कला संस्कृति विभाग का खेल, लोक कला वाद्य यंत्र को बचाने में फेल : प्रभात कुमार महतो
सरायकेला : झारखंड लोक कलाकार संघ के सचिव सह अंतरराष्ट्रीय छऊ नृत्य कलाकार प्रभात कुमार महतो ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा कि सांस्कृतिक कार्य निदेशालय, पर्यटन, कला संस्कृति खेलकूद एवं युवा कार्य विभाग झारखंड सरकार राज्य के कला-संस्कृति को बचाए रखने और इसे आगे बढ़ाने में नाकाम साबित हो रहा है।
सरकार की उदासीनता से कलाकार खासे नाराज हैं। दरअसल, विभाग की ओर से सरकार द्वारा संपोषित सांस्कृतिक संस्था एवं प्रशिक्षण केंद्र झारखंड कला मंदिर होटवार रांची में विभिन्न कला विधाओं में प्रशिक्षण के लिए प्रशिक्षकों व संगीतकारों के चयन एवं पैनल निर्माण हेतु आवेदन आमंत्रित किया गया है। इसमें झारखंड के प्रमुख जनजाति एवं क्षेत्रीय लोक नृत्य जैसे संथाली नृत्य, खड़िया नृत्य, हो नृत्य, मानभूम छऊ नृत्य, खोरठा नृत्य, पंचपरगनिया नृत्य, कुरमाली नृत्य, पाता झूमर, घोड़ा नृत्य और लोक कला वाद्य यंत्र में शहनाई, टोहिला आदि सूची से गायब है। वहीं विभाग की सूची में वेस्टर्न गिटार, कीबोर्ड ऑर्गन, ड्रम, ऑक्टोपैड वादन को प्राथमिकता दिया गया है।
उन्होंने कहा सभी जनजातीय व क्षेत्रीय लोक नृत्य और लोक कला वाद्य यंत्र को भी इस सूची में शामिल करने की मांग को लेकर विभागीय निदेशक को मांग पत्र सौंपा है। साथ ही निदेशालय से भी जानना चाहा है कि सांस्कृतिक कार्य निदेशालय, झारखंड की कला संस्कृति को बचाने व सजाने-संवारने के लिए है या वेस्टर्न संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए है।
झारखंड के ढोल, ढांक, नगाड़ा, शहनाई बजाने वाले जनजातीय व क्षेत्रीय लोक कलाकारों को जब राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल, मुख्यमंत्री व अन्य गणमान्य अतिथियों को स्वागत की बारी आती है तो खोजा जाता है, लेकिन इन कलाकारों को सरकार के पास बचाने के लिए कोई योजना नहीं है।
प्रभात महतो ने कहा कि सांस्कृतिक कार्य निदेशालय इतने महंगे वाद्य यंत्रों का प्रशिक्षण दिलाने के लिए योजना बना रही है। जहां एक ओर ढोल, ढाक, नगाड़ा, मांदर चार से पांच हजार रुपये में मिलता है वही कीबोर्ड, ऑक्टोपैड, ड्रम वेस्टर्न गिटार 80 हजार से एक लाख रुपये में आता है। क्या वास्तव में जो कलाकार है इतना पैसा लगाकर इसे खरीद सकते हैं। विभाग प्रशिक्षण दिलाने के नाम पर एक बार इतने महंगे वाद्य यंत्र खरीदने में भारी-भरकम राशि खर्च करने के लिए उत्साहित है, इसका मतलब भी समझा जा सकता है।
उन्होंने कहा कि यह राज्य की लोक कला और संस्कृति पर कुठाराघात है, पर झारखंड लोक कलाकार संघ चुप रहने वाला नहीं है, आने वाले मानसून सत्र में आवश्यकता पड़ी तो कलाकार धरना-प्रदर्शन के लिए भी तैयार है।
Jul 20 2023, 18:52