नीतीश कुमार ने फिर साबित किया नहीं है उनका कोई तोड़ : राजनीतिक सफर खत्म होने की हो रही थी चर्चा, उलटे अब और बढ़ गया कद, पढिए...
डेस्क : वर्ष 2022 में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के चौकाने वाले फैसले के बाद यह चर्चा जोरो पर शुरु हो गई थी अब उनका राजनीतिक सफर खात्मे की ओर है। लेकिन हुआ ठीक इसका उल्टा। नीतीश कुमार का राजनीतिक कद अब और बढ गया है। नीतीश कुमार का कद इस लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद इस बात से भी लगाया जा सकता है कि केन्द्र में सरकार बनने के अंतिम क्षण तक महागठबंधन उनकी ओर टकटकी लगाए रखा। जदयू के वरिष्ठ नेता के.सी त्यागी ने तो यहा तक खुलासा किया कि नीतीश कुमार को महागठबंधन की ओर से पीएम पद तक ऑफर किया गया था।
दरअसल 10 अगस्त 2022 को दूसरी बार नीतीश कुमार ने पाला बदलते हुए राजद के साथ जाकर सरकार बना लिया था। बिहार में 2022 के बाद महागठबंधन की सरकार करीब 17 महीनें चली। हालांकि नीतीश कुमार ने एक बार फिर पाला बदलकर 28 जनवरी 2024 को जदयू-भाजपा की नई सरकार बना ली। जिसके बाद से देश के सभी नेता एकसुर में यह कर रहे थे कि नीतीश कुमार अब विश्वास के काबिल नहीं रह गए है।
वर्ष 2022 में जब नीतीश कुमार ने राजग का साथ छोड़कर राजद के साथ मिलकर महागठबंधन का सरकार बनाया था तो उस दौरान प्रदेश में जमकर बयानबाजी हुई थी। सीएम नीतीश कुमार हर कार्यक्रम के दौरान कहा करते थे कि मिट्टी में मिल जाएंगे लेकिन भाजपा में नहीं जाएंगे...। इतना ही नहीं वे बीजेपी की नई टीम पर भी जमकर बरसते थे।
वहीं बीजेपी द्वारा भी उनके खिलाफ जमकर हमला बोला जाता था। बीजेपी के सभी बड़े नेता यह कहते नहीं थकते थे कि अब नीतीश कुमार के लिए सारे दरवाजे बंद हो चुके है। उनकी अब बीजेपी में किसी हाल मे इंट्री नही हो सकती। हालांकि यह सब बाते धरी की धरी रह गई। राजनीति में कोई न तो अपना होता है ना ही पराया वाली कहावत चरितार्थ हुई और दोनो एक साथ चले आए।
हालांकि जब नीतीश कुमार ने 28 जनवरी को 2024 को पलटी मारते हुए बीजेपी के साथ गए थे तो राजनीतिक हलको में यह चर्चा बड़े जोरो से चली कि अब नीतीश कुमार का राजनीतिक प्रासंगिकता खत्म हो जायेगी। उनपर जनता और किसी दल का विश्वास नहीं रह गया है। लेकिन लोकसभा चुनाव में यह बात गलत साबित हुई। चुनाव परिणाम ने यह साबित किया कि अभी बिहार में नीतीश कुमार राजनीति की धुरी हैं।
चुनाव परिणाम में जिस तरह से एनडीए को नुकसान हुआ उससे यह बात साफ है कि बिहार में नीतीश कुमार एनडीए के साथ नहीं होते तो एनडीए को भारी नुकसान होता और बहुमत के आंकड़े को पार करना कठिन हो जाता। बिहार में एनडीए को चुनाव के ठीक पहले विपक्षी गठबंधन का हिस्सा रहे नीतीश कुमार एनडीए में लौटे थे। उनकी वापसी ने एनडीए की साख बिहार में बचायी। बिहार में एनडीए को 30 सीटों पर जीत मिली। पड़ोसी राज्य यूपी में एनडीए को बड़ा झटका लगा। ऐसे में बिहार की दो तिहाई सीटें हासिल कर एनडीए ने पूर्ण बहुमत प्राप्त करने में सफल रही।
दरअसल नीतीश कुमार की एक डिफेंसिव तकनीक है। वे बहुत जल्दबाजी में नहीं रहते है। वे सही वक्त का इंतजार करते है और अपना पत्ता खोलते है। आप यदि उनके राजद के साथ जाने और फिर साथ छोड़ने पर नजर डाले तो आपको पता चलेगा कि अंतिम क्षण तक किसी को यह पक्का जानकारी नही थी कि वे पाला बदलने वाले है। नीतीश कुमार क्रिकेट के उस नो बॉल की तरह इंतजार करते है कि, जहां गलत शॉर्ट पर आउट होने का खतरा भी नहीं और तुक्का लगा तो छक्का। वहीं बिहार के संदर्भ में गठबंधन का टूटना और नया एलायंस बना लेने में नीतीश कुमार को 'एक्सपर्ट' के तौर पर ट्रीट किया जाता है।
लोकसभा चुनाव के बाद नीतीश कुमार का कद तो इतना बढ़ गया है कि जदयू एमएलसी नीरज कुमार ने भी कहा है कि सीएम नीतीश का मतलब है, मैं हूं.. यानी नीतीश कुमार का मतलब है "मैं हूं" और जब तक "मैं हूं तब तक सत्ता मेरे हाथ में रहेगा"।
वहीं अब तो बीजेपी ने खुले तौर पर बिहार में नीतीश कुमार को अपना नेता मान लिया है। बिहार के दोनों उप मुख्यमंत्रियों ने साफ तौर पर कहा है कि 2025 में बीजेपी नीतीश कुमार के ही नेतृत्व में चुनाव लड़ेंगी।
Jun 21 2024, 17:56