेगी. जब नदी प्रणाली एक संतुलित स्थिति में पहुंच जाएगी तो चीजें ठीक हो जाएंगी.

शोधकर्ता कहते हैं कि सबसे बड़ा प्रभाव उन पर्वतारोहियों पर पड़ेगा जिन्हें एवरेस्ट की चोटी पर पहुंचने के लिए 20 मीटर या उससे अधिक की चढ़ाई करनी होगी. यह खर्चीला, थकाऊ और पहले के मुकाबले ज्यादा जानलेवा होगा।

बच्चों को हर बात पर टोकना पड़ सकता है भारी: पेरेंट्स हो जाएं सावधान,जानें 4 बड़े नुकसान


बचपन किसी भी व्यक्ति के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण और संवेदनशील दौर होता है। इस दौरान बच्चों का मानसिक और शारीरिक विकास तेजी से होता है। पेरेंट्स का बच्चों के जीवन में बहुत बड़ा रोल होता है, लेकिन कभी-कभी अति-प्रोटेक्टिव पेरेंटिंग या हर छोटी-बड़ी बात पर बच्चों को टोकना उनके विकास पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। ऐसे पेरेंट्स जो अपने बच्चों को हर छोटी बात पर डांटते या टोकते हैं, उन्हें यह समझने की ज़रूरत है कि इस तरह की आदत बच्चों के मस्तिष्क और शरीर पर गंभीर प्रभाव डाल सकती है। आइए जानते हैं इससे होने वाले 4 मुख्य नुकसान:

1. आत्मविश्वास की कमी

हर समय बच्चों को टोकने से उनके आत्मविश्वास में कमी आ सकती है। जब बच्चा हर बार किसी काम को करते हुए टोकाटाकी सुनता है, तो उसे अपने ऊपर विश्वास नहीं होता और उसे लगता है कि वह कोई काम सही से नहीं कर सकता। इससे बच्चे के मन में हीन भावना उत्पन्न हो सकती है और वह भविष्य में किसी भी चुनौती का सामना करने से डरने लगेगा।

2. रचनात्मकता और सोचने की क्षमता में गिरावट

अगर बच्चे को बार-बार टोका जाए और उसकी हर गतिविधि पर पाबंदियां लगाई जाएं, तो उसकी रचनात्मकता और सोचने की क्षमता सीमित हो जाती है। बच्चे के पास अपनी कल्पनाओं को उड़ान देने का अवसर नहीं रहता और वह हर चीज को सिर्फ अपने माता-पिता की नजर से देखने लगता है। इससे उसकी समस्या सुलझाने की क्षमता और नए विचारों को अपनाने की क्षमता भी कम हो जाती है।

3. मानसिक तनाव और चिंता

बच्चों को हर बात पर टोकने से उनके मस्तिष्क पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिससे वे हमेशा तनाव और चिंता में रहने लगते हैं। पेरेंट्स के बार-बार टोकने से बच्चों के दिमाग में यह धारणा बन जाती है कि वे कभी कुछ ठीक नहीं कर सकते। यह मानसिक तनाव धीरे-धीरे बच्चे की सोच को प्रभावित करता है और उसे चिड़चिड़ा और अवसादग्रस्त बना सकता है।

4. शारीरिक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव

ज्यादा टोकाटाकी बच्चों के शारीरिक विकास को भी प्रभावित कर सकती है। जब बच्चे मानसिक रूप से तनाव में रहते हैं, तो इसका असर उनके शरीर पर भी पड़ता है। उनकी भूख कम हो जाती है, नींद प्रभावित होती है, और इससे उनका शारीरिक विकास रुक सकता है। इसके अलावा, बच्चे जल्दी-जल्दी बीमार भी पड़ सकते हैं क्योंकि मानसिक तनाव से उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर हो जाती है।

समाधान और सुझाव

बच्चों को टोकना या सुधारना आवश्यक है, लेकिन हर छोटी बात पर टोकना सही नहीं है। पेरेंट्स को चाहिए कि वे बच्चों के साथ संवाद स्थापित करें, उनकी भावनाओं को समझें और उन्हें बिना टोकाटाकी के सही मार्गदर्शन दें। बच्चों के साथ धैर्य से पेश आना चाहिए और उन्हें स्वतंत्रता देनी चाहिए ताकि वे अपनी गलतियों से सीख सकें और आत्मनिर्भर बन सकें।

याद रखें, बच्चों का मस्तिष्क मिट्टी की तरह होता है, जिसे जैसे गढ़ेंगे, वह वैसा ही आकार लेगा। इसलिए, उन्हें खुलकर सीखने और विकसित होने का मौका दें, ताकि वे आत्मविश्वासी, रचनात्मक और खुशहाल जीवन जी सकें।

दुनिया के वो 5 देश जहां कभी नहीं ढलता सूरज! जानिए मिडनाइट सन का अनोखा अनुभव

दुनिया भर में कुछ ऐसे देश हैं जहां रात का अंधेरा कभी नहीं छाता, यानी जहां सूरज कई महीनों तक अस्त नहीं होता। यह असामान्य खगोलीय घटना पृथ्वी के ध्रुवीय क्षेत्रों के पास होती है। इसे मिडनाइट सन या पोलर डे कहा जाता है। आइए जानते हैं उन पांच देशों के बारे में जहां कभी रात नहीं होती:

1. नॉर्वे

नॉर्वे को "मिडनाइट सन की भूमि" कहा जाता है। यहां मई के अंत से जुलाई के अंत तक सूरज कभी नहीं डूबता। विशेष रूप से उत्तरी नॉर्वे के स्वालबार्ड क्षेत्र में, यह घटना लगभग 76 दिनों तक चलती है। इस समय के दौरान, लोग यहां बिना अंधेरे के 24 घंटे की दिन की रोशनी का अनुभव कर सकते हैं।

2. स्वीडन

स्वीडन के उत्तरी भागों में, मई के शुरुआती दिनों से अगस्त तक सूरज हमेशा आकाश में बना रहता है। किर्बुना और अबिस्को जैसे स्थानों में पर्यटक खासतौर पर इस घटना का अनुभव लेने आते हैं। यहां लोग आधी रात को भी सूरज की रोशनी में बाहर टहल सकते हैं और प्राकृतिक सुंदरता का आनंद ले सकते हैं।

3. फिनलैंड

फिनलैंड में गर्मियों के दौरान, जून से जुलाई के महीनों में, सूरज पूरे दिन और रात चमकता रहता है। उत्तरी फिनलैंड, जिसे लैपलैंड के नाम से भी जाना जाता है, इस घटना का केंद्र है। यहां लोग मिडनाइट सन का आनंद लेते हुए रात के समय भी बोटिंग, गोल्फ और मछली पकड़ने जैसी गतिविधियों का आनंद ले सकते हैं।

4. आइसलैंड

आइसलैंड एकमात्र ऐसा देश है जो आर्कटिक सर्कल के अंदर होने के बावजूद भी पूरे वर्ष अंधकारमुक्त रहता है। यहां जून के महीने में सूर्य कभी भी पूरी तरह से अस्त नहीं होता। हालांकि आइसलैंड में 24 घंटे की रोशनी केवल जून के अंत तक ही रहती है, लेकिन यह अनुभव किसी सपने जैसा लगता है।

5. कनाडा

कनाडा के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र, विशेष रूप से युकोन प्रांत में, गर्मियों के समय मिडनाइट सन का अनुभव किया जा सकता है। यहां की कई जगहों पर जून से जुलाई तक सूरज पूरी तरह अस्त नहीं होता। युकोन का डॉसन सिटी मिडनाइट सन का आनंद लेने के लिए एक प्रमुख स्थान है।

यह कैसे संभव है?

यह खगोलीय घटना पृथ्वी के झुकाव और उसकी कक्षा में घूमने के कारण होती है। जब पृथ्वी का उत्तरी ध्रुव सूर्य की ओर झुका होता है, तो उत्तरी गोलार्द्ध के देशों में गर्मी का मौसम होता है और वहां सूरज 24 घंटे तक दिखाई देता है। इसके विपरीत, जब पृथ्वी का दक्षिणी ध्रुव सूर्य की ओर झुका होता है, तो दक्षिणी गोलार्द्ध के देशों में यह घटना घटती है।

इन देशों में मिडनाइट सन का अनुभव करना किसी रोमांचक यात्रा से कम नहीं होता। ये स्थल पर्यटकों को अजीबोगरीब अनुभव और खूबसूरत प्राकृतिक नज़ारे प्रदान करते हैं। अगर आपको कभी मौका मिले, तो आप भी इस अनोखी घटना का आनंद लेने के लिए इनमें से किसी देश की यात्रा कर सकते हैं।

जानिए दुनिया के सात ऐसे देश जहां के नागरिकों का IQ लेवल हैं सबसे ज्यादा


मानव बुद्धिमत्ता का आकलन करने के लिए IQ (इंटेलिजेंस क्वोशिएंट) का इस्तेमाल किया जाता है, जो यह बताता है कि किसी व्यक्ति की मानसिक क्षमता अन्य लोगों की तुलना में कैसी है। दुनियाभर के कुछ देश अपनी उच्च IQ दर के लिए प्रसिद्ध हैं। ऐसे देशों के नागरिकों को आमतौर पर अकादमिक और व्यावसायिक क्षेत्रों में उच्च उपलब्धियों के लिए जाना जाता है। आइए जानते हैं उन 7 देशों के बारे में, जहां के लोगों का IQ लेवल दुनिया में सबसे बेहतर माना जाता है।

1. सिंगापुर

सिंगापुर को दुनियाभर में सबसे उच्च IQ लेवल वाले देशों में गिना जाता है। यहां के नागरिकों का औसत IQ लगभग 108 के आसपास है। सिंगापुर की शिक्षा प्रणाली को दुनियाभर में उत्कृष्ट माना जाता है। यहां पर छात्रों को कम उम्र से ही कठिन गणितीय और वैज्ञानिक विषयों का ज्ञान कराया जाता है, जिससे उनकी समस्या-समाधान क्षमता विकसित होती है।

2. हांगकांग

हांगकांग भी उच्च IQ दर वाले देशों में से एक है। यहां के लोगों का औसत IQ लगभग 107 है। हांगकांग में भी शिक्षा पर काफी ध्यान दिया जाता है और वहां की शिक्षा प्रणाली काफी प्रतिस्पर्धी मानी जाती है। उच्च IQ की वजह से यहां के लोग अकादमिक और पेशेवर क्षेत्रों में बेहतरीन प्रदर्शन करते हैं।

3. दक्षिण कोरिया

दक्षिण कोरिया के लोगों का औसत IQ 106 के करीब है। इस देश में शिक्षा के प्रति गहरी निष्ठा और समर्पण देखा जाता है। दक्षिण कोरिया में तकनीकी और वैज्ञानिक क्षेत्र में शिक्षा को बढ़ावा दिया जाता है, जिसके कारण यहां के छात्रों की बौद्धिक क्षमता भी काफी उच्च होती है।

4. जापान

जापान का औसत IQ स्तर 105 है। जापानी लोग अपने अनुशासन और मेहनत के लिए जाने जाते हैं। यहां की शिक्षा प्रणाली भी बच्चों की समस्या-समाधान क्षमता और तार्किक सोच को बढ़ाने पर केंद्रित है, जिसके कारण जापानी छात्र दुनियाभर में कई प्रतियोगिताओं में अव्वल रहते हैं।

5. चीन

चीन के लोगों का औसत IQ भी लगभग 104 है। चीन में छात्रों की बौद्धिक क्षमता को उच्च बनाने के लिए शिक्षा में काफी सुधार किए गए हैं। यहां के नागरिक गणित, विज्ञान और तकनीकी विषयों में काफी अच्छे माने जाते हैं। चीन की अर्थव्यवस्था की तेजी से वृद्धि का एक बड़ा कारण यहां के लोगों की उच्च बौद्धिक क्षमता भी है।

6. स्विट्जरलैंड

स्विट्जरलैंड में लोगों का औसत IQ लगभग 102 है। यह देश अपनी बेहतरीन शिक्षा प्रणाली के लिए भी जाना जाता है, जो छात्रों की तार्किक सोच और रचनात्मकता को बढ़ावा देती है। यहां के लोग तकनीकी और शोध कार्यों में भी काफी आगे रहते हैं।

7. नीदरलैंड्स

नीदरलैंड्स के लोगों का औसत IQ 101 के करीब है। इस देश में शिक्षा का स्तर काफी उच्च है, जहां छात्रों को व्यावहारिक और सैद्धांतिक दोनों प्रकार की शिक्षा दी जाती है। यहां के नागरिक अकादमिक और पेशेवर क्षेत्रों में बेहतरीन प्रदर्शन करते हैं और कई अंतरराष्ट्रीय कंपनियों में उच्च पदों पर कार्यरत हैं।

निष्कर्ष

इन देशों में उच्च IQ दर का मुख्य कारण वहां की शिक्षा प्रणाली, समाज की मानसिकता और तकनीकी एवं वैज्ञानिक शिक्षा को दी जाने वाली प्राथमिकता है। ये देश न केवल शिक्षा में बल्कि विज्ञान, तकनीक और व्यवसायिक क्षेत्रों में भी दुनिया के सबसे अग्रणी देशों में शामिल हैं। उच्च IQ दर यहां के नागरिकों की सफलता और आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

यदि आप इन देशों के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं, तो आप इनके शिक्षा और सामाजिक ढांचे पर विस्तार से अध्ययन कर सकते हैं।

विश्व हृदय दिवस आज,कम उम्र में बढ़ रहे है हार्ट अटैक के मामले,जानिए कैसे रखें अपने दिल का ख्याल


हर साल 29 सितंबर को 'विश्व हृदय दिवस' (World Heart Day) मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य हृदय से जुड़ी बीमारियों के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाना है। हाल के वर्षों में, हृदय रोग केवल बुजुर्गों तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि यह युवाओं को भी तेजी से प्रभावित कर रहा है। खासकर कम उम्र में हार्ट अटैक के मामलों में अप्रत्याशित वृद्धि देखी गई है। यह स्थिति न केवल स्वास्थ्य विशेषज्ञों के लिए चिंता का विषय है, बल्कि आम लोगों के लिए भी एक चेतावनी है कि वे अपनी जीवनशैली और स्वास्थ्य पर ध्यान दें।

कम उम्र में हार्ट अटैक के बढ़ते कारण:

1 अस्वस्थ जीवनशैली: आजकल की व्यस्त जीवनशैली में अधिकतर लोग असंतुलित खानपान, व्यायाम की कमी, और अनियमित दिनचर्या के शिकार हो रहे हैं। फास्ट फूड, प्रोसेस्ड भोजन, और मीठे पेय पदार्थों का अत्यधिक सेवन हृदय की सेहत के लिए हानिकारक होता है।

2 तनाव और मानसिक स्वास्थ्य: अत्यधिक मानसिक तनाव, चिंता, और डिप्रेशन भी हृदय रोगों का प्रमुख कारण बन रहे हैं। करियर, रिश्ते और आर्थिक दबाव जैसे कारक युवाओं को बहुत जल्दी तनावग्रस्त कर देते हैं, जिससे हार्ट अटैक की संभावना बढ़ जाती है।

3 धूम्रपान और शराब का सेवन: कम उम्र में धूम्रपान और शराब के सेवन की आदतें भी हृदय की सेहत पर बुरा प्रभाव डालती हैं। निकोटीन और अल्कोहल रक्तचाप को बढ़ाते हैं, जिससे दिल का दौरा पड़ने का खतरा रहता है।

4 स्लीप एपनिया और अनिद्रा: नींद की कमी और स्लीप एपनिया जैसी समस्याएं भी हृदय की सेहत को प्रभावित करती हैं। ये समस्याएं दिलl की धड़कनों को असामान्य बना सकती हैं, जिससे हार्ट अटैक का जोखिम बढ़ जाता है।

5 अनुवांशिक कारण: अगर परिवार में किसी को हृदय रोग है, तो आने वाली पीढ़ियों में भी यह समस्या विकसित हो सकती है। अनुवांशिक कारणों से भी कम उम्र में हृदय रोग की संभावना बढ़ जाती है।

हृदय को स्वस्थ रखने के उपाय:

1 स्वस्थ आहार का सेवन: अपने आहार में हरी सब्जियां, फल, साबुत अनाज, और हेल्दी फैट्स जैसे ओमेगा-3 फैटी एसिड को शामिल करें। तले-भुने, प्रोसेस्ड और अधिक नमक वाले खाद्य पदार्थों से बचें। चीनी का सेवन कम करें और नमक की मात्रा को सीमित रखें।

2 नियमित व्यायाम करें: रोजाना 30 मिनट की शारीरिक गतिविधि जैसे पैदल चलना, योग, साइकिलिंग, या जिम में कसरत करने से दिल की मांसपेशियां मजबूत होती हैं और रक्त प्रवाह में सुधार होता है।

3 तनाव प्रबंधन: तनाव को कम करने के लिए ध्यान (मेडिटेशन), प्राणायाम, और अन्य रिलैक्सेशन तकनीकों का सहारा लें। पॉजिटिव सोच और स्वस्थ मानसिक स्वास्थ्य बनाए रखें।

4 नींद का ध्यान रखें: हर दिन कम से कम 7-8 घंटे की नींद लें। एक अच्छी नींद शरीर को पुनर्जीवित करती है और हृदय की धड़कनों को सामान्य बनाए रखती है।

5 धूम्रपान और शराब से दूर रहें: तंबाकू और शराब का सेवन बंद करें। यह आपके हृदय और संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं। धूम्रपान छोड़ने से हार्ट अटैक के खतरे को काफी हद तक कम किया जा सकता है।

6 नियमित स्वास्थ्य जांच: नियमित रूप से ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्रॉल, और शुगर की जांच करवाते रहें। इससे किसी भी प्रकार की समस्या को समय रहते पहचाना जा सकता है और उचित उपचार किया जा सकता है।

निष्कर्ष:  

कम उम्र में हृदय रोग का बढ़ता खतरा एक गंभीर समस्या बन गया है। इसके लिए हमें अपनी जीवनशैली में बदलाव लाने होंगे। स्वस्थ आहार, नियमित व्यायाम, तनाव मुक्त जीवन, और समय-समय पर स्वास्थ्य जांच करके हम हृदय को स्वस्थ रख सकते हैं। 

इस विश्व हृदय दिवस पर, हम सभी को अपने दिल की सेहत के प्रति सजग रहने का संकल्प लेना चाहिए और अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने का प्रयास करना चाहिए।

मछली खाने के 5 अद्भुत लाभ, दिमाग को बनाएं सुपरफास्ट और रखें मानसिक स्वास्थ्य बेहतरीन

मछली एक बेहतरीन आहार है जो न सिर्फ स्वादिष्ट होती है, बल्कि इसके सेवन से शरीर और मस्तिष्क को कई स्वास्थ्य लाभ मिलते हैं। आइए जानते हैं कि मछली खाने से किस तरह दिमाग कंप्यूटर की तरह तेज दौड़ता है और इसके और कौन-कौन से फायदे हैं:

1. ओमेगा-3 फैटी एसिड का बेहतरीन स्रोत

मछली में ओमेगा-3 फैटी एसिड प्रचुर मात्रा में पाया जाता है, जो मस्तिष्क के विकास और कार्यप्रणाली के लिए आवश्यक होता है। यह तत्व न्यूरॉन्स के बीच संचार को बेहतर बनाता है, जिससे मेमोरी और कंसन्ट्रेशन क्षमता में सुधार होता है। नियमित रूप से मछली खाने से दिमाग की कार्यक्षमता बढ़ती है, जिससे व्यक्ति की सोचने-समझने की शक्ति तेज होती है।

2. मानसिक तनाव और डिप्रेशन को कम करे

मछली में पाए जाने वाले पोषक तत्व तनाव और डिप्रेशन को कम करने में भी मददगार होते हैं। ओमेगा-3 के सेवन से मस्तिष्क में सेरोटोनिन और डोपामिन हार्मोन का स्तर बढ़ता है, जो मूड को बेहतर बनाने और तनाव को दूर करने में सहायक होते हैं। इस प्रकार, मछली खाने से दिमाग सकारात्मक विचारों की ओर प्रेरित होता है।

3. याददाश्त को बनाए मजबूत

मछली का सेवन याददाश्त को मजबूत बनाने में भी सहायक है। खासतौर पर वृद्धावस्था में अल्जाइमर और डिमेंशिया जैसी बीमारियों के जोखिम को कम करने के लिए मछली खाना फायदेमंद होता है। इसमें उपस्थित ओमेगा-3 फैटी एसिड मस्तिष्क की कोशिकाओं को पुनर्जीवित करने का कार्य करता है, जिससे याददाश्त में सुधार होता है।

4. शरीर और मस्तिष्क की थकान को दूर करे

मछली में मौजूद प्रोटीन, विटामिन डी और बी12 जैसे पोषक तत्व शरीर और दिमाग की थकान को दूर करने में सहायक होते हैं। यह न केवल शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है, बल्कि मानसिक थकान को भी कम करता है। इससे ध्यान केंद्रित करने की क्षमता में वृद्धि होती है और दिमाग चुस्त-दुरुस्त बना रहता है।

5. नेत्र स्वास्थ्य में सुधार

मछली के सेवन से नेत्रों की कार्यक्षमता भी बढ़ती है। इसमें पाया जाने वाला ओमेगा-3 फैटी एसिड आंखों की रोशनी को बेहतर बनाने और दृष्टि-संबंधी समस्याओं को कम करने में सहायक होता है। इसके सेवन से व्यक्ति को आंखों की थकान कम महसूस होती है और दृष्टि भी तेज होती है।

निष्कर्ष

मछली एक संपूर्ण आहार है जो शरीर और मस्तिष्क के लिए अत्यंत लाभकारी है। इसे अपने आहार में शामिल करके न केवल आप अपनी दिमागी ताकत को बढ़ा सकते हैं, बल्कि स्वस्थ जीवनशैली को भी अपना सकते हैं। तो, अगर आप चाहते हैं कि आपका दिमाग कंप्यूटर की तरह तेज दौड़े, तो नियमित रूप से मछली का सेवन जरूर करें।

जयंती पर विशेष: स्वर कोकिला लता मंगेशकर संघर्ष, समर्पण और संगीत की मिसाल


नयी दिल्ली : लता मंगेशकर की 28 सितंबर को 95वीं बर्थ एनिवर्सरी है। 6 फरवरी, 2022 को उनका निधन हो गया था। लता भले ही इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनकी आवाज आज भी अमर है। इस मुकाम तक पहुंचने के लिए लता की जिंदगी कई उतार-चढ़ाव से होकर गुजरी थी।

उनकी जिंदगी के कुछ अनसुने किस्से हैं जो उन्होंने खुद बायोग्राफी लता सुरगाथा में बताए थे...

बचपन

टीचर की बात सुनकर आया गुस्सा, छोड़ दिया स्कूल ये बात गलत थी कि मैं कभी स्कूल नहीं गईं। मैं एक बार स्कूल गई थी। घर के नजदीक एक मराठी मीडियम का स्कूल था जहां मेरी फुफेरी बहन बसंती पढ़ती थी। एक दिन मैं उसके साथ स्कूल गई तो टीचर ने पूछा- तुम कौन हो? मैंने जवाब दिया- मैं दीनानाथ मंगेशकर की बेटी हूं। ये बात सुनकर वो बोले कि वो तो बड़े महान गायक हैं। तुम्हें कुछ गाना आता है?

मैंने उन्हें गाना सुनाया जिसके बाद उन्होंने मुझे स्कूल में दाखिला दे दिया। मैं स्कूल के पहले दिन अपनी छोटी बहन आशा को लेकर गई, जो केवल दस महीने की थी। टीचर ने कहा कि स्कूल में इतने छोटे बच्चों को लाने की इजाजत नहीं। यह बात सुनकर मुझे गुस्सा आ गया और मैं क्लास बीच में छोड़कर घर आ गई।'

उसके बाद मैंने स्कूल का मुंह कभी नहीं देखा। मैंने घर पर ही आसपास के लोगों की मदद से पढ़ाई की। मराठी, हिंदी, इंग्लिश, संस्कृत और उर्दू भी सीखी

13 साल की उम्र में घर चलाने के लिए फिल्मों में आईं 'ये 1942 की बात है। उस समय मेरे पिता दीनानाथ मंगेशकर का निधन हो गया था। 13 साल की उम्र में पूरे परिवार की जिम्मेदारी मेरे कंधों पर आ गई थी। ऐसे में न चाहते हुए भी मुझे फिल्मों में काम करना पड़ा। घर में मां के अलावा चार भाई-बहनों की परवरिश एक चुनौती थी, जिसके लिए फिल्मों में काम करने का रास्ता ही मुझे ठीक लगा। मास्टर विनायक ने मुझे अपनी पहली फिल्म मंगलागौर में अभिनेत्री की छोटी बहन का रोल दिया।

शूटिंग के दौरान मास्टर विनायक का स्टूडियो के साथ झगड़ा हो गया और उन्होंने फिल्म छोड़ दी। इस फिल्म को फिर डायरेक्टर आर.एस. जुन्नारदेव ने पूरा किया था। 1942 से 1947 तक मैंने पांच फिल्मों में काम किया। इनमें माझे झोल (1943), गजाभाऊ (1944), बड़ी मां (1945), जीवन यात्रा (1946), सुभद्रा (1946) और मंदिर (1948) शामिल थीं।'

संघर्ष

गरीबी में लता ने पहनी थी 12 रुपए की साड़ी। ये बात किसी को मालूम नहीं होगी कि 1947-48 के दौरान राशन की दुकान पर साड़ियां मिलती थीं। जब मैंने काम करना शुरू किया तो मेरे हालात अच्छे नहीं थे। ऐसे में राशन की दुकान में जो साड़ियां मिलती थीं, मैं उन्हें पहना करती थी।

'ये साड़ियां कॉटन की होती थीं, जिनके किनारों पर एक पतला सा लाल बॉर्डर होता था। उस समय वे साड़ियां 12 रुपए में मिलती थीं। मैं उन्हें खरीदकर लाती और अपने हाथ से खुद धोती और सूखने के बाद उन्हें सिरहाने रखकर सोती थी।

सिरहाने दबे होने से साड़ियां सुबह ऐसी हो जाती थीं कि जैसे उन पर इस्त्री की हो। मेरे पास तब इतने पैसे भी नहीं थे कि साड़ियों को इस्त्री करवाकर उन्हें पहन सकूं।'

परिवार

चाचा ने कहा- परिवार का नाम खराब कर देगी ये लड़की '14 साल की उम्र में मैं कोल्हापुर से मुंबई एक शो में गाने के लिए अपनी मौसी के साथ गई थी। यहां मैं अपने चाचा कमलनाथ मंगेशकर के घर रुकी थी। घर पहुंचते ही मैं रियाज करने लग गई। मेरी यही कोशिश थी कि पिताजी के नाम पर कोई सवाल ना उठाए।

मगर चाचाजी मुझसे नाराज थे। उन्होंने मुझे देखकर कहा, ये लड़की भाई दीनानाथ मंगेशकर का नाम खराब कर देगी। कहां वो एक सुधी गायक और कहां ये लड़की। ये लड़की ठीक से गा नहीं पाएगी और पूरे खानदान का नाम मिट्टी में मिल जाएगा।

चाचा के जैसी ही सोच मेरी बुआ विजय की भी थी। उन लोगों की ये बात सुन मैं बहुत आहत हुई और रोने लगी। तब मौसी ने मुझे समझाया कि किसी की बिना सुने बस मैं अपनी गायकी पर ध्यान दूं।

अगले दिन मैंने अपनी परफॉर्मेंस दी। उस शो में दर्शक के तौर पर एक्ट्रेस ललिता पवार भी मौजूद थीं। उन्हें मेरा गाना बहुत पसंद आया। ललिता पवार ने मुझे इनाम में सोने की बालियां भेंट कीं।'

कामयाबी

जब जवाहर लाल नेहरु बोले-इस लड़की ने रुला दिया '1962 में चीन के आक्रमण के दौरान पं. प्रदीप (कवि प्रदीप) ने देशभक्ति गीत 'ए मेरे वतन के लोगो' लिखा। उन्होंने मुझसे गुजारिश की थी कि मैं 26 जनवरी, 1963 को गणतंत्र दिवस के मौके पर इस गीत को गाऊं। जब मैंने ये गाना वहां गाया तो जवाहरलाल नेहरु अपने आंसू रोक नहीं पाए।

गाने के बाद मैं स्टेज के पीछे कॉफी पी रही थी तभी निर्देशक महबूब खान ने मुझसे आकर कहा कि तुम्हें पंडितजी बुला रहे हैं।

नेहरू के सामने उन्होंने ले जाकर कहा, ‘ये रही हमारी लता। आपको कैसा लगा इसका गाना?’

नेहरू ने कहा,

बहुत अच्छा। इस लड़की ने मेरी आंखों में पानी ला दिया।

इतना कहकर उन्होंने मुझे गले लगा लिया।

विवाद

रफी के बारे में कहा : उन्हें गलतफहमी हो गई थी 'रॉयल्टी को लेकर मोहम्मद रफी से झगड़े पर लता ने कहा था- मैं इसे विवाद या झगड़े से ज्यादा सिद्धांत की लड़ाई के तौर पर देखती हूं।

जब मैंने यह मुद्दा उठाया था तो मुझे अपने भविष्य की चिंता होने लगी थी।लगता था अभी तो गला चल रहा है तो काम मिल रहा है मगर कल का क्या?

इसी वजह से मैंने म्यूजिक कंपनियों से कहा कि उन्हें सिंगर्स को गानों के एवज में रिकॉर्ड की बिक्री पर प्रॉफिट का कुछ अंश देना चाहिए। इस पर विवाद होने लगा।

रफी साहब ने कहा कि जब हमने एक बार गाने के पैसे ले लिए तो फिर और पैसे मांगने का क्या मलतब है? मैंने तर्क दिया कि एक बार हमने गाना गा लिया, लेकिन उन फिल्मों के रिकॉर्ड तो सालों बनते और बिकते रहते हैं, जिनका मुनाफा रिकॉर्ड कंपनियों और फिल्म प्रोड्यूसर्स को जाता रहेगा, जबकि पीछे की मेहनत तो हमारी है।

कंपनियां मुनाफा कमाती रहेंगी और सिंगर्स बदहाली की जिंदगी जीने को मजबूर रहते हैं। मुकेश, मन्ना डे, तलत महमूद और किशोर कुमार तो इस बात के समर्थन में थे, लेकिन रफी साहब, आशा जी और कुछ सिंगर्स को ये बात नहीं जमी। मुझे लगता था कि रफी साहब को मुद्दे की पूरी जानकारी नहीं थी और उन्हें गलतफहमी हो गई थी। इसका नतीजा ये रहा कि मैंने और रफी साहब ने सालों तक साथ में गाना नहीं गाया।'

वर्कप्लेस पर उठाई आवाज, छोड़ दी रिकॉर्डिंग 'किस्सा 1949 का है। मैं फिल्म चांदनी रात के गाने 'हे छोरे की जात बड़ी बेवफा' की रिकॉर्डिंग कर रही थी। नौशाद इस फिल्म के म्यूजिक डायरेक्टर थे। मेल प्लेबैक सिंगर जीएम दुर्रानी थे।

अपनी लाइन गाने के बाद दुर्रानी शरारत करने लगते। नौशाद जी ने उन्हें समझाया कि इससे रिकॉर्डिंग में अड़चन आ रही है, ऐसा न करें।

एक ब्रेक के बाद गाने की रिकॉर्डिंग शुरू हुई तो दुर्रानी की हरकतें बढ़ गईं। उन्होंने मेरी सफेद साड़ी पहनने का मजाक उड़ाते हुए कहा, तुम सफेद चादर लपेटकर क्यों आती हो, रंगीन कपड़े क्यों नहीं पहनती हो?

इसके अलावा उन्होंने मेरी ज्वेलरी पर भी सवाल उठाए। मैंने रिकॉर्डिंग बीच में बंद कर दी। मैं सोचती थी कि जीएम दुर्रानी मेरे कपड़ों और ज्वेलरी से ज्यादा मेरी गायकी पर फोकस करेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसके बाद मैंने तय कर लिया कि मैं उनके साथ कभी काम नहीं करूंगी।'

आज का इतिहास: विश्व बैंक ने भारत को बताया था विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था


नयी दिल्ली : 28 सितंबर का इतिहास महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि 2004 में आज ही के दिन विश्व बैंक ने भारत को विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था कहा था।

2007 में 28 सितंबर को ही नेशनल एयरोनॉटिक्स स्पेस एडमिनिशस्ट्रशन (नासा) ने विशेष यान डॉन का प्रक्षेपण किया था। 2006 में आज ही के दिन जापान के नव निर्वाचित और 90वें प्रधानमंत्री के रूप में शिंजो एबे ने शपथ ली थी।

2009 में आज ही के दिन स्टार खिलाड़ी सानिया मिर्ज़ा पैन पैसिफिक ओपन के पहले राउंड में हार के बाद बाहर हुई थीं।

2007 में 28 सितंबर को ही नेशनल एयरोनॉटिक्स स्पेस एडमिनिशस्ट्रशन (नासा) ने विशेष यान डॉन का प्रक्षेपण किया था।

2007 में आज ही के दिन मेक्सिको के तटीय क्षेत्रों में आए चक्रवर्ती तूफान लोरेंजो ने भारी तबाही मचाई थी।

2006 में 28 सितंबर को ही तालिबान ने लादेन के जीवित होने की घोषणा की थी।

2006 में आज ही के दिन जापान के नव निर्वाचित और 90वें प्रधानमंत्री के रूप में शिंजो एबे ने शपथ ली थी।

2004 में 28 सितंबर को ही विश्व बैंक ने भारत को विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था कहा था।

2001 में आज ही के दिन अमेरिका व ब्रिटिश सेना एवं सहयोगियों ने ‘ऑपरेशन एंड्योरिंग फ्रीडम’ शुरू किया था।

2000 में 28 सितंबर को ही सिडनी ओलंपिक में 200 मीटर की दौड़ के स्वर्ण पदक का ख़िताब मोरियाना जोंस तथा केंटेरिस ने जीता था।

1997 में आज ही के दिन अमेरिकी अंतरिक्ष शटल अटलांटिक रूसी अंतरिक्ष केंद्र ‘मीर’ से जुड़ा था।

1994 में 28 सितंबर को ही एतोमिया के जल पोत के तुर्क सागर में डूबने से 800 लोगों की जान चली गई थी।

1958 में आज ही के दिन फ्रांस में संविधान लागू हुआ था।

1950 में 28 सितंबर को ही इंडोनेशिया संयुक्त राष्ट्र का 60 वां सदस्य बना था।

1928 में आज ही के दिन अमेरिका ने चीन की राष्ट्रवादी च्यांग काई-शेक की सरकार को मान्यता दी थी।

1923 में 28 सितंबर के दिन ही इथोपिया ने राष्ट्र संघ की सदस्यता छोड़ दी थी।

28 सितंबर को जन्में प्रसिद्ध व्यक्ति

1982 में आज ही के दिन बालीवुड अभिनेता रणबीर कपूर का जन्म था।

1982 में 28 सितंबर के दिन ही प्रसिद्ध भारतीय निशानेबाज़ अभिनव बिंद्रा का जन्म हुआ था।

1949 में आज ही के दिन भारत के 41वें मुख्य न्यायाधीश राजेन्द्र मल लोढ़ा का जन्म हुआ था।

1929 में 28 सितंबर को ही भारतीय गायिका लता मंगेशकर का जन्म हुआ था।

1907 में आज ही के दिन महान स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह का जन्म हुआ था।

28 सितंबर को हुए निधन

1895 में आज ही के दिन फ्रांस के प्रसिद्ध जैव वैज्ञानिक लुईस पाश्चर का निधन हुआ था।

1953 में 28 सितंबर को ही प्रसिद्ध अमेरिकी खगोलशास्त्री एडविन हब्बल का निधन हुआ था।

2008 में आज ही के दिन हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार शिवप्रसाद सिंह का निधन हुआ था।

2012 में 28 सितंबर के दिन ही भारत के पहले राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बृजेश मिश्र का निधन हुआ था।

2015 में आज ही के दिन हिंदी के प्रसिद्ध कवि वीरेन डंगवाल का निधन हुआ था।