हिंदी साहित्य तीर्थ की परिकल्पना
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गोण्डा- 4 अक्टूबर को आचार्य प्रवर पंडित रामचंद्र शुक्ल का जन्मदिन है। इनका साहित्य के मूल्यांकन में अपूर्व योगदान रहा है। पौराणिक राम जानकी मार्ग पर स्थित अगौना ग्राम शुक्ल जी की जन्मभूमि है। आचार्य शुक्ल ने साहित्य के मूल्यांकन के लिए लोकमंगल का मानदंड दिया है। यह लोकमंगल का सिद्धांत मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम के चरित्र और रामचरितमानस पर आधारित है।
आचार्य शुक्ल ने श्रेष्ठ साहित्य में 'विरुद्धों के सामंजस्य' की अवधारणा का भी प्रतिपादन किया है। यह संयोग है या ईश्वरीय कृपा है? लेकिन आचार्य शुक्ल के जन्म-स्थान अगौना से 75 किलोमीटर पूर्व में निर्गुण संप्रदाय, ज्ञान मार्ग की धारा के सबसे शीर्ष कवि संत कबीर का निर्वाण स्थल मगहर स्थित है। साहित्य की काशी। जीवन के संपूर्ण मार्गों का हरण कर लेने वाला स्थान मग-हर। पुराने नकारात्मक अर्थ को त्याग कर काशी से आकर कबीर ने इस स्थान को एक नया अर्थ देते हुए मोक्ष प्रदाता भूमि के रूप में स्थापित किया है। यह साहित्य का निर्गुण धाम है, साहित्य का ज्ञानपीठ है।
3 अक्टूबर की रात मगहर में हिंदी साहित्य के आचार्यों, शोधार्थियों, साहित्यकारों द्वारा निवास करते हुए 4 अक्टूबर को प्रातः कबीर के राम विषयक संगोष्ठी का संपादन किया जाएगा। इसके बाद वाहनों से यात्रा प्रारंभ करते हुए बस्ती से कलवारी मार्ग से अगौना ग्राम 11:00 पूर्वाह्न आया जाएगा। जहां पर 'साहित्य और लोक मंगल' विषयक संगोष्ठी संपन्न होगी। ग्राम अगौना, राम जानकी मार्ग पर आचार्य रामचंद्र शुक्ल पुस्तकालय में 11:00 बजे से 2:00 के मध्य संपन्न किया जाएगा। इसके बाद दोपहर 3 बजे छावनी, कटरा,नवाबगंज,दुर्जनपुर घाट से तरबगंज, परसपुर होते हुए "सकल पापनासक तिमुहानी" पर तुलसी के राम विषयक संगोष्ठी संपन्न होगी। अगौना साहित्य का लोकमंगल धाम है; साहित्य की समन्वय पीठ है।
वहीं पर गोंडा जनपद में स्थित तिमुहानी संगम सकल पाप नाशक पवित्र स्थान है। जहां पर कल्पवास किया जाता है। यह स्थान गोस्वामी तुलसीदास के जन्मभूमि के अति निकट है और उनकी गुरु भूमि भी है। साहित्य का सगुण धाम है। यह तीनों स्थान अयोध्या के उत्तर दिशा में सरयू के समानांतर पूरब और पश्चिम में डेढ़ सौ किलोमीटर में फैला हुआ है। कबीर, रामचंद्र शुक्ल और तुलसी, इस त्रयी को साधने पर साहित्य की संपूर्ण अभिव्यक्ति हो जाती है। साहित्य का संपूर्ण प्रतिनिधित्व इससे साकार हो जाता है। पौराणिक राम जानकी मार्ग एवं 84 कोस परिक्रमा मार्ग पर ही इस यात्रा का 75% हिस्सा अवधारित है।
कबीर से तुलसी वाया रामचंद्र शुक्ल, मगहर से तिमुहानी वाया अगौना, निर्गुण पीठ से सगुण पीठ वाया समन्वय पीठ/ लोकमंगल पीठ की यह यात्रा साहित्य तीर्थ का स्वरूप लेगी। हिंदी साहित्य का अपना कोई भूगोल नहीं था। इस साहित्यिक यात्रा से हिंदी साहित्य को अपना प्रामाणिक भूगोल मिल जाएगा। संत कबीर नगर, बस्ती और गोंडा के मध्य स्थित डेढ़ सौ किलोमीटर का यह पथ
लोकमंगल पथ या राम- राम- पथ कहा जाएगा।
कबीर के........................राम
रामचंद्र शुक्ल के नाम में.... राम
तुलसी के.......................राम
इस परिकल्पना का शाश्वत स्वरूप बिना सहृदयों के आशीर्वाद के असंभव है। धर्म एवं आध्यात्मिक मोक्ष मार्ग के समानांतर साहित्य के इस शाश्वत मुक्ति मार्ग/ मुक्तिपथ का मानव जीवन में सन्निवेश बहुत आवश्यक हो गया है।
साहित्य का आरंभ प्रभु श्रीराम के पावन चरित्र के साथ आदि वाल्मीकि के द्वारा प्रारंभ किया गया था जो विभिन्न कालों में अलग-अलग रूपों में आज भी निरंतर गतिमान है।
आज शब्द और कर्म के बीच दूरी बढ़ती जा रही है। ज्ञान और कर्म में संबंध में नहीं रह गया है । मानव जीवन में मनुष्यता और नागरिक चेतना का विकास और उसे सद्मार्गी बनाने का दायित्व साहित्य का रहा है।
साहित्य आज सामान्य जन से दूर होता जा रहा है। मनुष्य के जीवन में, नागरिक के जीवन में जब तक साहित्य की स्थापना नहीं की जाएगी, तब तक उसे मनुष्यता और नागरिकता का पाठ नहीं पढ़ाया जा सकता है। इन कार्यों के और भी महत्वपूर्ण आधार हैं । मैं साहित्य का विद्यार्थी होने के कारण इसके अवमूल्यन से पूर्णत: परिचित हूं और उसे इस दलदल से निकलकर जन-जन तक पहुंचाने का लक्ष्य के लिए समर्पित हो चुका हूं।
इस यात्रा के आंतरिक अर्थों को निर्गुण से सगुण की यात्रा, निराकार से साकार की यात्रा, मैं से हम की यात्रा, अवधी के प्रथम कवि गोरखनाथ से अवधी के महाकवि तुलसीदास की यात्रा, आँखिन देखी से नाना पुराण निगमागम की यात्रा, अवधू से अवधी की यात्रा, सबद से अरथ की यात्रा, लोक से वेद की यात्रा, गोरक्ष प्रांत से गोनर्द प्रांत की यात्रा , विरुद्धों से सामंजस्य की यात्रा, ज्ञान में राम से हृदय में राम की यात्रा, ज्ञान से भक्ति की यात्रा, पूर्व से पश्चिम की यात्रा रमैनी से रामायन की यात्रा, प्रश्न से उत्तर की यात्रा, शून्य(निर्वाण) से दो शून्य( जीवन की पूर्णता) की यात्रा, मृत्यु से जीवन की यात्रा , जीवेद् शरद:शतम् की यात्रा, मासि कागद छूयो नहीं से क्वचिदन्यतोऽपि की यात्रा, संधा भाषा से जन भाषा की यात्रा, कबीर के राम से तुलसी के राम की यात्रा आदि कही जाएगी।
यात्रा का नेतृत्व हिंदी साहित्य के महानायक, विश्व हिंदी के उन्नायक हिंदी अनुसंधान के महागुरु आचार्य सूर्य प्रसाद दीक्षित के मार्गदर्शन में संपन्न की जाएगी। साथ में कई विश्वविद्यालयों के आचार्य, शोधार्थी रहेंगे ।
शाश्वत राम जानकी मार्ग पर स्थित अगौना ग्राम में लोक मंगल मंदिर की स्थापना का लक्ष्य है, जो साहित्य का मंदिर होगा । इस मंदिर में भारतीय साहित्य के समस्त साहित्यकारों के चित्र एवं सूचनाएं उपलब्ध रहेंगी।
तीन अक्टूबर और चार अक्टूबर की रात्रि मगहर में रात्रि निवास एवं प्रातः8:00 बजे," कबीर के राम" विषयक संगोष्ठी संपन्न होगी ।10:00 बजे प्रातः मगहर से मुख्य मार्ग से बस्ती आकर बायीपास फुटेहिया से कट कर कलवारी पहुंच जाएगा। कलवारी से 2 किलोमीटर दूर राम जानकी मार्ग पर स्थित राम आचार्य रामचंद्र शुक्ल की जन्म भूमि अगौना में 11:00 से 2:00 बजे तक "साहित्य और लोक मंगल" विषयक संगोष्ठी संपन्न की जाएगी।2:00 बजे से 2:30 तक भोजन का समय निर्धारित किया गया है। तदुपरांत यात्रा छावनी, कटरा, नवाबगंज, दुर्जनपुर घाट, तरबगंज बेलसर, परसपुर से होते हुए तिमुहानी पसका पहुंचेगी। तिमुहानी का क्षेत्र सूकर खेत के नाम से जगत प्रसिद्ध है। यह भूमि तुलसी की जन्म भूमि के साथ-साथ उनके गुरु -भूमि है।
यह संगम है। यहां एक माह का कल्पवास भी किया जाता है।
इस पुण्यभूमि पर तुलसी के राम विषयक संगोष्ठी संपन्न की जाएगी।
साहित्य की काशी से साहित्य की अयोध्या की यात्रा यही संपन्न होकर निरंतर परिक्रमा करने के प्रण के साथ स्थगित कर दी जाएगी।
आइए!!!!!
इस यात्रा में कहीं भी सम्मिलित होकर साहित्य तीर्थ का एक अहम हिस्सा बनकर साहित्यिक क्रांति को चरितार्थ किया जाए।
Oct 01 2023, 14:42