प्रकृति पर्व करमा को लेकर क्या है मान्यता, जाने क्यों पूजते है करम के डाल को
रिपोर्टर जयंत कुमार
रांची : आज 14 सितम्बर को झारखण्ड के आदिवासी समुदाय का दूसरा सबसे बड़ा प्राकृतिक पर्व है करमा बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। इस पर्व को आदिवासी और सदान मिल-जुलकर सदियों से मनाते आ रहे हैं। भाई बहन का पर्व कहे जाने वाले करमा पर्व की मान्यता है कि बहनें अपने भाइयों की दीर्घायु एवं मंगलमय भविष्य की कामना करती हैं।
कर्मा पर्व भादो शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि को मनाया जाता है, जिसे पद्मा एकादशी, भादो एकादशी भी कहते हैं। इस मौके पर पूजा करके आदिवासी अच्छे फसल की कामना करते हैं साथ ही बहनें अपने भाईयों की सलामती के लिए प्रार्थना करती है।
यह पर्व सदाचार,परंपरा और सामाजिक एकता के प्रतीक है। आदिवासी समुदायों में प्राकृतिक पर्वों का आयोजन पाहन द्वारा किया जाता है। इसमें भी पहान के द्वारा आंगन के बीच कमर वृक्ष की डाली लगाई जाती है। जंगल से करमा के वृक्ष से डाल लाकर घर के आंगन या अखरा के बीचों-बीच इसे लगाया जाता है। करमा पूजा के दिन खेत-खलिहान और घर में करमा के छोटे-छोटे डाल लगाए जाते हैं। करमा डाल रोपित होने के बाद पूजा के समय गांव के सभी लोग बड़े-बुजुर्ग, माता-बहने सभी पूजा देखने और सुनने के लिए वहां आते हैं। सभी लोग करम वृक्ष के चारों ओर बैठ कर प्रकृति के आराध्य देव मानकर इसे पूजते हैं।
कहा जाता है कि आदिवासी समुदाय मूलत प्रकृति पूजक होते है। उसके देवी-देवता प्रकृति में ही निहित हैं। करम डाल की पूजा भी इसलिए की जाती है कि करम डाल ईश्वर (प्रकृति) का प्रतीक रूप है। पूजा के दौरान करम कथा के दौरान करम वृक्ष का आह्वान किया जाता है। यह पर्व न सिर्फ भाई-बहन के स्नेह का प्रतीक है बल्कि यह भी सिखाता है कि कर्म के साथ धर्म भी जरूरी है। जीवन में दोनों ही चीजों का संतुलन बनाये रखना चाहिए।
Sep 14 2024, 16:01