ऐरा प्रथा किसानों के लिए बनी अभिशाप,खेतों में रतजगा की तैयारी
विश्वनाथ प्रताप सिंह,बारा, प्रयागराज। समूचे क्षेत्र में प्रचलित ऐरा प्रथा दिन प्रति दिन किसानों के लिए अभिशाप बनती चली जा रही है। क्षेत्र का किसान जहां एक तरफ खरीफ की फसलों की तैयारी में लगा है वहीं दूसरी तरफ क्षेत्र में ऐरा प्रथा के कारण वह खेतों में मडहा , छप्पर आदि डालकर रतजगा की भी तैयारी करने में लग गया है।
बता दे कि बारा क्षेत्र के कपारी, शिवराजपुर, शंकरगढ़, हडही,गाढ़ा, कटरा , लेदर, बिहरिया, अभयपुर, छिपिया, नौढिया , भडीवार, गदामार, रानीगंज , पगुआर, बेमरा, गोरखा, खान सेमरा , जनवा, वैसा आदि सभी ग्रामीण क्षेत्रों में लोग मवेशियों को वर्ष भर छुट्टा छोड़ें रहते हैं । इस ऐरा प्रथा के कारण किसान खासे परेशान हैं। कहने को तो विकासखंड शंकरगढ़ के टिकरौंही कला, कोहडिया, अकौरिया, बेमरा , गाढ़ा कटरा, कोहड़िया आदि ग्राम पंचायतों में अस्थाई गोवंश आश्रय स्थल का निर्माण कराया गया है। लेकिन उनकी इतनी क्षमता नहीं है वे क्षेत्र के सभी मवेशियों को समाहित कर सकें । जब तक खेतों में खेती-बाड़ी का कार्य प्रारंभ नहीं होता तब तक ये मवेशी हाईवे, स्टेट हाईवे ,संपर्क मार्ग तथा ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कों पर ही अपना डेरा जमाए देखे जाते हैं। जैसे ही खेतों में फसलों की हरियाली दिखती है।
यह फसलों पर टूट पड़ते हैं जिससे किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है। इनसे निपटने के लिए किसानों ने अभी से जगह की तैयारी शुरू कर दी है। किसान खेतों पर छप्पर, मडहा,अस्थाई आश्रय स्थल आदि का निर्माण करने में लग गए हैं।
खरीफ की मुख्य फसलें और किसानों की समस्याएं
बारा। खरीफ की फसल का समय आ गया । इस सीजन में मुख्य रूप से कपास, मूंगफली, धान, बाजरा, मक्का, शकरकन्द, उर्द, मूंग, मोठ लोबिया (चंवला), ज्वार, अरहर, ढैंचा, गन्ना, सोयाबीन,भिण्डी, तिल, ग्वार, जूट, सनई आदि फसलें बोई और लगाई जाती हैं। क्षेत्र के किसानों के सामने अनेकों समस्याएं हैं । सर्वप्रथम तो कई इलाके असिंचित हैं जिससे केवल भगवान भरोसे खेती होती है। वहीं जहां नहर भी है तो, कहीं सिल्ट से पटी हुई तो कहीं देर से पानी चलने की शिकायतें आए दिन आती रहती हैं। इसके अलावा धान की फसल लगाने के बाद आवारा आवारा पशुओं से बचाना सबसे बड़ी चुनौती है । आए दिन नीलगाय तथा अन्य जानवर भी किसानों को परेशान करते रहते हैं। अगर इन सबसे फसल बच भी जाती है तो मौसम की मार भी किसानों को रुलाती रहती है जिसका हल निकलता नजर नहीं आ रहा है।
कृषि विभाग की तरफ से किसानों को जागरूक करने के लिए होते हैं कई कार्यक्रम
बारा। किसानों के लिए खेती को लाभ का धंधा बनाने के लिए किसानों को प्रशिक्षित करने और उनके लिए संसाधन जुटाने के बड़े-बड़े दावे और वादे आए दिन सेमिनारों में किए जाते हैं। लेकिन किसानों की मूल समस्याओं को समाप्त करने की दिशा में जमीनी स्तर पर काम नहीं होते। यही कारण है कि इन दिनों खरीफ की फसलों को लेकर प्रशासन द्वारा पीटे जा रहे ढोल का गांवों में मखौल उड़ रहा है। क्योंकि इन फसलों की राह में सबसे बड़ा रोड़ा ऐरा प्रथा है, जिसे लेकर प्रशासन के पास कोई कार्ययोजना नहीं है। आवारा मवेशियों को बंद करने गांवों में कोई बाड़ा नहीं हैं। कृषि विभाग भी किसानों की जमीनी समस्या को ही चिन्हित नहीं कर पाया है।
ऐरा प्रथा और छुट्टा मवेशियों के लिए प्रतिवर्ष स होता है विचार
विभाग और सरकार द्वारा दावे हर साल होते हैं कि ऐरा प्रथा पर रोक लगाने के लिए इस वर्ष प्रभावी कदम उठाए जाएंगे। लेकिन हकीकत में कुछ होता नहीं है। जिससे किसानों की समस्याएं कम होने की बजाय बढ़ती जा रही है।
जानकारों ने कहा – यह होना चाहिए नियम
क्षेत्र में लागू ऐरा प्रथा को जड़ से समाप्त करने के लिए ग्राम पंचायत स्तर पर मुनादी कराकर किसानों को अपने पशु बांधने की अपील की जानी चाहिए। इसके बाद क्षेत्र में घूम रहे आवारा पशुओं को चिन्हित करके नुकसान की भरपाई के लिए
उन्ही लोगों पर जुर्माना लगाना चाहिए।
क्या कहते हैं अधिकारी
आवारा और छुट्टा मवेशियों पर सवाल पूछे जाने पर सीधे-सीधे कोई भी अधिकारी जवाब देने को तैयार नहीं है। लेकिन कुछ विभाग के अधिकारियों ने गोलमोल जवाब देते हुए बताया कि यह समस्या बड़ी जटिल है ।पशुओं को चिन्हित करना और उनके मालिकों की पहचान करना बड़ा ही मुश्किल काम है। किसानों को खुद अपने मवेशी बांध लेने चाहिए। लेकिन सवाल अभी भी वहीं है कि इन आवारा और छुट्टा मवेशियों के कारण किसानों को हो रहे नुकसान की भरपाई कौन करेगा और इसका जिम्मेदार कौन है। फिलहाल तो इलाके के किसानों के लिए इन आवारा और छुट्टा मवेशियों से निजात मिलने की कोई संभावना नजर नहीं आ रही है।
Aug 08 2024, 17:25