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गिरिडीह लोकसभा चुनाव 2024:इस बार तीन कुर्मी उमीदवार किसका होगा उद्धार..? जाने गिरिडीह लोकसभा का हाल,समीकरण और इतिहास!

विनोद आनंद

इस बार गिरिडीह सीट पर सबकी निगाहे टिकी हुई है।एक साथ तीन कुर्मी उमीदवार मैदान में हैं जो एक दूसरे को शिकस्त देने का दावा कर रहे हैं। अब देखना ये है कि कौन किसके वोट की सेंधमारी कर रहे हैं और कौन किस पर भारी पर रहे हैं।

यू तो वर्तमान सांसद बीजेपी एलाइंस आजसू के चंद्रप्रकाश चौधरी हैं जो कुर्मी जाति से हैं। ये गिरिडीह सीट पर 2019 में चुनाव जीत चुके है।लेकिन इसके पूर्व भी गिरिडीह लोकसभा 2009 और 2014 भाजपा के खाते में गया और यहां से रविन्द्र पांडेय सांसद रहे। अब 2024 के महासंग्राम में जीत का ताज किसके सिर सजेगा, फिलहाल यह जनता तय करेगी। क्योंकि इस बार चंद्रप्रकाश चौधरी आजसू से फिर उम्मीदवार हैं।जेएमएम ने टुंडी विधायक मथुरा प्रसाद महतो को उतारा है, जिसे भी मजबूत जनाधार वाला नेता माना जाता है।साथ हीं छात्र आंदोलन और भाषा आंदोलन से अस्तित्व में आये जयराम महतो ने भी गिरिडीह लोक सभा में ताल ठोंक दिया है।हालांकि ये बिल्कुल नए खिलाड़ी हैं अपने सभाओं में भीड़ भी जुटा लेते हैं।लेकिन इस भीड़ को वोट में तब्दील कर पाते या नही यह तो समय बायतायेगा।फिलहाल यह बताया जा रहा है कि इस लोकसभा सीट पर ये ताज खुद झपटने में कामयाब रहते हैं या किसको जिताने में सहायक बनते हैं।राजनीतिक समीक्षकों की नज़र इसी पर है।फिलहाल हम किसी निष्कर्ष पर निकले उस से पहले गिरिडीह लोकसभा सीट का वोट के जातीय समीकरण, उसका प्रतिशत,और अब तक जीत का क्या इतिहास रहा इस पर एक नज़र डालते हैं।

गिरिडीह लोकसभा: समीकरण और इतिहास...


झारखंड की गिरिडीह पर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) का कब्जा है। 2019 के लोकसभा चुनाव में इस सीट पर सुदेश महतो की पार्टी ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) के चंद्रप्रकाश चौधरी ने जीत का परचम लहराया था। इस सीट पर भाजपा के रवींद्र कुमार पांडे सबसे ज्यादा छह बार सांसद रहे हैं। झारखंड राज्य के गठन होने के बाद से इस सीट पर भाजपा और झामुमो के बीच टक्कर होती रही है।

अलग राज्य का दर्जा मिलने के बाद पहली बार 2004 में यहां लोकसभा चुनाव हुआ था। इसमें झारखंड मुक्ति मोर्चा के टेकलाल महतो ने जीत दर्ज की थी। टेकलाल ने चार बार के सांसद रवींद्र पांडेय को लगभग डेढ़ लाख मतों से शिकस्त दी थी।

इस सीट का क्या रहा राजनीतिक इतिहास


गिरिडीह लोकसभा सीट पर 1952 में पहली बार चुनाव हुआ था। यहां से कांग्रेस के नागेश्वर प्रसाद सिन्हा सांसद चुने गए थे। 1957 में काजी एसए मतीन छोटा नागपुर संथाल परगना जनता पार्टी से जीत दर्ज किए। वहीं 1962 में बटेश्वर सिंह निर्दल सांसद बने। 1967 में कांग्रेस के इम्तेयाज़ अहमद और 1971 में चपलेंदु भट्टाचार्य लोकसभा पहुंचे। 1977 में जनता पार्टी के रामदास सिंह ने इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया।

साल 1980 में कांग्रेस (आई) के उम्मीदवार बिंदेश्वरी दुबे ने जीत हासिल की। फिर 1984 में कांग्रेस से ही सरफराज अहमद सांसद चुने गए। 1989 में एक बार के सांसद रह चुके रामदास सिंह के भाजपा ने मैदान में उतारा और वह दोबारा सांसद बने। 1991 में झारखंड मुक्ति मोर्चा के बिनोद बिहारी महतो ने इस सीट पर कब्जा किया। हालांकि 1996, 1998 और 1999 में लगातार तीन बार भाजपा के रवीन्द्र कुमार पांडे ने जीत हासिल कर भगवा लहराया।

वहीं झारखंड राज्य बनने के बाद 2004 में टेक लाल महतो जीते और झारखंड मुक्ति मोर्चा फिर इस सीट पर काबिज हुई। इसके बाद 2009 और 2014 में रवीन्द्र कुमार पांडे ने भाजपा के टिकट पर जीत हासिल की। रवींद्र पांडे कुल छह बार यहां से सांसद रहे। वहीं 2019 के चुनाव में ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन के उम्मीदवार चन्द्र प्रकाश चौधरी जीतकर लोकसभा पहुंचे।

क्षेत्र और मतदाता


गिरिडीह लोकसभा सीट झारखंड के 14 संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों में से एक है। इसमें बोकारो, धनबाद और गिरिडीह जिले का जिले का कुछ हिस्सा शामिल है। 2019 के चुनाव के अनुसार इस सीट के कुल मतदाता 16 लाख 88 हजार 854 थी।

एससी मतदाता – 1 लाख 90 हजार 841 (11.3%)

एसटी मतदाता – 2 लाख 58 हजार 395 (15.3 %)

मुस्लिम मतदाता – लगभग 2 लाख 86 हजार 800 (17%)

ग्रामीण मतदाता – 10 लाख 28 हजार 512 (60.9%)

शहरी मतदाता – 6 लाख 60 हजार 342 (39.1%)

वर्ष 2019 के लोकसभा चनाव परिणाम


विजेता – चन्द्र प्रकाश चौधरी (आजसू )

वोट मिले – 648,277

वोट (%) – 58.57

उपविजेता – जगरनाथ महतो (झारखंड मुक्ति मोर्चा)

वोट मिले – 3,99,930

वोट (%) – 36.13

अंतर 248347

2014 चुनाव का परिणाम


विजेता – रवीन्द्र कुमार पांडे (बीजेपी)

वोट मिले – 3,91,913

वोट (%) – 40.40

उपविजेता – जगरनाथ महतो (जेएमएम)

वोट मिले – 3,51,600

वोट (%) – 36.25

अंतर 40,313

संसद के सदस्य


1952 – नागेश्वर प्रसाद सिन्हा – कांग्रेस

1957 – काजी एसए मतीन –छोटा नागपुर संथाल परगना जनता पार्टी

1962 – बटेश्वर सिंह – निर्दल

1967 – इम्तेयाज़ अहमद – कांग्रेस

1971 – चपलेंदु भट्टाचार्य – कांग्रेस

1977 – रामदास सिंह – जनता पार्टी

1980 – बिंदेश्वरी दुबे – कांग्रेस (आई)

1984 – सरफराज अहमद – कांग्रेस

1989 – रामदास सिंह – भाजपा

1991 – बिनोद बिहारी महतो – झारखंड मुक्ति मोर्चा

1996 – रवीन्द्र कुमार पांडे – भाजपा

1998 – रवीन्द्र कुमार पांडे – भाजपा

1999 – रवीन्द्र कुमार पांडे – भाजपा

2004 – टेक लाल महतो – झारखंड मुक्ति मोर्चा

2009 – रवीन्द्र कुमार पांडे – भाजपा

2014 – रवीन्द्र कुमार पांडे – भाजपा

2019 – चन्द्र प्रकाश चौधरी – ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन

झामुमो ने गिरिडीह से मथुरा और दुमका से नलिन सोरेन को प्रत्याशी किया घोषित

रांची , डेस्क : झामुमो ने अपने दो प्रत्याशियों के नाम की घोषणा कर दी. जिसमें

दुमका से नलिन सोरेन और गिरिडीह से मथुरा प्रसाद महतो चुनाव में प्रत्याशी होंगे. इसको लेकर झामुमो ने प्रत्याशियों को चुनाव मैदान में जाने के लिए सूचित कर दिया है.

चुनावी सरगर्मी के बीच धनबाद लोकसभा से थर्ड जेंडर सुनैना सिंह ने ताल ठोका,कहा वे जनता के हक के लिए लड़ेगी चुनाव

झारखंड डेस्क

कोयलांचल की राजधानी धनबाद में चुनावी सरगर्मी तेज हो गयी है. एक ओर जहां भाजपा अपने दबंग बाघमारा विधायक ढुल्लू महतो को लोकसभा चुनाव का प्रत्याशी घोषित कर उनके लिए वोट मांग रही है. वहीं, इंडिया गठबंधन ने अब तक अपना प्रत्याशी घोषित नहीं किया है. लेकिन चुनाव में थर्ड जेंडर की एंट्री ने सबको चौंका दिया है.

वर्तमान राजनीति में थर्ड जेंडर की भागीदारी शून्य है. जबकि एक समय ऐसा था, जब देश की पहली ट्रांसजेंडर विधायक और महापौर मध्य प्रदेश से निर्वाचित हुए थे. ट्रांसजेंडर कमला बुआ और शबनम मौसी के प्रतिनिधि बनने के बाद से ही देश में एक नई राजनीति परम्परा की शुरुआत हुई थी. 

इन दोनों ही ट्रांसजेंडर्स ने समाज को समता, समानता का संदेश दिया था. लेकिन, बदलते वक्त ने थर्ड जेंडर को राजनीति से बाहर कर दिया, मगर इस बार झारखंड के कोयलांचल में थर्ड जेंडर की चुनावी मैदान में दावेदारी ने इनके समाज मे जान फूंक दी है.

कोयलांचल के थर्ड जेंडर संघ की जिला अध्यक्ष सुनैना सिंह ने इस बार लोकसभा चुनाव में ताल ठोक दी है. कल तक जो सभी को दुआएं देने वाले हाथ उठाया करती थी, उसी हाथ को मजबूत करने के मकसद से ट्रांसजेंडर समाज अपनी अध्यक्ष सुनैना सिंह राजपूत के लिए वोट मांग रहा है. 

सुनैना ने ग्रेजुएशन पी के राय मेमोरियल कॉलेज से की, उनका पालन पोषण झारखंड ट्रांस जेंडर संघ के प्रदेश अध्य्क्ष छमछम देवी ने किया.

 बचपन से ही पढ़ाई-लिखाई और समाज सेवा में ज्यादा ध्यान देने वाली सुनैना किसी पहचान की मोहताज़ नहीं हैं. 

सुनैना कहती हैं कि जो धनबाद देश को ऊर्जा देता है, वह खुद अंधेरे मे है. यहां के लोगों को दिल्ली, मुंबई या दक्षिण जाने के लिए आज तक डायरेक्ट ट्रेन नहीं मिली, एयरपोर्ट और एम्स जैसे बड़े अस्पताल धनबाद से देवघर चले गए, पर जनप्रतिनिधि मौन रहे. इन्हीं मुद्दों को लेकर वह चुनावी मैदान मे उतर रही हैं. 

सुनैना सिंह के मुताबिक, आजादी के 75 साल बाद भी ट्रांस समुदाय के सदस्यों को कुछ नहीं मिला है. अपने परिवार के सदस्यों से वर्षों तक उपहास झेलने के बाद भी सुनैना अपने जैसे और मिडिल क्लास फैमिली के सपोर्ट से चुनावी मैदान में उतरने जा रही हैं.

#Face-of- Jharkhand सीता सोरेन कितना असर डाल पाएगी झारखंड में जेएमएम के राजनीतिक जमीन पर,क्या दुमका सीट पर लहरायेगी भाजपा की झंडा...

 (विनोद आनंद)

शिबू सोरेन की बड़ी पुत्रबधू सीता सोरेन आज झारखंड में भाजपा की हिस्सा बन गई।भाजपा की प्रबल प्रतिद्वंधी जेएमएम रही है।लेकिन इस लोकसभा चुनाव में शिबू सोरेन की दो बहुएं आमने सामने है। दोनो में आरोप प्रत्यारोप का दौर चल रहा है।अब इसका प्रभाव चुनावी रणनीति पर क्या पड़ेगा और झारखंड मुक्ति मोर्चा कितना मजबूत हो पाएगी यह तो बक्त बताएगा लेकिन सियासत की गलियारों में चर्चाओं का बाज़ार गर्म है।

शिबू सोरेन की ये दोनों बहुएं परिस्थितिबस राजनीति में आई।सीता सोरेन तब राजनीति में आई जब उनके सर से पति का साया उठ गया।अचानक अल्पबय में शिबू सोरेन के बड़े पुत्र दुर्गा सोरेन का निधन हो गया।तब सीता सोरेन राजनीति में कदम रखी।जनता ने उन्हें सर आंखों पर लिया। 

वर्ष 2009 के दिसंबर महीना था  झारखंड की जामा विधानसभा क्षेत्र के हेमंतपुर गांव में सैकड़ों लोगों की भीड़ थी।चारों तरफ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा के हरे झंडे लगे हुए थे। सीता सोरेन मंच पर आईं और आंखें बंद कर हाथ जोड़ खड़ी हो गयी।पहली बार जनता शिबू सोरेन की बड़ी पुत्रबधू से रूबरू हो रही थी।

सीता सोरेन पति के निधन के बाद बहुत हीं दुखी और मायूस थी उसने नम आंखों से कहा- "उनके पति दुर्गा सोरेन ने उन्हें यहां साथ लेकर आने का वादा किया था। लेकिन, ऐसा नहीं हो सका।मैं अकेली आई हूं और मुझे आपका आशीर्वाद चाहिए।"

लोगों की भीड़ यह सुन ‘झारखंड मुक्ति मोर्चा ज़िंदाबाद’, ‘शिबू सोरेन ज़िंदाबाद’ और ‘दुर्गा सोरेन अमर रहें’ जैसे नारे लगाने लगी।

पारंपरिक वाद्य यंत्र बजने लगे, तब सीता सोरेन ने अपना भाषण को आगे बढ़ाया। तब उनकी उम्र सिर्फ़ 35 साल थी।

यह वह समय था जब जनता को सीता के साथ पूरी सहानुभूति थी।उनके पति दुर्गा सोरेन का महज 39 साल के उम्र में ब्रेन हेमरेज से निधन हो गया था।जिस समय उनका निधन हुआ उस समय वे जामा विंधानसभा से विधायक थे।उनके मौत के बाद सीता ने राजनीति में कदम रखी और अपने पति की पारंपरिक सीट से विधानसभा का चुनाव लड़ने के लिए पहली बार घर के दहलीज लांघ कर घर से बाहर निकली।जनता के बीच खड़ी हो गयी।उनके सुख -दुख के सहभागी बनने उनकी समस्याओं को लेकर संघर्ष करने का वादा किया।

और तब से लेकर अभी तक राजनीति में सीता सोरेन ने लंबा सफर तय किया है। उन्होंने जामा से कभी चुनाव नहीं हारा। वे तीन बार विधायक रहीं।

इस दौरान उनकी महत्वाकांक्षाएं बढ़ती रही। इस कारण उन्होंने शिबू सोरेन परिवार को कई दफा मुश्किलों में भी डाला।

वे बार-बार कहती रहीं कि उनके पति दुर्गा सोरेन अपने पिता शिबू सोरेन के वास्तविक उत्तराधिकारी थे। लिहाज़ा, अब यह हक उनका है। वे परोक्ष रूप से यह कहती रही कि परिवार उसे मुख्यमंत्री पद के लिए आगे करे।लेकिन परिवार ने कभी यह नही चाहा।शिबू सोरेन ने मुख्यमंत्री का पद को सुशोभित किया और पिता के इस विरासत को हेमन्त सोरेन ने संभाला।बस परिवार में यही अंतर्विरोध था।सीता सोरेन चाहती थी कि शिबू सोरेन के राजनीति के सफर में उनके पति दुर्गा सोरेन ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई लेकिन उस विरासत के असली हकदार वे हैं।

पिछली जनवरी में उनके देवर और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को ईडी द्वारा गिरफ़्तार कर लिया गया।उसवक्त कल्पना सोरेन के नाम की चर्चा थी।मुख्यमंत्री उन्हें बनाया जा सकता है।लेकिन परिवार के अंदर यह अंतर्विरोध ही शायद बाधा बनी।चम्पई सोरेन सीएम बने,फिर भी बसंत सोरेन को तो मंत्री पद मिला लेकिन सीता सोरेन 3 टर्म विधायक रहने के वाबजूद मंत्री पद से वंचित रह गयी। बस सब्र जवाब दे दिया और वे अपने परिवार, अपने पारिवारिक पार्टी को त्याग कर अपने आने वाले भविष्य के बारे में सोचने लगी।और विकल्प बचा भाजपा।जहां वे नई शुरुआत में लग गई।

भाजपा में आने का वजह...


क्या सीता सोरेन भाजपा में परिवार और पार्टी की उपेक्षा की वजह से शामिल हुई या इसके और कई वजह थे। चर्चा इस पर भी हो रही है।कियोंकि अभी कई परिस्थितयां ऐसी सामने आई जिसके कारण यह कहना गलत नही होगा कि परिवार और पार्टी के साथ सीता सोरेन के सामने और कई संकट थे जहां वचाव का एक ही रास्ता था भाजपा।

    भाजपा को भी शिबू सोरेन के कुनबा को कमजोर करने, आदिवासियों के सहानुभूति बटोरने का यह वेहतर अवसर था।

 सीता सोरेन के सामने कई परिस्थियां भी सामने आ गयी थी।उनपर राज्यसभा के एक निर्दलीय प्रत्याशी से साल 2012 में घुस लेने का आरोप लगा था।यह घुस उनके पिता बोदु नारायण मांझी के ज़रिये लेने का आरोप लगा था।इस मामले में वे नामजद अभियुक्त रही।इस मामले में उनके रांची स्थित सरकारी आवास की कुर्की ज़ब्ती भी हुई थी।इसके बाद उन्हें और उनके पिता को जेल में भी रहना पड़ा था। इस मामले की जांच सीबीआई को दी गई थी।

सीता सोरेन अपने ख़िलाफ़ आपराधिक मामला चलाए जाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गई थीं।

सालों से लंबित इस मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात जजों की संविधान पीठ ने पिछले 4 मार्च को साल 1988 के अपने फैसले को पलट दिया।

इस खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि सांसदों और विधायकों को रिश्वत के मामले में विशेषाधिकार नहीं दिया जा सकता। उनके ख़िलाफ़ भी आपराधिक मामले चलाए जा सकते हैं।नतीजतन, अब वे फिर से जांच के दायरे में आ गई हैं।इसके बाद वे 19 मार्च को झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) की प्राथमिक सदस्यता और विधायक पद से इस्तीफ़ा दे दिया। उन्होंने शिबू सोरेन को पत्र लिखकर अपने इस्तीफ़े की सूचना दी और आरोप लगाया कि उन्हें परिवार और पार्टी में पिछले 15 सालों से उपेक्षा झेलनी पड़ी है। अब वे इस परिवार से अलग हो रही हैं।

इस पत्र के सार्वजनिक होने के कुछ ही घंटे बाद वे दिल्ली में बीजेपी में शामिल हो गईं। तब बीजेपी कार्यालय में एक प्रेस कांफ्रेंस भी हुई, जिसमें भी उन्होंने जेएमएम और सोरेन परिवार को लेकर कईं बातें कहीं। उनके बीजेपी में शामिल होने से पहले ही पार्टी ने दुमका से अपने वर्तमान सांसद सुनील सोरेन को लोकसभा चुनाव का टिकट देने की घोषणा कर रखी थी। तब मीडिया में चर्चा चली कि बीजेपी उन्हें या उनकी बेटी को संताल परगना की किसी सीट (दुमका नहीं) से चुनाव लड़ा सकती है।

इसके छह दिन बाद 24 मार्च को बीजेपी ने दुमका सीट से अपना उम्मीदवार बदल कर सीता सोरेन को वहां से प्रत्याशी घोषित कर दिया। यह शिबू सोरेन की पारंपरिक सीट रही है। वे यहां से कई बार सांसद रहे हैं।इस लिए दुमका सीट को अगले वार सुनील सोरेन ने शिबू सोरेन से झटक लिया था। लेकिन इस बार भी कड़ी चुनोती हो सकता था।इस लिए सीता सोरेन को वेहतर विकल्प के रूप में देखते हुए यह सीट उन्हें दे दिया गया।

क्या दुमका सीट सीता सोरेन के लिए जीत पाना आसान है...?


अब झारखंड में दुमका लोकसभा सीट एक ऐसा सीट हो गया है जिसपर सिर्फ झारखंड ही नही पूरे देश की निगाहें टिकी हुई है।लेकिन क्या दुमका सीट फतह करना सीता के लिए आसान है..?

अगर हम इस पर चर्चा करने से पहले सीता सोरेन का राजनीतिक बजूद  के बारे में बात करें तो उनकी पहचान शिबू सोरेन की बड़ी बहू होने की वजह से है। इसके बावजूद जामा सीट से पिछला विधानसभा चुनाव में वे मामूली अंतर से जीती थी। दुमका के लोग शिबू सोरेन के प्रति हमदर्दी जरूर रखते हैं लेकिन सीता सोरेन ने परिवार से बगावत की है।जनता इसे भी जान रही है ऐसे हालात में उन्हें शिबू सोरेन की पारंपरिक वोट कितना मिल पायेगा यह तो बक्त बताएगा।

 लेकिन जेएमएम यहां से अपना कैंडिडेट जरूर देगा।हो सकता है हेमन्त सोरेन ही यहां से खड़े हो जाये जैसा कि चर्चा है तो ऐसे हालात में सीता सोरेन की राह और मुश्किल हो जाएगी।

   इधर सुनील सोरेन के समर्थक भी नाराज हैं।उनका टिकट काट कर सीता सोरेन को टिकट दिया गया।इस लिए पार्टी के अंदर भीतरघात की संभावना है।ऐसे में सीता सोरेन को इस सीट से कोई चमत्कार ही जीता पायेगा ।हेमन्त सोरेन की गिरफ्तारी के कारण उनके प्रति लोगों में सहानुभूति है।लोग यह मान कर चल रहे हैं कि भाजपा की सरकार जानबूझकर हेमन्त सोरेन पर एजेंसी लगा कर कारवाई कर रही है।इस लिए भाजपा के प्रति आम लोगों में नाराजगी है।खासकर आदिवासी समुदाय जो अब हेमन्त के साथ दिख रही है। अब देखना यह है कि इस सीट पर जीत का सेहरा किसे मिलता है।

सीता सोरेन का भविष्य...?

अब सीता सोरेन का भविष्य भाजपा में क्या होगा ।यह भी एक सवाल है।अगर वह चुनाव जीत जाती है तो भाजपा उसे सर आंखों पर लेगी लेकिन किसी कारण वह हार जाती है तो भाजपा नेतृत्व पार्टी के अंदर उसे कितना महत्व देगा वह भविष्य बताएगा।

कल्पना सोरेन ने आप नेता संजय सिंह को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिलने पर कहा-तानाशाही का अंत शुरू हो गया

झारखंड डेस्क

झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन ने आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह को शराब नीति घोटाले में सुप्रीम कोर्ट से बेल मिलने के बाद अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि तानाशाही की ताकतों का किला ढहना शुरू हो गया है।उन्होंने कहा तानाशाही की अंत का शुरुआत है.

कल्पना सोरेन ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर लिखा, तानाशाही ताकतों का किला ढहना शुरू हो गया है। नेता और राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने अन्यायपूर्ण कारावास के खिलाफ एक बड़ी लड़ाई जीती है।

यह सच्चाई और संघर्ष की जीत है, यह भारत की जीत है। उन्होंने संजय सिंह, उनकी पत्नी अनीता और उनके परिवार के सदस्यों को बधाई दी।

अगर कांग्रेस ढुलु महतो को शिकस्त देने के लिए धनबाद से सरयू राय को टिकट देती है तो जेएमएम का मिलेगा पूरा समर्थन-सुप्रियो भट्टाचार्य

झारखंड डेस्क

झामुमो महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि धनबाद सीट बंटवारे में कांग्रेस के हिस्से में आया है। वहां प्रत्याशी पर कांग्रेस नेतृत्व को फैसला लेना है। लेकिन धनबाद में भाजपा प्रत्याशी ढुलू महतो के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले जमशेदपुर पूर्वी के निर्दलीय विधायक सरयू राय को अगर कांग्रेस टिकट देती है तो जेएमएम पुरा समर्थन देगी।

 उल्लेखनीय है कि पिछले विधानसभा चुनाव में भी जमशेदपुर पूर्वी सीट से झामुमो ने सरयू राय को सक्रिय समर्थन दिया था। इसके अलावा अन्य दलों का भी उन्हें समर्थन मिला था।

सरयू राय ने ढुलू महतो के खिलाफ चल रहे आपराधिक मामलों को सार्वजनिक करते हुए दावा किया है कि वे चुनाव लड़ने के योग्य नहीं हैं। उन्होंने भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से प्रत्याशी बदलने की मांग करते हुए कहा है कि ऐसा नहीं होने पर वे चुनाव लड़ेंगे।

सुप्रियो भट्टाचार्य ने राजद को लेकर पूछे गए जवाब में कहा. राजद द्वारा झारखंड में दो सीटें मांगने पर झामुमो महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि यह राजद और कांग्रेस के बीच का मामला है। झामुमो ने गठबंधन धर्म का पालन करते हुए एक विधायक को राज्य सरकार में मंत्री बनाया लेकिन राजद ने कभी भी बिहार में झामुमो को हक दिलाने की बात नहीं उठाई।

बिहार विधानसभा चुनाव, विधान परिषद चुनाव और लोकसभा में एक सीट झामुमो ने मांगा था, लेकिन नहीं दिया गया। ऐसे में राजद कैसे उम्मीद करता है कि हमलोग उन्हें समर्थन करेंगे।

उन्होंने बाबूलाल को लेकर पूछे गए प्रश्न के जवाब पर कहा- कि बाबुला जी पर बोलना उचित नहीं है।

उन्होंने ने कहा कि बाबूलाल पर अधिक बोलना उचित नहीं है। वे बोलते हैं और भूल जाते हैं। पहले पीएम मोदी के बारे में खूब अनाप-शनाप बोलते थे। ढुलू को भी पानी पी-पी कर बोलते थे, मगर आज क्या बोल रहे, सबको पता है। उनकी बातों पर प्रतिक्रिया देना ठीक नहीं लगता है।

अगर कांग्रेस ढुलु महतो को शिकस्त देने के लिए धनबाद से सरयू राय को टिकट देती है तो जेएमएम का मिलेगा पूरा समर्थन-सुप्रियो भट्टाचार्य

झारखंड डेस्क

झामुमो महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि धनबाद सीट बंटवारे में कांग्रेस के हिस्से में आया है। वहां प्रत्याशी पर कांग्रेस नेतृत्व को फैसला लेना है। लेकिन धनबाद में भाजपा प्रत्याशी ढुलू महतो के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले जमशेदपुर पूर्वी के निर्दलीय विधायक सरयू राय को अगर कांग्रेस टिकट देती है तो जेएमएम पुरा समर्थन देगी।

 उल्लेखनीय है कि पिछले विधानसभा चुनाव में भी जमशेदपुर पूर्वी सीट से झामुमो ने सरयू राय को सक्रिय समर्थन दिया था। इसके अलावा अन्य दलों का भी उन्हें समर्थन मिला था।

सरयू राय ने ढुलू महतो के खिलाफ चल रहे आपराधिक मामलों को सार्वजनिक करते हुए दावा किया है कि वे चुनाव लड़ने के योग्य नहीं हैं। उन्होंने भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से प्रत्याशी बदलने की मांग करते हुए कहा है कि ऐसा नहीं होने पर वे चुनाव लड़ेंगे।

सुप्रियो भट्टाचार्य ने राजद को लेकर पूछे गए जवाब में कहा. राजद द्वारा झारखंड में दो सीटें मांगने पर झामुमो महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि यह राजद और कांग्रेस के बीच का मामला है। झामुमो ने गठबंधन धर्म का पालन करते हुए एक विधायक को राज्य सरकार में मंत्री बनाया लेकिन राजद ने कभी भी बिहार में झामुमो को हक दिलाने की बात नहीं उठाई।

बिहार विधानसभा चुनाव, विधान परिषद चुनाव और लोकसभा में एक सीट झामुमो ने मांगा था, लेकिन नहीं दिया गया। ऐसे में राजद कैसे उम्मीद करता है कि हमलोग उन्हें समर्थन करेंगे।

उन्होंने बाबूलाल को लेकर पूछे गए प्रश्न के जवाब पर कहा- कि बाबुला जी पर बोलना उचित नहीं है।

उन्होंने ने कहा कि बाबूलाल पर अधिक बोलना उचित नहीं है। वे बोलते हैं और भूल जाते हैं। पहले पीएम मोदी के बारे में खूब अनाप-शनाप बोलते थे। ढुलू को भी पानी पी-पी कर बोलते थे, मगर आज क्या बोल रहे, सबको पता है। उनकी बातों पर प्रतिक्रिया देना ठीक नहीं लगता है।

गिरिनाथ सिंह की राजद में फिर हुई वापसी, भाजपा छोड़ कर ली राजद की सदस्यता,लड़ सकते चतरा से चुनाव


झारखंड डेस्क

राँची: मंगलवार को झारखंड की सियासत से एक बड़ी खबर सामने आ रही है। BJP को बड़ा झटका देते हुए पार्टी के कद्दावर नेता गिरनाथ सिंह ने राजद (RJD) का दामन थाम लिया है। 

पहले वे आरजेडी में थे। बाद में राजद को छोड़कर BJP में शामिल हुए थे। अत: यह उनकी घर वापसी कही जाएगी।इस बीच झारखंड में जो सियासत चल रही है उसके अनुसार राजद ने दवाब बनाये हुए है कि झारखंड में राजद को दो लोकसभा सीट चाहिए। अगर राजद को दो सीट मिलती है तो गिरिनाथ सिंह चतरा से चुनाव लड़ सकते हैं।

मंगलवार को पटना स्थित RJD कार्यलय में उन्होंने पार्टी की सदस्यता ली। कुछ दिन पहले ही उन्होंने लालू यादव से उनके आवास पर मुलाकात की थी।

दिल्ली के रामलीला मैदान में क्रांति की बिगुल फुकने के बाद कल्पना सोरेन राँची लौटी,कहा-हम जीतेंगे,जनता देगी जवाब

दिल्ली के रामलीला मैदान में दो महिला नेत्री ने जिस अंदाज और जिस आत्म विश्वास के साथ I.N.D.I.A गठबंधन की रैली में अपनी बात रखी, देश भर से आये कार्यकर्ताओं के मन को जीत लिया।उसमें हेमन्त सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन और अरबिंद केजरीवाल की पत्नी सुनीता केजरीवाल थी।

अब दिल्ली से कल्पना सोरेन अपने दो दिन के दिल्ली दौरे के बाद वापस रांची लौट आयीं है।

अपने इस दौरे के अनुभव को रांची के बिरसा मुंडा एयरपोर्ट पर पत्रकारों से उन्होंने साझा किया। उन्होंने खुद को सौभाग्यशाली बताते हुए कहा कि रामलीला मैदान में यह उनका पहला कदम था।

उन्होंने कहा, “पहले मैं कभी भी रामलीला मैदान नहीं गयी थी। खुद को मैं सौभाग्यशाली मानती हूं कि मुझे झारखंड से चंपाई चाचा (CM चंपाई सोरेन) के साथ रामलीला मैदान में अपनी बातों को रखने का अवसर मिला। I.N.D.I.A. को मजबूती देने का अवसर मिला।”

कल्पना सोरेन ने हेमंत सोरेन को लेकर कहा कि बतौर मुख्यमंत्री वे चार साल तक जो काम किये वह जगजाहिर है। वे भेदभाव के शिकार हुए हैं। चुनाव से पहले उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। यह भाजपा की रणनीति थी ताकि चुनाव से उंन्हे दूर रखा जाए।झारखंड मुक्ति मोर्चा के कार्यकर्ता के मनोवल को तोड़ा जाए।लेकिन जनता सब समझती है और इसका मुहतोड़ जवाब जनता देगी। उन्होंने कहा दिल्ली में इन बातों को पुरे देश में रखा।मुझे खुशी है कि दिल्ली में इन बातों को रखने का हमें मौका मिला।”

कल्पना सोरेन ने कहा कि वह खुद को सौभाग्यशाली मानती हैं कि उन्हें महिलाओं, आदिवासियों की बातों को रखने का मौका मिला। अब सबको चार जून की प्रतीक्षा करनी होगी। तब मालूम होगा कि क्या बदलाव हुआ है।

उन्होंने कहा, “हमें पूरी उम्मीद है कि हम जीतेंगे।” इधर, गांडेय उपचुनाव में JMM द्वारा उम्मीदवार बनाये जाने के प्रश्न पर कल्पना सोरेन ने कहा कि फिलहाल ऐसी कोई बात नहीं है।

पेट्रोलियम कंपनी ने गैस सिलेंडर के दाम घटाई,जानिए किस सिलेंडर का कितना हुआ दाम


रांची,(डेस्क )पेट्रोलियम कंपनि‍यों ने गैस सिलेंडर की कीमत घटा दी है। बीते महीने 5 केजी से लेकर 14 केजी तक के सिलेंडर की कीमत में कमी की गई थी। अभी कमर्शियल गैस सिलेंडर की कीमत घटाई गई है। नई कीमत 1 अप्रैल, 2024 से लागू हो गई।

कमर्शियल सिलेंडर हुआ सस्‍ता

पेट्रोलियम कंपनियों ने 19 किलोग्राम वाले कमर्शियल गैस सिलेंडर की कीमत में 1 मार्च को बढ़ोतरी की थी। इसमें 24 रुपये की वृद्धि हुई थी। झारखंड की राजधानी रांची में 1 मार्च, 2024 को कीमत 1960.00 रुपये हो गई थी। वर्तमान में इसकी कीमत 32 रुपये कम हुई है। अब यह सिलेंडर 1928.00 रुपये में मिलेगा।

घरेलू सिलेंडर में बदलाव नहीं

प्रधानमंत्री की घोषणा के बाद 14 किलो वाले घरेलू गैस सिलेंडर की कीमत में 100 रुपये की कमी की गई थी। इसकी कीमत 1 मार्च को 960.50 रुपये थी। पीएम की घोषणा के बाद इसकी कीमत 860.50 रुपये हो गई थी। 

नई कीमत 9 मार्च, 2024 से लागू कर दी गई थी। फिलहाल इसकी कीमत में कोई बदलाव नहीं किया गया है। ग्राहकों को यही राशि चुकानी होगी।

10 केजी की कीमत

पेट्रोलियम कंपनी के अनुसार 10 किलोग्राम वाली गैस सिलेंडर की 1 मार्च, 2024 में कीमत 693.00 रुपये थी। इसकी कीमत में कमी की गई थी। 9 मार्च, 2024 से कीमत 622.50 रुपये कर दी गई थी। अप्रैल में भी यही कीमत चुकानी होगी।

5 केजी के दाम

कंपनी के अनुसार 5 किलोग्राम वाले सिलेंडर की कीमत मार्च, 2024 में 357 रुपये थी। इसकी कीमत में कमी की गई थी। इसकी कीमत 9 मार्च, 2024 से 321.50 रुपये हो गई थी। अप्रैल में भी ग्राहकों को इसके लिए 321.50 रुपये देने होंगे।