तेजस्वी यादव की राघोपुर सीट पर वोटिंग जारी, क्या जीत का लगाएंगे चौका?
बिहार विधानसभा चुनाव के इस दौर में बीजेपी ने अपना जोर केवल प्रचार-रैली तक सीमित नहीं रखा है. पार्टी ने इस बार विपक्ष के मजबूत गढ़ों को सीधे निशाने पर लिया है. इन्हीं में से एक है वैशाली जिले की राघोपुर विधानसभा सीट, जिसे लंबे समय से राजद और लालू प्रसाद यादव के परिवार का राजनीतिक केंद्र माना जाता है. तेजस्वी यादव इसी सीट से दो बार जीत दर्ज कर चुके हैं. लेकिन इस बार मुकाबला पहले जितना सरल नहीं दिख रहा.
राघोपुर की पहचान सिर्फ एक आम विधानसभा सीट की नहीं, बल्कि राजनीतिक वंश और परंपरा की सीट के रूप में रही है. लालू प्रसाद यादव ने 1995 में इसे अपना चुनाव क्षेत्र बनाया था और तब से यह इलाका लगातार सुर्खियों में रहा. बाद में राबड़ी देवी ने भी यहां से प्रतिनिधित्व किया. 2015 और 2020 में तेजस्वी यादव ने यहां से वापसी की और परिवार की पकड़ बरकरार रखी.
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पटना में वोट डालने के बाद राघोपुर से प्रत्याशी तेजस्वी यादव ने कहा कि 14 नवंबर को राज्य में नई सरकार बनेगी.
बड़ी संख्या में वोटर्स पोलिंग बूथ पर पहुंचने लगे हैं.
राघोपुर सीट पर भी वोटिंग शुरू हो चुकी है.
राघोपुर सीट हाई प्रोफाइल सीट है और यहां पर चुनाव को लेकर खासी तैयारी की गई है.
बीजेपी का दांव: सतीश कुमार यादव की वापसी
इस चुनाव में बीजेपी ने तेजस्वी यादव को चुनौती देने के लिए सतीश कुमार यादव का नाम आगे किया है. 2010 के चुनाव में सतीश ने जदयू उम्मीदवार रहते हुए राबड़ी देवी को हराया था, जो उस समय राज्य की सबसे चर्चित महिला नेता थीं. उसी जीत ने सतीश को राघोपुर की राजनीति का महत्वपूर्ण चेहरा बना दिया. सतीश 2015 और 2020 में भी तेजस्वी के खिलाफ चुनाव लड़े, पर वह जीत नहीं सके. लेकिन इस बार परिस्थिति अलग है, जदयू फिर से बीजेपी के साथ है और लोजपा भी एनडीए खेमे में. इससे समीकरण पहले से अधिक सतीश के पक्ष में माने जा रहे हैं.
वोट बंटवारे से तेजस्वी की चुनौती हुई और कठिन
पिछले चुनाव में लोजपा उम्मीदवार राकेश रौशन को 25,000 से अधिक वोट मिले थे, जिससे मुकाबला त्रिकोणीय हो गया था और सतीश का अंतर कम रह गया था. इस बार राकेश रौशन ने बीजेपी का हाथ थाम लिया है. इससे एनडीए का वोट बैंक एकजुट होने की संभावना और तेजस्वी के लिए चुनौती और कठिन मानी जा रही है. एनडीए के बड़े चेहरे लगातार यहां डेरा डाले हुए हैं.
63 साल से इस सीट पर यदुवंशी वर्ग का कब्जा
राघोपुर की राजनीति में एक दिलचस्प पहलू यह भी है कि पिछले छह दशकों से इस सीट का प्रतिनिधित्व यदुवंशी वर्ग करता आया है. उदय नारायण राय, उसके बाद लालू प्रसाद, फिर राबड़ी देवी और बाद में तेजस्वी यादव, ये सिलसिला अब तक कायम है. 2010 में पहली बार इस परंपरा में दरार तब पड़ी जब सतीश ने राबड़ी देवी को मात दे दी.
माहौल में बदलाव या परंपरा की जीत?
राघोपुर का चुनाव इस बार केवल दो उम्मीदवारों की लड़ाई नहीं, बल्कि दो राजनीतिक विचारधाराओं और दो तरह की पहचान की जंग है. एक तरफ हैं तेजस्वी यादव, जिन्हें युवा नेतृत्व और सामाजिक न्याय की राजनीति का चेहरा कहा जा रहा है. दूसरी ओर हैं सतीश यादव, जिनके साथ सत्तारूढ़ गठबंधन की ताकत, पुराना जनसंपर्क और पिछली जीत का इतिहास है. किसी एक नतीजे से सिर्फ सत्ता का संतुलन नहीं बदलेगा, बल्कि यह भी तय होगा कि राघोपुर अपनी पारंपरिक निष्ठा निभाता है या बदलते राजनीतिक समीकरणों के साथ कदम बढ़ाता है.







6 hours ago
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