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ओपन एयर थियेटर के जनक थे भिखारी ठाकुर संदर्भ : शागिर्द को मिल चुका है पद्म श्री
भिखारी ठाकुर को भारत में ओपन एयर थियेटर का जनक कहा जा सकता है। इनका जन्म बिहार के गरीब और उपेक्षित हज्जाम परिवार में 18 दिसंबर, 1887 को हुआ था। उस समय ठाकुर परिवार से आने के कारण इनका पढ़ने- लिखने का मौका नहीं मिला।
शुरूआती जीवन में रोजी-रोटी के लिए घर-गांव छोड़कर खड़गपुर चले गये।पर,इस दौरान उन्होंने अपना पुश्तैनी धंधा नहीं छोड़ा। बाद में भिखारी ठाकुर गांव लौट आये और गांव में लोक कलाकारों की एक  नृत्य मंडली बनायी। मंच तो था नहीं, इसलिए पेड़ के नीचे चौकी का मंच बना रामलीला का मंचन करने लगे। इसलिए भिखारी ठाकुर को ओपन एयर थियेटर का जनक माना जा सकता है।
उन्होंने अपने आरंभिक जीवन में स्वस्थ और समता मूलक समाज के निर्माण पर केंद्रित नाटक और गीतों की रचना की,जो आज के संदर्भ में भी प्रासंगिक हैं, जो उनकी दूरदर्शी सोच को दर्शाता है।
उन्होंने सामाजिक कुरीतियों पर कई नाटक और गीत लिखे, जिसने लोगों की मानसिकता बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी । उन्होंने समाज की हर कुरीतियों पर चोट की। उन्होंने सामंतवादी संस्कृति और लोगों पर चढ़े जाति व समुदाय के रंग के खिलाफ अपने गीतों के माध्यम से खूब प्रहार किया।
उनके नाटकों में जीवन संघर्ष, सामंती ठसक, गांव की गरीबी, जातिवाद, पलायन की पीड़ा और विरह की वेदना साफ-साफ झलकती है। उनकी प्रमुख रचनाओं में बिदेसिया, बेटी बेचवा, गबर धिचोर, कलजुग प्रेम,भाई बिरोध, राधेश्याम बहार आदि प्रमुख हैं।
बिहारी ठाकुर जनमानस के कलाकार थे। उनके कार्यों से प्रभावित होकर राहुल सांकृत्यायन ने उन्हें भोजपुरी का शेक्सपियर कहा था।
और अंत में भोजपुरी लोक साहित्य की धरोहर भिखारी ठाकुर को आज तक कोई आधिकारिक सम्मान नहीं मिला। उनके परिजनों को राजकीय या राष्ट्रीय स्तर पर कोई सामान नहीं मिलने पर मलाल तो है। हां , ये बात दीगर है कि उनके शागिर्द पद्मश्री पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं।
कोई धंधा गंदा नहीं होता, सोच गंदी होती है संदर्भ : I.N.D.I.A. गठबंधन के सहयोगी डीएमके सांसद ने कहा, टायलेट साफ करते हैं बिहार - यूपी वाले
कोई धंधा गन्दा नहीं होता, सोच गन्दी होती है। I.N.D.I.A  गठबंधन के तीसरे बड़े दल डीएमके के सांसद दया निधि मारन के हालिया बयान से इंडी गठबंधन में भूचाल आ गया है। यह दक्षिण भारत और हिंदी भाषी राज्यों को बांटने वाला बयान है।
दक्षिण भारत में हिंदी भाषी राज्यों के लोगों के साथ हमेशा बुरा व्यवहार किया जाता है। डीएमके सांसद का बयान देश के लोगों को जाति, भाषा और धर्म के नाम पर विभाजित करने वाला है। वहीं कुछ दिनों पहले डीएमके के अन्य सांसद डीएवी सैंथिल कुमार ने हिंदी भाषी राज्यों को गो मूत्र वाले राज्य कहा था।
अंग्रेजी बोलने वाले क्या टायलेट साफ नहीं करते। भारत से अंग्रेज तो चले गये, लेकिन उनकी जैसी मानसिकता वाले द‌क्षिण के राजनीतिक दल के नेताओं की सोच डिवाइड एंड रूल वाली होती जा रही है।
गठबंधन के दक्षिण के दलों के नेता कभी सनातन धर्म को कैंसर बताते हैं तो कभी भगवान राम को काल्पनिक बताते हैं। और हालिया बयान ने तो इंडी गठबंधन में तनाव पैदा कर दिया है।
इंडी गठबंधन के सहयोगी दल के नेताओं के बयान कभी सनातन धर्म को लेकर और कभी बिहार और उत्तर भारत के लोगों को लेकर आते रहते हैं और विरोध होने पर माफी मांग लेते हैं। यह उनकी ओछी मानसिकता को दर्शाता है। वहीं दूसरी ओर इंडी गठबंधन के अन्य सहयोगी दलों ने बयान की निंदा की है।
और अंत में दक्षिण के नेताओं के हालिया बयानों से तो भारतीय जनता पार्टी का रास्ता ही दक्षिण में सुगम होता जा रहा है । हाल में हुए चार राज्यों के चुनाव के नतीजे पर सनातन धर्म पर की गई टिप्पणी का असर दिखायी दिया था , जहां चार में से तीन राज्यों में बीजेपी की जीत हुई थी। आखिर दक्षिण भारत के नेता इस तरह के बयान देकर क्या साबित करना चाहते हैं। वे 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की राह को आसान बना रहे हैं।
चाय के बहाने खो चुकी मानवता को तलाशने की कोशिश संदर्भ : टी कार्नर बन रहे मिलने और गपशप करने के केंद्र
वर्तमान समय में मेहमान बाजी में सबसे पहले चाय परोसने का रिवाज है । वहीं जुमले बाजी में भी मेहमान को चाय-पानी देने की बात कही जाती है। भाग-दौड़ की जिंदगी में इंसान को सुबह उठते ही चाय की तलब लगती है। वहीं दिन भर भाग -दौड़कर शाम को घर पहुंचने पर भी सबसे पहले चाय पीने की इच्छा होती है।
पानी के बाद चाय पृथ्वी पर दूसरा सबसे अधिक पिया जाने वाला पेय पदार्थ है। इसका सेवन चाय पार्टी या सामाजिक कार्यक्रमों में भी किया जाता है। यह पेय देश का सबसे लोकप्रिय पेय पदार्थ है। लगभग सभी घरों में इसका प्रतिदिन सेवन किया जाता है। चाय पूरी दुनिया में उपयोग किया जाने वाला लोकप्रिय पेय है। वहीं दूसरी ओर भारत दुनिया में सबसे ज्यादा चाय पीने वाला देश है।
भारत में चाय का प्रचलन अंग्रेजों के आने के बाद शुरू हुआ। बताते हैं कि डच व्यापारी चाय चीन से यूरोप ले गये थे। वहीं किंवदंती है कि चाय की उत्पत्ति पांच हजार वर्ष से भी पुरानी है। सदियों से इसके प्रसंस्करण के लिए विभिन्न प्रकार की तकनीकों से चाय के अलग-अलग टेस्ट विकसित किये गये।
कहा जाता है कि 1657 में लंदन के एक काफी हाउस में चाय बेची जाती थी।
चाय की उत्पत्ति की बात करें तो यह चीन में उत्पादित होती थी। चाय पर से चीनी एकाधिकार को खत्म करने के लिए अंग्रेजों द्वारा 1836 में छोटी पत्ती वाली चीनी चाय को भारत लाया गया। दार्जिलिंग में इसके बीज का रोपण किया गया। 1856 में दार्जिलिंग में चाय का उत्पादन शुरू हुआ। इसके बाद तो भारतीय चाय पूरी दुनिया में निर्यात की जाने लगी। मालूम हो कि चाय के उत्पादन में भारत का पहला स्थान है।
चाय की शुरुआत भले ही चीन में हुई हो मगर अब ये हर जगह आसानी से मिल जाती है। हर उम्र के लोग अपने - अपने स्वाद के मुताबिक पीना पसंद करते हैं। यूं तो पीने के लिए दुनिया भर में बहुत सारे पेय पदार्थ उपलब्ध हैं पर चाय की बात ही निराली है। चाय के प्रति जो दीवानगी होती है, उसे चाय के शौकीन ही समझ सकते हैं। 1840 में दोपहर के वक्त चाय पीना अंग्रेजी परंपरा मानी जाती थी। आधुनिक युग में व्यस्त और संघर्षपूर्ण लाइफ स्टाइल से लोग अब उब चुके हैं। पश्चिमी देशों में मिल-बैठकर चाय पीने और पिलाने का दौर अब लौट रहा है।
और अंत में आज सारी दुनिया में होटलों, रेस्तरां और दुकानों में नये- नये फ्लेवर और कलेवर में चाय परोसी जाती है। यह युवा पीढ़ी के बीच काफी लोकप्रिय हो रही है।


ज्ञान का अद्भुत भंडार है संदर्भ : पलायन से पुरुषार्थ की ओर अग्रसर करती है श्रीमद्भागवत गीता
श्रीमद्भागवत गीता एक प्रमुख हिंदू ग्रंथ है। इसमें 18 अध्याय और करीब 700 श्लोक हैं। गीता जयंती मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनायी जाती है। यह तिथि उस दिन की याद दिलाती है, जब कुरुक्षेत्र के मैदान में भगवान कृष्ण और अर्जुन के बीच संवाद हुआ था और अर्जुन का मोह दूर हुआ था।
महाभारत शुरू होने से पहले ( यानी भगवान कृष्ण के युद्ध रोकने के सारे प्रयास जब असफल हो गये, और युद्ध अवश्य संभावित हो गया था)  दोनों पक्षों की सेनाएं आमने-सामने खड़ी थीं। तभी अर्जुन को मोह पैदा हो गया कि मैं कैसे अपने परिजनों को मारूं । महाभारत युद्ध में अर्जुन के रथ के  सारथी बने भगवान कृष्ण ने यह देखकर अर्जुन को ज्ञान, कर्म और भक्ति का उपदेश दिया। भगवान कृष्ण ने उस वक्त अर्जुन को जो सलाह, संदेश और उपदेश दिया वही भागवत गीता के रूप में जाना जाता है। श्रीमद् भागवत गीता को भगवान श्री कृष्ण की वाणी भी कहा जाता है।
सनातन धर्म में गीता जयंती का विशेष महत्व है। शास्त्रों में वर्णन है कि भगवान कृष्ण ने मार्गशीर्ष महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया था यह ग्रंथ मनुष्य के उत्थान का प्रमुख स्रोत है। इस तिथि को मोक्षदा एकादशी भी कहा जाता है।
गीता में आत्मा, परमात्मा, भक्ति , कर्म और जीवन आदि का बृहद रूप से वर्णन किया गया है । गीता से हमें यह ज्ञान मिलता है कि व्यक्ति को अपने कर्म पर ध्यान देना चाहिए । हमें कोई भी कर्म फल की चिंता किये बिना ही करना चाहिए।  गीता के उपदेश आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं। गीता मनुष्य को जीवन जीने की राह दिखाती है । गीता के अनुसार मनुष्य को कभी भी अपने विवेक, परिश्रम, बुद्धि और कार्य पर संदेह नहीं करना चाहिए । हमेशा सत्य और धर्म की राह पर चलना चाहिए।
गीता पढ़ने से सच और झूठ तथा ईश्वर और जीव का ज्ञान हो जाता है। मनुष्य को अच्छे और बुरे की समझ आ जाती है । गीता पढ़ने से व्यक्ति का आत्मबल बढ़ता है।
और अंत में गीता ज्ञान का अद्भुत भंडार है। गीता मंगलमय जीवन का ग्रंथ है। गीता पलायन से पुरुषार्थ की ओर बढ़ने की प्रेरणा देती है । गीता हमें धर्म के मार्ग का अनुसरण करते हुए कर्म करने की प्रेरणा देती है। गीता में मनुष्य को अपनी हर समस्या का हल मिलता है।
योगी मॉडल से ही लगेगी लगाम संदर्भ : बेगूसराय में वाहन जांच के दौरान दारोगा व सिपाही को शराब माफियाओं ने कार से उड़ाया
बालू , शराब और जमीन माफियाओं की कारगुजारियां अब हद से ज्यादा बढ़ती जा रही हैं। ऐसा जदयू के राजद के सहयोग से सरकार चलाने के बाद से ज्यादा दिखायी दे रहा है । कहते भी हैं कि सैयां भये कोतवाल , अब डर काहे का।
बिहार में 1990 वाली स्थिति दिखायी दे रही है । अपराधियों में प्रशासन का कोई खौफ नहीं है। अपराधी बेखौफ होकर घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। शराब तस्करों  और बालू माफियाओं का मनोबल इतना बढ़ गया है कि वह छापामारी करने गयी पुलिस टीम पर हमला करने का दुस्साहस कर बैठते हैं। वहीं सड़क पर वाहन जांच का दौरान माफिया दारोगा को ही कार से कुचलते हुए भाग निकलते हैं।
इसका मतलब यही निकलता है कि इन लोगों को सरकारी संरक्षण प्राप्त है। बिहार में प्रशासनिक अराजकता और अपराध चरम पर हैं । हत्या , लूट, अपहरण , दुष्कर्म आदि की लगातार घट रही घटनाओं से बिहार में 1990 के दशक के जंगल राज की याद ताजा हो रही है। आम जनता इससे भयभीत हो रही है।
वहीं सरकार के मुखिया अपनी कुर्सी बचाने के लिए आंख मूंद कर बैठे हैं। किशनगंज, सारण , जहानाबाद, सहरसा, मुंगेर, पटना ,नवादा आदि जिलों में 20 से ज्यादा ऐसी घटनाएं अब तक घट चुकी हैं , जिसमें अपराधियों और बालू - दारू व भू माफियाओं द्वारा पुलिस बल पर हमले किये गये बल्कि उन्हें दौड़ा-दौड़ा कर पीटा गया । छह माह पहले बेगूसराय में ही एक अन्य  दारोगा की हत्या शराब माफिया ने कर दी थी।
जिस राज्य में पुलिस ही सुरक्षित नहीं वहां आम जनता का क्या हाल होगा यह तो भगवान ही जानता है।
बिहार में शराबबंदी को 100 फीसदी सफल नहीं मान सकते। जहां चाहिए वहां शराब उपलब्ध है । वहीं बिहार में बड़ी मात्रा में शराब जप्त की जाती है। वहीं विपक्ष का आरोप है कि पुलिस संरक्षण में शराब का अवैध कारोबार किया जा रहा है।
राजस्व का होता है नुकसान : शराबबंदी से सूबे को तकरीबन छह हजार करोड रुपये के राजस्व का नुकसान का दावा किया जाता है । मगर मजे की बात यह है कि इसका एक बड़ा हिस्सा शराब का अवैध कारोबार करने वालों के पास जाने के आरोप भी लगते रहे हैं। दूसरी ओर बेरोजगार युवा शॉर्टकट से पैसा कमाने के लिए इस धंधे की तरफ आकर्षित हो रहे हैं।
शराब बंदी नहीं थी तो लोग दुकानों में जाकर शराब खरीदते थे मगर शराबबंदी के बाद अवैध रूप से शराब मोहल्ले - मोहल्ले में आसानी से उपलब्ध हो जाती है। होम डिलीवरी तक की जा रही है। छोटे छोटे बच्चे इस धंधे में लिप्त हैं। उन पर कोई शक भी नहीं कर पाता।
और अंत में शराबबंदी सौ फीसदी सफल नहीं हो सकती, यह बात सभी जानते हैं। पूरे भारतवर्ष में सिर्फ चार राज्यों में शराबबंदी लागू है। वहीं 30- 40 प्रतिशत लोग इसके आदी हैं। वे चोरी छिपे इसका सेवन करते हैं। इसके लिए ज्यादा ताकतवर एंटी लीटर सेल बनाना होगा और उससे बिहार पुलिस को अलग रखना होगा। तभी कुछ हद तक इस पर लगाम लग सकती है।
अपने को बदलें, अकेले नहीं रहेंगे संदर्भ : वृद्ध आपसी सामंजस्य स्थापित करें
पटना में स्वतंत्रता सेनानी की पत्नी की हत्या की घटना सोचने पर विवश करती है कि समाज में वृद्ध दंपति सुरक्षित नहीं हैं। उन्हें खतरा रिश्तेदारों, केयर टेकर, और घर में काम करने वाले नौकर या नौकरानी से भी बना रहता है। अब सवाल उठता है कि वृद्ध अकेले क्यों रह रहे हैं। जवाब है बच्चे परिवार सहित बाहर रहते हैं।
इंसान भौतिकता की ओर भाग रहा है। हर माता-पिता अपने बच्चों को अन्य बच्चों की तुलना में अधिक सफल और ऊंचाई पर देखना चाहते हैं। औरों की देखा-देखी अपने बच्चे को दूसरे शहर या विदेश भेज कर कैरियर बनाने छोड़ देते हैं। समाज में यह आज स्टेटस सिंबल बन गया है।
अब पौधा जहां लगेगा वहीं बड़ा होकर पल्लवित और पुष्पित होगा। इसलिए माता-पिता अकेले पड़ जाते हैं। वहीं दूसरी ओर उपभोक्तावादी संस्कृति के तहत बदलते सामाजिक मूल्यों, नयी पीढ़ी की सोच में बदलाव, महंगाई का काबू से बाहर होना और व्यक्ति के अपने बच्चों और पत्नी तक सीमित हो जाने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। वृद्ध दंपति के अकेले रहने का कारण युवा पीढ़ी का अपनी जिंदगी में व्यस्त रहना है।
इसके बावजूद युवा पीढ़ी को भी समझना चाहिए कि वृद्ध व्यक्ति समाज की संपत्ति हैं ,बोझ नहीं। इसका लाभ उठाने का सबसे अच्छा तरीका है , उन्हें अपने साथ रखें और परिवार के निर्णयों में उन्हें सम्मिलित करें। वहीं बुजुर्गों को भी अपनी परंपरागत हठधर्मिता को छोड़कर नयी पीढ़ी व युवाओं के साथ तालमेल बनाये रखने की कोशिश करनी चाहिए।
और अंत में पूरे विश्व में फैल रही इस महामारी रूपी सामाजिक समस्या को आपसी सामंजस्य के जरिए ही जड़ से खत्म किया जा सकता है। बुजुर्गों का अनुभव और नयी पीढ़ी की जानकारी और स्फूर्ति का मेल समाज में सकारात्मक बदलाव ला सकता है।
खुद कर रखें ख्याल और खुश रहें संदर्भ : नकारात्मक सोच से दूर रहें
नकारात्मक विचार आपके मेंटल हेल्थ पर बुरा असर डालते हैं। अगर जिंदगी में कुछ ठीक नहीं चल रहा होता है तो आप नकारात्मक सोच से घिर जाते हैं। इससे आपका हौसला और आत्मविश्वास दोनों कमजोर होने लगते हैं। यह स्थिति आपको अपने लक्ष्य से भटका सकती है।
नेगेटिव थिंकिंग हमें बीमार कर सकती है। नकारात्मक विचार एंजायटी, डिप्रैशन, स्ट्रेस जैसी समस्याओं का कारण बन जाते हैं। वही समस्या आगे बढ़ जाए तो इसका प्रभाव हमारे शरीर पर पड़ने  लगता है। डायबिटीज, हार्ट प्रॉब्लम का कारण स्ट्रेस को ही माना जाता है।
दूसरी ओर सफलता सकारात्मक सोच से ही प्राप्त होती है। जिंदगी जिंदादिली का नाम है , इसलिए खुद से प्यार करें और दयालु बने। जिंदगी में हम इतने व्यस्त हो जाते हैं कि लोगों से नाता टूट जाता है। इसलिए दोस्तों से नियमित मिलते रहें या मोबाइल पर हालचाल पूछते ‌रहें। जिंदादिल इंसान बनें।
परिवार की खुशी के अलावा खुद का ख्याल रखना आपकी पहले जिम्मेवारी है। नकारात्मकता से बचने के लिए उन लोगों के साथ बात करने में समय बताएं जो आपकी परवाह करते हैं।
अपने शौक को पहचानें :  आप किसी भी ऐसे कार्य में समय बितायें  जहां आपको अच्छा लगता हो। अगर आपकी रुचि कुकिंग, पेंटिंग या डांसिंग में है तो उसे पूरी निष्ठा से करें।
खुश रहने का प्रयास करें : अगर आपको घूमना पसंद है तो घूमने निकलें। प्रकृति के नजदीक जाने से हमारे मन - मस्तिष्क को सुकून मिलता है। इसलिए नकारात्मकता को छोड़ मस्त रहें और स्वस्थ रहें।
अभिमन्यु ने गर्भ में ही सीखा था चक्रव्यूह भेदन संदर्भ : 'टाटा-कलाम' जैसी संतान के लिए ऐप से जतन कर रहे पेरेंट्स
क्या गर्भ में बच्चा संस्कार सीख सकता है । विज्ञान के इस पर अलग-अलग विचार हैं पर हिंदू माइथोलॉजी के अनुसार कोई भी बालक बड़ा होकर किस प्रकार का मनुष्य बनेगा, कैसे आचरण करेगा, कैसा व्यवहार करेगा यह सब उसे उसकी मां के गर्भ के भीतर ही मिलना शुरू हो जाता है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण अभिमन्यु और ऋषि अष्टावक्र हैं।
महाभारत की वह कहानी तो सबको मालूम ही होगी। अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु ने चक्रव्यूह में घुसने की कला मां के गर्भ में रहते हुए ही सीख ली थी । उसके पिता अर्जुन जब सुभद्रा को चक्रव्यूह को भेद कर बाहर निकालने की प्रक्रिया बता रहे थे,  तभी सुभद्रा को नींद आ गयी और इस प्रकार अभिमन्यु चक्रव्यूह से बाहर निकालने की कला नहीं सीख पाया और महाभारत के युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुआ।
वहीं ऋषि अष्टावक्र के पिता ऋषि कहोड़ और माता सुजाता महान ऋषि आरुणि के आश्रम में वेद सीखते थे । सुजाता जब गर्भवती हुई तो अजन्मे भ्रूण ने गर्भ में ही वेदों का सही पाठ और उच्चारण सीख लिया । एक दिन उनके पिता माता सुजाता को वेदों का रहस्य समझ रहे थे तो उनकी आठ गलतियों को गर्भस्थ शिशु ने सुधार करवाया। उसके पिता जब भी गलत उच्चारण करते थे तो गर्भस्थ शिशु पेट में लात मारकर इशारा करता था। इस पर उनके पिता  इतने क्रोधित हुए कि उन्होंने अपने पुत्र को ही शाप दे दिया कि वह आठ जगहों से वक्र (टेढ़ा) जन्म लेगा । जन्म के वक्त वह बच्चा आठ जगहों से टेढ़ा था इसलिए उसका नाम अष्टावक्र पड़ा।
इन दोनों दृष्टांतों से यह बात पता चलती है कि गर्भस्थ शिशु पर सांसारिक वातावरण का प्रभाव पड़ता है। एक कहावत भी है कि जैसा खाये अन्न वैसा हो मन। इसलिए गर्भवती महिलाओं को अपने खान-पान पर विशेष ध्यान रखना को कहा जाता था। गर्भस्थ शिशु अपनी मां की आंखों से बाहर के वातावरण को महसूस करता है।
आजकल की युवा पीढ़ी आधुनिक जीवनशैली से उब कर पुरानी सनातन परंपरा की ओर लौटती दिख रही है। इसलिए माता-पिता अपने बच्चों को हर तरह से परफेक्ट बनाने के लिए टेक्नोलॉजी का सहारा ले रहे हैं।  इसी कड़ी में गर्भ संस्कार ऐप उन गुणों का सुझाव देता है जो माता-पिता दुनिया में पैदा होने वाले बच्चों को देना चाहते हैं। आज मार्केट में ऐसे कई ऐप हैं जो शिशु के जन्म से पहले और उसके बाद की सारी महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध कराते हैं।
हर दिन उत्सव मनाएं , जिंदगी का क्या भरोसा
जिंदगी जिंदा दिली का नाम है मुर्दा दिल खाक जिया करते हैं । इमाम बख्श नासिख की ग़ज़ल की यह पंक्तियां आज बहुत ही मौजूं हो गयी है । आधुनिकता की अंधी दौड़ में आज एक-  दूसरे को पीछे छोड़ने की होड़-सी लगी है। अपनों के लिए वक्त नहीं, दूसरों के लिए कहां से निकालेंगे।
वक्त ही कुछ बेरहम सा हो रहा है।
जिसको देखो वही कांटे बो रहा है।।
आदमी की भीड़ में किस-किस से पूछें।
जिंदगी वह जी रहा या ढो रहा है।।
सभी भाग रहे हैं। अरे भाई जरा ठहरो , रुको और सोचो। जिंदगी में कितनी भी विपरीत परिस्थितियां आ जाएं, जो उनका सामना हंसते हुए करता है, वही जिंदा दिल इंसान होता है।
स्वामी विवेकानंद ने भी कहा था कि देश के लोगों में फौलाद की नसें होनी चाहिए। इससे उनका तात्पर्य था कि हर भारतीय जिंदादिल यानी बहादुर हो। क्या मात्र जीने का नाम ही जिंदगी है । ऐसे तो पशु - पक्षी , कीट पतंग भी जीते हैं पर उन्हें भावनाएं नहीं होती ।
इसके विपरीत मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, वह कभी खुश होता है तो कभी दुखी, क्योंकि उसमें भावनाएं हैं। आज सभी जीवन के हर क्षेत्र में सफल होना चाहते हैं लेकिन सफलता को प्राप्त करने में कई कठिनाइयां सामने आती हैं। सफलता तभी मिलती है जब सकारात्मक विचार ,मेहनत और लगन का सही मिश्रण होता है। जिसमें यह तीनों गुण विद्यमान होते हैं वही सच्चे अर्थों में जिंदा दिल कहलाता है । किसी के लिए कुछ करने या देने की भावना आपको भी संतुष्टि देती है।
और अंत में दूसरों की मदद करें , माफ करना सीखें ,जहां भी जाएं माहौल को खुशनुमा बनाने की कोशिश करें । ये छोटे-छोटे नुस्खे आत्मसंतुष्टि का एहसास करायेंगे और आप जिंदा दिल बने रहेंगे।
बिहार में क्राइम अनकंट्रोल संदर्भ : कोर्ट में पेशी के लिए आये अपराधी को गोलियों से भूना
एक बार फिर बिहार में अपराधियों का बोलबाला बढ़ रहा है । ज्यादातर अपराधी युवा हैं।  यह तो सभी को मालूम है कि बिहार सहित पूरे देश में बेरोजगारी दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है । इसकी वजह से युवा गलत रास्ते की ओर बढ़ रहे हैं ।
शराबबंदी के बाद लगता है बिहार अब " उड़ता पंजाब " बनता जा रहा है। युवाओं का अब ड्रग एडिक्शन की ओर झुकाव बढ़ रहा है जो इन्हें आसानी से उपलब्ध हो जाती है। अखबार में प्रतिदिन खबर रहती है नशीली दवाओं की खेप बरामद। आखिर ये दवाएं आती कहां से हैं। इसके पीछे पुलिस अपराधी गठजोड़ काम करता है।
इन नशीली दवाओं के लिए उन्हें पैसे की जरूरत होती है । यह भी बिहार में अपराध के बढ़ने का एक कारण हो सकता है वहीं दूसरी ओर अपराध बढ़ने का कारण रंगदारी और भूमि विवाद भी है । पुलिस की तमाम चौकसी के बाद भी अपराधी संगीन घटनाओं को अंजाम देते हैं । दिसंबर माह की शुरुआत ही जमीन कारोबारी की हत्या से हुई थी। आज तक कम से कम हत्या की सात-आठ घटनाएं घटी चुकी हैं।
जिस प्रकार संस्कृत सभी भाषाओं की जननी कही जाती है । उसी प्रकार बेरोजगारी को भी हम सभी समस्याओं की जड़ का सकते हैं । यह मनुष्य को स्वार्थी बना देती है और युवा अपराध की ओर कदम बढ़ा देते हैं । सरकार को ड्रग माफिया और नशीली दवाओं का व्यापार करने वालों पर विशेष निगरानी रखनी होगी,तभी युवा पीढ़ी इस दलदल से बाहर निकल सकेगी।
और अंत में सरकार को अपराध पर रोकथाम लगाने के लिए सबसे पहले युवाओं की बेरोजगारी को दूर करना होगा और युवाओं को रचनात्मक कार्यों के प्रति आकर्षित करना होगा।