तकनीक के युग में बदले युद्ध के तरीके, क्या सैनिकों की जगह हथियारों से लैस ड्रोन लड़ेंगे युद्ध?
#drone_are_the_weapons_of_the_future
आज यूरोप और मिडिल ईस्ट में संघर्ष की हालात है। एक तरफ रूस-यूक्रेन करीब ढाई साल से युद्ध लड़ रहे हैं तो दूसरी तरफ इजराइल-हमास के बीच जंग जारी है। संघर्षों पर ध्यान दें तो अधिकतर हमलों में ड्रोन का इस्तेमाल किया जा रहा है।बीते कुछ महीनों में यूक्रेन ने रूस के भीतर लंबी दूरी तक हमले बढ़ा दिए हैं, वो सप्ताह में कई बार ड्रोन का इस्तेमाल कर रणनीतिक तौर पर अहम ठिकानों पर हमले कर रहा है। वो रूसी वायु सेना के ठिकानों, तेल और हथियारों के डिपो और उसके कमांड सेंटर्स को निशाना बना रहा है।यूक्रेनी कंपनियां अब सैकड़ों वन-वे (एक बार इस्तेमाल होने वाले) ड्रोन का उत्पादन कर रही हैं। यूक्रेन के एक टॉप कमांडर ने दावा किया है कि जंग की शुरुआत से लेकर अब तक रूस 14 हज़ार ड्रोन का इस्तेमाल कर चुका है।
वहीं दूसरी तरफ लगातार हमास और हिज्बुल्ला आतंकियों के ठिकानों पर ड्रोन से हमला कर रहा है। एक ड्रोन निगरानी और जासूसी करता है, तो दूसरे से हमला हो जाता है। कई बार तो एक ही ड्रोन से ये दोनों काम कर दिए जाते हैं। जिस ड्रोन से इजरायल ने निगरानी की. हमास आतंकियों की सुरंगों का पता लगाया, उसका नाम है एलबिट हर्मेस 450 (Elbit Hermes 450) ड्रोन। यह मीडियम साइज मल्टी पेलोड अनमैन्ड एरियल व्हीकल है। इसे लंबे समय वाले टैक्टिकल मिशन के लिए ही बनाया गया है। यह एक बार में कम से कम 20 घंटे तक उड़ान भर सकता है।
इन दोनों युद्दों पर गौर करें तो दुश्मन को नज़र आए बिना छिपकर वार करना अब युद्ध का यही तरीका बनता जा रहा है। ड्रोन, एक मानव रहित हथियार है। जिसके जरिए दुश्मन की जमीन पर कदम रखे बिना उसे ज्यादा से ज्यादा नुकसान पहुंचाया जा सकता है। ड्रोन में इलेक्ट्रोऑप्टिकल, इंफ्रारेड सेंसर्स लगे हैं। जिनकी मदद से ये कम्यूनिकेशन और इलेक्ट्रॉनिक इंटेलिजेंस, सिंथेटिक अपर्चर राडार, ग्राउंड मूविंग टारगेट इंडीकेशन, इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर या हाइपरस्पेक्ट्रल सेंसर्स का इस्तेमाल करता है। ये ऐसी तकनीक हैं, जिनसे दुश्मन पाताल के अंदर कहीं भी छिपा हो, उसे ये खोज निकलते हैं।
वैसे ड्रोनों के इस्तेमाल का ये तरीका नया नहीं है। हां कह सकते हैं कि हाल के दशकों में इसी तरीके से जंग लड़े जा रहे हैं। 2019 में हूती लड़ाकों के ठिकानों से उड़े इन ड्रोन्स ने 1500 किलोमीटर दूर जाकर साउदी अरब में हमला किया। साउदी अरब की क्रूड ऑयल प्रोसेस करने वाले अबैकक पर हुए हमले में उन्हें पूरी तरह से तहस नहस कर डाला, लेकिन साउदी अरब का डिफेंस सिस्टम इन्हें डिटेक्ट नहीं कर सका। सउदी अरब में अमेरिकी पैट्रिओट -3 एयर डिफेंस सिस्टम लगा है, जो इन ड्रोन्स को डिटेक्ट करने में फेल हो गया। 2018 में भी हूती ने अबु धाबी एयरपोर्ट पर 3 हमले किए थे, इन हमलों में भी ड्रोन ही थे।
6 जनवरी 2018 को सीरीया पर इसी तरह का हमला हुआ , जो दूनिया का पहला ऐसा हमला था। जब अज्ञात जगह से आए हथियारों से लोडेड 13 ड्रोन्स ने सीरीया के हेमेमिन एयरबेस और टार्टस नवल बेस पर हमला किया था। इसके तीन महीने बाद रूस को भी ऐसे हमलों का सामना करना पड़ा था। एक के बाद एक तीन हमले, अप्रैल उसके बाद जून फिर अगस्त। इन हमलों में रूस ने कुल 47 ड्रोन्स को मार गिराया था।
2018 के अगस्त में वेनेजुएला के राष्ट्रपति निकोलस मदुरो पर भी जो हमला हुआ, वो हथियारों से लैस ड्रोन से ही था। हालांकि राष्ट्रपति इस हमले में बच गए, लेकिन हथियार के तौर पर ड्रोन का इस्तोमाल किए जाने का खतरा बढ़ने की आशंका जतायी जाने लगी थी। जिसके बाद दुनिया के बड़े नेताओं की सुरक्षा में ड्रोन गन और बजूका जैसी बंदूकें शामिल की गई हैं। जो ड्रोन के हमले को पहले से ही मार गिराए।
युद्ध में इनका इस्तेमाल करने की शुरूआत सीआईए ने की, जब 2001 में तालीबान को निशाना बनाया गया। इसके बाद 15 सालों का कैंपन शुरू हुआ, जिसके बाद अफगानिस्तान और पाकिस्तान के इलाके में 400 से भी ज्यादा हमले हुए।
अमेरिका में ड्रोन का सालों से इस्तेमाल होता आ रहा है। ये बात भी किसी से छिपी नहीं है कि अमेरिका ड्रोन के जरिए सालों तक ओसामा बिन लादेन पर निगाहें बनाये हुए था और इसी सर्विलांस के जरिए 2011 में उसे मार गिराने में कामयाब रहा। ठीक इसी तरह अमेरिका ने 2015 में ड्रोन हमले में आईएसआईएस के आतंकी जिहादी जाॅन का भी काम तमाम किया था।
ये हमलावर ड्रोन शुरूआत में अमेरिका और इजराइल जेसै देशों के पास थे, जो तकनीक के मामले में आगे थे। बाद में चीन भी इसमें शामिल हो गया। चीन एक ऐसा देश है, जो अपने हथियार दूसरे देशों को बेचने की इच्छा रखता है। चीन ने अपने यहां बने ड्रोन्स को कई दूसरे देशों में बेचना शुरू किया और अब इस ड्रोन्स को तकनीक बदलकर हमलावर और आत्मधाती बनाया जा रहा है
ये ड्रोन्स ना केवल बहुत सस्ते हैं, बल्कि इनका रखरखाव भी आसान है। हथियारों से लोड दर्जन भर ड्रोन्स पर महज 1.5 लाख के करीब डॉलर खर्च कर अरबों का नुकसान किया जा सकता है।
दुश्मनों तो खाक में मिलाना हो तो ड्रोन्स अच्छे विकल्प साबित हो रहे हैं...पहले दुश्मनों की खुफिया जानकारी जुटाओ...फिर उन्हें मिट्टी में मिलाओं...इसका सबसे अच्छा उदाहरण ईरान है...जिसने ड्रोन की अत्याधुनिक तकनीक यमन के हूती विद्रोहियों को ट्रांसफर किया है....
Sep 02 2024, 10:13