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झारखंड आदिवासी महोत्सव का दूसरा दिन: आदिवासी कला संस्कृति की छटा बिखेरती नजर आ रही है


विश्व आदिवासी दिवस पर रांची में झारखंड आदिवासी महोत्सव मनाया जा रहा है, जिसका आज दूसरा दिन है। जेल चौक स्थित भगवान बिरसा मुंडा स्मृति पार्क सह संग्रहालय में इसका आयोजन किया गया।

दूसरे दिन यानी 10 अगस्त को 11 बजे से महोत्सव की शुरुआत उरांव आदिवासी समुदाय का लोक नृत्य से की गई। जिसके बाद पाइका नृत्य, गोंड आदिवासी समुदाय का किहो नृत्य, कर्नाटक के आदिवासी समुदाय द्वारा दामिनी लोक नृत्य, लखन गुड़िया का मुंडारी गायन वादन, पद्मश्री मधु मंसूरी की गायन प्रस्तुति, रमेश्वर मिंज द्वारा बांसुरी वादन किया गया। दोपहर 2 बजे अरुणाचल प्रदेश के निशि आदिवासी समुदाय द्वारा रेखम पड़ा नृत्य, असम के हाजोंग आदिवासी समुदाय आदिवासी द्वारा लेवा टाना नृत्य, असम के दिओरीआदिवासी समुदाय का बिहु नृत्य के अलावे झारखंड रंगारंग महोत्सव स्थानीय आदिवासी समुदाय द्वारा किया जाएगा।

झारखंड आदिवासी महोत्सव के रंग में पूरी रंग में हो गई है। चारों और उत्साह का माहौल बना हुआ है। बच्चे महिलाएं एवं पुरुष सभी इस आयोजन का लुफ्त उठा रहे हैं। इस महोत्सव में कई तरह के स्टाल के साथ-साथ जनजातीय फूड स्टॉल का भी आयोजन किया गया है। जिसमें लोग अपने जनजाति, पारंपरिक भोजन का आनंद भी ले रहे हैं।

झारखंड आदिवासी महोत्सव का दूसरा दिन: आदिवासी कला संस्कृति की छटा बिखेरती नजर आ रही है

विश्व आदिवासी दिवस पर रांची में झारखंड आदिवासी महोत्सव मनाया जा रहा है, जिसका आज दूसरा दिन है। जेल चौक स्थित भगवान बिरसा मुंडा स्मृति पार्क सह संग्रहालय में इसका आयोजन किया गया।

दूसरे दिन यानी 10 अगस्त को 11 बजे से महोत्सव की शुरुआत उरांव आदिवासी समुदाय का लोक नृत्य से की गई। जिसके बाद पाइका नृत्य, गोंड आदिवासी समुदाय का किहो नृत्य, कर्नाटक के आदिवासी समुदाय द्वारा दामिनी लोक नृत्य, लखन गुड़िया का मुंडारी गायन वादन, पद्मश्री मधु मंसूरी की गायन प्रस्तुति, रमेश्वर मिंज द्वारा बांसुरी वादन किया गया। दोपहर 2 बजे अरुणाचल प्रदेश के निशि आदिवासी समुदाय द्वारा रेखम पड़ा नृत्य, असम के हाजोंग आदिवासी समुदाय आदिवासी द्वारा लेवा टाना नृत्य, असम के दिओरीआदिवासी समुदाय का बिहु नृत्य के अलावे झारखंड रंगारंग महोत्सव स्थानीय आदिवासी समुदाय द्वारा किया जाएगा।

झारखंड आदिवासी महोत्सव के रंग में पूरी रंग में हो गई है। चारों और उत्साह का माहौल बना हुआ है। बच्चे महिलाएं एवं पुरुष सभी इस आयोजन का लुफ्त उठा रहे हैं। इस महोत्सव में कई तरह के स्टाल के साथ-साथ जनजातीय फूड स्टॉल का भी आयोजन किया गया है। जिसमें लोग अपने जनजाति, पारंपरिक भोजन का आनंद भी ले रहे हैं।

सीएम हेमंत सोरेन आज 48 वर्ष के हो गए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित कई नेताओं ने दी बधाई


 झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का जन्म 10 अगस्त, 1975 को रामगढ़ जिला के नेमरा में हुआ था। आज हेमंत सोरेन 48 साल के हो गये।

आज मुख्‍यमंत्री हेमंत सोरेन के जन्‍मदिन के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुभकामना दी। उनकी लंबी उम्र और अच्‍छे स्‍वास्‍थ्‍य की कामना की है। आज इस खास मौके पर राजनेता सहित कई दिग्‍गजों ने उन्‍हें बधाई व शुभकामनाएं दी हैं। राज्‍य में कांग्रेस-राजद के साथ महागठबंधन की सरकार चला रहे हेमंत सोरेन झारखंड मुक्ति मोर्चा पार्टी के कार्यकारी अध्‍यक्ष भी हैं।

राज्य में आदिवासी महोत्सव मनाया जा रहा है ऐसे में उनका जन्मदिन बहुत खास होगा। आज शाम पांच बजे से मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन इस कार्यक्रम में शामिल होंगे। इस लिहाज से उनका जन्मदिन यादगार होगा क्योंकि घर पर पारिवारिक कार्यक्रम के साथ- साथ हेमंत सोरेन आज सार्वजनिक कार्यक्रम में भी शिरकत कर रहे हैं।

हेमंत सोरेन दूसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने हैं। जुलाई 2013 से दिसंबर 2014 तक राज्य के मुख्यमंत्री थे अब दूसरी पारी में उन्हें 29 दिसंबर, 2019 को राज्य के पांचवें मुख्यमंत्री के तौर पर राज्य की जिम्मेदारी मिली है। साल 2003 में हेमंत सोरेन राजनीति जीवन की शुरुआत की थी।

राँची: धुर्वा थाना क्षेत्र के एक दुकान में आग लगने से बबलू महतो नामक कारीगर का दर्दनाक मौत


रांची के धुर्वा थाना क्षेत्र में एक दुकान में आग लगने की वजह से पुरुलिया के रहने वाले कारीगर बबलू महतो की दर्दनाक मौत हो गई।

 बबलू महतो होटल में मिठाई और दूसरे तरह के व्यंजन बनाने का काम किया करता था। धुर्वा के ही रहने वाले रंजन नाम के व्यक्ति के होटल में बबलू काम किया करता था।

होटल मालिक के द्वारा होटल के ही सामने एक छोटा सा दुकान लिया गया था ,जिसे स्टोर और रेस्ट रूम के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। बबलू सहित होटल के दूसरे कर्मचारी भी उसी रेस्ट हाउस में सोया करते थे। बुधवार को ही बबलू के साथ काम करने वाले कर्मचारी धन रोपनी को लेकर पुरुलिया लौट गए थे। बबलू को भी शुक्रवार को वापस लौटना था। लेकिन उससे पहले उसकी मौत हो गई।

विश्व आदिवासी दिवस पर झारखंड के सीएम का हुंकार, कट्टरपंथियों के हमले से बचने के लिए देश के 13 करोड़ आदिवासी हो जाएं तैयार..!


विश्व आदिवासी दिवस पर झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि -आज देश के 13 करोड़ आदिवासियों पर कट्टरपंथियों के हमले हो रहे हैं। मणिपुर में जो हिंसा हो रही है, उसके पीछे भी कट्टरपंथी ताकतें हैं। ऐसे में आदिवासियों को संघर्ष के लिए एकजुट होना होगा।

उन्होंने देश भर के आदिवासियों से अपील किया कि कट्टरपंथियों के खिलाफ लड़ने के लिए सभी संगठित हो जाएं। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन आदिवासी दिवस के मौके पर रांची में आयोजित दो दिवसीय आदिवासी महोत्सव में बोल रहे थे। 

महोत्सव की शुरुआत मणिपुर हिंसा में मारे गए लोगों की आत्मा की शांति के लिए मौन प्रार्थना के साथ शुरू हुई।

हेमंत सोरेन ने कहा कि आज देश का आदिवासी समाज बिखरा हुआ है। हम धर्म क्षेत्र के आधार पर बंटे हैं। हमारा लक्ष्य, हमारी समस्या एक जैसी है तो हमारी लड़ाई भी एक जैसी होनी चाहिए। देश में आदिवासियों को विस्थापन का दंश झेलना पड़ रहा है।

हमारी व्यवस्था इतनी निर्दयी है कि उन्होंने यह भी पता नहीं किया कि खदानों, उद्योगों के दौरान कितने लोग विस्थापित और बेघर हुए। जो लोग इस दौरान विस्थापित हुए उनमें से 80 प्रतिशत आदिवासी हैं। इन्हें अपनी जड़ों से काट दिया गया है।

कल का किसान आज साइकिल पर कोयला बेचने को मजबूर है, बंधुआ मजदूर बना हुआ है। राज्य में लाखों एकड़ जमीन कोयला कंपनियों को दी गयी। लेकिन विस्थापितों और आदिवासियों को उस अनुपात में रोजगार और नौकरी नहीं मिली।

हेमंत ने कहा कि हमारी धरती तप रही है लेकिन कंपनियां और केंद्र सरकार कान में तेल डालकर सोई हुई है। किसकी संपत्ति खत्म हुई, किसकी जमीन गई?

 जो विकसित हैं वो कौन हैं? इतिहासकारों ने भी आदिवासियों के साथ बेईमानी की और आदिवासियों का जिक्र नहीं किया गया है।

देश की आजादी के लिए आदिवासियों ने बलिदान दिया। इतिहासकारों ने हमारे पूर्वजों को जगह नहीं दी। आदिवासी के अधिकार को किसी और को दिया जा रहा है। लोग हमारे नाम तक छीनने लगे हैं। हम मूल निवासी हैं, प्रकृति का हिस्सा हैं। कोई हमें वनवासी कहकर चिढ़ा रहा है और कोई जंगली बता रहा है।

आज आदिवासी अपनी पहचान के लिए इतिहास में की गयी उपेक्षा के खिलाफ बोलता है तो उन्हें चुप कराने की साजिश रची जा रही है। समाज की मुख्य धारा के माध्यम से हमेशा प्रयास किया गया है कि इतिहास में हमारी कोई भूमिका ना रहे।

जब हम इतिहास जानने का प्रयास करते हैं तो 1800 ई. के पहले का इतिहास नहीं मिलता है। हमें टुकड़ों में बांटकर देखने का प्रयास किया गया है। हमारे पूर्वजों ने हमारे लिए बहुत कुछ किया। इस देश को गढ़ने में आदिवासी समाज की भूमिका की फिर से व्याख्या की जानी चाहिए। हमारे पास विश्व में मानव समाज को देने के लिए बहुत कुछ है, बस उसकी दृष्टि होनी चाहिए।

कार्यक्रम में पूर्व सीएम और झामुमो के अध्यक्ष शिबू सोरेन ने कहा कि आदिवासी पूरे देश और पूरी दुनिया में हैं। आदिवासी मजदूरी करता है। हम आदिवासी दिवस मनाते हैं आने वाली पीढ़ी भी मनाती रहेगी। इस महोत्सव की शुरुआत होने के पहले रांची में देश के विभिन्न भागों के आदिवासियों की संस्कृतियों को दर्शाती रैली निकाली गई।

सांसद जयंत सिन्हा ने झारखण्ड में जलापूर्ति की समस्या पर सदन का ध्यान करवाया आकृष्ट

रामगढ़: हम सभी अवगत हैं कि लोकसभा का मानसून सत्र चल रहा है। सांसद सह अध्यक्ष वित्त सम्बन्धी संसदीय स्थायी समिति जयंत सिन्हा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में हज़ारीबाग लोकसभा का नेतृत्व कर रहे हैं। वे सदन में देश, झारखण्ड व हज़ारीबाग एवं रामगढ़ से जुड़े अनेक मुद्दे उठा रहे हैं।

सांसद जयंत सिन्हा ने लोकसभा में नियम 377 के तहत झारखण्ड में जलापूर्ति की समस्या के गंभीर मामले पर सदन का ध्यान आकृष्ट करवाया है। उन्होंने कहा कि झारखण्ड में जेएमएम-कांग्रेस सरकार 'जल जीवन मिशन' हर घर जल योजना के तहत ग्रामीण आबादी को नल का पानी उपलब्ध करवाने में बेहद ख़राब प्रदर्शन कर रही है।

जल राज्य का विषय है और इसलिए घरों में नल का पानी उपलब्ध करवाने के लिए जल सम्बन्धी योजनाओं को लागू करवाने की प्राथमिक ज़िम्मेदारी संबधित राज्य या केंद्र शासित प्रदेश की है। जुलाई, 2023 तक झारखण्ड में केवल 39.02 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों ने नल कनेक्शन की सूचना दी है।

 इसे परिप्रेक्ष्य में रखें तो झारखण्ड में 37 लाख से ज्यादा ग्रामीण घरों में नल के स्वच्छ पानी का कनेक्शन नहीं है। इसकी तुलना में गुजरात और हरियाणा जैसे राज्यों में जल जीवन मिशन के तहत 100 प्रतिशत नल कनेक्शन हैं।

सांसद जयंत सिन्हा ने कहा कि ऐसे समय में जब हमारा देश दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है और विश्व गुरु बनने के लिए तैयार है, वहां झारखण्ड राज्य अपनी ग्रामीण आबादी को घरों में नल का पानी उपलब्ध करवाने में भी असमर्थ है। उन्होंने केंद्र सरकार से आग्रह किया है कि वे 'जल जीवन मिशन' हर घर जल योजना के कार्यान्वयन में तेजी लाने के लिए राज्य सरकार को सख्त निर्देश दे।

रामगढ़: विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर जिला कांग्रेस कमेटी द्वारा कार्यक्रम का किया गया आयोजन


रामगढ़: विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर जिला कांग्रेस कमेटी रामगढ़ द्वारा रामगढ़ प्रखंड के सुदूरवर्ती आदिवासी बहुल गांव बन खेता में कार्यक्रम का आयोजन किया गया।

जिसकी अध्यक्षता जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष मुन्ना पासवान ने की तथा संचालन रामगढ़ प्रखंड के बिससूत्री के अध्यक्ष सुनील करमाली द्वारा किया गया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर रामगढ़ विधानसभा की पूर्व विधायक श्रीमती ममता देवी उपस्थित हुई। 

कार्यक्रम में उपस्थित सभी लोगों को विश्व आदिवासी दिवस के बधाई देते हुए श्रीमती ममता देवी ने कहा कि आजादी के बाद से ही कांग्रेस पार्टी द्वारा आदिवासियों के लिए कई तरह के कानून बनाकर उन्हें संरक्षण देने का काम किया है इसके साथ ही साथ कई तरह की योजनाएं भी आदिवासियों के हितों में रखकर बनाई गई है जिसका लाभ उन्हें मिल रहा है उन्होंने कहा कि झारखंड सरकार भी आपके हक और अधिकार के लिए हमेशा तत्पर है क्योंकि एक आदिवासी का बेटा ही झारखंड सरकार का मुखिया है। 

कार्यक्रम के अंत में उपस्थित जनसमूह के बीच मिठाइयां बांटकर सभी को विश्व आदिवासी दिवस की शुभकामना दिया गया। मौके पर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव सीपी संतन, जिला 20 सूत्री क्रियान्वयन समिति के उपाध्यक्ष दिनेश मुंडा, जिला प्रवक्ता मुकेश यादव,जिला सचिव संजय साहू, महिला कांग्रेस जिलाध्यक्ष मंजू जोशी, कांग्रेस सेवा दल के जिला अध्यक्ष रूपेंद्र महतो, रामगढ़ प्रखंड प्रमुख करुणादेवी, पिंकी राय, रामसेवक बेदिया , रूपलाल बेदिया,बंशी बेदिया, हरिदश महतो,अनिल बेदिया, संदीप बेदिया, विजय मुंडा , कुंती देवी, सहराज करमाली,महेश बेदिया,दादु मुण्डा, इत्यादि उपस्थित थे।

झारखंड आदिवासी महोत्सव 2023 के अवसर पर सेमिनार आयोजित


रांची: विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर बिरसा मुंडा स्मृति उद्यान , राँची में जहां एक ओर सांस्कृतिक कार्यक्रम से आदिवासी जीवन दर्शन को समझने का मौक़ा मिल रहा है तो वहीं दूसरी ओर इसी उद्यान में परिचर्चा के माध्यम से देश के कोने कोने से आये ख्यातिप्राप्त विशेषज्ञों से जनजातीय भाषाओं, संस्कृति और परंपराओं सहित जनजातीय साहित्य, इतिहास, जनजातीय दर्शन के महत्व के बारे में जानकारी मिल रही है।

ट्राइबल लिट्रेचर सेमिनार

कार्यक्रम में आज सेमिनार के पहले दिन ट्राइबल लिट्रेचर सेमिनार में आज सेमिनार के पहले दिन आदिवासी साहित्य में कथा और कथेतर विधाओं का वर्तमान परिदृश्य के बारे में चर्चा की गई। प्रमुख वक्ता के रूप में वरिष्ठ साहित्यकार एवं सदस्य साहित्य अकादमी,झारखंड श्री महादेव टोप्पो ने साहित्य एवं लोक कथाओं के बारे में विस्तार से जानकारी दी।उन्होंने कहा कि आज की आदिवासी युवा पीढ़ी को आदिवासियों से जुड़े साहित्य एवं कथाओं को पढ़ना चाहिए ताकि वे दिशा हीन ना हों। 

उन्होंने कहा कि युवा अपनी पुरानी आदिवासी परंपरा से कटकर दिशाहीन हो रहे हैं। उन्हें अपनी पुरानी परंपराओं से जुड़ने की ज़रूरत है। इसके लिए पूर्वजों द्वारा लिखी गये साहित्यों को पढ़ने की ज़रूरत है। उन्होंने पुरखों द्वारा लिखी गई साहित्य एवं कथाओं पर प्रकाश डाला।

देश के विभिन्न राज्यों से आये विशेषज्ञों ने रखे अपने विचार*

प्रयागराज से आयी प्रोफेसर श्री जनार्दन गोंड ने आदिवासी के जीवन दर्शन के बारे में विस्तार से बताया।आदिवासी के ज्ञान के बारे में चर्चा की । उनमें प्रकृति को ले कर जागरूकता के बारे में बताया साथ ही प्रकृति से सामंजस्य पर प्रकाश डाला। 

वहीं मणिपुर विश्वविद्यालय से आयी प्रोफेसर ई विजयलक्ष्मी ने आदिवासी दर्शन में उनके ज्ञान के बारे में जानकारी दी। उन्होंने कहानी एवं उपन्यास के माध्यम से आदिवासियों की जीवनी के बारे में विस्तार से प्रकाश डाला। 

वहीं त्रिपुरा से आयीं प्रोफेसर मिलन रानी चमातिया ने भी आदिवासी भाषा, जीवन दर्शन के बारे में चर्चा की । उन्होंने भी कहानी एवं उपन्यास के माध्यम से उनके जीवन संघर्ष, शिक्षा के बारे में जानकारी दी।

 उन्होंने त्रिपुरा के आदिवासी के जीवन संघर्ष,जीवन दर्शन, इतिहास और उनकी संस्कृति के बारे में विस्तार से चर्चा की।उन्होंने कब्रक उपन्यास के माध्यम से त्रिपुरा सहित देश के विभिन्न क्षेत्रों के आदिवासियों के बारे में चर्चा की।

सेमिनार के पहले दिन का समापन दिल्ली विश्वविद्यालय से आयी प्रोफेसर स्नेह लता नेगी की चर्चा से हुई। 

उन्होंने आदिवासी साहित्य की परंपरा एवम् कथा के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने बताया कि झारखंड कथा एवं साहित्य के संदर्भ में बेहतर रहा है यहाँ कई साहित्यकार एवं कथाकार हुए हैं। आदिवासियों के जीवन दर्शन, संस्कृति एवं उनकी परंपरा को जानने एवं समझने के लिए पूर्वजों द्वारा लिखी गई साहित्य को पढ़ने एवं समझने की के साथ साथ उसे अपनी जीवन में आत्मसात् करने की आवश्यकता है।

झारखंड आदिवासी महोत्सव-2023: मुख्य अतिथि राज्यसभा सांसद श्री शिबू सोरेन और मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने किया भव्य शुभारंभ

रांची: सभी आदिवासी समुदाय की संस्कृति एक जैसी है। आदिवासियों से मेरा आग्रह है कि वे अपने बच्चे- बच्चियों को शिक्षित जरूर करें। जब बच्चे शिक्षित होंगे तभी आदिवासी समुदाय उन्नति के मार्ग पर आगे बढ़ेगा। राज्य समन्वय समिति के अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद शिबू सोरेन आज विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर झारखंड आदिवासी महोत्सव 2023 के उद्घाटन समारोह को संबोधित कर रहे थे । उन्होंने कहा कि "आदिवासी महोत्सव" पूरे उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। यह महोत्सव आदिवासी समुदाय की एकजुटता और आपसी भाईचारा को दर्शाता है। आने वाली पीढ़ी भी इसी तरह अपनी संस्कृति और सभ्यता से जुड़ी रहे, इसके लिए उन्हें प्रेरित करने की आवश्यकता है।

आदिवासी जीवन दर्शन और लोक संस्कृति को अलग पहचान देने का प्रयास 

इस अवसर पर मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने कहा कि आज विश्व आदिवासी दिवस है। इस अवसर पर दो दिवसीय झारखंड आदिवासी महोत्सव-2023 के उद्घाटन समारोह में शामिल होने का मौका मिला है । 

इस महोत्सव के अपने मायने हैं। इस कार्यक्रम में देश के विभिन्न राज्यों से आये हुए आदिवासी समूह अपना नृत्य एवं गायन तो प्रस्तुत करेंगे ही, साथ ही आदिवासी समाज की समस्या एवं अन्य समसामयिक विषयों पर विमर्श का भी कार्यक्रम रखा गया है। इस महोत्सव से आदिवासी जीवन दर्शन और लोक संस्कृति को एक अलग और विशिष्ट पहचान मिलेगी।

 नृत्य, संगीत के साथ-साथ संघर्ष आदिवासी समाज की है पहचान 

मुख्यमंत्री ने कहा कि नृत्य, संगीत के साथ-साथ सदैव संघर्ष आदिवासी समाज की मुख्य पहचान है। आज जब मैं आदिवासी महोत्सव के मंच से बोल रहा हूँ तो बिना झिझक कहना चाहूंगा कि देश के विभिन्न क्षेत्रों में हमारे आदिवासी भाई-बहन प्रताड़ना झेलने को विवश हैं, अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ने को मजबूर हैं। क्या मध्य प्रदेश ? क्या मणिपुर ? क्या राजस्थान ? क्या छत्तीसगढ़ ? क्या गुजरात ? क्या तमिलनाडु ? मणिपुर में हजारों घर जल कर तबाह हो गये हैं, सैकड़ों लोगों को मारा गया है, महिलाओं की इज्जत के साथ खिलवाड़ किया गया है । दरअसल यह सदियों से चले आ रहे संघर्ष का ही विस्तार है। संघर्ष है वर्चस्ववादी ताकतों और समानता तथा भाईचारे की ताकतों के बीच। संघर्ष है धार्मिक कट्टरपंथियों और 'जियो और जीने दो' की उदार ताकतों के बीच । संघर्ष है भविष्यवादी, भाग्यवादी चिंतकों और वर्तमान को समृद्ध करने वाली शक्तियों के बीच । संघर्ष है प्रकृति पर कब्जा करने वाली विनाशकारी शक्तियों एवं प्रकृति का सहयोगी - सहभोगी बन कर रहने वाली श्रमजीवी एवं साहसी शक्तियों के बीच । -

 एकजुट होकर लड़ें और आगे बढ़े 

मुख्यमंत्री ने कहा कि आज विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर मैं देश के 13 करोड़ से ज्यादा आदिवासियों भाइयों-बहनों से एक होकर लड़ने एवं बढ़ने का अपील करता हूँ। गोंड, मुंडा, भील, कुकी, मीणा, संथाल, असुर, उराँव, चेरो आदि सभी को एकजुट होकर सोचना होगा। आज देश का आदिवासी समाज बिखरा हुआ है। 

हम जाति-धर्म-क्षेत्र के आधार पर बंटे हुए हैं। जबकि सबकी संस्कृति एक है। खून एक है, तो समाज भी एक होना चाहिए। हमारा लक्ष्य भी एक होना चाहिए। हमारी समस्या का बनावट लगभग एक जैसा है, तो हमारी लड़ाई भी एक होनी चाहिए।

 विस्थापन का दर्द जेल रहा है आदिवासी समुदाय 

मुख्यमंत्री ने कहा कि लगभग सभी हिस्सों में आदिवासी समाज को विस्थापन का दर्द झेलना पड़ा है एवं केंद्र तथा राज्य में सरकार चाहे किन्हीं की हो आदिवासी समाज के दर्द को कम करने के लिए कभी समुचित प्रयास नहीं किये गये । हमारी व्यवस्था कितनी निर्दयी है ? कभी यह पता लगाने का काम भी नहीं किया कि कहाँ गए खदानों, डैमों, कारखानों के द्वारा विस्थापित किये गए लोग ? खदानों / उद्योगों / डैमों से विस्थापित हुए, बेघर हुए लोगों में से 80 प्रतिशत आदिवासी हैं। काट दिया गया लाखों लोगों को अपनी भाषा से, अपनी संस्कृति से, अपनी जड़ों से। कल का किसान आज वहाँ साइकिल पर कोयला बेचने को मजबूर है। बड़े-बड़े शहरों में जाकर बर्तन धोने, बच्चे पालने या ईंट भट्ठों में बंधुआ मजदूरी करने के लिए विवश किया गया है। बिना पुनर्वास किये एक्ट बनाकर लाखों एकड़ जमीन कोयला कम्पनियों को दिया गया। हमारा झरिया शहर बरसों से आग की भट्ठी पर तप रहा है लेकिन कोयला कम्पनियां एवं केंद्र कान में तेल डालकर सोयी हुई है ।

 आखिर इस विकास को आदिवासी समाज कैसे अपनाएं? 

 मुख्यमंत्री ने कहा कि आखिर इस विकास को आदिवासी समाज कैसे अपना मान सकता है ? आखिर विकास की चपेट में किनकी जमीन गयी है ? किनकी रोजी-रोटी छीनी गई है ? किनकी भाषा खत्म हो रही है ? किनकी संस्कृति खतरे में है ? क्या इसका जायजा सत्ता को नहीं लेना चाहिए था ? जो विकसित हुए हैं वे कौन हैं ?तथाकथित मुख्यधारा के इतिहासकारों ने भी आदिवासियों के साथ बेईमानी की है। उन्होंने उनका इतिहास ही दर्ज नहीं किया और न ही देश के विकास में आदिवासियों के योगदान को चिन्हित किया गया। चाहे अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध हो या महाजनों के जुल्म के खिलाफ संघर्ष या फांसी पर लटकने की हिम्मत हो या अंतिम आदमी के रूप में लड़ते हुए मर जाने का साहस, इनमें अगुआई के बावजूद इतिहासकारों ने हमारे पूर्वजों को जगह नहीं दी ।

 विलुप्त होती जा रही है आदिवासी भाषाएं 

मुख्यमंत्री ने कहा कि आज देश के विभिन्न हिस्सों में आदिवासियों की अनेक भाषाएँ गायब हो चुकी हैं या गायब होने के कगार पर है। आज हमारे जीवन को आस्था के केन्द्रों से बाँधने का प्रयास किया जा रहा है।लोग तो हमसे हमारा नाम तक छीनने में लगे हुए हैं। हम आदिवासी / मूल निवासी हैं पर विचित्र बात है ! जिस समाज की कोई जाति नहीं उसे कोई 'जनजाति' कह रहा है तो कोई वनवासी कहकर एक ढंग से चिढ़ा रहा है। आज जब आदिवासी अपनी पहचान के लिए इतिहास में की गयी उपेक्षा के विरुद्ध बोलने का प्रयास कर रहा है तो उसे चुप कराने का प्रयास हो रहा है। भले ही आदिवासियों में अनेक क्रांतिकारी वीर, विद्वान्, चिन्तक हुए हैं, लेकिन समाज के मुख्य धारा के द्वारा हमेशा प्रयास किया गया है कि हमारी कोई औकात नहीं बन सके एवं नीति-निर्धारण में हमारी कोई भूमिका नहीं रह सके।

 हमें टुकड़ों में बांटकर देखने का प्रयास किया गया 

मुख्यमंत्री ने कहा कि जब हम आदिवासी संस्कृति, आदिवासी समाज के इतिहास को जानने का प्रयास करते हैं, तो 1800 ई. के पूर्व का ज्यादा जिक्र नहीं मिलता है। जब हमारे बारे में लिखना प्रारंभ किया गया तब भी हमें केवल क्रान्ति की श्रृंखला का नेतृत्वकर्ता मान लिया। हमें टुकड़ों में बाँट कर देखने का प्रयास हुआ। जबकि इतिहास के हर दौर में आदिवासी समाज अपनी विशिष्ट उपस्थिति दर्ज करवाते रहा है। हमारे पूर्वजों ने गणतंत्र की स्थापना की, राज्य निर्माण किया, लोक कल्याणकारी शासक वंशों की स्थापना की। इन परिस्थितियों में यह कहना गलत नहीं होगा कि इस देश की सभ्यता-संस्कृति को गढ़ने में आदिवासी समाज के योगदान की पुनः व्याख्या की जाए। हमें आदिवासी समाज को आदिवासी विचारक, लेखक, विद्वान् की नजरों से देखने की जरूरत है। यह सच है कि आज भी देश का सबसे गरीब, अशिक्षित, प्रताड़ित, विस्थापित एवं शोषित वर्ग, आदिवासी वर्ग है । परन्तु, यह भी सच है कि हम एक महान सभ्यता के वारिस हैं, हमारे पास विश्व एवं मानव समाज को देने के लिए बहुत कुछ है। जरूरत है कि नीति निर्माताओं के पास दृष्टि हो ।

 आदिवासियों के लिए अपनी जमीन- अपनी संस्कृति- अपनी भाषा बहुत महत्वपूर्ण है 

मुख्यमंत्री ने कहा, कि क्या यह दुर्भाग्य नहीं है कि जिस अलग भाषा-संस्कृति-धर्म के कारण हमें आदिवासी माना गया ,उसी विविधता को आज के नीति निर्माता मानने के लिए तैयार नहीं हैं ? हम आदिवासियों के लिए अपनी जमीन- अपनी संस्कृति- अपनी भाषा बहुत महत्वपूर्ण है ।

 आदिवासी समुदाय एक स्वाभिमानी समुदाय है, मेहनत करके खाने वाली समुदाय है, ये किसी से भीख नहीं मांगती है। हम भगवान बिरसा, एकलव्य, राणा पूंजा की समुदाय के हैं। हम इस देश के मूल वासी हैं । हमारे पूर्वजों ने ही जंगल बचाया, नदियां बचाई, पहाड़ बचाया है। 

 आदिवासी संस्कृति को आदर की दृष्टि से देखने की जरूरत 

मुख्यमंत्री ने कहा कि इस महान आदिवासी संस्कृति को आदर की दृष्टि से देखने की जरूरत है | हमें सिर्फ जंगल में रहने वाले गरीब के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए |

 जंगल एवं मानव विकास की पूरी कहानी हमारे पूर्वजों के पास है । आज जरुरत है कि एक आम देशवासी के अन्दर आदिवासी समाज के प्रति संवेदना जगाई जाए। जरुरत है आम जन के अन्दर आदिवासी समाज के प्रति सम्मान एवं सहयोग की भावना पैदा करने की ।

 विभिन्न आदिवासी समूहों के बीच परस्पर संवाद शुरू हो 

मुख्यमंत्री ने कहा कि मेरी चाहत है कि विभिन्न आदिवासी समूहों के बीच परस्पर संवाद शुरू हो । आज जो हम विभाजित हैं, असंगठित हैं, यही कारण है कि मणिपुर के आदिवासी उत्पीड़न का विषय झारखण्ड के मुंडा लोगों का विषय नहीं बन पा रहा है। राजस्थान के मीणा भाई के दर्द को मध्य प्रदेश के भील अपना मान कर आगे नहीं आ रहे।

किसी ने इसी स्थिति पर ठीक ही लिखा है -

'जब लड़ाई अस्तित्व की हो,वजूद की हो

तो सामने आना ही पड़ता है।मिटकर भी

अगर कुछ बचाया जा सकने की उम्मीद हो,

तो कदम स्वयं आगे बढ़ाना पड़ता है ।'

उन्होंने कहा कि हमें यह सबों को बताना होगा कि जिस आदिवासी का बोलना ,गाना है एवं चलना नृत्य है , वह जब गुस्साता है तो उसकी जुबान नहीं, उसके तीर और धनुष लिए हाथ चलते हैं।

 देश के आदिवासी समाज का मुझे प्यार मिलता रहा है 

मुख्यमंत्री ने कहा कि मैं उन सभी लोगों को धन्यवाद देता हूँ जिन्होंने हमारे ऊपर विश्वास जताया है।

 आदिवासी मुख्यमंत्री होने के अपने मायने हैं। झारखण्ड ही नहीं देश के दूसरे हिस्से के आदिवासियों का भी जो प्यार मुझे मिलता है, जो उम्मीद मुझसे है उससे मैं भली-भांति परिचित हूँ । आइये हम अपनी एकजुटता को आगे बढ़ने का संकल्प लें।

 आदिवासी समुदाय पर आधारित 35 पुस्तकों और डाक टिकट का विमोचन 

इस अवसर पर टीआरआई की ओर से आदिवासी समुदाय पर आधारित 35 पुस्तकों का विमोचन किया गया। वहीं, डाक विभाग द्वारा विश्व आदिवासी महोत्सव पर आयोजित हो रहे झारखंड आदिवासी महोत्सव के "लोगो" पर आधारित डाक टिकट का भी माननीय अतिथिगणों ने विमोचन किया।

 इस महोत्सव में मुख्य अतिथि के रूप में राज्य समन्वय समिति के अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद श्री शिबू सोरेन, अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति एवं पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग के मंत्री श्री चम्पाई सोरेन, विधायक श्री विनोद सिंह, विधायक श्री जय मंगल सिंह , विधायक श्री राजेश कच्छप, मुख्य सचिव श्री सुखदेव सिंह, पुलिस महानिदेशक श्री अजय कुमार सिंह, प्रधान सचिव श्री राजीव अरुण एक्का, मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव श्रीमती वंदना दादेल और मुख्यमंत्री के सचिव श्री विनय कुमार चौबे समेत कई गणमान्य मौजूद रहे।

झारखंड आदिवासी महोत्सव 2023 का आगाज: देश के सभी राज्यों के आदिवासी एक हों, लड़ाई हमारे अस्तित्व की है- हेमंत सोरेन


रांची: झारखंड आदिवासी महोत्सव -2023 का आज आगाज हो गया। आदिवासी दिवस पर देश के कई राज्यों से लोग शामिल होने पहुंचे हैं। कार्यक्रम की शुरुआत से पहले मणिपुर हिंसा में मारे गये लोगों को श्रद्धांजलि दी गयी, एक मिनट का मौन रखा गया। 

कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर शिबू सोरेन थे। साथ में सीएम हेमंत सोरेन, चंपई सोरेन और राजेश कक्षा मौजूद थे।

इसके बाद दीप प्रज्वलन करके कार्यक्रम की शुरुआत की गयी। कार्यक्रम में एक साथ 35 पुस्तकों का लोकार्पण किया गया। आदिवासी महोत्सव के मौके पर एक खास डाक टिकट का भी लोकार्पण किया गया है।

इस मौके पर दिशोम गुरू शिबू सोरेन ने कहा आदिवासी पूरे देश पूरी दुनिया में हैं। आदिवासी जीवन जीने का खाने का प्रयास करता आया है। आदिवासी मजदूरी करता है। हम आदिवासी दिवस मनाते हैं आने वाली पीढ़ी भी मनाती रहेगी।

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर बधाई देते हुए अपने संबोधन की शुरुआत की। 

उन्होंने कहा कि यह दूसरी बार जो इस कार्यक्रम शिरकत करने का मौका मिला। इस महोत्सव का अपना एक महत्व है। आज की परिस्थिति में यह दिवस और भी कई मायनों में महत्वपूर्ण है दो दिनों तक चलने वाले इस कार्यक्रम में देश के विभिन्न राज्यों से आये हुए आदिवासी अपनी कला का प्रदर्शन करेंगे, साथ ही अपनी समस्याओं पर भी चर्चा करेंगे। उन्होंने बताया कि यहां आप सोहराय पेटिंग को भी समझेंगे, आदिवासी व्यंजन जो मुख्यधारा से गायब हो रहे हैं, उसका स्वाद मिलेगा। नृत्य संगीत आदिवासी समाज की पहचान है। 

मणिपुर में जो हिंसा हो रही है वह इस संघर्ष की ही पहचान है। यह संघर्ष है, कट्टरपंथियों और जीओ और जीने दो की उदार ताकतों को बीच। संघर्ष है, प्रकृति का विनाश करने वाले और प्रकृति का सहयोगी बनकर रहने वाले लोगों के बीच। देश के 13 करोड़ से ज्यादा आदिवासी को मैं एक साथ लड़ने की अपील करता हूं। आज देश का आदिवासी बिखरा हुआ है, हम धर्म क्षेत्र के आधार पर बटे हैं। हमारा लक्ष्य, हमारी समस्या एक जैसी है तो हमारी लड़ाई भी एक जैसी होनी चाहिए। 

केंद्र सरकार की ओर इशारा करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कल का किसान आज साइकिल पर कोयला बेचने को मजबूर है, बंधुआ मजदूर है, लाखों एकड़ जमीन कोयला कंपनियों को दी गयी। हमारी धरती तप रही है लेकिन कंपनी और केंद्र सरकार कान में तेल डालकर सोई हुई है। किसकी संपत्ति खत्म हुई, किसकी जमीन गयी। जो विकसित हैं वो कौन हैं। इतिहासकारों ने भी आदिवासियों के साथ बेईमानी की और आदिवासियों का जिक्र नहीं किया गया है। देश की आजादी के लिए आदिवासियों ने बलिदान दिया।

झारखंड सरकार के इस विश्व स्तरीय आयोजन में 32 जनजातीय वाद्य यंत्रों का आपको संगम दिखेगा। साथ ही साथ असुर, नागपुरी,सराइकेला छऊ, डोमकच, पायका समेत अन्य नृत्य की प्रस्तुति देंगे कलाकार, आदिवासी फिल्म और फैशन शो भी होगा।

 इस कार्यक्रम झारखंडी खानपान, परिधान, फैशन शो, आदिवासी व्यंजन के स्टॉल के साथ, विविध जनजातीय सांस्कृतिक संध्या का आयोजन भी देखने को मिल रहा है।