इंडिया” गठबंधन को लगने वाला है एक और झटका, बीजेपी के साथ जा सकते हैं जयंत चौधरी, क्या चल रहा है आरएलडी के अंदरखाने?
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लोकसभा चुनाव में बीजेपी हैट्रिक लगाने की तैयारिय़ों में जुटी हुई है। वहीं, बीजेपी को सत्ता से दूर करने के लिए विपक्षी दलों ने पूरा जोर लगाया है। हालांकि, विपक्षी दलों में तालमेल का अभाव एनडीए घटक के लिए शुभ संकेत दे रही है। ममता बनर्जी और नीतीश कुमार के जोरदार झटके के बाद विपक्षी दलों के “इंडिया” गठबंधन की एक और खुलने वाली है। एंटी-बीजेपी मोर्चे का नया सिरदर्द राष्ट्रीय लोकदल के जयंत चौधरी हो सकते हैं। खबरें आ रही हैं कि जयंत चौधरी बीजेपी के साथ गठबंधन में शामिल हो सकते हैं।
आरएलडी और सपा की दोस्ती टूटने की कगार पर
खबर है कि आरएलडी के मुखिया जयंत चौधरी की बीजेपी से डील हो गई है। इसके बाद वह सपा का साथ छोड़ सकते हैं और एनडीए खेमे में जा सकते हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, बीजेपी ने जयंत चौधरी को लोकसभा की 4 सीटें ऑफर की हैं। इसके बाद से आरएलडी और सपा की दोस्ती टूटने की चर्चा तेज हो गई है। बीते दिनों ये खबर आ रही थी कि सीट बंटवारे को लेकर सपा और आरलएडी में खींचतान चल रही है।मीडिया में जो खबरें चल रही हैं उसके मुताबिक, भाजपा ने हाथरस, बागपत, मथुरा और अमरोहा की लोकसभा सीट आरएलडी को ऑफर की है। वहीं जयंत चौधरी मुजफ्फरनगर और कैराना में से एक सीट और चाह रहे हैं।
शीट शेयरिंग को लेकर सपा-आरएलडी में खींचतान
जयंत चौधरी ने 19 जनवरी को उन्होंने अखिलेश यादव के साथ सीटों का समझौता किया था और 2024 के लोकसभा चुनाव में 7 सीटों पर लड़ने को राजी हो गए थे। इनमें बागपत, मुजफ्फरनगर, कैराना, मथुरा और हाथरस तो तय थे लेकिन दो सीटों पर बात नहीं बन पाई थी। मेरठ, बिजनौर, अमरोहा, नगीना और फतेहपुर सीकरी में से कोई दो सीट आरएलडी को दी जानी थी। जानकारी के मुताबिक, इसके अलावा अखिलेश यादव चाहते थे कि मुजफ्फरनगर, कैराना और बिजनौर में आरएलडी के सिंबल पर सपा के उम्मीदवार खड़े हों। इन्हीं सबको लेकर दोनों ही दलों में खींचतान चल रही थी।
क्या है जयंत की सियासी मजबूरी?
अब 20 दिन के भीतर ही जयंत चौधरी का मूड बदल गया है।खबर है कि वह एनडीए में जाने के लिए तैयार हैं। खासबात यह है कि कम सीटें पाकर भी वह भाजपा के करीब जाना चाहते हैं।ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि जयंत चौधरी आखिर अखिलेश की सात सीटों की बजाय बीजेपी के चार सीटों के ऑफर पर क्यों उत्सुक हैं। सियासी जानकारों की मानें तो इसकी वजह शायद अखिलेश यादव के साथ मिलकर चुनाव जीतने की गारंटी न होना है। जयंत चौधरी को लग रहा होगा कि राम मंदिर लहर पर सवार बीजेपी को रोकना विपक्ष के लिए मुश्किल होगा, विशेषकर हिंदीभाषी क्षेत्र में। ऐसे में जयंत चौधरी भी मोदी लहर पर सवार होकर लोकसभा में अपने सांसदों की संख्या बढ़ाना चाहते हैं।
इंडिया गठबंधन से ज्यादा बीजेपी के साथ गठबंधन में फायदे की आस
वहीं, खबरें ये भी हैं कि आरएलडी नेताओं ने इंडिया गठबंधन में अपने हिस्से में आई सभी सीटों पर जो सर्वे कराया, उसमें अपने ही प्रत्याशी लड़ाने की बात भी सामने आई थी। जिसके बाद असमंजस की स्थिति है। आरएलडी का कोर वोटबैंक जाट समुदाय है, इस समुदाय का एक तबका बीजेपी के साथ जाने के लिए दवाब बना रहा है, जिसके चलते भी जयंत चौधरी कशमकश में हैं। सूत्रों की माने तो शामली से आरएलडी विधायक प्रसन्न चौधरी बीजेपी के साथ गठबंधन के सबसे बड़े समर्थकों में से एक हैं। उन्हें लगता है कि इंडिया गठबंधन से ज्यादा बीजेपी के साथ गठबंधन करने का सियासी फायदा आरएलडी को मिलेगा।
Feb 07 2024, 14:32