Jul 24 2024, 11:41
आख़िर क्यूं भोलेनाथ ने अपने मस्तक पर धारण कर रखा है चंद्रमा, जानें यहां
हिंदू धर्म के सभी देवताओं में भगवान शिव ही एक ऐसे अनोखे देवता हैं जिनका श्रृंगार सबसे अलग और अद्भुत होता है. भोलेनाथ अपने शरीर पर भस्म, नाग, रुद्राक्ष, बाघ चर्म, जटा और अपने मस्तक पर चंद्रमा को धारण करते हैं.
भगवान शिव के द्वारा अपने मस्तक पर चंद्रमा को धारण करने का एक अलग ही रहस्य है. चंद्रमा को धारण करना बहुत सी चीजों का प्रतीक भी माना जाता है. भगवान शिव अपने मस्तक पर चंद्रमा को क्यों धारण करते हैं, इसका वर्णन कुछ पौराणिक कथाओं में किया गया है.
भगवान शिव के द्वारा अपने मस्तक पर चंद्रमा को धारण करने के पीछे का कारण कई पौराणिक कथाओं में बताया गया है.
इन सब कथाओं में 2 पौराणिक कथा सबसे ज्यादा प्रचलित हैं. पहली पौराणिक कथा का जिक्र शिव पुराण में किया गया है.
पौराणिक कथा के अनुसार
शिव पुराण के अनुसार, जब अमृत प्राप्त करने के लिए देवताओं और असुरों में समुद्र मंथन हुआ, तब इस मंथन में से अमृत के साथ साथ अत्यंत जहरीला विष भी निकला था, जो संपूर्ण सृष्टि को नष्ट करने में सक्षम था. इस विष से सृष्टि की रक्षा करने के लिए भगवान शिव ने स्वयं इस विष को अपने कंठ में ग्रहण कर लिया था.
विष के अत्यंत जहरीले होने के कारण भगवान शिव के शरीर का तापमान अत्यधिक गर्म होने लगा और उनका कंठ विष के प्रभाव से नीला पड़ गया. इसी कारण भगवान शिव को नीलकंठ के नाम से भी जाना जाता है.
विष के प्रभाव के कारण भगवान
शिव का शरीर अत्याधिक गर्म होता जा रहा था. तब चंद्रदेव के साथ साथ अन्य देवी-देवताओं ने भगवान शिव से प्रार्थना करी कि वें अपने शरीर के तापमान को सामान्य करने के लिए अपने मस्तक पर चंद्रमा को धारण करें. क्योंकि चंद्रमा का स्वभाव शीतलता प्रदान करने वाला होता है. चंद्रमा को धारण करने से भगवान शिव के शरीर में शीतलता बनी रहेगी. तब भगवान शिव ने सभी देवी-देवताओं के अनुरोध पर अपने मस्तक पर चंद्रमा को धारण किया. माना जाता है कि तभी से भगवान शिव के मस्तक पर चंद्रमा विराजमान हैं
एक अन्य पौराणिक कथा
एक और कथा के अनुसार, दक्ष प्रजापति की 27 कन्याएं थीं, जिनका विवाह चंद्रदेव (चंद्रमा) के साथ हुआ था. लेकिन चंद्रमा केवल रोहिणी को ही अधिक प्रेम करते थे, और अन्य पत्नियों की उपेक्षा करते थे. इस कारण अन्य पत्नियाँ दुखी होकर अपने पिता दक्ष प्रजापति के पास गईं. दक्ष प्रजापति को अपनी बाकी 26 पुत्रियों के बारे में जानकर बहुत दुख हुआ. तब उन्होंने चंद्रदेव को समझाया, लेकिन चंद्रदेव के स्वभाव पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा.
तब दक्ष प्रजापति ने चंद्रदेव को श्राप दिया कि वे धीरे-धीरे क्षीण हो जाएंगे. श्राप से बचने के लिए चंद्रदेव ने भगवान शिव की आराधना की और उनसे श्राप से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की. तब भगवान शिव ने चंद्रमा को श्राप से मुक्ति दिलाने के लिए उनको अपने मस्तक पर धारण कर लिया. मान्यता है कि दक्ष प्रजापति के श्राप के प्रभाव से ही चंद्रमा क्षीण हो जाते हैं लेकिन भगवान शिव के आशीर्वाद के कारण बाद में पुनः पूर्ण हो जाते हैं.
Jul 25 2024, 10:48