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कई देशों में एचआईवी संक्रमण के मामले विशेषज्ञों के लिए गंभीर चिंता बढ़ा रही हैं
ह्यूमन इम्यूनो डेफिशियेंसी वायरस (एचआईवी) का संक्रमण एड्स रोग का कारण बनता है। चिकित्सा में आधुनिकता के चलते अब ये बीमारी लाइलाज तो नहीं रही है फिर भी वैश्विक स्तर पर मृत्यु के प्रमुख कारणों में बनी हुई है। कई देशों में एचआईवी संक्रमण के मामले विशेषज्ञों के लिए गंभीर चिंता बढ़ा रहे हैं। हालिया रिपोर्ट्स के मुताबिक फिजी में पिछले कुछ ही महीनों में बड़ी संख्या में लोगों को एचआईवी का शिकार पाया गया है। 

फिजी के स्वास्थ्य मंत्रालय ने चौंकाने वाले आंकड़े जारी करते हुए बताया कि इस साल के पहले छह महीनों में देश में एचआईवी के 552 नए मामले दर्ज किए गए हैं। इसके अलावा 13 संक्रमितों की मौत भी हो गई है। आंकड़ों के मुताबिक छह महीनों में रिपोर्ट किए गए नए मामले, पिछले वर्ष 2023 में दर्ज कुल केस से 33% अधिक हैं। 73 प्रतिशत संक्रमितों की उम्र 39 वर्ष से कम है। इसके अलावा नौ प्रतिशत केस 15 से 19 वर्ष की आयु वालों में हैं।

त्रिपुरा में सामने आए थे 800 से अधिक केस

इसी साल जुलाई में भारत में भी एचआईवी संक्रमण ने स्वास्थ्य विशेषज्ञों की चिंता बढ़ा दी थी। त्रिपुरा के स्कूल में बड़ी संख्या में छात्र संक्रमित पाए गए थे। जुलाई के शुरुआती हफ्तों में त्रिपुरा राज्य एड्स नियंत्रण सोसाइटी (टीएसएसीएस) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि राज्य में एचआईवी से 47 छात्रों की मौत हो गई है और 828 छात्र एचआईवी पॉजिटिव पाए गए हैं। कई छात्र देशभर के प्रतिष्ठित संस्थानों में उच्च शिक्षा के लिए त्रिपुरा से बाहर भी चले गए हैं।

त्रिपुरा एड्स नियंत्रण सोसाइटी ने 220 स्कूलों, 24 कॉलेजों और कुछ विश्वविद्यालयों के छात्रों की पहचान की है जो इंजेक्शन के जरिए नशीली दवाओं का सेवन करते हैं। संक्रमण के बढ़ते मामलों के लिए इसे प्रमुख कारण माना जा रहा था।

कैसे फैलता है ये संक्रमण?'

एचआईवी संक्रमण कई कारणों से हो सकता है इसमें असुरक्षित यौन संबंध, दूषित सुई या सिरिंज के इस्तेमाल या संक्रमित व्यक्ति के खून के माध्यम से एक से दूसरे को संक्रमण होना शामिल है। एचआईवी के कारण शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली इतनी कमजोर हो जाती है जिससे अन्य संक्रामक बीमारियों का खतरा भी काफी बढ़ जाता है। कुछ महीनों या वर्षों तक बने रहने वाले एचआईवी संक्रमण के कारण एड्स रोग हो सकता है।

बचाव के उपाय जरूरी

एचआईवी/एड्स का कोई विशिष्ट इलाज नहीं है, लेकिन कुछ दवाइयों से संक्रमण को नियंत्रित किया जा सकता है। एचआईवी के लिए एंटीवायरल उपचारों ने दुनिया भर में एड्स से होने वाली मौतों को कम किया है। कुछ प्रभावी दवाओं पर अब भी ट्रायल चल रहा है।

स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, सभी लोगों को संक्रमण के जोखिमों को लेकर अलर्ट रहने और बचाव को लेकर लगातार प्रयास करते रहने की आवश्यकता है। संक्रमण से बचाव के लिए जरूरी है कि आप सुरक्षित यौन संबंध बनाएं, सुनिश्चित करें कि इंजेक्शन के लिए हर बार साफ और नई सिरिंज का इस्तेमाल करें।

नोट: हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।
कर्नाटक की धरती पर ऐसे कई प्रसिद्ध और पवित्र कृष्ण मंदिर हैं ,इन मंदिरों का दर्शन मात्र से भक्तों के बिगड़े काम बन जाते हैं


बेंगलुरु कर्नाटक का एक खूबसूरत और प्रमुख शहर है। इस शहर की मेहमान नवाजी लोगों को इस कदर भाती है कि यहां हर दिन हजारों लोग घूमने के लिए पहुंचते हैं।बेंगलुरु सिर्फ अपनी खूबसूरती के लिए ही नहीं, बल्कि कई ऐतिहासिक स्थलों के साथ-साथ कई प्राचीन और विश्व प्रसिद्ध मंदिरों के लिए भी जाना जाता है। यहां आपको कई शिव, लक्ष्मी, सूर्य और विष्णु आदि भगवान के प्रसिद्ध मंदिर मिल जाएंगे।

कर्नाटक की धरती पर ऐसे कई प्रसिद्ध और पवित्र कृष्ण मंदिर भी मौजूद हैं, जिनका दर्शन करने देश के हर कोने से भक्त पहुंचते हैं। इन मंदिरों का दर्शन मात्र से भक्तों के बिगड़े काम बन जाते हैं।

श्री गोवर्धन रॉक मंदिर बेंगलुरु में स्थित सबसे प्रसिद्ध और प्राचीन कृष्ण मंदिर का जिक्र होता है, तो कई लोग सबसे पहले श्री गोवर्धन रॉक मंदिर का ही नाम लेते हैं। यहां मंदिर पूर्ण रूप भगवान कृष्ण को समर्पित है, जिसमें गोवर्धन का दृश्य दिखाया गया है।

श्री गोवर्धन मंदिर एक प्राचीन गुफा के अंदर मौजूद है। मंदिर में स्थापित मूर्ति तक पहुंचने के लिए एक सुरंग से होकर गुजरना पड़ता है। गुफा की दीवारों पर महाभारत के दृश्यों को दर्शाया गया है, जो भक्तों को खूब आकर्षित करता है। भगवान कृष्ण यहां अपनी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाए दिखाई देंगे। जन्माष्टमी के मौके पर यहां शहर के कोने से भक्त दर्शन के लिए पहुंचते हैं।

इस्कॉन टेम्पल, राजाजीनगर बेंगलुरु के सबसे पप्रसिद्ध और भव्य कृष्ण मंदिर का जिक्र होता है, तो कई लोग इस्कॉन टेम्पल का नाम जरूर लेते हैं। यह पवित्र मंदिर बेंगलुरु के राजाजीनगर में मौजूद है, जहां हर समय भक्तों की भीड़ मौजूद रहती हैं।

इस्कॉन टेम्पल में भगवान कृष्ण राधा के साथ विराजमान है। इस मंदिर परिसर में कृष्ण के अलावा नित्यानंद, चैतन्य महाप्रभु और वेंकटेश्वर आदि के मंदिर हैं। द्रविड़ शैली में निर्मित इस मंदिर की वास्तुकला भी सैलानियों को खूब आकर्षित करती है। जन्माष्टमी के खास मौके पर यहां देश के हर कोने से भक्त अपनी फरियाद लेकर पहुंचते हैं।

राम और राधा कृष्ण मंदिर बेंगलुरु की धरती पर मौजूद राम और राधा कृष्ण मंदिर एक ऐसा मंदिर है, जहां भगवान कृष्ण भगवान राम के साथ विराजमान है। इस मंदिर में भगवान कृष्ण और भगवान राम के विराजमान होने के चलते इस मंदिर को देश का एक अनोखा मंदिर भी माना जाता है।

राम और राधा कृष्ण मंदिर परिसर में भगवान हनुमान और कृष्ण के भाई बलराम की मूर्ति भी मौजूद हैं। इस मंदिर में शाम को होने वाला कीर्तन भक्तों को खूब लुभाता है। जन्माष्टमी के मौके पर यहां कीर्तन का एक अलग ही रूप देखने को मिलता है। इस मंदिर की वास्तुकला भी भक्तों को आकर्षित करती है।

श्री कृष्ण मंदिर, इंदिरानगर बेंगलुरु के इंदिरानगर इलाके में मौजूद श्री कृष्ण मंदिर शहर का एक प्रसिद्ध और पवित्र कृष्ण मंदिर माना जाता है। शहर के बीच में मौजूद होने के चलते यहां हर समय भक्तों की भीड़ मौजूद रहती हैं।(रहस्यमयी कृष्ण मंदिर)

श्री कृष्ण मंदिर को जन्माष्टमी के मौके पर लाइटों से सजा दिया जाता है। जन्माष्टमी के मौके पर यहां शहर के हर कोने से भक्त दर्शन के लिए पहुंचते हैं। कहा जाता है कि यहां जो भी सच्चे मन से पहुंचता है, उसकी सभी मुरादें पूरी हो जाती हैं।

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दक्षिण भारत का एक ऐसा कृष्ण मंदिर जहां खिड़की से होता है भगवान का दर्शन

जन्माष्टमी का पावन पर्व आने में बच कुछ ही दिन बचे हुए हैं। जी हां, इस साल 26 अगस्त को पूरे देश में जन्माष्टमी का महापर्व मनाया जाएगा।

जन्माष्टमी के मौके पर कई लोग देश के अलग-अलग राज्यों में स्थित पवित्र और प्रसिद्ध कृष्ण मंदिरों का दर्शन करने पहुंचते रहते हैं। खासकर, वृन्दावन और द्वाराका में लाखों की संख्या में भक्त पहुंचते हैं।

दक्षिण भारत के कर्नाटक में भी एक ऐसा कृष्ण मंदिर है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यहां भगवान श्रीकृष्ण को खिड़की के माध्यम से दर्शन किया जाता है।

कर्नाटक में स्थित कृष्ण मंदिर की पौराणिक कथा जानने से पहले आपको यह बता दें कि यह पवित्र मंदिर कर्नाटक के उडुपी में मौजूद है, जिसे कई लोग उडुपी श्रीकृष्ण मंदिर के नाम से भी जानते हैं। आपको बता दें कि उडुपी श्रीकृष्ण मंदिर कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु से करीब 444 किमी दूर है। इसके अलावा, कर्नाटक से मंगलूरु इस इस मंदिर की दूरी सिर्फ 56 किमी है।

उडुपी श्रीकृष्ण मंदिर का इतिहास

उडुपी श्रीकृष्ण मंदिर कर्नाटक के साथ-साथ पूरे दक्षिण भारत के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक माना जाता है। इस मंदिर का दर्शन करने देश के हर कोने से भक्त पहुंचते रहते हैं

उडुपी श्रीकृष्ण मंदिर का इतिहास

उडुपी श्रीकृष्ण मंदिर का इतिहास करीब 1000 साल पुराना माना जाता है। कई लोगों का मानना है कि इस भव्य मंदिर की स्थापना 13वीं शताब्दी में वैष्‍णव संत श्री माधवाचार्य द्वारा की गई थी।

उडुपी श्रीकृष्ण मंदिर की पौराणिक कथा

उडुपी श्रीकृष्ण मंदिर की पौराणिक कथा काफी दिलचस्प है। किंवदंती के अनुसार के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के एक परम भक्त थे, जिन्हें मूर्ति दर्शन नहीं करने दिया जाता था।

जब भक्त को मूर्ति का दर्शन नहीं करने दिया जा रहा था, तब भक्त ने मंदिर के बाहर प्रार्थना करने लगे। इस भक्ति से खुश होकर भगवान श्रकृष्ण ने दीवार में एक छेद बना दिया, जिसके द्वारा भक्त हर रोज मूर्ति का दर्शन करता था। बाद में जिस स्थान पर छेद था उस स्थान पर खिड़की बना दिया गया। उडुपी श्रीकृष्ण मंदिर का महत्व

उडुपी श्रीकृष्ण मंदिर को उडुपी श्रीकृष्ण मठ मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर स्थानीय लोगों के साथ-साथ देश के अन्य राज्यों में मौजूद भक्तों के लिए भी बेहद खास है।

इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि मूर्ति के सामने एक दीपक है, जो पिछले 700 वर्षों से जल रहा है। जन्माष्टमी के मौके पर यहां देश के हर कोने से भक्त दर्शन के लिए पहुंचते हैं। कहा जाता है कि यहां जो भी सच्चे मन से दर्शन करने पहुंचता है उसकी सभी मुरादें पूरी हो जाती हैं।

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कोरोना के बाद अब मंकीपॉक्स ने लोगों को डराना शुरू कर दिया,who ने किया अलर्ट जारी

डेस्क: दुनिया के कई देश इन दिनों खतरनाक मंकीपॉक्स संक्रमण की चपेट में हैं। कई अफ्रीकी देशों में बढ़ते संक्रमण के खतरे को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने इसे ग्लोबल हेल्थ इमरजेंसी घोषित किया था। अब इस रोग के मामले एशियाई देशों में भी देखे जा रहे हैं।

हालिया रिपोर्ट के मुताबिक पड़ोसी देश पाकिस्तान में एमपॉक्स के मामले की पुष्टि की गई है। पाकिस्तान में ये इस साल का पहला मामला है। स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक हाल ही में 34 वर्षीय व्यक्ति सऊदी अरब से लौटा था। परीक्षण में उसका रिपोर्ट पॉजिटिव आया है। इससे पहले पिछले साल पाकिस्तान में तीन लोगों में संक्रमण के मामले सामने आए थे। पाकिस्तान के अलावा स्वीडन में भी गुरुवार को संक्रमण का पहला केस दर्ज किया गया है। कई देशों में बढ़ते एमपॉक्स के खतरे को देखते हुए चीन सरकार भी अलर्ट हो गई है। चीनी कस्टम प्रशासन की ओर से बयान जारी करके बताया गया है कि अगले छह महीनों तक देश में प्रवेश करने वाले व्यक्तियों में एमपॉक्स की निगरानी की जाएगी। गौरतलब है कि पिछले साल चीन में मंकीपॉक्स संक्रमण के मामले बढ़े थे, जिसको लेकर डब्ल्यूएचओ ने चिंता जाहिर की थी।

कई देशों में बढ़ रहे हैं मामले

विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार इस साल अब तक अफ्रीकी देशों में 14,000 से ज्यादा मामले और 524 मौतें दर्ज की गई हैं, जो पिछले साल के आंकड़ों से कहीं ज्यादा हैं। इनमें से 96% से ज्यादा मामले और मौतें अकेले कांगो में हुई हैं।

डब्ल्यूएचओ द्वारा विश्व स्वास्थ्य आपातकाल घोषित किए जाने के अगले ही दिन स्वीडन में पहला मामला सामने आया है। संक्रमित व्यक्ति ने हाल ही में अफ्रीका की यात्रा की थी और स्टॉकहोम लौटने पर उसमें संक्रमण की पुष्टि की गई है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने सभी लोगों को एमपॉक्स के खतरे को लेकर सावधानी बरतते रहने की सलाह दी है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने किया अलर्ट

अफ्रीका सहित कई देशों में बढ़ते संक्रामक रोग के खतरे को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चेतावनी जारी की है। अधिकारियों ने कहा, मंकीपॉक्स का खतरा अब अफ्रीका के बाहर बढ़ता हुआ भी देखा जा रहा है। कांगों में इस खतरनाक संक्रमण के कारण सैकड़ों मौतें हो चुकी हैं। हम स्वीडन और अन्य देशों के साथ चर्चा कर रहा है कि इन मामलों को किस तरह से प्रबंधित किया जा सकता है।

आने वाले हफ्तों में यात्रा से संबंधित मामलों के और बढ़ने की आशंका है। सभी लोगों को अलर्ट रहने की आवश्यकता है, हालांकि यात्रा को प्रतिबंधित करना या सीमा बंद करने की आवश्यकता नहीं है।

भारत को भी सावधान रहने की सलाह

स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, मंकीपॉक्स को लेकर भारत को भी सावधान हो जाने की जरूरत है। पड़ोसी देश पाकिस्तान में संक्रमण रिपोर्ट किए जाने के बाद खतरा और भी बढ़ गया है। कोरोना के दौरान जुलाई 2022 में भारत में पहली बार मंकीपॉक्स का मामला सामने आया था। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक 2023 में जुलाई के अंत तक, देश में मंकीपॉक्स बीमारी के कुल 27 मामले सामने आए, जिनमें केरल से 12 मामले थे। इस साल अब तक मंकीपॉक्स का कोई मामला सामने नहीं आया है। कैसे फैलता है ये संक्रामक रोग?

एमपॉक्स या मंकीपॉक्स एक अति संक्रामक रोग है। इसमें त्वचा पर बड़े-बड़े छाले होने का साथ लिम्फ नोड्स में सूजन और बुखार की समस्या हो सकती है। संक्रमित जानवर या वायरस से संक्रमित व्यक्ति के निकट संपर्क में आने से एमपॉक्स फैलता है। संक्रमित व्यक्ति के घाव, खांसने-छीकनें से निकलने वाली ड्रॉपलेट्ल या अन्य तरल पदार्थों के संपर्क में आने से एक से दूसरे व्यक्ति में संक्रमण हो सकता है। नोट: हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।
अगर आप भी खून की कमी यानी एनीमिया की शिकायत से हैं पीड़ित  तो दवाओं व खानपान के जरिए इस रोग का इलाज करने के साथ योग का ले सहारा

एनीमिया एक ऐसी स्थिति है जिसमें शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं (RBC) या हीमोग्लोबिन की कमी हो जाती है। एनीमिया के कारण शरीर के ऊतकों और अंगों को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाती, जिससे कमजोरी और थकान जैसी समस्याएं हो सकती हैं। एनीमिया आयरन की कमी, विटामिन बी12 और फोलिक एसिड की कमी, अत्यधिक रक्तस्त्राव, क्रॉनिक डिजीज जैसे, कैंसर और अल्प उत्पादन के कारण हो सकती है।

योग शरीर और मस्तिष्क को स्वस्थ रखने का एक अच्छा जरिया है। योग के माध्यम से कई रोगों से बचाव किया जा सकता है, तो वहीं किसी बीमारियों के जड़ से इलाज में भी योग क्रियाएं असरदार है। अगर आप भी खून की कमी यानी एनीमिया की शिकायत से पीड़ित हैं तो दवाओं व खानपान के जरिए इस रोग का इलाज करने के साथ ही जड़ से एनीमिया को खत्म करने के लिए योग का सहारा ले सकते हैं। यहां कुछ ऐसे योगासनों के बारे में बताया जा रहा है, जो एनीमिया के रोगियों के लिए फायदेमंद हैं।

कपालभाति
कपालभाति के पेट की चर्बी तेजी से कम करने में असरदार योग क्रिया है। इस आसन से मोटापा कम हो सकता है। इसके अलावा रक्त की समस्याएं भी तेजी से दूर हो सकती हैं। एनीमिया रोगियों के लिए कपालभाति का नियमित अभ्यास लाभकारी है।

सर्वांगासन
सर्वांगासन योग शरीर के हर हिस्से के लिए फायदेमंद होता है। इस आसन के नियमित अभ्यास से रक्त शरीर के निचले हिस्से और निचले हिस्से का रक्त शरीर के ऊपरी हिस्से में आसानी से पहुंचता है। सर्वांगासन ब्लड सर्कुलेशन के लिए फायदेमंद है।

प्राणायाम
खून की कमी को दूर करने के लिए प्राणायाम का अभ्यास कर सकते हैं। इसमें सूर्यभेद प्राणायाम, अनुलोम-विलोम प्राणायाम का अभ्यास असरदार है। ये प्राणायाम शरीर में रक्त के विकार तेजी से दूर करते हैं।

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अंगदान को यूं ही नहीं कहते जीवनदान,लेकिन भारत में अंगदान को लेकर कई सारी चुनौतियां

अंगदान को महादान कहा जाता है, जिसकी मदद से दुनियाभर में हर साल लाखों लोगों की जान बचाई जा सकती है। हालांकि भारत में दुर्भाग्यवश अंगों की जरूरत और अंगदान के बीच बड़ी खाई बनी हुई है। विशेषज्ञ कहते हैं, लोगों में अंगदान को लेकर जागरूकता की कमी और इससे जुड़ी मिथकों के कारण चुनौतियां लगातार बढ़ती जा रही हैं।

अंगदान के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने और इससे जुड़ी मिथकों को दूर करने के लिए हर साल 13 अगस्त को विश्व अंगदान दिवस मनाया जाता है।

रिपोर्ट्स से पता चलता है, भारत में अंगदान की दर काफी कम है। यहां पर शव से अंगदान का आंकड़ा प्रति दस लाख लोगों में एक से भी कम है। इसके विपरीत, पश्चिमी देशों में 70-80 प्रतिशत अंगदान मृतकों के शरीर से प्राप्त हो रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है अंगदान की कमी के साथ-साथ देश में अंगों की बर्बादी भी बड़ी चुनौती बनी हुई है जो निश्चित ही चिंता बढ़ाने वाली समस्या है। अंगदान को लेकर चुनौतियां

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मिथकों और लोगों में सही जानकारी की कमी के कारण हर साल लगभग बड़ी संख्या में किडनी और अन्य महत्वपूर्ण अंग नष्ट हो जाते हैं। अस्पतालों में ब्रेन डेड लोगों की समय पर पहचान नहीं हो पाती है, जिसकी वजह से संभावित दाताओं की उपलब्धता के बावजूद देश में अंग दान की दर में उल्लेखनीय कमी देखी जा रही है।

स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, भारत जैसे घनी आबादी वाले देश में ये बड़ी विडंबना है कि हर साल हजारों जीवन रक्षक अंग या तो बर्बाद हो जाते हैं या फिर समय रहते उन्हें प्राप्त नहीं किया जाता है।

क्या कहते हैं स्वास्थ्य विशेषज्ञ?

अमर उजाला से बातचीत में पुणे स्थित एक अस्पताल में हेमेटोलॉजिस्ट और सर्जन डॉ एन. आर पाठक बताते हैं, देश में उपलब्ध अंगों और जरूरतमंद मरीजों की संख्या के बीच का अंतर बहुत बड़ा है। लॉजिस्टिक और सिस्टमिक चुनौतियों के कारण अंगों की बर्बादी भी एक गंभीर मुद्दा है, जिसमें सुधार की आवश्यकता है।

जिन राज्यों में इस दिशा में काम किया गया है वहां के परिणाम काफी अच्छे रहे हैं। गुजरात में अंगदान के आंकड़े काफी बेहतर रहे हैं जिससे दूसरे राज्यों को भी सीख लेने की जरूरत है। अंगदान को लेकर दाताओं को प्रोत्साहित करना इस दिशा में काफी मददगार साबित हो सकता है।

गुजरात में बढ़ा अंगदान का आंकड़ा

स्टेट ऑर्गन एंड टिशू ट्रांसप्लांट ऑर्गेनाइजेशन गुजरात के आंकड़ों के अनुसार कोविड-पूर्व समय की तुलना में 2023 में राज्य में अंगदान में 275% की प्रभावशाली वृद्धि हुई है। इसके अलावा, चालू वर्ष (2024) में अंगदान पछले वर्ष के कुल अंगदान का लगभग 50% तक पहुंच चुका है। डेटा से पता चलता है कि 2019 में 170 अंगदान हुए थे, जो 2023 में बढ़कर 469 हो गए। इसके अलावा, 2024 में अब तक 231 अंगदान हो चुके हैं।

स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि अन्य राज्यों को भी इन आंकड़ों से प्रेरणा लेकर अंगदान को बढ़ावा देने के तरीकों के बारे में विचार करना चाहिए। स्वास्थ्य मंत्रालय ने जारी की एसओपी

अंगदान को बढ़ावा देने और अंगों के बेहतर रखरखाव को लेकर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने हाल ही में यात्रा के विभिन्न साधनों के माध्यम से मानव अंगों के परिवहन के लिए पहली एसओपी जारी की है। इसके तहत अंगों को ले जाने वाली एयरलाइनों को प्राथमिकता के आधार पर उड़ान भरने और उतरने के लिए की व्यवस्था करने की अनुमति होगी।

केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव अपूर्व चंद्रा ने कहा, अंगों के परिवहन प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करके, हम बहुमूल्य अंगों के उपयोग को बढ़ाने और इसके खराब होने की दिशा में बेहतर सुधार कर सकते हैं।

नोट: हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।
सावधान !आपका एक शौक बना सकता है हमेशा के लिए बहरा,कुछ सालों में बहरे हो जाएंगे 100 करोड़ युवा! आप भी हो सकते हैं शामिल?

कम सुनाई देने या बहरेपन का खतरा वैश्विक स्तर पर बढ़ता हुआ देखा जा रहा है। उम्र बढ़ने के साथ कानों की बीमारियां होना सामान्य माना जाता है पर हालिया रिपोर्ट्स के मुताबिक आश्चर्यजनक रूप से पिछले कुछ वर्षों में कम आयु के लोगों में भी ये खतरा बढ़ता जा रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने एक हालिया रिपोर्ट में चिंता जताते हुए कहा, इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स, खास तौर पर ईयरबड्स और हेडफोन के बढ़ते उपयोग के कारण कम सुनाई देने और बहरेपन के मामले अब काफी ज्यादा हो गए हैं। डब्ल्यूएचओ ने अपनी रिपोर्ट में सावधान करते हुए कहा, 12 से 35 वर्ष की आयु के एक बिलियन (100 करोड़) से अधिक लोगों में सुनने की क्षमता कम होना या बहरेपन का जोखिम हो सकता है। इसके लिए मुख्यरूप से लंबे समय तक ईयरबड्स से तेज आवाज में संगीत सुनने और शोरगुल वाली जगहों पर रहना एक बड़ा कारण माना जा रहा है।

तेज आवाज वाले ये उपकरण आंतरिक कान को क्षति पहुंचाते हैं। सभी लोगों को इन उपकरणों का इस्तेमाल बड़ी सावधानी से करना चाहिए।

तेज आवाज से कानों को हो रहा है नुकसान रिपोर्ट के मुताबिक ईयरबड्स या हेडफोन के साथ पर्सनल म्यूजिक प्लेयर का इस्तेमाल करने वाले लगभग 65 प्रतिशत लोग लगातार 85 (डेसिबल) से ज्यादा आवाज में इसे प्रयोग में लाते हैं। इतनी तीव्रता वाली आवाज को कानों के आंतरिक हिस्से के लिए काफी हानिकारक पाया गया है।

शरीर के अन्य भागों में होने वाली क्षति के विपरीत, आंतरिक कान की क्षति के ठीक होने की संभावना भी कम होती है। तेज आवाज के संपर्क के कारण समय के साथ कोशिकाएं क्षतिग्रस्त होती जाती हैं। इससे सुनने की क्षमता और भी खराब होती जाती है। वैश्विक स्तर पर आने वाले दशकों में करोड़ों लोगों में इस तरह की समस्या होने की आशंका है।

विशेषज्ञों ने जताई चिंता? कोलोराडो विश्वविद्यालय में ईएनटी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ डैनियल फिंक कहते हैं, मुझे लगता है कि व्यापक स्तर पर, चिकित्सा और ऑडियोलॉजी समुदाय को इस गंभीर खतरे को लेकर ध्यान देने की आवश्यकता है। युवा आबादी में  ईयरबड्स जैसे उपकरणों का बढ़ता इस्तेमाल 40 की उम्र तक सुनने की क्षमता को कम कमजोर करने वाली स्थिति हो सकती है। डिमेंशिया का भी बढ़ जाता है जोखिम

साल 2011 के एक अध्ययन के अनुसार सुनने की क्षमता में कमी को सिर्फ कानों का समस्याओं तक ही सीमित नहीं किया जाना चाहिए। ऐसे लोगों में मस्तिष्क से संबंधित बीमारियों जैसे डिमेंशिया का जोखिम भी काफी बढ़ जाता है। सुनने की क्षमता में कमी वाले लोगों में डिमेंशिया रोग होने का जोखिम दो गुना अधिक देखा गया। वहीं जिन लोगों को बिल्कुल नहीं सुनाई देता था या जो लोग बहरेपन के शिकार थे उनमें डिमेंशिया के खतरे को पांच गुना अधिक पाया गया।

डॉ डैनियल कहते हैं, कुछ आशाजनक अध्ययनों से पता चलता है सुनने की समस्याओं का इलाज करने से संज्ञानात्मक गिरावट और मनोभ्रंश का जोखिमों को कम किया जा सकता है।

कम रखें ध्वनि
स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, ध्वनि को डेसिबल नामक इकाई में मापा जाता है। 60-70 डेसिबल या उससे कम की ध्वनि को आमतौर पर सुरक्षित माना जाता है। हालांकि, 85 या उससे अधिक की ध्वनि के लंबे समय तक या बार-बार संपर्क में रहने से सुनने की क्षमता कम हो सकती है। ईयरबड्स और हेडफोन्स जैसे उपकरणों की ध्वनि 100 से अधिक हो सकती है, जिसका अगर कुछ घंटे ही इस्तेमाल कर लिया जाए तो कानों की कोशिकाओं को क्षति पहुंचने और सुनने की समस्या बढ़ने का जोखिम हो सकता है।

नोट: हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।
बाजार में बिक रहे नमक और चीनी में माइक्रोप्लास्टिक, कैंसर का बन रहा कारण

नमक और चीनी के सेवन को संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए कई प्रकार से हानिकारक माना जाता रहा है। इसके अधिक सेवन से डायबिटीज, शरीर में इंफ्लामेशन से लेकर ब्लड प्रेशर और हार्ट की बीमारियों का खतरा हो सकता है। हालांकि नमक-चीनी से सेहत को होने वाले नुकसान यहीं तक सीमित नहीं हैं, इससे कैंसर होने का खतरा भी काफी बढ़ सकता है।

असल में एक हालिया अध्ययन में पता चला है कि भारतीय ब्रांड वाले नमक और चीनी में माइक्रोप्लास्टिक्स हो सकते हैं। नमक और चीनी चाहे पैक्ड हों या अनपैक्ड लगभग सभी में माइक्रोप्लास्टिक्स पाए गए हैं। गौरतलब है कि माइक्रोप्लास्टिक्स को कैंसर के प्रमुख कारकों में से एक माना जाता है। पर्यावरण अनुसंधान संगठन टॉक्सिक्स लिंक ने इस अध्ययन को 'माइक्रोप्लास्टिक्स इन सॉल्ट एंड शुगर' नाम से प्रकाशित किया है। शोधकर्ताओं ने कहा माइक्रोप्लास्टिक्स वाली चीजें कई प्रकार के कैंसर के साथ मस्तिष्क और तंत्रिकाओं से संबधित विकारों को भी बढ़ाने वाली हो सकती हैं। सभी लोगों को ऐसी चीजों को लेकर विशेष सावधानी और सतर्कता बरतते रहने की आवश्यकता है।

नमक और चीनी में माइक्रोप्लास्टिक

इस अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं ने भारत में बिकने वाले टेबल सॉल्ट, सेंधा नमक, समुद्री नमक और स्थानीय कच्चा नमक जैसे 10 प्रकार के नमकों पर अध्ययन किया। इसके साथ ऑनलाइन और स्थानीय बाजारों से खरीदी गई पांच प्रकार की चीनी का भी परीक्षण किया गया। अध्ययन में सभी नमक और चीनी के सैंपल में फाइबर और छोटे टुकड़ों सहित विभिन्न रूपों में माइक्रोप्लास्टिक्स की उपस्थिति का पता चला। इन माइक्रोप्लास्टिक्स का आकार 0.1 मिमी से 5 मिमी तक था। आयोडीन युक्त नमक में माइक्रोप्लास्टिक्स की उच्चतम मात्रा पाई गई।इस आकार के माइक्रोप्लास्टिक्स गंभीर रूप से सेहत को नुकसान पहुंचाने वाले हो सकते हैं।

क्या कहते हैं विशेषज्ञ?

टॉक्सिक्स लिंक के संस्थापक-निदेशक रवि अग्रवाल ने बताया, हमारे अध्ययन का उद्देश्य माइक्रोप्लास्टिक पर मौजूदा वैज्ञानिक डेटाबेस में योगदान देना था। माइक्रोप्लास्टिक और इसके कारण होने वाले स्वास्थ्य जोखिम बड़ी चिंता का कारण रहे हैं।

अध्ययन में सभी नमक और चीनी के सैंपल में माइक्रोप्लास्टिक पाया जाना चिंताजनक है। मानव स्वास्थ्य पर माइक्रोप्लास्टिक के दीर्घकालिक दुष्प्रभावों पर तत्काल, व्यापक शोध की आवश्यकता है। नमक के सैंपलों में माइक्रोप्लास्टिक की सांद्रता प्रति किलोग्राम सूखे वजन में 6.71 से 89.15 टुकड़े तक थी। ये मात्रा हमारी सेहत को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचाने के लिए काफी है।


चीनी में भी पाई गई मात्रा

चीनी के सैंपलों में माइक्रोप्लास्टिक की सांद्रता 11.85 से 68.25 टुकड़े प्रति किलोग्राम तक थी, जिसमें सबसे अधिक सांद्रता नॉन-ऑर्गेनिक चीनी में पाई गई। चूंकि हमारे घरों में नमक और चीनी दोनों का रोजाना सेवन किया जाता रहा है इसलिए जोखिमों को लेकर अलर्ट रहना बहुत जरूरी है।

अध्ययनों में पाया गया था कि औसत भारतीय हर दिन 10.98 ग्राम नमक और लगभग 10 चम्मच चीनी खाता है, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन की अनुशंसित सीमा से बहुत अधिक है। इसमें माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी और भी चिंता बढ़ाने वाली मानी जा रही है।
हाल ही में किए गए शोध में फेफड़े, हृदय जैसे मानव अंगों और यहां तक कि स्तन के दूध और अजन्मे शिशुओं में भी माइक्रोप्लास्टिक पाया गया है।

शोधकर्ताओं ने कहा अगर आप भी प्लास्टिक की बोतल में पानी पीते हैं तो भी सावधान हो जाइए। प्लास्टिक की बोतल में प्रत्येक लीटर पानी में प्लास्टिक के 100,000 से अधिक सूक्ष्म टुकड़े हो सकते हैं।  केवल एक बोतल पानी पीने से हम 10 गुना अधिक मात्रा में प्लास्टिक को शरीर में प्रवेश की अनुमति दे रहे होते हैं। प्लास्टिक के छोटे-छोटे टुकड़े जो बोतलों की परतों से निकालते हैं उन्हें माइक्रोप्लास्टिक्स और नैनोप्लास्टिक्स कहा जाता है। ये समय के साथ शरीर में कई बीमारियों का कारक हो सकते हैं।
मस्तिष्क की इस बीमारी का अभी तक कोई विशिष्ट उपचार नहीं है,दुनियाभर में 5 करोड़ से अधिक लोगों को मस्तिष्क की ये बीमारी

मस्तिष्क और तंत्रिका से संबंधित समस्याएं वैश्विक स्तर पर तेजी से बढ़ती हुई रिपोर्ट की जा रही हैं। अल्जाइमर-डिमेंशिया जैसी बीमारियां बड़ी संख्या में लोगों को परेशान कर रही हैं। अल्जाइमर रोग के कारण याददाश्त की समस्या होने, बातचीत करने में परेशानी होने लगती है। समय पर अगर इसपर ध्यान न दिया जाए तो गंभीर स्थितियों में ये डिमेंशिया का कारण बन सकती है।

मनोभ्रंश (डिमेंशिया) के कारण स्मृति, भाषा, समस्याओं का समाधान करने और सोचने की क्षमता कम होने जैसी दिक्कतें होने लगती हैं। एक आंकडे़ के अनुसार वैश्विक स्तर पर 55 मिलियन (5.5 करोड़) से अधिक लोग डिमेंशिया के शिकार हो सकते हैं। उम्र बढ़ने के साथ इस तरह की दिक्कतों का होना सामान्य है, विशेषतौर पर 60 साल की आयु के बाद इसका खतरा और भी बढ़ जाता है। अध्ययनकर्ताओं ने बताया हमारी दिनचर्या की कई गड़बड़ आदतें इस बीमारी के लिए जिम्मेदार हो सकती हैं, जिसके बारे में सभी लोगों को जानना और बचाव के लिए कम उम्र से ही प्रयास करते रहना आवश्यक है।

अल्जाइमर और डिमेंशिया का खतरा

अल्जाइमर और डिमेंशिया के बढ़ते जोखिमों को लेकर हाल में किए गए अध्ययनों में पाया गया है कि 55 की उम्र में भी कई लोगों में मस्तिष्क की ये समस्या देखा जा रही है। डिमेंशिया के 40 प्रतिशत मामलों के लिए 12 जोखिम कारकों को प्रमुख माना गया है।

इन कारकों में निम्न स्तर की शिक्षा, सुनने की समस्या, हाई ब्लड प्रेशर, धूम्रपान, मोटापा, अवसाद, शारीरिक निष्क्रियता, मधुमेह, अत्यधिक शराब पीना, मस्तिष्क की गंभीर चोट, वायु प्रदूषण और सोशल आइसोलेशन प्रमुख पाए गए हैं। ऐसी समस्या से परेशान लोगों को मस्तिष्क की इस बीमारी को लेकर और भी अलर्ट रहने की आवश्यकता है।

नया अपडेट में डिमेंशिया के लिए दो और जोखिम कारकों को जोड़ा गया हैं- दृष्टि हानि और उच्च कोलेस्ट्रॉल। अध्ययन में कहा गया है, इन 14 जोखिम कारकों में अगर सुधार के प्रयास कर लिए जाएं तो दुनियाभर में लगभग आधे डिमेंशिया के मामलों को रोका जा सकता है। चूंकि मस्तिष्क की इस बीमारी का अभी तक कोई विशिष्ट उपचार नहीं है इसलिए कम उम्र से ही बचाव के तरीकों को प्रयोग में लाते रहना बहुत जरूरी है।

क्या कहते हैं विशेषज्ञ?

लंदन की क्वीन मैरी यूनिवर्सिटी की न्यूरोलॉजिस्ट चार्ल्स मार्शल कहती हैं, यह स्पष्ट नहीं है कि हम इनमें से किसी भी जोखिम कारक को पूरी तरह से खत्म कर पाएंगे या नहीं। धूम्रपान और उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर) को कम करने के लिए वैश्विक स्तर पर पहले से कई अभियान चलाए जा रहे हैं, हालांकि ये अभियान से ज्यादा स्वजागरूकता का विषय है।

एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी की न्यूरोसाइंटिस्ट तारा स्पायर्स-जोन्स कहती है कि यह महत्वपूर्ण है कि हम डिमेंशिया से पीड़ित लोगों को उनके मस्तिष्क रोग के लिए दोषी न ठहराएं। ये समस्या किसी की भी हो सकती है, जिसके पीछे कई तरह के कारक जिम्मेदार माने जाते हैं। उपचार के तरीकों का परीक्षण

डिमेंशिया के लिए अभी तक कोई विशिष्ट इलाज या प्रभावी दवा नहीं मिल पाई है। लेकिन पिछले साल की शुरुआत से संयुक्त राज्य अमेरिका में अल्जाइमर के दो उपचारों को मंजूरी दी गई है-बायोजेन का लेकेनेमैब और एली लिली का डोनानेमैब। ये दवाएं दो प्रोटीन (टाऊ और एमिलॉयड बीटा) के निर्माण को लक्षित करती हैं, जिन्हें बीमारी के बढ़ने के मुख्य कारणों में से एक माना जाता है। हालांकि ये कितनी प्रभावी हैं इसे जानने के लिए अभी भी शोध जारी है।

स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने बताया कि वयस्कावस्था से ही इस समस्या को नियंत्रित करने के उपाय कर लिए जाएं तो बुढ़ापे में होने वाली इस बीमारी से बचाव किया जा सकता है।



Note: स्ट्रीट बज द्वारा दी गई जानकारी व सूचना को लेकर किसी तरह का दावा नहीं करता है और न ही जिम्मेदारी लेता है। उपरोक्त लेख में उल्लेखित संबंधित बीमारी के बारे में अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से परामर्श लें।
आईए जानते हैं बच्चे को कब, किस उम्र में स्वास्थ्य से जुड़ी कौन सी परेशानियां हो सकती हैं
माता-पिता अक्सर अपने बच्चों को स्वास्थ रखने के लिए  क्या कुछ नहीं करते लेकिन कई बार जानकारी का आभाव,  उनके बच्चे के स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है। ऐसे में अगर हम शुरुआत से ही ये जानें कि बच्चे को कब, किस उम्र में स्वास्थ्य से जुड़ी कौन सी परेशानियां हो सकती हैं, तो हम उन्हें हमेशा मानसिक और शारीरिक रूप से फिट रख सकते हैं। इसके लिए हम बच्चों को आमतौर पर हम 5 एज ग्रुप कैटेगरी में बांट सकते हैं और उसी के अनुसार उनके स्वास्थ्य का ख्याल रख सकते हैं।

1. टॉडलर  - 1 से 3 वर्ष की उम्र के बच्चे

इस उम्र के बच्चों को सबसे ज्यादा मां की देखभाल की जरूरत होती है। ऐसा इसलिए क्यों इस उम्र में ही बच्चा चलना, बोलना और खाना सीखता है। इस दौरान बच्चे की शारीरिक और मानसिक विकास पर ध्यान देना बेहद जरूरी है। साथ ही इसी दौरान मां-पिता को बच्चे को कई बीमारियों से बचाने के लिए उन्हें हर तरह का जरूरी टीके लगवा देने चाहिए। जैसे कि:जन्म के 1 साल के दौरान बच्चे को बीसीजी (BCG), ओरल पोलियो वैक्‍सीन (OPV 0), हिपेटाइटिस बी (Hep – B1), Typhoid Conjugate Vaccine (TCV#), Measles, Mumps, and Rubella (MMR – 1) आदि ये सभी टीके लगवा दें।
12 महीने की उम्र में Hepatitis A (Hep – A1), Influenza का टीका हर साल लगवा लें।
16 से 18 महीने की उम्र में Diphtheria, Pertussis, and Tetanus (DTP B1)का टीका लगवा दें।

2. प्रीस्कूलर (preschool age)- 3 से 5 वर्ष की उम्र के बच्चे

इस उम्र के बच्चों में उनके आहार और पोषण को खास ध्यान देने की जरूरत होती है। जैसे कि इस उम्र में बच्चों को:

फल और सब्जियों से अवगत करवाएं।
दलिया और खिचड़ी खिलाएं।
बाहरी चीजों को कम ही अवगत करवाएं
इसके अलावा इस दौरान बच्चों को थोड़ा-थोड़ा व्यवहार और अनुशासन भी सीखाएं।

3. बड़े बच्चों - 5 से 8 वर्ष की उम्र के बच्चे

इस दौरान बच्चों में हमें काफी सारी चीजों का ध्यान रखना होता है। जैसे कि:

बच्चों का शारीरिक विकास कैसा हो रहा है।
उनका व्यवहार और अनुशासन कैसा है।
आहार और पोषण का ध्यान रखें।
हाइट और वेट के संतुलन का ध्यान रखें।
खेल गतिविधियों और पढ़ाई-लिखाई का ध्यान रखें।
इसी दौरान उसमें मेमोरी और कंसंट्रेशन पावर बढ़ाने की कोशिश करें।

4. 9 से 12 वर्ष की उम्र के बच्चे

इस उम्र में बच्चों के शरीर में बड़ी तेजी से बदलाव आता है। जैसे कि:

वजन बढ़ाना
मांसपेशियों की वृद्धि
परिपक्वता के साथ विकास में तेजी से अनुभव करना
लड़कियों में पिट्यूटरी ग्लैंड में टेस्टोस्टेरोन का उत्पादन से हार्मोन उत्पन्न होना जैसे कि एस्ट्रोजन / प्रोजेस्टेरोन। यह आमतौर पर लड़कियों में  9 से 12 की उम्र में शुरू हो जाता है।
लड़कों में 11 से 14 वर्ष की आयु में होर्मेनल हेल्थ में विकास आता है।




5. टीनएजर्स –13 से लेकर 19 तक के बड़े बच्चे

त्वचा ऑयली हो जाती है और मुंहासे व दाने होने लगते हैं।
पसीना बढ़ता है और युवाओं को शरीर से दुर्गंध आती है।
प्यूबिस हेयर का ग्रोथ होता है और लड़कों में दाढ़ी आने लगती है।
शारीरिक अनुपात बदल जाता है जैसे कि लड़कियों में कूल्हे चौड़े और लड़कों में  कंधे चौड़े हो जाते हैं।
तेजी से बढ़ने के कारण जोड़ों में दर्द हो सकता है।
लड़कों में आवाज बदलने लगती है और मूड स्विंग्स होते हैं।
लड़कियों में स्तन विकसित होते हैं और ओव्यूलेशन और पीरियड्स शुरू हो जाते हैं।
इस दौरान बच्चे की मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना बहुत जरूरी हो जाता है।

बच्चों की स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या-

गले में खराश बच्चों में आम है और दर्दनाक हो सकता है, जो कि उम्र बदलने के साथ बढ़ता और घटता रहता है।
बच्चों में कान का दर्द होना
दांत में दर्द  क्योंकि इस दौरान नए दांतों का आना और पुराने दांतों का टूटना चलता रहता है।
मूत्र पथ के संक्रमण या यूटीआई इंफेक्शन
बच्चों में त्वचा से जुड़ी समस्याएं, जैसे रैशेज, खुजली, इंफेक्शन और एक्ने आदि।
बच्चों में ब्रोंकाइटिस और अस्थमा की परेशानी
बच्चों में सर्दी जुकाम
बैक्टीरियल साइनसिसिस या साइनस की परेशानी
बच्चों में कफ की समस्या
बच्चों में मोटापा
बच्चों में डायबिटीज
बच्चों में हार्मोनल परिवर्तन
बच्चों में मानसिक रोग जैसे ADHD, एंग्जायटी और डिप्रेशन
बच्चों में तनाव

नोट: हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।