मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पुलिस ने फिर नहीं माना हाई कोर्ट का आदेश ! अब अदालत ने ठोंका जुर्माना, यहां जानिए पूरा मामला
कलकत्ता उच्च न्यायालय के जज अभिजीत गंगोपाध्याय और पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार के बीच अक्सर टकराव देखने को मिलता रहता है। जस्टिस पहले भी ममता बनर्जी के भतीजे और तृणमूल कांग्रेस (TMC) सांसद अभिषेक बनर्जी खिलाफ सख्त कदम उठा चुके है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के बीच में आ गया और अभिषेक बनर्जी को राहत मिल गई। उसके बाद भी जस्टिस ने शिक्षक भर्ती घोटाले की सुनवाई करते हुए कई फर्जी नियुक्तियों को रद्द करने का आदेश दे दिया था। हालाँकि, उस मामले में भी हाईकोर्ट की बड़ी बेंच ने ममता बनर्जी सरकार को राहत दे दी और नियुक्तियां रद्द होने से बच गईं। अब जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय ने ममता बनर्जी की पुलिस की क्लास लगाई है।
रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस गंगोपाध्याय ने पश्चिम बंगाल पुलिस के CID (क्रिमिनल इन्वेस्टिगेटिंग डिपार्टमेंट) पर पांच लाख रुपये का जुर्माना ठोंका है। दरअसल, जस्टिस इस बात से खफा थे कि उनके आदेश देने के बावजूद CID ने एक घोटाले की जांच CBI और ED को नहीं सौंपी है। जस्टिस का सवाल था कि CID आखिर क्या छिपाना चाह रही है ? क्या वो घोटाले के दोषियों को बचाना चाह रही है ? बता दें कि, CID राज्य सरकार के अधीन आती है और CBI-ED केंद्र के आधीन। इससे पहले भी कई बार हाई कोर्ट के आदेश के बावजूद बंगाल पुलिस ने केंद्रीय जांच एजेंसियों को मामलों के दस्तावेज नहीं सौंपे हैं। इसी साल रामनवमी पर जुलुस निकाल रहे श्रद्धालुओं पर हुए हमले की जांच भी हाई कोर्ट ने NIA को सौंपी थी, लेकिन NIA ने कोर्ट को बताया था कि, कई दिन हो गए किन्तु, बंगाल पुलिस ने उसे दस्तावेज़ ही नहीं सौंपे हैं, जिसके चलते जांच अटकी पड़ी है। उस वक़्त भी यह सवाल उठा था कि, आखिर सीएम ममता की पुलिस क्या छुपाना चाह रही है और किसे बचाना चाह रही है ? वहीं, जब पटना हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस (रिटायर्ड) नरसिम्हा रेड्डी के नेतृत्व में मानवाधिकार संगठन की 6 सदस्यीय टीम हिंसा की सच्चाई का पता लगाने बंगाल पहुंची थी, लेकिन ममता बनर्जी की पुलिस ने उन्हें दंगा प्रभावित इलाके में जाने ही नहीं दिया था।
क्या है ताजा मामला, जिसमे बंगाल पुलिस को पड़ी फटकार
दरअसल, ये मामला अलीपुरद्वार महिला समाबे रिंदन से संबंधित है। सोसायटी के पास 21163 सदस्य पंजीकृत हैं। इन सभी लोगों ने सोसायटी के पास अपने पैसों का निवेश किया था। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि ये रकम 50 करोड़ से अधिक है। सोसायटी ने ये पैसा लोन के रूप में कुछ लोगों को बांट दिया। इस मामले की जांच CID को सौंपी गई थी। लेकिन तीन वर्ष बीत जाने के बाद भी CBI जांच करती रही, और ये पता नहीं लगा पाई कि पैसा किन लोगों को दिया गया। वहीं, जिन लोगों ने सोसायटी से पैसा लिया, उसे कभी वापस ही नहीं लौटाया। जिन्होंने सोसाइटी में पैसे लगाए थे, वो दर दर की ठोकर खा रहे हैं।
24 अगस्त को हाईकोर्ट ने CBI और ED को सौंपा था केस
कोलकाता उच्च न्यायालय ने 24 अगस्त को आदेश दिया था कि ये मामला CBI और ED को सौंपा जाए। लेकिन, हाई कोर्ट के आदेश के बावजूद ममता सरकार के अधीन आने वाली CID ने एक महीने तक ये केस अभी तक केंद्रीय एजेंसियों को नहीं सौंपा। इस पर जस्टिस गंगोपाध्याय ने सवाल किया कि ममता बनर्जी की पुलिस आखिर छिपा क्या रही है ? उसने ये केस अभी तक केंद्रीय एजेंसियों को क्यों नहीं सौंपा ? जस्टिस का कहना था कि CID के एक अधिकारी ने खुद माना है कि केस अभी तक ट्रांसफर नहीं किया जा सका है। जिसके बाद जस्टिस ने CID पर 5 लाख का जुर्माना लगा दिया।
हालांकि, CID ने जस्टिस गंगोपाध्याय की अदालत में अर्जी दी कि पांच लाख जुर्माने का आदेश वापस ले लिया जाए। इस पर अदालत ने कहा कि CID ऐसी अर्जी दाखिल करने वाली होती कौन है। 22 सितंबर तक पुलिस को पांच लाख रुपये की रकम हाईकोर्ट की लीगल एड में जमा कराने का आदेश दिया गया है। इसके साथ ही जस्टिस ने ये आदेश भी दिया कि CBI और ED को 18 सितंबर तक CID केस से संबंधित दस्तावेज सौंप दे।
Sep 20 2023, 11:30