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हाथरस कांड पर मायावती का बयान, बोलीं-'भोले बाबा' जैसे बाबाओं के अंधविश्वास के बहकावे में न आए

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हाथरस में हुई भगदड़ के बाद 121 मौतों के बाद जमकर राजनीति हो रही है। राजनीतिक दलों के बयान लगातार सामने आ रहे हैं। शुक्रवार को हाथरस में कांग्रेस सांसद राहुल गांधी पीड़त परिवारों से मिलने भी पहुंचे थे। अब इस हादसे पर बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने प्रतिक्रिया दी है। मायावती ने "भोले बाबा जैसे अनेकों और बाबाओं के अन्धविश्वास व पाखंडवाद के बहकावे में आकर अपने दुख व पीड़ा को और नहीं बढ़ाने की सलाह दी है। 

शनिवार को मायावती ने सोशल मीडिया पर हाथरस हादसे के बाद पोस्ट किया। मायावती ने एक के बाद एक तीन पोस्टों में अपनी बात लिखी है। बसप प्रमुख ने पोस्ट किया कि "देश में गरीबाों, दलितों व पीड़ितों आदि को अपनी गरीबी व अन्य सभी दुखों को दूर करने के लिए हाथरस के भोले बाबा जैसे अनेकों और बाबाओं के अन्धविश्वास व पाखंडवाद के बहकावे में आकर अपने दुख व पीड़ा को और नहीं बढ़ाना चाहिए", यही सलाह।

उन्होंने आगे लिखा कि बल्कि बाबा साहेब डा. भीमराव अम्बेडकर के बताए हुए रास्तों पर चलकर इन्हें सत्ता खुद अपने हाथों में लेकर अपनी तकदीर खुद बदलनी होगी अर्थात् इन्हें अपनी पार्टी बीएसपी से ही जुड़ना होगा, तभी ये लोग हाथरस जैसे कांडों से बच सकते हैं जिसमें 121 लोगों की हुई मृत्यु अति-चिंताजनक। 

मायावती ने लिखा कि हाथरस कांड में, बाबा भोले सहित अन्य जो भी दोषी हैं, उनके विरुद्ध सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। ऐसे अन्य और बाबाओं के विरुद्ध भी कार्रवाई होनी जरूरी। इस मामले में सरकार को अपने राजनैतिक स्वार्थ में ढीला नहीं पड़ना चाहिए ताकि आगे लोगों को अपनी जान ना गवांनी पड़े। 

इससे पहेल हादसे के चार दिन बाद बाबा सूरजपाल उर्फ भोले बाबा पहली बार सामने आया और घटना पर दुख जताया। बाबा सूरजपाल ने कहा कि 2 जुलाई की घटना के बाद से मैं काफी दुखी हूं। दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा। जो इस घटना के उपद्रवी हैं, उन्हें छोड़ा नहीं जाएगा। भगवान हमें इस दर्द को सहने की शक्ति दें। कृपया सरकार और प्रशासन पर भरोसा रखें।

हाथरस हादसे के बाद पहली बार सामने आया भोले बाबा, जानें क्या कहा

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हाथरस में हुई भगदड़ के बाद पहली बार सूरजपाल उर्फ भोले बाबा सामने आया है।बाबा ने मीडिया के सामने बयान दिया है। उसने कहा है कि दो जुलाई की घटना से बहुत दुखी हूं। बाबा ने कहा कि भगवान हमें इस दर्द को सहने की शक्ति दे। न्यूज एजेंसी एएनआई से बातचीत में बाबा सूरजपाल ने कहा कृपया सरकार और प्रशासन पर भरोसा रखें। बता दें कि हाथरस हादसे के बाद से ही बाबा सूरजपाल गायब था।

सूरजपाल उर्फ भोले बाबा ने एक वीडियो बयान में हाथरस भगदड़ की घटना पर कहा, 'हम 2 जुलाई की घटना के बाद बहुत ही व्यथित हैं। प्रभु हमें इस दुख की घड़ी से उभरने की शक्ति दें। सभी शासन और प्रशासन पर भरोसा बनाए रखें। हमें विश्वास है कि जो भी उपद्रवकारी हैं, उनको बख्शा नहीं जाएगा। मैंने अपने वकील ए. पी. सिंह के माध्यम से समिति के सदस्यों से अनुरोध किया है कि वे शोक संतप्त परिवारों और घायलों के साथ खड़े रहें और जीवन भर उनकी मदद करें।

हादसे के बाद से गायब रहने के चार दिन बाद बाबा पहली बार सामने आया है। हालांकि, हादसे के करीब 30 घंटे बाद बाबा का एक लिखित बयान सामने आया था, जिसमें उसने मृतकों के खिलाफ दुख जताया था और घायलों को जल्द ठीक होने की कामना की थी। गुरुवार को जारी अपने लिखित संदेश में बाबा सूरजपाल कहा था कि कुछ अराजक तत्वों ने ये भगदड़ मचाई, जिसके कारण इतना बड़ा हादसा हुआ।

इससे पहले हाथरस हादसे के मुख्य आरोपी देव प्रकाश मधुकर को यूपी एसटीएफ ने शुक्रवार को देर रात गिरफ्तार कर लिया। मधुकर पर एक लाख का इनाम था। मधुकर हादसे के बाद से ही फरार था। वहीं हाथरस में भगदड़ मामले की जांच कर रही उत्तर प्रदेश सरकार की एसआईटी ने अब तक 90 बयान दर्ज किए हैं। एसआईटी के प्रमुख अनुपम कुलश्रेष्ठ ने शुक्रवार को यह जानकारी दी। अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (आगरा जोन) कुलश्रेष्ठ तीन सदस्यीय विशेष जांच दल (एसआईटी) का नेतृत्व कर रहे हैं, जो दो जुलाई को यहां सत्संग के बाद मची भगदड़ में 121 लोगों की मौत से संबंधित मामले पर विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर रहा है।

बता दें कि भोले बाबा के सत्संग के दौरान मची भगदड़ में 121 लोगों की मौत हो गई थी। दो जुलाई को यूपी के हाथरस जिले में एक सत्संग का आयोजन किया गया था। इस कार्यक्रम में सूरजपाल उर्फ भोले बाबा शामिल हुआ। कार्यक्रम के बाद सूरजपाल के जाते समय उसकी चरण रज लेने के लिए लोग आगे बढ़े। इसी दौरान अचानक भगदड़ गई। भगदड़ मचने के बाद लोग इधर-उधर भागने लगे, जिससे कई लोग जमीन पर गिर गए। हादसे के बाद सामने आई मौतों का आंकड़ा चौंकाने वाला था। बता दें कि इस हादसे में 121 लोगों की मौत हो गई थी।

अमृतपाल सिंह और इंजीनियर राशिद ने ली सांसद पद की शपथ, अलग-अलग जेल में बंद हैं दोनों

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असम के डिब्रूगढ़ की जेल में बंद अमृतपाल सिंह और दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद इंजीनियर राशिद ने शुक्रवार को संसद भवन पहुंचकर सांसद पद की शपथ ली। लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने अपने चैंबर में दोनों नवनिर्वाचित सांसदों को संसद सदस्यता की शपथ दिलाई। असम के डिब्रूगढ़ की जेल में बंद अमृतपाल सिंह पंजाब के खडूर साहिब लोकसभा सीट और दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद इंजीनियर राशिद जम्मू कश्मीर की बारामूला लोकसभा सीट से चुनाव जीतकर आए हैं।

हाल ही में समाप्त हुए 18वीं लोकसभा के पहले सत्र के दौरान कुल 542 में से 539 नवनिर्वाचित सांसदों ने संसद सदस्यता की शपथ ली। लेकिन, जेल में होने के कारण अमृतपाल सिंह और इंजीनियर रशीद सत्र के दौरान शपथ नहीं ले पाए थे। राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत नौ सहयोगियों के साथ असम की डिब्रूगढ़ जेल में बंद अमृतपाल को चार दिन की पैरोल दी गई है ताकि वह लोकसभा सदस्य की शपथ ले सकें। शपथ लेने के लिए रशीद को दो घंटे की हिरासत पैरोल दी गई, जिसमें तिहाड़ से संसद तक का यात्रा समय शामिल नहीं है। अमृतपाल सिंह को चार दिन की हिरासत पैरोल दी गई है, जो पांच जुलाई से शुरू होगी। अमृतपाल सिंह को असम से दिल्ली लाया जाएगा और फिर वापस ले जाया जाएगा। पैरोल अवधि के दौरान वे न तो किसी मुद्दे पर मीडिया से बात कर सकते हैं, न ही मीडिया को संबोधित कर सकते हैं और न ही कोई बयान दे सकते हैं।

दोनों पर अलग-अलग मामले दर्ज हैं. कानूनी प्रक्रिया चल रही है। ऐसे में सवाल है कि अगर इन्हें दोषी साबित किया गया तो सदन की सदस्यता बरकरार रहेगी या जाएगी? पंजाब में अलगाववादी गतिविधियों को बढ़ावा देने के आरोप में अमृत पाल पर राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) अधिनियम के तहत कार्रवाई की गई थी। जिसके बाद से वह असम की डिब्रूगढ़ जेल में बंद है। वहीं, जम्मू-कश्मीर की बारामूला सीट से सांसद बने इंजीनियर रशीद पर टेरर फंडिंग केस में गैर-कानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत मामला दर्ज किया गया था। वह दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद है।

दोनों ही मामले में कानूनी प्रक्रिया चल रही है। ऐसे में इन्हें दोषी घोषित किया जाता है और सजा मिलती है तो लोकसभा की सदस्यता जा सकता है।0 लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम कहता है कि अगर किसी मामले में सांसद को 2 या इससे अधिक समयावधि की सजा होती है तो लोकसभा सदस्यता खत्म की जा सकती है। हालांकि, उस सजा पर अगर कोई ऊपरी अदालत रोक लगाती है तो सदस्यता बरकरार रहती है। कई ऐसे मामले में सामने आ चुके हैं।

नीट-यूजी को लेकर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दायर किया हलफनामा, बताई क्यों रद्द नहीं करना चाहती परीक्षा

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नीट-यूजी विवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने अपना हलफनामा दाखिल किया है। हलफनामा के जरिए सरकार ने बताया कि क्यों वह इस परीक्षा को रद्द नहीं करना चाहती है। सरकार ने कहा कि जब तक यह सबूत नहीं मिल जाता कि पूरे भारत में पेपर लीक हुआ है, तब तक पूरी परीक्षा को रद्द करना ठीक नहीं होगा, क्योंकि परिणाम घोषित किए जा चुके हैं. परीक्षा रद्द करना लाखों होनहार परीक्षार्थियों के साथ धोखाधड़ी होगी।

सरकार ने आगे हलफनामे में कहा कि सीबीआई मामले की जांच कर रही है, कई राज्यों में पेपर लीक की शिकायतें आई हैं। सीबीआई इन मामलों में अभी जांच कर रही है। साथ ही यह भी कहा गया कि पेपर लीक की सूचना मिलते ही कदम उठाए गए हैं। लेकिन परीक्षा रद्द करना उचित नहीं है। यह होनहार छात्रों के साथ धोखा होगा।

सरकार ने परीक्षा रद्द नहीं किए जाने पर जोर देते हुए सुप्रीम कोर्ट के 2021 के सचिन कुमार विरूद्ध डीएसएसबी में जारी फैसले का हवाला दिया। सरकार ने कहा कि शिक्षा मंत्रालय की ओर से एक हाई लेवल कमेटी एनटीए को बेहतर बनाने और परीक्षाओं को सही तरीके से कराने के सुझाव देने के संबंध गठित की गई है। इस कमेटी का नेतृत्व पूर्व इसरो चेयरमैन डॉक्टर के राधाकृष्णन कर रहे हैं, जो दो माह में मंत्रालय को रिपोर्ट सौंपेंगे। पेपर लीक करने के पीछे संगठित गिरोह और सरगना का पता लगाने के लिए जांच लगातार जारी है।

मंत्रालय ने कहा कि सरकार ने जांच सीबीआई को सौंप दी है और सीबीआई मामले में एफआईआर दर्ज कर जांच कर रही है। कई राज्यों में पेपर लीक की शिकायतें आईं है। सीबीआई ने पिछले महीने की 23 तारीख को IPC की धारा 420, 419, 409, 406, 201, 120B और पीसी एक्ट की धारा-13(2), 13(1) में FIR दर्ज की है। अपने हलफनामा में सरकार ने कहा है कि सीबीआई इस मामले की जांच में जुटी हुई है, पेपर लीक करने के पीछे संगठित गिरोह और सरगना का पता लगाने का काम भी जांच जारी है।

बता दें कि पिछली परीक्षा रद्द करने, दोबारा परीक्षा कराने और उच्चस्तरीय जांच की मांग संबंधी याचिकाओं पर आठ जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी। सीबीआई ने इस मामले में छह प्राथमिकी दर्ज की है। बिहार में दर्ज प्राथमिकी पेपर लीक होने से संबंधित है, जबकि गुजरात और राजस्थान में दर्ज प्राथमिकी परीक्षार्थी के स्थान पर किसी दूसरे व्यक्ति के परीक्षा देने और धोखाधड़ी से संबंधित हैं।सीबीआई ने बीते 3 जुलाई को ही नीट यूजी पेपर लीक मामले में कथित सह-साजिशकर्ता अमन सिंह को झारखंड के धनबाद से गिरफ्तार किया है। सीबीआई को कथित तौर पर पेपर लीक में शामिल झारखंड में सक्रिय मॉड्यूल के बारे में खुफिया जानकारी मिली थी, जिसके बाद सिंह को गिरफ्तार किया गया

जानकारी दे दें कि नीट यूजी की परीक्षा 5 मई को आयोजित हुई थी। इस परीक्षा में पहली बार करीबन 25 लाख छात्र शामिल हुए थे। वहीं, 4 जून को इसका रिजल्ट जारी किया गया, रिजल्ट घोषित होते ही नीट यूजी पर सवाल उठने लगे। कारण था कि इस परीक्षा में एक साथ 67 छात्र टॉप कर गए। सभी छात्रों को 720 में से 720 नंबर मिले। इसके बाद यह मामला फिलहाल सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को लेकर सरकार व एनटीए को नोटिस जारी किए थे साथ ही सुनवाई की तारीख 8 जुलाई तय की था।

ब्रिटेश के चुनाव में भरतवंशियों का जलवा, सुनक समेत इन लोगों ने हासिल की जीत*
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ब्रिटेन में लेबर पार्टी की सरकार बनने जा रही है। कीर स्टार्मर का देश का नया पीएम बनना तय हो गया हैं। वहीं निवर्तमान प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने कंजर्वेटिव पार्टी की हार स्वीकार कर ली है। ब्रिटेन के पिछले चुनाव (2019) में भारतीय मूल के 15 सांसदों ने जीत हासिल की थी जबकि इस बार 107 ब्रिटिश भारतीयों ने अपनी किस्मत आजमाई। इस बार के चुनाव में 30 भारतीय मूल के लोगों को कंजर्वेटिव पार्टी ने उम्मीदवार बनाया था, वहीं लेबर पार्टी ने 33 भारतीय-ब्रिटिश को कैंडिडेट बनाया। लिबरल डेमेक्रेट्स ने 11, ग्रीन पार्टी ने 13, रिफॉर्म यूके ने 13 और अन्य 7 भारतीय मूल के उम्मीदवार इस बार के संसदीय चुनाव में प्रत्याशी थे। इस बार 107 ब्रिटिश भारतीयों ने चुनाव में अपनी किस्मत आजमाई। जिनमें से कई ब्रिटिश भारतीय जीत चुके हैं। निवर्तमान प्रधानमंत्री ऋषि सुनक नॉर्थ यॉर्कशायर से अपनी सीट पर फिर से चुने गए हैं। हालांकि उनकी पार्टी को ब्रिटिश चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है। इस लिस्ट में कई नाम हैः- शिवानी राजा कंजर्वेटिव पार्टी की नेता शिवानी राजा ने लीसेस्टर ईस्ट से चुनाव जीत लिया है। उन्होंने लेबर पार्टी के राजेश अग्रवाल और बतौर निर्दलीय चुनाव मैदान में उतर पूर्व सांसद क्लाउड वेब्बे और कीथ वाज को हराया। लीजेस्टर ईस्ट सीट से इस बार कई दिग्गज मैदान में थे, जिसमें पूर्व सांसद क्लाउड वेब्बे और कीथ वाज भी शामिल थे। ये सांसद निर्दलीय तौर पर चुनावी मैदान में थे। शिवानी का जन्म लीसेस्टर में ही हुआ। उन्होंने कॉस्मेटिक साइंस में प्रथम श्रेणी में स्नातक किया है। कनिष्क नारायण वेल्स से जीते लेबर पार्टी के ही कनिष्क नारायण ने वेल्स में जीत हासिल की है, उन्होंने अलुन केर्न्स को पटखनी दी है। नारायण अल्पसंख्यक जातीय पृष्ठभूमि से आते हैं। इस समूह से वे वेल्स के पहले सांसद बने हैं। नारायण का जन्म तो भारत में हुआ था लेकिन जब वह 12 साल के थे तभी कार्डिफ चले गए थे। स्कॉलरशिप पर पढ़ाई करने के लिए वह ईटन गए थे। सिविल सेवक बनने से पहले वह ऑक्सफोर्ड और स्टैनफोर्ड यूनिवरिस्टी से पढ़ाई कर चुके हैं। काफी बाद में वे राजनीति में शामिल हुए। सुएला ब्रेवरमैन भारतीय मूल की उम्मीदवार सुएला ब्रेवरमैन ने फरेहम और वाटरलूविल सीट से जीत हासिल की है। ऋसि सुनक की सरकार में वह कुछ दिनों के लिए मंत्री भी बनी थी, लेकिन बाद उनको एक विवादित बयान की वजह से मंत्री पद से हटा दिया गया था। मेट्रोपॉलिटन पुलिस पर उन्होंने फिलिस्तीन समर्थक प्रदर्शनकारियों के प्रति बहुत नरम रुख अपनाने का आरोप लगाया था। प्रीत कौर गिल लेबर पार्टी की कैंडिडेट प्रीत कौर गिल भी चुनाव जीत गई हैं। प्रीत कौर गिल बर्म्हिंगम एजबस्टन सीट से चुनाव जीती हैं। हालांकि, प्रीत कौर गिल भारत विरोधी बयान के लिए जानी जाती हैं। किसान आंदोलन का उन्होंने समर्थन किया था। उन्होंने हाउस ऑफ कॉमंस में आरोप लगाया कि भारत से संबंध रखने वाले एजेंट ब्रिटेन में सिखों को निशाना बना रहे हैं। प्रीति पटेल प्रीति पटेल ने कंजर्वेटिव पार्टी के टिकट पर लेबर पार्टी के कैंडिडेट को मात दी है। गुजराती मूल की इस राजनेता ने 2019 से 2022 तक गृह सचिव के रूप में कार्य किया है। कंजर्वेटिव पार्टी की प्रीति पटेल 2010 से ही सांसद रही हैं। गगन मोहिंद्र गगन मोहिंद्र पंजाबी हिंदू फैमिली से हैं। वह कंजर्वेटिव पार्टी के सदस्य हैं। वह यूके जनरल इलेक्शन में साउथ वेस्ट हर्ट्स से चुनाव जीते हैं। गगन को 16, 458 वोट्स मिले हैं। उनके माता-पिता पंजाब से थे। जो गगन मोहिंद्र के जन्म से पहले ही यूके चले गए थे। तनमनजीत सिंह धेसी सिख नेता तनमनजीत सिंह धेसी स्लॉ से दोबारा सांसद बने हैं। तनमनजीत सिंह धेसी ब्रिटिश संसद के पहले पगड़ीधारी सिख सांसद हैं। नवेन्दु मिश्रा। लेबर पार्टी के सदस्य नवेंदु मिश्रा ने स्टॉकपोर्ट सीट से जीत हासिल की है। उन्होंने 2019 के चुनावों में भी इस सीट पर परचम लहराया था। उनकी मां गोरखपुर से आती हैं, जबकि उनके पिता उत्तर प्रदेश के कानपुर से हैं। नवेन्दु मिश्रा 21,787 वोटों के साथ फिर से सांसद चुने गए हैं। इस सीट पर 1992 से हर चुनाव में लेबर पार्टी के सांसद ने जीत दर्ज की है। लीसा नंदी लेबर पार्टी की सदस्य लीसा नंदी ने 19,401 वोटों के साथ 2014 से विगन सीट पर अपना कब्जा बरकरार रखा है। वह कोलकाता में जन्मे एक प्रसिद्ध शिक्षाविद दीपक नंदी की बेटी हैं, जो ब्रिटेन में नस्ल संबंधों में अपने काम के लिए जाने जाते हैं। वह 2010 से विगन का प्रतिनिधित्व कर रही हैं।
असम में बाढ़ से हाहाकार, 21 लाख लोग प्रभावित अब तक 62 की मौत*
#floods_in_assam_21_lakh_people_affected देश के पूर्वोत्तर भारत में भारी बारिश और बाढ़ से बुरा हाल है। असम में आसमान से मानों आफत बरस रही है। राज्य की बड़ी नदियां खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं। सड़क, रास्ते, पगडंडियां सब सैलाब में डूब चुकी हैं।बाढ़ से लगातार बिगड़ते हालात के बीच बृहस्पतिवार को छह और लोगों की मौत हो गयी। इसके साथ ही बाढ़ भूस्खलन और तूफान से मरने वालों की संख्या बड़क 62 हो गई है। वहीं, राज्य में बाढ़ से 29 जिलों के 21 लाख से ज्यादा लोग प्रभावित हुए हैं। हालात की गंभीरता को देखते हुए राज्यपाल गुलाब चंद कटारिया ने बाढ़ प्रभावित मोरीगांव जिले का दौरा किया और भूरागांव गांव के प्रभावित लोगों से बातचीत की। उन्होंने मौजूदा बाढ़ की स्थिति की समीक्षा की। इस दौरान राज्यपाल ने जिला प्रशासन को राहत के लिए पर्याप्त इंतजाम करने का निर्देश दिया। जबकि, मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने गुवाहाटी महानगर क्षेत्र में मालीगांव, पांडु बंदरगाह, मंदिर घाट और माजुली में बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों का निरीक्षण किया। इसके अलावा, केंद्रीय मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने डिब्रूगढ़ और तिनसुकिया जिलों में बाढ़ की स्थिति का आकलन किया। सोनोवाल अगले तीन दिनों के लिए विभिन्न बाढ़ प्रभावित जिलों में तैनात रहेंगे। *असम की बाढ़ से 21 लाख से अधिक लोग प्रभावित* सिलचर जिले के ज्यादातर स्कूल-कॉलेज अब राहत केंद्र बन चुके हैं, जहां बाढ़ प्रभावित इलाकों से लोग यहां आकर रह रहे हैं। असम के नागांव, मोरीगांव जिलों का भी यही हाल है। रिपोर्ट में बताया गया कि बाढ़ से 29 जिलों के कुल 21,13,204 लोग प्रभावित हैं, जबकि 57,018 हेक्टेयर कृषि भूमि जलमग्न है। रिपोर्ट के मुताबिक, सबसे अधिक प्रभावित जिलों में धुबरी शामिल है, जहां 6,48,806 लोग प्रभावित हुए हैं। वहीं दरांग में 1,90,261, कछार में 1,45,926, बारपेटा में 1,31,041 और गोलाघाट में 1,08,594 लोग बाढ़ से प्रभावित हुए हैं। *एक हजार से अधिक लोगों को सुरक्षित जगहों पर पहुंचाया गया* प्रशासन ने बाढ़ प्रभावित जिलों में 515 राहत शिविर और वितरण केंद्र स्थापित किए हैं, जहां करीब 3.86 लाख लोग शरण लिए हुए हैं। बाढ़ का पानी घरों में घुसने के बाद कई बाढ़ प्रभावित लोग सुरक्षित स्थानों, ऊंची स्थलों, स्कूल भवनों, सड़कों और पुलों पर शरण ले रहे हैं। बुलेटिन के मुताबिक विभिन्न एजेंसियों ने नावों का उपयोग कर एक हजार से अधिक लोगों और 635 जानवरों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया है। *काजीरंगा नेशनल पार्क में भी कई जानवर डूबे* वहीं काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में अभी तक 31 पशुओं की डूबने के कारण मौत हो चुकी है और 82 अन्य को बाढ़ के पानी से बचाया गया है। एक अधिकारी ने बृहस्पतिवार को यह जानकारी दी। अधिकारी ने बताया कि उद्यान में 23 हॉग हिरण की मौत डूबने से हुई जबकि 15 की मौत इलाज के दौरान हुई। वन अधिकारियों ने 73 हॉग हिरण, दो-दो ऊदबिलाव व साम्भर और एक स्कोप उल्लू सहित अन्य जानवरों को बचा लिया है। अधिकारी ने बताया कि अभी 20 जानवरों का उपचार हो रहा है जबकि 31 अन्य पशुओं को इलाज के बाद छोड़ दिया गया है। *गंभीर रूप से प्रभावित जिलों में ये शामिल* बाढ़ से गंभीर रूप से प्रभावित जिलों में बारपेटा, बिस्वनाथ, कछार, चराइदेव, चिरांग, दरांग, धेमाजी, धुबरी, डिब्रूगढ़, गोलपारा, गोलाघाट, हैलाकांडी, होजई, जोरहाट, कामरूप, कामरूप मेट्रोपॉलिटन, पूर्वी कार्बी आंगलोंग, पश्चिम कार्बी आंगलोंग, करीमगंज, लखीमपुर, माजुली, मोरीगांव, नागांव, नलबाड़ी, शिवसागर, सोनितपुर और तिनसुकिया शामिल हैं।
कौन हैं किर स्टार्मर जो बनेंगे ब्रिटेन के नए प्रधानमंत्री, नर्स मां और कारीगर पिता का बेटा कैसे पहुंचा सत्ता के शीर्ष पर?

#whoislabourpartychiefkeirstarmer 

कीर स्टार्मर ब्रिटेन के अगले प्रधानमंत्री होंगे। उनकी लेबर पार्टी ने आम चुनाव में प्रचंड जीत हासिल की है।14 साल बाद लेबर पार्टी की सत्ता में वापसी हो रही है और वो भी ऐतिहासिक जीत के साथ। लेबर पार्टी अब तक 410 सीटें जीत चुकी है।

पार्टी की कमान संभालने के 4 साल के अंदर रचा इतिहास

कीर स्टार्मर ने लेबर पार्टी की डोर साल 2020 में उस समय संभाली थी जब पार्टी को पिछले 85 साल में सबसे करारी हार का सामना करना पड़ा था। उस समय स्टार्मर ने पार्टी की जीत को ही अपना मिशन बना लिया था, जिसको उन्होंने 4 साल के अंदर ही पूरा कर दिखाया और भारी बहुमत के साथ सत्ता में वापस आए।

स्टार्मर खुद को कहते हैं "मजदूर वर्ग की पृष्ठभूमि" वाला

कीर स्टार्मर का संसदीय क्षेत्र साल 2015 से हॉबर्न और सेंट पैनक्रास है। स्टार्मर ख़ुद को "वर्किंग क्लास की पृष्ठभूमि" से बताते हैं। उनके पिता एक टूलमेकर थे और उनकी माँ एक नर्स के रूप में काम करती थीं। उनकी माँ को स्टिल्स रोग था जो एक दुर्लभ ऑटोइम्यून बीमारी है। उन्होंने रीगेट ग्रामर स्कूल में पढ़ाई की है। उनके दाखिला लेने के दो साल बाद ये एक निजी स्कूल बन गया था। 16 साल की उम्र तक उनकी फीस स्थानीय परिषद भरता था। 

यूनिवर्सिटी जाने वाले वह अपने परिवार के पहले सदस्य

बचपन से ही पढ़ाई में काफी अच्छे थे। स्कूल के बाद यूनिवर्सिटी जाने वाले वह अपने परिवार के पहले सदस्य बने और लीड्स यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया। स्टार्मर ने लीड्स यूनिवर्सिटी में कानून में ग्रेजुएशन की, जहां वो लेबर क्लब के सदस्य बने। 1985 में उन्होंने बैचलर ऑफ लॉ (एलएलबी) की डिग्री हासिल की। लीड्स के बाद उन्होंने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में क़ानून की पढ़ाई की। ऑक्सफोर्ड के सेंट एडमंड हॉल में पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई की और 1986 में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से बैचलर ऑफ सिविल लॉ (बीसीएल)किया. जिसके बाद वो बैरिस्टर बने।

राजनीतिक सफर

कीर स्टार्मर साल 2015 से राजनीति में सक्रिय हैं। साल 2015, 2017, 2019 में उन्होंने लगातार तीन बार जीत हासिल की और 2020 में विपक्ष के नेता की जिम्मेदारी संभाली। 16 साल की उम्र से ही स्टार्मर राजनीति में सक्रिय थे, उनका रुझान लेबर पार्टी की तरफ था। वह 16 साल की उम्र में लेबर पार्टी यंग सोशलिस्ट्स के सदस्य बन गए थे। राजनीति के साथ-साथ स्टार्मर पेशे से बैरिस्टर हैं। साथ ही उन्होंने नॉर्थ आयरलैंड पुलिसिंग बोर्ड में मानवाधिकार सलाहकार की जिम्मेदारी निभाई और 2002 में उन्हें क्वीन्स काउंसल भी नियुक्त किया गया था।

ब्रिटेन में अब की बार 400 पार, लेबर पार्टी की बंपर जीत, कीर स्टार्मर होंगे अगले पीएम

#ukelectionresult 

ब्रिटेन में इस बार के चुनाव में बड़ा उलटफेर हुआ है। अब तक के नतीजों में ब्रिटेन की जनता सत्ता में बड़ा बदलाव करती दिख रही है। ब्रिटेन में लेबर पार्टी 14 साल बाद सत्ता में वापसी करने जा रही है। लेबर पार्टी सरकार बनाने के लिए ज़रूरी 326 सीटों का आँकड़ा पार कर चुकी है।लेबर पार्टी अब तक 410 सीटें जीत चुकी है जबकि मौजूदा प्रधानमंत्री ऋषि सुनक की कंजर्वेटिव पार्टी 119 सीटें ही अभी तक जीत सकी है।पिछले चुनाव में कंजर्वेटिव पार्टी ने जहां जीत हासिल की थी, वहां कई सीटों पर कंजर्वेटिव पार्टी इस बार तीसरे स्थान पर खिसक गई है। 

लेबर पार्टी के नेता ने कहा, परिवर्तन यहीं से शुरू होता है

चुनावों आंकड़ों के बाद ब्रिटेन का नया प्रधानमंत्री लेबर पार्टी के किएर स्टार्मर का बनना तय है। लेबर पार्टी के कीर स्टार्मर होलबोर्न एवं सेंट पैनक्रास सीट से जीत गए हैं । लेबर पार्टी को मिली जीत पर 61 वर्षीय स्टार्मर ने कहा, मैं आपकी आवाज बनूंगा, आपका साथ दूंगा, हर दिन आपके लिए लड़ूंगा। लेबर पार्टी के नेता ने कहा, परिवर्तन यहीं से शुरू होता है क्योंकि यह आपका लोकतंत्र है, आपका समुदाय है, आपका भविष्य है। आपने मतदान किया है। अब समय आ गया है कि हम अपना काम करें।

परिणामों से सीखने के लिए बहुत कुछ-सुनक

निवर्तमान प्रधानमंत्री सुनक ने कहा कि इन परिणामों से सीखने और विचार करने के लिए बहुत कुछ है। ब्रिटेन के आम चुनाव में हार की जिम्मेदारी लेते हुए उन्होंने मतदाताओं से कहा, मुझे माफ कर दीजिए। ब्रिटेन में भारतीय मूल के प्रधानमंत्री सुनक ने उत्तरी इंग्लैंड में रिचमंड एवं नॉर्थलेरटन सीट पर 23,059 वोट के अंतर के साथ दोबारा जीत हासिल की, लेकिन वह देश में 14 साल की सरकार के बाद अपनी पार्टी को दोबारा से जीत हासिल कराने में असफल रहे।

कंजर्वेटिव पार्टी के इतिहास की सबसे बुरी हार

कंजर्वेटिव पार्टी की ये उसके इतिहास की सबसे बुरी हार है। 2019 के चुनाव में 650 सीटों वाली संसद में कंजर्वेटिव पार्टी को 364 सीटों पर जीत मिली थी और बोरिस जॉनसन प्रधानमंत्री बने थे। उसे पिछली बार की तुलना में 47 सीटों का फ़ायदा हुआ था। लेकिन इस बार स्थिति बिल्कुल उलट है। ब्रिटेन में सरकार बनाने के लिए 326 सीटों का आँकड़ा पार करना होता है। 2019 के चुनाव में विपक्षी लेबर पार्टी की सीटों की संख्या घटकर 203 रह गई थी। यहाँ तक कि लेबर पार्टी अपनी कई पारंपरिक सीटें गँवा बैठी थी।

ब्रिटेन में अब की बार 400 पार, लेबर पार्टी की बंपर जीत, कीर स्टार्मर होंगे अगले पीएम*
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ब्रिटेन में इस बार के चुनाव में बड़ा उलटफेर हुआ है। अब तक के नतीजों में ब्रिटेन की जनता सत्ता में बड़ा बदलाव करती दिख रही है। ब्रिटेन में लेबर पार्टी 14 साल बाद सत्ता में वापसी करने जा रही है। लेबर पार्टी सरकार बनाने के लिए ज़रूरी 326 सीटों का आँकड़ा पार कर चुकी है।लेबर पार्टी अब तक 410 सीटें जीत चुकी है जबकि मौजूदा प्रधानमंत्री ऋषि सुनक की कंजर्वेटिव पार्टी 119 सीटें ही अभी तक जीत सकी है।पिछले चुनाव में कंजर्वेटिव पार्टी ने जहां जीत हासिल की थी, वहां कई सीटों पर कंजर्वेटिव पार्टी इस बार तीसरे स्थान पर खिसक गई है। *लेबर पार्टी के नेता ने कहा, परिवर्तन यहीं से शुरू होता है* चुनावों आंकड़ों के बाद ब्रिटेन का नया प्रधानमंत्री लेबर पार्टी के किएर स्टार्मर का बनना तय है। लेबर पार्टी के कीर स्टार्मर होलबोर्न एवं सेंट पैनक्रास सीट से जीत गए हैं । लेबर पार्टी को मिली जीत पर 61 वर्षीय स्टार्मर ने कहा, मैं आपकी आवाज बनूंगा, आपका साथ दूंगा, हर दिन आपके लिए लड़ूंगा। लेबर पार्टी के नेता ने कहा, परिवर्तन यहीं से शुरू होता है क्योंकि यह आपका लोकतंत्र है, आपका समुदाय है, आपका भविष्य है। आपने मतदान किया है। अब समय आ गया है कि हम अपना काम करें। *परिणामों से सीखने के लिए बहुत कुछ-सुनक* निवर्तमान प्रधानमंत्री सुनक ने कहा कि इन परिणामों से सीखने और विचार करने के लिए बहुत कुछ है। ब्रिटेन के आम चुनाव में हार की जिम्मेदारी लेते हुए उन्होंने मतदाताओं से कहा, मुझे माफ कर दीजिए। ब्रिटेन में भारतीय मूल के प्रधानमंत्री सुनक ने उत्तरी इंग्लैंड में रिचमंड एवं नॉर्थलेरटन सीट पर 23,059 वोट के अंतर के साथ दोबारा जीत हासिल की, लेकिन वह देश में 14 साल की सरकार के बाद अपनी पार्टी को दोबारा से जीत हासिल कराने में असफल रहे। *कंजर्वेटिव पार्टी के इतिहास की सबसे बुरी हार* कंजर्वेटिव पार्टी की ये उसके इतिहास की सबसे बुरी हार है। 2019 के चुनाव में 650 सीटों वाली संसद में कंजर्वेटिव पार्टी को 364 सीटों पर जीत मिली थी और बोरिस जॉनसन प्रधानमंत्री बने थे। उसे पिछली बार की तुलना में 47 सीटों का फ़ायदा हुआ था। लेकिन इस बार स्थिति बिल्कुल उलट है। ब्रिटेन में सरकार बनाने के लिए 326 सीटों का आँकड़ा पार करना होता है। 2019 के चुनाव में विपक्षी लेबर पार्टी की सीटों की संख्या घटकर 203 रह गई थी। यहाँ तक कि लेबर पार्टी अपनी कई पारंपरिक सीटें गँवा बैठी थी।
खत्म हुआ इंतजार, सोशल मीडिया पर दिखा मिर्जापुर 3 का भौकाल, खली मुन्ना भैया की कमी, देखो लोगों के रिएक्शन

'गजब भौकाल है रे बाबा...।' ऐसा हम नहीं, लोग बोल रहे हैं। क्योंकि 5 जुलाई आ चुकी है। और प्राइम वीडियो पर 'मिर्जापुर सीजन 3' स्ट्रीम होना शुरू हो गया है। जिसे देखने के बाद लोगों ने अपने रिएक्शन्स सोशल मीडिया पर शेयर किए हैं। कालीन भैया के लापता होने से लेकर गुड्डू भैया के गद्दी पर बैठने तक, जो भी उथल-पुथल हुई है, वो देख सब खुशी के मारे उछल रहे हैं। आइए जानते हैं कि लोगों के रिव्यू के हिसाब से इस बार का सीजन कैसा है।

Mirzapur Season 3 का इंतजार लोग लंबे समय से किया जा रहा था। बीते दो सीजन्स को लोगों ने खूब पसंद किया था। और आगे की कहानी जानने के लिए फैंस आतुर हो रहे थे। जिस पर फुल स्टॉप लगाते हुए मेकर्स ने आखिरकार पासा फेंक दिया है और सबका ध्यान मिर्जापुर की कुर्सी की तरफ खींच लिया है। 10 एपिसोड की इस सीरिज को लेकर लगातार तरह-तरह से प्रमोशन सोशल मीडिया पर किया जा रहा था। और अब ये रात 12 बजे से स्ट्रीम होनी शुरू हो गई है।

'मिर्जापुर सीजन 3' देखे के बाद एक यूजर ने लिखा, 'बाबूजी का ही बेटा है। मिर्जापुर सीजन 3 गजब भौकाल है रे बाबा। कंट्रोल, पावर, इज्जत।' एक यूजर ने बीना त्रिपाठी और नौकरानी राधिया का एक क्लिप शेयर किया, जिसमें स्पॉयलर ही रिवील कर दिया। वहां, कालीन भैया की बीवी का बेटा डिस्कवरी चैनल सुनते ही रोते-रोते चुप हो जाता है, जिसके बाद लोग कहते हैं- बाऊ जी का ही बेटा है।

एक यूजर ने लिखा, 'मिर्जापुर सीजन 3 गजब भौकाल, बवाल हैं। मुन्ना भैया मुन्ना भैया तो शुरू में ही चल बसे। कंट्रोल, पॉवर, इज्जत।' हालांकि एक यूजर ने सीरीज के 7वें एपिसोड को वाहियात बताया है। कहा कि इस बार कालीन भैया को शोपीस की तरह इस्तेमाल किया गया है। पुराने किरदारों का उनकी क्षमता के हिसाब से उपयोग नहीं किया गया। मुन्ना भैया से ही था मिर्जापुर, और वो नहीं तो ये सीजन नहीं।

एक यूजर ने सीजन 3 को नापसंद करते हुए कहा, 'एक्सल मूवीज आपको इस सीजन को लाने में 4 साल लगे लेकिन फिर भी सब बर्बाद कर दिया। लानत है यार।' इसके अलावा एक और सीन शेयर किया गया, जिसमें गुड्डू पंडित और गोलू के बीच एक किसिंग सीन देखने को मिलता है। जो रिश्ते में जीजा और सालीसाहिबा हैं। ये देख लोग गुस्सा जाहिर कर रहे हैं। एक यूजर ने लिखा, 'बहुत कुछ रह गया... 3 में वो मजा नहीं है, जो 1 और 2 में था। इस बार तो मुन्ना भैया बहुत याद आए। कोई अच्छे डायलॉग नहीं। 5 में से 2 रेटिंग दूंगा।' और कुछ ने मुन्ना भैया के डेड बॉडी वाली फोटो शेयर कर लिखा, 'पर मुन्ना भैया तो अमर थे।'

मजबूरी में शुरू हुई गैंगस्टरबाजी का मजा ले रहे गुड्डू पंडित, मिर्जापुर की गद्दी का मिजाज संभाल पाएंगे या नहीं? गुड्डू के गुबार को, गेम प्लान से मैनेज कर रहीं गोलू का गोल पूरा होगा या नहीं? जौनपुर के जूनियर शुक्ला उर्फ शरद, पूर्वांचल पर पकड़ की ओपन पोजिशन में सिक्का भिड़ाकर पापा का सपना पूरा कर पाएंगे या नहीं? 

प्रेम के प्रपंच में भाई को भेंट चढ़ा चुके छोटे त्यागी का अगला टारगेट क्या होगा? मौत के मुहाने से लौट रहे कालीन भैया के लिए अब मिर्जापुर रेड कार्पेट बिछाएगा या कांटे? और सबसे टॉप प्रायोरिटी बात… मुन्ना भैया मृत्यु की शैय्या से लौटेंगे या निपटे हुए ही रहेंगे? ‘मिर्जापुर’ का दूसरा सीजन जनता के लिए ढेर सारे सवाल छोड़कर गया था. और जवाब आ गया है ‘मिर्जापुर 3’ के साथ. मगर हर जवाब की नियति है, एक नए सवाल से टकराना… और अब टक्कर का सवाल है- क्या ‘मिर्जापुर 3’, शो की बाट जोहती जनता की मूड पर फिट है? या फिर ये आउट ऑफ सिलेबस हो गया है?!

गुड्डू पंडित (अली फजल) पहले बागी बने, फिर गुंडे, फिर गैंगस्टर और अब उनको बनना है बाहुबली. पहले सीजन से ही ये क्लियर हो गया था कि गुड्डू पंडित असल में पावर-पिपासु हैं ही नहीं. ये आदमी इस संसार में केवल अराजकता का एजेंट है. अब जब उसके पास मिर्जापुर की पावर है तो वो करेगा क्या? 

‘मिर्जापुर 3’ शुरू होता है गोलू (श्वेता त्रिपाठी) से, जो कालीन भैया उर्फ अखंडानंद त्रिपाठी या उनकी डेड बॉडी मिले बिना सांस नहीं लेगी. कालीन भैया सिर्फ ‘किंग ऑफ मिर्जापुर’ नहीं थे, पूर्वांचल की पावर को जोड़ने वाला एक पावर ग्रिड थे. उनके जाने से अब ये पावर बिखर रही है. गुड्डू भले उनकी कुर्सी पर बैठकर खुद को खलीफा घोषित कर दें, लेकिन पावर का ये नियम है कि वो मिलती नहीं, कमाई जाती है. 

और अपने खराब फ्यूज के लिए मशहूर/बदनाम गुड्डू का सबसे बड़ा चैलेंजर है जौनपुर का नया झंडाबरदार शरद शुक्ला, सुपुत्र ऑफ रतिशंकर शुक्ला. जिसे गुड्डू ने एक सांस में क-ख-ग पढ़ते हुए मार दिया था. मगर शरद पढ़ा लिखा चतुर-चालाक-चौकस लड़का है. और सब्र का भरपूर भंडार रखे हुए इस लड़के का दिमाग ए-बी-सी भी नहीं, अल्फा-बीटा-गामा पढ़ता है. 

गुड्डू ने तो थोक के भाव दुश्मन कमाए ही हैं, गोलू के हिस्से भी एक दिलजला आया है. भरत त्यागी बनकर जी रहा, उसका जुड़वा छोटा भाई, शत्रुघ्न. गोलू के चक्कर मे पड़कर भाई खो चुका शत्रुघ्न अब आशिकी में केकड़ा बनने जा रहा है (ये रेफरेंस शो देखकर समझ आएगा). पंडित परिवार के सिर नया दुख आया है. एडवोकेट रमाकांत पंडित (राजेश तैलंग) ने सीजन 2 में गुड्डू को बचाने के लिए एस. एस. पी. मौर्या की हत्या की थी. अब वकील साहब स्वयं जेल में हैं और कैदियों को देखकर उनकी नैतिकता का कांटा डगमगाने लगा है. उनका घर अब उनकी बेटी का प्रेमी रॉबिन (प्रियांशु पैन्युली) के जिम्मे है. 

इधर कालीन भैया की पत्नी बीना (रसिका दुग्गल), त्रिपाठी परिवार के आखिरी चिराग को मिर्जापुर की आंधियों से बचाने में जुटी हैं. गुड्डू को उनका फुल सपोर्ट है. और उधर लखनऊ में स्वर्गीय मुन्ना त्रिपाठी की पत्नी, मुख्यमंत्री माधुरी यादव (ईशा तलवार) के सामने भी सर्वाइवल का सवाल बहुत तगड़ा है. 

माधुरी को अपने पिता की परंपराओं पर चल रहे उनके पॉलिटिकल साथियों और दुश्मनों से निपटना है. वो प्रदेश को भयमुक्त प्रदेश भी बनाना चाहती है और बाहुबलियों में कानून का भय भी भरना चाहती है. मगर बदले और ईगो के ईंधन से हॉर्सपावर जेनरेट करने वाली इस प्रजाति का इलाज पॉलिटिक्स से होना नामुमकिन ही है. बाहुबली, जगत के संहारकर्ता को अपने हठ से प्रसन्न कर चुके भस्मासुर हैं. बस देखना है कि सतत दुस्साहस, हनक और निष्ठुरता की थाप पर नृत्य करते इन राक्षसों में कौन अपने सिर पर हाथ पहले रखता है!

‘मिर्जापुर’ का एक ट्रेडमार्क रहा है, खून-खच्चर से दर्शकों को शॉक करना. मगर पहले सीजन से तीसरे तक आते-आते इसका इस्तेमाल अब ज्यादा समझदारी से होने लगा है. ‘मिर्जापुर 3’ की खासियत इसकी इंटेलिजेंस है. पिछले दो सीजन के मुकाबले, अब किरदार दिमाग ज्यादा लगा रहे हैं, यहां तक कि गुड्डू भी. वायलेंस गुड्डू की यूएसपी है, ये बात शो के राइटर्स ने भी समझी है और इसे ध्यान से इस्तेमाल किया है. लेकिन गुड्डू को हमेशा भभकते देखने की इच्छा रखने वालों को ये बात थोड़ी कम पसंद आएगी. हालांकि, शो के अंत में जेल के अंदर डिजाइन एक फाइट सीक्वेंस में इसकी पूरी भरपाई है. 

‘मिर्जापुर 3’ में कॉमिक रिलीफ पहले दो सीजन के मुकाबले काफी कम है. जहां है भी, वो कहानी में थोड़ी जबरन घुसाई लगती है और मूड को डिस्टर्ब ही करती है. जैसे एक अंडरकवर कॉप किरदार और प्रदेश के गृहमंत्री की जबरन गलत शब्द पढ़ने की नौटंकी. मिर्जापुर में शुरू से ही कई कहानियां आपस में क्रॉस होती हैं. इस बार इसे बहुत बेहतर तो डील किया गया है, मगर शत्रुघ्न त्यागी का सब-प्लॉट और एक्सप्लोर किया जाना चाहिए था. सीजन 2 में भी त्यागियों का मामला अधूरा सा रह गया था, इस बार भी वो मेन मुद्दे में बहुत ज्यादा योगदान नहीं दे पाए. 

दूसरे सीजन में आया एक नया किरदार, जनता का फेवरेट बन गया था. इस बार उसे और ज्यादा अच्छे से दिखाए जाने की उम्मीद थी, मगर शो ने यहां निराश किया. राइटिंग में किरदारों को मार देना अक्सर ये दिखाता है कि राइटर उससे बेनिफिट नहीं निकाल पा रहे और उसे ख्वामख्वाह की जटिलता मानकर निपटा दिया गया है. लेकिन इस किरदार से काफी कुछ काम लिया जा सकता था. 

इस बार शो का असली मजा बांधा है शरद शुक्ला और माधुरी ने. इन दो किरदारों की राइटिंग बहुत ठोस है. दो यंग, अच्छे पढ़े लिखे और एक नए यूनिवर्स में जीने का ख्वाब देखते लोगों का, विरासत में मिले कीचड़ में उतरना. और सिर्फ बैलेंस बनाना ही नहीं, उसमें पांव जमाना, एक देखने लायक डेवलपमेंट है. 

‘मिर्जापुर 3’ में सबसे ज्यादा मजा आता है महिला किरदारों को देखते हुए. बीना, माधुरी, गोलू, रधिया और जरीना अपनी-अपनी रौ में दमदार लगते हैं. डायरेक्टर्स गुरमीत सिंह और आनंद अय्यर के साथ-साथ राइटर्स की टीम को इसके लिए क्रेडिट दिया जाना चाहिए. कलम में बारूद भरकर लिखे पुरुष किरदारों के बीच, ऐसे असरदार महिला किरदार बड़े भौकाली लगते हैं.

तीसरे सीजन में आकर ‘मिर्जापुर’ किरदारों के ट्रीटमेंट, कंफ्लिक्ट और कैमरे की नजर से डिटेल्स दिखाने में भी बेहतर हुआ है. डायलॉग हमेशा की तरह तैशबाजी से भरे हैं और इमोशंस वाले सीन्स में आपको इमोशंस महसूस होते हैं. शो ने अपना एक और फीचर बरकरार रखा है, किसी भी परिस्थिति में आप किरदारों से जैसे बर्ताव की आशा करते हैं, वो वैसा बिल्कुल नहीं करते. उसका ठीक उल्टा भी नहीं करते, बल्कि कुछ अलग ही कर देते हैं.

मिर्जापुर से लाख शिकायतें हों, मगर एक्टर्स के काम के मामले में इस शो का लेवल बहुत ऊपर है. अली फजल, पंकज त्रिपाठी, रसिका दुग्गल और श्वेता त्रिपाठी तो पहले ही सीजन से लगातार फॉर्म में हैं. ये अपने किरदारों में आधा रत्ती भी गलती नहीं करते. लेकिन इस बार अंजुम शर्मा और ईशा तलवार ने अपने किरदारों को, परफॉरमेंस से कमाल का वजन दिया है. दोनों एक्टर्स की बॉडी लैंग्वेज, आवाज का उतार-चढ़ाव और आंखें कमाल का असर छोड़ती हैं. विजय वर्मा जैसे ही माहौल बनाते हैं, राइटिंग उनका साथ छोड़ देती है. जिस एक्टर ने शायर का किरदार किया है उसका काम भी दमदार है. और हमेशा की तरह सपोर्टिंग कास्ट भी ठोस असर करती है.

मिर्जापुर में शुरू से ही एक मोरल स्केल यानी नैतिकता के कांटे की कमी रही है. जो अब तीसरे सीजन में और ज्यादा महसूस होती है. 6 साल और तीन सीजन सर्वाइव कर चुके इस शो में अभी तक किसी एक किरदार से आप किसी तरह की नैतिकता की कोई उम्मीद नहीं कर सकते. ये ठीक है कि एक पूरे डार्क, कुरूप संसार को स्क्रीन पर रचने के लिए ऐसा जरूरी है. लेकिन एंटरटेनमेंट के जाल में एक तार इस बात का भी होना जरूरी है कि दर्शक किरदारों को सपोर्ट करने का मन बनाए. जब ये नहीं होता तो उसी कोने से दर्शक का अटेंशन निकल भागता है. किसी को उसका एम्बिशन पूरा करते देखना चाहे. 

शॉक वैल्यू के लिए किरदारों का सांचा तोड़ देना एक अपवाद हो तो दिलचस्प लगता है, सरप्राइज करता है. लेकिन ऐसा करते चले जाना भी दोहराव ही है, जो बोर भी कर सकता है. ‘मिर्जापुर 3’ के अंत में आते-आते शो के दो सबसे प्रमुख किरदार जो करते हैं, उसकी उनसे उम्मीद ही नहीं थी. जहां एक से उसके शाही बर्ताव और वादा निभाने की उम्मीद थी, वहीं दूसरे से परिवार के लिए पिघलने की एक मिडल क्लास आकांक्षा भी थी. हालांकि, कुल मुलाकर ‘मिर्जापुर 3’ शॉक-सरप्राइज-सनक से ध्यान तो जरूर बांधे रखता है. एक्टर्स की शानदार परफॉरमेंस और किरदारों का तैश, एड्रेनलिन तो बढ़ाता ही है. डायलॉगबाजी और क्लाइमेक्स में कालीन भैया का खेल सोने पे सुहागा है.