अनुसूया जयंती आज, सती अनुसूया की परीक्षा लेने में शिशु बन गए थे त्रिदेव।
रिपोर्ट: विजय कुमार गोप
आज सती अनुसूया जयंती मनाई जाएगी। पतिव्रता स्त्रियों श्रेणी में अनुसूया जी का स्थान सर्वोपरि है। दक्ष प्रजापति की 24 कन्याओं में से एक अनुसूया, मन से पवित्र और निश्छल प्रेम का जीता-जागता उदाहरण थीं। उनका विवाह ब्रह्मा जी के मानस पुत्र परम तपस्वी महर्षि अत्रि जी के साथ हुआ था। अपनी सेवा तथा समर्पित प्रेम से इन्होंने अपने पति धर्म का सदैव पालन किया।
पौराणिक कथाओं में कहा जाता है कि जब देवता आकाश मार्ग से गुजरते थे, तो उन्हें देवी अनुसूया के तप और प्रताप का अनुभव होता था। माता सीता जी भी इनके तेज से बहुत प्रभावित हुई थी। वनवास में जाने के दौरान उन्होंने सीता जी को पतिव्रत धर्म की शिक्षा दी थी।
पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती को हुआ द्वेष।
पौराणिक कथा के अनुसार, देव ऋषि नारद बारी-बारी से विष्णुजी, शिव जी और ब्रह्मा जी की अनुपस्थिति में विष्णु लोक, शिवलोक तथा ब्रह्मलोक पहुंचे। वहां उन्होंने लक्ष्मी जी, पार्वती जी और सावित्री जी के सामने अनुसूया के पतिव्रत धर्म की बढ़-चढ़ के प्रशंसा की। उनके सती धर्म के बारे में सुनकर देवी पार्वती, लक्ष्मी जी और देवी सरस्वती जी के मन में द्वेष का भाव जागृत हो गया।
तीनों देवियों ने अनुसूया कि सच्चाई एवं पतिव्रता के धर्म की परिक्षा लेने की ठानी तथा अपने पतियों शिव, विष्णु और ब्रह्मा जी को अनसूया के पास परीक्षा लेने के लिए भेजना चाहा। हालांकि, त्रिदेवों ने पहले तो देवियों को समझाने का प्रयास किया कि यह पाप करने के लिए उन्हें विवश नहीं करें। मगर, जब उनकी एक भी नहीं चली, तो वे अत्रि ऋषि के आश्रम पहुंचे।
जब त्रिदेवों ने ली परीक्षा
वहां जाकर देवों ने साधुओं के वेश में पहुंचकर भोजन मांगा। जब देवी अनसूया उन्हें भोजन देने लगी, तो उन्होंने शर्त रखी कि वे तीनों तभी यह भोजन स्वीकार करेंगे जब देवी निर्वस्त्र होकर उन्हें भोजन परोसेंगी। इस पर देवी चिंता में डूब गईं। अत: देवी ने आंखे मूंद कर पति को याद किया इस पर उन्हें दिव्य दृष्टि प्राप्त हुई तथा साधुओं के वेश में उपस्थित देवों को उन्होंने पहचान लिया।
तब देवी अनसूया ने कहा की जो वह साधु चाहते हैं, वह वैसा करेंगी, लेकिन साधुओं को शिशु रूप लेकर उनके पुत्र बनना होगा। इस बात को सुनकर त्रिदेव शिशु रूप में बदल गए और तब माता अनुसूया ने देवों को भोजन करवाया। इस तरह तीनों देव माता के पुत्र बन कर रहने लगे। काफी समय बीत जाने के पश्चात भी त्रिदेव देवलोक नहीं पहुंचे तो पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती जी चिंतित एवं दुखी हो गई।
तीनों देवियों ने सती अनसूइया के समक्ष क्षमा मांगी एवं अपने पतियों को बाल रूप से मूल रूप में लाने की प्रार्थना की। माता अनसूया ने त्रिदेवों को उनका रूप प्रदान किया और तभी से वह मां सती अनसूइया के नाम से प्रसिद्ध हुई।
Apr 29 2024, 11:14