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आरएसएस ने जाति जनगणना के समर्थन का दिया संकेत, कांग्रेस ने संघ के बयान पर उठा दिया सवाल

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने सोमवार को जाति आधारित जनगणना को समर्थन देने के संकेत दिए हैं।संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने कहा कि यह संवदेनशील मामला है और इसका इस्तेमाल राजनीतिक या चुनावी उद्देश्यों के लिए नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इसका इस्तेमाल पिछड़ रहे समुदाय और जातियों के कल्याण के लिए होना चाहिए। संघ की ओर से दिए गए इस बयान के बाद एक बार फिर विवाद बढ़ता दिख रहा है। आरएसएस के बयान के बाद कांग्रेस ने एक बार फिर सरकार पर हमला बोला है। 

कांग्रेस ने संघ की टिप्पणी पर प्रतिक्रिया देते हुए पहले तो कहा कि जाति जनगणना की इजाजत देने वाला आरएसएस कौन हाता है। इसके बाद कहा कि अगर संघ की तरफ हरी झंडी मिल गई है तो क्या पीएम नरेन्द्र मोदी कांग्रेस की एक और गारंटी को हाइजैक करके जाति जनगणना करवाएंगे? कांग्रेस ने कुल मिलाकर पांच सवाल किए।

कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट के जरिए मोदी सरकार से पांच सवाल पूछे हैं। इन सवालों के जरिए संघ को भी निशाने पर लिया है। जयराम ने पूछा, “जाति जनगणना को लेकर आरएसएस की उपदेशात्मक बातों से कुछ बुनियादी सवाल उठते हैं। क्या आरएसएस के पास जाति जनगणना पर निषेधाधिकार है? जाति जनगणना के लिए इजाजत देने वाला आरएसएस कौन है? आरएसएस का क्या मतलब है जब वह कहता है कि चुनाव प्रचार के लिए जाति जनगणना का दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिए? क्या यह जज या अंपायर बनना है?

जयराम रमेश ने आगे कहा, ‘अब जब RSS ने हरी झंडी दिखा दी है तब क्या नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री कांग्रेस की एक और गारंटी को हाईजैक करेंगे और जाति जनगणना कराएंगे?’ 

दरअसल, संघ ने कहा है कि जाति जनगणना एक संवेदनशील मुद्दा है और इस पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। केरल के पलक्कड़ में संघ के तीन दिवसीय अखिल भारतीय स्वयंसेवक बैठक के अंतिम दिन आरएसएस के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने प्रेस कांफ्रेन्स की।आंबेकर ने कहा, हिंदू समाज में जाति और जातीय संबंध एक संवेदनशील मुद्दा है। ये हमारी राष्ट्रीय एकता और अखंडता के लिए महत्वपूर्ण मुद्दा है। इसे बहुत गंभीरता से निपटाना चाहिए न कि केवल चुनाव या राजनीति के लिए।

उन्होंने कहा, आरएसएस को लगता है कि सभी कल्याणकारी योजनाओं के लिए विशेष रूप से जो जाति पिछड़ रही है, उन पर विशेष ध्यान देने की ज़रूरत होती है और इसके लिए अगर सरकार को कभी आँकड़ों की ज़रूरत है, तो यह एक स्थापित परंपरा है।इससे पहले भी सरकार ने इस तरह के काम किए हैं। इसलिए वो आगे भी कर सकती है। लेकिन यह केवल उन समुदायों और जातियों के कल्याण के लिए किया जाना चाहिए। इसे चुनावी राजनीति के उपकरण के तौर पर नहीं इस्तेमाल किया जाना चाहिए। इसलिए हमने सभी के लिए इस बारे में सावधानी बरतने की बात कही है।

मणिपुर में टेंशन बढ़ाने वाली घटना, पहली बार ड्रोन से अटैक, कुकी उग्रवादियों के पास कहां से आ रहे आधुनिक हथियार?

#manipur_imphal_drone_attacks 

देश का उत्तर पूर्वी राज्य मणिपुर पिछले एक साल से सुलग रहा है। कुकी और मैतेई समुदाय के बीच शुरू हुई हिंसा को एक साल से ज्यादा वक्त बीत चुका है, लेकिन अभी तक हालात सामान्य नहीं हो पाए हैं। अभी दो दिन पहले ही राज्य की मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने भरोसा जाताया ता कि आने वाले 6 महीने के भीरत हालात पूरी तरह से सामान्य हो जाएंगे। हालांकि इसे बीच से खबर आ रही जो चिंता बढ़ाने वाली है। मणिपुर में जातीय हिंसा के बीच ड्रोन और आरपीजी के इस्तेमाल किया गया है। बीते 1 सितंबर को राज्य में शुरू हुई हिंसा फिर से बढ़ती दिख रही है और सोमवार 2 सितंबर को लगातार दूसरे दिन भी इंफाल में ड्रोन से हमला हुआ है। जातीय हिंसा के बीच ड्रोन बम के प्रयोग ने सुरक्षा एजेंसियों की चिंता बढ़ा दी है।

मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने मंगलवार को कुकी आतंकियों द्वारा ड्रोन के जरिए आम लोगों और सुरक्षा कर्मियों पर बम गिराने की घटना की निंदा की है। उन्होंने इसे आतंकी घटना बताते हुए कहा है कि इस कायराना हमले का मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा। मुख्यमंत्री ने अपनी सोशल मीडिया पोस्ट में कहा, ‘आम लोगों और सुरक्षा कर्मियों के ऊपर ड्रोन से बम गिराने की घटना आतंकी घटना है। मैं इस कायरतापूर्ण घटना की कड़े शब्दों में निंदा करता हूं। मणिपुर की सरकार इस अकारण हमले को गंभीरता से लेती है और सरकार स्थानीय लोगों पर इस अकारण हमले के लिए कड़ी कार्रवाई करने को प्रतिबद्ध है।‘

अब तक पुलिस से छीने गए हथियारों का होता था इस्तेमाल

मुख्यमंत्री ने जोर देते हुए कहा कि हम हर तरह की हिंसा की निंदा करते हैं और मणिपुर के लोग नफरत, विभाजन और अलगाववाद के खिलाफ एकजुट हैं।मणिपुर के कोत्रुक गांव में जिस तरह से कुकी उग्रवादियों ने ड्रोन से आरपीजी यानी रॉकेट प्रोपैल्ड गन अटैक किया, वह वाकई चौंकाने वाला है। अभी तक कुकी उग्रवादी मणिपुर पुलिस से छीने गए हथियारों का इस्तेमाल हमलों के लिए कर रहे थे, जिनमें इंसास राइफलें, कार्बाइन, हैंड ग्रेनेड, मोर्टार और रॉकेट लॉन्चर जैसे हथियार शामिल थे, लेकिन अब ड्रोन अटैक यह वाकई चिंताजनक है। 

जंग में इस्तेमाल होने वाले हथियार कहां से मिल रहे?

पुलिस से छीने गए हथियारों के बल पर हमले करनमे वाले राज्य में कुकी उग्रवादियों ने अब अपनी रणनीति बदल दी है। मणिपुर में जो हुआ उसकी वाकई किसी ने कल्पना नहीं की थी। कुकी उग्रवादियों ने एक सितंबर को मणिपुर के इंफाल वेस्ट जिले में कोत्रुक गांव पर आश्चर्यजनक तरीके से ड्रोन के जरिए आरपीजी यानी रॉकेट प्रोपैल्ड गन अटैक किया। आमतौर पर ये हथियार जंग में इस्तेमाल होते हैं। मैतई बहुल इस गांव में पहले उग्रवादियों ने हैवी फायरिंग के बाद ड्रोन से बम गिराए। हमले में एक महिला समेत दो लोगों की मौत हो गई और कई जख्मी हो गए।

पुलिस के लिए हैरानी वाली वारदात

इस तरह के आरपीजी ड्रोन अटैक से मणिपुर पुलिस भी हैरान है। मणिपुर पुलिस ने अपने बयान में कहा है, ड्रोन बमों का इस्तेमाल आम तौर पर सामान्य युद्धों में किया जाता रहा है। सुरक्षा बलों और आम नागरिकों के खिलाफ विस्फोटक हमले करने के लिए आरपीजी अटैक के लिए हाई-टेक ड्रोन का इस्तेमाल वाकई चौंकाने वाला है। इस बात की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि इसके लिए उच्च प्रशिक्षित पेशेवरों, तकनीकी विशेषज्ञों की मदद ली गई होगी। 

खुफिया सूत्रों का कहना है कि चीन इन ड्रोनों को म्यांमार के रास्ते भारत भेज रहा है और ये ड्रोन मणिपुर की इंटरनल सिक्योरिटी के लिए बड़ा खतरा हैं। सुरक्षा विशेषज्ञों ने भी इन एडवांस ड्रोन हमलों पर चिंता जताई है। 

हाई लेवल कमेटी का गठन

इस बीच, मणिपुर पुलिस ने उग्रवादियों के ड्रोन के इस्तेमाल की जांच के लिए 5 सदस्यों की एक हाई लेवल कमेटी का गठन किया है। पुलिस विभाग की ओर से सोमवार को जारी की गई एक अधिसूचना में कहा गया है कि 1 सितंबर को कोत्रुक में एक बड़े हमले में कुकी उग्रवादियों ने हाई-टेक ड्रोन का इस्तेमाल करके कई आरपीजी तैनात किए थे, जिसमें एक महिला की मौत हो गई थी और तीन पुलिस कर्मियों समेत कई और लोग भी घायल हो गए थे। इस कमेटी की अध्यक्षता जीडीपी आशुतोष कुमार सिन्हा करेंगे और इसमें भारतीय सेना, असम राइफल्स, सीआरपीएफ और बीएसएफ अधिकारी भी शामिल होंगे।

छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में सुरक्षाबलों को मिली बड़ी सफलता, एनकाउंटर में मार गिराए 9 खूंखार नक्सली

छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में सुरक्षाबलों और नक्सलियों के बीच भीषण मुठभेड़ में 9 नक्सली मारे गए। इस मुठभेड़ के दौरान सुरक्षाबलों ने भारी मात्रा में हथियार और गोला-बारूद भी बरामद किया है। यह मुठभेड़ दंतेवाड़ा और बीजापुर के सीमावर्ती इलाके में हुई, जहां सुरक्षाबलों को माओवादियों के बड़े जमावड़े की सूचना मिली थी। इस जानकारी के आधार पर सुरक्षाबलों ने संयुक्त अभियान चलाया और नक्सलियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू की।

सुबह 10:30 बजे से इस इलाके में मुठभेड़ चल रही थी। सर्च ऑपरेशन के दौरान जब सुरक्षाबल नक्सलियों के ठिकाने के करीब पहुंचे, तो दोनों पक्षों के बीच भारी गोलीबारी शुरू हो गई। इस मुठभेड़ में 9 नक्सलियों के मारे जाने की पुष्टि हुई है, जबकि कुछ और नक्सलियों के भी मारे जाने की संभावना जताई जा रही है। दंतेवाड़ा और बीजापुर के जंगलों में चल रहे इस ऑपरेशन में सुरक्षाबलों को लगातार सफलता मिल रही है। इससे पहले भी, 28 अगस्त को कांकेर-नारायणपुर के सरहदी क्षेत्र में सुरक्षाबलों ने एक बड़े ऑपरेशन को अंजाम दिया था, जिसमें कई नक्सलियों को मार गिराया गया था।

बस्तर के आईजी पी सुंदरराज ने इस मुठभेड़ की जानकारी देते हुए बताया कि दंतेवाड़ा-बीजापुर बॉर्डर पर हुई इस मुठभेड़ में सुरक्षाबलों ने नक्सलियों को भारी नुकसान पहुँचाया है। उन्होंने कहा कि सुरक्षाबलों का यह अभियान नक्सलियों के खिलाफ जारी रहेगा, और इस क्षेत्र में शांति बहाल करने के लिए हर संभव कदम उठाए जाएंगे। यह ऑपरेशन सुरक्षाबलों के लिए एक बड़ी सफलता है, क्योंकि नक्सल प्रभावित इलाकों में माओवादियों के खिलाफ कार्रवाई करना हमेशा से चुनौतीपूर्ण रहा है। सुरक्षाबलों की इस सफलता से इलाके में नक्सलियों के हौसले पस्त हुए हैं, और इस कार्रवाई से स्थानीय जनता के मन में भी सुरक्षा की भावना मजबूत होगी।

जंगलों में सर्च ऑपरेशन जारी है, और सुरक्षाबल सुनिश्चित कर रहे हैं कि इलाके में छिपे हुए अन्य नक्सलियों को भी ढूंढकर उनका सफाया किया जाए। इस मुठभेड़ ने एक बार फिर साबित किया है कि सुरक्षा बल अपने कर्तव्यों को निभाने में सक्षम हैं और नक्सलियों के खिलाफ लड़ाई में सजग हैं।

प्लेन हाईजैक किया इब्राहिम-अख्तर ने, लेकिन फिल्म में आतंकी दिखाए जाएंगे भोला-शंकर, शुरू हुआ विरोध


नेटफ्लिक्स पर अनुभव सिन्हा के निर्देशन में बनी सीरीज "IC 814" रिलीज़ हुई है, जो 1999 के कंधार हाईजैक की सत्य घटना पर आधारित है। सीरीज में दिखाया गया है कि कैसे आतंकियों ने भारत में बंद आतंकवादियों को छुड़ाने के लिए एक प्लेन को हाईजैक किया और यात्रियों को 7 दिनों तक बंधक बनाए रखा। लेकिन, सत्य घटना पर आधारित इस फिल्म में आतंकियों के असली नाम नहीं बताए गए हैं, बल्कि उनके नाम भोला-शंकर बताते हुए उसे हिन्दू समुदाय से जोड़ने की कोशिश की गई है। किसी को प्लेन हाईजैक की असली कहानी ना पता हो, तो हो सकता है, वो प्लेन देखने के बाद यही समझे कि इसे चरमपंथी हिन्दुओं ने हाईजैक किया था, जबकि सच्चाई इसके बिलकुल उलट है। सीरीज को लेकर सोशल मीडिया पर आलोचकों का कहना है कि बॉलीवुड एक बार फिर से इतिहास को सही ढंग से पेश करने में विफल रहा है। लोगों का आरोप है कि सीरीज में आतंकियों की छवि को सकारात्मक दिखाने की कोशिश की गई है और इसमें हिंदुओं को बदनाम करने के लिए आतंकियों के हिंदू नामों का इस्तेमाल किया गया है। आलोचकों ने निर्देशक अनुभव सिन्हा को इस्लामी जिहादी और हिंदूफोबिक करार दिया है, और सीरीज में दिखाए गए नाम जैसे "भोला" और "शंकर" को लेकर आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि इस तरह की फिल्मों को नहीं दिखाया जाना चाहिए। जबकि आतंकियों के असली नाम इब्राहिम अतहर, शाहिद अख्तर सईद, गुलशन इकबाल, सनी अहमद काजी, मिस्त्री जहूर इब्राहिम और शाकिर थे, सीरीज में उनके कोड वर्ड्स का इस्तेमाल किया गया है। कोड वर्ड्स जैसे "भोला" और "शंकर" सही हैं, लेकिन असली नामों की बजाय कोड वर्ड्स को प्रमुखता दी गई है। लोगों की आपत्ति इस बात पर है कि सीरीज में आतंकियों के असली नाम क्यों नहीं बताए गए। वे चिंतित हैं कि इससे दर्शकों के दिमाग में गलत धारणा बन सकती है कि हाईजैकर्स हिंदू थे, जबकि असली आतंकवादी मुस्लिम थे। इसके अलावा, सीरीज में आतंकियों को दयावान दिखाए जाने की भी आलोचना की गई है, जिसमें उन्हें यात्रियों के खाने-पीने का ध्यान रखते हुए और उनकी चोटों की परवाह करते हुए दर्शाया गया है। आलोचकों का कहना है कि सीरीज ने आतंकियों की क्रूरता को सही से नहीं दिखाया और इसे बहुत ही सपाट तरीके से प्रस्तुत किया गया है। भाजपा नेता अमित मालवीय ने भी इस पर प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि "IC 814" के हाईजैकर्स दुर्दांत आतंकवादी थे जिन्होंने अपनी मुस्लिम पहचान छिपाने के लिए हिंदू नामों का इस्तेमाल किया। मालवीय का आरोप है कि अनुभव सिन्हा ने जानबूझकर उनके नामों को छिपाया और वामपंथी एजेंडे के तहत आतंकवाद को हल्का दिखाने की कोशिश की है। इस विवाद के बढ़ते प्रभाव के चलते, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने नेटफ्लिक्स कंटेंट हेड को समन भेजने की बात भी सामने आई है।
बंगाल विधानसभा में दुष्कर्म-विरोधी विधेयक पेश, ममता बनर्जी ने अपराजिता विधेयक को बताया एतिहासिक

#west_bengal_govt_introduce_aparajita_woman_and_child_bill_2024 

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की सरकार ने मंगलवार को पश्चिम बंगाल विधानसभा में महिला सुरक्षा पर एक बिल पेश किया। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने विधानसभा में विशेष सत्र बुलाकर एंटी रेप बिल (अपराजिता महिला और बाल विधेयक 2024) पेश किया। जिसके बाद सभा में इस बिल पर चर्चा शुरू हुई। सीएम ममता ने इस बिल को ऐतिहासिक बताया।इसके जरिए दुष्कर्म के दोषियों को फांसी की सजा देने का प्रावधान किया गया है।साथ ही इसमें दुष्कर्म और सामूहिक दुष्कर्म के दोषी को बिना जमानत के आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान भी किया गया है। 

क्या बोलीं ममता बनर्जी

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने विधानसभा में कहा, "43 साल पहले इसी दिन 1981 में, संयुक्त राष्ट्र ने महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए 'महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर सम्मेलन' के लिए एक समिति बनाई थी। मैं नागरिक समाजों से लेकर छात्रों तक सभी का अभिनंदन करती हूं, जो महिला सुरक्षा के लिए आवाज उठा रहे हैं।" सीएम ममता बनर्जी ने आगे कहा, "डॉक्टर की मौत 9 अगस्त को हुई। मैंने मृतक डॉक्टर के माता-पिता से उसी दिन बात की जिस दिन घटना हुई। उनके घर जाने से पहले उन्हें सारा ऑडियो, वीडियो, CCTV फुटेज सब कुछ दिया गया ताकि उन्हें सब पता चल सके। मैंने उनसे साफ कहा कि मुझे रविवार तक का समय दें, अगर हम तब तक सभी को गिरफ्तार नहीं कर पाए तो मैं खुद सोमवार को इसे CBI को सौंप दूंगी। पुलिस ने 12 घंटे में मुख्य आरोपी को पकड़ लिया, मैंने पुलिस से कहा कि फास्ट ट्रैक कोर्ट में जाएं और फांसी की सजा के लिए आवेदन करें, लेकिन मामला CBI को दे दिया गया। अब हम CBI से न्याय की मांग कर रहे हैं। हम शुरू से ही फांसी की सजा की मांग कर रहे हैं।"

कोलकाता की घटना के बाद कानून को मजबूत करने की उठी है मांग

बंगाल सरकार के इस विधेयक 'अपराजिता महिला एवं बाल विधेयक (पश्चिम बंगाल आपराधिक कानून एवं संशोधन) विधेयक 2024' का उद्देश्य दुष्कर्म और यौन अपराधों से संबंधित नए प्रावधानों को संशोधित करके महिलाओं और बच्चों के लिए सुरक्षा को मजबूत करना है। बीते महीने कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में एक महिला चिकित्सक की दुष्कर्म के बाद हत्या कर दी गई थी। इस घटना को लेकर जारी हंगामा अभी तक थमा नहीं है। राज्य में महिला सुरक्षा के लिए कड़े कदम उठाने की मांग हो रही है। ऐसे में राज्य सरकार ने सोमवार से विधानसभा का दो दिवसीय विशेष सत्र बुलाने का एलान किया था। इस विशेष सत्र में राज्य के कानून मंत्री मोलॉय घटक द्वारा मंगलवार को दुष्कर्म-विरोधी विधेयक पेश किया। 

बीजेपी ने किया बिल का समर्थन

ममता सरकार के इस बिल का विपक्षी पार्टी बीजेपी ने समर्थन कर दिया है. विपक्ष के नेता सुवेंदु अधिकारी ने विधानसभा में कहा, बीजेपी पूरी तरह से अपराजिता बिल का समर्थन करती है। हम चाहते हैं यह कानून जल्द ही लागू हो. यह आपकी(राज्य सरकार) जिम्मेदारी है। बीजेपी ने कहा, हम इस कानून के लागू होने के बाद राज्य में इसका नतीजा चाहते हैं और यह सुनिश्चित करना सरकार की जिम्मेदारी है। हम आपका पूरा समर्थन करते हैं। साथ ही उन्होंने कहा, आपको यह गारंटी देनी होगी कि यह विधेयक तुरंत लागू होगा।

अपराजिता महिला एवं बाल विधेयक क्या है खास?

पश्चिम बंगाल विधानसभा में पेश हुए अपराजिता महिला एवं बाल विधेयक बिल की तीन प्रमुख बाते हैं, जो दुष्कर्म के दोषियों को कड़ी सजा देने का प्रावधान कर रही हैं।

• किसी महिला का दुष्कर्म करने के बाद अगर उसकी हत्या कर दी जाती है तो ऐसा करने वाले दोषी को मृत्युदंड दिया जाएगा।

• किसी महिला के साथ दुष्कर्म किया गया तो इस अपराध को अंजाम देने वाले दोषी को आजीवन कारावास की सजा दी जाएगी। 

• किसी नाबालिग के साथ दुष्कर्म होता है तो उसके आपराधिक दोषी को 20 साल की कैद और मौत की सजा दोनों का प्रावधान है। 

इस बिल की ये तीन बड़ी बातें हैं, जिसे केंद्र सरकार के कानून में संशोधन के बाद पेश किया गया है। केंद्र सरकार का दुष्कर्म को लेकर जो कानून है, उसमें पूरी तरह से बदलाव नहीं किया जाएगा। मगर इस नए कानून के जरिए 21 दिनों में न्याय सुनिश्चित होगा। अगर 21 दिनों में फैसला नहीं आ पाता है तो पुलिस अधीक्षक की इजाजत से 15 दिन और मिल जाएंगे। यह समवर्ती सूची में है और हर राज्य को संशोधन करने का अधिकार है।

अब राज्यपाल के पास भेजा जाएगा बिल

विधानसभा से बिल पास होने के बाद राज्यपाल के पास भेजा जाएगा, जिनके हस्ताक्षर के बाद ये कानून का रूप लेगा। राज्य का कानून राज्यपाल की मंजूरी से ही बनता है। अगर राज्यपाल की राय इस बिल को कानून में तब्दील करने को लेकर नहीं बन पाती है तो वह इसे राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं। हालांकि, राज्यपाल से मंजूरी लेना ही इसे राज्य में कानून बनाने के लिए पर्याप्त है।

हिमाचल में कर्मचारियों को नहीं मिली सैलरी ना ही पेंशन, जानें क्यों गहराया आर्थिक संकट?

#himachalpradesheconomic_crisis

कांग्रेस शासित हिमाचल प्रदेश भारी आर्थिक संकट में फंस गया है। आर्थिक संकट इतना गहरा गया है कि 2 लाख कर्मचारी सितम्बर महीने में अपनी सैलरी का इंतजार कर रहे हैं। राज्य के पेंशनर भी अपनी पेंशन से वंचित हैं।राज्य के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है, जब सरकारी कर्मचारियों का वेतन महीने की पहली तारीख को नहीं मिला। माना जा रहा है कि कर्मचारियों को वेतन के लिए 5 सितंबर तक का इंतजार करना होगा।केंद्र सरकार से राजस्व घाटा अनुदान के 490 करोड़ रुपए मिलने के बाद ही वेतन और पेंशन का भुगतान होगा।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, हिमाचल प्रदेश के 2 लाख कर्मचारियों और 1.5 लाख पेंशनरों को अगस्त महीने की सैलरी सितम्बर माह के 3 दिन होने के बाद भी नहीं मिली है। सामान्यतः हर महीने की 1 तारीख को आने वाली सैलरी और पेंशन सितम्बर माह में नहीं आई। 1 तारीख को रविवार होने के कारण इसे बैंकिंग व्यवस्था में देरी मानी गई। कर्मचारियों और पेंशनरों को आश्चर्य तब हुआ जब उन्हें 2 तारीख को पैसा भी नहीं मिला, इस दिन सोमवार था और बैंक खुले थे। बताया गया है कि सैलरी और पेंशन में देरी सरकार की आर्थिक स्थिति के कारण हुई है।

आर्थिक संकट पैदा क्यों हो गया है?

हिमाचल प्रदेश में आर्थिक संकट की चर्चा इन दिनों पूरे देश भर में हो रही है। ऐसे में हर किसी के मन में यह सवाल है कि राज्य में ऐसा आर्थिक संकट पैदा क्यों हो गया है? इसके पीछे की वजह देखें, तो रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट में टेपर फॉर्मूला की वजह से राज्य सरकार को नुकसान हो रहा है। इस फॉर्मूले के मुताबिक, केंद्र से मिलने वाली ग्रांट हर महीने कम होती है। इसके अलावा, लोन लिमिट में भी कटौती की गई है। साल 2024-25 में रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट में 1 हजार 800 करोड़ रुपये की कटौती हुई। आने वाले समय में यह परेशानी और भी ज्यादा बढ़ेगी।

ओल्ड पेंशन स्कीम की बहाली भी बनी वजह

आर्थिक हालत खराब होने की एक और वजह ओल्ड पेंशन स्कीम की बहाली भी है। इसकी वजह से नई पेंशन स्कीम के राज्य के कंट्रीब्यूशन के कारण मिलने वाला 2 हजार करोड़ का लोन भी राज्य सरकार को अब नहीं मिल पा रहा है। इसकी वजह से भी राज्य के खजाने पर बोझ आ गया है।

कैसे बिगड़ा बैलेंस?

हिमाचल की बदहाल आर्थिक स्थिति इसके 2024-25 के बजट से समझी जा सकती है। वित्त वर्ष 2024-25 के लिए ₹58,444 करोड़ का बजट सुक्खू सरकार ने पेश किया था। इस बजट में भी सरकार का राजकोषीय घाटा (सरकार की आय और खर्चे के बीच का अंतर, जिसे कर्ज लेकर पूरा किया जाता है) ₹10,784 करोड़ है।

इस बजट का बड़ा हिस्सा तो केवल पुराने कर्जा चुकाने और राज्य के कर्मचारियों की पेंशन और तनख्वाह देने में ही चला जाएगा। इस बजट में से ₹5479 करोड़ का खर्च पुराने कर्ज चुकाने, ₹6270 करोड़ का खर्च पुराने कर्ज का ब्याज देने में करेगी। यानी पुराने कर्जों के ही चक्कर बजट का लगभग 20% हिस्सा चला जाएगा।

इसके अलावा सुक्खू सरकार तनख्वाह और पेंशन पर ₹27,208 करोड़ खर्च करेगी। इस हिसाब से देखा जाए तो ₹38,957 का खर्च तो केवल कर्ज, ब्याज, तनख्वाह और पेंशन पर ही हो आएगा। यह कुल बजट का लगभग 66% है। अगर नए कर्ज को हटा दें तो यह हिमाचल के कुल बजट का 80% तक पहुँच जाता है। यानी राज्य को बाकी खर्चे करने की स्वतंत्रता ही नहीं है।

हिमाचल प्रदेश 2024-25 में लगभग ₹1200 करोड़ सब्सिडी पर भी खर्च करने वाला है। यह धनराशि सामान्य तौर पर छोटी लग सकती है, लेकिन आर्थिक संकट में फंसे हिमाचल के लिए यह भी भारी पड़ रही है। इस सब्सिडी में सबसे बड़ा खर्चा बिजली सब्सिडी का है।

अभी कम नहीं होने वाली है मुश्किलें

बता दें कि हिमाचल प्रदेश में सरकारी कर्मचारियों को हर महीने वेतन देने के लिए राज्य सरकार को 1 हजार 200 करोड़ रुपये खर्च करने पड़ते हैं। इसी तरह पेंशन देने के लिए हर महीने 800 करोड़ रुपये की धनराशि खर्च होती है।कुल-मिलाकर यह खर्च 2 हजार करोड़ रुपये बनता है। वहीं, हिमाचल प्रदेश सरकार के पास इस वित्त वर्ष में दिसंबर तक लोन लिमिट 6 घर 200 करोड़ रुपये है। इनमें से 3 हजार 900 करोड़ रुपये लोन लिया जा चुका है। अब सिर्फ 2 हजार 300 करोड़ की लिमिट बची है। इसी से राज्य सरकार को दिसंबर महीने तक का काम चलाना है।

दिसंबर से लेकर मार्च तक वित्त वर्ष की आखिरी तिमाही के लिए केंद्र से अलग लोन लिमिट सैंक्शन होगी। ऐसे में राज्य सरकार के समक्ष अब सितंबर के बाद अक्टूबर और नवंबर महीने का वेतन और पेंशन देने के लिए भी कठिनाई होगी।

हिमाचल में कर्मचारियों को नहीं मिली सैलरी ना ही पेंशन, जानें क्यों गहराया आर्थिक संकट?*
#himachal_pradesh_economic_crisis
कांग्रेस शासित हिमाचल प्रदेश भारी आर्थिक संकट में फंस गया है। आर्थिक संकट इतना गहरा गया है कि 2 लाख कर्मचारी सितम्बर महीने में अपनी सैलरी का इंतजार कर रहे हैं। राज्य के पेंशनर भी अपनी पेंशन से वंचित हैं।राज्य के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है, जब सरकारी कर्मचारियों का वेतन महीने की पहली तारीख को नहीं मिला। माना जा रहा है कि कर्मचारियों को वेतन के लिए 5 सितंबर तक का इंतजार करना होगा।केंद्र सरकार से राजस्व घाटा अनुदान के 490 करोड़ रुपए मिलने के बाद ही वेतन और पेंशन का भुगतान होगा। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, हिमाचल प्रदेश के 2 लाख कर्मचारियों और 1.5 लाख पेंशनरों को अगस्त महीने की सैलरी सितम्बर माह के 3 दिन होने के बाद भी नहीं मिली है। सामान्यतः हर महीने की 1 तारीख को आने वाली सैलरी और पेंशन सितम्बर माह में नहीं आई। 1 तारीख को रविवार होने के कारण इसे बैंकिंग व्यवस्था में देरी मानी गई। कर्मचारियों और पेंशनरों को आश्चर्य तब हुआ जब उन्हें 2 तारीख को पैसा भी नहीं मिला, इस दिन सोमवार था और बैंक खुले थे। बताया गया है कि सैलरी और पेंशन में देरी सरकार की आर्थिक स्थिति के कारण हुई है। *आर्थिक संकट पैदा क्यों हो गया है?* हिमाचल प्रदेश में आर्थिक संकट की चर्चा इन दिनों पूरे देश भर में हो रही है। ऐसे में हर किसी के मन में यह सवाल है कि राज्य में ऐसा आर्थिक संकट पैदा क्यों हो गया है? इसके पीछे की वजह देखें, तो रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट में टेपर फॉर्मूला की वजह से राज्य सरकार को नुकसान हो रहा है। इस फॉर्मूले के मुताबिक, केंद्र से मिलने वाली ग्रांट हर महीने कम होती है। इसके अलावा, लोन लिमिट में भी कटौती की गई है। साल 2024-25 में रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट में 1 हजार 800 करोड़ रुपये की कटौती हुई। आने वाले समय में यह परेशानी और भी ज्यादा बढ़ेगी। *ओल्ड पेंशन स्कीम की बहाली भी बनी वजह* आर्थिक हालत खराब होने की एक और वजह ओल्ड पेंशन स्कीम की बहाली भी है। इसकी वजह से नई पेंशन स्कीम के राज्य के कंट्रीब्यूशन के कारण मिलने वाला 2 हजार करोड़ का लोन भी राज्य सरकार को अब नहीं मिल पा रहा है। इसकी वजह से भी राज्य के खजाने पर बोझ आ गया है। *कैसे बिगड़ा बैलेंस?* हिमाचल की बदहाल आर्थिक स्थिति इसके 2024-25 के बजट से समझी जा सकती है। वित्त वर्ष 2024-25 के लिए ₹58,444 करोड़ का बजट सुक्खू सरकार ने पेश किया था। इस बजट में भी सरकार का राजकोषीय घाटा (सरकार की आय और खर्चे के बीच का अंतर, जिसे कर्ज लेकर पूरा किया जाता है) ₹10,784 करोड़ है। इस बजट का बड़ा हिस्सा तो केवल पुराने कर्जा चुकाने और राज्य के कर्मचारियों की पेंशन और तनख्वाह देने में ही चला जाएगा। इस बजट में से ₹5479 करोड़ का खर्च पुराने कर्ज चुकाने, ₹6270 करोड़ का खर्च पुराने कर्ज का ब्याज देने में करेगी। यानी पुराने कर्जों के ही चक्कर बजट का लगभग 20% हिस्सा चला जाएगा। इसके अलावा सुक्खू सरकार तनख्वाह और पेंशन पर ₹27,208 करोड़ खर्च करेगी। इस हिसाब से देखा जाए तो ₹38,957 का खर्च तो केवल कर्ज, ब्याज, तनख्वाह और पेंशन पर ही हो आएगा। यह कुल बजट का लगभग 66% है। अगर नए कर्ज को हटा दें तो यह हिमाचल के कुल बजट का 80% तक पहुँच जाता है। यानी राज्य को बाकी खर्चे करने की स्वतंत्रता ही नहीं है। हिमाचल प्रदेश 2024-25 में लगभग ₹1200 करोड़ सब्सिडी पर भी खर्च करने वाला है। यह धनराशि सामान्य तौर पर छोटी लग सकती है, लेकिन आर्थिक संकट में फंसे हिमाचल के लिए यह भी भारी पड़ रही है। इस सब्सिडी में सबसे बड़ा खर्चा बिजली सब्सिडी का है। *अभी कम नहीं होने वाली है मुश्किलें* बता दें कि हिमाचल प्रदेश में सरकारी कर्मचारियों को हर महीने वेतन देने के लिए राज्य सरकार को 1 हजार 200 करोड़ रुपये खर्च करने पड़ते हैं। इसी तरह पेंशन देने के लिए हर महीने 800 करोड़ रुपये की धनराशि खर्च होती है।कुल-मिलाकर यह खर्च 2 हजार करोड़ रुपये बनता है। वहीं, हिमाचल प्रदेश सरकार के पास इस वित्त वर्ष में दिसंबर तक लोन लिमिट 6 घर 200 करोड़ रुपये है। इनमें से 3 हजार 900 करोड़ रुपये लोन लिया जा चुका है। अब सिर्फ 2 हजार 300 करोड़ की लिमिट बची है। इसी से राज्य सरकार को दिसंबर महीने तक का काम चलाना है। दिसंबर से लेकर मार्च तक वित्त वर्ष की आखिरी तिमाही के लिए केंद्र से अलग लोन लिमिट सैंक्शन होगी। ऐसे में राज्य सरकार के समक्ष अब सितंबर के बाद अक्टूबर और नवंबर महीने का वेतन और पेंशन देने के लिए भी कठिनाई होगी।
ममता बनर्जी सरकार विधानसभा में आज पेश करेगी एंटी रेप बिल, रेपिस्ट के लिए फांसी की सजा का है प्रावधान*
#cm_mamata_banerjee_vidhansabha_aprajita_bill_2024
कोलकाता के आरजी कर रेप-मर्डर केस को लेकर पश्चिम बंगाल सरकार एंटी रेप बिल ला रही है। सरकार ने इसे अपराजिता महिला एवं बाल विधेयक, (पश्चिम बंगाल आपराधिक कानून एवं संशोधन) विधेयक 2024 नाम दिया है। बिल को पारित करने के लिए सोमवार को दो दिन का विधानसभा का स्पेशल सत्र बुलाया गया। इसमें रेपिस्ट के लिए फांसी या फिर मरने तक जेल का प्रावधान किया है।वहीं इस बिल पर राजनीति शुरू हो गई है। बीजेपी ने सवाल उठाए हैं कि अब ममता सरकार हमदर्दी पाने के लिए यह बिल ला रही है। पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में मौजूद आरजी कर मेडिकल कॉलेज में 9 अगस्त को जूनियर डॉक्टर के साथ रेप हुआ और हत्या कर दी गई, जिसके बाद राज्य में इस समय सड़कों पर लोग इंसाफ की गुहार लगा रहे हैं। कोलकाता के लाल बाजार में सड़कों पर जूनियर डॉक्टर धरना कर रहे हैं और कोलकाता की निर्भया के लिए न सिर्फ न्याय की मांग कर रहे हैं, बल्कि महिलाओं की सुरक्षा को लेकर भी सवाल उठाए जा रहे हैं।कोलकाता रेप केस के लिए न सिर्फ राज्य बल्कि पूरे देश में आवाज उठाई जा रही है, जिसके चलते ही सीएम ममता बनर्जी ने एंटी रेप बिल लाने का ऐलान किया था। इस बिल को आज विधानसभा में पेश किया जाएगा। इस बिल के अंदर क्या-क्या होगा 1. रेप, हत्या के केस में फांसी का प्रावधान। 2. इस बिल के अंदर चार्जशीट दायर करने के 36 दिन के अंदर मौत की सजा का होगा प्रावधान होगा। 3. न सिर्फ रेप बल्कि एसिड अटैक भी उतना ही गंभीर अपराध है, जिसके लिए भी इस बिल में आजीवन कारावास की सजा देने का प्रावधान है। 4. हर जिले में स्पेशल फोर्स-अपराजिता टास्क फोर्स बनाई जाएगी। 5. यह अपराजिता टास्क फोर्स-रेप, एसिड अटैक या छेड़छाड़ के मामलों में कार्रवाई करेगी। 6. इस बिल में एक और काफी अहम चीज जोड़ी गई है, वो है कि अगर किसी ने पीड़िता की पहचान उजागर की तो उसके खिलाफ भी कड़ी कार्रवाई की जाएगी। बीजेपी ने विधेयक के औचित्य पर उठाया सवाल हालांकि, विपक्षी दलों और कानूनी विशेषज्ञों ने प्रस्तावित विधेयक के औचित्य पर सवाल उठाए हैं, क्योंकि देश में पहले से ही बलात्कार विरोधी मजबूत कानून मौजूद हैं। केंद्रीय मंत्री शांतनु ठाकुर ने इस मामले में कहा, 'राज्य सरकार पहले ऐसा कानून क्यों नहीं लाई? अब यह विधेयक मुख्य मुद्दे को छिपाने के लिए लाया जा रहा है। वे सहानुभूति हासिल करने के लिए इस विधेयक को लाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन यह सब नहीं चलेगा। हम विरोध जारी रखेंगे... '
कश्मीर में आतंकियों के पास पहली बार मिली Steyer AUG राइफल, सुरक्षा एजेंसियां भी दंग, जानें कितनी खतरनाक?

डेस्क: जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा जिले के केरन सेक्टर में गुरुवार ( 18 जुलाई) को मुठभेड़ में मारे गए आतंकियों के पास से सेना के जवानों द्वारा ऑस्ट्रिया में बनी स्टेयर एयूजी असॉल्ट राइफल बरामद की गई है. स्टेयर एयूजी असॉल्ट राइफल बरामद होने से सुरक्षा एजेंसियां चिंतित हैं. जानकारी के अनुसार, मारे गए आतंकवादियों के पास से हथियार और गोला-बारूद, युद्ध जैसे सामान और एक पाकिस्तानी पहचान पत्र बरामद किया गया.सूत्रों ने बताया कि बरामद की गई वस्तुओं में स्टेयर एयूजी भी शामिल है. आतंकवादी पहले से ही अमेरिका निर्मित एम-4 कार्बाइन राइफलों का उपयोग कर रहे हैं. सुरक्षा बलों ने जम्मू क्षेत्र और कश्मीर दोनों में मारे गए आतंकवादियों से इसे बरामद भी किया था. एक सुरक्षा अधिकारी ने कहा, "एम-4 का इस्तेमाल ज्यादातर शीर्ष कमांडरों और जम्मू-कश्मीर में सक्रिय पाकिस्तानी आतंकवादियों द्वारा किया जाता है." उन्होंने बताया कि ये राइफलें काफी ज्यादा एडवांस हैं और इनमें रात में देखने वाले उपकरण होते हैं. पूर्व जम्मू-कश्मीर पुलिस प्रमुख एसपी वैद ने कहा, 'पाकिस्तान की आईएसआई को नार्को व्यापार के माध्यम से बहुत पैसा मिलता है. वे इसका इस्तेमाल जम्मू-कश्मीर में इस्तेमाल के लिए हथियार खरीदने के लिए कर रहे हैं.' बता दें कि गुरुवार को कुपवाड़ा के केरन सेक्टर में सेना ने दो आतंकवादियों को मार गिराया था. सेना ने आतंकियों की घुसपैठ की कोशिश को सफलतापूर्वक नाकाम कर दिया दिया था. जानें क्यों खतरनाक है स्टेयर एयूजी स्टेयर एयूजी को एक मॉड्यूलर हथियार प्रणाली के रूप में डिजाइन किया गया है जिसे जल्दी से एक असॉल्ट राइफल, एक कार्बाइन, एक सबमशीन गन और एक ओपन-बोल्ट लाइट मशीन गन के रूप में कॉन्फ़िगर किया जा सकता है.
अरब सागर में हादसे का शिकार हुआ कोस्ट गार्ड का हेलीकॉप्टर, क्रू के एक सदस्य को बचाया गया, तीन लापता*
#indian_coast_guard_helicopter_emergency_landing_at_sea_search_on_for_3_crew

भारतीय तटरक्षक बल के एक हेलीकॉप्टर को समुद्र में इमरजेंसी लैंडिंग करनी पड़ी है।इस घटना में हेलीकॉप्टर पर सवार चार लोगों में तीन लापता बताए जा रहे हैं, जिनकी तलाश जारी है। वहीं क्रू के एक सदस्य को बचा लिया गया है। तटरक्षक बल ने जानकारी दी है कि 02 सितम्बर 2024 को रात 11 बजे गुजरात के पोरबंदर में मोटर टैंकर हरि लीला से एक घायल चालक दल के सदस्य को निकालने के लिए एएलएच हेलीकॉप्टर को भेजा गया था। यह कार्रवाई गुजरात के पोरबंदर तट से करीब 45 किलोमीटर दूर की गई। तटरक्षक बल ने बताया कि मोटर टैंकर हरि लीला के मालिक के अनुरोध पर यह कार्रवाई की गई थी। तटरक्षक बल के दल में चार लोग सवार थे। कथित तौर पर अभियान के दौरान हेलीकॉप्टर को अरब सागर में ही आपात लैंडिंग करनी पड़ी। इंडियान कोस्ट गार्ड ने ट्वीट कर के जानकारी दी है कि यह घटना तब हुई जब हेलीकॉप्टर निकासी के लिए जहाज के पास आ रहा था। आपातकालीन लैंडिंग करने वाले हेलीकॉप्टर के चालक दल के एक सदस्य को खोज लिया गया है। वहीं, 3 अन्य सदस्यों की तलाश जारी है।रेस्क्यू टीम को हेलीकॉप्टर का मलबा मिल गया है। इंडियान कोस्ट गार्ड ने बचाव अभियान के लिए 04 जहाज और 02 विमान तैनात किए हैं।