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अविश्वास प्रस्ताव को लेकर विपक्षी दलों के गठबंधन INDIA में दरार! जानें कांग्रेस ने कैसे संभाले हालात

#many_coalition_parties_angry_with_congress_on_no_confidence_motio

केन्द्र की मोदी सरकार के खिलाफ विपक्ष ने महागबंधन बनाया है। हालांकि शुरू से ही इस गठबंधन की सफलता पर शक किया जा रहा है। इस बीच खबर मिल रही है कि अविश्वास प्रस्ताव के मसले पर विपक्षी दलों के गठबंधन INDIA में दरार नजर आ रही है।सूत्रों के मुताबिक विपक्षी गठबंधन के कई नेता अविश्वास प्रस्ताव पर नोटिस देने के मामले में कांग्रेस के रवैये से नाराज हैं।अकेले कांग्रेस की ओर से दिए गए अविश्वास प्रस्ताव को ले कर गठबंधन में शामिल दूसरे कई दलों की नाराजगी के बाद पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को जहां खेद जताने पड़ा, वहीं वरिष्ठ नेता सोनिया गांधी को मोर्चा संभालना पड़ा।

कांग्रेस की ओर से जल्दबाजी में नोटिस भेजे जाने से बढ़ी नाराजगी

बीते बुधवार यानी 26 जुलाई को कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई ने मोदी सरकार के खिलाफ विपक्षी गठबंधन इंडियन नेशनल डिवेलपमेंटल इन्क्लुसिव अलायंस यानी INDIA की तरफ से अविश्वास प्रस्ताव पेश किया।इकोनॉमिक्स टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार कांग्रेस की तरफ से इतनी जल्दबाजी में नोटिस भेजे जाने के कारण अलायंस की अन्य सहयोगी पार्टियां भड़क गई। कुछ नेताओं के मुताबिक, बुधवार सुबह INDIA में शामिल नेताओं की बैठक में सहयोगी दलों ने कांग्रेस के इस एकतरफा कदम पर आपत्ति जताई।उन्होंने कहा कि अविश्वास प्रस्ताव लाने का निर्णय मंगलवार को सामूहिक रूप से लिया गया था, इसलिए नोटिस को भी इंडिया में शामिल सहयोगी दलों के नेताओं के हस्ताक्षर के साथ सामूहिक रूप भेजा जाना चाहिए था।

इन्होंने जताया विरोध

सूत्रों के मुताबिक, इसे लेकर तृणमूल, सपा, शिवसेना उद्धव गुट, वाम दल और द्रमुक ने आपत्ति दर्ज कराई। कांग्रेस के अकेले नोटिस भेजने के इस फैसले का विरोध करने वाले नेताओं में डेरेक ओ'ब्रायन (एआईटीसी), टीआर बालू (डीएमके), रामगोपाल यादव (एसपी), संजय राउत (एसएस), एलामाराम करीम (सीपीआई-एम) और बिनॉय विश्वम (सीपीआई) शामिल थे। 

कांग्रेस ने मानी गलती

गठबंधन में शामिल दूसरे कई दलों की नाराजगी के बाद पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को जहां खेद जताने पड़ा, वहीं वरिष्ठ नेता सोनिया गांधी को मोर्चा संभालना पड़ा। कांग्रेस अध्यक्ष खरगे ने विरोध कर रहे नेताओं को यह कहकर शांत कर दिया कि उनकी पार्टी ने जो किया वह एक चूक थी और इस पर उन्हें खेद है। बाद में, कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी ने मीडिया से किए गए आधिकारिक बातचीत में कहा, "हम इस तथ्य पर जोर देना चाहते हैं कि अविश्वास प्रस्ताव अकेले कांग्रेस का नहीं है, बल्कि INDIA गठबंधन में शामिल सभी सहयोगी दलों की तरफ भेजा गया एक सामूहिक प्रस्ताव है।

गौरव गोगोई ने दिया अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस

दरअसल, लोकसभा में कांग्रेस के नेता गौरव गोगोई ने सुबह 9.20 पर ही स्पीकर के दफ्तर में अविश्वास प्रस्ताव सौंप दिया था जबकि गठबंधन दल के नेता सुबह 10 बजे मीटिंग के लिए पहुंचे। लेकिन जब उन्हें पता चला कि अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस सौंप दिया गया तो उन्होंने कड़ी नाराजगी जताई।

पीएम मोदी और शी जिनपिंग के बीच बाली में हुई थी बॉर्डर विवाद पर बात, 8 महीने बाद विदेश मंत्रालय ने किया खुलासा

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भारत और चीन के बीच पिछले तीन सालों से गतिरोध की स्थिति बरकरार है। पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में 15 जून 2020 को हुए संघर्ष के बाद से दोनों देशों के बीच तनाव की स्थिति है।बॉर्डर पर हालात अभी भी पूरी तरह सुधरे नहीं हैं। हालांकि, उसके बाद से ही बॉर्डर पर हालात को सुधारने की दिसा में दोनों तरफ से कई कोशिशें हो चुकी हैं।इस बीच भारत सरकार की ओर से जानकारी दी गई है कि पिछले साल नवंबर में हुई जी-20 की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच रिश्ते सुधारने के लिए विस्तृत चर्चा हुई थी। अभी तक इस मुलाकात को औपचारिक ही माना जा रहा था, लेकिन अब सरकार ने विस्तृत चर्चा की जानकारी दी है।

विदेश मंत्रालय ने गुरुवार को कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने पिछले वर्ष बाली में जी20 शिखर सम्मेलन में एक डिनर के दौरान एक-दूसरे का अभिवादन स्वीकार किया और द्विपक्षीय संबंधों को स्थिर बनाए रखने की आवश्यकता पर बातचीत की थी। यह मई 2020 में भारत-चीन सीमा पर उत्पन्न गतिरोध के बाद से दोनों नेताओं की पहली बार सार्वजनिक मुलाकात थी।

द्विपक्षीय संबंधों को स्थिर करने पर बात

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा कि पिछले साल बाली में जी20 शिखर सम्मेलन के दौरान इंडोनेशिया के राष्ट्रपति द्वारा आयोजित रात्रिभोज के समापन पर प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने शिष्टाचार का आदान-प्रदान किया और द्विपक्षीय संबंधों को स्थिर करने की आवश्यकता के बारे में बात की। उन्होंने आगे कहा कि जैसा कि आप जानते हैं, हमने दृढ़तापूर्वक कहा है कि पूरे मुद्दे के समाधान की कुंजी भारत-चीन सीमा के पश्चिमी क्षेत्र पर वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर स्थिति को हल करना है। साथ ही सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति बहाल करना है।

हाल ही में मिले थे अजित डोभाल-वांग यी

इससे पहले हाल ही में चीन के विदेश मंत्रालय ने जोहान्सबर्ग में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल और शीर्ष चीनी राजनयिक वांग यी के बीच एक बैठक के बाद दावा किया था कि शी और मोदी पिछले साल नवंबर में हुए जी20 शिखर सम्मेलन से इतर बातचीत में द्विपक्षीय संबंधों को स्थिर करने पर महत्वपूर्ण सहमति पर पहुंचे थे।

बता दें कि भारत और चीन की सेनाएं जून 2020 में गलवान में आमने-सामने आई थीं, तभी से ही हालात तनावपूर्ण बने हुए हैं। ईस्टर्न लद्दाख के इलाके में बड़ी संख्या में सैनिक जमा हो गए थे और दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने थीं, चीन-भारत तभी से इस मसले पर भिड़े हुए हैं और कोशिश की जा रही है कि बॉर्डर पर हालात को सुधारा जाए।

मणिपुर वायरल वीडियो पर गृह मंत्रालय सख्त, मामले की जांच सीबीआई को सौंपी

#ministryofhomeaffairstorefermanipurviralvideocaseto_cbi

मणिपुर हिंसा के बीच हाल ही वायरल हुए एक वीडियो के मामले में गृहमंत्रालय ने बड़ा कदम उठाया है। वायरल वीडियो मामले की जांच गृह मंत्रालय ने सीबीआई को सौंप दी है।वहीं इस केस का ट्रायल राज्य के बाहर कराने का फैसला भी लिया गया।

न्यूज़ एजेंसी पीटीआई के अनुसार, शीर्ष सरकारी सूत्र ने कहा कि जिस मोबाइल फोन से मणिपुर की महिलाओं का वायरल वीडियो शूट किया गया था, उसे बरामद कर लिया गया है और वीडियो शूट करने वाले व्यक्ति को गिरफ्तार कर लिया गया है। सूत्रों के अनुसार, केंद्र ने कुकी और मैतई समुदायों के सदस्यों के साथ कई दौर की बातचीत की, प्रत्येक समुदाय के साथ छह दौर की बातचीत हुई। गृह मंत्रालय मैतई और कुकी दोनों समूहों के संपर्क में है और मणिपुर में सामान्य स्थिति बहाल करने के लिए बातचीत अंतिम चरण में है। कुकी और मैतई के बीच में बफर जोन बनाया गया है।

मणिपुर में चार मई को क्या हुआ था? 

बता दें कि 4 मई को महिलाओं से हुई दरिंदगी का वीडियो वायरल हुआ था। यह घटना राज्य की राजधानी इंफाल से लगभग 35 किलोमीटर दूर कांगपोकपी जिले के गांव बी. फीनोम में हुई। ग्राम प्रधान द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत के मुताबिक, चार मई को शाम लगभग तीन बजे 900-1000 की संख्या में कई संगठनों से जुड़े लोग बी. फीनोम गांव में जबरदस्ती घुस आए। इनके पास एके राइफल्स, एसएल.आर इंसास और 303 राइफल्स जैसे अत्याधुनिक हथियार थे। हिंसक भीड़ ने सभी घरों में तोड़फोड़ की और फर्नीचर, इलेक्ट्रॉनिक सामान, बर्तन, कपड़े, अनाज सहित नकदी को लूटने के बाद सभी चल संपत्तियों को आग के हवाले कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट से केंद्र सरकार को बड़ी राहत, 15 सितंबर तक पद पर बने रहेंगे ईडी निदेशक एसके मिश्रा

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सुप्रीम कोर्ट ने ईडी के डायरेक्टर संजय मिश्रा को 15 सितंबर तक के लिए एक्सटेंशन दे दिया है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा ईडी के डायरेक्टर संजय कुमार मिश्रा के कार्यकाल के विस्तार को ‘अवैध’ ठहराये जाने के कुछ दिन बाद 26 जुलाई को केंद्र ने उन्हें 15 अक्टूबर तक पद पर बने रहने की अनुमति देने के लिए शीर्ष अदालत का रुख किया था। कार्यकाल बढ़ाने की केंद्र सरकार की मांग स्वीकार करते हुए कोर्ट ने अपने 11 जुलाई के आदेश में बदलाव किया है।

कोर्ट ने पूछा- क्या विभाग अक्षम अधिकारियों भरा पड़ा है?

दरअसल केंद्र सरकार ने संजय मिश्रा का कार्यकाल बढ़ाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दी थी। इसी अर्जी पर सुनवाई हुई। हालांकि सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी की और यह सवाल भी उठाया कि क्या विभाग अक्षम अधिकारियों भरा पड़ा है? न्यायमूर्ति बी आर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि हम यह क्या तस्वीर पेश कर रहे हैं कि ईडी निदेशक पद के लिए कोई दूसरा व्यक्ति नहीं है, क्या पूरा विभाग अक्षम लोगों से भरा है?

15 सितंबर के बाद एक्सटेंशन नहीं-सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि 15 सितंबर के बाद ईडी प्रमुख संजय कुमार मिश्रा के कार्यकाल में और विस्तार नहीं होगा। न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संजय करोल की पीठ ने कहा कि वह राष्ट्रीय हित में कार्यकाल विस्तार पर फैसला दे रहे हैं। 

कोर्ट के समक्ष सरकार ने रखा अपना पक्ष

सुनवाई के दौरान सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि ईडी निदेशक मिश्रा अपरिहार्य नहीं हैं, लेकिन वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (एफएटीएफ) समीक्षा कवायद के लिए उनकी मौजूदगी आवश्यक है। केंद्र ने कहा कि कुछ पड़ोसी देशों की मंशा है कि भारत एफएटीएफ की ‘संदिग्ध सूची’ में आ जाए और इसलिए ईडी प्रमुख पद पर निरंतरता जरूरी है। केंद्री की दलील सुनने के बाद उच्चतम न्यायालय ने ईडी निदेशक संजय कुमार मिश्रा का कार्यकाल 15 सितंबर तक के लिए बढ़ाने का फैसला सुनाया। 

शीर्ष कोर्ट ने पहले कार्यकाल विस्तार को अवैध ठहराया था

बता दें कि, इससे पहले सुप्रीम कोर्ट से केंद्र सरकार को करारा झटका लगा था। शीर्ष कोर्ट ने ईडी निदेशक संजय कुमार मिश्रा के कार्यकाल विस्तार को अवैध ठहराया था। शीर्ष अदालत ने उन्हें अपने लंबित काम निपटाने के लिए 31 जुलाई 2023 तक का समय दिया। साथ ही न्यायमूर्ति बीआर गवई, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संजय करोल की पीठ ने ईडी निदेशक के कार्यकाल को अधिकतम पांच साल तक बढ़ाने के लिए केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम और दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम में संशोधन को सही ठहराया।

ज्ञानवापी के एएसआई सर्वे पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जारी रखा स्टे आर्डर, 3 अगस्त को होगा फैसला

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ज्ञानवापी परिसर के एएसआई सर्वे पर लगी रोक तीन अगस्त तक बढ़ गई है। इलाहाबाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। अब तीन अगस्त को कोर्ट इस पर फैसला सुनाएगा। तब तक एएसआई के सर्वे पर रोक जारी रहेगी।मुस्लिम पक्ष भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के सर्वे के खिलाफ है। उसका मानना है कि इससे ऐतिहासिक संरचना को नुकसान हो सकता है। मुस्लिम पक्ष के वकील फरमान नकवी ने हाईकोर्ट में एएसआई के हलफनामे का जवाब दाखिल कर दिया है।

इससे पहले एएसआई सर्वे के आदेश के खिलाफ दाखिल की गई मस्जिद कमेटी की याचिका पर इलाहाबाद हाईकार्ट में सुनवाई हुई। मुस्लिम पक्ष के वकील नकवी ने बहस की शुरुआत की। एएसआई के अतिरिक्त निदेशक आलोक त्रिपाठी भी कोर्ट में हाजिर हुए। मुस्लिम पक्ष के वकील ने एएसआई के हलफनामे का जवाब दाखिल किया। आज की सुनवाई में मुख्य रूप से मुस्लिम पक्ष की ओर से एएसआई की तरफ से पेश की गई दलीलों पर अपनी आपत्ति दर्ज की जा रही है, इसके बाद हिंदू पक्ष भी मामले में बहस साक्ष्य पेश करेगा। सुनवाई के दौरान हिंदू पक्षकार की तरफ से कोर्ट में अपने टेबलेट में कुछ फोटोग्राफ चीफ जस्टिस को दिखाए गए हैं। यह फोटोग्राफ ज्ञानवापी परिसर के पश्चिमी द्वार के हैं, जिसमें श्लोक लिखा हुआ है, और यही फोटोग्राफ मुस्लिम पक्षकार को भी हिंदू पक्ष कारने दिखाए हैं।

हिंदू पक्षकार ने एक बार फिर से कोर्ट से कहा कि औरंगजेब ने ही मंदिर वह मस्जिद में तब्दील किया लेकिन पूरी तरीके से नहीं कर पाया। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हिंदू पक्षकार से सवाल किया कि कब तक यह ज्ञानवापी मंदिर था ? हिंदू पक्षकार की तरफ से कोर्ट में कहा गया कि औरंगजेब ने इससे मस्जिद का रूप दिया लेकिन पूरी तरीके से नहीं दे पाया। सुनवाई के दौरान एएसआई अधिकारी ने कोर्ट से कहा कि हम किसी भी तरीके से ज्ञानवापी परिसर को डैमेज नहीं पहुंचाएंगे केवल ब्रशिंग करेंगे स्ट्रैचिंग भी नहीं आने देंगे और डैमेज का तो कोई सवाल ही नहीं उठता।

अविश्वास प्रस्ताव पर INDIA गठबंधन को झटका, आंध्र की सत्ताधारी पार्टी YSRCP ने अविश्वास प्रस्ताव का विरोध करने का लिया फैसला

मणिपुर मुद्दे पर विपक्षी गठबंधन 'INDIA'लगातार सरकार को घेरने में जुटा है। लोकसभा में मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव भी लाया गया है। हालांकि, अब INDIA गठबंधन को विपक्ष से ही झटका लगा है। दरअसल, आंध्र की सत्ताधारी पार्टी YSRCP ने अविश्वास प्रस्ताव का विरोध करने का फैसला किया है। इतना ही नहीं दिल्ली अध्यादेश के मुद्दे पर भी जगनमोहन रेड्डी की पार्टी मोदी सरकार को समर्थन देगी। YSRCP उन पार्टियों में शामिल है, जो अभी तक न 'INDIA' गठबंधन में शामिल हुए हैं और न ही NDA की मीटिंग में पहुंचे थे।

YSRCP का ये फैसला INDIA गठबंधन के लिए बड़ा झटका इसलिए माना जा रहा है, क्योंकि अभी तक जगन ने NDA और 'INDIA' दोनों से दूरी बनाकर रखी थी। हालांकि, लंबे वक्त से बीजेपी और YSRCP के पास आने की अटकलें जरूर लगाई जा रही हैं। इतना ही नहीं कई मुद्दों पर पार्टी सदन के अंदर और बाहर मोदी सरकार का समर्थन करती रही है। हाल ही में नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह में भी रेड्डी की पार्टी शामिल हुई थी।

YSRCP का समर्थन कितना जरूरी? 

लोकसभा में मोदी सरकार बहुमत में है। बीजेपी के पास 301 सांसद हैं. एनडीए के पास 333 सांसद हैं। वहीं पूरे विपक्ष के पास कुल 142 सांसद हैं. सबसे ज्यादा 50 सांसद कांग्रेस के हैं। ऐसे में अविश्वास प्रस्ताव के खिलाफ YSRCP का NDA को समर्थन ज्यादा मायने नहीं रखता है। हालांकि 2024 चुनाव के नजरिए से यह NDA के लिए काफी अहम साबित हो सकता है। 

वहीं, राज्यसभा की बात करें तो कुल 238 सांसद हैं। इनमें से एनडीए गठबंधन के पास 105 सांसद हैं. जबकि I.N.D.I.A गठबंधन के पास 93 सांसद हैं। ऐसे में अगर बीजेपी दिल्ली अध्यादेश पर बिल लाती है, तो उसे समर्थन के लिए 15 और सांसदों की जरूरत है। ऐसे में YSRCP के 9 सांसद इस अंतर को कम करने में काफी अहम हैं।

I.N.D.I.A गठबंधन से क्यों दूर हैं रेड्डी?

जगन मोहन रेड्डी के पिता राजशेखर रेड्डी कांग्रेस से आंध्रप्रदेश के सीएम थे. 2009 में उनकी मौत के बाद कांग्रेस ने जगन को सीएम बनाने से इनकार कर दिया था। इसके बाद जगन मोहन रेड्डी ने कांग्रेस छोड़ दी और अपनी नई पार्टी का गठन किया. YSRCP ने आंध्रप्रदेश विधानसभा चुनाव में जीत हासिल कर सरकार बनाई. 2019 लोकसभा चुनाव में भी पार्टी ने राज्य की 25 में से 22 सीटों पर जीत हासिल की।

रेड्डी की राजनीति काफी हद तक ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक से मेल खाली है। वे अन्य नेताओं से बिल्कुल विपरीत व्यक्तिगत हमलों से बचते हैं। इतना ही नहीं उनका फोकस राज्य के मुद्दों को उठाने तक सीमित रहता है। ऐसे में रेड्डी चुनाव नतीजों तक दोनों गठबंधनों से दूरी बनाकर रखना चाहते हैं, ताकि नतीजों के बाद के विकल्प खुले रहें।

I.N.D.I.A गठबंधन में शामिल हैं ये 26 दल

2024 लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी दल बीजेपी के खिलाफ एकजुट होने की कोशिश में जुटे हैं। इसी क्रम में बेंगलुरु में विपक्ष की बैठक हुई थी। इस बैठक में 26 दल शामिल हुए थे।

 इन 26 दलों ने गठबंधन कर उसका नाम I.N.D.I.A यानी इंडियन नेशनल डेवेलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस रखा है. इस गठबंधन में कांग्रेस, टीएमसी, शिवसेना (उद्धव गुट), एनसीपी (शरद पवार गुट), सीपीआई, सीपीआईएम, जदयू, डीएमके, आम आदमी पार्टी, झारखंड मुक्ति मोर्चा, आरजेडी, समाजवादी पार्टी, नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी, आरएलडी, सीपीआई (ML), इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, केरल कांग्रेस (M), मनीथानेया मक्कल काची (MMK), एमडीएमके, वीसीके, आरएसपी, केरला कांग्रेस, केएमडीके, एआईएफबी, अपना दल कमेरावादी शामिल हैं।

लद्दाख से गायब हुई 28 वर्षीय भारतीय महिला का पाकिस्तान में मिला शव, पाक निवासियों ने गिलगित बाल्टिस्तान इलाके में दफनाया

कारगिल क्षेत्र से लापता हुई 28 वर्षीय एक महिला का शव पाकिस्तान के गिलगित-बाल्टिस्तान में पाया गया है। इससे हड़कंप मच गया है। अब सवाल है कि आखिर महिला का शव वहां तक कैसे पहुंचा। जानकारी के मुताबिक कुछ लोगों ने महिला का शव नदी में बहते हुए देखा। इसके बाद स्थानीय पुलिस को सूचना दी गई। पुलिस ने शव को नदी से बाहर निकलवाया। इसके बाद शव की पहचान कारगिल से लापता भारतीय महिला के रूप में की गई।

यह महिला लद्दाख के कारगिल जिले से लापता हुई थी। बुधवार को इस महिला का शव पाकिस्तान के गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र में बरामद किया गया। पुलिस ने यह जानकारी दी। ‘डॉन’ अखबार की खबर में खरमंग जिले के उपायुक्त मुहम्मद जफ्फार के हवाले से कहा गया है कि महिला का शव करगिल नदी से बरामद किया गया तथा जिले में दफना दिया गया। इससे पहले, करगिल पुलिस थाने ने महिला की तस्वीर वाला एक पैम्फ्लेट प्रसारित किया था।

पाकिस्तानियों ने दफनाया

शव बरामद करने के लिए पैम्फ्लेट गिलगित-बाल्टिस्तान प्रशासन को भी भेजा गया था। इसमें महिला की शिनाख्त बिलकीस बानो के रूप में की गयी है। वह 15 जुलाई को अक्चामल में अपने घर से लापता हो गयी थी। पाकिस्तानियों ने शव का अंतिम संस्कार उसी जिले में कर दिया है। खरमंग निवासी कासिम ने बताया कि महिला का अंतिम संस्कार इस्लामिक रीति-रिवाजों के अनुसार किया गया। हालांकि महिला का शव यहां तक किन परिस्थियों में पहुंचा, इस बारे में अभी कोई सूचना नहीं है।

मणिपुर हिंसा के बीच मेइती समुदाय के संगठन ने केंद्र सरकार से की अपील, कहा, कुकी समूह के लोगों से न करें बात, मणिपुर में लगाया जाए राष्ट्रपति शास


इंफाल के कई नागरिक समाज संगठनों के साझा मंच ‘कोऑर्डिनेटिंग कमेटी ऑन मणिपुर इंटिग्रिटी (COCOMI)' ने मणिपुर में जारी अशांति के लिए कुकी उग्रवादी समूहों को जिम्मेदार ठहराते हुए केंद्र से अपील की कि वह उनसे बात नहीं करे। इसी बीच मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग होने लगी है। यह मांग मणिपुर की 9 कुकी जनजातियों का प्रतिनिधित्व करने वाली जोमी काउंसिल संचालन समिति (ZCSC) ने की है। वहीं COCOMI ने यह भी दावा किया कि कुकी उग्रवादी संगठनों के सदस्य ‘विदेशी' हैं। COCOMI के संयोजक जितेंद्र निंगोम्बा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि मीडिया के सूत्रों से हमें सूचना मिली है कि भारत सरकार कुकी संगठनों के साथ बातचीत करने वाली है। हम पूरी तरह से इसके खिलाफ हैं।'' उन्होंने कहा कि सरकार को संघर्ष विराम (SOO) से जुड़े संगठनों में से किसी के साथ वार्ता नहीं करनी चाहिए।

 केंद्र, मणिपुर सरकार और दो कुकी उग्रवादी संगठनों- ‘कुकी नेशनल ऑर्गनाइजेशन' और ‘यूनाइटेड पीपुल्स फ्रंट' के बीच एसओओ पर हस्ताक्षर किए गए थे। यह संधि 2008 में हुई थी जिसकी अवधि कई बार बढ़ाई गई। निंगोम्बा ने कहा, ‘‘ हम कुकी उग्रवादी संगठनों और भारत सरकार के बीच किसी भी वार्ता के विरूद्ध हैं क्योंकि ये संगठन विदेशी नागरिकों के संगठन हैं।'' उन्होंने कहा कि राज्य की क्षेत्रीय अखंडता को कायम रखने और पृथक प्रशासन की अनुमति नहीं देने की अपनी मांग को लेकर COCOMI 29 जुलाई को रैली आयोजित करेगी। मणिपुर में चिन-कुकी-मिजो-जोमी से संगठन से संबद्ध 10 आदवासी विधायकों ने मेइती और आदिवासियों के बीच हिंसक संघर्ष के आलोक में केंद्र से अपने समुदायों के लिए पृथक प्रशासन के गठन की अपील की है।

नई दिल्ली में एक संवाददाता सम्मेलन में, COCOMI के प्रवक्ता के. अथौबा ने राज्य और केंद्र सरकार पर मणिपुर में हिंसा को रोकने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, ‘‘गुजरात दंगों (2002) के दौरान स्थिति को नियंत्रित करने में चार दिन लगे लेकिन मणिपुर जैसे छोटे राज्य में बल की तैनाती के बावजूद हिंसा को नियंत्रित क्यों नहीं किया जा सकता है।'' अथौबा ने असम राइफल्स पर उग्रवादियों का समर्थन करने का भी आरोप लगाया, और कहा कि उनका समूह इस संबंध में साक्ष्य इकट्ठा कर रहा है। उन्होंने मांग की कि अर्धसैनिक बल की कुछ बटालियनों को राज्य से हटा दिया जाए।

असम राइफल्स ने पहले ही COCOMI के खिलाफ राजद्रोह और मानहानि का मामला दर्ज किया है क्योंकि संगठन के प्रमुख ने बहुसंख्यक समुदाय से हथियार न सौंपने का आह्वान किया था। इस पूर्वोत्तर राज्य में करीब तीन महीने पहले जातीय हिंसा शुरू हुई थी जिसमें 160 से अधिक लोगों की जान चली गयी तथा सैंकड़ों अन्य घायल हुए। मणिपुर में अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मेइती समुदाय की मांग के विरोध में पर्वतीय जिलों में तीन मई को आयोजित ‘आदिवासी एकजुटता मार्च' के दौरान हिंसा भड़की थी। राज्य में मेइती समुदाय की आबादी करीब 53 प्रतिशत है और वे मुख्य रूप से इंफाल घाटी में रहते हैं। वहीं, नगा और कुकी जैसे आदिवासी समुदायों की आबादी 40 प्रतिशत है और वे अधिकतर पर्वतीय जिलों में रहते हैं।

क्या मणिपुर में जारी हिंसा हिंदू- ईसाई विवाद है,


डिटेल में पढ़िए, इस मुद्दे पर आरएसएस ने दिया बड़ा बयान, कहा, हिंसा बढ़ाने में विदेशी संगठनों का भी हाथ


 आरएसएस के एक पदाधिकारी ने दावा किया कि कुछ विदेशी संगठनों ने भी इस हिंसा को हिंदू-ईसाई संघर्ष बताने की कोशिश की है, जबकि दोनों समुदायों के बीच हिंसा का कोई इतिहास नहीं रहा है। मणिपुर में पिछले दो महीने से ज्यादा वक्त से चल रही हिंसा को लेकर खूब राजनीति हो रही है। इस मामले को लेकर विपक्ष मोदी सरकार को जमकर घेर रहा है, वहीं सरकार के मंत्री विपक्षी राज्यों में होने वाली घटनाओं की याद दिला रहे हैं। इसी बीच राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) के एक बड़े पदाधिकारी ने हिंसा को लेकर बयान दिया है। जिसमें उन्होंने कहा है कि इसे हिंदू और ईसाइयों के बीच का संघर्ष बताना गलत है। 

'कुकी-मैतई का नहीं रहा टकराव का इतिहास'

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक आरएसएस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने मणिपुर हिंसा को लेकर कहा कि ये बिल्कुल भी हिंदू-ईसाई संघर्ष नहीं है। कुछ पार्टियों ने इसे साजिश के तहत ऐसा पेश करने की कोशिश की है। उन्होंने कहा कि कुकी ईसाई समुदाय से आते हैं, जबकि बहुसंख्यक मैतई हिंदू हैं। इसके बावजूद उनके बीच हो रहा टकराव धर्म के आधार पर नहीं है। हालांकि आरएसएस पदाधिकारी ने माना कि इस हिंसा ने मणिपुर को एक ऐसा घाव दिया है, जिसे भरने में कई साल लग जाएंगे।

हिंसा को लेकर गलत दावों का आरोप

नाम नहीं छापने की शर्त पर आरएसएस के पदाधिकारी ने एक मीडिया हाउस को बताया कि हिंसा को लेकर जो गलत दावे किए गए हैं, उनमें कई विदेशी संगठनों का भी हाथ है। जिन्होंने चर्चों में तोड़फोड़ और आगजनी को इसका आधार बनाकर इसे हिंदू-ईसाई संघर्ष का नाम दिया उन्होंने कहा कि कुकी और मैतई समुदाय के बीच हिंसा का पुराना कोई इतिहास नहीं है। दोनों ही समुदायों के बीच पिछले लंबे समय से शादी आम बात है।

इस बातचीत के दौरान संघ पदाधिकारी ने ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा में शाही ईदगाह पर हिंदू पक्ष के दावों का भी समर्थन किया। उन्होंने कहा कि इन्हें हिंदुओं को सौंप दिया जाना चाहिए उनके हिंदू चरित्र को देखते हुए इन पर कोई विवाद ही नहीं होना चाहिए था।

राहुल गांधी ने केंद्र सरकार पर किया बड़ा हमला, कहा, BJP-RSS सिर्फ सत्ता चाहती है और सत्ता पाने के लिए ये देश भी जला सकते हैं, बयान के बाद घमासान

कांग्रेस नेता राहुल गांधी

विपक्षी दल संसद में मणिपुर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बयान और चर्चा की मांग कर रहे हैं। गुरुवार को विपक्षी गठबंधन INDIA के सदस्यों ने संसद में काला कपड़ा पहनकर विरोध जताया। वहीं, सांसदी जाने के बाद संसद के मानसून सत्र में शामिल न होने के कारण कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्विटर पर वीडियो शेयर कर पीएम मोदी पर निशाना साधा।

वीडियो में राहुल ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी मणिपुर के लिए क्या कर रहे हैं? वे मणिपुर के बारे में कुछ बोल क्यों नहीं रहे हैं? ऐसा इसलिए है क्योंकि नरेंद्र मोदी जी को मणिपुर से कोई लेना देना नहीं है। जानते हैं कि उनकी ही विचारधारा ने मणिपुर को जलाया है।

कांग्रेस नेता ने कहा कि BJP-RSS सिर्फ सत्ता चाहती है और सत्ता पाने के लिए ये कुछ भी कर सकती है। सत्ता के लिए ये मणिपुर को जला देंगे, सारे देश को जला देंगे। इनको देश के दुख और दर्द से कोई फर्क नहीं पड़ता।

राहुल ने कहा कि RSS-BJP और कांग्रेस के बीच विचारधारा की लड़ाई चल रही है। जहां कांग्रेस की विचारधारा- संविधान की रक्षा, देश को जोड़ने और सामाजिक असमानता के खिलाफ लड़ने की है। वहीं RSS-BJP चाहती है कि कुछ चुनिंदा लोग यह देश चलाएं और देश का सारा धन उन्हीं के हाथ में हो।

लोकसभा में कांग्रेस के व्हिप मणिकम टैगोर ने बताया कि विपक्षी दलों के 20 से अधिक सांसदों का एक प्रतिनिधिमंडल इस हफ्ते मणिपुर का दौरा कर हालात का जायजा लेगा। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने हाल ही में मणिपुर का दौरा किया था। इससे पहले कांग्रेस ने मणिपुर हिंसा के मुद्दे पर संसद में जारी गतिरोध के बीच बुधवार को लोकसभा में सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था। जिस पर सदन में चर्चा के लिए मंजूरी दे दी गई। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला सभी दलों के नेताओं से बातचीत करने के बाद इस प्रस्ताव पर चर्चा के लिए तारीख तय करेंगे।