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बांग्लादेश सरकार ने क्यों मांगी हिंदू अधिकारियों की सूची, बना डर का माहौल

#bangladesh_issues_notification_seeking_hindu_official_names_in_govt

बांग्लादेश में तख्तापलट से पहले जब देश में शेख हसीना की सरकार थी तो तब उसका झुकाव भारत की तरफ था। हसीना सरकार देश के अल्पसंख्यकों यानी हिंदुओं के हितैसी मानी जाती थी। हालांकि अब हालात बदल गए हैं। एक तरफ तो तख्तापलट और हसीना दे देश छोड़ने के बाद हिंदुओं पर हमले बढ़ गए। वहीं, दूसरी तरफ बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के अभी तक के फैसलों को गौर करें तो ये भी भारत विरोधी साफ नजर आते है। इसी बीच राष्ट्रपति कार्यालय की तरफ से जारी एक नोटिफिकेशन ने सरकार में काम कर रहे देश में हिंदुओं की चिंता बढ़ा दी है। दरअसल, नोटिफिकेशन में बांग्लादेश के मंत्रालयों और विभागों के वरिष्ठ हिंदू अधिकारियों से उनकी व्यक्तिगत जानकारी मांगी गई है।

बांग्लादेश के राष्ट्रपति कार्यालय से विभिन्न मंत्रालयों और विभागों को सचिवों और संयुक्त सचिवों जैसे पदों पर बैठे हिंदू अधिकारियों के बारे में जानकारी मांगने वाले पत्र ने खलबली मचा दी। हालांकि, सूत्रों ने कहा कि एक लिपिकीय त्रुटि के कारण भ्रम की स्थिति पैदा हुई और राष्ट्रपति द्वारा आयोजित एक वार्षिक दुर्गा पूजा दशमी कार्यक्रम के संबंध में जानकारी मांगी गई थी। इस पत्र ने पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को बड़े पैमाने पर छात्र विरोध प्रदर्शनों के बाद पद से हटाए जाने के बाद अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों के साथ भेदभाव और उन्हें निशाना बनाए जाने की खबरों के बीच चिंता पैदा कर दी।

बांग्लादेश के अंतरिम सरकार की ओर से 27 अगस्त को एक आदेश सभी अलग-अलग मंत्रालयों को भेजा गया। इस आदेश के मुताबिक मंत्रालयों से कहां गया कि सितंबर के पहले सप्ताह तक सभी हिंदू अधिकारियों की पूरी सूची सरकार को सौंपी जाए। हालांकि यह आदेश बहुत सीक्रेट तरीके से सभी मंत्रालयों को भेजा गया।

अमर उजाला की रिपोर्ट के मुताबिक फ्रीडम फॉर हिंदू राइट्स इन बांग्लादेशी ऑर्गेनाइजेशन ने कहा कि बीते कुछ दिनों के भीतर बांग्लादेश में कई विभागों में हिंदुओं को नौकरी से इस्तीफा देना पड़ा है। इसलिए बांग्लादेश के अंतिम सरकार की ओर से आए इस आदेश को लेकर हिंदू अधिकारियों में दहशत है।फ्रीडम फॉर हिंदू राइट्स का तर्क है कि 5 अगस्त के बाद बांग्लादेश के अलग-अलग विश्वविद्यालय से तकरीबन पचास हिंदू शिक्षकों को नौकरी से निकाल दिया गया है। कई अलग अलग जगह पर इस तरीके की धमकियां हिंदुओं को दी जा रही हैं। अब ऐसे हालातों में सरकार की ओर से जुटाए जाने वाली जानकारी से डर का माहौल बन रहा है।

वहीं, इंडिया टुडे के मुताबिक, बांग्लादेश सरकार के उच्च अधिकारियों से इस पत्र की पुष्टि की। कपड़ा और जूट मंत्रालय ने भी इसी तरह का पत्र भेजा था, जिसमें वरिष्ठ पदों पर बैठे हिंदू अधिकारियों के नाम मांगे गए थे। कपड़ा एवं जूट मंत्रालय के सलाहकार, सेवानिवृत्त ब्रिगेडियर जनरल शखावत हुसैन ने पत्र की प्रामाणिकता की पुष्टि की, लेकिन कहा कि लिपिकीय त्रुटि के कारण पत्र भेजने में चूक हुई, जिसके परिणामस्वरूप अनावश्यक अफरातफरी मच गई। हुसैन ने इंडिया टुडे को बताया, यह सूची को अद्यतन करने और इसे राष्ट्रपति कार्यालय को भेजने का एक नियमित कार्य था, जिसका उद्देश्य सरकार के हिंदू अधिकारियों को दुर्गा पूजा दशमी के लिए निमंत्रण भेजना था, जिसका आयोजन हर साल राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है।

हालांकि, सरकार की सफाई के बावजूद एक्सपर्ट्स चिंतित हैं। पिछले महीने शेख हसीना सरकार के तख्तापलट के बाद बांग्लादेश में अल्पसंख्यक समूहों के खिलाफ हिंसा की घटनाओं को देखते हुए, यह दावा करना कि हिंदू अधिकारियों की लिस्ट केवल त्योहार के मकसद से बनाई जा रही है, इस पर यकीन करना थोड़ा मुश्किल है।

भारत में मिला मंकीपॉक्स का पहला केस, स्वास्थ्य मंत्रालय ने एडवायजरी भी जारी की

#first_case_of_monkeypox_found_in_india

देश में मंकीपॉक्स का पहला मरीज मिला है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने सोमवार को इसकी पुष्टि की है। मंत्रालय ने बताया कि विदेश से लौटे एक व्यक्ति को 8 सितंबर को मंकीपॉक्स के संदेह में आइसोलेशन में रखा गया था।सैंपल लेकर जांच कराई गई, जिसमें मंकीपॉक्स के स्ट्रेन वेस्ट अफ्रीकन क्लेड 2 की पुष्टि हुई है।

स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि यह मामला जुलाई 2022 के बाद भारत में रिपोर्ट किए गए पहले के 30 मामलों के समान एक अलग केस है। यह वर्तमान में सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल (डब्ल्यूएचओ द्वारा रिपोर्ट की गई) का हिस्सा नहीं है, जो कि एमपीओएक्स के क्लैड 1 के संबंध में है जबकि मौजूदा मरीज में वेस्ट अफ्रीकन क्लैड 2 के एमपॉक्स वायरस की मौजूदगी की पुष्टि हुई है।

यह मरीज हाल ही में विदेश से भारत लौटा है। फिलहाल मरीज को एक अस्पताल के आइसोलेशन वार्ड में कड़ी निगरानी में रखा गया है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस पर कड़ी नजर बनाए हुए हैं और लोगों को पैनिक न होने की सलाह दी गई है। फिलहाल मरीज की हालत स्थित बताई जा रही है।

बता दें कि आज ही केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव अपूर्व चंद्रा ने मंकीपॉक्स को लेकर सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को एडवाइजरी जारी की। चंद्रा ने कहा- मंकीपॉक्स के खतरे को रोकने के लिए सभी राज्यों को हेल्थ एक्शन लेना चाहिए। राज्यों को स्वास्थ्य मंत्रालय के मंकीपॉक्स को लेकर दिशा-निर्देशों का पालन करना चाहिए। राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (NCDC) के मंकीपॉक्स पर जारी सीडी-अलर्ट (कम्यूनिकेवल डिजीज अलर्ट) पर एक्शन लेना चाहिए। इसके अलावा राज्यों को अपनी स्वास्थ्य सुविधाओं की तैयारियों की समीक्षा करनी चाहिए। सीनियर अधिकारियों को जिलों की स्वास्थ्य सुविधाओं का जायजा लेना चाहिए।

बता दें कि इस वायरस से संक्रमित मरीज के लक्षण की बात करें तो इसमें तेज बुखार के साथ-साथ मांसपेशियों और पीठ में तेज दर्द महसूस हो सकता है। इसके अलावा तेज सिरदर्द और शरीर पर चकत्ते भी पड़ सकते हैं। इसलिए अगर ऐसे लक्षण दिखाई देते हैं तो फिर तुरंत डॉक्टर को दिखाना न भूले। वायरस से पीड़ित मरीज में बुखार 5 से 21 दिनों तक रह सकता है। सरकार विदेश से आने वाले यात्रियों पर नजर रख रही है। कुछ एयरपोर्ट पर भी इसके लिए यात्रियों की स्क्रीनिंग की व्यवस्था की गई है।

यूक्रेन-रूस के बाद अब फिलिस्तीन को भारत में दिख रही उम्मीद, आखिर क्‍या है इस भरोसे की वजह?
#why_does_everyone_trust_india
कूटनीति के रास्ते बेहद पेचीदा होते हैं। इस रास्ते पर चलते हुए संतुलन कैसे कायम रखा जाए, भारत ये मिसाल दुनिया के सामने पेश कर रहा है। भारत का ये कूटनीतिक संतुलन रूस-यूक्रेन युद्ध में दिखा और इज़राइल-हमास जंग में भी। भारत अगर इज़राइल पर हमास के हमले की आलोचना करता है तो फिलिस्तीन के लिए मानवीय मदद भी भेजता है।

एक तरफ यूक्रेन-रूस युद्ध के बीच शांति स्थापना के लिए भारत को उम्मीद भरी निगाहों से देखा जा रहा है। इस युद्ध के दौरान भारत हमेशा शांति के पक्ष में रहा। रूसी राष्ट्रपति पुतिन हों या यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की, पीएम मोदी ने बिना किसी लाग लपेट दोनो को शांति का संदेश दिया। खास बात ये है कि पुतिन और जेलेंस्की दोनो को भारत पर भरोसा है और अब पुतिन ने खुद साफ शब्दों में कह दिया है कि शांति समझौते के लिए उन्हें भारत की मध्यस्थता मंज़ूर है।रूस यूक्रेन युद्ध में शांति के लिए दुनियाभर के देश भारत की ओर उम्मीद भरी निगाहों से देख रहे हैं। अब फिलिस्तीन ने भी गाजा में शांति के लिए भारत का रुख किया है।

भारत में फिलिस्तीन के राजदूत अदनान अबू अल-हैजा ने कहा, “हम हमेशा मध्यस्थ की भूमिका निभाने के लिए भारत जैसे दोस्त की तलाश में हैं।” अबू अल-हैजा ने कहा, “मुझे पता है कि भारत एक शांतिपूर्ण देश है इसलिए हम भारत से अपील कर रहे हैं कि वे मध्यस्थ भूमिका निभाएं. भारत के दोनों देशों (इजराइल-फिलिस्तीन) से अच्छे संबंध हैं। हम भारत से आग्रह करते हैं कि वे युद्धविराम समझौते और फिलिस्तीन की 1967 के सीमाओं के आधार पर एक राज्य की स्थापना के लिए अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन करें।

ऐसे में बड़ा सवाल है कि भारत पर भरोसे की वजह आखिर क्या है? रूस-यूक्रेन के बीच ढाई साल तक चलने वाले थकाऊ युद्ध के बाद अब शांति की बात होने लगी है। इसमें भारत दुनिया का इकलौता देश है, जिसने पूरी शिद्दत से शांति की पहल की है।इस कड़ी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दुनिया के इकलौते ताकतवर नेता हैं, जिन्होंने रूस और यूक्रेन दोनों देशों की यात्रा की और दोनों देशों से शांति की अपील की। प्रधानमंत्री मोदी ने इस दौरान रूस के राष्ट्रपति एवं यूक्रेन के राष्ट्रपति, दोनों से कई मौकों पर व्यक्तिगत रूप से शांति की अपील भी की। जब दुनिया इस युद्ध के चलते गुटों में बंट गई थी तब भारत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में संतुलित एवं संयमित भूमिका निभाते हुए बगैर किसी का पक्ष लिए केवल और केवल शान्ति का पक्ष लिया।

ठीक इसी तरह बीते साल 7 अक्टूबर को इजरायल पर हमास के खूनी हमले ने युद्ध का जहर बो दिया। 7 अक्टूबर को इजरायल-गाजा सीमा पर हमास के आतंकी हमले में 1,200 से अधिक लोग मारे गए थे। जवाब में इजरायल ने भी बम बरसाना शुरु किया, जिससे एक झटके में तेरह हजार से ज्यादा लोग जान से हाथ धो बैठे। इस पर दुनिया दो खेमों में बंटने लगी, लेकिन भारत का रुख साफ रहा। गलत को गलत कहो, सही का समर्थन करो।  इसलिए भारत पर अगर रूस और यूक्रेन दोनों को भरोसा रहता है तो इजरायल और फिलीस्तीन को भी।

7 अक्टूबर को इजराइल पर हमास का हमला हुआ था और उसके तीन दिन बाद 10 अक्टूबर को इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फोन किया था। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारत की अहमियत इजरायल के लिए कितनी है। भारत ने आतंकी हमले की कड़ी निंदा के साथ ही इजरायल के साथ अपनी एकजुटता दिखाई थी, लेकिन फिलीस्तीन के साथ रिश्तों को भी कायम रखा। भारत ने कभी हमास को आतंकवादी संगठन नहीं कहा।एक तरफ इजरायल के साथ सहानुभूति का संबंध रखा तो दूसरी तरफ फिलीस्तीनी लोगों की भरपूर मदद भी की। भारत ने मिस्र के माध्यम से गाजा को 16.5 टन दवाइयों और चिकित्सा आपूर्ति सहित 70 टन मानवीय सहायता भी भेजी।
दिल्ली में इस साल भी दिवाली पर पटाखे बैन, एक जनवरी तक निर्माण व ऑनलाइन बिक्री पर बैन
#delhi_ban_on_selling_production_and_storage_of_firecrackers_till_january_1st
दिल्ली में इस साल भी दीवाली पर पटाखों पर रोक रहेगी। दिल्ली सरकार ने सर्दियों के मौसम में बढ़ते प्रदूषण पर रोक लगाने के लिए यह फैसला लिया है। दिल्ली सरकार ने पिछले साल की तरह इस साल भी पटाखों के निर्माण, स्टोरेज, बिक्री और यूज पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया है। दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने यह जानकारी दी।

दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने कहा कि दिल्ली में सर्दियों के मौसम में बढ़ने वाले प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए केजरीवाल सरकार ने पिछले साल की तरह इस बार भी पटाखों के उत्पादन, भंडारण, बिक्री और इस्तेमाल पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया है।इसके साथ ही गोपाल राय ने यह भी बताया कि इस बार पटाखों की ऑनलाइन बिक्री और डिलीवरी पर भी बैन रहेगा। पटाखों के उत्पादन, भंडारण, बिक्री और इस्तेमाल पर यह बैन अगले साल जनवरी तक लागू रहेगा।

पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने कहा कि प्रतिबंध को कड़ाई से लागू करने को लेकर दिल्ली पुलिस, डीपीसीसी और राजस्व विभाग के साथ मिलकर कार्य योजना बनाई जाएगी। सरकार प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए 21 फोकस बिंदुओं पर आधारित विंटर एक्शन प्लान बना रही है।

बता दें कि दिल्ली में हर साल सर्दियों के आते ही सब कुछ धुंधला होने लगता है, जिसमें आधा कोहरा और आधा प्रदूषण लोगों का जीना मुहाल कर देता है। लोगों का सांस लेना भी दूभर हो जाता है। दिल्ली वालों को हर साल इस परेशानी से जूझना पड़ता है। सरकार इससे निपटने के लिए अलग-अलग तरह के इंतजाम हर साल करती है।हालांकि सरकार के लिए पटाखों पर रोक लगाना एक बड़ी चुनौती होगी। क्योंकि बैन के बावजूद कुछ लोग पटाखे फोड़ने से बाज नहीं आते और ब्लैक में धड़ल्ले से पटाखों की बिक्री होती है।
हरियाणा विस चुनावः गठबंधन की चर्चाओं के बीच आप की पहली सूची जारी, क्या कांग्रेस से नहीं बनी बात?
#aap_released_its_first_list_of_candidates_for_haryana_elections
कांग्रेस के साथ गठबंधन की चर्चा के बीच हरियाणा विधानसभा चुनाव को लेकर आम आदमी पार्टी ने आज उम्मीदवारों की अपनी पहली लिस्ट जारी कर दी है। जारी की गई पहली लिस्ट में कुल  20 उम्मीदवारों के नाम हैं। बता दें कि हरियाणा में आप और कांग्रेस के बीच गठबंधन की बात चल रही हैं। हालांकि उससे पहले आप ने पहली लिस्ट जारी कर दी है। इसके साथ ही पार्टी ने कांग्रेस के 11 उम्मीदवारों के सामने अपने प्रत्याशी खड़े कर दिए हैं।

आप ने रोहतक से बिजेंद्र हुड्डा को प्रत्याशी घोषित किया है। वहीं नारायणगढ़ से गुरपाल सिंह प्रत्याशी होंगे। पार्टी ने कलायत से अनुराग ढांडा को उम्मीदवार बनाया है। घरौंडा से जयपाल शर्मा, असंध से अमनदीप जुंडला को टिकट दी गई है। समालखा से बिट्टू पहलवान, उचाना कलां से पवन फौजी और डबवाली से कुलदीप गदराना को टिकट दिया गया है। रानिया से हैप्पी रानिया, भिवानी से इंदू शर्मा, महम से विकास नेहरा, बहादुरगढ़ से कुलदीप चिकारा, बादली से रणबीर गुलिया और बेरी से सोनू अहलावत शेरिया को उम्मीदवार घोषित किया गया है। इसके अलावा महेंद्रगढ़ से मनीष यादव, नारनौल से रविंद्र मटरू, बादशाहपुर से बीर सिंह सरपंच, सोहना से धर्मेंद्र खटाना और बल्लभगढ़ से रविंदर फौजदार को टिकट दी गई है।

बता दें कि सोमवार की सुबह आप ने कांग्रेस से कहा था कि अगर कांग्रेस गठबंधन पर शाम तक फैसला नहीं करेगी तो हम अपनी लिस्ट जारी करेंगे। ऐसे में साफ जाहिर है कि कांग्रेस की तरफ से गठबंधन को लेकर जब कोई संकेत नहीं मिला तो आम आदमी पार्टी ने अपने उम्मीदवारों के नाम जारी कर दिए हैं। ऐसे में कयास लग रहे हैं कि आप व कांग्रेस अब राज्य में अलग-अलग चुनाव लड़ेगी।

सूत्रों की मानें तो आप और कांग्रेस के बीच बातचीत इसलिए फेल हो गई क्योंकि आम आदमी पार्टी 10 से अधिक सीटें मांग रही थी और कांग्रेस 3 सीट से अधिक देने के पक्ष में नहीं थी। इधर कांग्रेस के कुछ जमीनी नेता भी इस गठबंधन को न करने की सलाह दे रहे थे।
'आपको काम पर लौटना होगा, नहीं तो कार्रवाई होगी' कोलकाता केस में प्रदर्शन कर रहे डॉक्टर्स को सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी
# kolkata_rape_murder_case_sc_says_doctors_resume_work_by_5_pm_tomorrow

कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में जूनियर डॉक्टर से रेप और हत्या के मामले में आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ सुनवाई के लिए बैठी।इस मामले में पश्चिम बंगाल सरकार ने अपनी स्थिति रिपोर्ट कोर्ट को दी है। घटनास्थल में बड़ी तादाद में लोगों के पहुंचने को लेकर ये रिपोर्ट दी गई है। पश्चिम बंगाल सरकार के स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट भी कोर्ट को दी गई है।

कपिल सिब्बल ने कहा है कि चिकित्सकों की हड़ताल के दौरान 23 लोगों की मौत हो गई। हमने जांच की स्थिति रिपोर्ट दाखिल कर दी है। सिब्बल ने बताया कि डॉक्टरों के काम न करने की वजह से 23 लोगों की मौत हो गई है। वहीं इस मामले में सीबीआई ने भी अपनी स्थिति रिपोर्ट दाखिल की है। सुनवाई के बाद कोर्ट सीबीआई से नई स्टेटस रिपोर्ट मांगी है। कोर्ट ने जांच एजेंसी को एक हफ्ते का समय दिया है। इसके बाद कोर्ट ने मामले पर सुनवाई 17 सितंबर तक के लिए स्थगित कर दी।

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने प्रदर्शनकारी डॉक्टरों को कल यानी मंगलवार शाम 5 बजे तक काम पर लौटने का निर्देश दिया। सुनवाई के दौरान बंगाल सरकार की ओर से पेश वकील सिब्बल ने कोर्ट में कहा कि पुलिस की अनुमति के बिना हर जगह विरोध प्रदर्शन हो रहा है, हम क्या करें? यह अब कुछ और होता जा रहा है। 41 पुलिस पर्सनल प्रभावित हुए। पुलिस को इलाज से वंचित किया जा रहा है। सीजेआई ने कहा कि जो डॉक्टर काम पर लौट रहे हैं। उनके खिलाफ दंडात्मक या कोई कदम नहीं उठाया जाएगा।

सीजेआई ने आदेश में दर्ज किया कि हलफनामे में राज्य सरकार ने संकेत दिया कि सुरक्षा उपायों को पूरा करने के लिए धन स्वीकृत किया गया है। इसकी निगरानी जिला कलेक्टरों द्वारा की जाएगी. विश्वास की भावना पैदा करने के लिए हम कहते हैं कि यदि डॉक्टर कल शाम 5 बजे तक काम पर आ जाते हैं तो प्रतिकूल कार्रवाई नहीं होगी। सुविधाएं दिए जाने के बावजूद लगातार काम पर नहीं रहने पर उनके खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है। सीजेआई ने डॉक्टर संघ कि तरफ से पेश वकील से कहा कि आपको काम पर लौटना होगा अन्यथा अनुशासनात्मक कार्रवाई होगी।

सुप्रीम कोर्ट ने ये आदेश पश्चिम बंगाल सरकार की उस रिपोर्ट पर दिया, जिसमें कहा गया कि डॉक्टरों के काम पर वापस नहीं आने से 23 लोगों की मौत हो गई और हजारों लोग प्रभावित हैं। वे काम पर नहीं जाते, लॉर्डशिप ने पिछली बार कहा था कि उन्हें काम पर वापस जाना होगा, इसलिए लॉर्डशिप को संकेत देना चाहिए कि अगर वे काम पर वापस नहीं जाते तो उनके खिलाफ कार्रवाई प्रारंभ की जाएगी।
विनेश फोगाट और बजरंग पूनिया को राहत, रेलवे ने मंजूर किया इस्तीफा
#vinesh_punia_resignations_accepted_by_indian_railways

भारतीय रेलवे ने भारत के पूर्व पहलवान बजरंग पूनिया और विनेश फोगाट का इस्तीफा स्वीकार कर लिया है।पिछले दिनों दोनों पहलवानों ने रेलवे से इस्तीफा दे दिया था। जिसके बाद दोनों कांग्रेस में शामिल हो गए थे। रेलवे ने इस मामले में विनेश को कारण बताओ नोटिस जारी किया था। हालांकि, अब रेलवे ने विनेश फोगाट और बजरंग पूनिया को बड़ी राहत दे दी है और दोनों का इस्तीफा स्वीकार कर लिया है। इसके साथ ही विनेश और पुनिया के चुनाव लड़ने का रास्ता साफ हो गया है।

दरअसल, चुनाव आयोग के नियमों के मुताबिक, जब तक विनेश फोगाट का इस्तीफा रेलवे मंजूर नहीं कर लेता और उन्हें एनओसी नहीं दे देता है। तब तक वो चुनाव नहीं लड़ सकती हैं। कानून कहता है कि अगर कोई शख्स किसी सरकारी पद पर बैठा है और अगर वो चुनाव लड़ना चाहता है तो सबसे पहले उसे इस्तीफा देकर विभाग से एनओसी लेनी पड़ती है। नामांकन के वक्त एनओसी को भी डॉक्यूमेंट में लगाना पड़ता है तभी रिटर्निंग ऑफिसर आवेदन को स्वीकार करेगा। उत्तर रेलवे का कहना है कि कारण बताओ नोटिस सेवा नियमावली का हिस्सा है।

विनेश फोगाट ने रेलवे को भेजे गए अपने इस्तीफे में कहा था कि वह वर्तमान में रेलवे लेवल-7 के तहत ओएसडी/स्पोर्ट्स के पद पर कार्यरत हैं। विनेश ने कहा था कि वह अपने पारिवारिक परिस्थितियों/व्यक्तिगत कारणों की वजह से ओएसडी/खेल के रूप में अपने कर्तव्यों का पालन करने में असमर्थ हैं।

बता दें कि विनेश फोगाट को कांग्रेस की तरफ से जुलाना विधानसभा सीट से टिकल मिला है। जुलाना सीट पर कांग्रेस लंबे समय से जीत का इंतजार कर रही है। कांग्रेस को इस सीट पर आखिरी बार 2005 में जीत मिली थी। पार्टी की गिरती साख को संवारने के लिए पार्टी ने विनेश फोगाट को उम्मीदवार बनाकर बड़ा दांव खेला है। और बजरंग पूनिया को किसान कांग्रेस को वर्किंग चेयरमेन बनाया गया है।
पीएम मोदी के “जेम्स बॉन्ड” अजीत डोभाल जा रहे हैं रूस, दुनियाभर में इस दौरे की चर्चा क्यों?

#indian_nsa_ajit_doval_russia_visit_ukraine_conflict_will_be_in_top_agenda

करीब दो साल से अधिक समय से चली आ रही रूस-यूक्रन जंग को लेकर दुनियाभर के देश भारत की तरफ टकटकी लगाकर देख रहे हैं। इन देशों में सबसे ताकतवर श अमेरिका भी शामिल है। जो कई ये जाहिर कर चुका है कि भारत ही रूस को रोक सकता है। अभी हाल ही में खुद रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी कह चुके हैं कि रूस-यूक्रेन जंग सुलझाने में भारत और चीन अहम भूमिका निभा सकते हैं। पुतिन के बाद इटली की पीएम का भी मानना है कि शांति वार्ता को लेकर भारत और चीन ही मध्यस्थ की भूमिका निभा सकते। इस बीच भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल इस सप्ताह मास्को की यात्रा करेंगे। शांतिदूत वाला रोल निभाने को तैयार भारत के इस “दूत” के मॉस्को दौरे पर सबकी निगाहें जमी हैं।

बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसी जुलाई में रूस की यात्रा की थी। इसके अगले महीने ही अगस्त में पीएम मोदी यूक्रेन पहुंचे। इसके बाद आए पुतिन के बयान ने साफ कर दिया है कि संघर्ष को रोकने में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका होने वाली है।यूक्रेन की यात्रा और राष्ट्रपति जेलेंस्की से मुलाकात के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने 27 अगस्त को राष्ट्रपति पुतिन से फोन पर बात की थी। रूस की तरफ से कहा गया कि फोन काल के दौरान पीएम मोदी ने पुतिन को अपनी हाल की कीव यात्रा के बारे में बताया। इस दौरान पीएम मोदी ने राजनीतिक और कूटनीतिक तरीकों से यूक्रेन समझौता करने की भारत की प्रतिबद्धता पर जोर दिया। सूत्रों के अनुसार, इस फोन काल के दौरान ही यह तय किया गया कि एनएसए डोभाल मॉस्को जाएंगे। खास बात यह है कि जेलेंस्की से मुलाकात के बाद पीएम मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन से भी बात की थी, जो यूक्रेन का महत्वपूर्ण सहयोगी है।

एनएसए अजीत डोभाल 10-11 सितंबर को मॉस्को की यात्रा करेंगे। इस दौरान उनका फोकस यूक्रेन जंग में शांति समझौते कराने पर रहेगी। अजीत डोभाल मॉस्को में होने वाले ब्रिक्स एनएसए के सम्मेलन में भाग लेने जा रहे हैं। भारत से जहां मध्यस्थ के रूप में अजीत डोभाल रहेंगे, वहीं चीन की ओर से वांग यी। चीन के एनएसए वांग यी भी उस सम्मेलन में मौजूद रहेंगे, जिसमें यूक्रेन जंग सबसे अहम मुद्दा होगा।

यहां खास बात है कि अजित डोभाल और वांग यी ही भारत-चीन सीमा समाधान पर बातचीत के लिए विशेष प्रतिनिधि हैं। यह बैठक रूस और यूक्रेन के बीच जारी जंग समाप्त करने के लिए दोनों देशों के बीच शांति वार्ता को लेकर नये सिरे से जारी प्रयासों के बीच हो रही है।एनएसए अजीत डोभाल रूस यात्रा के दौरान चीन और ब्राजील समेत अपने ब्रिक्स समकक्षों से मिलेंगे और इस बात पर चर्चा करेंगे कि कैसे यह समूह संघर्ष को समाप्त करने में पहल कर सता है।

क्या बदल जाएगा बांग्लादेश का राष्ट्रगान? कट्टरपंथियों ने उठाई मांग, जानें भारत से क्या है कनेक्शन
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बांग्लादेश में अब राष्ट्रगीत 'आमार सोनार बांग्ला' को लेकर विवाद शुरू हो गया है। शेख हसीना के शासन के पतन के बाद कट्टरपंथी राष्ट्रगीत बदलने की मांग कर रहे हैं।बांग्लादेश की कट्टरपंथी इस्लामिक पार्टी जमात-ए-इस्लामी ने ये मांग उठाई है। जमात-ए-इस्लामी पार्टी के पूर्व प्रमुख के बेटे अब्दुल्लाह अमान आजमी ने देश के राष्ट्रगीत को बदलने की मांग की है। आजमी ने रवींद्रनाथ टैगोर रचित 'आमार सोनार बांग्ला' को बदलने की मांग करते हुए कहा कि भारत ने इसे 1971 में हम पर थोपा था।

अब्दुल्लाह अमान आजमी ने देश के राष्ट्रगान और संविधान में बदलाव की मांग की थी। उन्होंने कहा, मैं राष्ट्रगान का मामला इस सरकार पर छोड़ता हूं। हमारा वर्तमान राष्ट्रगान हमारे स्वतंत्र बांग्लादेश के अस्तित्व के विपरीत है।यह बंगाल विभाजन और दो बंगालों के विलय के समय को दर्शाता है। दो बंगालों को एकजुट करने के लिए बनाया गया एक राष्ट्रगान एक स्वतंत्र बांग्लादेश का राष्ट्रगान कैसे बन सकता है?

आजमी ने आगे कहा कि 'यह राष्ट्रगान 1971 में भारत ने हम पर थोपा था। कई गीत राष्ट्रगान के रूप में काम कर सकते हैं। सरकार को एक नया राष्ट्रगान चुनने के लिए एक नया आयोग बनाना चाहिए।

*क्या बोली सरकार?*
हालांकि, बांग्लादेश में मोहम्मद युनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार में धार्मिक मामलों के सलाहकार अबुल फैज मुहम्मद खालिद हुसैन ने इस मांग को सिरे से खारिज कर दिया। अबुल फैज मुहम्मद खालिद हुसैन ने कहा है कि देश के राष्ट्रगान को बदलने की कोई योजना नहीं है। अंतरिम सरकार विवाद पैदा करने के लिए कुछ नहीं करेगी, हम सभी के सहयोग से एक सुंदर बांग्लादेश का निर्माण करना चाहते हैं।

*पहले भी उठ चुकी है राष्ट्रगान बदले की मांग*
बांग्लादेश के मौजूदा राष्ट्रगान ‘आमार सोनार बांग्ला’ को बदलने की मांग और कोशिश यह कोई पहली बार नहीं है। बांग्लादेश बनने के बाद साल 1975 में पहले तख्तापलट के बाद भी इसे बदने प्रक्रिया शुरू हुई थी। तत्कालीन राष्ट्रपति मुश्ताक अहमद ने एक समिति गठित की थी, जिसने काजी नजरूल इस्लाम के “नोतुनेर गान” या फारुख अहमद के “पंजेरी” को राष्ट्रगान बनाने का प्रस्ताव दिया था। साल 2002 में बांग्लादेश जमात-ए-इस्लामी के अमीर मोतीउर रहमान निज़ामी ने ‘आमार सोनार बांग्ला’ को इस्लामी मूल्यों और भावना के खिलाफ बताया था। उन्होंने इसे बदलने के लिए प्रस्ताव भी रखा था। लेकिन कैबिनेट डिवीजन ने इस मांग को खारिज कर दिया था।

*किसने लिखा ‘आमार सोनार बांग्ला’ ?*
बांग्लादेश का राष्ट्रगान ‘आमार सोनार बांग्ला’ गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर ने इसी नाम से लिखे गए गीत से लिया गया है। उन्होंने इसे साल 1905 में बंगाल विभाजन के खिलाफ लिखा था। 19 जुलाई 1905 को वायसरॉय लॉर्ड कर्जन ने बंगाल को धर्म के आधार पर बांटने का ऐलान किया था। उसी साल 16 अक्टूबर को लागू हुआ। जिसके बाद गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर ने बंगाल की एकता के लिए इस गीत की पंक्तियां लिखी। जो उसी साल सितंबर में ‘बंगदर्शन’ नाम की पत्रिका में प्रकाशित हुईं। साल 1971 में पूर्वी पाकिस्तान के स्वतंत्र बांग्लादेश बनने के बाद इस गीत की 10 पंक्तियों को राष्ट्रगान के रूप में स्वीकार किया गया।
पारसी भी तो अल्पसंख्यक, बिना विशेष अधिकार मांगे..', पढ़िए, आखिर किस पर था अमित शाह का निशाना

केंद्रीय गृह मंत्री और भाजपा नेता अमित शाह ने 8 सितंबर को पारसी समुदाय की प्रशंसा की। कहा कि उन्होंने 'अल्पसंख्यक' अधिकारों की मांग किए बिना हर क्षेत्र में देश के लिए योगदान दिया है। शाह ने यहां एक मीडिया कार्यक्रम में बोलते हुए कहा, "ऐसे कई लोग हैं जो अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए लड़ते हैं। मैं उन्हें बताना चाहता हूं कि अगर अल्पसंख्यकों में कोई अल्पसंख्यक है, तो वे पारसी हैं। उन्होंने कभी अपने अधिकारों के लिए विरोध नहीं किया, बल्कि अपने कर्तव्यों को पूरा करने के लिए जिया। उन्होंने अपने लिए कुछ नहीं मांगा; उन्होंने इस देश के लिए योगदान दिया।"

माइनॉरिटी में भी अगर कोई माइनॉरिटी है, तो पारसी है। माइनॉरिटी राइट्स के लिए झगड़ा करने वालों को पारसी समुदाय से सीखना चाहिए, जो अपने कर्तव्यों के लिए ही जीवन जीते हैं और जिन्होंने कभी कोई माँग किये बिना हर क्षेत्र में योगदान दिया है।

भारत में पारसियों के योगदान का विवरण देते हुए उन्होंने कहा, "पारसी हर क्षेत्र में हैं, चाहे वह कानून हो, उद्योग हो, फिनटेक का विकास हो, आईटी क्षेत्र हो, परमाणु क्षेत्र हो या बांग्लादेश (युद्ध) में जीत हो, आप पाएंगे कि एक पारसी चुपचाप खड़ा है।" उन्होंने कहा, "बिना कुछ मांगे उन्होंने (पारसियों ने) देश के लिए योगदान दिया और वे देते रहे। मैं भगवान से प्रार्थना करता हूं कि अल्पसंख्यक भी आपके जैसे हों।" उन्होंने यह भी कहा कि जब पारसी लोग गुजरात में शरण लेने आए थे, तो स्थानीय राजा ने उनसे कहा था कि उनके राज्य में पहले से ही बहुत ज़्यादा आबादी है और उनसे पूछा था कि वे वहां कैसे रह सकते हैं। तब पारसियों ने कहा था कि जैसे चीनी दूध में घुल जाती है, वैसे ही वे भी समाज में घुल-मिल जाएंगे।

दरअसल, भारत में अल्पसंख्यकों का मुद्दा अक्सर उठता रहता है, राजनेता इसे वोट बैंक बनाने के लिए जमकर इस्तेमाल करते हैं। आरोप लगाए जाते हैं कि भारत में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार होता है, खासकर मुस्लिमों पर, जो भारत की दूसरी सबसे बड़ी आबादी है, लगभग 30 करोड़ से अधिक।इस तरह से मुस्लिमों को भड़काकर राजनेताओं द्वारा अपने पाले में बांधकर रखा जाता है, ताकि उनके वोट एकमुश्त मिलते रहें और मिलते भी हैं। इसीलिए उनकी हर डिमांड भी पूरी की जाती है, जो लगातार बढ़ रही है। आप देखेंगे तो पाएंगे कि भारत में मुस्लिमों के लिए अलग से जितने कानून और नियम बनाए गए उतने किसी और धर्म के लिए नहीं हैं, फिर चाहे वो कितने ही अल्पसंख्यक हों, क्योंकि वो वोट बैंक नहीं हैं। मुस्लिम समुदाय के लिए वक्फ बोर्ड, पूजा स्थल कानून, पर्सनल लॉ बोर्ड, अनुच्छेद 370, जैसे कई विवादित कानून बना दिए गए हैं, जो कुछ हद तक देश के लिए भी घातक हैं, इसके अलावा उन्हें हज पर सब्सिडी, अल्पसंख्यक मंत्रालय, आरक्षण के जरिए भी तमाम लाभ दिए जाते हैं।

2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में लगभग 57000 पारसी रहते हैं, लेकिन उनकी कोई स्पेशल डिमांड नहीं और ऐसा भी नहीं है कि कम संख्या होने के कारण वो पनप नहीं पा रहे, या बहुसंख्यक उन्हें आगे बढ़ने नहीं दे रहे। टाटा समूह के संस्थापक जमशेदजी नसरवानजी टाटा, गोदरेज के संस्थापक आर्देशिर गोदरेज, वाडिया उद्योग के संस्थापक लवजी नुसरवानजी वाडिया, और सीरम इंस्टीट्यूट के सायरस पूनावाला. रतन टाटा, होमी जहांगीर भाभा जैसे दिग्गज पारसी हैं। स्वतंत्रता सेनानियों में मैडम भीखाजी कामा, दादाभाई नैरोजी भी पारसी थे। साइरस मिस्त्री, बोमन ईरानी जैसे दिग्गज भी पारसी हैं, जो भारत में काफी फले-फूले हैं। ये दर्शाता है कि भारत में सभी के लिए समान अवसर मौजूद हैं, जिसका आबादी से कोई ताल्लुक नहीं, बस सबकुछ आपके कर्मों पर निभर है। बिना कुछ मांगे भी पारसी इतना आगे बढ़ गए, जबकि वे तो अल्पसंख्यकों में भी सबसे बड़े अल्पसंख्यक हैं।

पारसी समुदाय, सिख समुदाय, यहूदी समुदाय, बौद्ध समुदाय, जैन समुदाय, ईसाई समुदाय की तादाद भारत में बेहद कम है, लेकिन वो लोग बिना किसी डिमांड के देश की उन्नति में अपना योगदान देते रहते हैं। इन्होने ना आज तक आरक्षण की मांग की है, ना ही किसी विशेष सुविधा की, ना देश में हिस्सा माँगा है, ना संसद में अपना नेता। पारसियों ने सही ही कहा था, वे भारतीय समाज में उसी तरह घुलमिल गए हैं, जैसे दूध में चीनी। आज तक पारसियों द्वारा किसी समुदाय पर एक पत्थर चलाने की खबर नहीं आई है। इनका जो देश था, फारस (पर्शिया), वो इस्लामी आक्रमण के बाद अब ईरान बन चुका है और पारसियों को वहाँ से भागकर भारत में शरण लेनी पड़ी थी, तब से ये समुदाय भारत को ही अपनी कर्मभूमि मानता है।