चीन ने भारत-मिडिल ईस्ट-यूरोप कॉरिडोर का किया स्वागत, कहा-बस भू-राजनीतिक हथकंडा नहीं बननी चाहिए
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जी20 सम्मेलन के पहले दिन इंडिया-मिडल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर के निर्माण का ऐलान कर दिया गया है।इस कॉरिडोर में भारत के अलावा यूएई, सऊदी अरब, यूरोपीय संघ, फ्रांस, इटली, जर्मनी और अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश शामिल हैं। इंडिया-मिडल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर के ऐलान को भारत की कूटनीतिक जीत मानी जा रही है।ये ऐलान मिडल ईस्ट और यूरोप के बाजारों में चीन के बढ़ते दबदबे पर एक तरह से रोक लगाने का प्लान है। हालांकि, चीन ने नए गलियारे पर प्रतिक्रिया देते हुए इसका स्वागत किया है। साथ ही कुछ सलाह भी दे डाली है।
चीन ने सोमवार को कहा कि वह जी20 शिखर सम्मेलन के मौके पर घोषित भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे का स्वागत करता है, जब तक कि यह एक "भूराजनीतिक उपकरण न बन जाए। मंत्रालय ने कहा कि चीन विकासशील देशों में बुनियादी ढांचे के निर्माण में मदद करने वाली सभी पहलों और कनेक्टिविटी और विकास को बढ़ावा देने की कोशिशों को स्वागत करता है, लेकिन कनेक्टिविटी की पहल खुली, समावेशी और तालमेल बनाने वाली होनी चाहिए और भू-राजनीतिक हथकंडा नहीं बननी चाहिए।
भारत, मध्य पूर्व के देशों और यूरोप के कॉरिडोर का जिक्र करते हुए चीन ने अपने 'बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव' से इटली के पीछे हटने के सवाल को ज्यादा तवज्जो नहीं दी। चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि वो उन सभी कोशिशों का स्वागत करता है जो विकासशील देशों के लिए इन्फ्रास्ट्र्क्चर बनाने में मदद करे। वो उन सभी प्रयासों के समर्थन में है जो कनेक्टिविटी और साझा विकास को बढ़ावा दे रहे हैं।
शनिवार को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत, मध्य पूर्व देशों और पूर्वी यूरोप को जोड़ने वाला कॉरिडोर लॉन्च करने का एलान किया था। ये कॉरिडोर भारत, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, यूरोपियन यूनियन, फ्रांस, इटली, जर्मनी और अमेरिका को जोड़ेगा। इस परियोजना का मक़सद भारत, मध्य पूर्व और यूरोप को रेल एवं पोर्ट नेटवर्क के ज़रिए जोड़ा जाना है। इस परियोजना के तहत मध्य पूर्व में स्थित देशों को एक रेल नेटवर्क से जोड़ा जाएगा जिसके बाद उन्हें भारत से एक शिपिंग रूट के माध्यम से जोड़ा जाएगा। इसके बाद इस नेटवर्क को यूरोप से जोड़ा जाएगा। इस प्रोजेक्ट से पहला फायदा होगा कि मिडल ईस्ट और यूरोप के बाजारों में भारत की पहुंच और पकड़ मजबूत हो सकती है। दूसरा फायदा होगा कि शिप और रेल कनेक्टिविटी होने से कम से कम लागत में तेल और गैस की सप्लाई होगी। तीसरा फायदा होगा कि मिडल ईस्ट और यूरोप में चीन पर भारत को कूटनीतिक और कारोबारी बढ़त मिलेगी।
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा कि ये सचमुच बड़ी डील है। इस कॉरिडोर को चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का जवाब माना जा रहा है। अब सवाल ये है कि अमेरिका इस प्रोजेक्ट में बढ़-चढ़कर क्यों हिस्सा ले रहा है। इसकी वजह चीन का बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट है, जिसके जरिए ड्रैगन मिडल ईस्ट से यूरोप के बाजारों पर कब्जा जमाना चाहता है। अमेरिका की कोशिश चीन के प्रभाव को रोकने की है। इसलिए उसने भारत की मदद ली और सऊदी अरब-यूएई को नए कॉरिडोर के लिए तैयार किया।
Sep 12 2023, 17:40